दो जहाँ में ख़ादिमें आले रसूलुल्लाह कर
हज़रते आले रसूले मुक्तदा के वास्ते
विलादत मुबारक
आप की पैदाइश मुबारक माहे रजाबुल मुरज्जब 1296, हिजरी मुताबिक़ 1795, ईसवी को मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी मुल्के हिन्द में हुई।
इस्म शरीफ
आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “आले रसूल” है और लक़ब “ख़ातिमुल अकाबिर” है।
आप के वालिद माजिद
आप के वालिद माजिद का नाम मुबारक हज़रत “सय्यद शाह आले बरकात सुथरे मियां रदियल्लाहु अन्हु” है, और आप के वालिद माजिद
असादुल आरफीन हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी रहमतुल्लाह अलैह हैं, और आप के वालिद माजिद बुरहानुल मवाहिदीन हज़रत सय्यद शाह आले मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह हैं, और आप के वालिद माजिद सुल्तानुल आशिक़ीन साहिबुल बरकात हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह इश्की रहमतुल्लाह अलैह हैं, और आप के वालिद माजिद हज़रत सय्यद शाह ओवैस बिलगिरामि रहमतुल्लाह अलैह हैं, (जद्दे सादाते मारहरा) और आप के वालिद माजिद मुक़दामुल आरफीन हज़रत मीर सय्यद शाह अब्दुल जलील बिलगिरामि सुम्मा मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह हैं, और आप के वालिद माजिद सनादुल मुहक़्क़िक़ीन हज़रत मीर सय्यद शाह अब्दुल वाहिद बिलगिरामि रहमतुल्लाह अलैह हैं, (मुसन्निफ़ सबे सनाबिल शरीफ)।
आप की तालीमों तरबियत
आप की तालीमों तरबियत वालिद माजिद के आग़ोशे शफकत में हुई और इन्ही की निगरानी में आप की नशो नुमा यानि परवरिश हुई, आप की इब्तिदाई तालीम हज़रत ऐनुल हक शाह अब्दुल मजीद बदायूनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, हज़रत मौलाना शाह सलामतुल्लाह कश्फी बदायूनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, से खानकाहे बरकातिया में पढ़ कर फिरंगी महल के उल्माए इज़ाम मौलाना अनवार साहब फिरंगी महली, हज़रत मौलाना अब्दुल वासे सय्यद पूरी और हज़रत मौलाना शाह नुरुल हक रज़्ज़ाकी लखनऊ उर्फ़ मुल्ला नूर से क़ुतुब माकूलात इल्मे कलाम, इल्मे फ़िक़्ह, व उसूले फ़िक़्ह की तालीम मुकम्मल फ़रमाई,
सिलसिलए रज़्ज़ाकिया की सनद व इजाज़त हासिल फ़रमाई 1226, हिजरी में हज़रत शैख़ मखदूम अब्दुल हक साबरी चिश्ती रुदौलवी (मुतवफ़्फ़ा 870, हिजरी) के उर्स मुबारक के मोके पर मशाहीर उलमा व मशाईखिने इज़ाम की मौजूदगी में दस्तारे फ़ज़ीलत सजाई गई और इसी सनद पर हज़रत अच्छे मियां कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के इरशाद के मुताबिक सिराजे मिल्लत हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह से हदीस की किताबें पढ़ीं, सिहा सित्ता का दौरा करने के बाद सलासिले हदीसो तरीकत की सनादें अता की गईं, सिराजे मिल्लत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने और बहुत से आमाल की इजाज़त भी अता फ़रमाई, हज़रत मौलाना शाह नियाज़ अहमद फखरी बरेलवी इल्म में दस्तगाह क़ुदरत रखते थे इल्मे हिंदसा रियाज़ी वगेरा आप से हासिल फ़रमाया।
फन्ने तिब
आप ने फन्ने तिब अपने वालिद माजिद सय्यद शाह आले बरकात सुथरे मियां कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से और फ़रज़न्द अली खान मोहानी से हासिल फ़रमाया।
