हज़रत मीर सय्यद शाह अब्दुल जलील चिश्ती मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत मीर सय्यद शाह अब्दुल जलील चिश्ती मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह

विलादत शरीफ

मिक़्दामुल आरफीन, नूरुल आरफीन हज़रत मीर सय्यद अब्दुल जलील मरहरवी रहमतुल्लाह अलैह! 20/ रजाबुल मुरज्जब 972/ हिजरी बरोज़ जुमेरात बा वक़्ते ज़ोहर बिलगिराम शरीफ में तवल्लुद (पैदा) हुए, आप के जद्दे आला यानि बाप दादा शहर वासित! मुल्के इराक से तशरीफ़ लाए और बिलगिराम शरीफ ज़िला हरदोई में सुकूनत इख़्तियार फ़रमाई।

वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का इस्मे गिरामी हज़रत सय्यद मीर अब्दुल वाहिद बिलगिरामि चिश्ती रदियल्लाहु अन्हु है, दसवीं सदी हिजरी के एक अज़ीम इल्मी व रूहानी साहिबे कशफो करामात बुज़रुग थे, आप दसवीं सदी हिजरी के मुजद्दिद भी शुमार किए गए हैं, आप की किताब “सबए सनाबिल” शरीफ काफी मशहूर है हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में कुबूलियत का दर्जा रखती है।

मारहरा शरीफ में आप की आमद

हज़रत मीर सय्यद अब्दुल जलील मरहरवी रहमतुल्लाह अलैह! बिलगिराम! शरीफ से मारहरा! शरीफ में तशरीफ़ लाने वाले सब से पहले बुज़रुग आप ही हैं जो 1017/ हजिरि में मारहरा शरीफ में तशरीफ़ लाए।

बैअतो खिलाफत

हज़रत मीर सय्यद अब्दुल जलील मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! आप आलिमे दीन फ़ाज़िले जलील, इल्मे ज़ाहिरी व बातनि के संगम थे, और आप ने अपने वालिद माजिद हज़रत सय्यद मीर अब्दुल वाहिद बिलगिरामि चिश्ती रदियल्लाहु अन्हु ही से मुरीद व बैअत की और खिरकाए खिलाफत हासिल किया।

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आप पर आलमे जज़्ब

इब्तिदाए अहिद में जब आप पर जज़्बए इश्क तारी हुआ, तो आप उसी आलम में घर से निकल पड़े और मुसलसल बराह 12, साल तक सियाहत करते रहे, पहाड़ों और जंगलों में घूमते रहे जंगलों और सुनसान फ़िज़ाओं में आप ने सख्त से सख्त मुजाहिदात किए किसी को मालूम ना था के आप कहाँ और किस जगह पर हैं, इस मुद्दत में सिर्फ जगली फलों और पत्तों पर आप का गुज़ारा होता था, जिन्नात आप की खिदमत में सलामी के लिए हाज़िर होते, और बड़े अदब से सलाम अर्ज़ करते इसी हालत में एक मर्तबा आप घूमते घूमते फिर बिलगिराम शरीफ तशरीफ़ ले आए और उसी मोहल्ले से गुज़र रहे थे जिस मोहल्ले में आप की हक़िक़्क़ी बहन! का मकान था, आप पर मजज़ूबाना कैफियत तारी थी, और उसी हालत में शेर पढ़ते पढ़ते आप अपनी बहन के मकान के दरवाज़े से गुज़रे आप बेखुदी के आलम में थे आप को बज़ाहिर ये मालूम ना था के आप अपनी बहन के मकान से करीब से गुज़र रहे हैं,

