हज़रते सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 2)

क़ादरी कर कादरी रख क़दरियों में उठा
क़द्र अब्दुल क़ादिरे कुदरत नुमा के वास्ते

एक आयत की तफ़्सीर

मुजद्दिदे वक़्त शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिदे देहलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु आप के इल्मी कमालात के मुतअल्लिक़ एक रिवायत नकल करते हैं के एक रोज़ किसी कारी, ने आप की मजलिस मुबारक में कुरआन शरीफ की एक आयत तिलावत की, तो आप ने इस आयत की तफ़्सीर में पहले एक माने, फिर दूसरे इस के बाद तीसरे माने, यहाँ तक के हाज़रीन के इल्म के मुताबिक आप ने इस आयत के ग्यारह 11, माने, बयान फरमाए, इस के बाद दीगर वुजूहात बयान फरमाई जिन की तादाद चालीस थी, और हर वजह की ताईद में दलाईले कातिआ बयान फरमाए, हर माने के साथ संद बयान फ़रमाई, आप के इल्मी दलाइल की तफ्सील से सब हाज़रीन मुतअज्जिब हुए । (कलाईदुल जवाहिर, अख़बारूल अखियार फ़ारसी व उर्दू,)

मुहद्दिस अब्दुर रहमान इब्ने जौज़ी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

अल्लामा हाफ़िज़ अबुल अब्बास अहमद बिन अहमद कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के इस मजलिस में शैख़ जमालुद्दीन इब्ने जौज़ी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी भी हाज़िर थे, और आप की 11, ग्यारह वुजुहात बयान करदह के मुतअल्लिक़ मुहद्दिस अब्दुर रहमान इब्ने जौज़ी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने इकरार किया के उन का मुझे इल्म था लेकिन बाद वाली चालीस वुजुहात के मुतअल्लिक़ आप ने ला इल्मी का इज़हार किया, और इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के इल्मी मकाम में भी बाला दस्ती रखने का इकरार किया, और आप के नियाज़ मंद हो गए । (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर,

आप इल्मे हदीस में यदे तूला रखते थे

काज़ियुल कुज़्ज़ात अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन शैखुल इमाद इब्राहीम अब्दुल वाहिद अल मुक़ददसि कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से मन्क़ूल: है के इन के शैख़, अश्श शैख़ मोफिकुद्दीन ने बयान फ़रमाया के जब इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु मजमउल बहरैन 561, हिजरी में बग़दाद शरीफ तशरीफ़ ले गए तो उन्हों ने देखा के आप इल्म, अमल, हाल, और इस्तिफता की रियासत का मर्कज़ बने हुए थे, जब तलबा आप की खिदमत आलिया में पढ़ने के लिए हाज़िर होते तो फिर उन को किसी दूसरे उस्ताद की तरफ तवज्जुह करने की क़तअन ज़रुरत न रहती, क्यूंके आप मजमउल उलूम व फुनून थे, आप कसरत से तलबा को पढ़ाते थे, हाफ़िज़ इमादुद्दीन इब्ने कसीर: ने अपनी तारिख में फ़रमाया है, आप इल्मे हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, इल्मे वाइज़, और उलूमे हक़ाइक़ में “यदे तूला” (कमाल का हुनर, महारत) रखते थे ।

आप के फतावा मुबारक

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के साहब ज़ादे सय्यदी अब्दुल वहाब कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के आप ने 528, हिजरी ता 561, हिजरी तेंतीस साल दरसो तदरीस और फतावा नवेसी के फ़राइज़ सर अंजाम दिए, उल्माए ईराक और गिरदो नवाह के उलमा और दुनिया के गोशे गोशे कोने कोने से आप के पास “फतावे” आते, और आप बगैर मुतालआ, तफ़क्कुर और गोरो ख़ोज़, के जवाब मअक़ूल दुरुस्त देते, हाज़िक उलमा और बहुत बड़े फुज़्ला में से किसी को भी आप के फतावा के खिलाफ कलाम करने की कभी जुरअत नहीं हुई, हज़रत अल्लामा शारानी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं, के उल्माए ईराक के सामने आप के “फतावा” पेश होते तो उन को आप की इल्मी काबीलियत पर सख्त तअज्जुब होता था, और वो ये पुकार उठते थे के वो ज़ाते पाक है जिस ने उन को ऐसी इल्मी नेमत से नवाज़ा है । (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर,