फ़ज़ाइलो कमालात
इमामुल वासलीन, ख़ातिमुल अकाबिर, आलिमे कामिल, सुफिए वक़्त, हज़रत मखदूम सय्यद शाह आले रसूल अहमदी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी आप सिलसिलए आलिया क़ादिरिया के सैंतीसवें 37, इमाम व शैख़े तरीकत हैं, आप तेरवी सदी हिजरी के अकाबिर औलियाए किराम में से थे, आप की वो अज़ीम शख्सीयत थी जिस की कोशिश से इस्लाम व मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत को ताकत हासिल हुई, बड़े निडर बे बाक, शफीक और महिरबान थे, गुरबा व मसाकीन की ज़रूरतों को पूरी करते, उलूमे ज़ाहिर व बातिन में माहिर थे, आप के मुकाशिफ़ा में अजीब शान थी, आप अपने अस्लाफ की ज़िंदह व ताबिन्दह यादगार थे, आप के दौर में सिलसिलए बरकातिया की बहुत इशाअत हुई, आप की शान बड़ी अरफाओ आला है।
आदात व सिफ़ात
आप की आदात व सिफ़ात में भी शरीअत की पूरी जलवागरी थी, और शरीअते मुतह्हराह की गायत दर्जा पाबन्दी फरमाते, नमाज़ बा जमात मस्जिद में अदा फरमाते और तहज्जुद की नमाज़ कभी क़ज़ा न होने देते, निहायत करीमुन नफ़्स, ऐब पोश और हाजत पूरी करने में यगानाए अस्र थे जो अहादीसे नबवी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मन्क़ूल हैं, वही दुआएं अता फरमाते हमेशा लिबास दुर्वेश व उलमा में रहते तकल्लुफ़ात मशाइखाना से परहेज़ करते, बल्के सिर्फ मजालिसे वाइज़, व नात ख्वानी व मनकबत व खत्मे कुरआन व किरात व दलाईलुल खैरात शरीफ, उर्स की मेहमानदारी बाकी रखी थी, फ़ुज़ूल काम काज कुछ भी नहीं होता दरबार में, शरीअत के काफी पांबद थे,
और आप की आजिज़ी और नफ़्स के कमाल का ये आलम था के अपने साहबज़ाद गान को अपने घर की तमाम बरकतों के बावजूद खुलफाए खानदान से भी इजाज़त दिलवाई, जब आप के साहब ज़ादे सय्यद शाह ज़हूर हसन ने सुलूक को पूरा फ़रमा लिया तो हुक्म दिया के “तम्हारे घर की बड़ी दौलत हज़रत मौलाना शाह अब्दुल मजीद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह के पास है जाओ और हिस्सा ले लो” आप तशरीफ़ ले गए हज़रत मौलाना शाह अब्दुल मजीद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह ने सबज़ादे का शहर से बाहर आ कर इस्तकबाल किया और इसी रात हज़रत मौलाना शाह अब्दुल मजीद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह ने सय्यद ज़हूर हसन बड़े मियां रहमतुल्लाह अलैह के हुजरे के बाहर पूरी रात खड़े रहे, जब फजर के वक़्त साहब ज़ादे बाहर निकले तो देखा के हज़रत मौलाना शाह अब्दुल मजीद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह हाथ बंधे खड़े हैं, साहब ज़ादे ने इस तकलीफ का सबब पूछा तो मौलाना ने ये जवाब दिया के ऐसा इज़हारे मुहब्बत आज के दौर में मुश्किल है, हज़रत मौलाना शाह अब्दुल मजीद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: यही नेमतें तो आप के घर से लाया हूँ और मुझको यही हुक्म है अल हम्दुलिल्लाह आप का सुलूक मुकम्मल हुआ, जिस के लिए आप बदायू आए थे, राहे दरवेशी में अदब, मेहनत, गुरुर को छोड़ना है, अब आप तशरीफ़ ले जाइए, ये कहकर सनादे खिलाफत व इजाज़त अता फ़रमाई।
आप की जूदो सखावत
