हज़रते सय्यदना अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 2)

आप की बैअतो खिलाफत

इब्ने सअद का कौल है, की हज़रते अमीरुल मोमिनीन उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु की शहादत के दूसरे ही दिन हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के दस्ते हक परस्त पर  सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम जो उस वक़्त मदीना शरीफ में मौजूद थे उन्हों ने बैअत की, और आप अमीरुल मोमिनीन हो गए, फिर हज़रते तल्हा, हज़रते ज़ुबेर, हज़रते बीबी आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन ने बसरा पहुंच कर हज़रते अमीरुल मोमिनीन उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु के क़ातिलों से खून का बदला लेने के लिए आप से मुतालबा शुरू कर दिया और हज़ारों इंसान इस मुतालबे में शरीक हो गए, जिस वक़्त हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु को ये खबर पहुंची तो आप भी ईराक तशरीफ़ ले गए और यहाँ जमादिउल उखरा 26, हिजरी में जंगे जमल हुई, जिस में हज़रते तल्हा, हज़रते ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हु शहीद हो गए, और तरफ़ैन यानि दोनों तरफ से हज़रों आदमी शहीद हो गए। 

बसरा में आप ने पंदरा 15, दिन क़याम फ़रमाया फिर कूफ़ा शहर में तशरीफ़ लाए तो हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु के खून का मुतालबा किया और जंग हुई, चुनांचे आप भी अपनी फौज ले कर आगे बढ़े और दोनों तरफ की फौज के बीच कई रोज़ तक निहायत ख़ूंरेज़ी की जंग होती रही, ये लड़ाई “जंगे सिफ़्फ़ीन” के नाम से मशहूर है जो माहे सफर 37, हिजरी में हुई, एक सुलाह समझता पर जंग खत्म हुई, हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु मुल्के शाम को और हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु कूफ़ा तशरीफ़ लाए । कूफ़ा शहर में तशरीफ़ लाने पर ख़ारजी लोग आप की इताअत से अलग हो गए और आप की खिलाफत का इंकार कर के सर कशी शुरू कर दी बल्कि लश्कर जमा कर के आप पर चढ़ाई कर दी जब आप ने खर्जियों की ये हालत देखि तो आप ने भी इन खारजियों की सर कूबी के लिए हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अनहुमा की क़ियादत में एक लश्कर को रवाना फ़रमाया और हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अनहुमा खारजियों पर ग़ालिब आ गए और इन में से बहुत से ताइब हो कर कूफ़ा शहर वापस आ गए । लेकिन बहुत से खरजी वहां से भाग कर नहर वान चले गए और वहां जा कर मुसलमानो की बस्तियों पर हमला और लूट मार करने लगे तो इस फ़ित्ने से बचने के लिए हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु 38, हिजरी में एक फौज ले कर नहर वान तशरीफ़ ले गए और इन खारजियों को निहायत बे दर्दी के साथ क़त्ल किया और इन मक़तूल खारजियों में ज़ुल सादिया भी मारा गया, जिस के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खबर दी थी की ये वो बद नसीब खरजी होगा जो ख़ुरूज करेगा और इस का एक हाथ एक औरत के पिसतान की तरह होगा, और मोमिनीन की बेहतरीन जमाअत इस को क़त्ल करेगी । 

आप का इल्म एक समंदर है

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु परवरदाए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं और बारगाहे रिसालत से आप का शरहे सद्र कितने उलूम पर हुआ ज़ब्ते तहरीर से बाहर है। 

अबू आमिर तुफैल से रिवायत करते हैं के हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने खुत्बा इरशाद फ़रमाया: मुझ से दरयाफ्त करना चाहा तो दरयाफ्त कर लो किताबुल्लाह से, खुदा की कसम कोई आयत ऐसी नहीं है जिस को में नहीं जानता हूँ यहाँ तक के में ये भी जानता हूँ के दिन में नाज़िल हुई या रात में, नरम ज़मीन पर नाज़िल हुई या पहाड़ पर । 

