हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु

हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु

विलादत शरीफ

मुजद्दिदे बरकातियत, बक़ीयतुस सलफ़, हुज्जतुल खलफ, हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु! की विलादत 5, मुहर्रमुल हराम 1272, हिजरी को मारहरा मुक़द्दसा में हुई।

इस्मे गिरामी

आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “सय्यद अबुल कासिम” और लक़ब “शाहजी मियां” हज़रत सय्यद शाह आले रसूल अहमदी रहमतुल्लाह अलैह ने तजवीज़ फ़रमाया, और “इस्माईल हसन” आप के नाना जान हज़रत सय्यद शाह गुलाम मुहीयुद्दीन अमीर आलम रहमतुल्लाह अलैह ने रखा।

वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का नाम मुबारक “हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद सादिक कादरी” मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह है, और आप के दादा जान “हज़रत सय्यद शाह औलादे रसूल” मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह, हैं, और परदादा का नाम हज़रत सय्यद शाह आले बरकात सुथरे मियां कुद्दीसा सिररुहु! हैं और आप के जद्दे अमजद “हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी” मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह हैं।

तालीमों तरबियत

हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु! की बिस्मिल्लाह ख्वानी की रस्म हज़रत सय्यद शाह आले रसूल अहमदी रहमतुल्लाह अलैह ने अदा फ़रमाई, इब्तिदाई शुरूआती तालीम वालिद माजिद के ज़ेरे सायाए करम में हुई, आप ने जिन उल्माए किराम और फकीहे वक़्त से इल्मे दीन हासिल किया वो अपने वक़्त के उम्दह आलिमे दीन थे,
हज़रत ताजुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह ने आप के असातिज़ाए किराम के बारे में लिखा है के: आप ने हाफ़िज़ वली दादा खान साहब! मारहरवी, व हाफ़िज़ कादिर अली साहब लखनवी, व हाफ़िज़ अब्दुल करीम साहब मलिकपुरि से कुरआन शरीफ हिफ़्ज़ किया, हज़रत मौलाना अब्दुश शकूर साहब, मौलाना अब्दुल गनी साहब, मौलाना मुहम्मद अली साहब लखनवी, मुहम्मद हसन साहब सम्भली, मौलाना फ़ज़्लुल्लाह साहब फिरंग महली, ताजुल फुहूल हज़रत अल्लामा अब्दुल कादिर बदायूनी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन से दरसी उलूमो फुनून हासिल किए,
राहे सुलुको तरीकत की तालीम हज़रत सय्यद शाह आले रसूल अहमदी, सिराजुस सालीकीन हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मियां मारहरवी, अपने वालिद माजिद हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद सादिक कादरी” मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह और ताजुल फुहूल हज़रत अल्लामा अब्दुल कादिर बदायूनी से हासिल फ़रमाई।

इजाज़तो खिलाफत

आप को बैअतो खिलाफत अपने नाना जान हज़रत सय्यद शाह गुमाल मुहीयुद्दीन अमीर आलम रहमतुल्लाह अलैह! से हासिल थी, और आप को अपने वालिद माजिद “हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद सादिक कादरी” मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह है ने भी खिलाफत से नवाज़ा था।

सीरतो ख़ासाइल

हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु! ने 30, साल की उमर में अपने ज़ोको शोक से हिफ़्ज़ किया इस की ख़ुशी में आप के वालिद माजिद ने ज़िला सीतापुर! में एक मस्जिद! तामीर फ़रमाई, इन उलूमो फुनून के अलावा हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन कुद्दीसा सिररुहु! इल्मे जफ़र, रमल, इल्मे तकसीर, में भी अपनी नज़ीर आप थे, शेरो सुखन से भी दिलचस्पी थी, “शैदा व वकार” तखल्लुस था,
हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन कुद्दीसा सिररुहु! बचपन से ही बुज़ुरगों के नक़्शे कदम पर गामज़न थे, वालिद माजिद की तरबियत और निगाहें करम ने ज़ाती जोहर और चमकाया, फिर आने वाले दिनों में ज़माने ने देखा के ये खानदाने नुबुव्वत का शहज़ादाह अपने बड़ों की शानदार रिवायतों का पासबान मुहाफ़िज़ साबित हुआ, और जो खानदानी वुक़अत क़द्र! दब कर रह गई थी उन्हें ज़िंदह कर के ज़माने के सामने पेश कर दिया,

हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु! खानदाने बरकात सादा तबियत, हौसला मंद, मुख्लिस और हमदर्द बुज़रुग थे, फ़ितरी बुराई आप को छू कर भी नहीं गुज़री थी, दीन और सुन्नियत पर साबित कदम रहे, बुज़ुरगों की रिवायतों का एहतिराम और उन की हिफाज़त, अच्छी सोच, अमल की पाबंदी, आप की बुनियादी खूबियां थीं, हज़रत ताजुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह के मुताबिक हज़रत! सूरतों सीरत दोनों ऐतिबार से अपने अकाबिर का नमूना और उनकी अच्छी खूबियों के और पसन्दीदाह ख़ासाइल के मालिक और वारिस थे,
इल्म परवरी, मुआमलात साफ़ रखना, जुरअत मंदी, कुनबा परवरी, और खानदानी रिवायतों को बाद वालों तक पहुंचाने में खुसूसी दिलचस्पी रखते थे, दुनियावी रोब बिलकुल क़ुबूल नहीं करते थे, लम्बा कद, गेहूंआ रंग, बारीक नाक, बारीक लब, खूबसूरत छोटे दाँत, और कन्धा चौड़ा था, तलवार चलाने, घोड़सवारी और तैराकी में माहिर थे, यादगारों और तबर्रुकात से खुसूसी दिल चस्पी थी, 1300, हिजरी में हज्जे बैतुल्लाह से मुशर्रफ हुए जब वापस तशरीफ़ लाए तो मदीना शरीफ से अज्वा खजूर! का बीज साथ लाए और हवेली के सहन में लगाया, खजूर का ये मुबारक दरख़्त आज भी घर में मौजूद है जिस की उमर 138, साल की हो चुकी है।

हर रोज़ दो रूपये मिलते

आप की हौसला मंदाना गैरत, फ़ितरी शुजाअत हमदर्दाना तबियत के चंद वाक़िआत के हवाले से हज़रत शरफ़े मिल्लत फरमाते हैं: हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु! के खास खलीफा डॉक्टर अय्यूब हसन कादरी अबुल कास्मी! ने हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु! से एक मर्तबा रोज़गार की तंगी का शिकवा किया, हज़रत ने फ़रमाया: आप की रोज़ाना की ज़रूरतें कितने में पूरी हो जाती हैं? उन्होंने अर्ज़ किया: दो रूपये में, ये उस वक़्त का दो रूपया है जिस की हैसियत आज के दो सो रूपये से ज़ियादा होती थी, हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु! ने फ़रमाया: जाइए आप को रोज़ाना अल्लाह पाक की जानिब से गैब से दो रूपये मिलते रहेगें, डॉक्टर अय्यूब हसन कादरी कुद्दीसा सिररुहु!

ने अपनी ज़बान से खानदान के लोगों को बयान किया के इस के बाद मुझे हर सुबह तकिये के नीचे दो रूपये मिल जाते, ये वाक़िआ हज़रत की करामत और हमदर्दाना शफकत दोनों की आइनादारी करता है,
हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु! बहुत मज़बूती के साथ दीनो सुन्नियत और खानदानी मामूलात पर पाबंदी रखते थे, इस लिए अल्लाह पाक ने आप के आप के काम और बात, ईमान और अमल, ज़बान और कलम, सब में बरकतें दे रखी थीं, आप की दुआओं से ना जाने कितने मरीज़ शिफ़ायाब हुए, बेशुमार मुकदमों के फैसले हुए, बहुत सी गोदें हरी हुईं, सैंकड़ों मुसीबत ज़दों ने चैन की साँस ली, हज़ारों गुनहगारों ने तौबा की, कई एक सिर्फ आप के चेहरे को देख कर इस्लाम से मुशर्रफ हुए और बहुतों ने राहे सुलूक की मंज़िलें तय कीं,

इल्मी ज़ोक मशाइखे मारहरा की वरासत रहा है, यही सबब है के इस खानकाह आली शान में बुज़ुरगों की दूसरी नादिर व नायाब चीज़ों के साथ साथ एक अज़ीमुश्शान कदीम क़ुतुब खाना भी है, हहज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु! को भी इल्मी ज़ोक वरसे में मिला था, आप ने ना सिर्फ ये के खुद ही उलूमो फुनून हासिल किए बल्के अज़ीज़ों के जमा किए हुए नादिर और पुराने खुतुब खाने को संभाल कर रखा और उसे हिफाज़त के साथ अगली नस्लों के हवाले किया ।

आप को मुजद्दिदे बरकातीयत क्यों कहते

खानदाने बरकात पर एक ज़माना ऐसा भी आया जब इल्मो अमल से दूरी होने लगी थी उस वक़्त आप ने अपनी कोशिशों से खुद अपने शोक से इल्मे दीन पढ़ा सीखा, और अपनी आलो औलाद, और अइज़्ज़ा, अक़रबा, दोस्त अहबाब, को इल्मे दीन सीखा कर तज्दीदी कार नामे अंजाम दिए, अपने फ़रज़न्दाने गिरामी खास कर अपने नवासों को इल्मे शरीअत व तरीकत में मज़बूत से मज़बुत किया, यहाँ तक के अपने घर की बेटियों को भी हाफ़िज़ा कराया, खानदानी इल्म को जमा किया, उल्माए किराम, व मशाइखे इज़ाम, की रसाई को खानकाह में बढ़ाया, और खानकाहे आलिया कदीरिया बरकातिया! की इल्मी शनाख्त और खानकाही रिवायतों को खूब मज़बूत किया, गर्ज़ के कोई ऐसा अमल नहीं छोड़ा जो खानकाह की पुरानी रिवायतों और क़द्रो मन्ज़िलत को बहाल ना कर दे इस लिए आज आप को “मुजद्दिदे बरकातीयत” के लक़ब से याद किया जाता है।

