सवाल :- फ़रिश्ते को “वही” किस तरह मिलती थी?
जवाब :- अल्लाह तबारक व तआला को जब किसी नबी के पास “वही” भेजना मंज़ूर व मक़सूद होता था तो फ़रिश्ते को रूहानी तौर पर उस “वही” का इलका फरमाता था या वो फरिश्ता उस “वही” को लौहे मेहफ़ूज़ से याद कर के लाता और नबी को सुना देता था|
सवाल :- “वही” का नुज़ूल किन किन तरीकों से होता था ?
जवाब :- “वही” इन पांच तरीकों में से किसी एक तरीके से नाज़िल होती थी|
- घंटी की आवाज़ के साथ,
- जिब्राइल अलैहिस्सलाम किसी इंसानी शक्ल में आकर,
- जिब्राइल अलैहिस्सलाम अपनी असली सूरत में आकर,
- बराहे रास्त और बिला वास्ता अल्लाह तआला से हमकालामी,
- जिब्राइल अलैहिस्सलाम का किसी भी सूरत में बगैर सामने आये कल्बे मुबारक में “वही” इलका कर देना| (अल इत्तीकान फी उलुमुल क़ुरआन)
हज़रत शाह अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं उल्माए कराम ने “वही” के कई मर्तबे बयान किये हैं (अल इत्तीकान फी उलुमुल क़ुन)
अव्वल रोयाए सालिहा :- (सच्चा ख़्वाब) हदीस में है के हुज़ूर अकरम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को इब्तिदा में जो चीज़ सबसे पहले ज़ाहिर हुई वो सच्चे ख्वाब हैं|
दूसरा मर्तबा :- “वही” का ये था कि जिब्राइल अलैहिस्सलाम नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के क़ल्ब शरीफ में इलका करते थे बगैर इसके कि हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम जिब्राइल अलैहिस्सला को देखें|
तीसरा मर्तबा :- “वही” का ये था कि जिब्राइल अलैहिस्सलाम किसी आदमी कि सूरत इख्तियार करके हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आते और पैगामे इलाही पहुँचाते थे ताके जो कुछ इरशादे बारी है उसे याद फरमाएं |
चौथा मर्तबा :- “वही” का ये है कि सिलसिलातुल जरस यानि घंटी कि आवाज़ सुनाई देती थी और नबी करीम सल्लाहु अलैहि वसल्लम के सिवा कोई दूसरा उसके कलिमात व माने को नहीं समझ सकता था|
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर वही क़िस्मों में ये सबसे बढ़कर सख्त थी|
“वही” का पांचवां मर्तबा :- ये था कि कभी जिब्राइल अलैहिस्सलाम अपनी असली सूरत में आते और “वही” पहुंचाते उलमा फरमाते हैं कि ऐसा दोबार हुआ|
छटा मर्तबा :- “वही” का ये है कि ह्क़ तआला ने आप पर इस हालत में “वही” फ़रमाई कि आप उरूजे फ़ौक़े अर्श थे| नमाज़ वगैरा कि वही इस क़िस्म कि है|
“वही” का सातवां मर्तबा :- ह्क़ तआला शानुहु का हुज़ूर अकरम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से बराहे रास्त कलाम फरमाना है जिस तरह कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने कलाम फ़रमाया|
“वही” का आठवां मर्तबा :- ह्क़ तआला का हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से बेहिजाब कलाम फरमाना|
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कभी कभी हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम हालते नौम में तशरीफ़ दीदारे रब से मुशर्रफ होते और हक़ तआला अपने कलाम फरमाता जैसा कि हदीस में है कि “मेने अपने रब को अहसन सूरत में देखा”|
साहिबे मवाहिब रहमतुल्लाह फरमाते हैं :- के हलीमी रहमतुल्लाह अलैहि ने कहा कि नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि आप पर छियालीस किस्मो से “वही” कि गई है|
सवाल :- पिछले अम्बिया किराम जिनकी ज़बाने अरबी के अलावा थीं उनके पास “वही” किस ज़बान में नाज़िल होती थी ?
जवाब :- “वही” हमेशा अरबी ज़बान में नाज़िल होती थी अम्बिया साबिक़ीन अलैहि मुस्सलाम जिनकी ज़बाने अरबी के अलावा थीं उनके पास भी जिब्राइल अलैहिस्सलाम अरबी ज़बान में “वही” लेकर आते थे | फिर हर नबी और अपनी अपनी ज़बान में उस “वही” का तर्जुमा कर के क़ौम को सुनाते और समझते थे |
सवाल :- अव्वलीन “वही” क़ुरआन का नुज़ूल किस तारिख को किस दिन किस वक़्त और किस जगह हुआ ?
