हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु

हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हुब्बे अहले बैत दे आले मुहम्मद के लिए
कर शहीदे इश्के हमज़ाह पेशवा के वास्ते

विलादत शरीफ

आप की पैदाइश मुबारक मारहरा मुक़द्दसा में चौदा रबीउल आखिर 1131, हिजरी में हुई।

इस्म शरीफ

आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी” है और लक़ब असादुल आरफीन, क़ुत्बुल कमिलीन, है।

आप के वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का नाम मुबारक हज़रत सय्यद शाह अबुल बरकात आले मुहम्मद मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु है।

तालीमों तरबियत

आप ने अपने वालिद माजिद की खिदमते बा अज़मत में जुमला उलूमे ज़ाहिरी व बातनि की पूरी तकमील की नीज़ “मक़ामाते सुलूक व बैअतो खिलाफत भी” अपने वालिद माजिद से ही पाई, और इन्ही की फैज़े तरबीयत से जुमला बुलंद मक़ामात की तकमील फ़रमाई वालिद गिरामी के अलावा हज़रत शम्सुल उलमा मौलाना मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु से भी उलूमे ज़ाहिरी हासिल फरमाए और फन्ने तिब हकीम अताउल्लाह साहब से हासिल फ़रमाया, और शैख़ ढड्डा लाहोरी से भी मुतअद्दिद दरसियात को हासिल फ़रमाया।

आप की इल्मी लियाकत

हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु अपने इल्मो फ़ज़्ल में एक रोशन हैसियत रखते थे, इल्मे तफ़्सीर, इल्मे हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, तसव्वुफ़, ज़फर, तकसीर, तिब, और अदब सभी कुछ आप की फ़िक्र में रोशन थे, आप के क़ुतुब खाने में करीब करीब सोला हज़ार किताबें मुतफ़र्रिक़ अलग अलग उलूमो फुनून की थीं, हज़रत ने बाला इस्तीआब अव्वल ता आखिर इन सब को देखा और जो नतीजा अखज़ किया वो अपने दस्ते कलम से तहरीर फ़रमाया, सैंकड़ों किताबों की किताबत फ़रमाई इस के साथ ही इल्मे सीना तो आप का हिस्सा था ही,

अगर किसी को हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु के इल्मी जोहर का मुज़ाहिरा देखना है तो इन तमाम उलूम का निचोड़ आप की मारकतुल आरा किताब “काशिफ़ुल इस्तार” का मुताला करे, हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु को आम उलूम के अलावा इन नादिर उलूम में भी कमाल हासिल था जो उलूमे इस्लामिया के जानने वालों को अजनबी से अजनबी लगते हैं, हज़रत को जफ़र, तकसीर, फल्कियात, और अर्ज़ियात, और ख़ुसूसन अक्सीर साज़ी के इल्म में भी महारत हासिल थी, हज़रत ने इल्मे तिब बारवी सदी हिजरी के मुमताज़ हकीम हाज़िक अताउल्लाह रहमतुल्लाह अलैह से हासिल किया था, जिन को हज़रते हमज़ाह ऐनी रहमतुल्लाह अलैह के बाक़ौल दस्ते मसीहाई बी फ़ज़्लिहि तआला हासिल था।


फ़ज़ाइलो कमालात

असादुल आरफीन, क़ुत्बुल कामिलीन, सुफिए वक़्त, हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु आप सिलसिलए आलिया क़ादिरिया रज़वीया के 35, वे पैंतीसवें इमाम व शैख़े तरीकत हैं, आप इल्मों फ़ज़ल में यक्ता, माया नाज़ मुसन्निफ़, अदीमुन नज़ीर आरिफ और अकाबिर सूफ़ियाए व औलियाए इज़ाम से थे, आप साहिबे करामात व तसर्रुफ़ थे और बड़े बड़े मुजाहिदात की मंज़िलों को आप ने तय फ़रमाया, आप निहायत ही ज़हीन थे, 11, साल की उमर शरीफ में ही आप ने जुमला उलूमो फुनून हासिल कर लिया था, और 11, साल की मुद्दत तक अपने जद्दे अमजद हज़रत सय्यद शाह बरकतुल्लाह माहरहरवी रदियल्लाहु अन्हु की तरबियत में रह कर फियूज़ो बरकात हासिल किए, यूं तो हज़रत ने अपनी कोलाहे मुबारक यानि टोपी मुबारक को आप के सर पर चार साल की उमर में ही रख दिया था और सीली आप के कमर में बाँधी,

