हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-3)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-3)

कुफ्फार का वफ्द (जमात, टीम) बारगाहे रिसालत में

एक मर्तबा सरदाराने क़ुरैश हरमे काबा में बैठे हुए ये सोचने लगे की अगर इतनी तकलीफ और सख्तियां बर्दाश्त करने के बावजूद मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी तब्लीग क्यों बंद नहीं करते? आखिर इन का मक़सद क्या है मुमकिन है ये इज़्ज़त जाहो हशमत या सरदारी दौलत की ख्वाइश हों चुनांचे सभो ने उत्बा बिन राबिआ को हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास भेजा की तुम किसी तरह इन का दिली मक़सद मालूम करो चुनांचे उत्बा तन्हाई में आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मिला और कहने लगा  की ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम आखिर इस दावते इस्लाम से आप का मक़सद क्या है क्या आप मक्का की सरदारी चाहते है या इज़्ज़त या दौलत के ख़्वाहा है या किसी बड़े घराने में शादी के ख्वाहिश मंद है आप के दिल में जो तमन्ना हो खुले से कह दीजिए में इस की ज़मानत लेता हूँ  की अगर आप  दावते इस्लाम से बाज़ आ जाएं तो पूरा मक्का आप के ज़ेरे फरमान हो जायेगा और आपकी हर ख्वाहिश तमन्ना पूरी कर दी जाएगी उत्बा की ये साहिराना तक़रीर सुन कर हुज़ूर रहमते  आलम सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जवाब में क़ुरआने मज़ीद की चंद आयते तिलावत फ़रमाई। जिन को सुन कर उतबा इस क़द्र मुतास्सिर हुआ के इस के जिस्म के रोंगटे रोंगटे और बदन का बाल बाल ख़ौफ़े ज़ुल्जलाल से लरज़ने और कांपने लगा और हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम के मुँह पर हाथ रख कर कहा के में आप को रिश्तेदारी का वास्ता दे कर दरख्वास्त करता हूँ के बस की जिए। मेरा दिल इस कलम की अज़मत से फटा जा रहा है उतबा बारगाहे रिसालत से वापस हुआ मगर उसके दिल की दुनिया में एक नया इन्क़िलाब रूनुमा हो चुका । उतबा एक बड़ा ही साहिरूल बयान खतीब और इंतिहाई फसीहो बलीग़ आदमी था उसने वापस लोट कर सरदाराने क़ुरैश से कह दिया के मुहम्मद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम जो कलाम पेश करते हैं वो न तो जादू है न कहानत न शाइरी बल्कि वो कोई और ही चीज़ ह। लिहाज़ा मेरी राए है के तुम लोग उन को उन के हाल पे छोड़ दो। अगर वो कामयाब हो कर सारे अरब पे ग़ालिब हो गए तो इस में हम कुरैशियों ही की इज़्ज़त बढ़ेगी। वरना सारा अर्ब इन को खुद ही फना कर देगा मगर क़ुरैश के सरकश काफिरों ने उतबा का ये मुखलिसना और मुदब्बिराना मश्वरा नहीं माना बल्कि अपनी मुखालिफत और इज़ा रसानियों में और ज़्यादा इज़ाफ़ा कर दिया। 

 “क़ुरैश का वफ्द (जमात, टीम) अबू तालिब के पास”

मेरे एक हाथ में सूरज और एक हाथ में चाँद लाकर दें तब भी बाज़ नहीं आऊँगा

कुफ्फारे क़ुरैश में से कुछ लोग सुलाह पसंद भी थे वो चाहते थे के बात चीत के ज़रिए सुलाह व सफाई के साथ मुआमला तय हो जाए। चुनाचे क़ुरैश के चंद मुअज़ज़ रईस अबू तालिब के पास आए और हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम की दावते इस्लाम और बुत परस्ती के खिलाफ तक़रीरों की शिकायत की। अबू तालिब ने निहायत नरमी के साथ इन लोगों को समझा बुझा कर रुखसत कर दिया लेकिन हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम खुदा के फरमान “फस्दा बिमा तुमरू” की तामील करते हुए अलल ऐलान (खुल्लम खुल्ला) शिरको बुत परस्ती की मज़म्मत और दावते तौहीद का वाइज़ फरमाते ही रहे। 

