नूरे जानो नूरे इमां नूरो कब्रों हश्र दे
बुल हुसैने अहमदे नूरी लिका के वास्ते
विलादत शरीफ
आप की पैदाइश मुबारक माहे शव्वालुल मुकर्रम 1255, हिजरी मुताबिक़ 27, दिसंबर 1839, ईसवी बरोज़ जुमेरात को मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी मुल्के हिन्द में हुई।
इस्म शरीफ
आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “सय्यद अबुल हुसैन अहमदे नूरी” है, और तारीखी नाम “मज़हर अली” है, और अल मुलक्कब “मियां साहब” है, आप को “मियां साहब” के नाम से आप के दादा जान हज़रत ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु इस लक़ब से पुकारा करते थे, और आप को खानदाने बरकात में “ख़ातिमे अकाबिरे हिन्द” व “मियां साहब” के नाम से याद किया जाता है।
आप के वालिद माजिद
हज़रत “सय्यद शाह ज़हूर हसन” मारहरवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी है, और आप के वालिद माजिद ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु, हैं और आप के वालिद माजिद हज़रत सय्यद शाह आले बरकात सुथरे मियां रदियल्लाहु अन्हु, हैं और आप के वालिद माजिद असादुल आरफीन हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी रहमतुल्लाह अलैह हैं, और आप के वालिद माजिद बुरहानुल मवाहिदीन हज़रत सय्यद शाह आले मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह हैं, और आप के वालिद माजिद सुल्तानुल आशिक़ीन साहिबुल बरकात हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह इश्की रहमतुल्लाह अलैह हैं, और आप के वालिद माजिद हज़रत सय्यद शाह ओवैस बिलगिरामि रहमतुल्लाह अलैह हैं, (जद्दे सादाते मारहरा मुक़द्दसा) और आप के वालिद माजिद मुक़दामुल आरफीन हज़रत मीर सय्यद शाह अब्दुल जलील बिलगिरामि सुम्मा मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह हैं, और आप के वालिद माजिद सनादुल मुहक़्क़िक़ीन हज़रत मीर सय्यद शाह अब्दुल वाहिद बिलगिरामि रहमतुल्लाह अलैह हैं, (मुसन्निफ़ सबे सनाबिल शरीफ) । और हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु के वालिद माजिद सय्यद शाह ज़हूर हसन उर्फ़ बड़े मियां साहब मारहरवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी है आप के बचपन में ही वालिद माजिद का विसाल हो गया, और सारी तालीमों तरबियत आप के दादा जान ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु के आगोश में हुई।
मुख़्तसर खानदानी हालात
आप हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह सादाते हुसैनी ज़ैदी वास्ती बिलगिरामि वालिद माजिद की जानिब से हैं , नीज़ वालीदह माजिदह हज़रत सय्यद मुहम्मद सुगरा मारहरवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बीसवीं पुश्त में हैं जैसा के हम इस की तफ्सील “सय्यद शाह बरकतुल्लाह के मज़मून में लिख चुके हैं” आप के आबाओ अजदाद हर अहिद में सरदार व मुक्तदा रहे हैं, ये खानदान आप का 614, हिजरी मुताबिक 1217, ईस्वी में बिलगिराम शरीफ को फतह कर के इस मकाम पर रौनक अफ़रोज़ हुआ और जागीर व ख़िताबात शाही से मुअज़्ज़ज़ हुआ 1017, हिजरी मुताबिक 1689, ईसवी में हज़रत सय्यद शाह मीर अब्दुल जलील कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी यानि आप के जद्दे अमजद गौसो क़ुतुब मारहरा मुकर्रर होकर रौनक अफ़रोज़ मारहरा हुए।
आप का हुलिया मुबारक
हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह सरापा इस तरह थे:
कद: मियाना लेकिन बावजूद मियाना कदो कामत होने के मजमे में सब से बुलंद नज़र आते,
रंग: मुबारक गंदुमी गेहूँ जैसा था,
सर: सर मुबारक बड़ा और ऊंचा,
पेशानी : खूब बड़ी,
भाऊ यें: बारीक और ये हज़राते सादाते बिलगिराम में उमूमन है,
पलके: दराज़,
आंखें: बड़ी और रोशन सफेदी और सियाही तेज़ सुर्खी के डोरे पड़े, शुगले महमूदा में सियाही मुतलक़ नज़र ना आती और शुगल बरोज़ में दोनों पुतलियां एक बराबर थीं,
बीनी: बुलंद थी,
दन्दान मुबारक: निहायत साफ़ चमकदार और मज़बूत जो गालिबन वक़्ते वफ़ात शरीफ तक सब मौजूद थे कोई नहीं गिरा था,
रेश: रेश मुबारक दाढ़ी भरी हुई,
सीना: मुबारक चौड़ा,
हाथे: लम्बे,
उँगलियाँ: बारीक दराज़,
रफ़्तार: तेज़, हसीं आप की सिर्फ: तबस्सुम थी, अक्सर अमामा रंगीन, कुरता सफ़ेद नक्शबंदी टोपी दो पल्ली पहिनते,
तालीमों तरबियत
हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह की उमर शरीफ जब ढाई साल की हुई तो वालिद माजिद का विसाल हो गया, इस लिए आप की तालीमों तरबीयत की तमाम तर ज़िम्मेदारी आप के दादा जान ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की आग़ोशे मुबारक में हुई, आप के दर्स का आगाज़ हज़रत सय्यद शाह अले रसूल मारहरवी ने हस्बे कायदा इकरा शरीफ की चंद आयात से फ़रमाया: इस के बाद सीने मुबारक से लगाया और खास दुआएं दीं और दरगाह शरीफ के मकतब फ़ारसी में दाखिल फरमा दिया, मकतब में कायदा दाखिला के बाद आप ने फ़ारसी, अरबी, इल्मे फ़िक़्ह, इल्मे तफ़्सीर, हदीस व लुगत, मंतिक व दीगर उलूमो फुनून को हासिल फ़रमाया, आप के असातिज़ाए किराम की फहरिस्त हस्बे ज़ैल है:
(1) हज़रत अमानत अली मारहरवी (2) हज़रत इमाम बख्श मारहरवी (3) हज़रत सय्यद औलादे रसूल मारहरवी (4) हज़रत अहमद खान जलेसरी, (5) हज़रत मौलवी मुहम्मद सईद उस्मानी बदायूनी, (6) हज़रत हाफिज़ अब्दुल करीम पंजाबी, (7) हज़रत हाफिजों कारी मुहम्मद फ़य्याज़ रामपुरी, (8) हज़रत मौलवी फ़ज़्लुल्लाह जलेसरी, (9) हज़रत मौलाना नूर अहमद उस्मानी बदायूनी, (10) हज़रत मौलाना मुफ़्ती हसन खान उस्मानी बरेलवी, (11) हज़रत हकीम मुहम्मद सईद बिन हकीम इमदाद हुसैन मारहरवी, (12) हज़रत मौलाना हिदायत अली बरेलवी, (13) हज़रत मौलाना मुहम्मद तुराब अली अमरोहा, (14) हज़रत मौलाना शाह विलायती, (15) हज़रत मौलाना मुहम्मद हुसैन बुखारी कश्मीरी, (16) हज़रत मौलाना मुहम्मद अब्दुल कादिर उस्मानी बदायूनी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।
इस्नादे उलूम व बातिनिया
हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह ने जिन से उलूमे बातिन हासिल किया था इस में सिरे फहरिस्त ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु हैं, जिन की बारगाहे आली वकार में आप ने दर्जाए अतम यानि मुकम्मल फैज़े रूहानी व इसनादे रूहानी हासिल फ़रमाया, हज़रत के अलावा जिन असातिज़ाए किराम से अज़कार व औराद व सुलूक को पाए तकमील तक पहुंचाया उन के असमाए गिरामी मुनदर्जाए ज़ैल है:
(1) हज़रत सय्यद गुलाम मुहीयुद्दीन, (2) हज़रत मुफ़्ती सय्यद ऐनुल हसन बिलगिरामी, (3) हज़रत शाह शम्सुल हक उर्फ़ तिनका शाह, (4) हज़रत मौलाना अहमद हसन मुरादाबादी, (5) हज़रत हाफ़िज़ शाह अली हुसैन मुरादाबादी, रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।
इजज़तो खिलाफत
आप को खिलाफत व इजाज़त ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु से थी, चुनांचे राहे मारफत की पूरी तकमील के बाद आप को इजाज़ते आम अता फ़रमाई और जिस सनद को आप के शैख़े तरीकत ने अता फ़रमाया था वो ये है: और हुज़ूर ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु ने आप को इजाज़त कुरआन मजीद व सिहा सित्ता व मुसन्निफ़ात हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह व हिसने हसीन, दलाईलुल खैरात शरीफ, व हिज़्बुल बहर, व हदीस मुसलसल बिल अव्वलिया, व हदीस मुसलसल बिल बिल इज़ाफ़ा, मुसाफ़हात अरबआ, व मुसाफ़हा व मुशाबिका और तमाम उलूम की सनादें जो आप को अपने असातिज़ा से पहुंचीं थीं वो सब अता फ़रमाई जिस में से अक्सर इस्नाद छप चुकी हैं।
फ़ज़ाइलो कमालात
सिराजुस सालिकीन, नुरुल आरफीन, शैख़े तरीकत, आलिमे शरीअत, पीरे तरीकत, हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह आप सिलसिलए आलिया कादिरिया रज़विया के अड़तीसवें 38, वे इमाम व शैख़े तरीकत हैं, आप अपने वक़्त के नामी गिरामी शैख़े तरीकत हैं, आप के फ़ज़ाइल व मनाक़िब पर मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने एक तवील नज़्म तहरीर फ़रमाई है जिस का पहला मिसरा इस तरह है जो हदाईके बख्शिश हिस्सा अव्व्वल में मौजूद है:
बर तर कयास से है मक़ामे अबुल हुसैन
सिदरह से पूछो रिफ़अते बामे अबुल हुसैन
