हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की ज़िन्दगी (Part-1

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की ज़िन्दगी (Part-1

या इलाही रहिम फरमा मुस्तफा के वास्ते

या रसूलल्लाह करम कीजिए खुदा के वास्ते

आप का नाम मुबारक

असमाए मुबारका आप के बहुत हैं आसमान पर “अहमद व महमूद” हैं और ज़मीन पर “मुहम्मद ‎सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम” है, तौरेत में “अहमद व सहूक व क़िताल” है और इंजील में “हामिद” है नीज़ बाज़ (कुछ) सूफ़ियाए किराम फरमाते हैं के अल्लाह पाक के एक हज़ार नाम हैं और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नामो की तादाद (गिनती) भी एक हज़ार है।

आप की कुन्नियत

आप की मशहूर कुन्नियत अबुल क़ासिम है नीज़ अबू इब्राहीम भी आप की कुन्नियत है, चुनांचे हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने आप को इन लफ़्ज़ों से याद फ़रमाया, अस्सलामु अलइका या अबा इब्राहीम या ऐ इब्राहीम के वालिद आप पर सलाम हो।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नसब शरीफ

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नसब शरीफ वालिद माजिद की तरफ से इसतरह है: हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ,बिन अब्दुल्लाह, बिन अब्दुल मुत्तलिब, बिन हाशिम, बिन अब्दे मुनाफ, बिन क़ुसई, बिन किलाब, बिन मुर्राह, बिन काअब, बिन लूई, बिन ग़ालिब, बिन फुहर, बिन मालिक, बिन नज़र, बिन किनाना, बिन खुज़ैमा, बिन मुद्रिका, बिन इल्यास, बिन मुज़िर, बिन नज़ार, बिन मआद, बिन अदनान, और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वालिदा माजिदा की तरफ से शजराए नसब ये है:

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, बिन आमिना, बिन्ते वहब, बिन अब्दे मुनाफ, बिन ज़हरा बिन किलाब, बिन मुर्राह, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वालिदैन करीमैन का नसब नामा किलाब बिन मुर्राह मिल जाता है और आगे चल कर दोनों सिलसिले एक हो जाते हैं अदनान तक आप का सिलसिलए नसब सही सनादों के साथ बा इत्तिफ़ाक़ मुअर्रिख़ीन (हिस्ट्री लिखने वाले) साबित है और सब ही मुअर्रिख़ीन (हिस्ट्री लिखने वाले) का इत्तिफ़ाक़ है के अदनान *हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलादे पाक सेहैं, और हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के फ़रज़न्दे अर्जमन्द (बेटे) हैं।

नूरे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश

मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश से पहले अल्लाह वह्दहू लाशरीक की ज़ाते पाक एक पोशीदा खज़ाना थी जब अल्लाह पाक ने चाहा के अपनी रबूबियत ज़ाहिर करे तो सारे जहां से पहले मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नूर को पैदा फ़रमाया जैसा के हदीस शरीफ है: अगर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम न होते तो ना में आदम को पैदा करता और न जन्नत दोज़ख को अगर आप को पैदा करना मंज़ूर न होता तो में कायनात (दुनिया) को पैदा न करता अगर आप न होते तो में दुनिया को पैदा न करता यानी सब से पहले अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मेरे नूर को पैदा फ़रमाया और पूरी काइनात मेरे नूर से पैदा की गई और में अल्लाह पाक के नूर से हूँ,

मज़कूरह बाला अहादीस मुबारक की रौशनी में ये बात ज़ाहिर हो गई के अल्लाह पाक ने सब से पहले प्यारे मुस्तफा रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नूरे पाक को पैदा फ़रमाया और आप के नूर से पूरी काइनात की तख़लीक़ (बनाना पैदा करना) हुई। इसी हदीस की तर्जुमानी करते हुए सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे अज़ाम इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहीमा हुल्लाह फरमाते हैं।

वो जो न थे तो कुछ न था वो जो न हों तो कुछ न हो

जान हैं वो जहान की जान है तो जहान है

नरे पाके मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तमाम पाक पेशानियों से मुन्तक़िल होता हुआ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर हज़रत इब्राहिम व इस्माइल अलैहिमुस्सलाम तक वो नूरे पाक पेशानिए हज़रत अब्दुल्लाह में मुन्तक़िल हुआ और हज़रत अब्दुल्लाह से वो नूरे पाक आप की वालिदा माजिदा हज़रत आमिना रदियल्लाहु अन्हा के शिकम (पेट) मुबारक को रौनक बख्शी

