हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह इश्क़ी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह इश्क़ी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

दीनो दुनिया की मुझे बरकात दे बरकात से
इश्के हक दे इश्कीये इश्के इनतुमा के वास्ते

विलादत शरीफ

आप की पैदाइश मुबारक 26, जमादीउस सानी 1070, हिजरी मुताबिक मार्च 1660, ईसवी को बिलगिराम शरीफ, सूबा उत्तर प्रदेश मुल्के हिंदुस्तान में हुई।

नाम मुबारक व लक़ब

आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु” है, और आप का लक़ब शरीफ, “सुल्तानुल आशिक़ीन व साहिबुल बरकात” और आप का तखल्लुस अरबी व फ़ारसी में “इश्कि” जब के हिंदी में “पिमी” था,।

वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का नाम हज़रत सय्यदना शाह ओवैस रदियल्लाहु अन्हु है, जो अपने वक़्त के ज़बरदस्त और बा कमाल बुज़रुग थे । मुतवफ़्फ़ा 20, रजाबुल मुरज्जब 1097, हिजरी मज़ार पाक ज़िला हरदोई बिलगिराम शरीफ यूपी में है ।

आप का नसब नामा

आप का नसब शरीफ 35, वास्तों से हुज़ूर सय्यदुश शुहदा इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु से मिलता हुआ रिसालते मआब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक पहुँचता है जिस की तफ्सील हस्बे ज़ैल है:
हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह बिन, हज़रत सय्यद ओवैस बिन, हज़रत सय्यद अब्दुल जलील बिन, हज़रत सय्यद मीर अब्दुल वाहिद बिलगीरामि (साहिबे सबे सनाबिल) बिन, सय्यद शाह इब्राहीम बिन, हज़रत सय्यद शाह कुतबुद्दीन बिन, हज़रत सय्यद शाह माहिरो शहीद बिन, हज़रत सय्यद शाह बुध्धा बिन, हज़रत सय्यद शाह कमालुद्दीन बिन, हज़रत सय्यद शाह कासिम बिन, हज़रत सय्यद शाह हसन बिन, हज़रत सय्यद शाह नसीर बिन, हज़रत सय्यद शाह हुसैन बिन, हज़रत सय्यद शाह उमर बिन, हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद साहिबे दावतुस सुगरा (जद्दे कबाइल सादाते बिलगिराम) बिन, हज़रत सय्यद शाह अली बिन, हज़रत सय्यद शाह हुसैन बिन, हज़रत सय्यद अबुल फराह सानी बिन, हज़रत सय्यद अबुल फरास बिन, हज़रत सय्यद शाह अबुल सराह वास्ति (जद्दे आला क़बाइले सादाते ज़ैदिया बिलगिराम) बिन, हज़रत सय्यद दाऊद बिन, हज़रत सय्यद हुसैन बिन, हज़रत सय्यद याहया बिन, हज़रत सय्यद ज़ैद सोम बिन, हज़रत सय्यद उमर बिन, सय्यद ज़ैद दोम बिन, हज़रत सय्यद अली इराकी बिन, सय्यद हुसैन बिन, हज़रत सय्यद अली बिन, हज़रत सय्यद मुहम्मद बिन, हज़रत सय्यद ईसा अल्मारूफ़ बा मूतिबुल इशबाल (शेरोँ को यतीम बनाने वाला) बिन ज़ैद शहीद बिन हज़रत सय्यद इमाम ज़ैनुल आबिदीन बिन, सय्यदुश शुहदा इमामे हुसैन बिन, अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम, ज़ोज सय्यदतुन निसा फातिमा ज़हरा बिन्ते सय्यदुल अम्बिया हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! व रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

आप के खानदानी हालात

तक़सीमे हिन्द के दौरान या मुस्लिम इक्तिदार के क़याम के बाद अरबो अजम ईरान व तूरान के जो मुस्लिम खनवादे कबीले हिंदुस्तान में आए उन में सादाते बिलगिराम भी हैं, आप के अजदाद में सिराजुल आरफीन हज़रत अबुल फराह रदियल्लाहु अन्हु हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए और आप के विसाल के बाद इन के पोते इमामे ज़माना हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद साहिबे दावतुस सुगरा चिश्ती रदियल्लाहु अन्हु “सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश” के अहदे हुकूमत में हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए, और ये हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद थे, ज़ाहिरी और बातनि फ़ज़ीलतों के मर्कज़ थे, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश ने सय्यद शाह मुहम्मद साहिबे दावतुस सुगरा चिश्ती बिलगीरामि रदियल्लाहु अन्हु की निहायत इज़्ज़त की और आप को बिलगिराम के राजा के मुकाबले में फौज दे कर भेज दिया और बिलगिराम को आप ने फतह फ़रमाया, इस लड़ाई में आप ने बड़े बड़े सूरमाओं के दिलों को पानी की तरह बहा दिया, और दुनियाए कुफ्रो शिर्क को गाजर मूली की तरह काट कर परचमे इस्लाम को बुलंद फ़रमाया, बिलगिराम शरीफ फतह होने के बाद बादशाह सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश ने बिलगिराम शरीफ आप को बतौर जागीर अता कर दिया और इस के मातहत मुलाज़मीन वगैरा आप को सौंप दिए यहाँ तक के आप अपने अइज़्ज़ा अक़रबा को बुला कर बिलगिराम शरीफ में रहने लगे।