आप का हल्काए बैअत व इरशाद बहुत वसी था, आप इस्लाहे बातिन से पहले इस्लाहे ज़ाहिर का ख़ुसूसन अक़ीदह की सेहत का खास ख्याल फरमाते थे, आप का वही मसलक व मशरब था जिस पर हज़रत अल्लामा ताजुल फुहूल शाह अब्दुल कादिर बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह और मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी थे, शिईयत तफ्ज़ीलीयत और नीचरीयत का तहरीरी रद्द फ़रमाया और इन के इन्सेदाद में कोशिशे बलीग़ फ़रमाई, अभी आप की उमर शरीफ सात से ज़ियादा की न थी के हुज़ूर ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु के हुक्म के मुताबिक़ रोज़ा व ख़ल्वत और अशग़ाल व औराद में मसरूफ हुए यहाँ तक के अठ्ठारह 18, साल तक ज़िक्रे जलाली व जमाली व ख़ल्वत में रहे और सुलूक को बक़ाईदाह हासिल फरमा कर फनाए मअनवी से बकाए हकीकी के मकाम पर फ़ाइज़ हुए, तसल्लुब फिद्दीन में आप और आप के खानदान ने जो नुकूश छोड़े वो रहती दुनिया तक के लिए आप के तसानीफ़ से ज़ाहिर व बाहिर हैं, तसव्वुफ़ के ज़रिए मुल्के हिंदुस्तान में इस्लामी मुआशरा व दीनी हमीयत की तरवीजो इशाअत आप तमाम उमर फरमाते रहे इन बेशुमार खूबियों के साथ अख़लाक़ व मुरव्वत और जूदो सखावत के पैकर थे।
सात कुतब में से आप एक कुतब हैं
आप को गियाराह साल की उमर शरीफ में आप के जद्दे करीम व शैख़े तरीकत ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु ने मुजाहिदात व सुलूक व रियाज़त तरीकाए मुजाहिदात और खास खास दुआएं हिज़्बुल बहर, चेहल इस्म, हिर्ज़े यमानी, बा काइदह आप से याद कराएं आप के जद्दे अमजद ने आप के औकात को बचपन ही में ऐसा मिला दिया था के आखिर वक़्त तक रियाज़त व सोम व ख़ल्वत शब् बेदारी तहज्जुद तिलावत व ज़िक्र आदते करीमा हो गए थे और आप की रियाज़त को देख कर आप की दादी जान घबरा जाती और रोकना चाहती तो आप के दादा जान इरशाद फरमाते के रहने दो इन को ऐशो आराम से क्या काम ये कुछ और ही हैं और इन को कुछ और ही होना है ये सात अक्ताबों में से एक कुतब हैं, जिन की बशारत हज़रत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर पानी पती रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत शैख़ बदियुद्द्दीन क़ुत्बे मदार रदियल्लाहु अन्हुमा ने दी है और यही इस सिलसिले बशारत के ख़तम हैं।
जिन बुज़ुरगों से आप ने फैज़ हासिल किया
- हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह ने रूहानी इक्तिसाबे फैज़ हासिल किया हैं मुन्दर्जा अम्बियाए किराम व औलियाए इज़ाम के अस्मा ये हैं:
- हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत व मुसाफा व मुआनका व बैअत हासिल की
- और आग़ोशे रहमत में बैठना,
- हज़रते सय्यदना मूसा अलैहिस्सलाम,
- हज़रते सय्यदना ईसा अलैहिस्सलाम,
- हज़रते सय्यदना सुलेमान अलैहिस्सलाम की ज़ियारत फ़रमाई और इन हज़रात अम्बियाए किराम से
- भी फैज़ पाया,
- हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम व सय्यदुश शुहदा हज़रत सय्यदना इमामे हुसैन की ज़ियारत फ़रमाई और
- भी फैज़ पाया,
- हज़रत शैख़ मोहियुद्दीन अब्दुल कादिर जिलानी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी,
- हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ज़ुन नून मिसरी रहमतुल्लाह अलैह,
- हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह,
- नीज़ अपने अकाबिरे मारहरा मुक़द्दसा से सात अक्ताब व हज़रत मीर सय्यद अब्दुल जलील कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की ज़ियारतों के खास तवज्जुह से बहरा मंद हुए, और बड़े बड़े औलियाए किराम सूफ़ियाए इज़ाम से भी फैज़ हासिल किया।
आप के अख़लाके हसना
शरीअत व तरीकत की इस अज़ीम मंज़िल पर फ़ाइज़ होने के बावजूद आप अहले हाजात खादिमो से खुश दिली से और निहायत नरमी से कलाम फरमाते, आप आला दर्जे के खुश अख़लाक़ थे, छोटे बच्चों को निहायत मुहब्बत से अपने पास बुलाते सर पर हाथ फेरते कुछ चीज़ें अता कर देतें और उनकी बातें सुनते और बूढ़ों का वक़ार फरमाते और यही हिदायत अपने खादिमो के देते।
जूदो सखावत
अख़लाक़ के साथ जू दो सखावत तो आप का मूर्सी मशगला था के कभी कोई साइल आप के दर से महरूम न जाता और अपनी ज़रूरियात व सवाल से ज़ियादा पाता, बाज़ को तोहफे तहाईफ़ व हिदायत के तौर पर चीज़ें अता करते, बहुत से मुसफ़्लिस खादिम की परवरिश को ज़रूरी तसव्वुर करते और इन के हाल का इज़हार भी पसंद नहीं फरमाते, इन की ज़रूरत की चीज़ें खराब व खस्ता पसंद फरमा लेते और नई व उम्दा चीज़ें उन को देते और इरशाद फरमाते इस नमूने की हमको बहुत तलाश थी, हम को बहुत पसंद है, यहाँ तक के आप किसी का लोटा किसी का पानदान और किसी का संदूक वगेरा ले लेते और फ़ौरन नया उम्दा सामान भी उन लोगों को देते हुए कहते के हमारे पास और आ गई हैं अब इस की ज़रूरत नहीं, और श्याद ही हफ्ता भर लिहाफ तोशक, चादर कपड़े, आप के पास रह जाते बल्के उसे भी बख्श देते सुबह से शाम तक अहले हाजात का सिलसिला बंधा रहता और हर वक़्त दरियाए करम जारी रहता, आप इरशाद फरमाते कंजूस की सुहबत से परहेज़ करो, और इन से बचने का तरीका ये है के इन पर कोई माल की फरमाइश की जाए वो खुद दुबारा हाज़िर न होंगें, एक सौदागर ने उम्दा घडी आप को नज़र की, साहब ज़ादे साहब ने पसंद करली और चाहा के किसी दूसरे वक़्त में मांग लूंगा फिर जब शाम को आप से मालूम किया के घडी कहाँ है तो आप ने इरशाद फ़रमाया वो तो दे दी उसी वक़्त क्यों ना ली, यहाँ तक के कभी भी किसी चीज़ को आप ने जमा नहीं फ़रमाया जो पहचानता है वो अता में खरच कर दे।