हुज़ूर की पैदाइश से पहले अम्बिया अलैहिमुस्सलाम की खुशखबरियाँ

आप की वालिदा माजिदा हज़रत अमीना रदियल्लाहु तआला अन्हा का बयान है के जब से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नूर मेरे शिकम (पेट) में आया छेह 6, महीने तक कोई निशानी हमल की

ज़ाहिर नहीं हुई, मगर शिकम (पेट) में एक रौशनी मालूम होती थी फिर छेह 6, महीने के बाद एक फरिश्ता ख़्वाब में आया और फ़रमाया के आप के शिकम (पेट) में नबी आखरूज़ ज़मा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं जब वो पैदा हों तो उनका नाम मुहम्मद रखना इसलिए के तौरैत व इंजील में इनका नाम अहमद है और इनकी पैदाइश के साथ ऐसी रौशनी ज़ाहिर होगी के मुल्के शाम और बसरा के महिल्लात तुम को खूब अच्छी तरह नज़र आएंगें, अमीना रदियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं के जब मुझ को हुज़ूर के शिकम (पेट) में होने की उम्मीद हुई तो वो पहला महीना रजब का था एक रात मेने ख़्वाब देखा के एक शख्स निहायत रौशनी और खुशबू के साथ मेरे पास आए, मेने कहा तुम कौन हो? जवाब दिया के में आदम हूँ, मेने कहा आप कैसे तशरीफ़ लाए कहा तुम को खुश खबरी सुनाने आया हूँ के ऐ आमिना

तुम्हारे शिकम (पेट) में सारे जहान का सरदार है, इसी तरह दूसरे महीने में हज़रत शीश अलैहिस्सलाम तीसरे महीने में हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम चौथे महीने में हज़रत नूह अलैहिस्सलाम पांचवे महीने में हज़रत हूद अलैहिस्सलाम छटे महीने में हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम सातवे महीने में हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम आठ वे महीने में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और नवे महीने में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए और सब ने खुशखबरी सुनाई,

आप की विलादत बा सआदत पैदाइश मुबारक

चुनांचे जब पूरे 9, नो महीने हो चुके तो सरवरे काइनात महबूबे फखरे मौजूदात सनादुल असफिया इमामुल अम्बिया सरदारे अम्बिया अशरफुल अम्बिया अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्ततफ़ा रहमते आलम नबी आखरूज़ ज़मा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आलमे वजूद में रौनक अफ़रोज़ हुए और पाकीज़ा बदन, नाफ बुरीदा खतना किए हुए खुशबू में बसे हुए मक्का शरीफ की सरज़मीन में आप की विलादत बा सआदत पैदाइश मुबारक हुई 12, रबीउल अव्वल बरोज़ 2, शंबा (पीर) 20, अप्रेल 571, ईस्वी सुबह सादिक़ के वक़्त मक्का शरीफ में हुई, जैसा के अहले मक्का शरीफ का भी इसी पर अमल है के 12, तारीख को कशानाए नुबूवत की ज़्यारत के लिए जाते हैं और वहां मिलाद शरीफ की महफ़िलें मुनअक़िद करते हैं,

अय्यामे शिरगी यानि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बचपन के हालात

विलादत बसआदत के बाद दस्तूरे मक्का के मुताबिक आप को हज़रत दाई हलीमा सादिया के ज़िम्मा सौंप दिया गया हज़रत हलीमा सादिया रदियल्लाहु अन्हा से पहले आप को दूध पिलाने का शरफ़ हज़रत अमीना रदियल्लाहु अन्हा हज़रते सुवैबा रदियल्लाहु अन्हा व हज़रत उम्मे ऐमन रदियल्लाहु अन्हा ने हासिल किया, हज़रत हलीमा सादिया रदियल्लाहु अन्हा से रिवायत है के जब से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मकान में ले गईं तो अंधेरी रात में चिराग की हाजत (ज़रूरत) नहीं हुई, हमेशा पूरा मकान आप के चेहराए अनवर के नूर से रोशन व ताबनाक रहता था और हमेशा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सीधे पिस्तान का (दूध) नोश फ़रमाते उलटे पिस्तान मेरे बेटे के लिए छोड़ दिया करते, और वो भी अदब की वजह से कभी दाहिनी छाती पर हाथ नहीं डालता और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले दूध न पीता, सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे अज़ाम इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहीमा हुल्लाह फरमाते हैं,