आप ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पांच सौ छियासी हदीसें रिवायत की हैं, और आप के फतावा और फैसलों का अनमोल मजमूआ इस्लामी उलूम के ख़ज़ानों का बहतीरीन कीमती सरमाया है, हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु फ़रमाया करते थे के हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु हम तमाम सहाबा में बेहतरीन फैसला करने वाले हैं । और कभी यूं भी इरशाद फरमाते थे में ऐसे मुक़दमे से खुदा की पनाह मांगता हूँ जिस का फैसला हज़रते अली रदियल्लाहु भी न कर सकें, 

इसी तरह आप के मुतअल्लिक़ हज़रते सईद बिन मुसईयब रदियल्लाहु अन्हु कहा करते थे के मदीना शरीफ में हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के सिवा कोई ऐसा साहिबे इल्म नहीं जो ये कह सके “जिस को जो कुछ पूछना हो मुझ से पूछ ले । 

इसी तरह हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु बा वजूद अपने इल्मो फ़ज़ल के ऐलानिया कहा करते थे के हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु से ज़ियादा फ़राइज़ का जानने वाला और मुआमला फ़हम कोई शख्स भी नहीं है । 

और खुद हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु हैं फरमाते हैं के अगर में चाहूँ तो “सूरह फातिहा की तफ़्सीर” से चालीस ऊँट को किताबों से लाद दूँ । 

अहले सुन्नत वल जमाअत का अक़ीदह

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के फ़ज़ाइल और कमालात मुसल्लम हैं चुनांचे हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के लोगों में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद सब से अफ़ज़ल हज़रते अबू बक्र सिद्दीक, फिर हज़रते उमर, फिर हज़रते उस्मान, फिर हज़रते अली शेरे खुदा कर्रा मल्लाहु तआला वजहहुल करीम हैं । 

इसी तरह हुज़ूर सय्यदना सरकार गौसे आज़म अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं,

अक़ीदए अहले सुन्नत वल जमाअत इस बात पर है के बेशक उम्मते मुहम्मदिया सब उम्मतों से अफ़ज़ल है और तमाम उम्मते मुहम्मदिया में अशराए मुबशहरा अफ़ज़ल हैं, और वो दस शख्स ये हैं : हज़रते अबू बक्र, हज़रते उमर, हज़रते उस्मान, हज़रते अली, हज़रते तल्हा, हज़रते ज़ुबेर, हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ, हज़रते साअद, हज़रते सईद, हज़रते अबू उबैदा अल जर्राह, और इन दासों में सब से अफ़ज़ल खुल्फ़ए राशिदीन और इन चारों हज़रात में सब से अफ़ज़ल हज़रते अबू बक्र सिद्दीक, फिर हज़रते उमर, फिर हज़रते उस्मान, फिर हज़रते अली शेरे खुदा रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।   (गुनियातुत तालिबीन)

मआज़ अल्लाह खुदा का बेटा कह दिया

बज़ार व अबू याला मुहद्दिसीन, ने नकल किया है के हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया, मेरे बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशाद है के ऐ अली ! तुम्हे हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम से एक ख़ास मुनासिबत है यहूदियों ने उन से इस कदर बुग्ज़ रखा के मआज़ अल्लाह उन की वालिदा माजिदा हज़रते मरयम पर तुहमत लगाईं और नसारा उन की मुहब्बत में इस कदर हद से बढ़ गए के मआज़ अल्लाह उन को खुदा का बेटा कह दिया । इसी तरह होशियार हो जो के तेरे हक में भी दो गिरोह होंगें एक उन लोगों का गिरोह होगा जो तेरी मुहब्बत में तुझ को तेरे मर्तबे से बहुत ज़ियादा बढ़ जाएगा और दूसरा गिरोह वो होगा जो तुझ से इंतिहाई बुग्ज़ व दुश्मनी रखेगा और तुझ पर बुहतान लगाएगा । 

इस इरशाद मुबारक से साबित होता है के राफ्ज़ी और ख़ारजी दोनों फिरके गुमराह हैं और अहले सुन्नत वल जमाअत यकीनन सिराते मुस्तकीम और हक पर हैं हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु से इंतिहाई वालिहाना मुहब्बतो अक़ीदत रखते हैं और हद से भी नहीं बढ़ते । 