आप फ़ौरन फतवे का जवाब अता करते

उमर बज़ाज़: बयान करते हैं के ईराक के सिवा दीगर शहरों से भी आप के पास “फतावा” आया करते थे, जब आप के पास कोई फतवा आता तो आप को उस में गोरो फ़िक्र करने की ज़रुरत नहीं हुआ करती थी, किसी फतवा को भी आप अपने पास न रखते थे बल्कि उसे पढ़ कर उसी वक़्त उस का जवाब तहरीर फ़रमा देते थे, और हज़रते इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह व हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैह दोनों के मज़हब पर आप फतवा दिया करते थे आप के फतावा उल्माए ईराक पर भी पेश होते थे, तो उन को आप के सुरअत फ़ौरन जवाब देने पर निहायत तअज्जुब होता जो कोई भी आप के पास उलूमे दीनिया में से कोई सा भी इल्म हासिल करने को आता तो वो आप के इल्म में आप का हमेशा मोहताज और दूसरों पर फाइक बुलंद रहता । (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर)

एक अजीब मसअला

बिलादे अजम में से आप के पास एक सवाल आया के एक शख्स ने तीन तलाकों की कसम इसी तौर पर खाई है के वो अल्लाह पाक की ऐसी इबादत करेगा के जिस वक़्त वो इबादत में मशगूल होगा तो लोगों में से कोई शख्स भी इबादत न करता होगा, अगर वो ऐसा न कर सके तो उस की बीवी को तीन तलाकें हो जाएंगीं, तो ऐसी सूरत में कौन सी इबादत करनी चाहिए, इस सवाल से ईराक के उलमा हैरान और शुश्दर रह गए, और इस का जवाब न दे सके, और इस मसले को इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमते अक़दस में उन्होंने पेश किया, तो आप ने फ़ौरन इस का जवाब इरशाद फ़रमाया के वो शख्स मक्का शरीफ चला जाए और तवाफ़ की जगह सिर्फ अपने लिए खली कराए और तनहा सात मर्तबा तवाफ़ कर के अपनी कसम को पूरा करे, पस इस शाफी जवाब से उल्माए ईराक को निहायत ही तअज्जुब हुआ, क्यूंके वो इस सवाल के जवाब से आजिज़ हो गए थे । (कलाईदुल जवाहिर, अख़बारूल अखियार फ़ारसी व उर्दू,)

शरीअत की तीन चादरें मुहम्मद बिन अबिल अब्बास अल खिज़र हुसैन अल मूसली: बयान करते हैं के में ने अपने वालिद माजिद से सुना उन्हों ने बयान किया के 551, हजिरि का वाक़िआ है के आप के मदरसे में, में ने ख्वाब में देखा के मशाइखे बहरो बर जमा हैं, जिन के सदर आप हैं, उन में से बाज़ के सर पर सिर्फ अमामा और अमामा पर एक चादर और कुछ के अमामा पर दो चादरें, और आप के अमामा पर तीन चादरें देखीं, में अपने ख्वाब में सोचता रहा के आप के अमामा पर तीन चादरें कैसी हैं? इतने में मेरी आँख खुली तो में ने देखा के आप मेरे सिरहाने खड़े फ़रमा रहे हैं के एक शरीअत की, और दूसरी हकीकत की, और तीसरी बुज़ुरगी व अज़मत की । (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर)

आप की मजलिसे वाइज़ में जिन्नात का आना

अबू नज़र बिन अल बगदादी: बयान करते है के में ने अपने वालिद माजिद से सुना उन्होंने बयान किया के में ने एक दफा “बा ज़रिए अमल” जिन्नात को बुलाया तो उस वक़्त उस के हाज़िर होने में मामूल से ज़ियादा ताख़ीर हुई जब वो मेरे पास आए तो उन्होंने मुझ से कहा के जिस वक़्त हम इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की मजलिस में हों उस वक़्त तुम हमको न बुलाया करो में ने उन से कहा के क्या आप की मजलिस में तुम लोग भी जाते हो, उन्होंने कहा: के आप की मजलिस में बा निस्बत इंसानो के हम लोग बा कसरत होते हैं,