भाइयों के लिए तरके पिस्ताँ करें
दूध पीतों की निस्फत पे लाखों सलाम

और हज़रत हलीमा सादिया रदियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं के कभी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बिछौने पर पेशाब पाखाना नहीं किया, दिन भर में एक ही वक़्त मुक़र्रर (फिक्स) था, जब वो साअत आती पहले से इशारा फरमा कर हजाते ज़रूरिया से फारिग हो जाते, बिस्तर आप का हमेशा पाको साफ़ रहता था और जब में इरादा करती के आप का मुँह धुलाऊँ तो उसी वक़्त अपने आप ग़ैब से धुल जाता था मुझ को मुँह पोछने और नहलाने की नौबत कभी न आयी, और आप एक दिन में इतना बढ़ते थे के और बच्चे एक महीने में और महीने में इस क़द्र बढ़ते थे के और बच्चे एक साल में, जब दो महीने के हो गए बैठने लगे, तीसरे महीने खड़े होने लगे चौथे महीने हाथ दिवार पर रख कर चलने लगे, और पांचवे महीने में अच्छी तरह चलने फिरने और बोलने लगे, शुरू शुरू में आधी रात को आप की ज़बाने मुबारक से ये कलमा निकला, “अल्लाहु अकबरू अल्लाहु अकबरू अल हम्दू लिल्लाहि रब्बिल आलमीन” फिर हमेशा में सुना करती थीं आधी रात को ये पढ़ा करते थे, “लाइलाहा इलल्लाहु क़ुद्दूसन क़ुद्दूसन ना मतिल उयूनू वर रहमानू लाता ख़ुज़ू हू सिनातूं वला नाऊ मुन” छटे महीने दौड़ने लगे, सातवे महीने खूब दौड़ने की ताक़त हो गई, आठ वे महीने प्यारी प्यारी बातें करने लगे नवे महीने खूब साफ़ अक़्लमंदी की बातें फरमाने लगे और जब उम्र शरीफ दस महीने की हुई कमान से तीर चलाने लगे और जो लड़के खेलने को कहते तो आप फरमाते के हम को अल्लाह पाक ने खेलने के लिए नहीं पैदा फ़रमाया और हर चीज़ सीधे हाथ में बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़कर लिया करते थे,

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वसीले से बारिश होने लगी

हज़रत हलीमा सादिया रदियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं के एक साल पूरे साल भर मुल्क में बारिश नहीं हुई तो हम लोग हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को लेकर जंगल में गए और दुआ मांगी: “ऐ अल्लाह इस साहबज़ादे के तुफैल बारिश का नुज़ूल फरमा” दुआ के बाद फौरन घटा छाई और ऐसी मूसला धार बारिश होने लगी के ऐसा मालूम होता था के मश्क का मुँह खुल गया है,

शके सद्र यानि सीने मुबारक का चाक होना

एक दिन आप चारागह में थे के फ़रिश्ते आए और आप का शिकम (पेट) मुबारक चाक किया हज़रत हलीमा सादिया रदियल्लाहु अन्हा के साहबज़ादे हज़रत ज़मीरह इस वाकिए को देख कर दौड़ते हुए अपने घर आए और उनसे कहा के अम्मी जान बड़ा गज़ब हो गया मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तीन आदमियों ने जो बहुत ही नूरानी शक्लो सूरत वाले हैं और सफ़ेद लिबास पहने हैं चित लिटाकर उनको शिकम को चीर डाला है और में इसी हाल में उनको छोड़ कर भगा हुआ आपको खबर करने आया हूँ ये खबर सुन कर हज़रत हलीमा सादिया रदियल्लाहु अन्हा और उनके शोहर दोनों घबराए हुए दौड़कर जंगल की उस चरागाह में पहुंचे जहां आप बकरियां चराने तशरीफ़ ले गए थे हज़रत हलीमा सादिया रदियल्लाहु अन्हा ने वहाँ जाकर देखा के आप बैठे हुए हैं मगर ख़ौफ़ो हिरास से चेहरा ज़र्द और उदास है, हज़रते हलीमा ने इंतिहाई मुश्फ़िक़ाना लहजे में पूछा के बेटा क्या बात है? आपने फ़रमाया के तीन शख्स नूरानी शक्लो सूरत वाले आए थे, और मुझ को चित लिटा कर मेरा शिकम (पेट) चाक करके उस मे से कोई चीज़ निकाली और उसको बाहर फेक दिया और फिर कोई चीज़ मेरे शिकम (पेट) में डाल कर सिल दिया, लेकिन मुझे ज़र्रा बराबर भी कोई तकलीफ नहीं हुई, इस वाक़िए के बाद हज़रत हलीमा सादिया रदियल्लाहु अन्हा आप की बड़ी सख्त निगरानी फरमाने लगीं यहाँ तक के जब मुकम्मल पूरे दो साल हो चुके तो आप का दूध छुड़ा दिया गया, आप की तंदरुस्ती नशो नुमा का हाल दूसरे बच्चों से इतना अच्छा था के दो साल में आप खूब अच्छे बड़े मालूम होने लगे अब दस्तूर के मुताबिक़ हुज़ूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आपकी वालिदा माजिदा के पास लाईं और हज़रत अमीना रदियल्लाहु अन्हा ने हज़रत हलीमा सादिया को बेशुमार इनामो इकराम से नवाज़ा,