आप की शायरी

फ़साहतो बलाग़त के मैदान में अहले अरब अपने मुकाबिल किसी को खातिर में नहीं लाते थे और बर जस्ता अशआर का ज़बान से अदा हो जाना एक आम बात थी, शायरी के मैदान में भी हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु एक मुनफारिद हैसियत के हामिल हैं चुनांचे अक्सर तवारीखों सीरत की किताबों में आप बेशुमार अशआर हम्द व नात रजज़ के मिलते हैं । चंद अशआर तबर्रुक के तौर पर तहरीर करते हैं । 

ऐ मज़बूत महलों में आराम करने वाले अनक़रीब तुम मिटटी में दफन किए जाओगे, हर रोज़ तुम्हे एक फरिश्ता ये निदा करता है, खुदा वंद तौबा करता हूँ में अपने तमाम गुनाहों से इखलास के साथ निजात की उम्मीद रखते हुए मेरी फर्याद को पहुंच, ऐ फर्याद के पहुंच ने वाले, अपने फ़ज़ल से इस रोज़ के जिस रोज़ पकड़े जाएंगें लोग पेशानियों से, हम अपने रब तआला की तकसीम पर राज़ी हैं की मुझे इल्म से नवाज़ा और जाहिलों को माल से इस लिए के माल अनक़रीब फना व खत्म हो जाने वाला है और इल्म बाकी है इस के लिए ज़वाल नहीं । 

 “आप की करामात” 

फालिज का बीमार अच्छा हो गया

हज़रत अल्लामा ताजुद्दीन सुबकी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब “तबकात” में ज़िक्र फ़रमाया है के एक बार हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु अपने दोनों शहज़ादों हज़रते इमामे हसन व इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हुमा के साथ हरमे काबा में हाज़िर थे एक दरमियान रात में अचानक आप ने एक इल्तिजा करने वाले की आवाज़ को सुना के वो गिड़गिड़ा कर अपनी हाजत के लिए दुआ मांग रहा था और ज़ारो क़तार रो रहा था, आप ने हुक्म दिया के इस शख्स को मेरे पास लाओ वो शख्स इस हाल में हाज़िरे खितमत हुआ के उस के बदन के एक करवट फालिज ज़दाह थी और वो ज़मीन पर घसीटता हुआ आप के सामने आया, आप ने उस का किस्सा मालूम किया तो उस ने अर्ज़ किया, ऐ अमीरुल मोमिनीन ! में बहुत ही बे बाकी के साथ किस्म किस्म के गुनाह में दिन रात लगा रहता था और मेरा बाप जो बहुत ही नेक सालेह और पाबंदे शरीअत मुसलमान था बार बार मुझ को गुनाहों से रोकता था और बार बार मेरी गिरफ्त करता था एक दिन में अपने बाप की नसीहत से नाराज़ हो कर उस को मारा, मेरी मार खा कर मेरा बाप रंजो गम में डूबा हुआ हरमे काबा में आया और मेरे लिए बद दुआ करने लगा अभी इस की दुआ खत्म भी नहीं हुई थी की अचानक मेरा एक करवट पे फालिज का असर हो गया और में ज़मीन पर घसीट कर चलने लगा, गैबी सज़ा से मुझे बड़ी इबरत हासिल हुई और में ने रो रो कर अपने बाप से अपने जुर्म की माफ़ी मांगी और मेरे बाप ने अपनी शफकत पिदरी से मजबूर हो कर मुझ पर रहम खा माफ़ कर दिया और कहा बेटा चल जहाँ में ने तेरे लिए बद दुआ की थी, इस जगह अब तेरे लिए सेहतो सलामती की दुआ मांगूंगा,