बिलगिराम शरीफ का पुराना नाम सीरी नगर था

बिलगिराम शरीफ की वजह तस्मिया के मुतअल्लिक़ ये वाकिअ मशहूर है के पहले बिलगिराम शरीफ का नाम राजा की वजह से “सीरी नगर” था, बाद में बिलगिराम हुआ बिलगिराम दो लफ़्ज़ों से मुरक़्क़ब है एक “बेल” दूसरा “गिराम” बा माना बना मकाम, शहहर, आबादी और “बेल” एक देव मलऊन का नाम है जिसे उस ज़माने के जोगी और जादू गर जो बिलगिराम शरीफ में रहते थे, कोहिस्तान कश्मीर से पूजा पाट और जादू के ज़रिए मुसख्खर कर के यहाँ पर लाए और रखा, ये मलऊन इस कदर ताक़त वर था के दूर दराज़ तक अपने मुखालिफ को नहीं रहने देता था, और सिवाए अपनी परिस्तिश और पूजा गरी के किसी की पूजा नहीं होने देता था, अगर कोई शख्स इस को ना पूजता तो तकलीफ व अज़ीयत देता मगर उस मलऊन देव को ख़ाक में मिला दिया आप ने, और सय्यद शाह मुहम्मद साहिबे दावतुस सुगरा चिश्ती बिलगिरामि रदियल्लाहु अन्हु की ज़ाते बरकात की बदौलत सीरी नगर से बिलगिराम शरीफ बन गया और चरों तरफ इस्लाम का नूर फ़ैल गया।

आप की तालीमों तरबियत

आप की निगाह ऐसे माहौल में खुली जहां इल्मो अदब, हिकमतो फलसफा से पूरा माहौल मुज़य्यन चमकदार था, इस लिए आप ने इब्तिदा में कहीं दूर दराज़ का सफर नहीं फ़रमाया बल्कि अपने वालिद मुहतरम “हज़रत सय्यदना शाह ओवैस रदियल्लाहु अन्हु बिलगिरामि” की खिदमते बा बरकत से ही इल्मे तफ़्सीर, इल्मे हदीस, उसूले हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, उसूले फिकहा का दरस हासिल किया, और बड़ी क़लील मुद्द्त में इन तमाम उलूमे मुरव्वजा व उलूमे दीनिया में आला महारत हासिल फ़रमाई, इस के बाद उलूमे बातिन व सुलूक भी अपने वालिद माजिद हज़रत सय्यदना शाह ओवैस रदियल्लाहु अन्हु बिलगिरामि से हासिल फरमाए, और वालिद माजिद ने तमाम सलासिल की इजाज़तो खिलाफत अता फरमाकर सिलसिले खम्सा क़ादिरिया, चिश्तिया, नक्शबंदिया, सोहर वर्दिया, मदारिया, में बैअत लेने की भी इजाज़त अता फ़रमाई इन के अलावा सय्यदुल आरफीन अरबी बिन सय्यद अब्दुन नबी बिन सय्यद तय्यब व गुलाम मुस्तफा बिन सय्यद फ़िरोज़ अलैहिर रहमा से भी फ़ैज़ो बरकात हासिल किए ।

इबादतों रियाज़त

आप मुसलसल बराबर छब्बीस 26, साल रोज़े रखते रहे, दिन भर रोज़े से रहते और सिर्फ एक खजूर से रोज़ा इफ्तार करते जज़्बात व इस्तगराक का ये आलम था के तीन साल तक ये हालत रही के शबो रोज़ में सिर्फ दो ग़िज़ा तनावुल फरमाते और चावलों के सिर्फ पानी पर कनाअत करते, हफ़्तों महवियत तारी रहती और दुनिया व माफीहा से बिलकुल बेनियाज़ हो जाते, मुद्द्त तक रात रात भर इबादत में मशगूल रहते थे, आप का मामूल था के ज़ोहर की नमाज़ के बाद क़ुरआन शरीफ पढ़ते, असर की अज़ान होने के बाद उठते, नमाज़े फजर से लेकर अशराक़ तक औरादो वज़ाइफ़ में रहते, चाशत के वक़्त मदरसा में तशरीफ़ लाते और मुरीदीन व तलबा को दरस देते मगरिब के बाद से लेकर ईशा तक इल्मो इरफ़ान की बरकतों को बिखेरते और यही वक़्त तवज्जुह ख़ास तालीम का होता था।

फ़ज़ाइलो कमालात

सुल्तानुल मुनाज़ीरिन, सय्यादुल मुताकल्लिमीन, शहंशाहे तक़रीरो तहरीर, माया नाज़ अदीब, सुल्तानुल आशिक़ीन, कुद वतुल वासिलीन, साहिबुल बरकात, हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु आप सिलसिलए आलिया क़ादिरिया रज़विया के तेतीस वे 33, इमाम व शैख़े तरीकत हैं, और सिलसिलाये बरकातिया के बानी हैं, आप की ज़ाते मुबारक ऐसी थी के हर देखने वाला पुकार उठता के ये “अल्लाह का वली और क़ुत्बे आलम” है, आप की विलायत व खुदा शनासी के लिए ये दलील सब पर भारी है के आप ने मुकम्मल ज़िन्दगी मज़हबे अहले सुन्नत वल जमाअत की तरवीजो इशाअत में गुज़ारी आप की एक निगाहें तवज्जुह से दिलों के बेशुमार वीराने आबाद हुए और लाखों इंसान मरदाने खुदा की जमाअत में शामिल हुए, आप की तकमीले सुलूक हुज़ूर सय्यदना शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाई थी, और ताजे कुतबीयत भी आप के सर पर रखा, आप इल्मे तफ़्सीर, इल्मे हदीस, फ़िक़्ह, मुआनी, रियाज़ी, मनातिक, फलसफा, तारीख व सेर में अपने अहिद के यगानाए रोज़गार बुज़रुग थे, और इंशा व शेरो सुखन में भी बुलंद रुतबा रखते थे, आप ने अपने पुर तासीर दोहो से लाखों गैर मुस्लिमो को दामने इस्लाम में दाखिल फ़रमाया, कशफो करामात भी आप के बेशुमार हैं आप एक अज़ीम तारीख साज़ बुज़रुग हैं, तीस साल तक अपनी सज्जादगी व मुसल्ले से न हटे और मारहरा शरीफ को छोड़ कर कहीं बाहर तशरीफ़ न ले गए, आप हब्से नफ़्स यानि दिन और रात में सिर्फ दो सांस लेते थे।