आप के जूदो सखा का ये आलम था के लोग मस्नूई ज़रूरियात बता कर जब चाहते रूपया मांग कर आप से ले जाते और चोर बद माशो मुसाफिरों की सूरत में आते और आप की बारगाह से बा मुराद लौटते,आप की अहलिया मुहतरमा अर्ज़ करती हैं के आप वली हैं जो सब को वली ही समझते हैं कुछ एहतियात फरमाएं मगर आप खुद घर में जाकर मांगने वाले के लिए ज़रूरी सामान लाते और दे देते जो हाजत मंद आता उस की हाजत पूरी करते और अक्सर ऐसा होता है अपने कपडे उतार कर दे देते थे, हर खादिम व मुरीद से निहायत शफकत मुआमला फरमाते, हज़रत नमाज़े जमात एक हाफ़िज़ सब से पढ़वाते, कभी इमाम न बनते एक बार मुफ़्ती ऐनुल हसन साहब बिलगीरामि जिन का मुकाशिफ़ा बहुत बड़ा हुआ था जमाअत में शरीक हो कर नमाज़ तोड़ दी और सलाम के बाद हाफ़िज़ साहब से फ़रमाया: मर्दे खुदा बाज़ार जाने और सौदा खरीदने की ज़रूरत नहीं, हम तुम्हारे साथ कहाँ कहाँ परेशान घूमते फिरें? हज़रत मुफ़्ती साहब इन का सवाल सुनकर इन पर सख्त बर्ह्म हुए और इरशाद फ़रमाया: के बहतर है के आप खुद नमाज़ पढ़ाएं वरना हाफ़िज़ साहब के साथ साथ फिरें और शरीअत का इस्तहज़ा न करें आप को नमाज़ में खुद हुज़ूर नहीं वरना दूसरों पर नज़र क्यों जाती।
आप का मिसालि कार नामा
हज़रत सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु ने अपने दौर में खानकाहे बरकातिया की बड़ी खिदमात की हैं मदरसा व मुदर्रिसीन व मशाईखिने इज़ाम के हुजरात व फुकरा तामीर कराए आलिम हाफ़िज़ कारी तबीब दरगाह शरीफ में मुअय्यन किए एक मुहासिब मुकर्रर फ़रमाया जो तमाम हिसाबात दरगाह शरीफ रखे, खुद आस्ताने की खिदमात मुकर्रर फ़रमाई मस्जिद में इमाम व मुअज़्ज़िन मुकर्रर फ़रमाया, पहले अक्सर खिदमात दरगाह व मस्जिद व खुलफ़ा के सुपुर्द थीं, जो अक़ीदतन बगैर मुआवज़े के करते थे मगर हज़रत ने वो तमाम काम अपने ज़िम्मे ले लिए और खुद ही अंजाम देते थे ।
आप की उलूमे ज़ाहिरी व बातनी की सनद
हज़रत ने अपने उस्ताज़े मुहतरम सिराजे मिल्ल्त हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से जो इस्नाद हासिल फ़रमाई उस की तफ्सील इस तरह है: उलुमिया, इनामबा, मुसाफ़हात मुशाबिका सनद मुसलसल बिल अव्वलिया हदीस मुसलसल बिल इज़ाफ़ा चिह्ल अस्मा, हिज़्बुल बहर, सनादे क़ुरआने करीम, दलाईदुल खैरात, सिहा सित्ता, और कुतु बे हदीस व फ़िक़्ह तफ़्सीर की इजाज़त अता हुईं।
सय्यद ज़हूर हसन मियां कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को इजाज़त
एक रोज़ सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु का हुक्म हुआ के बाहर जाओ देखो हज़रत मौलाना शाह अब्दुल मजीद बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह तशरीफ़ लाए हैं, खादिम ने कहा: हज़रत वो तो अभी गए हैं अब कैसे? तो फ़रमाया देखो और बुला लाओ, खादिम ने बाहर देखा तो मौलाना साहब, का सामान उतारा जा रहा था, खादिम ने मौलाना साहब को जब सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु का पैगाम दिया तो मौलाना साहब फ़ौरन हज़रत के पास तशरीफ़ लाए, हज़रत ने इरशाद फ़रमाया के “भाई तुम खूब आए, हमारा दिल था के सय्यद ज़हूर हुसैन उर्फ़ छोटू मियां को भी तुम से इजाज़त दिल वादें” मौलाना साहब ने फ़रमाया: जो हुक्म हो आप का उसी वक़्त कागज़ मंगवाकर इजाज़त