इस लिए क़ुरैश का गुस्सा फिर भड़क उठा। चुनाचे तमाम सरदाराने क़ुरैश यानि उतबा, शैबा, व अबू सुफ़यान, व आस बिन हिशाम, व अबू जहिल, व वलीद बिन मुगीरा, व आस बिन वाइल, वगैरा वगैरा सब एक साथ मिल कर अबू तालिब के पास आए और ये कहा के आप का भतीजा हमारे माबूदों की तौहीन करता है इस लिए या तो आप दरमियान में से हट जाइए और अपने भतीजे को हमारे हवाले कर दो या फिर आप भी खुल कर इन के साथ मैदान में निकल पड़ें ताके हम दोनों में से एक का फैसला हो जाए। 

अबू तालिब ने क़ुरैश का तेवर देख कर समझ लिया के अब बहुत ही खतर नाक और नाज़ुक घड़ी सर पर आन पड़ी है। ज़ाहिर है के अब क़ुरैश बर्दाश्त नहीं कर सकते और में अकेला पूरे क़ुरैश का मुक़ाबला नहीं कर सकता।  अबू तालिब ने हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम को इंतिहाई मुख्लिस और शफ़ीक़ लहजे में समझाया के मेरे प्यारे भतीजे! अपने बूढ़े चचा की सफ़ेद दाढ़ी पर रहिम करो और बुढ़ापे में मुझ पर और तुम पर तलवार उठाने से भी इंकार नहीं करेंगें।लिहाज़ा मेरी राए ये है के तुम कुछ दिनों के लिए इस्लाम की दावत मोकूफ कर दो (रोक देना, छोड़ देना, रद्द करना, अब तक हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़ाहिरी मुईन यानि हामी मदद गार जो कुछ भी थे वो सिर्फ अकेले अबू तालिब ही थे। हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने देखा के अब इन के क़दम भी उखड़ रहे हैं चचा की गुफ्तुगू सुन कर हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने भरी हुई मगर ज़ज़्बात से भरी हुई आवाज़ में फ़रमाया के चचा जान! “अगर क़ुरैश मेरे एक हाथ में सूरज और दूसरे हाथ में चाँद लाकर दे दें तब भी में अपने इस फ़र्ज़ से बाज़ नहीं आऊँगा” या तो खुदा इस काम को पूरा फरमा देगा या में खुद इस्लाम पर निसार हो जाऊँगा। हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम की ये ज़ज़्बाती तक़रीर सुन कर अबू तालिब का दिल पसीज गया और वो इस क़द्र मुतास्सिर हुए के उनके हाश्मी रगों के खून का क़तरा क़तरा भतीजे की मुहब्बत में गरम होकर खोलने लगा और इंतिहाई जोश में आ कर कह दिया के चचा की जान! जाओ में तुम्हारे साथ हूँ। जब तक में ज़िंदा हूँ कोई तुम्हारा बाल बेका नहीं कर सकता।

        “हिजरते हब्शा सन 5, नबवी”

