हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-23)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-23)

माले गनीमत की तकसीम

ताइफ़ से मुहासरा उठा कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम “जीराना” तशरीफ़ लाए | यहाँ अमवाले गनीमत का बहुत बड़ा ज़खीरा जमा था चौबीस हज़ार ऊँट, चालीस हज़ार से ज़ाइद बकरियां, कई मन चांदी, और छेह हज़ार कैदी |असीराने जंग के बारे में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन के रिश्तेदारों के आने का इन्तिज़ार फ़रमाया | लेकिन कई दिन गुजरने के बा वजूद जब कोई न आया तो आप ने माले गनीमत को तकसीम फरमा देने का हुक्म दे दिया | मक्का और इस के अतराफ़ के नो मुस्लिम रईसों को आप ने बड़े बड़े इनआमों से नवाज़ा | यहाँ तक की किसी को तीन सो ऊँट किसी को दो सो ऊँट किसी को सो ऊँट इनआम के तौर पर अता फरमा दिया | इसी तरह बकरियों को भी निहायत फय्याज़ी के साथ तकसीम फ़रमाया |

अंसारियों से ख़िताब

जिन लोगों को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बड़े बड़े इनआमात से नवाज़ा वो उमूमन मक्के वाले नो मुस्लिम थे | इस पर बाज़ नो जवान अंसारियों ने कहा की “रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुरेश को इस क़दर अता फरमा रहे हैं और हम लोगों का कुछ भी ख्याल नहीं फरमा रहे हैं | हालां की हमारी तलवारों से खून टपक रहा है |और अंसार के कुछ नो जवानो ने आपस में ये भी कहा और और अपनी दिल शिकनी का इज़हार किया की जब शदीद जंग का मौका होता है तो हम अंसारियों को पुकारा जाता है और गनीमत दूसरे लोगों को दी जा रही है |आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब ये चर्चा सुना तो तमाम अंसारियों को एक खेमे में जमा फ़रमाया और उन से इरशाद फ़रमाया की ऐ ! अंसार क्या तुम लोगों ने ऐसा ऐसा कहा है? लोगों ने अर्ज़ किया की या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमारे सरदारों से किसी ने भी कुछ नहीं कहा है | हाँ चंद नाइ उम्र के लड़कों ने ज़रूर कुछ कह दिया है |हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंसार को मुख़ातब फरमा कर इरशाद फ़रमाया कीक्या ये सच नहीं है की तुम पहले गुमराह थे मेरे ज़रिए से खुदा ने तुम को हिदायत दी, तुम मुतफ़र्रिक़ और परागन्दा थे, खुदा ने मेरे ज़रिए से तुम में इत्तिफाक या इत्तिहाद पैदा फ़रमाया, तुम मुफ़लिस थे खुदा ने मेरे ज़रिए से तुम को गनी बना दिया| हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ये फरमाते जाते थे और अंसार के हर जुमले को सुन कर ये कहते थे की “अल्लाह पाक” और रसूल का हम पर बड़ा एहसान है|