दिलवाई, अपने नवासों हज़रत सय्यद शाह हुसैन हैदर, और हज़रत सय्यद शाह ज़हूर हैदर, को पढ़ाने के लिए मदरसा आलिया क़ादिरिया बदायूं शरीफ भेजा, अपने पोते हुज़ूर पुर नूर आकाइ व मौलाई सरकार अबुल हुसैन नूरी मियां कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से एक रोज़ फ़रमाया के हम बुढ़ापे की वजह से किताबे नहीं पढ़ा सकते, हज़रत मौलाना अब्दुल कादिर बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह का इल्म ताज़ा है, वो हमारा ख़ास घर है, मुझे बरखुरदार मौलाना अब्दुल कादिर बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की दियानत और तक़वा पर पूरा यकीन है, तुम शरीअत और तरीकत के मसाइल पर इन से मशवरा लिया करो।
फ़लसफ़ाए मेराज :-
मन्क़ूल है के बदायूं शरीफ के एक साहब जो आप के खास मुरीद थे, वो एक मर्तबा सोचने लगे के मेराज शरीफ चंद लम्हों में किस तरह हो गई? आप उस वक़्त वुज़ू फरमा रहे थे और फ़ौरन उससे कहा: मियां अंदर से ज़रा तौलिया तो लाओ? ये जब अंदर गए तो एक खिड़की नज़र आई, उस तरफ देखा तो देखते क्या हैं के पुर फ़िज़ा बाग़ हैं यहाँ तक के इस में सेर करते हुए एक खूबसूरत शहर में पहुंच गए, वहां इन्होने कारोबार शुरू कर दिया शादी भी की और औलाद भी हुई, यहाँ तक के बीस साल का अरसा गुज़र गया, जब एक हज़रत ने आवाज़ दी तो वो घबराकर खिड़की में आए और तौलिया लिए हुए दौड़े तो देखते क्या हैं के अभी वुज़ू के क़तरात हज़रत के चेहरा मुबारक पर मौजूद हैं और आप बैठे हुए हैं, और दस्ते मुबारक भी गीले हैं, वो इंतिहाई हैरान व शुश्दर हुए तो हज़रत ने तबस्सुम लहजे में फ़रमाया: मियां वहां बीस साल रहे और शादी भी की और यहाँ अभी तक वुज़ू खुश्क नहीं हुआ अब तो मेराज की हकीकत को समझ गए होंगे ।
कशफो करामात
हज के अय्याम दिनों में मौजूद
मन्क़ूल है के हाजी रज़ा खान साहब मारहरवी ने हज से फारिग हो कर, मौलाना मुहम्मद इस्माईल साहब मुहाजिर से बैअत करने की पेश कश की, मौलाना मौसूफ़ ने फ़रमाया: तुमने सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु से ही बैअत क्यों न की वो अब तक मेरे साथ थे! यहाँ तक के हाजी साहब मारहरा शरीफ लोटे तो हज़रत के सामने इस वाकिए को ज़िक्र किया हज़रत ने इरशाद फ़रमाया: मियां इन्हें शुबह हुआ होगा में तो अब तक खानकाह शरीफ की सज्जादगी छोड़ कर कहीं गया ही नहीं,
सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की सनद लाओ
आप की ज़ात मुबारक मजमउल कमालात थी सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु का फैज़ान आम था बड़े बड़े उल्माए किराम व फ़ुज़लाए इज़ाम अपने ज़ानूए अदब तय करने को अपनी सआदत समझते थे, चुनांचे मशहूर वाकिया है के मौलाना सूफी अब्दुर रहमान जो मुरीद व खलीफा है सिराजे मिल्लत हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के अपना हाल बयान फरमाते हैं के सुलुको मारफत की तालीम हासिल करने के बाद मेरे पीरो मुर्शिद ने इरशाद फ़रमाया: मारहरा शरीफ हाज़िर हो और सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु से सनादे तकमील लाओ में हज़रत की खिदमत में हाज़िर हुआ और हाल अर्ज़ किया, दुरूदे ओवैसिया की भी इजाज़त चाहि हज़रत ने इरशाद फ़रमाया: चार अरबईन यहाँ हाज़िर रहो उस वक़्त देखा जाएगा, में हाज़िर रहा और हिदायत के मुताबिक कसबे दुरूदो अशग़ाल करता रहा चार अरबईन खत करने के बाद सनादे तकमील व इजाज़त व खिलाफत अता फ़रमाई।