चुनांचे में वालिद को ऊंटनी पर सवार कर के मक्का शरीफ ला रहा था के अचानक ऊंटनी एक मक़ाम पर बिदक गई और भागने लगी और मेरा बाप उस की पीठ से गिर कर हलाक हो गया, अब में अकेला हरमे काबा में आ कर रात दिन रो रो कर अल्लाह पाक से अपनी तंदुरुस्ती के लिए दुआ मांगता रहता हूँ । हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने उस की सारी बात सुन कर फ़रमाया, ऐ शख्स अगर वाकई तेरा बाप तुझ से खुश हो गया था तो तू इत्मीनान रख के अल्लाह पाक भी तुझ से खुश हो गया है, उस ने कहा, ऐ अमीरुल मोमिनीन में बाहलफ़ शरई क़सम खा कर कहता हूँ के मेरा बाप मुझ से खुश हो गया था, हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने इस शख्स की हालते ज़ार पर क़सम खा कर उस को तसल्ली दी और चंद रकअत नाज़ पढ़ कर उस की सेहत के लिए दुआ मांगी फिर फ़रमाया, ऐ मुबारक शख्स उठ खड़ा हो जा ये सुनते ही वो बिला तकल्लुफ उठ कर खड़ा हो गया और चलने लगा आप ने फ़रमाया ऐ शख्स अगर तू ने कसम खा कर ये न कहा होता के तेरा बाप तुझ से खुश हो गया था तो में हरगिज़ कभी तेरे लिए दुआ न करता ।  (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जिल्द 2,)

गिरती हुई दिवार थम गई

हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है के एक बार हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु एक दिवार के साए में एक मुक़दमे का फैसला सुनाने के लिए बैठ गए । मुकदमे के दरमियान में लोगों ने शुर मचाया के ऐ अमीरुल मोमिनीन यहाँ से उठ जाएं ये दिवार गिर रही? आप ने निहायत ही इत्मीनान और सुकून के साथ फ़रमाया मुकदमे की कार्रवाई जारी रखो अल्लाह पाक बेहतरीन मुहाफ़िज़ निगेहबान है, चुनांचे इत्मीनान के साथ आप इस मुक़दमे का फैसला फ़रमा कर जब वहां से चल दिए तो फ़ौरन ही दिवार गिर गई । 

जासूस अँधा हो गया

एक शख्स आप के पास रह कर जासूसी किया करता था और आप की ख़ुफ़िया खबरें आप के मुख़ालिफ़ीन को पहुंचाया करता था, आप ने जब उस से मालूम किया तो वो शख्स कस्मे खाने लगा और बरात ज़ाहिर करने लगा, अपने जलाल में आ कर फ़रमाया अगर तू झूठा है तो अल्लाह पाक तेरी आँखों को अँधा कर दे चुनांचे वो अँधा हो गया और लाठी के सहारे चलने लगा । 

फ़रिश्ते खिदमत पर मुकर्रर

हज़रते अबू ज़र रदियल्लाहु अन्हु का बयान है के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे अली को, बुलाने के लिए आप के दौलत कदे यानि घर पे भेजा, में जब हज़रत के घर पंहुचा तो देखा के आप के घर में चक्की बगैर किसी चलाने वाले के अपने आप चल रही है, जब में ने हुज़ूर की बारगाह में इस अजीब करामत का ज़िक्र किया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, ऐ अबू ज़र अल्लाह पाक के कुछ फ़रिश्ते ऐसे भी हैं जो ज़मीन में सेर करते हैं, अल्लाह ने उन फरिश्तों की ये भी डियूटी मुकर्रर फरमा दी की वो मेरी आल की इमदाद व इआनत करते रहें, 

ज़रा सी देर में कुरआन शरीफ पढ़ लेते

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की ये करामत काफी मशहूर व मारूफ है और सही रिवायत के साथ साबित है, के आप घोड़े पर सवार होते वक़्त एक पाऊं रिकाब में रखते और कुरआन शरीफ शुरू करते और दूसरा पैर रिकाब में रख कर घोड़े की ज़ीन पर बैठते इतनी देर में एक खत्म क़ुरआन शरीफ कर लिया करते थे ।  (शवाहिदुंन नुबुव्वत)        