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की ऐ अंसार ! तुम लोग यूं मत कहो, बल्कि मुझ को ये जवाब दो की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जब लोगों ने आप को झुटलाया तो हम लोगों ने आप की तस्दीक की | जब लोगों ने आप को छोड़ दिया तो हम लोगों ने आप को ठिकाना दिया | जब आप बे सरो सामानी की हालत में आए तो हम ने हर तरह से आप की खिदमत की | लेकिन ऐ अंसारियों ! में तुम से एक सवाल करता हूँ तुम मुझे इस का जवाब दो | सवाल ये है की क्या तुम लोगों को ये पसंद नहीं है की सब लोग यहाँ से मालो दौलत ले कर अपने घर जाओ | खुदा की कसम ! तुम लोग जिस चीज़ को ले कर अपने घर जाओगे वो उस मालो दौलत से बहुत बढ़ कर है जिस को वो लोग ले कर अपने घर जाएंगें |ये सुन कर अंसार बे इख़्तियार चीख पड़े की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इस पर हम राज़ी हैं हम को सिर्फ अल्लाह पाक का रसूल चाहिए और अक्सर अंसार का तो ये हाल हो गया की वो रोते रोते बे करार हो गए और आँसूओं से उन की दाढ़ी तर हो गई | फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंसार को समझाया की मक्के के लोग बिलकुल ही नो मुस्लिम हैं | मेने इन लोगों को जो कुछ दिया है ये उन के इस्तेहक़ाक़ की बिना पर नहीं है बल्कि सिर्फ उन के दिलों में इस्लाम की उल्फत पैदा करने की गरज़ से दिया है फिर इरशाद फ़रमाया की अगर हिजरत न होती तो में अंसार से होता और अगर तमाम लोग किसी वादी और घाटी में चले और अंसार किसी दूसरी वादी और घाटी में चलें तो में अंसार की वादी और घाटी में चलूँगा |

कैदियों की रिहाई

आप जब माले गनीमत की तकसीम से फारिग हो चुके तो कबीलए बनी साअद के रईस ज़ुहैर अबू सर्द चंद मुअज़्ज़िज़ीन के साथ बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और असीराने जंग की रिहाई के बारे में दरख्वास्त पेश की | इस मोके पर ज़ुहैर अबू सर्द ने एक बहुत मुआस्सिर तकरीर की, जिस का खुलासा ये है की: ऐ मुहम्मद ! सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप ने हमारे खानदान की एक औरत हलीमा का दूध पिया है | आप ने जिन औरतों को इन छप्परों में कैद कर रखा है उन में से बहुत सी रज़ाई फूफियां और बहुत सी आप की खालाएँ हैं | खुदा की कसम अगर अरब के बादशाहों में से किसी बादशाह ने हमारे खानदान की किसी औरत का दूध पिया होता तो हम को उससे मुहब्बत ज़ियादा उम्मीदें होती और आप से तो और भी ज़ियादा तवक्को वाबस्ता है लिहाज़ा आप इन सब कैदियों को रिहा कर दीजिए ज़ुहैर की तकरीर सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बहुत ज़ियादा मुतअस्सिर हुए और आप ने फ़रमाया की में ने आप लोगों का बहुत ज़ियादा इन्तिज़ार किया मगर आप लोगों ने आने में बहुत ज़ियादा देर लगा दी |

