हज़रत ख्वाजा अज़ीज़ कुरकी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा अज़ीज़ कुरकी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

सीरतो ख़साइल

साहिबे विलायत मर्दे खुदा, हज़रत ख्वाजा अज़ीज़ कुरकी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह का “अज़ीज़” नाम था, और कुर्क के रहने वाले थे इस लिए कुरकी कहलाते थे, औरादो वज़ाइफ़ ज़िक्र में मसरूफ रहते थे, सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह! “फवाईदुल फवाइद” में फरमाते हैं: हज़रत ख्वाजा अज़ीज़ कुरकी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह अज़ीम बुज़ुर्गों में शुमार होते हैं, और बदायूं में रहते थे, हज़रत ख्वाजा हसन संजरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के हज़रत मेने सुना है के वो ज़िंदा चिड़िया निगल जाते थे, और कुछ देर बाद उस को हलक से निकाल कर ज़िंदा उड़ा देते थे, सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया में ने ये हाल और वाक़िआ नहीं देखा, अलबत्ता सुना है,
इस के बाद फ़रमाया के ये भी सुना है के जाड़ों के मौसम में रात के वक़्त वो जलते तन्नूर में दाखिल हो जाते और सुबह को निकल आते थे, आप कुर्क के रहने वाले थे, और कानो के बुँदे बेचा करते थे जो औरतें पहिनती हैं, लेकिन इस हाल में भी यादे इलाही में मुस्तग़रक रहते थे, एक रोज़ कुर्क के हाकिम ने ज़बरदस्ती कैद कर दिया, जब लोगों ने आप की नेक बख्ती बुज़ुर्गी खुदा शनासी का हाल बाद शाह से बताया, तो उसने आप को रिहा कर दिया, लोग आप को कैद खाने से बाहर निकालने गए मगर आप बाहर ना आए और आप ने इरशाद फ़रमाया जब तक हाकिमे शहर को बारगाहे इलाही से सज़ा ना मिलजाए बाहर ना आऊँगा, चुनांचे चंद रोज़ बाद वालिये शहर को सख्त जानी व माली नुकसान पंहुचा तब आप कैद खाने से बाहर तशरीफ़ लाए।

इन्तिक़ाले पुरमलाल

666/ हिजरी को आप का इन्तिकाल हुआ।

मज़ार शरीफ

हज़रत पीर मक्का शाह रहमतुल्लाह अलैह की मरकद के आस पास में ही आप का मज़ार मुबारक यूपी के ज़िला बदायूं शरीफ में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

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रेफरेन्स हवाला

(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन

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