वो उल्माए इज़ाम जो आप की मजलिस में हाज़िर होते

क़ाज़ी अबू याला मुहम्मद बिन अल्फराउल हम्बली कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी कहते हैं: के हम से अब्दुल अज़ीज़ बिन अख़ज़र ने बयान किया के मुझ से अबू याला कहते थे के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की “मजलिस” में अक्सर बैठा करता था, और शैख़े फिकहीया अबुल फतह नसरूल मुनि, शैख़ अबू मुहम्मद महमूद बिन उस्मान अल बकाल इमाम अबू हफ्स उमर बिन अबू नसर बिन अली अल ग़ज़ाल, शैख़ अबू मुहम्मद हसन फ़ारसी, शैख़ अब्दुल्लाह बिन अहमद खिशाब, अबू अम्र व उस्मान अल मुलक्कब बा शाफ़ईए ज़माना, शैख़ मुहम्मद बिनुल किरानी, शैख़े फ़िकहीया रुस्लान अब्दुल्लाह बिन शअबान, शैख़ मुहम्मद बिन काईदुल आवानी, अब्दुल्लाह बिन सनानुर रदीनि, हसन बिन अब्दुल्लाह राफिउल अंसारी, शैख़ तल्हा बिन मुज़फ्फर बिन गानिमुल अल्समी, अहम्मद बिन सअद बिन वहब बिन अली अल हरवी, याह्या बिन अल बरका महफ़ूज़ुद्दाबिकि, अली बिन अहमद बिन वहबुल अज़जी, काज़ियुल कुज़्ज़ात अब्दुल मालिक बिन ईसा बिन हिरयासुल मुराई, अब्दुल मलिक बिन कालबाई के भाई उस्मान और उन के साहब ज़ादे अब्दुर रहमान अब्दुल्लाह बिन नस्र, अली बिन अबू ज़ाहिरूल अंसारी, अब्दुल गनी बिन अब्दुल वाहिद अल मुकददसि अल हाफ़िज़, इमाम मोफीकुद्दीन अब्दुल्लाह बिन अहमद बिन मुहम्मद किदामतुल क़ुदसी हम्बली, इब्राहीम बिन अब्दुल वाहिद अल मुकददसि हम्बली, रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन वगैरह आप की मजलिस में रहा करते थे, शैख़ शमशुद्दीन अब्दुर रहमान बिन अबू उमर अल मुकददसि कहते हैं के शैख़ मोफीकुद्दीन ने मुझ से बयान किया के में ने और हाफ़िज़ अब्दुल गनी ने एक ही वक़्त में इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के दस्ते मुबारक से खिरका पहना फिर आप से हमने “इल्मे फ़िक़्ह, इल्मे हदीस” पढ़ी और आप की सुहबते बा बरकत से मुस्तफ़ीद हुए मगर अफ़सोस के हम आप की हयाते मुस्ताआर से सिर्फ बीस दिन से ज़ियादा फाइदा नहीं उठा सके । (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर)

आप मजलिसे वाइज़ में हुजूम

हज़रत शैख़ अब्दुल जिबाई कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के मुझे इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने बताया के इब्तिदा में मेरे पास दो या तीन आदमी बैठा करते थे, फिर जब शोहरत हुई, तो मेरे पास मखलूक का हुजूम होने लगा, उस वक़्त में बगदाद शरीफ के मोहल्ला हल्बा की ईद गाह में बैठा करता था, लोग रात को मशअले और लालटेन ले कर आते फिर इतना इज्तिमा होने लगा के ये ईद गाह भी लोगों के लिए ना काफी हो गया, इस वजह से बाहर बड़ी ईद गाह में मिम्बर रखा गया लोग दूर दराज़ से कसीर तादाद में घोड़ों, खच्चरों, गधों और ऊंटों पर सवार हो कर आते, तकरीबन 70000, सत्तर हज़ार का मजमा होता था, ]आप के साहब ज़ादे सय्यदना अब्दुल वहाब कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं, आप की मुबारक मजलिस में उलमा, फुकहा, और मशाइख, वगैरा बा कसरत तादाद में हाज़िर होते थे, और आप की मजलिस मुबारक में “अफ़ाज़िल उल्माए किराम” की तादाद चार सौ थी, कलम और दवात ले कर हाज़िर होते थे ।