नजाशी बादशाह

कुफ्फारे मक्का ने जब अपने ज़ुल्मो सितम से मुसलमानो पर अरसए हयात तंग कर दिया तो हुज़ूर रहमते आलम सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुसलमानो को “हब्शा” जा कर पनाह लेने का हुक्म दिया। “नजाशी बादशाह” हब्शा के बादशाह का नाम “अस्महा” और लक़ब “नजाशी” था। इसाई दीन का पाबंद था मगर बहुत ही इन्साफ पसंद और रहिम दिल था और तौरेत व इंजील वगैरह आसमानी किताबों का बहुत ही माहिर आलिम था। ऐलाने नुबुव्वत के पांचवे साल रजब के महीने में ग्यारह मर्द और चार औरतों ने हिजरत की। उन मुहाजिरीन किराम के मुक़द्दस नाम हस्बे ज़ेल हैं। हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु तआला अन्हु अपनी बीवी हज़रते बीबी रुक़य्या रदियल्लाहु तआला अन्हा के साथ जो हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम की साहबज़ादी हैं, हज़रत अबू हुज़ैफ़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु अपनी बीवी हज़रते सहला बिन्त सुहैल रदियल्लाहु तआला अन्हा के साथ, हज़रत अबू सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हु अपनी अहलिया हज़रते उम्मे सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हा के साथ, हज़रत आमिर बिन रबीआ रदियल्लाहु तआला अन्हु अपनी बीवी हज़रते लैला बिन्ते हशमा रदियल्लाहु तआला अन्हा के साथ, हज़रत ज़ुबेर बिन अवाम रदियल्लाहु तआला अन्हु, हज़रत मुसअब बिन उमैर रदियल्लाहु तआला अन्हु, हज़रत अब्दुर रहमान बिन ओफ़ रदियल्लाहु तआला अन्हु, हज़रत उस्मान बिन मज़ऊन रदियल्लाहु तआला अन्हु, हज़रत अबू सबरह बिन अबी रहिम या हातिब बिन अमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा, हज़रत सुहैल बिन बैज़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु, बिन मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु, कुफ्फारे मक्का को जब इन लोगों की हिजरत का पता चला तो इन ज़ालिमों ने इन लोगों की गिरफ्तारी के लिए इन का तआक़ुब (पीछा) किया लेकिन ये लोग कश्ती पर सवार हो कर रवाना हो चुके थे। इस लिए कुफ्फार नाकाम वापस लोटे ये मुहाजिरीन का काफिला हब्शा की सर ज़मीन में उतर कर अम्नो अमान के साथ खुदा की इबादत में मसरूफ हो गया। चंद दिनों के बाद अचानक ये खबर फेल गई के कुफ्फारे मक्का मुस्लमान हो गए।

ये खबर सुन कर चंद लोग हब्शा से मक्का लोट आए मगर यहाँ आ कर पता चला के ये खबर गलत थी। चुनाचे बाज़ लोग तो फिर हब्शा चले गए मगर कुछ लोग मक्का में रूपोश (छुप कर) हो कर रहने लगे लेकिन कुफ्फारे मक्का ने इन लोगों को तलाश कर लिया और इन लोगों पर पहले से भी ज़्यादा ज़ुल्म ढाने लगे तो हुज़ूर रहमते आलम सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फिर इन लोगों को हब्शा जाने का हुक्म दिया। चुनाचे हब्शा से वापस आने वाले और इन के साथ दुसरे मज़लूम मुस्लमान कुल तिरासी 83, मर्द और अठ्ठारह 18, औरतों ने हब्शा की जानिब हिजरत की।

कुफ्फार का सफीर नजाशी के दरबार में

तमाम मुहाजिरीन सुकून के साथ हब्शा में रहने लगे। मगर कुफ्फारे मक्का को कब गवारा हो सकता था के फ़रज़न्दाने तौहीद कहीं चैनो सुकून के साथ रह सकें। इन ज़ालिमों ने कुछ तुह्फ़ों के साथ “अमर बिन आस” और “अम्मारा बिन वलीद” को बादशाह हब्शा के दरबार में अपना सफीर (क़ासिद, ऐलची, खत पहुंचाने वाला) बना कर भेजा इन दोनों ने नजाशी के दरबार में पहुंच कर तुह्फ़ों का नज़राना पेश किया और बादशाह को सजदा कर के फर्याद करने लगे के ऐ बादशाह! हमारे कुछ मुजरिम मक्का से भाग कर आप के मुल्क में पनाह लिए हुए हैं। 

आप हमारे इन मुजरिमो को हमारे हवाले कर दीजिए। ये सुन कर नजाशी बादशा ने मुसलमानो को दरबार में बुलाया और हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु के भाई जाफर तय्यार रदियल्लाहु अन्हु मुसलमानो के नुमाइन्दह बनकर गुफ्तुगू के लिए आगे बड़े और दरबार के अदब के मुताबिक़ बादशाह को सजदह नहीं किया बल्कि सिर्फ सलाम कर के खड़े हो गए दरबारी ने टोका तो हज़रत जाफर रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के हमारे रसूल  सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुदा के अलावा किसी को सजदा कर ने से मना फ़रमाया है इस लिए में बादशाह को सजदा नहीं करता। 