आप के कुछ अहम् कार नामे

आप का सब से नुमाया वस्फ़ तसल्लुब फिद्दीन यानि अगर आप किसी को भी राहे हक से ज़र्रा बराबर भी अलग थलग देखते तो उस की इस्लाह करने से बिलकुल ना झिझकते थे ख़्वाह वो कितना ही करीबी क्यों ना हो, तहरीके आज़ादी, तरके मवालात और खिलाफत मोमेंट में अपने साहबज़ादे हज़रत ताजुल उलमा रहमतुल्लाह अलैह और दोनों हमशीरा ज़ादों हज़रत सय्यदुल उलमा और हज़रत अहसनुल उलमा के साथ तंज़ीम काइम कर के खानकाहे बरकातिया! का मौक़िफ़ ज़माने को बताया, शहज़ादगान को ज़ेवरे तालीम से आरास्ता किया, तबर्रुकात खानदानी को यकजा किया, अपने खानदानी क़ुतुब खाने को अज़ सरे नो काइम किया और तमाम मखतूतात को महफूज़ किया,

आप की तसानीफ़

हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु! ने तदरीस, तस्नीफ़, इर्शादो हिदायत, मखलूके खुदा की खिदमत सभी मैदान आप की तवज्जुह से सरफ़राज़ रहे, तदरीस का सिलसिला अपने खानकाही मदरसे में रहा, तब्लीग के लिए दूर दराज़ इलाकों में तशरीफ़ ले गए, मसनदे गौसिया बरकातिया से एक आलम को कादरी जाम पिलाते रहे, और दुआओं, तावीज़ और सच्ची सीधी रहनुमाईयों और शफीक ग़मग़ुसारियों से खुदा की मखलूक के दरदे गम का इलाज करते, तस्नीफी शुहरत से दिलचस्पी नहीं थी फिर भी वक़्ती तक़ाज़ों के पेशे नज़र कई अहम् किताबें कलम के सुपुर्द कीं जो हक पसंदी के जज़्बे और इल्मी गहराई को ज़ाहिर करती हैं, आप की किताबों के नाम ये हैं: (1) रिसाला आमाल व तकसीर, (2) करामाते सुथरे मियां, (3) मजमूआ कलाम, (4) मजमूआ सलासिल मन्ज़ूम।

आप के खुलफाए किराम

आप ने बेशुमार उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम को खिलाफत से नवाज़ा जिन में से चंद के नाम ये हैं: (1) हज़रत सय्यद शाह गुलाम मुहीयुद्दीन फ़कीर आलम, (2) हज़रत सय्यद शाह औलादे रसूल मुहम्मद मियां, (3) हज़रत सय्यद शाह आले इबा कादरी, (4) सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा, (5) अहसनुल उलमा हज़रत सय्यद शाह मुस्तफा हैदर हसन मियां रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

निकाह मस्नून

हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन शाहजी मियां मारहरवी कुद्दीसा सिररुहु! का अक़्द मस्नून (निकाह) मामू ज़ाद बहन “सय्यदह मंज़ूर फातिमा” बिन्ते सय्यद नूरुल मुस्तफा इब्ने सय्यद गुलाम मुहीयुद्दीन अमीर आलम के हमराह हुआ, जिन से दो साहबज़ादे (1) सय्यद गुलाम मुहीयुद्दीन फ़कीर आलम, (2) ताजुल उलमा सय्यद औलादे रसूल मुहम्मद मियां, और चार बेटियां पैदा हुईं, (1) ज़ाहिद फातिमा, (2) ऐजाज़ फातिमा, (3) हुमैरा और इकराम फातिमा, छोटी साहबज़ादी इकराम फातिमा, शहर बानो, हज़रत सय्यदुल उलमा! और अहसनुल उलमा! की वालिदा माजिदा हैं।

इन्तिक़ाले पुरमलाल

साहिबे उर्से कास्मि! हज़रत सय्यद शाह अबुल कासिम इस्माईल हसन कुद्दीसा सिररुहु! का विसाल 1/ सफारुल मुज़फ्फर 1347/ हिजरी को मारहरा शरीफ में हुआ, आप ने अपनी हयाते ज़ाहिरी ही में अहसनुल उलमा हज़रत सय्यद मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह को अपनी ज़ात का सज्जादा नशीन फरमाकर अपनी मसनद का जानशीन बनाया, आज अल्हम्दुलिल्लाह इस मसनद पर इन के फ़रज़न्दे अकबर अमीने मिल्लत हज़रत अमीन मियां बरकाती जलवा फरोज़ हैं, और उर्से कास्मि! की रौनक इनके दम से दो चंद (डबल, ज़ियादा) हैं

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुकद्द्स मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी हिन्द में ज़ियारत गाहे खलाइक है,

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

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रेफरेन्स हवाला

  • बरकाती कोइज़
  • तारीखे खानदाने बरकात
  • तज़किरा मशाइखे मारहरा

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