हज़रत सय्यद शाह हक्कानी मियां कादरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत सय्यद शाह हक्कानी मियां कादरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह

विलादत बसआदत

शहज़ादए सय्यद शाह आले मुहम्मद आलिमे रब्बानी, बरकाते सानी हज़रत सय्यद शाह हक्कानी मियां कादरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश 1145/ हिजरी की किसी मुबारक सुबह को मारहरा शरीफ ज़िला ऐटा में हुई।

आप के वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का नाम मुबारक हज़रत सय्यद शाह आले मुहम्मद मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु है, और आप के दादा जान का नाम हुज़ूर साहिबुल बरकात सय्यद शाह बरकतुल्लाह इश्कि मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! है, और आप की वालिदा माजिदा का नाम सय्यदह गनीमत फातिमा अलैहिर रह्मा (जो हुज़ूर साहिबुल बरकात सय्यद शाह बरकतुल्लाह इश्कि मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह की दुआओं की समराह थीं) और नाना जान! हज़रत सय्यद शाह अज़्मतुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह! हैं, जो हुज़ूर शाह बरकतुल्लाह! के मंझले भाई हैं।

तालीमों तरबियत

आप के वालिद माजिद हज़रत सय्यद शाह आले मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह! वालिदा माजिदा का इस्मे गिरामी सय्यदह गनीमत फातिमा, और आप के भाई हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी रहमतुल्लाह अलैह! जैसे मीनारे हिदायत आप की तालीमी तरबियत, इल्म की फ़राहमी और शख्सियत साज़ी के लिए आप के पास नेमते खुदावन्दी के तौर पर मौजूद थे, इन की रहनुमाई और शफ़्क़तों में आप ने खुद को सजाया, सवारा, इल्मे कुरआन, इल्मे हदीस, इल्मे तफ़्सीर उसूले फ़िक़्ह के साथ साथ तमाम राइज इल्मो फुनून की तालीम अपने बुज़ुरगों से हासिल फ़रमाई, लेकिन रूहानी तरबियत खुसूसी तौर से अपने वालिद माजिद से हासिल कीं, आप को किताबें पढ़ने का बहुत शोक था जिस के लिए घर का क़ुतुब खाना ही काफी था, जिस में मुख्तलिफ इल्मो फन की हज़ारों किताबें मौजूद थीं, बचपन ही में वालिद का विसाल हो गया, तो सारी निगरानी आप के बड़े भाई हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी! ही ने फ़रमाई, आप अपने भाई का लिहाज़ एक उस्ताज़ निगराँ और मुर्शिद की मानिंद फरमाते थे।

आप का निकाह

हज़रत सय्यद शाह हक्कानी मियां कादरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! अपने चचा की साहबज़ादी से मंसूब थे, इन से निकाह न हो सका तो आप ने सारी ज़िन्दगी शादी ना करने का फैसला किया, हज़रत सय्यद शाह हक्कानी मियां कादरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! खानकाही निज़ाम से जुड़े हुए थे इस लिए अमलियात और वज़ाइफ़ के साथ खानकाही इंतिज़ाम और निगरानी में भी खुद को मसरूफ रखते थे, यादे इलाही से जो वक़्त मिल जाता इस में अज़ीज़ों की खबर गिरी, खानदानी मुआमलात की देख रेख, किताबों का पढ़ना, और खानकाह के आमदो खर्च का हिसाब वगेरा पूरे तौर से मुलाहिज़ा फरमाते थे।

आदातो अख़लाक़

हज़रत सय्यद शाह हक्कानी मियां कादरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! के अख़लाक़ो किरदार का बयान करते हुए हज़रत असादुल आरफीन सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं: मेरा हकीकी भाई शाह हक्कानी! फ़कीर से 14/ साल छोटा है, हज़रत वालिद माजिद के विसाल के वक़्त इस की उमर 20/ साल थी, करीमुल अख़लाक़ है और हर शख्स की खिदमत का जज़्बा रखता है, हज़रत वालिद माजिद से इसे जिन आमाल व अशग़ाल की इजाज़त है, इनपर पाबंदी से अमल करता है,

मखलूके खुदा के साथ सख्वात का मुआमला करता है और इस फ़कीर से बहुत नियाज़ मन्दाना पेश आता है, अल्लाह पाक ने आप को ख़ुलूस का पैकर बनाया था, आप खुदा के उन बंदों में से थे, जिन की हर सांस अल्लाह की रज़ा और आख़िरत की फ़िक्र के लिए हुआ करती है, खानकाहे आलिया बरकातिया के तमाम इन्तिज़ामी मुआमलात आप के सुपुर्द थे, खास तौर से तामीरात का काम तो आप ही के साथ खास था, आप इन कामो को निहायत ज़िम्मेदारी से निभाते, मुआमलात का फैसला करते, सिला रहमी और एक दूसरे के हक का लिहाज़ रखने में अपनी मिसाल आप थे, अज़ीज़ो अक़ारिब भी आप की इस ज़िम्मेदाराना दियानत दारी की वजह से आप पर एतिमाद किया करते थे,

हज़रत सय्यद शाह हक्कानी मियां कादरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! को इमारत बनाने और बाग़ लगाने का बहुत शोक था, बड़े बाग़ को पक्के इहाते के साथ तामीर कराया, इस बाग़ में तरह तरह के फल और मेवे पैदा होते थे,
हज़रत सय्यद शाह हक्कानी मियां कादरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! के बारे में शरफ़े मिल्लत सय्यद मुहम्मद अशरफ मियां साहब क़िबला ने हक्कानियत पर मब्नी एक जुमला इरशाद फ़रमाया: खानदाने बरकात के शाहजहां! थे, खानकाहे बरकातिया की अक्सर कदीम इमारतें हज़रत हक्कानी मियां रहमतुल्लाह अलैह! की तामीर कराइ हुई हैं, दीवान खाना, हवेली सज्जादगी, मुख्तलिफ मकानात और बस्ती पीरज़ादगान खुसूसी तौर पर तामीर कराए।

आप की तसानीफ़

हज़रत सय्यद शाह हक्कानी मियां कादरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! इल्मो फन के शनावर और कलमी फ़ज़्लो कमाल के मालिक थे, आप ने दो अहम् कलमी यादगार छोड़ीं, (1) इनायत रसूल की, 900/ सफ़हात पर कुरआन शरीफ की तफ़्सीर आप ने सात साल की उमर में सिर्फ चार महीने में तस्नीफ़ फ़रमाई, इस की जदीद इशाअत हज़रत सय्यद अमीन मियां साहब क़िबला के दस्ते मुबारक से है,
(2) नाते रसूल! हदीसों के इंतिख्वाब “किताबुल अखियार” का तर्जुमा है, इस में 400/ हदीसें हैं।

इन्तिक़ाले पुरमलाल

17/ ज़िल हिज्जा 1210/ हिजरी मुताबिक 1796/ ईसवी बरोज़ जुमा को मारहरा शरीफ में हुआ, हज़रत सय्यद शाह हक्कानी मियां कादरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! खानदाने बरकात के वो बुज़रुग हैं जिन्हों ने ना किसी को मुरीद किया और ना ही खिलाफत से नवाज़ा।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी इण्डिया में मरजए खलाइक है,

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

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रेफरेन्स हवाला

बरकाती कोइज़
तज़किराए मशाइखे मारहरा

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