इस के बाद जाफर बिन अबी तालिब रदियल्लाहु तआला अन्हु ने दरबार शाही में इस तरह तक़रीर शुरू फ़रमाई । “ऐ बादश हम लोग एक जाहिल कौम थे शिरको बुत परस्ती करते थे। लूट मार चोरी, डकैती, ज़ुल्म, और तरह तरह की बद कारियों और बद आमालियों में मुब्तला थे। अल्लाह पाक ने हमारी कौम में एक शख्स को अपना रसूल बना कर भेजा जिस के हसब व नसब सिद्क़ो अमानत को हम पहले से जानते थे। उस रसूल ने हम को शिर्क व बुत परस्ती से रोक दिया और सिर्फ एक खुदाए वाहिद की इबादत का हुक्म दिया और हर किस्म के ज़ुल्मो सितम और तामम बुरायिओं और बदकारियों से हम को मना किय। हम उस रसूल पर ईमान लाए और शिर्क व बुत परस्ती छोड़ कर तमाम बुरे कामो से ताइब हो गए। बस यही हमारा गुनाह है जिस पर हमारी कौम हमारी जान की दुश्मन हो गई और इन लोगों ने हमें इतना सताया के हम अपने वतन को खेर बाद कह कर आप की सल्तनत के ज़ेरे साए पुर अमन ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं। अब ये लोग मजबूर कर रहे हैं के हम इसी पुरानी गुमराही में वापस लोट जाएं। 

हज़रत जाफर रदियल्लाहु अन्हु की तक़रीर से नजाशी बादशाह बेहद मुतास्सिर हुआ। ये देख कर कुफ्फारे मक्का के सफीर अमर बिन आस ने अपने तरकश का आखरी तीर भी फेंक दिया और कहा के ऐ बादशाह! ये मुस्लमान लोग आप के नबी हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में कुछ दूसरा ही अक़ीदा रखते हैं। जो आप के अक़ीदे के बिलकुल ही खिलाफ है ये सुन कर नजाशी बादशाह ने हज़रत जाफर रदियल्लाहु अन्हु से इस बारे में सवाल किया तो आप ने सूरह मरयम की तिलावत फ़रमाई। कलामे रब्बानी की तासीर से नजाशी बादशाह के क़ल्ब पर इतना गहरा असर पड़ा की उस पर रिकक़्क़त तारी हो गई और उस की आँखों से आँसूं जारी हो गए हज़रत जफ़र रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के हमारे रसूल सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हम को यही बताया है की हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम खुदा के बन्दे और उस के रसूल हैं जो कुंआरी मरयम रदियल्लाहु तनहा के शिकम (पेट) मुबारक से बगैर बाप के खुदा की क़ुदरत का निशान बनकर पैदा हुए। नजाशी बादशाह ने बड़े गौर से हज़रत जाफर रदियल्लाहु अन्हु की तक़रीर को सुना और ये कहा की बिला शुबह इंजील और क़ुरआन  दोनों एक ही आफताब हिदायत के दो नूर हैं और यक़ीनन हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम खुदा के बन्दे और उसके रसूल हैं और में गवाही देता हूँ की बेशक हज़रत मुहम्मद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम खुदा के वही रसूल हैं जिनकी बशारत हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने इंजील में दी है। और अगर में दस्तूरे सल्तनत के मुताबिक़ तख़्त शाही पे रहने का पाबंद न होता तो में खुद मक्का जा कर रसूले अकरम सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम की जूतियां सीधा करता और उन के क़दम धोता बादशाह की तक़रीर सुन कर उस के दरबारी जो कट्टर किस्म के इसाई थे नाराज़ हो गए मगर नजाशी बादशाह ने जोशी इमानि में सब को डांट फटकार कर खामोश कर दिया और कुफ्फारे मक्का के तुह्फ़ों को वापस लौटा कर अमर बिन आस और अम्मारा बिन वलीद को दरबार से निकलवा दिया और मुसलमानो से कहदिया के तुम लोग मेरी सल्तनत में जहां चाहो अमन व सुकून के साथ आराम व चैन की ज़िन्दगी बसर करो। कोई तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। वाज़ेह रहे नजाशी बादशाह मुस्लमान हो गया था। चुनाचे इस के इन्तिक़ाल पर हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मदीना मुनव्वरा में इस की नमाज़े जनाज़ह पढ़ी। हालांकि नजाशी बादशाह का इन्तिक़ाल हब्शा में हुआ था और वो हब्शा ही में दफ़न भी हुए मगर हुए हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ग़ायबाना नमाज़े जनाज़ा पढ़ी और इन के लिए दुआए मगफिरत फ़रमाई।