हज़रत शैख़ुश शीयूख शैख़े अकबर मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी रदियल्लाहु अन्हु, की तस्नीफ़ात से आप को ख़ास ज़ोको शोक था, खुद अक्सर मुलाहिज़ा फरमाते और ख़ास खादिमो को इन का दरस देते, आप की इल्मी जलालत का अंदाज़ा आप की तस्नीफ़ात ख़ुसूसन “फ़सुल कलिमात” से आसानी के साथ मिल सकता है, ये किताब दुनिया भर के उलूम पर हावी है और फिर किसी किताब से अखज़ व खुलासा नहीं, उसूले फन व कुल्लियात व ज़रूरियात के मसाइल अजब दिलकश अंदाज़ से तहरीर फरमाए हैं, जिस की दो जिल्दें हैं, जिल्द अव्वल इलाहबाद में साहबज़ाद गान हज़रत शाह अफ़ज़ल इलाह आबादी के पास है, और दूसरा हिस्सा सरकारे मारहरा खानदाने बरकत में मोजूद है है,

आप की शान बड़ी निराली है कभी आप एक आलिमे दीन परवर हैं के हमा तन शरीअत की हिमायत में हैं, कभी एक शहंशाए बेकस नवाज़ हैं के सरापा रईयत परवरी में मशगूल हैं, कभी एक शैख़े आरिफ हैं हज़ारों की तादाद में खुदा की मखलूक आप से फ़ैज़याब हुई, कभी एक तबीबे मसीहा, नफ़्स हैं के सदहा मरीज़ शिफा पा रहे हैं, कभी एक करीम दरिया दिल के साईलों की तलाश में डूबे हुए हैं, कभी एक मुदब्बिर बहादुर हैं के बड़े बड़े अक्ल मंद हुज़ूर से तदबीर पूछ रहे है, और बड़े बड़े उमूरे सल्तनत हुज़ूर के इशारों से फैसल हो रहे हैं, फिर हर शान में शाने वहदत एनीयत ज़ाहिर होती, “दस साल की उमर शरीफ से नमाज़े तहज्जुद शुरू फ़रमाई तो विसाल शरीफ तक कभी कज़ा नहीं हुई” आप का शुमार अपने दौर के बहुत मुमताज़ आमिलों में भी होता था, “दुआए सैफ़ी” जो एक बहुत ही जलाली वज़ीफ़ा है इस वज़ीफ़े के आप माहिरीन में शुमार किए जाते थे, सरकारे हमज़ाह रहमतुल्लाह अलैह की वो छुरियां आज भी खानदाने बरकात के तबर्रुकात में मोजूद हैं जिन पर आप दुआए सैफ़ी तिलावत फरमाते थे।

आदातो सिफ़ात

हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु के आदात व सिफ़ात अपने अस्लाफ किराम ख़ुसूसन वालिदे मुहतरम के नक़्शे कदम पर थे जू दो सखावत, अख़लाक़ो मुरव्वत में अपनी मिसाल आप थे, हमा वक़्त तल्कीनों हिदायत और मखलूके खुदा की तालीमों तरबीयत में मसरूफ होते इबादतों रियाज़त में भी यगानाए अस्र थे, दस साल की उमर शरीफ से आप ने तहज्जुद की नमाज़ शुरू फ़रमाई, जो मुसलसल बराबर बिला नागा यौमे विसाल तक पढ़ते रहे, इशाअते इस्लाम व इस्लाहे मुस्लिमीन के लिए आप की कोशिश वक़्फ़ थीं।