बहर कैफ मेरे खानदान वालों के हिस्से में जिस क़दर लोंडीं गुलाम आए हैं में ने उन सब को आज़ाद कर दिया | लेकिन अब आम रिहाई की तदबीर ये है की नमाज़ के वक़्त जब जमा हो तो आप लोग अपनी दरख्वास्त सब के सामने पेश करें | चुनांचे नमाज़े ज़ोहर के वक़्त उन लोगों ने ये दरख्वास्त मजमे के सामने पेश की और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मजमे के सामने ये इरशाद फ़रमाया की मुझ को सिर्फ अपने खानदान वालों पर इख़्तियार है लेकिन में तमाम मुसलमानो से सिफारिश करता हूँ की कैदियों को रिहा कर दिया जाए ये सुन कर तमाम अंसार व मुहाजिरीन और दुसरे तमाम मुजाहिदीन ने भी अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारा हिस्सा भी हाज़िर है | आप इन लोगों को भी आज़ाद फरमा दें | इस तरह फ़ौरन छेह हज़ार असीराने जंग की रिहाई हो गई |बुखारी शरीफ की रिवायत ये है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दस दिनों तक “हवाज़िन” के वफ्द का इन्तिज़ार फरमाते रहे | जब वो लोग न आए तो आप ने माले गनीमत और कैदियों को मुजाहिदीन के दरमियान तकसीम (बाँटना) फरमा दिया | इस के बाद जब “हवाज़िन” का वफ्द आया और उन्हों ने अपने इस्लाम का ऐलान कर के ये दरख्वास्त पेश की, की हमारे माल और कैदियों को वापस कर दिया जाए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की मुझे सच्ची बात ही पसंद है | लिहाज़ा सुनलो ! की माल और कैदी दोनों को में तो वापस नहीं कर सकता | हाँ इन दोनो में से एक को तुम इख़्तियार कर लो या माल ले लो या कैदी | ये सुन कर वफ्द ने कैदियों को वापस लेना मंज़ूर किया | इस के बाद आप ने फौज के सामने एक खुत्बा पढ़ा और हम्दो सना के बाद इरशाद फ़रमाया की”ऐ मुसलमानो ! ये तुम्हारे भाई ताइब हो कर आ गए हैं और मेरी ये राए है की में इन के कैदियों को वापस कर दूँ तो तुम में से जो ख़ुशी ख़ुशी इस को मंज़ूर कर ले वो अपने हिस्से के कैदियों को वापस कर दे और जो ये चाहे की इन कैदियों के बदले में दूसरे कैदियों को ले कर इन को वापस करे तो में ये वादा करता हूँ की सब से पहले अल्लाह पाक मुझ को माले गनीमत अता फरमाएगा में इस में से उस का हिस्सा दूंगा | ये सुन कर सारी फौज ने कह दिया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम सब ने ख़ुशी ख़ुशी सब कैदियों को वापस कर दिया | आप ने इरशाद फ़रमाया की इस तरह पता नहीं चलता की किस ने इजाज़त दी और किस ने नहीं दी? लिहाज़ा तुम लोग अपने अपने चौधिरियों के ज़रिए मुझे खबर दो चुनांचे हर कबीले के चौधिरियों ने दरबारे रिसालत में आ कर अर्ज़ कर दिया की हमारे कबीले वालों ने खुश दिली के साथ अपने हिस्से के कैदियों को वापस कर दिया |

ग़ैब दां नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हवाज़िन के वफ्द से पूछा की मालिक बिन ओफ़ कहाँ है? उन होने बताया की वो “सकीफ” के साथ ताइफ़ में हैं | आप ने फ़रमाया की तुम लोग मालिक बिन ओफ़ को खबर कर दो की अगर वो मुस्लमान हो कर मेरे पास आ जाए तो में उस का सारा माल उस को वापस दे दूंगा | मालिक बिन ओफ़ को जब ये खबर मिली तो वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में मुस्लमान हो कर हाज़िर हो गया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन का कुल माल उन को दे दिया वादे के मुताबिक एक सौ ऊँट इस के अलावा भी इनायत फरमाए | मालिक बिन ओफ़ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस खुलके अज़ीम से बेहद मुतअस्सिर हुए और आप की मदहो सना में एक क़सीदा पढ़ा जिस के दो शेर ये हैं: यानि तमाम इंसानो में हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मिस्ल न मेने देखा न सुना जो सब से ज़ियादा वादे को पूरा करने वाले और सब से ज़ियादा माले कसीर देने वाले हैं | और जब तुम चाहो उन से पूछलो वो कल आइंदा की खबर तुम को बता देंगें | रिवायत है की नाते पाक के ये अशआर सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन से खुश हो गए और इन के लिए कलिमाते खेर फरमाते हुए इन्हें बतौरे इनआम एक हुल्ला यानि एक जोड़ा भी इनायत फ़रमाया |

उमरा जीईराना

इस के बाद नबी करीम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “जीईराना” ही से उमरा का इरादा फ़रमाया और एहराम बांध कर मक्के तशरीफ़ ले गए और उमरा अदा करने के बाद फिर मदीने वापस तशरीफ़ ले गए और ज़ुल कादा सं. 8, हिजरी को मदीने मे दाखिल हुए |