हज़रते अबू बक्र व इब्ने दुगंना

हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने भी हब्शा की तरफ हिजरत की मगर जब आप रदियल्लाहु तआला अन्हु मक़ामे “बरकुल गम्माद” में पहुंचे तो क़बीलए कारा का सरदार “मालिक बिंन दुगंना” रस्ते में मिला और पूछा की? ऐ अबू बकर कहाँ चले? आप रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अहले मक्का के ज़ुल्मो सितम का ज़िक्र किया और कहा की अब में अपने वतन मक्का छोड़ कर खुदा की लंबी चौड़ी ज़मीन में फिरता रहूंगा और खुदा की इबादत करता रहूंगा। इब्ने दुगंना ने कहा की ऐ अबू बक्र! आप जैसा आदमी न शहर से निकल सकता है न निकाला जा सकता है। आप दूसरों का बार उठाते हैं, महमानाने हरम की मेहमान नवाज़ी करते हैं, खुद कमा कमा कर मुफ़लिसों और गरीबों की माली मदद करते हैं, हक़ के कामो में सब की मदद व इआनत करते हैं। आप मेरे साथ मक्का वापस चलिए में आप को अपनी पनाह में लेता हूँ। इब्ने दुगंना आप रदियल्लाहु तआला अन्हु को ज़बर दस्ती मक्का वापस लाया और तमाम कुफ्फारे मक्का से कह की मेने अबू बकर रदियल्लाहु तआला अन्हु को अपनी पनाह में लिया है। लिहाज़ा खबर दार कोई इन को न सताए।

कुफ्फारे मक्का ने कहा की हम को इस शर्त पर मंज़ूर है की अबू बक्र अपने घर के अंदर छुप कर क़ुरआन पढ़ें ताकि हमारी औरतें के बच्चों के कान में कुरआन की आवाज़ न पहुंचे। इब्ने दुगंना ने कुफ्फार की शर्त को मंज़ूर कर लिया। और हज़रते अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु कुछ दिनों तक अपने घर के अंदर कुरआन पढ़ते रहे मगर हज़रते अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु के जज़्बए इस्लामी और जोशे इमानि ने ये गवारा नहीं किया की माबूदाने बातिल लातो उज़्ज़ा की इबादत तो खुल्लम खुल्ला हो और माबूदे बार हक़ “अल्लाह पाक” की इबादत घर के अंदर छुप कर की जाए। चुनाचे आप रदियल्लाहु तआला अन्हु घर के बाहर अपने सिहन में एक मस्जिद बनाली और उस मस्जिद में खुल्लम खुल्ला नमाज़ों में बुलंद आवाज़ से क़ुरआन पढ़ने लगे और कुफ्फारे मक्का की औरतों और बच्चे भीड़ लगा कर कुरआन सुनने लगे। ये मंज़र देख कर कुफ्फारे मक्का ने इब्ने दुगंना को मक्का बुलाया और शिकायत की, के अबू बक्र घर के बाहर क़ुरआन पढ़ते हैं। जिस को सुनने के लिए उनके गिर्द हमारी औरतें और बच्चों का मेला लग जाता है। इससे हम को बड़ी तकलीफ होती है लिहाज़ा तुम उन से कह दो की या तो वो घर में क़ुरआन पढ़ें वरना तुम अपनी पनाह की ज़िम्मेदारी से दस्तबरदार हो जाओ। चुनाचे इब्ने दुगंना ने हज़रते अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु से कहा की ऐ अबू बकर रदियल्लाहु तआला अन्हु ! आप घर के अंदर छुप कर क़ुरआन पढ़ें वरना में अपनी पनाह से किनारा कश हो जाऊँगा इस के बाद कुफ्फारे मक्का आप को सताएंगें तो में इस का ज़िम्मेदार नहीं। ये सुन कर हज़रते अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया की ऐ इब्ने दुगंना! तुम अपनी पनाह की ज़िम्मेदारी से अलग हो जाओ मुझे अल्लाह पाक की पनाह काफी है और में उसकी मरज़ी पर राज़ी हूँ।