बादे विसाल आप की करामत
सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु के विसाल मुबारक के बाद भी आप अपनी करामत ज़ाहिर फरमाते रहे, जब आप को कब्र में रखा जाने लगा तो आप ने पाऊं समेट लिए, अजब ही मंज़र था के बार बार हज़रत के पैरों को ठीक किया जाता, और आप समेट लेते, आखिर लोगों की समझ में आया के चूंके आप के पैर आप के दादा जान हज़रत शाह हमज़ाह ऐनी रहमतुल्लाह अलैह के सिरहाने की तरफ हो रहे हैं लिहाज़ा हज़रत अदबो एहतिराम में पैर सीधे नहीं कर रहे हैं, फ़ौरन ही हज़रत शाह हमज़ाह ऐनी रहमतुल्लाह अलैह के सिरहाने दीवार खड़ी की गई तब हज़रत को सुपुर्दे मज़ार किया गया, हज़रत के लब मुबारक भी विसाल के बाद हिलते रहे और अपने खालिक की तस्बीह व पाकि बयान करते रहे, तब हाज़रीन ने अर्ज़ किया के हुज़ूर देर हो रही है बस ये कहते ही लबों में हरकत बंद हो गई और हज़रत को सुपुर्दे मज़ार किया गया
आप की औलादे किराम
आप का निकाह शरीफ “निसार फातिमा” बिन्ते सय्यद मुन्तख़ब हुसैन साहब बिलगीरामि से हुआ, जिन से दो साहब ज़ादे और तीन साहब जादियाँ हुईं, (1) सय्यद शाह ज़हूर हसन बड़े मियां, (2) सय्यद शाह ज़हूर हुसैन छोटे मियां, (3) अंसार फातिमा, (4) ज़हूर फातिमा, रहमत फातिमा,
अंसार फातिमा और ज़हूर फातिमा को यके बाद दीगरे सय्यद हाफ़िज़ हसन साहब आप के भांजे के निकाह में दिया, जो ला वलद फ़ोत हो गईं तीसरी साहब ज़ादी रहमत फातिमा जिन का निकाह सय्यद मुहम्मद हैदर बिन सय्यद दिलदार हैदर बिन सय्यद मुन्तख हुसैन से हुआ, इन का इन्तिकाल मक्का शरीफ में बा मकाम मिना आठ ज़िल हिज्जा बरोज़ जुमेरात 1310, हिज्र में हुआ वहीँ दफन हुईं, ये साहिबे औलाद थीं इनकी औलाद मारहरा शरीफ में है,
और सय्यद शाह ज़हूर हुसैन साहब की पैदाइश 1229, हिजरी में हुई, आप का पहला निकाह इकराम फातिमा बिन्ते सय्यद दिलदार हैदर बिन सय्यद मुन्तख़ब हुसैन से हुआ, इन से एक साहब ज़ादे सरकारे नूर सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी और एक साहब ज़ादी कुलसुम फातिमा जो सय्यद शाह नुरुल मुस्तफा बिन सय्यद शाह गुलाम मुहीयुद्दीन के निकाह में थीं जो साहिबे औलाद थीं पैदा हुए।
इमाम अहमद रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी
आप के खुलफाए किराम में एक से एक साहिबे कमाल थे, लेकिन मुजद्दिदे आज़म सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह को हासिल हुआ वो सब से मुमताज़ आला है, सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु ने पहली नज़र में “चश्मों चिरागे खानदाने बरकात” का इंतिख्वाब फरमाकर मुरीद किया और खिलाफत अता फ़रमाई और ऐसा नवाज़ा के इमाम अहमद रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी “रज़ाए आले रसूल हो गए” दीनो सुन्नियत का इल्म इमाम अहमद रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के हाथ में सरकार आले रसूल कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने दिया और सुबह कयामत तक इमाम अहमद रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी मोतबर, मुस्तनद फरमा दिया, ये दुआए आले रसूल कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ही तो थी के 22, साल के इमाम अहमद रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी मुजद्दिदे वक़्त और आशिके रसूल के दर्जे पर फ़ाइज़ हुए और इस का ऐतिराफ़ भी इमाम अहमद रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने खूब क्या,