शके सद्र यानि सीना मुबारक कितनी बार चाक हुआ

हज़रत अल्लामा शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह “सूरह अलम नशरह” की तफ़्सीर में तहरीर फ़रमाया है के चार 4, मर्तबा आपका मुक़द्दस सीना चाक किया गया और इस में नूरो हिकमत का ख़ज़ीना भरा गया, पहली मर्तबा जब आप हज़रत हलीमा सादिया रदियल्लाहु अन्हा के घर थे, इस की हिकमत ये थी के हुज़ूर सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम उन वसवसों और ख्यालात से महफूज़ रहें जिन मे बच्चे मुब्तिला हो कर खेल कूद और शरारतों की तरफ माइल होते हैं, दूसरी बार जब आप की उम्र शरीफ दस साल की हुई इस की हिकमत ये है के आप जवानी के पुर आशोब दौर के ख़तरात से बे खौफ हो जाएं, तीसरी बार गारे हिरा में शके सद्र हुआ और आपके क़ल्ब मुबारक में नूरो सकीना भर दिया गया ताके आप वहीए इलाही के बारे अज़ीम को बर्दाश्त कर सकें, चौथी बार शबे मेराज में आपका सीना मुबारक चाक किया गया और नूरो हिकमत के ख़ज़ाने से मामूर किया गया ताके आप के कल्बे मुबारक में इतनी वुसअत और सलाहीयत पैदा हो जाए के आप दीदारे इलाही की तजल्ली और कलामे रब्बानी की हैबत व अज़मत के मुतहम्मिल हो सकें,

हज़रत आमिना रदियल्लाहु अन्हा का विसाल

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र शरीफ जब छह 6, साल की हुई तो आप की वालिदा माजिदा आप को साथ ले कर मदीना शरीफ में आपके दादा के नन्हाल “बनू अदि” बिन नजार में रिश्तेदारों की मुलाक़ात या अपने शोहर की क़बर की ज़्यारत के लिए तशरीफ़ ले गईं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वालिद माजिद की “बांदी उम्मे ऐमन” भी इस सफर में आप के साथ थीं, वहां से वापसी पर “अबवा” नामी गांव में हज़रत आमिना रदियल्लाहु अन्हा का विसाल फरमा गईं, इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलही राजिऊन और आप वहीँ मदफ़ून हुईं हज़रत आमिना रदियल्लाहु अन्हा की वफ़ात (विसाल) के बाद हज़रत उम्मे ऐमन आ पको मक्का शरीफ लाईं और आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब को सौंप दिया, इन्होने आग़ोशे तरबियत में इंतिहाई शफ़क़त व मुहब्बत के साथ आप की परवरिश की और हज़रत उम्मे ऐमन आप की खिदमत करती रहीं जब आप की उम्र शरीफ आठ 8, साल की हो गई तो आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब का भी इन्तिक़ाल हो गय।

अबु तालिब के पास हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम

अब्दुल मुत्तलिब की वफ़ात (विसाल) के बाद आप के चाचा अबू तालिब ने आप को आग़ोशे तरबियत में ले लिया और आप की नेक ख़सलतों (आदत) और दिल लुभाने वाली बचपन की प्यारी प्यारी अदाओं ने अबू तालिब को आप का ऐसा गरवीदा (किसी की तरफ माइल होना, तवज्जुह, लगाओ रखना) बना दिया के मकान के अंदर और बाहर हर वक़्त आप को अपने साथ ही रखते अपने साथ खिलाते पिलाते और अपने पास ही आप का बिस्तर बिछाते यहाँ तक के एक लम्हा भी कभी अपनी नज़रों से ओझल (गायब) न होने देते, अबू तालिब का बयान है के मेने कभी नहीं देखा के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम किसी वक़्त भी कोई झूट बोले हों या कभी किसी को धोका दिया हो या कभी किसी को कोई तकलीफ दी हो या बेहूदा लड़कों के पास खेलने गए हों या कभी कोई ख़िलाफ़े तहज़ीब बात की हो,हमेशा इंतिहाई खुश अख़लाक़ नेक अतवार (चाल चलन रंग ढंग) नरम गुफ़्तार, बुलंद किरदार और आला दर्जे के पारसा व परहेज़गार रहे,