हज़रते हम्ज़ा के इस्लाम लाने का वाक़िआ

ऐलाने नुबुव्वत के छटे साल हज़रते हम्ज़ा और हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा दो ऐसी हस्तियां दामने इस्लाम में आ गईं जिन से इस्लाम और मुसलमानो के जाहो जलाल और इन के इज़्ज़तों इक़बाल का परचम बहुत ही सर बुलंद हो गया। हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम के चाचाओं में हज़रते हम्ज़ा को आप से सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम से बड़ी वालिहाना मुहब्बत थी और वो सिर्फ दो तीन साल हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम से उमर में ज़्यादा थे और चूँकि उन्होंने भी हज़रते सुवैबा का दूध पिया था इस लिए हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम के रज़ाई भाई भी थे। हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु बहुत ही ताक़तवर और बहादुर थे और शिकार के बहुत ही शौक़ीन थे। रोज़ाना सुबह सवेरे तीर कमान लेकर घर से निकल जाते और शाम को शिकार से वापस लोट कर हराम में जाते, ख़ानए काबा का तवाफ़ करते और क़ुरैश के सरदारों की मजलिस में कुछ देर बैठा करते थे। 

एक दिन हस्बे मामूल शिकार से वापस लौटे तो इब्ने जुदआन की लौंडी और खुद इन की बहन हज़रते बीबी सफिय्या रदियल्लाहु तआला अन्हुमा ने इन को बताया की आज अबू जाहिल ने किस किस तरह तुम्हारे भतीजे हज़रत मुहम्मद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ बे अदबी और गुस्ताखी की है। ये माजरा सुन कर मारे गुस्से के हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु का खून खोलने लगा एक दम तीर कमान लिए हुए मस्जिदे हराम में पहुंच गए और अपनी कमान से अबू जाहिल के सर पर इस ज़ोर से मारा की उस का सर फट  गया और कहा के तू मेरे भतीजे को गलियां देता है ? तुझे खबर नहीं में भी उसी के दीन पर हूँ। ये देख कर क़ाबिले बनी मख़्ज़ूम के कुछ लोग अबू जाहिल की मदद के लिए खड़े हो गए तो अबू जाहिल ने यह सोच कर की कहीं बनू हाशिम से जंग न छिड़ जाए ये कहा की ऐ बनी मख़्ज़ूम! आप लोग हम्ज़ा को छोड़ दीजिए। वाकई आज मेने इन के भतीजे को बहुत ही ख़राब ख़राब किस्म की गलियां दीं थीं। 

हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने मुस्लमान हो जाने के बाद ज़ोर ज़ोर से इन अशआर को पढ़ना शुरू कर दिया जिसका तर्जुमा ये है

में अल्लाह पाक की हम्द करता हूँ जिस वक़्त उसने मेरे, दिल को इस्लाम और दीने हनीफ की तरफ हिदायत दी, जब अहकामे इस्लाम की हमारे सामने तिलावत की जाती है, तो बा कमाल अक़्ल वालों के आँसूं जारी हो जाते हैं, और खुदा के बुर्गज़ीदा अहमद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम हमारे मुक़्तदा हैं तो ऐ काफिरों अपनी बातिल बकवास से इन पर ग़लबा मत हासिल करो, तो खुदा की क़सम! हम इन्हें कौमे कुफ्फार के सुपुर्द नहीं करेंगें, हालां की अभी तक हम ने उन काफिरों के साथ तलवारों से फैसला नहीं किया।

हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म का इस्लाम लाने का वाक़िआ

हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु के इस्लाम लाने के बाद तीसरे ही दिन हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु भी दौलते इस्लाम से मालामाल हो गए। आप रदियल्लाहु तआला अन्हु के मुशर्रफ बा इस्लाम होने के वाक़िआत में बहुत सी रिवायात हैं। 

