हज़रते सय्यदना इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 2)

सिद्क़ सादिक का तसद्दुक सादिकुल इस्लाम कर 

बे  गज़ब  राज़ी  हो  काज़िम  और  रज़ा के वास्ते 

आप के लिए हवा ने पर्दा हटा दिया

हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु मामून रशीद ने जब आप को अपना खलीफा बना कर आप को अपना वली अहिद बनाया तो मामून रशीद के हाशिया नशीनो साथियों को ये बात पसंद न आई के अब खिलाफत बनी अब्बास से निकल कर बनी फातिमा की तरफ मुन्तक़िल हो जाएगी और वो लोग आप से जलने लगे, हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की ये आदत थी के मामून रशीद के घर तशरीफ़ लाते और अंदर जाना चाहते तो तमाम दरबारी व खुद्दाम सब सर व क़द तआज़ीम में खड़े हो जाते और सलाम करने के बाद पर्दा उठा देते ताके आप अंदर तशरीफ़ ले जाएं, मगर जब वो लोग नफरत करने लगे तो बा हम मश्वरा किया के अब जब वो आएं तो हम लोग अलग हो जाएं और पर्दा न उठाएंगें, अभी सब इस बात पर मुत्तफिक हो कर बैठे ही थे के हज़रत तशरीफ़ लाए मानन यानि फ़ौरन सभी दरबारी खड़े हो गए और सलाम अर्ज़ किया और पर्दा उठा दिया जिस तरह की आदत थी जब आप अंदर चले गए तो दरबारियों ने एक दूसरे को मलामत किया के जिस बात पर तुम लोगों ने इत्तिफाक किया था उस को क्यों छोड़ दिया? सब ने कहा: अब हम ऐसा ही करेंगें और पर्दा नहीं उठाएंगें दूसरे दिन जब आप तशरीफ़ लाए सभो ने खड़े हो कर सलाम किया लेकिन पर्दा नहीं उठाया, अचानक हवा चली और इस तेज़ हवा ने पहले से भी ज़ियादा पर्दा उठा दिया और आप अंदर तशरीफ़ ले गए और बाहर आते वक़्त फिर दूसरी मर्तबा हवा चली और परदे को उससे भी ज़ियादा उठा दिया, जब आप वहां से बाहर तशरीफ़ ले गए तो इन लोगों ने एक दूसरे से कहा: इस मर्द का अल्लाह पाक के नज़दीक बड़ा मर्तबा है और उस के हाल पर अल्लाह पाक की ख़ास इनायत है, देखो आते और जाते वक़्त हवा ने किस तरह हर दो जानिब से पर्दा उठाया, इस लिए हम लोग जिस तरह इन की खिदमत अंजाम देते थे इसी तरह अदा करते रहें क्यों के इसी में हम लोगों की भलाई है । 

आप की दुआ से बारिश का होना

आप के वली अहिद होने के बाद अरसा तक बारिश न हुई, दुश्मनो ने शिकायत की के जब से अली रज़ा वली अहिद हुए हैं अल्लाह पाक ने बारिश को मोकूफ कर दिया है और ये बात उन के ख़राब होने की दलील है, मामून ने जब ये बात सुनी तो उस को काफी गिरां गुज़रा और आप से नुज़ूले बारां यानि बारिश के लिए दुआ का तालिब हुआ, हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु दो शम्बा पीर के दिन नमाज़े इस्तसका के लिए कसीर जमात को ले कर एक मैदान में नाज़िल हुए जिस वक़्त आप दुआ में मसरूफ थे तो थोड़ी ही देर न गुज़री थी के अब्र ज़ाहिर हुआ और बिजली चमकने लगी जिस को देख कर लोगों ने जाने का इरादा किया तो आप ने इरशाद फ़रमाया: अभी ठहरो ये अब्र यहाँ के वास्ते नहीं है चुनांचे कई बार अब्र पैदा हुआ और गुज़रा आप हर बार फरमाते रहे के ये अब्र यहाँ के वास्ते नहीं है बल्कि फुलां जगह के वास्ते है, आखिर में जब अब्र पैदा हुआ तो आप ने उस वक़्त इजाज़त दी और सभी लोग अपने अपने मक़ाम पर चले गए फिर इस कद्र बारिश हुई के तमाम ज़मीन पानी ही पानी से भर गई और मखलूके खुदा ने राहतो आराम की सांस ली,  