मजलिस के तमाम हाज़रीन तक आप की आवाज़ पहुँचती

आप की मजलिस मुबारक में बावजूद ये के हुजूम भीड़ बहुत ज़ियादा होती थी, लेकिन आप की आवाज़ मुबारक जितनी नज़दीक वालों को सुनाई देती थी इतनी ही दूर वालों को सुनाई देती थी, यानि दूर और नज़दीक वाले हज़रात यकसां, एक जैसी बराबर आप की आवाज़ मुबारक बिलकुल साफ सुनते थे ।

आप की मजलिस में अम्बिया औलिया की तशरीफ़ आवरी

मुजद्दिदे वक़्त शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिदे देहलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के आप की मजलिस मुबारक में कुल औलिया अल्लाह, अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलाम, जिस्मानी हयात के साथ और अरवाह के साथ, और जिन्नात व मलाइका, तशरीफ़ फरमा होते थे, और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी तरबियत व ताईद के लिए जलवा फरमा होते थे, और हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम तो अक्सर औकात मजलिस शरीफ के हाज़रीन में शामिल होते थे और मशाइखे ज़माना में से जिन से भी हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम की मुलाकात होती तो उस को आप की मजलिस में हाज़िर होने की ताकीद फरमाते नीज़ इरशाद फरमाते के जिस को भी फ़लाहो बहबूद की खवाइश हो उस को इस मजलिस मुबारक की हमेशा हाज़री ज़रूरी है । इसी तरह हज़रत शैख़ अबू सईद कील्वी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के में ने कई बार नबी करीम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और दीगर अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलाम को आप की मजलिस मुबारक में रोनक अफ़रोज़ होते हुए देखा, और फ़रिश्ते आप की माजिस में गिरोह दर गिरोह हाज़िर होते थे, और इसी तरह रिजालुल ग़ैब भी आप की मजलिस में हाज़िर होते थे, और हाज़री में एक दूसरे से सब्कत हासिल करते थे ।

आप की मजलिस में बारिश बंद हो गई

एक मर्तबा इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु बाज़ अहले मजलिस से खिताब फरमा रहे थे के इतने में बारिश होने लगी, आप ने आसमान की तरफ नज़र मुबारक उठा कर बारगाहे रब्बुल आलमीन में अर्ज़ की, ऐ अल्लाह! में तेरे लिए लोगों को जमा करता हूँ, और तू इन को मुन्तशिर बिखेरता है, आप का ये कहना ही था के बारिश बंद हो गई और इस के इर्द गिर्द बारिश होती है,

मजलिस की कैफियत

आप की मजलिस मुबारक में ना ही किसी को थूक आता था, ना ही खाकारता था और न ही कोई किसी से कलाम करता था, किसी फर्द को मजलिस में खड़े होने की जुर्रत भी नहीं होती थी, आप की तकरीर दिल पज़ीर से लोगों की वज्दानी कैफियत होती थी, मुहद्दिस अब्दुर रहमान इब्ने जौज़ी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी जैसे अज़ीमुल मरतबत पर आप की मजलिस मुबारक में वज्द तारी हो गया था । (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर,

मदरसा निज़ामिया इल्मो इरफ़ान का मर्कज़

528, हिजरी में आप के मदरसा निज़ामिया की वसी ईमारत तय्यार हो गई, आप ने बड़ी जिद्दो जाहिद से दरस व तदरीस, इफ्ता व वाइज़ के काम को शुरू फ़रमाया, दूर दराज़ से लोग हाज़िर होते, उलमा फुज़्ला, सुल्हा, की एक अज़ीम जमाअत तय्यार हो गई, और आप से इल्मो इरफ़ान हासिल कर के अपने अपने शहरों को चले गए और तबलीग़े दीन में मसरूफ हो गए, तमाम ईराक में आप के मुरीद फ़ैल गए, आप के औसाफ़ व ख़ासाइल हमीदह की वजह से लोगों ने मुख्तलिफ किस्म के अल्काबात से आप को मुलक्कब किया, बहुत से उलमा, और फुज़्ला, शरफ़े तलम्मुज़, से मुशर्रफ हुए और एक खल्के कसीर आप के इल्मो इरफ़ान से फ़ैज़याब हुई, जिन की तादाद बेशुमार है बतौरे तबर्रुक चंद हज़रात के असमाए गिरामी दर्ज करते हैं ।