कैसे आकाओं का बंदा हूँ रज़ा
बोल बाले मेरी सरकारों के
आप के खुलफाए किराम
- आप के बेटे हज़रत सय्यद शाह ज़हूर हुसैन,
- हज़रत सय्यद शाह मेहदी हसन मारहरवी,
- आप के बेटे हज़रत सय्यद शाह ज़हूर हसन,
- हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी,
- मुजद्दिदे आज़म अश्शाह इमाम आमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी,
- हज़रत सय्यद शाह अबुल हसन ख़रक़ानी,
- हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद सादिक बिरादर ज़ादाह,
- हज़रत सय्यद शाह अमीर हैदर हमशीरा ज़ादाह,
- हज़रत सय्यद शाह हुसैन हैदर,
- हज़रत सय्यद अली हुसैन अशरफी किछौछवी,
- हज़रत क़ाज़ी अब्दुस्सलाम अब्बासी बदायूनी,
- हज़रत शाह एहसान फरशोरी बदायूनी,
- हज़रत हाफ़िज़ हाजी मुहम्मद अहमद फरशोरी बदायूनी,
- हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद हसन खान बरेलवी,
- हज़रत सय्यद शाह तजम्मुल हुसैन कादरी शाहजहांपुरी,
- हज़रत मौलवी अब्दुर रहमान साहब,
- (हज़रत क़ाज़ी शम्सुल इस्लाम अब्बासी बदायूनी,
- हज़रत मौलवी ज़ियाउल्लाह खान अब्बासी बदायूनी सुम्मा बरेलवी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।
मलफ़ूज़ात शरीफ
राहे सुलूक में अदब व मुहब्बत और तरके रऊनत एक लाज़मी अम्र है,
उलमा फुकरा और मसाकीन की ताज़ीम पूरी कोशिश से करते रहो और जो कुछ भी मुयस्सिर हो पूरी तवाज़ो के साथ सामने रख दो कबूल कर लें तो बेहतर न करें तो तुम पर कोई पकड़ नहीं,
नियाज़ फातिहा में हर गिज़ तकल्लुफ न करें के शरीअत में तकल्लुफ रवा नहीं और सिर्फ थोड़े से बताशों पर ही फातिहा पर इक्तिफा करें,
दुर्वेश का ज़ाहिर तो इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के जैसा हो और बातिन हज़रत हुसैन बिन मंसूर हल्लाज रहमतुल्लाह अलैह जैसा हो,
हर हालत में दिल बुलंद व क़वी और सच्ची उम्मीद रखना चाहिए ताके ज़हूरे दौलत उस जगह से हो जहाँ अक्ल की भी रसाई नहीं,
आखरी वसीयत
विसाल के वक़्त आप से लोगों ने गुज़ारिश की के हुज़ूर! कुछ वसीयत फरमा दीजिए बहुत इसरार पर फ़रमाया: मजबूर करते हो तो लिख लो ये हमारा वसीयत नामा है, “इताअत करो अल्लाह की और इताअत करो रसूल की” बस यही काफी है।
विसाल व उर्स
अठ्ठारह 18, ज़िल हिज्जा 1296, हिजरी मुताबिक दिसंबर 1879, ईसवी को विसाल शरीफ हुआ।
मज़ार शरीफ
आप का मज़ार मुकद्द्स मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी हिन्द में ज़ियारत गाहे खलाइक है,
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
Share Zaroor Karen Jazakallah
रेफरेन्स हवाला
- तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
- तज़किराए मशाइखे मारहरा
- खानदाने बरकात
- बरकाती कोइज़
- नूर मदाहे हुज़ूर