आने वाहिद में अरबी बोलने लग्ना

मुल्के सिंध का रहने वाला एक शख्स आप की खिदमत में हाज़िर हुआ और सिंधी ज़बान में आप से गुफ्तुगू करने लगा आप उस की हर बात को समझ कर सिंधी ही ज़बान में जवाब देते रहे, जाते वक़्त उस शख्स ने अर्ज़ किया हुज़ूर ! में अरबी ज़बान नहीं जानता और तमन्ना रखता हूँ के अरबी ज़बान सीखूं? आप ने अपना दस्ते मुबारक उस के लबो पर फेर दिया फ़ौरन वो अरब के फसीहों की तरह फसीह व बलीग़ अरबी ज़बान बोलने लगा । 

ज़िंदह जनाज़ा मुरदाह हो गया

एक बार हसीदीन मज़ाक के तौर पर एक ज़िंदह आदमी को ताबूत यानि जनाज़े पर रख कर आप के पास लाए के आप नमाज़ पढ़ें तो हम रुस्वा और शर्मिंदाह करें, चुनांचे इसी मज़ाक के तहत जनाज़े को आप के आगे रखा गया और आप ने इस पर नमाज़े जनाज़ा पढ़ दी, नमाज़ के बाद इन लोगों ने जब चादर उठाई तो उस को मुर्दा पाया और अपने किए हुए पर निहायत नादिम व पशेमान हुए और मुर्दा को कफ़न दे कर दफन कर दिया, जब तीन दिन गुज़र गए तो आप उस की कब्र पे तशरीफ़ ले गए और फ़रमाया “कुम बि इज़ निल्लाह” तो कब्र शक हो गई यानि खुल गई और मुर्दा ज़िंदा हो कर निकल आया । 

तेरी बीवी दो बच्चों की हामिला (प्रेग्नेंट) है

जाफर इब्ने सालेह कहते हैं के मेरी बीवी हामिला प्रेग्नेंट थी इन्हीं दिनों में, में हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत मुबारक में हाज़री की सआदत हासिल की और अर्ज़ किया: हुज़ूर दुआ कीजिए के अल्लाह पाक मेरी बीवी को एक लड़का अता फरमाए, आप ने इरशाद फ़रमाया, तेरी बीवी दो बच्चों की हामिला है और में इस बशारते उज़्मा को सुन कर वहां से वापस हुआ के मेरे दिल में ख्याल आया के विलादत के बाद में एक का नाम मुहम्मद और दूसरे का नाम अली रखूंगा ये ख्याल आना ही था के आप ने आवाज़ दी और इरशाद फ़रमाया, तुम एक का न “अली, और दूसरे बच्चे का नाम उम्मे उमर रखना, चुनांचे पैदाइश हुई तो एक लड़का था और दूसरी लड़की में ने बच्चे का नाम “अली”, और बच्ची का नाम “उम्मे उमर” रखा एक रोज़ में ने अपनी माँ से पूछा के उम्मे उमर कैसा नाम है? तो उन्हों ने कहा: मेरी माँ का नाम “उम्मे उमर” था ।  

मोत की खबर देना

हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु एक रोज़ एक आदमी की तरफ देख कर फ़रमाया: ऐ शख्स तू चाहता है इस की वसीयत कर दे और इस चीज़ के लिए तय्यार हो जाए जिस किसी शख्स को भी गुरेज़ नहीं है, यहाँ तक के जब इस बात के कहने पर मुकम्मल तीन दिन गुज़र गए उस शख्स का इन्तिकाल हो गया ।    