सं. 8, हिजरी के मुतफ़र्रिक वाक़िआत :-

(1) इसी साल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साहबज़ादे हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु हज़रते मरिया क़िब्तिया रदियल्लाहु अन्हा के शिकम से पैदा हुए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इन से बहुत मुहब्बत थी | तक़रीबन डेढ़ साल की उम्र में इन की वफ़ात हो गई | इत्तिफाक से जिस दिन इन की वफ़ात हुई सूरज गिरहन हुआ चूँकि अरबों का अक़ीदा था की किसी अज़ीमुश्शान इंसान की मोत पर सूरज गिरहन लगता है | इस लिए लोगों ने ये ख्याल कर लिया की ये सूरज गिरहन हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु की वफ़ात का नतीजा है | जाहिलियत के इस अक़ीदे को दूर फरमाने के लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक खुत्बा दिया जिस में आप ने इरशाद फ़रमाया की चाँद और सूरज में किसी की मोत व हयात की वजह से गिरहन नहीं लगता है | अल्लाह पाक इस के ज़रिए अपने बन्दों को खौफ दिलाता है | इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़े कुसूफ़ जमात के साथ पढ़ी |

(2) इसी साल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहबज़ादी हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा ने वफ़ात पाई | ये साहब ज़ादी साहिबा हज़रते अबुल आस बिन रबी रदियल्लाहु अन्हु की मनकूहा थीं | इन्हों ने एक फ़रज़न्द जिस का नाम “अली” था | और एक लड़की जिन का नाम “उमामा” था, अपने बाद छेड़ा | हज़रते बीबी फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा ने हज़रते अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु अन्हु को वसीयत की थी की मेरी वफ़ात के बाद आप हज़रते उमामा रदियल्लाहु अन्हा से निकाह कर लें | चुनांचे हज़रते अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते सय्यिदह फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की वसीयत पर अमल किया|

(3) इसी साल मदीने में गल्ले की गिरानी बहुत ज़ियादा बढ़ गई तो सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने दरख्वास्त की, के या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप गल्ले का भाव मुकर्रर फरमा दें तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गल्ले की कीमत पर कंट्रोल फरमाने से इंकार कर दिया और इरशाद फ़रमाया की अल्लाह पाक ही भाव मुकर्रर करने वाला है वो ही रोज़ी को तंग करने वाला, कुशादा करने वाला, रोज़ी पहुंचने वाला है |

(4) कुछ मुअर्रिख़ीन के बक़ौल इसी साल मस्जिदे नबवी में मिम्बर शरीफ रखा गया | इस से पहले हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक सुतून से टेक लगा कर खुत्बा पढ़ा करते थे और कुछ मुअर्रिख़ीन का क़ौल है की मिम्बर सं. 7, हिजरी में रखा गया | ये मिम्बर लकड़ी का बना हुआ था | हज़रते अमीरे मुआविया रदियल्लाहु अन्हु ने चाहा की में इस मिम्बर को तबर्रुकन मुल्के शाम ले जाऊं मगर उन्हें ने जब इस को इस की जगह से हटाया तो अचानक सारे शहर में ऐसा अँधेरा छ गया की दिन में तारे नज़र आने लगे | ये मंज़र देख कर हज़रते अमीरे मुआविया रदियल्लाहु अन्हु बहुत शर्मिंदा हुए और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम से माज़िरत चाही और उन्हों ने इस मिम्बर के नीचे तीन सीढ़ियों का इज़ाफ़ा कर दिया | जिस से मिम्बरे नबवी की तीनो पुरानी सीढ़ियां ऊपर हो गईं ताकि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और खुल्फ़ए राशिदीन रदियल्लाहु अन्हुम जिन सीढ़ियों पर खड़े हो कर खुत्बा पढ़ते थे अब दूसरा कोई खतीब इन पर क़दम न रखे | जब ये मिम्बर बहुत ज़ियादा पुराना हो कर इंतिहाई कमज़ोर हो गया तो खुल्फ़ए अब्बासिया ने भी इस की मरम्मत कराइ |