ऐबों की पर्दा पोशी
“सिराजुल अवारिफ फी वसाया वल मआरिफ़” में तहरीर फरमाते हैं के किसी का ऐब देख कर उस को छुपाना बड़े अज्र का सवाब है और अहलुल्लाह की आदत है अगर नसीहत भी मंज़ूर हो, बरमला न करे बल्के ख़ल्वत में के यही आदत मारहरा मुक़द्दसा के बुज़ुर्गों की है, इस सूरत में एक पर्दा पोशी और ख़ुदाए पाक की एक परतो झलक बंदे पर पड़ती है जिससे मरातिब में ज़ियादा होने की उम्मीद है, और ये आदते करीमा आप की बन चुकी थी, एक खादिम चंद बार बिला इत्तिला हुज़ूर के कलम दान से रूपए गायब करते रहते, आप ने दरयाफ्त फ़रमाया तो उस शख्स ने कहा: हुज़ूर की खिदमत में मुअक्किल बराबर आते जाते रहते हैं कोई ले जाता होगा? आप ने इरशाद फ़रमाया: तुम ने खूब बताया आज मुअक्किलों को जमा कर के चोर को गिरफ्तार करेंगें और सख्त सज़ा देंगें, अब इस खादिम को खौफ हुआ और इन्होने वो सत्तरह रूपए चपके से कलमंदान के नीचे रख दिए और आप से अर्ज़ किया: रूपए कलमदान में मौजूद हैं आप ने मुस्कुरा कर इरशाद फ़रमाया: मियां वो मुअक्किल डर गया, अच्छा हुआ वरना आज ज़रूर हाज़रात होती और उस को सख्त निदामत होती।
एहतिरामे सादाते किराम
और ये भी आप की आदते करीमा थी के हर सालिक (राहे तरीकत पर चलने वाला) पाबंदे शरआ फ़क़ीर चाहे किसी भी खानदान से हों निहायत मुहब्बत से मिलते और फुकराए कादीरिया से ख़ुसूसीयत बरती जाती नीज़ साहब ज़ादगान कालपी शरीफ, व बांसा शरीफ, और हुज़ूर सय्यदना सरकार गौसे आज़म कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की औलाद की निहायत ताज़ीमों तौक़ीर फरमाते, सज्जादा नशीन व खुद्दाम आस्ताना अकाबिर की ख़ातिरो मदारत फरमाते, आप मजज़ूबों से दूर रहने की हिदायत फरमाते और आम खादिमो को भी यही हुक्म था के हर दुर्वेश साहिबे सुलूक पाबंदे शरीअत से बिला लिहाज़ कादिरीयत व चिश्तियत बिला गरज़ दुनियावी सिर्फ बा क़द्रे ज़ियारत मिलो और सिवाए दुआए दीनी मतालिब दुनिया न चाहो, फ़क़ीर की ताज़ीम व खिदमत करो और इन के ख़ुफ़िया हालात का तजस्सुस न करो,
कम से कम ये ज़रूरी है के बिला तहक़ीक़ जलाल खाना जो हाज़िर हो ज़रूर पेश करो के बेहतरीन खैरात भूके को खाना खिलाना है और हमेशा नेक गुमान रखो, जिस फ़क़ीर का ज़ाहिर ख़िलाफ़े शरआ हो उस से अलग रहो, लेकिन बुरा कहना और ग़ीबत व ऐब जोई बेहतर नहीं, हज़राते सादाते किराम की उमूमन इज़्ज़त फरमाते और गैर सादात पर इन को हर हैसियत से मुकद्दम फरमाते और इरशाद फरमाते के सादाते किराम की ताज़ीम इस निस्बत से के वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलाद से हैं, द्दूसरी निस्बते और हालतें इस के बाद हैं, इन का नस्ब शरीफ किसी हल में मुनक़ता नहीं होता और यही मुजिबे ताज़ीम है, अगर हज़राते सादात किसी गैर सय्यद से इरादत व तलम्मुज़ भी कर लें, जब भी शैख़ व उस्ताद पर इन की ताज़ीम सियादत ज़रूरी है सिवाए कस्ब तरीका और कोई खिदमत से इन से ना ली जाए इस लिए ये मखदूम ज़ादाए
आ लमयान हैं और तमाम जहाँ के हकीकी और सच्चे पीर ज़ादे हैं, जो दौलत दीनो दुनिया फकरे आलम में है, सब इन के घर की दी हुई है और इन्ही के ज़रिए से दी हुई है।
अल हुब्बु लिल्लाह वल बुग़्ज़ू लिललह
किसी से दोस्ती और दुश्मनी में भी आप अपने अस्लाफ के नक्शे कदम के सख्त पाबंद थे, और आप की आदते करीमा थी के अल्लाह ही के लिए दोस्ती और अल्लाह ही के लिए दुश्मनी किसी से करते अगर मुनाफिक़ीन व बदमज़हब फासिक मुआलिन दरबार में हाज़िर होते और अपने माआरूज़ात में कामयाब भी हो जाते लेकिन आप के अमल से ज़ाहिर होता के इससे आप बे तवज्जुह ही फरमा रहे हैं और कलबी लगाओ नहीं जो एक सहीहुल अक़ीदह सुन्नी के साथ होता, बल्के जल्द से जल्द उस को रुखसत करते और खादिमो से फरमाते के दुनिया के मुआमलात में हम नहीं रोकते, लेकिन किसी बदमज़हब से दोस्ती बुरी बात और हराम है इन लोगों की मजालिस मज़हबी और खास सुहबतों में हरगिज़ शरीक ना हो के ये कम से कम मूरिसे मुदाहिनत और सुस्ती ऐ तिकाद है।
हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु से कलबी लगाओ
हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु से मुहब्बत व कलबी लगाओ का ये आलम था के आप अक्सर इरशाद फरमाते हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु और खानदाने बरकात मारहरा मुक़द्दसा हम बड़े गय्यूर हैं इन का चाहने वाला जब भी कहीं जाएगा परेशान न होगा और इस बात की तस्दीक में हज़रत शैख़े अकबर मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी का कौल इरशाद फरमाते हैं के यानि एक औरत दो शौहरों की बीवी नहीं हो सकती और न ही एक तालिब दो शेखों का मुरीद, राहे सुलूक में अव्वल व आखिर मरहला ऐ तिकाद शैख़ का तरीका है, जब तक ये नहीं कुछ नहीं और जो एक दरवाज़े का मरदूद है उस की राह भी मस्दूद है, हमारे घर में कौन सी नेमत नहीं जो किसी दूसरे दरवाज़े पर जाएं, बाज़ हमारे मुन्तसिब हज़रात ने दूसरी बैअत की, जिस की वजह से तरह तरह की तकलीफ में मुब्तला हो गए और कहने लगे के फुला ने बद दुआ की है? हाशा हम को इस का ख्याल भी ना आया क्या कीजिये इस खानदाने बरकते के बाज़ मुता अखिखिरीन भी कदम बा कदम हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु हैं इस लिए के वो गवारा नहीं करते के उनके चाहने वाले हक़ीरों ज़लील हों, इस लिए जो इस खानदान की तौहीन करेगा वो ज़लीलो ख्वार होगा इस लिए के हम नो पुश्तों से क़ादरी हैं, और इस निस्बत पर फख्र करते हैं हम को दावा है के कम से कम इस खानदान के चाहने वाले में दो बातें ज़रूर होंगीं, अगरचे वो बिलकुल तरीके से बवाकिफ़ हो और अमल से खली हो अव्वल ये के किसी दूसरे खानदान के फ़क़ीर के हाथ से सदमा नहीं उठाएगा और दूसरा ये के उम्र भर किसी हालत में रहा इंशा अल्लाह तआला वक़्ते आखिर तौबा पर मरेगा के सरकार बहुत आली हैं।
आप के शबो रोज़ के मामूलात
हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की आदते करीमा थी के तहारत फरमाकर नमाज़े तहज्जुद अदा फरमाते, इस के बाद औरदो अशगल में मसरूफ हो जाते नमाज़े सुबह के लिए ताज़ा वुज़ू फरमा कर सुन्नते मुसल्ले पर पढ़ कर बा हालते सेहत मस्जिद में तशरीफ़ ले जाते, अगर कोई भी शख्स कुरआन शरीफ बा कायदा पढ़ता और कम से कम मसाइल तहारत व नमाज़ और जमात से वाकिफ होता इस को हाज़िर पाते तो इक़्तिदा फरमाते वरना खुद नमाज़ पढ़ाते, और बादे नमाज़ इब्तिदा ज़िक्रे जिहर, और अहिद आखिर में बा इख़फ़ा फरमाते, फिर दुआ वज़ाइफ़ पढ़कर नमाज़े अशराक़ व चाशत से फारिग हो कर कुछ हल्का नाश्ता फरमाते, फिर खादिम हाज़िर होते ज़रूरी मअरूज़ात पेश करते नुकूश व दुआ अता करते बाज़ खुद्दाम को उस दिन के लिए हिदायत ज़रूर मिलती और कभी सुलूक, फ़िक़्ह, व तारिख की किताब का मुताला भी करते और हाज़रीन को ज़रूरी फवाइद से आगाह भी करते, अगर किसी जगह तशरीफ़ ले जाना या दावत क़ुबूल करना होती तो ज़वाल के करीब तशरीफ़ ले जा कर बा वुज़ू खाना तनावुल फरमाते, अक्सर हाज़रीन शरीक होते, किसी को कोई चीज़ देना होती, कुछ मरीज़ों को खाने में कुछ तनावुल फरमाकर रहमत फरमाते फारिग हो कर “पान नोश फरमाते” और फ़ौरन पान थूक कर गरारा कुल्ली कर के मुँह साफ कर लेते,
उस वक़्त आम जमात रुखसत हो जाती और खास लोग मौजूद रहते, जो अपने अपने मअरूज़ात पेश करते आप सब के जवाबात अता करते, कभी कोई किताब मुलाहिज़ा फरमाते और कभी हस्बे रविश हुज़ूर सय्यदुल आरफीन सय्यदना शाह हमज़ाह ऐनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की किताब सिरहाने रख कर आराम फरमाते सिर्फ दो एक खुद्दाम मख़सूस हाज़िर रहते गर्मी के मौसम में पंखा झलते वरना बा आहिस्तगी पाऊं एक घंटा जाड़े में और कद्रे ज़ियादा गर्मी में आराम फरमा कर उठते और तहारत फरमाकर नमाज़े ज़ोहर बा जमात अदा करते, बादे नमाज़ कुरआन शरीफ की पूरी मंज़िल पढ़ते फिर दलाईलुल खैरात, फिर हिसने हसीन पढ़ते, और फिर कुछ दुआएं पढ़ने के बाद दरबारे आम हो जाता और खादिम हाज़िर हो कर मअरूज़ात पेश करते, डाक पोस्ट के ज़रिए को खुतूत आते उन के जवाब भी देते, और हाजत रवाई मखलूके खुदा में मसरूफ हो जाते और इल्मी उम्दा नसीहत का आगाज़ फरमाते, यहाँ तक के असर का वक़्त हो जाता असर की नमाज़ अदा फरमाते और औरादे मख़सूसा पढ़ते खास लोग हाज़िर होते और फिर वही दरियाए रहमतो करम की तुग़यानी होती, नमाज़े मगरिब अदा फरमाते इस के बाद बहुत क़लील सा खाना तनावुल करते, नमाज़े इशा अदा करते बादे नमाज़ खास हाज़रीन कुछ इरादत अर्ज़ करते बाज़ हिदायत पाते और रुखसत हो जाते यहाँ तक के मजमा बर्ख्वस्त हो जाता और खुद्दामे खास से ज़िक्रे हज़रत ख़ातिमुल अकाबिर सय्यद शाह आले रसूल अहमदी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु सुनते हुए आराम फरमाते।