कालपी शरीफ में आप की तशरीफ़

जब आप ने हज़रत सय्यदना शाह फ़ज़्लुल्लाह काल्पवि रहमतुल्लाह अलैह के इल्मो हिकमत व सुलुको मारफत का शोहरा सुना कालपी शरीफ जाने का रखते सफर बांधा, कालपी शरीफ जो इल्मो हिकमत व तहज़ीबो तमद्दुने इस्लामी का क़िबला था, आप सफर कर के नुरुल आरफीन हज़रत सय्यदना शाह फ़ज़्लुल्लाह काल्पवि रहमतुल्लाह अलैह की बारगाहे आली वकार में पहुंचे हज़रत की निगाह आप पर पड़ी और आगे बढ़ कर अपने सीने से लगाया और इरशाद फ़रमाया: “दरिया बा दरिया पेवस्त” यानि दरिया दरिया से मिल गया है, इस जुमले को आप ने तीन बार इरशाद फ़रमाया और सिर्फ इसी कलमे ही से हज़रत सय्यदना शाह फ़ज़्लुल्लाह काल्पवि रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु को सुलुको तसव्वुफ़ और दीगर बहुत से मक़ामात की सेर करादी,

यहाँ तक के हज़रत ने आप को इजाज़त अता फ़रमाई, जब आप कालपी शरीफ से इजाज़त पा कर रवाना हो रहे थे तो हज़रत सय्यदना शाह फ़ज़्लुल्लाह काल्पवि रहमतुल्लाह अलैह ने निहायत अक़ीदतों मुहब्बत से अपने फियूज़ो बरकात से मुज़य्यन फ़रमाया और चलते वक़्त आप ने इस तरह सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु से इरशाद फ़रमाया: तुम्हारी ज़ात जुमला उमूर सूरी व मअनवी से मामूर है और तुम्हारा सुलूक कमाल की इंतिहा को पहुंच गया है, तुम रुखसत हो और अपने मकान में क़याम करो तालीम की हाजत नहीं है, फिर एक दो मक़ामात जो इस राह के मुअज़्ज़मात से थे अता फरमा कर इजाज़ते सिलसिलए खम्सा क़ादिरिया, चिश्तिया, नक्शबंदिया, सोहर वर्दिया, मदारिया, सनद के साथ खिलाफत और दुसरे आमाल अता फरमा कर दो दिन से ज़ियादा हुक्मे इक़ामत न फ़रमाया और निहायत महरबानी से फ़रमाया: इसी जगह तुम्हारी ज़ाते बा बरकात इस्तिकामत रहे और वहां के तालिबों को यहाँ आने की इजाज़त नहीं,

मारहरा शरीफ में आप की आमद

फ़क्ऱो सुलूक के तमाम मुआमलात मक़ामात तय करने के बाद हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु, हज़रत मुहीयुद्दीन औरंज़ेब आलमगीर के दौरे हुकूमत में मारहरा मुक़द्दसा तशरीफ़ लाए, मारहरा मुक़द्दसा यूपी के ज़िला एटा से सोला मील के फासले पर मगरिब की जानिब है, उल्माए किराम औलिया अल्लाह, सूफ़ियाए इज़ाम, अहले इल्मो हुनर की बस्ती है, कस्बा मारहरा शरीफ का नाम रोशन व मुनव्वर करने और इस की तारीख को इज़्ज़तो अज़मत बख्शने का अस्ल सहरा बा सफा औलियाए किराम व उल्माए इज़ाम के सर है साथ ही इस को ताबनाक व रोशन ज़िन्दगी देने का भी अस्ल सहरा इसी सिलसिले पाक के सर है जो सिलसिलए बरकातिया के नाम से मश्हूरो मारूफ है, एक दिन आप ने अपने चश्मे सर से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! व हुज़ूर मुहीयुद्दीन अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की ज़ियारत से मुशर्रफ हुए और आप को इस जगह की बशारत दी जहाँ फिल वक़्त आज दरगाहे बरकातिया मौजूद है, और इरशाद फ़रमाया: तुम इस जगह मुस्तकिल सुकूनत इख़्तियार करो जिस जगह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! ने बशारत व निशाँन दही की थी वो एक तालाब की शक्ल में थी, फिर आप ने इस वाकिए का तज़किरा फ़रमाया: हुक्म के मुताबिक उस जगह एक घास फूस का मकान बनवा दिया गया और हज़रत इसी मकान में रहने लगे, फिर रफ्ता रफ्ता हज़रत ने अपने अहलो अयाल को वहीँ बुलवा लिया हज़रत के क़याम से इस जगह के लोग खुशहाल हो गए और कशां कशां इर्द गिर्द बसने लगे यहाँ तक के 1118, हिजरी तक देखते ही देखते खानकाह शरीफ के इर्द गिर्द अच्छी खासी आबादी हो गई और इस का नाम आप के तखल्लुस की बिना पर पेम नगर, “बरकात नगरी” रखा गया जो सदियां गुज़र जाने के बाद आज भी हसनी पीर ज़ादगान के नाम से मशहूर है।

गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु का फ़ैज़ो करम

हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह से आप को बड़ी कुर्बत व अकीदत हासिल थी, यही वजह है के सिलसिलए बैअत में आप को सलासिल खम्सा क़ादिरिया, चिश्तिया, सोहर वर्दिया, नक्शबंदिया, मदारिया से इजा ज़तो खिलाफत हासिल थी मगर आप क़ादरी सिलसिले में ही मुरीद करते थे और कादरी फैज़ ही की जानिब इल्तिफ़ात फरमाते, चुनांचे हुज़ूर गौसे आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु से आप और आप के मुरीदीन मुता वस्सिलीन को एक अज़ीम बशारत हासिल है, “हुज़ूर गौसे आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया: तुम्हारे खानदान के मुरीदों व मुता वस्सिलीन की शफ़ाअत का ज़िम्मे दार हूँ, में जन्नत में हरगिज़ कदम नहीं रखूंगा, जब तक तुम्हारे खानदान के मुरीदों मुता वस्सिलों को जन्नत में दाखिल न करा लूँ।

शैख़ सद्दू का खात्मा

हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु जब मारहरा शरीफ तशरीफ़ लाए तो आप ने वहां लोगों में एक अजीब रस्म देखि के कोई शैख़ सदू की नियाज़ दिला रहा है, कोई इस के नाम पर कढ़ाई पेश कर रहा है, आप ने लोगों को हुक्मे शरई से आगाह फ़रमाया: ऐसा करना नाजाइज़ है, एक बदकार शख्स से अपनी अकीदत का रिश्ता तोड़ दो और उस का नाम लेने से बाज़ आ जाओ? आप की पुर तासीर बातें लोगों पर असर कर गईं, एक दिन शैख़ सदू घबराया हुआ आप की खिदमत में हाज़िर हुआ और कहने लगा तुम मेरे मोतकिद नहीं हो और लोगों से मेरी तरफ से फेरते हो में तुम से मुकाबला करूंगा? आप ने उस को गरजदार आवाज़ में उसे डांटा जिस की वजह से वो फ़ौरन भाग गया, आप का मामूल था के साल में दो बार उत्तर खेड़ा पहाड़ पर जा कर चिल्ला किया करते थे, हज़रत साहिबुल बरकात रहमतुल्लाह अलैह हस्बे मामूल आप चिल्ला के लिए गए हुए थे के आप को ग़ुस्ल की हाजत पेश आई, हज़रत दरिया की तरफ जा रहे थे के इसी दौरान रास्ते में ही शैख़ सदू खबीस ने घेर लिया,

और कहने लगा आप ने मुझे बहुत तकलीफ पहुचाईं बस में आप से बदला लूँगा और इसी वक़्त में आप को जला दूंगा? फिर हज़रत ने उसे डांटा के फकीरों से न उलझो लेकिन वो ना माना तो आप ने फ़रमाया: तू जब जला देगा जला देगा अब मेरा जलाना देख ये फरमाकर हज़रत ने ग़ुस्ल फ़रमाया: और शैख़ सदू को मज़बूत हिसार के साथ घेर लिया और हिसार को तंग करते गए और उसे बिलकुल करीब कर लिया और फ़रमाया: देख में तुझ को अभी जला कर नेस्तो नाबूद ख़त्म करता हूँ, वो रोने चिल्लाने लगा और रिहाई की दरख्वास्त करने लगा चुनांचे आप ने उससे मुआहिदा लिया और उस ने ये कहा: में आप के मुरीदों और मुता वस्सिलीन को कभी नहीं सताऊंगा, जहाँ कहीं आप और आप की औलाद होगी वहां भूल कर भी कदम नहीं रखूंगा, अगर मेरे दाखले की जगह पर आप और के खानदान का कोई साहबज़ादा तशरीफ़ ले जाएगा तो में वहां कभी नहीं जाऊँगा, चुनांचे खबीस शैख़ सदू आज तक कायम है।

कोमे गोंडल पर बद्दुआ का असर

मारहरा मुक़द्दसा की कुतबीयत का ताज जब आप पर जगमगाने लगा और आप उस खित्ते में तशरीफ़ लाए तो आप ने अपने जद्दे अमजद हज़रत सय्यद मीर अब्दुल जलील रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह में क़याम फ़रमाया, उस वक़्त इस के इर्द गिर्द कोमे गोंडल के मकानात थे ज़िला का ज़िला अहले हुनूद से लबरेज़ था, शर पसंदी के बाइस शरंगेज़ियों से बाज़ न आते थे, सब से ज़ियादा ये के इस कौम में फिस्को फ़ुजूर इंतिहा को पहुंच गया था और किसी तरह बाज़ न आते थे, ख़ुफ़िया तौर पर तंग करते थे और पूछ ताछ पर साफ़ इंकार करते थे, कुछ मुद्द्त तो आप इनकी ज़ियादती बर्दाश्त करते रहे और कभी कसबे के ज़ोमा रुऊसा हाकिम से शिकायत न की मगर जब उन्होंने भांग ऐन उस वक़्त जब आप नमाज़ पढ़ रहे थे खानकाहे मुअल्ला में फेंक दी, उस वक़्त आप पर जलाल तारी हुआ और इरशाद फ़रमाया:

ऐ जवां मरूक अपनी शरारतों से बाज़ नहीं आते, हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की फैज़े तर्जुमान से इन अल्फ़ाज़ का जारी होना था के गोंडल कोम पर आफातो बलय्यात का आगाज़ होने लगा, मसाइबो आलम का दौर शुरू हुआ और एक तवील अरसे तक ये हालत रही के इन में से जहाँ किसी की उमर तीस साल की होती वो मर जाता बहुत से खानदान तो बिलकुल ही तबाहो बर्बाद हो गए, आखिर हज़रत शाह ज़हूरुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को इन के इन्तिकाल के बाद नुरुल आरफीन सय्यद शाह आले रसूल अहमदी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के कदमो पर ला कर डाल दिया और इन्ही की नज़्र कर दी, उस वक़्त से इन के सर से ये वबा टल गई, मगर ये मुफ़सिद कौम आप की दुआए जलाली से बिलकुल तबाहो बर्बाद हो गई।

आप का ज़ोके शायरी

आप का फन्ने इल्मो अदब व शायरी में अपना नज़ीर व मसील नहीं रखते थे अरबी, फाररसी, उर्दू, भाषा के अलावा हिंदी व संस्किरत पर आप को महारत अच्छी हासिल थी, चुनांचे आप की शायरी के मुतअल्लिक़ हज़रत अल्लामा मीर आज़ाद बिलगीरामि रहमतुल्लाह अलैह अपनी शोहराए अफाक किताब “मासिरुल किराम” में तहरीर फरमाते हैं: हज़रत शाह बरकतुल्लाह पीमी ने पयामि शायर की हैसियत से आलम गीर शोरत हासिल करली थी, और “मुकदमा तारीख उर्दू ज़बान” में डाक्टर मसऊद हुसैन खान तहरीर करते हैं: अहदे हज़रत औरंगज़ेब आलम गीर के मशहूर मुसन्निफ़ हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी पीमी रदियल्लाहु अन्हु को हिंदी, फ़ारसी, और अरबी पर काफी उबूर हासिल था तस्सवुफ़ से लबरेज़ इंसानियत के पैगाम को उन्हों ने दोहों और कतबों के ज़रिए पहुंचाया, आप इस अदबी मैदान में अपना तखल्लुस फ़ारसी और अरबी में “इश्कि” और हिंदी में “पीमी” फरमाते थे, चुनांचे आप के चंद अशआर पेश करते हैं:

या शफीउल वारा सलामुन अलैक

आप की इल्मी व तस्नीफी खिदमात

हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु इबादतों रियाज़त के अलावा मैदाने इल्मो फन फ़िकरो सुखन में एक अबकरि शख्सीयत के मालिक हैं, हम यहाँ पर आप की क़ुतुब की निशानदही करते हैं,
(1) रिसाला चहार अनवा, (2) रिसाला सवालो जवाब, (3) अवारिफ हिंदी, (4) दीवाने इश्की, (5) पेम प्रकाश, (6) तरजीये बंद, (7) मसनवी रियाज़ुल आशिक़ीन, (8) वसीयत नामा, (9) बयाज़े बातिन, (10) बयाज़े ज़ाहिर, (11) रिसाला तकसीर, (12) तफ़्सीर सूरह फातिहा, (13) रवाहे बज़बाने उर्दू, (14) रिसाला व इरादत तौहीद, (15) इर्शादुस सालिकीन, (16) रिसाला अक़ाइदे सूफ़िया, (17) रिसाला मामूल, (18) रिसाला ईशाराए हिंदी।

        "कशफो करामात"     

हुज़ूर अहसनुल उलमा रहिमहुल्लाह

हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की सब से बड़ी करामत इस्तिक़ामत व तसल्लुब फिद्दीन व तक्वा और आप की मुताशररा पाबन्दे शरीअत ज़िन्दगी है, चुनांचे हुज़ूर अहसनुल उलमा हज़रत अल्लामा व मौलाना मुफ़्ती सय्यद शाह हसन मियां कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी सज्जादा नशीन मारहरा शरीफ रिवायत करते हैं के हज़रत मखदूम शाह बरकात कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के पोते हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने किताब “काशिफ़ुल इस्तार शरीफ” में सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की चंद करामात लिखने के बाद फ़रमाया: अगर दादा साहिबुल बरकात की करामात व तसर्रुफ़ात पर कुछ लिखा जाए तो एक दफ्तर ना काफी है यहाँ हम चंद करामात का ज़िक्र पेश करते हैं।

आप ने दिल की बात जान ली

“काशिफ़ुल इस्तार शरीफ” सिराजुल आरफीन हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बयान करते हैं: एक बार नवाब मुहम्मद खान बंगश वालिए फरखा बाद के नौकर शोजाआ खान (जो हज़रत गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु का सालाना उर्से मुबारक मारहरा शरीफ में करते थे) एक बार अजमेर शरीफ गए और इसी दौरान में हज़रत गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के उर्स सरापा क़ुद्स की तारीख करीब आ गई, वो वहां से मंज़िल मंज़िल तय करते हुए मारहरा शरीफ आए ताके हुज़ूर गौसियत मआब के उर्स में शरीक हों, शुजाअत खान ने सराए में क़याम किया तो वहां इन्हें एक नूर नज़र आया जिस की वजह से इन का दिल दुनिया से फिर गया और उन्होंने सोचा के में दरवेशी इख़्तियार कर लूँ और हुज़ूर साहिबुल बरकात हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह को साहिबे तसर्रुफ़ उस वक़्त समझूंगा के वो मुझे मुलाकात के वक़्त कुछ खाने को दें?