आप के मदरसे से मशाईखिने इज़ाम की अकीदत

इब्ने नुक़्ततुस सर लफिनि: ने बयान किया है के हज़रत शैख़ बका बिन बतू, और हज़रत शैख़ अली बिन हीती, और शैख़ कील्वी, रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन आप के मदरसे का दरवाज़ा झाड़ते साफ़ करते और इस पर छिड़काव किया करते थे, और आप की इजाज़त के बगैर आप के पास अंदर नहीं जाते थे और जब इजाज़त ले कर ये लोग अंदर जाते तो आप इन से फरमाते, बैठो तो ये लोग आप से पूछते, हमें अमन, है आप फरमाते हाँ! तुम्हें अमन है फिर ये लोग अदब के साथ बैठ जाते, और जब आप सवारी पर सवार होते और ये लोग उस वक़्त मौजूद हो जाते तो ये लोग ज़ीन पर हाथ रख कर दस पांच कदम आप के साथ जाते आप हर चंद इन को मना करते मगर ये लोग कहते, इसी तरह से तो अल्लाह पाक से तक़र्रुब, हासिल किया जाता है, नीज़ शैख़ मौसूफ़: बयान करते हैं के में ने मुल्के ईराक के बहुत से मशाइख़ों रहिमहुमुल्लाहु तआला को जो आप के हम अस्र थे के जब आप के मदरसे में आते तो मदरसे की “चौखट को चूमा” करते । आप के दरवाज़े पर बादशाहों के ताज टकराते थे, जब आप को सलाम करने के लिए हुजूम होता था। (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर)

आप के तलामिज़ाह, शागिर्द

मुहम्मद बिन अहमद बख्तियार, अबू मुहम्मद अब्दुल्लाह बिन अबुल हसन जिबाई, फ़रज़न्द अब्बास अल मिसरी, अब्दुल मुन इम बिन अली हरानी, इब्राहीम अल हद्दाद यमनी, अब्दुल असद यमनी, अतीफ बिन ज़ियाद यमनी, उमर बिन अहमद यमनी अल हिजरी, मुदाफ़े बिन अहमद इब्राहीम बिन बशारतुल अदली, उमर बिन मसऊद अल बज़ाज़, उस्ताद मीर मुहम्मद अल जिलानी, मक्की बिन अबू उस्मान सआदि, व फ़रज़न्दान अब्दुर रहमान व सालेह अबू उस्मान सादी, अबुल कासिम बिन अबू बक्र अहमद व अतीक बिरादरान बिन अबू बक्र अब्दुल अज़ीज़ बिन अबू नस्र खबाईदी, व मुहम्मद बिन अबुल मकारिम हुज्जातुल्लाह याकूबी, अब्दुल मलिक बिन दियाल व अबुल फराह फ़रज़न्दाने अब्दुल मलिक बिन दियाल, युसूफ बिन मुज़फ्फर अल आकूली, अहमद बिन इस्माईल बिन हमज़ाह, उस्मान यासिर, मुहम्मद अलवाइज़ुल ख़य्यात, अब्दुल करीम बिन मुहम्मद अल सिरि, अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन वलीद, मुहम्मद बिन अहमद अल मुअज़्ज़िन, युसूफ हिब्बातुल्लाह दमिश्क़ी, अहमद बिन मुती, शरीफ अहमद बिन मंसूर, अली बिन अबू बक्र बिन इदरीस, ताजुद्दीन बिन बतहा, अब्दुल लतीफ़ बिन अल हरानी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, इन के अलावा भी शागिर्दों की कसीर तादाद है, जिन के असमाए गिरामी बखौफे तवालत दर्ज नहीं किए गए ।