(4) इसी साल कबीलए अब्दिल केस का वफ्द हाज़िरे खिदमत हुआ | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन लोगों को खुश आमदीद कहा और उन लोगों के हक में यूं दुआ फ़रमाई की “ऐ अल्लाह पाक ! तू अब्दिल केस को बख्श दे” जब ये लोग बारगाहे रिसालत में पहुचें तो अपनी सवारियों से कूद कर दौड़ पड़े और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुकद्द्स कदम को चूमने लगे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन लोगों को मना नहीं फ़रमाया |

“हिजरत का नवां साल सं. 9, हिजरी”

आयते तखयीर व ईला

“तखयीर” और “ईला” ये शरीअत के दो इस्तिलाही अल्फ़ाज़ हैं | शोहर अपनी बीवी को अपनी तरफ से ये इख़्तियार दे दे की वो चाहे तो तलाक ले ले और चाहे तो अपने शोहर ही के निकाह में रह जाए इस को “तखयीर” कहते हैं | और “ईला” ये है की शोहर ये कसम खा ले की में अपनी बीवी से सुहबत नहीं करूंगा | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बार अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना से नाराज़ हो कर एक महीने का ईला फ़रमाया यानि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये कसम खा ली की में एक महीना तक अपनी अज़्वाजे मुक़द्दसा से सुहबत नहीं करूंगा | फिर इस के बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी तमाम मुकद्द्स बीवियों को तलाक हासिल करने इख़्तियार भी सौंप दिया मगर किसी ने भी तलाक लेना पसंद नहीं किया |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाराज़ी और इताब का सबब क्या था और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स बीवियां तकरीबन सब मालदार और बड़े घराने की लड़कियां थीं | हज़रते उम्मे हबीबा रदियल्लाहु अन्हा रईसे मक्का हज़रते अबू सुफियान रदियल्लाहु अन्हु की साहबज़ादी थीं | हज़रते ज़ुबैरिया रदियल्लाहु अन्हा कबीलाए बनी मुस्तलक़ के सरदारे आज़म हरिस बिन ज़रार की बेटी थीं | हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा बनू नज़ीर और खैबर के रईसे आज़म हुई बिन अख्तब की नूरे नज़र थीं | हज़रते आईशा रदियल्लाहु अन्हा हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की प्यारी बेटी थीं | हज़रते हफ्सा रदियल्लाहु अन्हा हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु की चहीती बेटी थीं | | हज़रते ज़ैनब बिन्ते जहश और हज़रते उम्मे सलमा रदियल्लाहु अन्हुमा भी खानदाने कुरेश के ऊंचे ऊंचे घरों की नाज़ो नेमत में पली हुईं लड़कियां थीं |

ज़ाहिर है की ये अमीर ज़ादियाँ बचपन से आमीराना ज़िन्दगी और रईसाना माहौल की आदि थीं और इन का रहन सहन, खुर्दो नोश लिबास व पोशाक सब कुछ अमीर लड़कियों की रईसाना ज़िन्दगी का आईना दर था | और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स ज़िन्दगी बिलकुल ही ज़ाहिदाना और दुनियावी तकल्लुफ़ात से बेगाना थी | दो दो महीने काशानए नुबुव्वत में चूलह नहीं जलता था | सिर्फ खजूर और पानी पर पूरे घराने की ज़िन्दगी बसर होती थी | लिबास व पोशाक में भी पैगम्बराना ज़िन्दगी की झलक थी | मकान और घर के साज़ो सामान में भी नुबुव्वत की सादगी नोमय थी | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सरमाए का अक्सरो बेश्तर हिस्सा अपनी उम्मत के गुरबा व फ़क़ीर पर खरच फरमा देते थे | और अपनी पाक बीवियों को बा क़द्रे ज़रुरत ही खर्च अता फरमाते थे जो इन रईस ज़ादियों को ख़्वाह जेबो ज़ीनत और आराइश व ज़ेबाइश के लिए न काफी नहीं होता था इस लिए कभी कभी इन उम्मत की माओ का पैमानए सब्रो कनाअत लबरेज़ हो कर छलक जाता था | और वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मज़ीद रकमों का मुतालबा और तकाज़ा करने लगती थीं |