तुझे फांसी दी जाएगी

एक शख्स आप की खिदमत में हाज़िर हुआ तो आप ने उस के हालात बता कर ये भी बताया के तुम को फुलां खजूर के दरखत (पेड़) पर फांसी दी जाएगी, चुनांचे इस शख्स के बारे में जो कुछ आप ने फ़रमाया था वो हर्फ़ बा हर्फ़ बिलकुल सही निकला और आप की पेंशन गोई पूरी हो कर रही । 

दरिया का सैलाब इशारे से ख़त्म हो गया

एक मर्तबा नहरे फुरात में ऐसी खौफनाक तुग़यानी आ गई के सैलाब में तमाम खेतियाँ पानी में डूब गईं लोगों ने आप के दरबार में फरयाद की, आप फ़ौरन ही उठ खड़े हुए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जुब्बा मुबारक व इमाम मुक़द्दसा और चादर मुबारक ज़ेब्तन फरमाए हुए और घोड़े पे सवार हुए लोगों की एक जमाअत साथ में हज़रते इमामे हसन व हुसैन रदियल्लाहु अन्हुमा भी थे आप के साथ पैदल चल पड़े और पुल पर पहुंच कर अपने असा से (लाठी, डंडा, छड़ी) नेहरे फुरात की तरफ इशारा फ़रमाया तो नहर का पानी एक गज़ कम हो गया, जब तीसरी बार इशारा फ़रमाया तो तीन गज़ उतर गया और सैलाब ख़म हो गया लोगों ने शोर मचाया के अमीरुल मोमिनीन ! बस कीजिए इतना ही काफी है । 

अजीबो गरीब पानी का चश्मा

मक़ामे सिफ़्फ़ीन को जाते हुए आप का लश्कर एक ऐसे मैदान से गुज़रा जहां पानी नहीं मिलता था, पूरा लश्कर प्यास की शिद्दत से बे ताब हो गया वहां के गिरजा घर में एक राहिब रहता था, उस ने बताया के यहाँ से दूर दो कोस के फासले पर पानी मिल सकता है कुछ लोगों ने इजाज़त मांगी ताके वहां से जा कर पानी लाएं, ये सुन कर आप अपने खिच्चर पर सवार हो गए और एक जगह आप ने इशारे से फ़रमाया, इस जगह तुम लोग ज़मीन खोदो चुनांचे लोगों ने ज़मीन की खुदाई शुरू की तो उस में एक पथ्थर ज़ाहिर हुआ लोगों ने इस पथ्थर को निकालने की बहुत कोशिश की लेकिन तमाम आलात व औज़ार बेकार हो गए और वो पथ्थर न निकल सका ये देख कर आप को जलाल आ गया और आप ने अपनी सवारी से उतर कर आस्तीन चढ़ाई और दोनों हाथों की उँगलियों को उस पथ्थर की दराज़ में डाल कर ज़ोर लगाया तो वो पथ्थर निकल पड़ा और इस के नीचे से एक निहायत ही साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ चश्मा ज़ाहिर हो गया और तमाम लश्कर इस पानी से सेराब हो गया लोगों ने अपने जानवरों को भी पिलाया और लश्कर के तमाम मश्कों को भी भर लिया आप ने इस पथ्थर को उस की जगह पे रख दिया । गिरजा घर का ईसाई राहिब आप की ये करामत देख कर सामने आया और आप से पूछा के:

क्या आप फरिश्ता हैं? आप ने फ़रमाया नहीं ।
क्या आप नबी हैं?आप ने फ़रमाया नहीं । 

फिर आप कौन हैं? आप ने फ़रमाया में पैग़म्बरे इस्लाम मुहम्मद्दे अरबी खातमुन नबीइन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का सहाबी हूँ और मुझ को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने चंद बातों की वसीयत फ़रमाई है ये सुन कर वो ईसाई राहिब (ईसाईयों का मज़हबी पेशवा, पादरी)  कलमा पढ़ कर मुसलमान हो गया, आप ने उससे पूछा के तुम ने इतनी मुद्दत तक इस्लाम क्यों नहीं क़ुबूल किया था? राहिब ने कहा हमारी किताबों में ये लिखा हुआ है के इस गिरजा घर के करीब में एक पानी का छुपा हुआ चश्मा है और इस पानी के चश्मे को वही शख्स ज़ाहिर करेगा जो या तो नबी होगा या नबी का सहाबी होगा चुनांचे में और मुझ से पहले बहुत से राहिब इस गिरजा घर में इसी इन्तिज़ार में थे अब आज आप ने ये पानी का चश्मा ज़ाहिर कर दिया तो मेरी मुराद बर आई,