आप की वाइज़ो नसीहत

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के फजन्दे अर्जमन्द हज़रत सय्यदना अब्दुल वहाब कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने 521, से 567, हिजरी तक चालीस साल मखलूक को “वाइज़ो नसीहत” फ़रमाया, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु हफ्ते में तीन दिन जुमा, मंगल, बुध को “वाइज़ो नसीहत” फरमाने के लिए मुतअय्यन फरमाए थे, हज़रत इब्राहीम बिन सअद कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के जब इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु का लिबास पहन कर ऊंचे मकाम पर जलवा अफ़रोज़ हो कर वाइज़ फरमाते तो लोग आप के कलाम मुबारक को बागोर सुनते और इस पे अमल पैरा होते । हाफ़िज़ इमादुद्दीन इब्ने कसीर अपनी तारिख में फरमाते हैं के आप नेक बात की तलकीन फरमाते और बुराई को रोकने और उससे बचने की ताकीद फरमाते, उमरा, सलातीन, खासो आम को मिम्बर पर रौनक अफ़रोज़ हो कर उन के सामने नेक बात बताते, जो कोई ज़ालिम शख्स को हाकिम मुकर्रर करता तो उस को उससे मना फरमाते, आप को बुराई से रोकने पर किसी से क़तअन ख़ौफ़ो खतर न होता । बादशाहों और दुनिया के हुक्काम की वुक़अत बा हैसियत दुनिया आप की निगाह में मुतलक़न न थी, बादशाहों से गुफ्तुगू निहायत बे बाकी से फरमाते उन को नसीहत फरमाते तो ऐसी ऐसी खरी खरी बे लाग बातें होतीं, जिस की कुछ हद नहीं, | (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर,

ज़ालिम क़ाज़ी को मअज़ूल करना

ख़लीफ़तुल मुक़तज़ा ला अमरुल्लाह ने जब अबुल वफ़ा याह्या बिन सईद को जो “इब्ने मज़ाहिमुज़ ज़ालिम” के नाम से मशहूर था उहदाए क़ज़ा पर मामूर किया तो इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने मिम्बर पर जलवा अफ़रोज़ हो कर खलीफा को फ़रमाया, तुम ने एक बहुत बड़े ज़ालिम शख्स को मंसबे क़ज़ा पर मुकर्रर किया है, तुम कल अल्लाह पाक की बारगाह में जो निहायत ही महरबान है क्या जवाब दोगे? खलीफा ये आप का वाइज़ सुन कर काँप उठा, और रोने लगा नीज़ उसी वक़्त अबुल वफ़ा याह्या बिन सईद को उहदाए क़ज़ा, से मअज़ूल कर दिया, (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर)

थैली से खून निकला

शैख़ अबुल अब्बास खिज़र हुसैन मूसली कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के एक रात हम कई लोग इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के मदरसे में हाज़िर थे के खलीफा मुसतंजिद बिल्लाह अबुल मुज़फ्फर युसूफ बिन खलीफा मुक़तज़ा ला अमरुल्लाह आप की खिदमत में हाज़िर हुआ, और सलाम अर्ज़ करने के बाद मोअद्दब तरीके से बैठ गया, खलीफा आप की खिदमत में वाइज़ो नसीहत हासिल करने की गरज़ से हाज़िर हुआ, और साथ में दस थैलियां जो रूपों से भर पूर थीं लाया, आप की खिदमत में इन का नज़राना पेश किया, आप ने कबूल करने से इंकार फरमा दिया, खलीफा ने बहुत ज़ियादा इसरार किया तो आप ने बहुत ज़ियादा इसरार करने की वजह से इन में से दो थैलियां जो उम्दा थीं उठालीं एक को दाएं हाथ में दूसरी को बाएं हाथ में पकड़ कर निचोड़ा, तो उन थैलियों में से खून टपकने लगा, आप ने खलीफा को फ़रमाया: तुम खुदाए पाक से नहीं डरते के लोगों का खून निचोड़ कर इस माल को मेरे पास लाए हो, खलीफा ये सुन कर बेहोश हो गया, फिर आप ने इरशाद फ़रमाया! अगर मुझे आले रसूले पाक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से होने की इज़्ज़तो हुरमत मद्दे नज़र न होती तो में इस खून को इस के महिल्लात तक बहा देता, ख़लीफ़ए वक़्त हुज़ूर की मजलिस में हाज़िर होता तो आप के मुबारक हाथों को बोसा देता और अदब से दस्त बस्ता आप के सामने बैठ जाता, अगर आप कभी ख़लीफ़ए वक़्त को कभी तहरीर लिखते तो इस अंदाज़ से लिखते जैसे बादशाह मातहत को फरमान जारी करता है, खलीफा आप की तहरीर को देखता और चूम कर आँखों और सर पर रखता, और ज़बाने हाल से कहता के हज़रत का फरमान बिलकुल दुरुस्त है ।