आप की बहन साहिबा ने अपने मकान से ही आप की आवाज़ को सुनलिया और पहचान लिया के ये मेरे भाई हैं जो बरसों से अपने घर से निकल गए हैं आप ने कुछ लोगों से कहा ये मेरे भाई हैं जो इस रास्ते से जा रहे हैं जब लोगों ने जा कर देखा तो वाकई आप को पाया वो लोग आप को ले कर आप की बहन के पास आए सय्यदानी साहिबा! अपने भाई को देख कर बहुत खुश हुईं आप के घर वाले भी वहां पर आ गए और उनके मजबूर करने पर उस दिन हज़रत मीर सय्यद अब्दुल जलील मरहरवी रहमतुल्लाह अलैह! उसी मकान में रहे फिर जब रात आई तो रात के आखरी पहर में अपने घर वालों को सोता हुआ छोड़ कर आप वहां से रवाना हो गए, और मारहरा शरीफ! से तीन कोस के फासले पर उत्तर खेड़ा! नामी जगह पर पहुंचे इस तरह आप की मारह में आमद हुई ।

तुम को विलायत अता की

उत्तर खेड़ा! नामी जगह मारहरा शरीफ से मशरिक की जानिब तीन कोस के फासले पर है यहाँ रिजालुल गैब में से एक नूरानी बुज़रुग से हज़रत मीर सय्यद अब्दुल जलील मरहरवी रहमतुल्लाह अलैह! की मुलाकात हुई, उन्होंने आप को दूध चावल खिलाया और फ़रमाया यहाँ से करीब एक शहर मारहरा आबाद है बारगाहे इलाही और दरबारे रिसालत मआब से वहां की विलायत तुम को आता हुई, जाओ और रुश्दो हिदायत मखलूके खुदा में मशगूल हो जाओ।

ख्वाब में दीदारे मुस्तफा

एक रात में तीन मर्तबा हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीदार से मुशर्रफ हुए आप हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: मेरी औलाद से तेरा पीर और यहाँ का साहिबे विलायत उतरनजी खेड़ा पर, जाओ इस्तकबाल कर के ले आओ।

आप की औलादे अमजाद

आप के चार साहबज़ादे हुए,
(1) सय्यद अबुल फतह
(2) हज़रत सय्यद ओवैस! जद्दे आला सादाते मारहरा
(3) सय्यद मुहम्मद
(4) सय्यद अबुल खेर

आप के खुलफ़ा

हज़रत मीर सय्यद अब्दुल जलील मरहरवी रहमतुल्लाह अलैह! के खलीफा आप के साहबज़ादे हज़रत सय्यद शाह ओवैस बिगिरामि रदियल्लाहु अन्हु थे, और आप का मज़ार शरीफ बिलगिराम शरीफ ज़िला हरदोई यूपी में है।


आप के अहम् कार नामे

हज़रत मीर सय्यद अब्दुल जलील मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! सुल्तानुल आशिक़ीन साहिबुल बरकात हज़रत सय्यदना शाह बरकतुल्लाह इश्कि मरहरवी रहमतुल्लाह अलैह! के सगे दादा हैं, और हज़रत मीर सय्यद अब्दुल जलील मरहरवी रहमतुल्लाह अलैह! ही सब से पहले मारहरा शरीफ तशरीफ़ लाए, मारहरा शरीफ! के सभी औलियाए किराम आप ही की नस्ले पाक में आते हैं हैं, मारहरा शरीफ में आप का मज़ार मुबारक बड़ी दरगाह! के नाम से मशहूर है, आप ही के दमकदम से मारहरा शरीफ को वो बुलंद मकाम हासिल हुआ, मारहरा शरीफ की धरती को अपनी आमद से रूहानियत और तसव्वुफ़ की दौलत से मालामाल किया और पूरे खित्ते में प्यार, मुहब्बत और फ़क्ऱो सुलूक, के मज़हबे इस्लाम, शरीअतो तरीकत, सुन्नते रसूल, के पैगाम को आम किया।

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इन्तिक़ाले पुरमलाल

8/ सफारुल मुज़फ्फर बरोज़ पीर 1057/ हिजरी में मारहरा शरीफ में हुआ।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुबारक क़स्बा मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी इंडिया में ज़ियारत गाहे ख़ल्क़ है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

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रेफरेन्स हवाला

(1) बरकाती कोइज़
(2) मासिरुल किराम तारीखे बिलगिराम
(3) तारीखे खानदाने बरकात

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