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मुल्के शाम का सफर

जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र शरीफ बारह 12, साल की हुई तो उस वक़्त अबू तालिब ने तिजारत की गरज़ (मक़सद) से मुल्के शाम का सफर किया अबू तालिब को चूंकि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बहुत ही वालिहाना मुहब्बत थी इस लिए वो आप को भी इस सफर में अपने साथ ले गए, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
का दौराने सफर क़याम बसरा शहर में “बहीरा राहिब” (इसाईओं का साधू पादरी) के पास हुआ, बहीरा राहिब तौरातो इंजील में बयान की हुई नबी आखरूज़ ज़मा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निशानियों से आप को देखते ही पहचान लिया और बहुत ही अक़ीदतों एहतिराम के साथ उसने आप के काफिले वालों की दअवत की और अबू तालिब से कहा के ये सारे जहां के सरदार और रब्बुल आलमीन के रसूल हैं जिनको अल्लाह पाक ने पूरी कायनात का रसूल बना कर भेजा है, मेने देखा है के शजरो हजर (पेड़ पथ्थर) इनको सजदा करते हैं और अब्र इन पे साया करता है और इन के दोनों शानो के दरमियान मुहरे नुबुव्वत है इस लिए तुम्हारे हक़ में बेहतर यही होगा के अब तुम इन को लेकर आगे नहीं जाना और अपना माले तिजारत यहीं बेच कर के बहुत जल्द मक्का शरीफ चले जाओ, कियुँकि मुल्के शाम में यहूदी लोग इनके बहुत बड़े दुश्मन हैं वहां पहुंचते ही वो लोग इनको शहीद कर डालेंगें, बहीरा राहिब के कहने से अबू तालिब को खतरा महसूस हुआ चुनांचे उन्होंने वहीँ तिजारत का माल बेच दिया और बहुत जल्द हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने साथ लेकर मक्का शरीफ वापस आगए, बहीरा राहिब ने चलते वक़्त इंतिहाई अक़ीदत के साथ आप को सफर का तोशा भी दिया,

जंगे फुज्जार

इस्लाम से पहले अरबों में लड़ाइयों का एक तवील (लम्बा) सिलसिला जारी था इन्ही लड़ाइयों में से एक मशहूर लड़ाई जंगे फुज्जार के नाम से मशहूर है अरब के लोग माहे ज़िल क़ादा, ज़िल हिज्जा, मुहर्रम, और रजब इन चार महीनो का बेहद एहतिराम करते थे और इन महीनो में लड़ाई करने को गुनाह जानते थे, यहाँ तक के आम तौर पर इन महीनो में लोग तलवार को नियाम में रख देते और नेज़ों की बरछियाँ उतार लेते थे, मगर इस के बावजूद कभी कभी ऐसे हंगामी हालात दर पेश हो जाते के मजबूरन इन महीनो में भी लड़ाइयां करनी पड़तीं, तो इन लड़ाइयों को अरब के लोग फुज्जार (गुनहगारों की लड़ाईयां) कहते थे, सब से आखरी जंगे फुज्जार “जो क़ुरैश और क़ैस” के दरमियान हुई, उस वक़्त हुज़ूरहु ‎सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की उम्र शरीफ बीस साल की थी, चूंकि क़ुरैश इस जंग में हक़ पर थे, इस लिए अबू तालिब वगैरा के साथ आपने भी इस जंग में शिरकत की मगर किसी पर हथियार नहीं उठाया सिर्फ इतना ही किया के अपने चाचाओं को तीर उठा उठा कर देते रहे इस लड़ाई में पहले क़ैस फिर क़ुरैश ग़ालिब आए और
आखिर कार सुलाह पर इस लड़ाई का खात्मा हो गया,

हलफुल फ़ुज़ूल

जंगे फुज्जार के खात्मे के बाद सुलाह पसंद लोगों ने महसूस किया के आए दिन की लड़ाइयों से अरब के सैंकड़ों घराने बर्बाद हो गए, हर तरफ बद अमनी और आए दिन की लूट मार से मुल्क का अम्नो अमान ख़त्म हो चुका है, कोई शख्स अपनी जानो माल कोई महफूज़ नहीं समझता और न दिन को चैन न रात को आराम इस वहशतनाक सूरते हाल से तंग आकर एक इस्लाही तहरीक चलाई, चुनाचे बनू हाशिम, बनू ज़ुहरा,बनू असद वगैरा क़बीलाए क़ुरैश के बड़े बड़े सरदार ने ये तजवीज़ पेश की के मौजूदा हालात को सुधारने के लिए कोई मुआहिदा करना चाहिए, चुनांचे खानदान क़ुरैश के सरदारों ने बकाए बाह्म के उसूल पर क़िस्म का मुआहिदा किया और हलफ उठा कर अहद किया हम लोग।