जवाब :- क़ुरआन कि “वही” अव्वल का नुज़ूल सत्तरह रमज़ानुल मुबारक हफ्ते के दिन सुबह के वक़्त हुआ | (तफ़्सीर नईमी, अल बिदाया)
हज़रत शाह अब्दुल ह्क़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं “नूर वही का ज़हूर इतवार के दिन आठ या तीन रबीउल सन इकतालीस आमुल फील में कोहे हिरा पर जिसे जबले नूर कहते हैं बा क़ौल सही हुआ |
मुहद्दिस मौसूफ़ आगे फरमाते हैं कि एक जमात आयते करीमा शाहरु रमजानलज़ी उन्ज़िला फिहिल क़ुरानू और इरशादे बारी तआला इन्ना अन्ज़लना फि लैलतुल क़दरी से ख्याल करती है कि “वही” कि शुरुआत रमज़ानुल मुबारक में हुई | इसलिए हक़ तआला ने हुज़ूर अकरम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अज़ क़िस्मे नबुव्वत सांसे पहले किस चीज़ का इकराम फ़रमाया वो नुज़ूले क़ुरआन है |
नुज़ूले क़ुरआन क्योंकि रमजान में हुआ इससे साबित हुआ कि “वही” कि शुरुआत भी रमज़ानुल मुबारक में हुई होगी | लेकिन अक्सर मुफ़स्सिरीन का ये ख्याल है कि पूरा क़ुरआन एक साथ रमजान कि लैलतुल क़द्र में लौहे मेहफ़ूज़ से आसमान दुनिया पर नाज़िल हुआ और वहाँ से मस्लिहत के लिहाज़ और वाक़िआत के एतिबार से थोड़ा थोड़ा तेईस साल कि मुद्दत तक नाज़िल होता रहा | इस नुज़ूल कि शुरुआत रबीउल अव्वल में हुई | कुछ के नज़दीक “वही” शुरुआत रजब में हुई | ये क़ौल आम नहीं है | (मदारीजुन नबुव्वत)
एक क़ौल नौ रबीउल अव्वल सन इकतालीस नववी बारह फरबरी सन छह सौ दस ईसवी का भी है |
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सवाल :- क़ुरआन कि “वही” ए अव्वल और “वही” ए सानी के बीच किनता वक़्फ़ा है ?
जवाब :- “वही” अव्वल और “वही” सानी के दरमियान कितना फासला रहा इस बारे में चंद क़ौल आते हैं |
- तफ़्सीर अज़ीज़ी में दस दिन,
- हज़रत इब्ने सरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के बारह दिन,
- बा क़ौल इब्ने अब्बास पन्दरह दिन,
- हज़रत मकातील का कहना है के चालीस दिन,
- और बा क़ौल तीन साल,
सवाल :- आखिरी “वही ” नबी करीम सल्ललाहु अलैहि वसल्लम के विसाले हक़ से कितने अरसे पहले नाज़िल हुई?
जवाब :-इस सिलसिले में आइम्मा तफ़्सीर के बीच इख्तिलाफ है कि नुज़ूले वही आखिर कब हुआ “
- आखिरी “वही “हुज़ूर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम के आलमे विसाल कि तरफ तशरीफ़ ले जाने से तीन साअत
- पहले नाज़िल हुई है |
- नुज़ूल वही आखिर के तीन दिन बाद हुज़ूर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने आलमे फानी से कूच फरमा कर जवारे रहमते इलाही में नुज़ूल किया
- आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम के जान जान आफरीन के सुपुर्द करने से सात दिन पहले आखिरी “वही” का नुज़ूल हुआ |
- हज़रत इबने हातिम रहमतुल्लाह अलैहि के मुताबिक़ “वही” आखिरी का नुज़ूल आपके विसाले रफ़ीक़े आला से नौ दिन पहले हुआ |
- आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम के वस्ले दाइम और क़ुर्बे अतमसे मसरूर व मुशर्रफ होने से इक्कीस रोज़ पहले आखिरी “वही” नाज़िल हुई |
- हज़रत इबने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से मरवी है कि नुज़ूल आखरी “वही” का आपके अपने मतलूबे हक़ीक़ी के जवारे रहमत में जाने से इक्कीस रोज़ पहले हुआ | (अल इत्तीकान फी उलुमुल क़ुरआन)
- आखरी “वही” दस ज़िल्हिज्जा को मिना में नाज़िल हुई जब कि आप हज्जतुल विदा के फ़राइज़ अंजाम देने में मसरूफ थे | (इस्लामी हैरत अनगेज मालू)
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हवाला – (इस्लामी हैरत अंगेज़ मालूमात)
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