यहाँ तक के असर के वक़्त शुजाअत खान आप से मुलाकात करने को हाज़िर हुए तो आप महल सारए में तशरीफ़ फरमा थे वुज़ू के लिए बाहर तशरीफ़ लाए, उस वक़्त आप के दस्ते मुबारक में बाजरे की रोटियां और गोश्त पड़ा हुआ मेथी का साग था, शुजाअत खान को देख कर मुस्कुराए तो शुजाअत के पाऊं कपकपाने लगे और जिस्म में लरज़ा तारी हो गया, आप ने शुजाअत खान को बाजरे की रोटी और वो साग अता फरमा: तुझे दरवेशी की हाजत नहीं मखलूके खुदा तुझ से बगैर दुरवेशी के फ़ैज़याब हो रही है, आप के इस इरशाद से शुजाअत खान को आप के साहिबे तसर्रुफ़ होने का कामिल यकीन हो गया।

तीन दिन में राहे सुलूक तय करवाना

अहले दिल इस बात को खूब जानते हैं के सुलूक की मंज़िलें तय करने में कितनी दिक्क्त होती है और इस रास्ते को तय करने के लिए कितना तवील लम्बा अरसा दरकार है, मगर हुज़ूर सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की ये मशहूर करामत है के आप तालिब को तीन दिन में राहे सुलूक तय करा देते थे और बकौल हुज़ूर सिराजुल आरफीन हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के बाज़ दफा तो साह्बुल बरकात कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने कई तालिबों को दो घडी में सालिक बना दिया ।

आप के कुछ अहम कारनामे बताओ

मुल्के हिंदुस्तान में सिलसिलाये कादिरिया का फरोग, तसव्वुफ़ की तालीमात को शायरी में आम करना, सिलसिलाये आलिया बरकातिया की बुनियाद आप बरकाती सिलसिले के बानी हैं, बेशुमार लोगों को सिलसिले से वाबस्ता कर के गुमराही से बचाना।

हर एक की ज़बान पर ज़िक्रे खुदा

इसी तरह आप हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की एक रोशन करामत ये भी है के आप के दौर में मारहरा शरीफ के मुसलमानो के अलावा हिन्दू भी अपनी ज़बानो पर सिवाए ज़िक्रे खुदा के कुछ न लाते थे और हर एक के दिल पर ख़ौफ़े खुदा तारी रहता था, हत्ता के बा कौल सिराजुल आरफीन हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी परिंदे भी कलमा पढ़ा करते थे, सिराजुल आरफीन हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अपने जद्दे मुकर्रम के दौर मुबारक को याद करते हुए इरशाद फरमाते हैं ।

फिरते थे दश्त दश्त, दीवाने किधर गए
वो आशिकी के हाए ज़माने किधर गए

बादशाहे हिन्द की नियाज़ मंदी

यहाँ तक के रफ्ता रफ्ता आप की खानकाह और आप के रूहानी फैज़ान का शोहरा मुल्के हिंदुस्तान में फ़ैल गया, दूर दूर से आने वाले तालबाने हक का एक जमघटा तांता बंध गया और आप के रूहानी फैज़ान से मुशर्रफ होते रहे, मुगल सलातीन (मुगल बादशाह) में हज़रत औरंगज़ब आलमगीर कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, बहादुर शाह, फर्ख शेर, जहांदार शाह और मुहम्मद शाह अलैहिमुर रह्मा अपने अपने नियाज़ नामे आप के खिदमते आली में भेजने को अज़ीम सआदत समझते थे, आप के ख़लीफ़ए अव्वल हज़रत शाह अब्दुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी एक बार दिल्ली पहुंच गए तो मुहम्मद शाह ने आप को बुलाया मगर तशरीफ़ नहीं ले गए, आखिर वो हाज़िर हुआ और एक गाऊ और बहुत कुछ ज़र नकद नज़राने में पेश किया, हज़रत को जब इस बात का इल्म हुआ तो आप सख्त नाराज़ हुए तो वो दौड़े आए और माज़रत की आप ने इरशाद फ़रमाया:
माना! के तुम्हारी ख्वाइश न थी मगर जब बादशाह के आने की खबर मिली थी तो वहां से क्यों नहीं चले गए थे, फ़क़ीर तो बा दिक्क्त तमाम अल्लाह के नाम से तुम्हारे दिलों को रोशन करता है और तुम अपने दिल पर मुहम्मद शाह का नाम तहरीर करते हो, आखिर कार बड़ी शिफारिस से आप ने उन को माफ़ फ़रमाया,