राहिब की तकरीर सुन कर आप रो पड़े और इतना रोए के दाढ़ी मुबारक भीग गई आंसुओं से, और फिर आप ने इरशाद फ़रमाया अल्लाह पाक का शुक्र है के इन लोगों की किताबों में भी मेरा ज़िक्र है । ये राहिब मुस्लमान हो कर आप के खादिमो में शामिल हो गए और आप के लश्कर में दाखिल हो कर शामियों से जंग करते हुए शहीद हो गए और आप ने उन को अपने दस्ते मुबारक से दफन किया और उन के लिए मगफिरत की दुआ फ़रमाई । 

तू शोहर नहीं है अपनी बीवी का बेटा है

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के काशानए खिलाफत से कुछ दूर एक मस्जिद के पास में दो मियां बीवी झगड़ा करते रहे सुबह को हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने दोनों को बुलाया और झगड़े की वजह पूछी, शोहर ने अर्ज़ किया, ऐ अमीरुल मोमिनीन ! में क्या करूँ निकाह के बाद अचानक इस औरत से बहुत नफरत पैदा हो गई, ये देख कर बीवी मुझ से झगड़ा करने लगी फिर बात बढ़ गई ।  आप ने तमाम हाज़रीने दरबार को बाहर निकाल दिया और औरत से फ़रमाया देख में तुझ से जो कुछ पूछूं उस का सच सच जवाब देना ।  आप ने पूछा  के ऐ औरत तेरा नाम ये है और तेरे बाप का नाम ये है ? औरत ने कहा बिलकुल दुरुस्त आप ने फ़रमाया, फिर आप ने पूछा ऐ ! औरत याद कर तू ज़िना कारी से हामला (प्रेग्नेंट) हो गई थी और एक मुद्दत तक तू और तेरी माँ इस हमल को छुपाती रही जब दर्द शुरू हुआ तो तेरी माँ तुझे घर से बाहर ले गई और जब बच्चा पैदा हुआ तो उस को एक कपड़े में लपेट कर तूने मैदान में डाल दिया इत्तिफ़ाक़ से एक कुत्ता इस बच्चे के पास आया तेरी माँ ने इस कुत्ते के पथ्थर मारा लेकिन वो पथ्थर बच्चे को लगा और उस का सर फट गया तेरी माँ को बच्चे पे रहम आ गया और उस ने बच्चे के ज़ख्म पर पट्टी बाँध दी, फिर तुम दोनों वहां से भाग गईं उस के बाद इस बच्चे की तुम दोनों को कुछ खबर ही नहीं मिली बता क्या ये वाक़िआ सच है? 

औरत ने कहा हाँ ! अमीरुल मोमिनीन ये पूरा वाक़िआ हर्फ़ बा हर्फ़ सच है । फिर आप ने फ़रमाया ऐ मर्द तू अपना सर खोल कर इस को दिखा दे? मर्द ने सर खोला तो उस ज़ख्म का निशान मौजूद था उस के बाद हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया । ऐ औरत ये तेरा शोहर नहीं है बल्कि तेरा बेटा है तुम दोनों अल्लाह का शुक्र अदा करो के उस ने तुम दोनों को हराम काम से बचा लिया ।  

रेफरेन्स हवाला                     

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) तारीख़ुल खुलफ़ा,
(5) शजराए तय्यबा नुरुल अबसार,
(6) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(7) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(8) सीरते हज़रते सय्य्दना अली मुर्तज़ा,
(9) हज़रते अली के सौ 100, वाक़िआत,
(10) खुलफाए राशिदीन,    

        

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