  • मुल्क से बद अमनी दूर करेंगे
  • मुसाफिरों की हिफाज़त करेंगे
  • गरीबो की इमदाद करते रहेंगे
  • मज़लूम की हिमायत करेंगे
  • किसी ज़ालिम या ग़ासिब को मक्का में नहीं रहने देंग।

इस मुआहिदे में हुज़ूर अक़दस हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी शरीक हुए और आप को ये मुआहिदा इस क़द्र अज़ीज़ था के ऐ ऐलाने नुबूवत के बाद आप फ़रमाया करते थे के इस मुआहिदे से मुझे इतनी ख़ुशी हुई के अगर इस मुआहिदे के बदले कोई मुझे सुर्ख ऊँट भी देता तो मुझे इतनी ख़ुशी नहीं होती, और आज इस्लाम में भी कोई मज़लूम “या आला हलफिल फ़ुज़ूल” कह कर मुझे मदद के लिए पुकारे तो में उसकी मदद के लिए तय्यार हों,

हुज़ूर रहमतें आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मुल्के शाम का दूसरा सफर

जब आप की उम्र शरीफ तक़रीबन 25, पच्चीस साल की हुई तो आप की अमानतों सदाक़त का चर्चा दूर दूर तक पहुचं चुका। हज़रते खदीजा रदियल्लाहु अन्हा मक्का शरीफ की एक बहुत ही मालदार बीवी थीं उनके शोहर का इन्तिक़ाल हो चुका था उनको ज़रूरत थी के कोई अमानत दार आदमी मिल जाए तो उसके साथ अपनी तिजारत का माल व सामान मुल्के शाम भेजें, चुनाचे उनकी नज़रे इंतिखाब ने इसके लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुन्तख़ब (चुनना छांटना) किया और आप को कहला भेजा के आप मेरा तिजारत का माल लेकर मुल्के शाम जाएं, जो मुआविज़ा में दूसरों को देती हूँ आप की अमानत व दियानतदारी की बिना पर में आप को इस का दो गुना (डबल) दूँगी,हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनकी दरख्वास्त मंज़ूर करली और तिजारत का मालो असबाब लेकर मुल्के शाम को रवाना हो गए इस सफर में हज़रते खदीजा रदियल्लाहु अन्हा ने अपने गुलाम मुआतमद “मैसरह” को भी आप के साथ रवाना कर दिया ताके वो आप की खिदमत करता रहे,

जब आप मुल्के शाम के मशहूर शहर बसरा के बाज़ार में पहुंचे तो वहां “नस्तूरा राहिब” की ख़ानक़ाह के क़रीब में ठहरे नस्तूरा मैसरह को बहुत पहले से जनता था हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सूरत देखते ही नस्तूरा मेसरह के पास आय। और मालूम किया ये कौन शख्स हैं जो इस दरख्त (पेड़) के नीचे ठहरे हैं? मेसरह ने जवाब दिया के ये मक्का शरीफ के रहने वाले हैं और खानदाने बनू हाशिम के चश्मों चिराग हैं इन का नामे नामी “मुहम्मद और लक़ब अमीन” है नस्तूरा ने कहा के सिवाए नबी के इस पेड़ के नीचे आज तक कोई नहीं ठहरा इस लिए मुझे यक़ीने कामिल है के अल्लाह पाक के आखरी नबी यही हैं, कियुँकि आखरी नबी की तमाम निशानियां तौरेत इंजील में पढ़ी हैं वो सब में इन में देख रहा हू। काश में उस वक़्त तक ज़िंदा रहता जब ये अपनी नुबुव्वत का ऐलान करते तो में उनकी भरपूर मदद करता और पूरी जाँनिसारी के साथ उनकी खिदमत गुज़ारी में अपनी पूरी उम्र गुज़ार देत “ऐ मेसरह” में तुम को नसीहत और वसीयत करता हों के ख़बरदार एक लम्हा के लिए भी तुम इन से जुदा न होन। और इंतिहाई खुलूसो अक़ीदत के साथ इनकी खिदमत करते रहना क्यूंकि अल्लाह पाक ने इन को आखरी नबी होने का शरफ़ अता किया है हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बसरा के बाज़ार में बहुत जल्द तिजारत का माल बेचकर मक्का शरीफ वापस हो गए। वापसी में जब आप का क़ाफ़िला मक्का शरीफ में दाखिल होने लगा तो हज़रते खदीजा रदियल्लाहु अन्हा एक बाला खाने पर बैठी हुई काफिले की आमद का मंज़र देख रही थीं जब उनकी नज़र हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर पड़ी तो उन्हें ऐसा नज़र आया के दो फ़रिश्ते आप के सरपर धूप में साया किए हुए है। हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा के क़ल्ब (दिल) पर इस नूरानी मंज़र का एक ख़ास असर हुआ और फरते अक़ीदत से इंतिहाई वालिहाना मुहब्बत के साथ ये हसीन जलवा देखती रहीं फिर अपने गुलाम मेसरह से आप ने कई दिन के बाद इस का ज़िक्र किया तो मेसरा ने बताया के में तो पूरे सफर में यही मंज़र देखता रहा हूँ और इसके अलावा मेने बहुत ही अजीब व गरीब बातों का मुशाहिदा किया है। फिर मेसरा ने नस्तूरा राहिब की गुफ्तुगू और उसकी अक़ीदतों मुहब्बत का तज़किराह भी किया ये सुन कर हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा को आप से बे पनाह क़ल्बी तअल्लुक़ और बेहद अक़ीदतों मुहब्बत हो गई। और यहाँ तक के उनका दिल झुक गया उन्हें आप से निकाह की रगबत हो गई।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शादी और आप का निकाह किसने पढ़ाया

हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा मालो दौलत के साथ इंतिहाई शरीफ और इफ्फ़त मआब खातून थीं अहले मक्का उनकी पाक दामनी और परहेज़गारी की वजह से उनको “ताहिरा” पाक बाज़ कहा करते थे उनकी उम्र चालीस साल की हो चुकी थी। पहले इन का का निका “अबू हाला बिन ज़रारा तमीमी” से हुआ था और उन से दो लड़के “हिन्द बिन अबू हाला” और “हाला बिन अबू हाला” हो चुके थे फिर अबू हाला के इन्तिकाल के बाद हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा ने दूसरा निकाह “अतीक बिन आबिद मख़्ज़ूमी से किया उन से भी दो औलादे हुईं एक लड़का “अब्दुल्लाह बिन अतीक” और एक लड़की “हिन्द बिन्त अतीक” हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा के दूसरे शोहर का भी इन्तिकाल हो चुका थ। बड़े बड़े सरदाराने क़ुरैश उनके साथ अक़्द निकाह के ख्वाइश मंद थे लेकिन हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा ने सब के पैगामों को ठुकरा दिय। मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पैगम्बराना अख़लाक़ो आदात को देख कर और आपकी हैरत अंगेज़ हालात को सुन कर खुदबखुद हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा के क़ल्ब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से निकाह की रगबत पैदा हो ग। और “नफीसा बिन्ते उमय्या” के ज़रिए खुद ही हुज़ूर अलैहिस्सलाम के पास निकाह का पैगाम भेज।

मशहूर सीरत के इमाम “मुहम्मद बिन इस्हाक़” ने लिखा है के इस रिश्ते को पसंद करने की जो वजह हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा ने खुद हुज़ूर अलैहिस्सलाम से बयान की वो खुद फरमाती हैं: मेने आप के अच्छे अख़लाक़ और आप की सच्चाई की वजह से आप को पसंद किय। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस रिश्ते को अपने चचा “अबू तालिब” और ख़ानदान के दूसरे बड़े बूढ़ों के सामने पेश फ़रमाय। सारे खानदान वालों ने निहायत ख़ुशी ख़ुशी इस रिश्ते को मंज़ूर कर लिया और निकाह की तारीख मुक़र्रर हुई। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु और अबू तालिब वगैरा अपने चचा व खानदान के दूसरे अफ़राद और शुरफ़ाए बनू हाशिम व सरदाराने “मुज़िर” के साथ हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा के मकान पर तशरीफ़ ले गए निकाह हुआ इस निकाह के वक़्त “अबू तालिब” ने निहायत फसीहो बलीग़ खुत्बा पढ़ा इस ख़ुत्बे से बहुत अच्छी तरह इस बात का अंदाज़ा हो जाता है के ऐलाने नुबुव्वत से पहले आप के खानदानी बड़े बूढ़ों का आप के मुतअल्लिक़ के साथ ख्याल था और आप के अख़लाक़ व आदात ने उन लोगों पर कैसा असर डाला थ।”अबू तालिब के उस ख़ुत्बे का तर्जुमा ये है: तमाम तारीफे उस खुदा के लिए हैं जिसने हम लोगों को हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की नस्ल और हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम की औलाद में बनाया और हम को मुअद और मुज़िर के खानदान में पैदा फ़रमाया और अपने घर काबा का निगेह बान और अपने हरम का मुन्तज़िम बनाया और हम को इल्मों हिकमत वाला घर और अमन वाला हरम अता फ़रमाया और हम को लोगों पर हाकिम बनाया ये मेरे भाई के शहज़ादे “मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह हैं” ये एक ऐसे जवान हैं के क़ुरैश के जिस शख्स का भी इस के साथ मवाज़ना न किया जाए ये इस से हर शान में इन से बढे हुए होंगे हाँ अप के पास माल कम है। लेकिन माल तो एक ढलती हुई छाओं अद्ल बदल होने वाली चीज़ है।