तस्नीफी व इल्मी खिदमात
आप की तसानीफ़ में बेशुमार इल्मी नुकात मुज़मर हैं जिन का मुताला अहले इल्म व दानिश के लिए दीनी व दुनियावी फवाइद से खाली नहीं और आप की फ़क़ीदुल मिसाल शख्सीयत की एक झलक आप की तस्नीफ़ात से हासिल की जा सकती है, चंद किताबों के अस्मा ये हैं:
(1) सिराजुल अवारिफ फिल वसाया वल मआरिफ़,
(2) अल असलुल मुसफ्फा फी अक़ाइदे सुन्नते मुस्तफा,
(3) अन्नूर वल बहा,
(4) दलीलुल यकीन,
(5) तहकीके तरावीह,
(6) इश्तेहारे नूरी,
(7) लताईफे तरीकत कशफ़ुल क़ुलूब,
(8) अल जफ़र,
(9) असरारे अकाबिर बरकातिया,
अदबी शेरो शायरी
आप उन तमाम हमा गीर ख़ुसूसीयत के साथ बड़ा पाकीज़ह अदबी ज़ोक भी रखते थे, चुनांचे आप के नज़्म करदह कलाम से इस बात का बा खूबी अंदाज़ा होता है के आप उर्दू फ़ारसी, अरबी के कादिरूल कलाम शायर थे, आप कभी “नूर” और कभी “नूरी” तखल्लुस फरमाते ज़ैल में आप के कलाम से चंद अशआर मुलाहिज़ा फरमाएं:
दूर आँखों से हैं और दिल में जलवा उनका
सारी दुनिया से निराला है ये पर्दा उन का
“कशफो करामात”
दूर दराज़ आने वाहिद में तशरीफ़ ले गए
हज़रत साहबज़ादा सय्यद हुसैन हैदर साहब व साहबज़ादा हकीम सय्यद आले हुसैन साहब जनाब डाक्टर मुहम्मद नासिर खान मारहरवी से ये रिवायत बयान करते हैं के डाक्टर साहब ज़िला एटा के कुछ गाऊं के डाक्टर थे, एक अनजान शख्श हाज़िर हुआ और बयान किया के करीब के गाऊं में एक मरीज़ है आप चलकर देखें और दवा वगेरा तजवीज़ करदें, ? उस शख्स ने माकूल फीस भी पेश की डाक्टर साहब उस के साथ रवाना हुए, आबादी से चंद कोस चलकर दरिया के किनारे एक वहशतनाक जंगल में पहुचें तो उस शख्स ने रुक कर वहां आवाज़दी फ़ौरन दो शख्स लठ्ठियाँ ले कर आ गए और तीनो बदमाशों ने इरादा किया के डाक्टर साहब का सामान और नकद रूपया छीन लें और कत्ल कर के दरिया में डाल दें इन लोगों की भयानक शक्ल तन्हाई जंगल और कत्ल करने के इरादे से डाक्टर साहब को सख्त खौफ पैदा हुआ, उस मुश्किल वक़्त में डाक्टर साहब ने हज़रत को याद फ़रमाया और इस्तिगासा किया बगैर हज़रत की इमदाद के इन के जंगल से छूटना मुश्किल है लिल्लाह मदद फ़रमाई और अपने खादिम को इस बलाए नागहानी से बचाओ इस के साथ ही डाक्टर साहब ने देखा के दूसरी तरफ हज़रत तशरीफ़ फरमा हैं और इरशाद फरमा रहे हैं के घबराओ नहीं हम आ गए हैं, हज़रत के इशारे से वो तीनो भाग गए, इस के बाद में परेशान हुआ के के इस अँधेरी रात में कहाँ जाऊं? हज़रत ने इशारा फ़रमाया के हमारे साथ चले आओ, रवाना हुए और थोड़ी ही देर में अपने गाऊं में पहुंच गए आबादी में पहुंच कर अचानक हज़रत हम से अलग हो गए और मुझ से इरशाद फ़रमाया तुम आबादी में चले आए हो, घर पहुंच कर सुबह तक शदीद बुखार और गश्ती में मुब्तला रहा, दुसरे दिन हज़रत की बारगाह में हाज़िर हुआ हज़रत ने तबस्सुम अमेज़ लहजे में फ़रमाया, अल हम्दुलिल्लाह अंजाम बा खेर हो घबराओ नहीं ये बात ज़िक्र नहीं करना।
आइंदा बातों का इल्म
जनाब मुंशी अब्दुल गफ्फार वालिद मुंशी अब्दुल अज़ीज़ साहब बदायूनी पर कत्ल का एक मुकदमा चला, और पुलिस ने मोके की शहादत भी पेश कर दी, उन्होंने हज़रत की बारगाह में आ कर इस्तिगासा पेश किया हज़रत ने फ़रमाया इत्मीनान से रहो कुछ न होगा तमाम कागज़ात पुलिस के दफ्तर में जमा हो जाएंगें और तुम से जवाब नहीं लिया जाएगा, चुनांचे बावजूद अफसर की रिपोर्ट के कुछ न हो सका और बिला जवाब रिहा हो गए,
इसी तरह मौलवी हाजी मुहम्मद व मौलवी महबूब अहमद साकिनान बदायूं पर मुकदमा चला और बचने की कोई उम्मीद न रही हज़रत ने हुक्म फ़रमाया के कुछ नहीं होगा यहाँ तक के तमाम मुख़ालिफ़ीन आजिज़ आ गए और कुछ न कर सके।
चश्मों चिरागे खानदाने बरकात
हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु के खुलफ़ा की फहरिस्त अहले खानदान के अलावा बहुत तवील है, आप मुजद्दिदे आज़म सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह के मुर्शिदे इजाज़त थे, और सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के लिए अकीदत का सब से बड़ा मरकज़, सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु ने सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह को खिलाफत व इजाज़त सिलसिलए बरकातिया में आता फ़रमाई, आप ने सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह को इल्मे जफ़र, की तालीम भी अता फ़रमाई, और “चश्मों चिरागे खानदाने बरकात” से नादिर व नायाब लक़ब से भी नवाज़ा है, सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के साहब ज़ादे हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह की विलादत यानि पैदाइश की बशारत सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह को मारहरा शरीफ में देते हुए फ़रमाया: “मौलाना आप के यहाँ बेटे की पैदाइश हुई है, में उस का नाम आले रहमान अबुल बरकात मुहीयुद्दीन जिलानी रखता हूँ, फिर सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु बरेली शरीफ तशरीफ़ ले गए अपनी ऊँगली हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह के मुँह में डाल कर शरीअत व तरीकत के सारे ख़ज़ाने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह के मुँह में डाल दिए, मुरीद किया और खिलाफत अता फ़रमाई, ये सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु का तो ही फैज़ था के बरेली के मुस्तफा रज़ा, मुफ्तिए आज़म हिन्द हो गए, रूहानियत के ऐसे पैकर हुए के आज खुश अक़ीदह मुसलमानो का बड़ा तबका ज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह के दस्ते हक परस्त का गरवीदह है,
सुल्तानुल हिन्द ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह में अर्ज़ियाँ
हज़रत मौलाना गुलाम शब्बर बदायूनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी “तज़किराए नूरी” में तहरीर फरमाते हैं के एक मर्तबा हज़रत अपने खादिमो की जमात के साथ सुल्तानुल हिन्द ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के उर्स मुबारक में हाज़िर हुए, और रजाबुल मुरज्जब की पांच तारिख को हज़रत ने इर्शाद फ़रमाया के हज़रत ख्वाजा गरीबा नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह के दरबार से फ़क़ीर को हुक्म हुआ है के तुम खुद्दाम में से जिस किसी को कुछ खास अर्ज़ करना हो तो दरख्वास्त लिख कर हुज़ूर में पेश करो वो अर्ज़ियाँ हमारे ज़रिए से हुज़ूर में पेश होंगी और तुम को हुक्म मिलेगा, खादिम ने अर्ज़ किया के वो अर्ज़िया किस तरीके से दरबार में पेश होंगीं तो आप ने फ़रमाया के आस्ताने के खुश खुद्दाम जिन्नात भी हैं, जो इस काम पर मामूर हैं के तुम्हारी अर्ज़ियाँ पेश करदें ये मअलूम कर के खादिम को ख्याल हुआ के हुज़ूर से वो अर्ज़ियाँ लेकर इस आस्ताने के खादिम की ज़ियारत और खुश ख़ास अर्ज़ हाल करूंगा? यहाँ तक के अर्ज़ियाँ तय्यार हुईं और सब ने जमा कर हज़रत की बारगाह में जमा कीं, और हज़रत ने वो तमाम खुतूत हाफ़िज़ नज़रुल्लाह खान साहब बदायूनी को अता कर के हुक्म फ़रमाया के आस्ताने के मगरिब व जुनुब वाले कोने पर कोहे चिल्ला की जानिब जो एक सरबस्ता दुर्राह है वहां जाओ और जो शख्स तुम से अर्ज़ियाँ तलब करें उसे दे दो?
ये खादिम (मौलाना गुलाम शब्बर बदायूनी) हुक्म सुन कर हाफ़िज़ नज़रुल्लाह खान साहब के पीछे लगा, और हर तरफ निहायत होशियारी से नज़र डालता हुआ ये ख़याल लिए चल रहा था के शायद ज़ियारत का मौका मुझे भी मिल जाएगा, जब मज़कूरा रास्ते में दाखिल हुए तो हाफ़िज़ नज़रुल्लाह खान साहब और मेरे दरमियान थोड़ासा फासला हो गया, बहुत जल्द मेने आगे बढ़कर गौर किया के मज़कूरा जगह यही है अब ज़रूर कोई तशरीफ़ ला कर मिलेंगें और अर्ज़ियाँ तलब करेंगें, लेकिन देखता क्या हूँ के हाफ़िज़ नज़रुल्लाह खान साहब खली हाथ हैं मेने इन से पूछा के अर्ज़ियाँ कहाँ हैं? तो इन्होने जवाब दिया के मज़ाक करते हो! अभी तुम ने मुझ से ये कहा के हुज़ूर ने अर्ज़ियाँ तलब फ़रमाई हैं, सब अर्ज़ियाँ मुझ से ले ली अब मुझ से पूछते हो? इस जवाब पर में हैरान सा हो गया, यहाँ तक के हज़रत की खिदमत में वापस आ कर हाफ़िज़ नज़रुल्लाह खान साहब सारा वाक़िआ बयान किया और में खड़ा रहा, इस के बाद हज़रत ने इरशाद फ़रमाया वही आस्ताने के खादिम थे जो इस सूरत में तुम से अर्ज़ियाँ ले गए, फिर मुझ से पूछा के क्या तू भी गया था?