यहाँ तक के मुहम्मद शाह बादशाह ने खुद 1141, हिजरी में बड़ी इसरार मिन्नत के साथ खानकाहे बरकातिया मारहरा मुक़द्दसा के खर्च के लिए रादन पुर गाऊ और मोज़ा तिलोक पुर उर्फ़ बरकात नगर दो गाऊं वक्फ कर दिए और उस वक़्त तक बड़े बड़े उमरा रईस सरदार शहज़ादे आप की गुलामी में दाखिल हो चुके थे, नवाब साबित खान कोलवी, नवाब नासिर खान नाज़िम अकबर आबादी और नवाब जमाल खान जैसे उमरा सरदार बराबर सई कोशिश करते रहते, आम मुरीदीन को सिलसिलए जदीदिया काल्पीय और अहले खानदान को सिलसिलए क़दीम में बैअत फरमाते थे, नवाब गज़न्फर हाकिमे फर्रखाबाद आप की दुआ से ही इस मंसबे जलीला पर फ़ाइज़ था और बराबर गुलामाने तौर पर हाज़िर हुआ करता था।

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु का जुब्बा

हज़रत मौलाना मुहम्मद मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के हज़रत के वक़्त में मूए मुबारक (बाल) हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खानकाह में आए ये मूए मुबारक हज़रत के खलीफा शाह रूहुल्लाह अज़ अकरबाए खेर अंदेश खान आलमगीरी ने नवाब मौसूफ़ के मतरूका से ला कर हज़रत को दिया था, इस मूए मुबारक की सनद और जिस तरह से नवाब खेर अंदेश खान को मिला था आसारे अहमदी और “काशिफ़ुल इस्तार शरीफ” में मुफ़स्सल ज़िक्र है बी फ़ज़्लिहि तआला ये मूए मुबारक इस वक़्त तक बड़ी सरकार के तब्बर्रूकात मुश्तर्का में चांदी की शीशी में है और उरसो में ज़ियारत होती है और फिर खिरकाए मुर्तज़वी व मूए मुबारक हज़राते हसनैन करीमैन रदियल्लाहु अन्हुमा भी हज़रत के पास तबर्रुकात में थे,
“खिरका” के मुतअल्लिक़ ये रियावत है के ये खिरका हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु का जुब्बा, है जो हुज़ूर गौसे आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने पहना, हज़रत सुल्तानुल हिन्द ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रदियल्लाहु अन्हु, ने पहना,

फिर इन से क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रदियल्लाहु अन्हु, को और इन से हुज़ूर बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रदियल्लाहु अन्हु, को और इन से सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देल्हवी रदियल्लाहु अन्हु, को और इन से हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रदियल्लाहु अन्हु, को और इन से बा वास्ता हज़रत मखदूम शाह बड़े मखदूम और शाह सफी और इन से हज़रत मीर अब्दुल वाहिद बिलगीरामि से वास्ता बा वास्ता हुज़ूर सुल्तानुल आरफीन सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन को पंहुचा, मगर अब क़दामत पुराना होने की वजह से काफी नाज़ुक हो गया है इस लिए काँधे पर रख लिया जाता है और उर्सों में इस की ज़ियारत होती है, इन आसारे शरीफा के अलावा खुद हज़रत के बहुत से मलबूस जैसे खिरका, ताज, अमामा, और तस्बीह वगेरा तबर्रुकात मुश्तर्का हैं और जुदागाना भी अहले खानदान में हर एक के पास मौजूद हैं।

हुज़ूर गौसे पाक कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी का तोहफा

तबर्रुकात मज़कूरा बाला के अलावा उसी अहिद मुबारक में सात मनके और एक दस्तार भी आई जिस की रिवायत ये बयान की जाती है के हुज़ूर गौसे पाक कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से हज़रत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर पानी पति कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के ज़रिए आप को मिले, आप को मुराकीबे में मालूम हुआ था के हुज़ूर गौसे पाक कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से कुछ इनआम व इकराम मिलेगा के उसी वक़्त में हज़रत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर कलियारी रहमतुल्लाह अलैह के उर्स मुबारक का मौसम था, आप की तरफ से एक दुर्वेश को हज़रत साबिरे पाक कलियरी रहमतुल्लाह अलैह के उर्स मुबारक में हाज़री के लिए भेजा गया के इसी बीच में एक शख्स मिले जो एक खेत की देख भाल कर रहे थे इन्होने इस दुर्वेश को सात मनके दे कर फ़रमाया:

यही पयाम यही रिसाला
कहियो बरकात मारहरा वाला

इस दुर्वेश ने आप को ये सब कुछ पेश करने के बाद आप से अर्ज़ किया हुज़ूर! ये कौन साहब थे जो ये चीज़ें मुझे दे गए थे? आप ने फ़रमाया ये हज़रत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर पानी पति कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी थे और ये गौसे पाक का अतिया तोहफा है जो अता फरमा गए हैं।

आप की औलादे किराम

आप का निकाह मुबारक हज़रत सय्यद मौदूद बिलगिरामि बिन सय्यद मुहम्मद फ़ाज़िल बिन सय्यद अब्दुल हकीम बिगिरामि की मंझली साहब ज़ादी सय्यदह वाफिया बेगम! से हुआ,
आप की कुल पांच औलादें हुईं जिनके नाम ये हैं: (1) बुरहानुल वासिलीन हज़रत शाह आले मुहम्मद व खलीफा, (2) असादुल आरफीन हज़रत शाह निजातुल्लाह, और तीन साहब ज़ादियाँ (3) हज़रत बीबी बुधधन, आप का निकाह सय्यद शाह लुत्फुल्लाह बिन शाह लुध्धा बिलगिरामि के साहब ज़ादे से हुआ, (4) हज़रत नन्ही बी, आप का निकाह अज़ीज़ुल्लाह बिन सय्यद गुलाम मुहम्मद बिन सय्यद हामिद बिन सय्यद अब्दुल वाहिद खुर्द से हुआ, और तीसरी साहब ज़ादी का निकाह सय्यद अमानुल्लाह बिन सय्यद जान मुहम्मद बहता से हुआ जिन की औलाद बिलगिराम और आरा कोआत में है।