कसरते माल की खबर देना

हुसैन बिन मूसा बयान करते हैं के में हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की खिदमते अक़दस में बैठा था के इतने में जाफर बिन उमर अल्वी का गुज़र हुआ हम में से बाज़ ने उन की तरफ बा नज़रे हिकारत देखा इस पर हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: अनक़रीब तुम इस को कसीरुल माल और कसीरुल खुद्दाम देखोगे, इस बात को एक हफ्ता भी न गुज़रा था के वो वालिए मदीना हो गए और उन की हालत अच्छी हो गई और अक्सर जब उन का गुज़र हम पर होता तो उन के गिर्द खुद्दाम और फौज होते जो उन के साथ चलते और हम उन के लिए तअज़ीमन खड़े हो जाते और दुआ करते ।     

आप की औलादे अमजाद

इब्ने खश्शाब ने “किताब मवालीद अहले बैत” में लिखा है के हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु के पांच साहब ज़ादे और एक साहब ज़ादी थीं जिन के असमाए मुबारका ये हैं, (1) हज़रत मुहम्मद जव्वाद (2) हसन (3) जाफर (4) इब्राहीम (5) हुसैन (6) हज़रते आईशा रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन । 

आप के खुल्फ़ए किराम

हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु के खुलफाए किराम के असमाए मुबारका ये हैं: हज़रते सय्यदना शैख़ माअरूफ़ करखी, (2) हज़रते इमाम तकी, हज़रते मीर अबुल कासिम मक्की रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।

आप की तसानीफ़

आप ने मामून रशीद के लिए एक रिसाला इल्मे तिब में तस्नीफ़ फ़रमाया था और किसी दूसरी तस्नीफ़ किताब का ज़िक्र नं मिल सका । 

विसाल के हैरत अंगेज़ हालात

हर नमाह बिन अमीन खादिम व खलीफा मामून जो हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में रहते थे, बयान करते हैं के एक रोज़ हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने मुझ को बुला कर इरशाद फ़रमाया: में तुम को एक राज़ पर आगाह करता हूँ जिस को अमानत के तौर पर मेरी हयात तक महफूज़ रखना वरना क़यामत में तेरा दामन ग़ीर हूँगा, में ने कसम खाई के हरगिज़ आप के राज़ को आप की ज़िन्दगी में ज़ाहिर नहीं करूंगा, उस के बाद आप ने फ़रमाया: ऐ हर नमाह मेरी मोत करीब है और बहुत जल्द में अपने आबाओ अजदाद से मिलने वाला हूँ और मेरी मोत का सबब ये होगा के में अंगूर और अनार के दाने खलीफा के पास खाऊंगा और इन्तिकाल कर जाऊँगा, उस वक़्त खलीफा मेरे दफ़न के बारे में ये चाहेगा के मेरी कबर अपने बाप हारून रशीद की कबर के पीछे खुदाए और वहा दफ़न करे लेकिन बा हुक्म  अल्लाह पाक वहा की ज़मीन सख्त होजा एगी और कुदाल कुछ काम नहीं करेगी जिस की वजह से कबर हरगिज़ खोद नहीं सकेंगें ऐ हर नमाह तू जान ले की मेरा मद्फ़न फुलां मकाम में होगा और मुझ को वो जगह भी बतला दी फिर फ़रमाया जब मेरा जनाज़ाह तय्यार हो उस वक़्त खलीफा को इन सब बातों से आगाह कर देना और नमाज़ के लिए थोड़ा रुकना क्यूंकि एक अरबी शख्स ऊंटनी पे सवार हो कर आएगा और उस की ऊंटनी बच्चा देगी फिर वो इस पर से उतर कर मुझ पर नमाज़ पढ़ेगा, तुम लोग उस के साथ नमाज़ अदा करना, उस के बाद कबर की जगह जो में ने बताई है उस को खोदना वहां पर एक कबर पटी हुई तहबतह निकलेगी उस की तह में सफ़ेद पानी होगा फिर जिस वक़्त उस की तमाम तहें खुल जाएं और फिर पानी न निकले तो जान लेना के वही मेरी जगह है और मुझे दफ़न करना, रावी कहते हैं के चंद रोज़ बाद आप ने खलीफा के पास अंगूर और अनार खाये और इन्तिकाल फ़रमाया: हर नमा का बयान है के में आप के विसाल के बाद खलीफा मामून के पास गया तो देखा के वो रुमाल हाथ में लिए हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु के विसाल के गम में रो रहे हैं और आंसूंओं को पोंछ्तें जा रहे हैं, में ने राज़ किया, ऐ अमीरुल मोमिनीन एक बात है अगर इजाज़त हो तो अर्ज़ करूँ? कहा: बयान करो उस वक़्त में ने सारा किस्सा जो हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया था बयान कर दिया, मामून ने सुनकर कमाल तअज्जुब और रंज का इज़हार किया इस के बाद तज्हीज़ व तक फीन का हुक्म दिया और आप के हुक्म के मुताबिक नमाज़े जनाज़ाह में कुछ ताख़ीर की गई यकायक वो अरबी ऊँट पर सवार हो कर आया और नमाज़ पढ़ कर चल दिया और उस ने न किसी से बात की और न किसी को मुखातिब किया खलीफा ने हुक्म दिया के उस शख्स को लाओ? लेकिन कहीं इस का पता न चला, खलीफा ने इम्तिहानन हारुन रशीद की कबर के पीछे कब्र खोदने का हुक्म दिया लेकिन वो ज़मीन पथ्थर से ज़ियादा सख्त निकली और कोई उस को खोद न सका सभी आजिज़ हो गए फिर जो मक़ाम आप ने मुकर्रर फ़रमाया था वहां खोदना शुरू किया जैसा आप ने फ़रमाया था इसी तरह से एक कब्र ज़ाहिर हुई और सफ़ेद पानी वहां मोजूद था, उस के बाद और तह ज़ाहिर हुईं और मक़ामे मकसूद में आप को दफ़न कर दिया गया,