मेने अर्ज़े हाल किया, इरशाद फ़रमाया ये तुम्हारे सबब से हुआ है, बताओ तुम्हारा क्या इरादा था? जवाब देने पर हज़रत ने इरशाद फ़रमाया, के ये भी हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह,
का खास करम था, वरना मुझ जैसे हज़ारों फुकरा इस दरबार आली में हाज़िर होते हैं और अपना अपना सालाना ले जाते हैं मगर ये खास निगाहें करम बाज़ खुद्दामे खास पर होती है के वो अपने मुता वस्सिलीन की अर्ज़ियाँ बारगाह में पेश करें, तीसरे दिन हम सब को वापस मिलीं और सब पर एहकामात दर्ज थे।
आप का निकाह शरीफ
आप ने दो शादियां कीं पहली शादी अपने चचा सय्यद शाह ज़हूर हुसैन उर्फ़ छोटू मियां की साहब ज़ादी “रुकय्या बेगम” से जब के दूसरी शादी फूफी की लड़की “अल्ताफ फातिमा” से हुई मगर दोनों से कोई औलाद ज़िंदह ना रही।
आप के खुलफाए किराम
अगरचे हज़रत को कोई औलाद नहीं थी मगर आप की रूहानी औलादों की तादाद बेशुमार है जो आप के दामने करम से वाबस्ता हो कर आलमे इस्लाम की अज़ीम खिदमात अंजाम दीं हैं जिन से आप का सिलसिला क़यामत तक ज़िंदह व ताबिन्दह रहेगा, चंद मशाहीर खुलफाए किराम के असमाए गिरामी दर्ज किए जाते हैं,
(1) मुजद्दिदे आज़म सरकार आला हज़रत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी,
(2) हज़रत शाह मेहदी हसन,
(3) हज़रत सय्यद शाह ज़हूर हैदर,
(4) हज़रत हाजी सय्यद शाह हसन,
(5) हज़रत हाजी सय्यद शाह इस्माईल हसन,
(6) हज़रत मौलाना मुहम्मद अताउल्लाह खान,
(7) हज़रत मौलाना मुहम्मद जमीलुद्दीन,
(8) हज़रत मौलाना हकीम मुहम्मद अब्दुल कय्यूम,
(9) हज़रत मौलाना क़ाज़ी मुशीर इस्लाम अब्बासी,
(10) हज़रत मौलाना गुलाम हसनैन,
(11) हज़रत मौलाना मुहम्मद ताहिरुद्दीन,
(12) हज़रत मौलाना मुश्ताक अहमद सहारन पूरी,
(13) हज़रत मौलाना बुखारी,
(14) हज़रत मौलाना सय्यद मुहम्मद नज़ीर,
(15) हज़रत हकीम इनायतुल्लाह बरेलवी,
(16) हज़रत मुफ़्ती अज़ीज़ुल हसन बरेलवी,
(17) हज़रत मौलाना शाह हाफ़िज़ मुहम्मद उमर,
(18) हुज़ूर सय्यदी व मुर्शिदी ताजदारे अहले सुन्नत क़ुत्बे आलम मुफ़्तीए आज़म हिन्द शाह मुस्तफा रज़ा
क़ादरी बरेलवी,
(19) हज़रत मौलाना आदिल,
(20) हज़रत मौलाना अब्दुर रहमान देहलवी,
(21) हज़रत मौलाना गुलाम क़म्बर,
(22) हज़रत क़ाज़ी गुलाम शब्बर सिद्दीकी बदायूनी,
(23) हज़रत ताजुल फुहूल मौलाना शाह अब्दुल कादिर बदायूनी,
(24) हज़रत शाह अब्दुल गफ्फार बदायूनी,
(25) हज़रत शाह औलादे रसूल मुहम्मद मियां रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।
मलफ़ूज़ात शरीफ
हुसूले वरअ के मुतअल्लिक़ आप फरमाते हैं के वरअ कामिल उस वक़्त तक नहीं हो सकता जब तक अपने लिए ये दस सिफ़ात की पाबंदी ना करे, (1) ज़बान को काबू में रखना, (2) ग़ीबत से एहतिराज़ करना, (3) किसी भी आदमी को अपने से हक़ीर ज़लील न जाने, (4) महारिम (जिन का देखना हराम है) उन पर नज़र ना डाले, (5) जब बात कहे तो सच और इंसाफ की कहे, (6) इनआमात व एहसानाते इलाही का ऐतिराफ़ करता रहे, (7) मालो मता राहे खुदा में खर्च करता रहे, (8) अपनी ही ज़ात के लिए भलाई का चाहा न रहे, (9) पांचों वक़्त की नमाज़ की पाबंदी करे, (10) सुन्नते नबी और इजमाए मुस्लिमीन का एहतिराम करे,
बख़ील कंजूसों की सुहबत से दूर रहे, बदमज़हबों की सुहबत से दूर रहे के उस की वजह से अक़ीदे में फर्क व सुस्ती आती है, तरीकत शरीअत से अलग नहीं है बल्के इंतिहाए शहरियत को तरीकत कहते हैं, समा क़व्वाली आज के दौर में राइज है ये सरासर लगव लहो खेल कूद है ऐसी महफ़िल में जाना भी ठीक नहीं और समा के लिए बहुत से शराइत हैं।
विसाल व उर्स
आप ने 11, रजाबुल मुरज्जब मुताबिक इकत्तीस अगस्त 1906, ईसवी को विसाल फ़रमाया।
मज़ार मुबारक
आप का मज़ार मारहरा शरीफ जिला एटा यूपी दरगाहे बरकातिया मारहरा मुक़द्दसा के बरामदे जुनूब की तरफ आप का मज़ार मुबारक ज़ियारत गाहे खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
Share Zaroor Karen Jazakallah
रेफरेन्स हवाला
(1) तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
(2) तज़किराए मशाइखे मारहरा
(3) बरकाती कोइज़
(4) तज़किराए नूरी