आप के खुलफाए किराम

  • हज़रत शाह अब्दुल्लाह आप मारहरा ही के रहने वाले थे और कौम के कम्बोह थे हिंदी में शायरी का भी ज़ोक था पीमी तखल्लुस फरमाते
  • 1140, हिजरी में विसाल हुआ,
  • हज़रत शाह मीम: आप दक्क्न के बाशिंदे थे, दक्क्न से दिल्ली आए, फ़ारसी के साहिबे दीवाने शायर थे 1150, हिजरी में विशाल हुआ,
  • हज़रत शाह मुश्ताकुल बरकात: आप हज़रत के निहायत ही बा कमाल खलीफा थे 11, सफारुल मुज़फ्फर 1167, हिजरी में विसाल हुआ,
  • हज़रत शाह मिनल्लाह, आप अली शेर खान के नाम से मौसूम थे शाहजहां पुर के रहने वाले थे 1176, हिजरी में विसाल हुआ,
  • हज़रत शाह राजू आप बिलगिराम के रहने वाले थे और हज़रत सय्यद अबुल फराह की औलाद से थे विसाल 1143, हिजरी में हुआ,
  • हज़रत शाह हिदायतुल्लाह, आप ज़िला एटा के ही रहने वाले थे 1149, हिजरी में विसाल हुआ,
  • हज़रत शाह रूहुल्लाह, आप का नाम मुहम्मद मसऊद था, नवाब खेर अंदेश खान आलम गीर के खानदान से थे फ़ारसी और हिंदी में शायरी
  • करते थे अरबी ज़ोक अच्छा था फ़ारसी में दीवाना और हिंदी में अजान तखल्लुस फरमाते, 1172, हिजरी में विसाल हुआ,
  • हज़रत शाह आजिज़ आप मारहरा के रहने वाले थे और कौम के कम्बोह थे असली नाम मुहम्मद मुअज़्ज़म था,
  • हज़रत शाह नज़र आप का विसाल 1143, हिजरी में हुआ,
  • हज़रत शाह साबिर: आप का नाम गुलाम अली था मारहरा के रहने वाले थे 1167, हिजरी में विसाल हुआ,
  • हज़रत शाह जमीयत: आप मारहरा के रहने वाले थे और कौम के कम्बोह थे,
  • हज़रत शाह हुसैन बैरागी: कौम के सुनार और हिंदी में शेरो अदब का भी ज़ोक रखते थे,
  • हज़रत शाह सादिक: आप हज़रत के बड़े चहीते खलीफा थे भरगैन ज़िला एटा में विसाल हुआ मज़ार भी वहीं है,
  • हज़रत शाह आले मुहम्मद रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।

आप के मलफ़ूज़ात शरीफ

जिन बातों की नसीहत आप ने अपने साहबज़ाद गान हज़रत सय्यद आले मुहम्मद व सय्यद निजातुल्लाह रदियल्लाहु अन्हुमा को फ़रमाई थी और इस पर सख्ती से अमल करने की ताकीद फ़रमाई थी,
(1) अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की याद में मशगूल रहना,
(2) अपने ज़ाती मक़ासिद के हुसूल के लिए किसी हाकिम से रुजू न करें,
(3) उन लोगों के घर हरगिज़ ना जाएं जो दुनिया के खेल कूद में लगे रहते हैं,
(4) उन लोगों से ज़रूर ज़रू मिलना जिन का ज़ाहिर दीन व दियानत से आरास्ता हो,
(5) कबरों की ज़ियारत के लिए हाज़री ज़रूरी है,
(6) जिहादे अकबर ये है के नफ़्स के साथ लड़ते रहें,
(7) मखलूक के मोहताज न हों दस्ते तलब हमेशा खालिके काइनात की बारगाह में दराज़ करें,
(8) इल्मो अमल को अव्वलीयत दें और इन पर कभी गुरुर न करें,
(9) मखलूके खुदा के साथ नरमी से गुफ्तुगू करें,
(10) हमेशा ये तमन्ना करें के इल्म खालिस अल्लाह पाक की मदद और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फैज़ से मिलेगा।

विसाले पुर मलाल व उर्स

आप रहमतुल्लाह अलैह का विसाल 10, मुहर्रमुल हराम 1142, हिजरी मुताबिक 1729, ईसवी को 72, साल की उमर में हुआ।

मज़ार शरीफ

हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु का मज़ार मुबारक मारहरा मुक़द्दसा ज़िला एटा यूपी इण्डिया में मरजए खलाइक है। आप के मज़ार मुबारक पर अहमद खान बंगश मुज़फ्फर जंग फर्रखाबाद ने बा एहतिमाम शुजाअत खान नाज़िम एक आली शान रोज़ा 1142, हिजरी तामीर कराया।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

Share Zaroor Karen Jazakallah

रेफरेन्स हवाला

  1. तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  2. तज़किराए मशाइखे मारहरा
  3. खानदाने बरकात
  4. बरकाते मारहरा व साहिबुल बरकत
  5. मासिरुल किराम
  6. बरकाती कोइज़
  7. अस हुत तवारीख
  8. तज़किराए मशाइखे इज़ाम

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