दूसरी रिवायत

आरिफ़े बिल्लाह अल्लामा नूरुद्दीन उर्फ़ अब्दुर रहमान जामी रहमतुल्लाह अलैह अपनी मशहूर किताब “शवाहिदुन नुबुव्वत” में तहरीर फरमाते हैं: के लहिद में पानी भर जाएगा और इस में छोटी छोटी मछलियां पैदा होंगीं ये रोटी जो में देता हूँ टुकड़े कर के डालना मछलियां इन टुकड़ों को खा जाएंगी फिर एक बड़ी मछली पैदा होगी वो छोटी मछलियों को खा जाएगी, जब मछलियां गाइब हो जाएं तुम अपना हाथ पानी में रखना और जो कुछ में तालीम करता हूँ पढ़ना यहाँ तक के पानी खत्म हो कर लहिद (कब्र) खुश्क हो जाएगी । 

आप के मलफ़ूज़ात शरीफ

एक शख्स ने सवाल किया के अल्लाह पाक बंदों को ऐसी तकलीफ क्यों देता है जिसे वो बर्दाश्त न करे? फ़रमाया: अल्लाह पाक बड़ा आदिल है ऐसी तकलीफ किसी को नहीं देगा पूछा गया के बंदों को अपने इरादे पर कुदरत हासिल है इरशाद फ़रमाया: बंदा इस बात से बिलकुल ही आजिज़ है ।   

विसाले पुरमालाल

आप को अंगूर में ज़हर मिला कर खिलाया गया जिससे आप ने 21, रमज़ानुल मुबारक 203, हिजरी बरोज़ जुमा 55, साल की उमर में शहादत पाई । 

मज़ारे पुर अनवार

आप का मज़ारे पुर अनवार तूस में बाग्दाद् के करीब में है जिसे अब मशहद मुकद्द्स कहते हैं कुछ लोग तूस शहर को मुल्के ईरान में बताते हैं, ज़ियारत गाह खलाइक है । 

    “अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”  

रेफरेन्स हवाला                   

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(6) बुज़ुरगों के अक़ीदे,    

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