चुनांचे एक बार अज़्वाजे मुतह्हिरात ने मुत्तफिक तौर पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुतालबा किया की आप हमारे इख़राजात में इज़ाफ़ा फरमाएं | अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना की ये अदाएं महरे नुबुव्वत के कल्बे नाज़ पर बार गुज़रीं और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सुकून खातिर में इस क़द्र खलल अंदाज़ हुईं की आप ने बरहम हो कर ये कसम खा ली की एक महीने तक अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना से न मिलेगें | इस तरह एक महीना आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “ईला” फरमा लिया | अजीब इत्तिफ़ाक़ है की इन्ही दिनों में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घोड़े से गिर पड़े जिससे आप की मुबारक पिंडली में मोच आ गई | इस तकलीफ की वजह से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बाल खाने पर गोशा नशीनी इख़्तियार फ़रमा ली और सब से मिलना जुलना छोड़ दिया |सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने वाक़िआत के करीना से ये कयास आराई कर ली की आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी तमाम मुक़द्दस बीवियों को तलाक दे दी और ये खबर जो बिलकुल ही गलत थी बिजली की तरह फेल गई | और तमाम सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम रंजो गम से परेशान हाल और इस सदमे से निढाल होने लगे |इस के बाद जो वाक़िआत पेश आए वो बुखारी शरीफ की मुतअद्दिद रिवायात में मुफ़स्सल तौर पर मज़कूर हैं | इन वाक़िआत का बयान हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु की ज़बान से सुनिए |हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की में और मेरा एक पड़ोसी जो अंसारी था

हम दोनों ने आपस में ये तै कर लिया था की हम दोनों एक दिन बारी बारी से बारगाहे रिसालत में हाज़री दिया करेंगें और दिन भर के वाक़िआत से एक दूसरे को खबर करते रहेंगें |एक दिन कुछ रात गुज़र ने के बाद मेरा पड़ोसी अंसारी आया और ज़ोर ज़ोर से मेरा दरवाज़ा पीटने और चिल्ला चिल्ला कर मुझे पुकारने लगा| मेने घबरा कर दरवाज़ा खोला तो उसने कहा की आज गज़ब हो गया | में ने उस से पूछा की क्या ग़स्सानियों ने मदीने पे हमला कर दिया? (उन दिनों मुल्के शाम के ग़स्सानि मदीने पर हमले की तय्यारी कर रहे थे) अंसारी ने जवाब दिया की अजी इस से भी बढ़ कर हादिसा रुनुमा हो गया | वो ये के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी तमाम बीवियों को तलाक दे दी | हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की में इस खबर से बेहद मुतवाहिश हो गया और सुबह में मदीने पहुंच कर मस्जिदे नबवी में नमाज़े फजर अदा की |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ से फारिग होते ही बलखाने पर जा कर तनहा तशरीफ़ फरमा हो गए और किसी से कोई गुफ्तुगू नहीं फ़रमाई | में मस्जिद से निकल कर अपनी बेटी हफ्सा के घर गया तो देखा की वो बैठी रो रही है | में ने उस से कहा की में ने तुम को पहले ही समझा दिया था की तुम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तंग मत किया करो और तुम्हारे इख़राजात में जो कमी हुआ करे वो मुझ से मांग लिया करो मगर तुम ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया | फिर में ने पूछा की क्या हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सभी को तलाक दे दी है? हफ्सा ने कहा में कुछ नहीं जानती | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बाला खाने पर हैं आप उन से मालूम करें | में वहां से उठ कर मस्जिद में आया तो सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को भी देखा तो के वो मिम्बर के पास बैठे रो रहे हैं | में उन के पास थोड़ी देर बैठा लेकिन मेरी तबियत में सुकून व करार नहीं था |