एक रिवायत में ये है के आप रदियल्लाहु तआला अन्हु एक दिन गुस्से में बहरे हुए नग्गी तलवार ले कर इस इरादे से चले की आज में इसी तलवार से पैग़म्बरे इस्लाम का ख़ात्मा कर दूंगा। इत्तिफ़ाक़ से रस्ते में हज़रते नुऐम बिन अब्दुल्लाह कुरैशी रदियल्लाहु तआला अन्हु से मुलाक़ात हो गई। यह मुस्लमान हो चुके थे मगर हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु को इन के इस्लाम की खबर नहीं थी। हज़रते नुऐम बिन अब्दुल्लाह कुरैशी रदियल्लाहु तआला अन्हु ने पूछा क्यूं? ऐ उमर! इस दोपहर की गर्मी में नग्गी तलवार लेकर कहाँ चले? कहने लगे की आज बानिए इस्लाम का फैसला करने के लिए घर से निकल पढ़ा हूँ। इन्होने कहा की पहले अपने घर की खबर लो। तुम्हारी बहिन “फातिमा बिन्ते अल खत्ताब” और तुम्हारे बहनोई “सईद बिन ज़ैद” भी तो मुस्लमान हो गए हैं यह सुन कर आप बहिन के घर पहुंचे और दरवाज़ा खट खटाया। घर के अंदर चंद मुस्लमान छुप कर क़ुरआन पढ़ रहे थे। हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु की आवाज़ सुन कर सब लोग डर गए और क़ुरआन के औराक़ छोड़ कर इधर उधर छुप गए। बहिन ने उठ कर दरवाज़ा खोला तो हज़रते उमर उमर रदियल्लाहु तआला अनहु चिल्ला कर बोले की ऐ अपनी जान की दुश्मन! क्या तू भी मुस्लमान हो गई? फिर अपने बहनोई हज़रत सईद बिन ज़ैद रदियल्लाहु तआला अनहु पर झपटे और उनकी दाढ़ी पकड़ कर उन को ज़मीन पर पटख दिया और सीने पर सवार हो कर मारने लगे। इन की बहिन हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा अपने शोहर को बचाने के लिए दौड़ पड़ीं तो हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने उन को ऐसा तमांचा मारा की उन के कानो के झूमर टूट कर गिर गए और उन का चेहरा खून से लहू लुहान हो गया। बहिन ने साफ़ साफ़ कह दिया की उमर! सुनलो तुम से जो हो सके कर लो मगर अब इस्लाम दिल से नहीं निकल सकता। हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने बहिन का खून आलूदा चेहरा देखा और उन का अज़्मों इस्तिक़ामत से भरा हुआ यह जुमला सुना तो उन पर रिक़्क़त तारी हो गई और एक दम दिल नरम पड़ गया, थोड़ी देर तक खमोश खड़े रहे फिर कहा की अच्छा तुम लोग जो पढ़ रहे थे मुझे भी दिखाओ | बहिन ने क़ुरआन के औराक़ को सामने रख दिया | उठा कर देखा तो इस आयात पर नज़र पड़ी की “

سَبَّحَ لِلّٰهِ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَ الْاَرْضِۚ-وَ هُوَ الْعَزِیْزُ الْحَكِیْمُ(۱) इस आयात का एक एक लफ्ज़ सदाक़त की तासीर का तीर बन कर दिल की गहराई में पेवस्त होता चला गया और जिस्म का एक एक बाल लरज़ा बार अंदाम होने लगा | जब इस आयात पर पहुंचे की “अमिनू बिल्लाहि व रसूलिहि” तो बिलकुल ही बे काबू हो गए और बे इख़्तियार पुकार उठे की “में गवाही देता हूँ के मुहम्मद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह पाक के रसूल हैं” ये वो वक़्त था की हुज़ूरे अकरम सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम हज़रते अरक़म बिन अबू अरक़म रदियल्लाहु तआला अन्हु के मकान में मुक़ीम थे हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु बहिन के घर से निकले और सीधे हज़रते अरक़म रदियल्लाहु तआला अन्हु के मकान पर पहुंचे तो दरवाज़ा बंद पाया, कुंडी बजाई, अंदर के लोगों ने दरवाज़े की झिरी से झाँक के देखा तो हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु नग्गी तलवार लिए हुए खड़े थे | लोग घबरा गए और किसी में दरवाज़ा खोलने की हिम्मत नहीं हुई मगर हज़रते हमजा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने बुलंद आवाज़ से फ़रमाया की दरवाज़ा खोल दो और अंदर आने दो अगर नेक नियत के साथ आया है तो उस का खेर मक़दम है वरना उसी की तलवार से उस की गर्दन उड़ा दी जाएगी हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अंदर क़दम रखा तो हुज़ूर रहमते आलम सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुद आगे बढ़ कर हज़रते उमर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम का बाज़ू पकड़ा और फ़रमाया की ऐ खत्ताब के बेटे ! तू मुस्लमान हो जा आखिर तू मुझ से कब तक लड़ता रहेगा? हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने बा आवाज़े बुलंद कलमा शरीफ पढ़ा |

हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मारे ख़ुशी के नारए तकबीर बुलंद फ़रमाया और तमाम हाज़रीन ने इस ज़ोर से “अल्लाहु अकबर” का नारा लगाया की मक्का की पहाड़ियां गूँज उठीं| फिर हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु कहने लगे या रसूलल्लाह सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम यह चुप छुप छुप कर खुदा की इबादत करने के क्या माना? उठिये हम काबे में चल कर खुल्लम खुल्ला अल्लाह पाक की इबादत करेंगें और खुदा की क़सम ! में कुफ्फार ही की हालत में जिन जिन मजलिसों में बैठ कर इस्लाम की मुखालिफत करता रहा अब उन तमाम मजलिसों में अपने इस्लाम का ऐलान करूंगा | फिर हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम सहाबा की जमात को लेकर दो क़तारों (लाइन) में रवाना हुए | एक सफ में आगे आगे हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु चल रहे थे और दूसरी तरफ आगे आगे हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु थे | इस शान से मस्जिदे हराम में दाखिल हुए और नमाज़ अदा की और हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने हरमे काबा में मुशरिकीन के सामने अपने इस्लाम का ऐलान किया | यह सुनते ही हर तरफ से कुफ्फार दौड़ पड़े और हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु को मारने लगे और हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु भी उन लोगों से लड़ ने लगे | एक हंगामा बरपा हो गया | इतने में हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु का मामू अबू जाहिल आ गया | उस ने पूछा की यह हंगामा कैसा है ? लोगों ने बताया की हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु मुस्लमान हो गए हैं इस लिए लोग बरहम हो कर इन पर हमला आवर हुए हैं | यह सुन कर अबू जाहिल ने हतीमे काबा में खड़े होकर अपनी आस्तीन से इशारा कर के ऐलान कर दिया की मेने अपने भांजे उमर को पनाह दी अबू जाहिल का ये ऐलान सुन कर सब लोग हट गए | हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु का बयान है की इस्लाम लाने के बाद में हमेशा कुफ्फार को मारता और उन की मार खाता रहा यहाँ तक की अल्लाह पाक ने इस्लाम को ग़ालिब कर दिया |

हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु को जब कुफ्फारे मक्का ने बहुत ज़्यादा सताया तो आस बिन वाइल सहमी ने भी आप रदियल्लाहु तआला अन्हु को अपनी पनाह में ले लिया जो ज़मानए जाहीलियत में आप का हालीफ़ (हामी मदद गार) था | इस लिए हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु कुफ्फार की मार धाड़ से बच गए |

रेफरेन्स (हवाला)
  • रह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2
  • बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत
  • अशरफुस सेर
  • ज़िया उन नबी
  • सीरते मुस्तफा
  • सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1
  • सीरते रसूले अकरम
  • तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया
  • गुलदस्ताए सीरतुन नबी
  • सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2
  • रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी
  • तुहफए रसूलिया मुतरजिम
  • मकालाते सीरते तय्यबा
  • सीरते खातमुन नबीयीन
  • वाक़िआते सीरतुन नबी
  • इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन
  • तवारीखे हबीबे इलाह
  • सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया

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