अम्मा बाअद : मेरे भतीजे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वो शख्स हैं जिन के साथ मेरी नज़दीकी व मुहब्बत को आप लोग अच्छी तरह जानते हैं। हम आप का “खदीजा बिन्ते ख़ुवैलद” से निकाह करते हैं और मेरे माल में से बीस ऊँट महिर मुक़र्रर किया जाता है और अप का मुस्तक़बिल बहुत ही रोशन अज़ीमुश्शान जलीलुल क़द्र है। शादी के वक़्त अप की उम्र शरीफ पच्चीस 25, साल दो महीने दस 10, दिन की थी और उम्मुल मोमिनीन का सने मुबारक उस वक़्त इकतालीस 41, साल का था गरज़ हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा के साथ हुज़ूर अलैहिस्सलातो वस्सलाम का निकाह हो गया और हुज़ूर महबूबे किरदिगार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का काशानए मईशत अज़्दवाजी ज़िन्दगी के साथ आबाद हो गय। हज़रत उम्मुल मोमिनीन खदीजतुल कुबरा रदियल्लाहु अन्हा तकरीबन पच्चीस साल तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में रहीं और उनकी ज़िन्दगी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कोई दूसरा निकाह नहीं किया। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के एक फ़रज़न्द (बेटा) हज़रत इब्राहिम के सिवा बाक़ी अप की तमाम औलादें हज़रत खदीजतुल कुबरा रदियल्लाहु अन्हा के बतन (पेट) से हुईं और आप ने तमाम उम्र हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ग़मग़ुसारी और खिदमते गुज़ारी में निसार करदी।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कारोबारी मश्ग़ला

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कारोबारी मश्ग़ला हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आबाई पेशा तिजारत था और चूंकि आप बचपन ही में “अबू तालिब” के साथ कई बार तिजारती सफर फ़रमा चुके थे जिससे आप को तिजारती लेनदेन का काफी तजुर्बा भी हासिल हो गया था। इस लिए तालीमे उम्मत के लिए आपने तिजारत का पेशा इख़्तियार फ़रमाया और तिजारत की गरज़ से मुल्के शाम व बसरा और मुल्के यमन का सफर फ़रमाया और ऐसी अमानतो दियानतदारी के साथ आप ने तिजारती कारोबार किया के आप के साथी हज़रात और तमाम अहले बाज़ार आपको “अमीन” के लक़ब से पुकारने लगे। एक कामयाब ताजिर (व्यापारी बिजनिसमैन) के लिए अमानत, सच्चाई, वादे की पाबन्दी खुश अख़लाक़ी तिजारत की जान है। मक्का शरीफ के अमीन ताजिर ने जो तारीखी शाहकार पेश किया है इस की मिसाल तारीखे आलम में नादिर रोज़गार है।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अबी हमसा सहाबिए रसूल का बयान है के नुज़ूले वही और ऐलाने नुबूवत से पहले मेने आप से कुछ लेनदेन का मुआमला किया। कुछ रक़म मेने अदा करदी कुछ बाक़ी रह गई थी मेने वादा किया के में अभी अभी आ कर बाक़ी रक़म भी अदा करदूंगा इत्तिफ़ाक़ से तीन दिन तक मुझे अपना वादा याद नहीं आया। तीसरे दिन जब में इस जगह पहुंचा जहाँ मेने आने का वादा किया था तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसी जगह मुन्तज़िर पाया मगर मेरी इस वादा खिलाफी से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पेशानी पर ज़रासा भी बल नहीं आया बस सिर्फ इतना ही फ़रमाया के तुम कहाँ थे ? में इस मक़ाम पर तीन दिन से तुम्हारा इन्तिज़ार कर रहा हूँ।

रेफरेन्स हवाल:
  • शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2,
  • बुखारी शरीफ जिल्द 2,
  • सीरते मुस्तफा जाने रहमत,
  • अशरफुस सेर,
  • ज़िया उन नबी,
  • सीरते मुस्तफा,
  • सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1,
  • सीरते रसूले अकरम,
  • तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
  • गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी,
  • मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2,
  • रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी,
  • तुहफए रसूलिया मुतरजिम,
  • मकालाते सीरते तय्यबा,
  • सीरते खातमुन नबीयीन,
  • वाक़िआते सीरतुन नबी,
  • इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन,
  • तवारीखे हबीबे इलाह,
  • सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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