इस लिए में उठ कर बाला खाना के पास आया और पहरेदार गुलाम “रबाह” से कहा की तुम मेरे लिए अंदर आने की इजाज़त तलब करो | रबाह ने लोट कर जवाब दिया की में ने अर्ज़ कर दिया लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कोई जवाब नहीं दिया | मेरी उलझन और बेताबी और ज़ियादा बढ़ गई और में ने दरबान से दोबारा इजाज़त तलब करने की दरख्वास्त की फिर भी कोई जवाब नहीं मिला | तो में ने बुलंद आवाज़ से कहा की रबाह ! तुम मेरा नाम ले कर इजाज़त तलब करो | शायद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ये ख़याल हो की में अपनी बेटी हफ्सा के लिए कोई सिफारिश ले कर आया हूँ | तुम अर्ज़ कर दो खुदा की कसम ! अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझे हुक्म फरमाएं तो में अभी अभी अपनी तलवार से अपनी बेटी हफ्सा की गरदन उड़ा दूँ | इस के बाद मुझ को इजाज़त मिल गई जब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुआ तो मेरी आँखों ने ये मंज़र देखा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक खुर्रीबान की चार पाई पर लेटे हुए हैं और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिस में नाज़ुक पर बान के निशान पड़े हुए हैं फिर में ने नज़र उठा कर इधर उधर देखा तो एक तरफ थोड़े से “जों” रखे हुए थे और एक तरफ खाल खूँटी पर लटक रही थी | ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़ज़ाने की ये कायनात देख कर मेरा दिल भर आया और मेरी आँखों में आंसू आ गए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरे रोने का सबब पूछा तो में ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इसे से बढ़ कर रोने का और कोनसा मौका होगा? की कैसरो किसरा खुदा के दुश्मन तो नेमतों में डूबे हुए ऐशो इशरत की ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुदा के रसूले मुअज़्ज़म होते हुए इस हालत में हैं | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की ऐ ! उमर क्या तुम इस पर राज़ी नहीं हो की कैसरो किसरा दुनिया लें और हम आख़िरत !

इस के बाद में ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मानूस करने के लिए कुछ और भी गुफ्तुगू की यहाँ तक की मेरी बात सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लबे अनवर पर मुस्कुराहट के आसार नज़र आए | उस वक़्त में ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या आप ने अपनी अज़्वाजे मुतह्हरात रदियल्लाहु अन हुन्ना को तलाक दे दी है? आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की “नहीं” मुझे इस कदर ख़ुशी हुई की फरते मसर्रत से में ने तकबीर का नारा लगाया | फिर मेने ये गुज़ारिश की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम मस्जिद में गम के मारे रो रहे हैं अगर इजाज़त हो तो में जा कर उन लोगों को खबर कर दूँ की तलाक की खबर सरासर गलत है | चुनांचे मुझे इस की इजाज़त मिल गई और जब में ने आ कर सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को इस की खबर दी तो सब लोग खुश हो कर हश्शाश बश्शाश हो गए और सब को सुकून इत्मीनान हासिल हो गया |

जब एक महीना गुज़र गया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कसम पूरी हो गई तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बाला खाने से उतर आए इस के बाद ही आयते तखयीर नाज़िल हुई जो ये है: क़ुरान शरीफ पारा 21, सूरह अहज़ाब आयत 28

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- ऐ नबी ! अपनी बीवियों से फरमा दीजिए की अगर तुम दुनिया की ज़िन्दगी और इस की आराइश चाहती हो तो आओ में तुम्हें कुछ माल दूँ और अच्छी तरह छोड़ दूँ और अगर तुम अल्लाह पाक और उस के रसूल और आख़िरत का घर चाहती हो तो बे शक अल्लाह पाक ने तुम्हारी नेकी वालियों के लिए बहुत बड़ा अज्र तय्यार कर रखा है |

रेफरेन्स (हवाला)

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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