लक़ब “मुहीयुद्दीन” की वजह तस्मिया

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु से किसी ने आप के लक़ब “मुहीयुद्दीन” की वजह तस्मिया के मुतअल्लिक़ पूछा: तो आप ने फ़रमाया, के 511, हिजरी का वाक़िआ है के में अपनी बाज़ सियाहत से बगदाद वापस आया तो उस वक़्त मेरा एक मरीज़ पर से जो के निहायत नहीफुल बदन ज़र्द रंग था गुज़रा उस ने मुझ को सलाम किया और अपने नज़दीक बुला कर कहा के मुझे उठा कर बिठा लो में ने सलाम का जवाब दे कर उस के पास गया और उसे में ने उठा कर बिठाया तो वो देखते ही देखते उस का जिस्म निहायत सेहत मंद होने लगा और रंग व सूरत में तरोताज़गी आने लगी और खुश रंग मालूम होने लगा गरज़ उस की हालत दुरुस्त हो गई! मुझे उससे कुछ खौफ सा हुआ फिर उस ने मुझ से कहा क्या तुम मुझे जानते हो? में ने कहा: नहीं उस ने कहा में दीन हूँ, मरने के करीब हो गया था के अल्लाह पाक ने मुझे तुम्हारी बदौलत अज़ सरे नो ज़िंदह किय फिर में उस को छोड़ कर जामा मस्जिद आया यहाँ पर एक शख्स ने आ कर मुझ से मुलाकात की और मुझे “या सय्यदी मुहीयुद्दीन” कह कर पुकारा फिर जब में नमाज़ पढ़ने लगा तो चारों तरफ से लोग मुझ को “मुहीयुद्दीन” कह कर पुकारने लगे और मेरी बैअत करने लगे, हांलांके इससे पहले कभी किसी ने मुझ को इस नाम से नहीं पुकारा था । (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर,

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आप को वाइज़ के लिए हुक्म देना

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के एक दिन में ने ज़ोहर के वक़्त से पहले हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा आप ने मुझ से फ़रमाया: मेरे फ़रज़न्द! तुम वाइज़ो नसीहत क्यों नहीं करते में ने अर्ज़ किया मेरे बुज़र्ग वार वालिद माजिद! में एक अजमी शख्स हूँ फ़ुसहाए बगदाद के सामने किस तरह से ज़बान खोलूं आप ने फ़रमाया, अपना मुँह खोलो में ने मुँह खोला आप ने सात दफा मेरे मुँह में लुआब दहन डाला फिर आप ने फ़रमाया: जाओ तुम वाइज़ो नसीहत करो और हिकमते अमली से लोगों को नेक बात की तरफ बुलाओ फिर में ज़ोहर की नमाज़ पढ़ कर बैठा तो खलकत मेरे पास जमा हो गई और में कुछ मरऊब सा हो गया उस के बाद में ने हज़रते अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम को देखा आप ने फ़रमाया: अपना मुँह खोलो में ने मुँह खोला आप ने छेह 6, बार इस में लुआबे दहन डाला में ने अर्ज़ किया आप ने पूरे सात बार क्यों नहीं डाला? आप ने फ़रमाया: हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अदब करता हूँ फिर आप मुझ से पोशीदह हो गए फिर में ने देखा के खवासे फिकरे दिल के दरिया में गोता लगा लगा कर हक़ाइक़ व मआरिफ़ के मोती निकालने लगा और साहिले सीना पर डाल डाल कर ज़बाने मुतरजम व फ़साना लोगों को पुकारने लगा, लोग आ कर इताअत व इबादत के बे बहा गिरां मायाए कीमतें गुज़ार कर उन्हें खरीदते और खुदा के घरों को ज़िक्रे इलाही से आबाद करते । (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर,

हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम का आप से इम्तिहान लेना

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के इन फुतूहात के बाद मेरी ज़बान की गोयाई पैदा हो गई और में लोगों को वाइज़ व नसीहत करने लगा इस के बाद मेरे पास हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए ताके जिस तरह से आप औलियाए किराम का इम्तिहान लिया करते थे आप मेरा भी इम्तिहान लें, मुझ पर आप के राज़ो नियाज़ का और जो कुछ इस वक़्त आप से मेरी गुफ्तुगू होनी थी इस का कश्फ़ कर दिया गया फिर जब्के आप एक सुकूत के आलम थे मेने आप से कहा: के आप ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से फ़रमाया था के तुम मेरे हमराह ना रह सकोगे में कहता हूँ के आप मेरे साथ ना रह सकेंगें अगर आप इसराईली हैं तो आप इसराईली होंगें और में मुहम्मदी हूँ आप मेरे साथ रहना चाहें तो में हाज़िर हूँ और आप भी मौजूद हैं और ये मारफ़त की गेंद, और ये मैदान, है और ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं और ये ख़ुदाए पाक है और मेरा कसा हुआ घोड़ा और ये मेरा तीर व कमान, और ये मेरी तलवार है ।

यहुदू नसारा का इस्लाम कबूल करना और फासिकों का तौबा करना

शैख़ उमर कीमा ने बयान किया है के आप की कोई मजलिस ऐसी ना होती थी के जिस में यहुदू नसारा, इस्लाम कबूल न करते हों या डाकू कातिल और बद ऐतिकाद, लोग आ कर तौबा ना करते हों एक दफा आप की मजलिस में एक राहिब (जिस का नाम सनान था) आया और आ आकर उस ने इस्लाम कबूल किया, आम मजमे में खड़े हो कर उस ने बयान किया के में यमन का रहने वाला हूँ मेरे दिल में ये बात पैदा हुई के में इस्लाम कबूल कर लूँ फिर इस बात का में ने मुस्तहकम इरादा कर लिया के यमन में जो शख्स सब से अफ़ज़ल होगा में उस के हाथ पर इस्लाम कबूल करूंगा में इस बात की फ़िक्र में था के मुझे नींद आ गई में ने हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम को ख्वाब में देखा आप ने फ़रमाया, सनान तुम बगदाद जाओ और “शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी” के हाथ पर इस्लाम कबूल करो क्युंके वो इस वक़्त रूए ज़मीन के तमाम लोगों से अफ़ज़ल हैं, शैख़ मौसूफ़: बयान करते हैं के इसी तरह से एक दफा और आप के पास 13, शख्स आए और उन्होंने भी इस्लाम कबूल कर के बयान किया के हम लोग नसाराए अरब से हैं, हम ने इस्लाम कबूल करने का क़स्द किया था लेकिन हम फ़िक्र में थे के किस के हाथ पर इस्लाम कबूल करें इसी बीच में हमें हातिफ़ ने पुकार कर कहा के तुम लोग बगदाद जाओ और “शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी” के हाथ पर इस्लाम कबूल करो क्युंके इस वक़्त जिस कदर ईमान तुम्हारे दिलों में इन की बरकत से भरा जाएगा इस कदर ईमान तुम्हारे दिलों में भरा जाना और किसी जगह मुमकिन नहीं । (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर,

रेफरेन्स हवाला
  • बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार,
  • तबक़ातुल कुबरा जिल्द 1, शआरानी,
  • कलाईदुल जवाहिर,
  • हयाते गौसुलवरा,
  • सीरते गौसे आज़म,
  • ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
  • अख़बारूल अखियार फ़ारसी व उर्दू,
  • मसालिकुस्सलिकीन जिल्द अव्वल,
  • अवारिफुल मआरिफ़,
  • तज़किराए मशाइखे इज़ाम जिल्द अव्वल,
  • सैरुल अखियार महफिले औलिया,
  • हक़ीकते गुलज़ारे साबरी,
  • जामे करामाते औलिया जिल्द 1,
  • अल्लाह के मशहूर वली,
  • तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
  • सीरते गौसुस सक़लैन,
  • सफीनतुल औलिया,
  • नफ़्हातुल उन्स,
  • गौसे पाक के हालात,

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