मसनदे खिलाफत पर जलवा अफ़रोज़

आप को ताजे खिलाफत 34, साल की उमर शरीफ में अता किया गया और वालिद मुहतरम के उर्स चेहलल्म में मशाइख़ीने इज़ाम के मुकद्द्स हाथों से दस्तारे फ़ज़ीलत सजाई गई, आप खुद ही इरशाद फरमाते हैं के: 34, साल हुए के मेने इस मकान में इक़ामत इख्तियार फ़रमाई और मेरी उमर 63, साल को पहुंची, एक रोज़ फ़क़ीर को ख्याल आया के निस्बते ज़न्नी से हर चंद के सियादत सादाते बिलगिराम मशूरो मुसल्लम है, लेकिन यकीनों वुसूक़ नहीं, देखता हूँ के हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ फरमा हैं और दोनों बाज़ू चौखट संगी के जो खानकाहे बरकातिया में नसब है थामे खड़े हैं और इरशाद फरमाते हैं, “तुम मेरे बेटे हो और प्यारे बेटे हो।

आप के लंगर खाने में सौ तरह के खाने

आप जूदो सखा बख्शिसो अता में बे मिसाल थे, और अपने वालिद माजिद के उर्स में महमानो की खातिर दारी की एक ऐसी मिसाल छोड़ी है के अपने वक़्त के शहनशाओ बादशाह भी ऐसी पुर तकल्लुफ दावत शायद कर सके, चुनांचे मारहरा शरीफ के उर्स में एक वक़्त में ही आदमियों का हुजूम भीड़ होती थी, इस का अंदाज़ा इस वाकिए से लगाया जा सकता है के एक साल उर्स में दरगाह के बाग़ बेर और आम सब को तकसीम किए गए, और एक एक बेर सब को दिया गया, जब इस का शुमार किया गया तो चौबीस हज़ार की गिनती मालूम हुई, और उर्से मुबारक इस शानो एहतिमाम से मनाया जाता था के हिंदुस्तान भर में इस उर्स मुबारक की शोहरत थी, आप उर्स मुबारक में बिला मुबालगा सो किस्म के खाने से ज़ायरीन की मेहमान नवाज़ी फरमाते और आखरी वक़्त में हज़रत ने मसारिफे उर्स में बहुत कमी करदी थी, फिर भी महमानो को 25, किस्मो के खाने हर साल बराबर बाटते थे जिसमे अमीर गरीब शाहो गदा की कोई तखसीस न थी,

आप की शाने बे नियाज़ी

हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़ात अपने अस्लाफ की आईना दार थी और बड़े बड़े उमरा व सलातीन वक़्त अपने खुद्दाम व फौज व लश्कर के साथ आप की खिदमत में मारहरा शरीफ पहुंचते और महीनो खानकाह शरीफ में रहते और किस्म किस्म तरह तरह के खानो से इन लोगों की मेहमान नवाज़ी की जाती मगर हज़रत कभी भी इन लोगों को बर्याबी की इजाज़त नहीं देते बल्के अपने मामूलात मुकर्राह में मसरूफ रहते।

ज़ियारते सरकर अबद करार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम

मन्क़ूल है के एक पिशावरी बा कमाल दुर्वेश ने आप की खिदमत में एक दुरुद शरीफ नज़र किया, हज़रत ने उसे पसंद फरमा कर रख लिया, और इसी शब् में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत नसीब हुई और इरशाद फ़रमाया साहब ज़ादे उठु! और दुरुद शरीफ पढ़ो? हज़रत बेदार हुए और ग़ुस्ल फ़रमाया, इत्र लगाया, खुशबू सुलगाई, और दुरुद शरीफ का विर्द शुरू किया, अभी दुरुद शरीफ का विर्द ख़त्म भी न किया था, के ज़ियारते सरकर अबद करार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुशर्रफ हुए और आप ने अपनी आखों से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत फ़रमाई तो उस वक़्त आप तअज़ीमन खड़े हो गए,

और बाकी दुरुद शरीफ पूरी फ़रमाई, दुरुद शरीफ तमाम होने तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप के पास तशरीफ़ फरमा रहे, फिर हज़रत ने चंद अशआर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुज़ूर को सुनाए जिन को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पसंद फ़रमाया और कौनैन की नेमतों से मालामाल फ़रमाया, ये वसीयत माआ अशआर के हज़रत शाह मेहदी हसन व हज़रत सय्यद शाह के दुआ खानो में मौजूद है मज़कूरा पेशवरी दुर्वेश का नाम मौलवी मुहम्मद मुकर्रम मुरीद शाह पेशावरी है, जो 1173, हिजरी में अहमद शाह दरानी के साथ हिंदुस्तान आए और आप की बारगाह में हाज़िर हो कर मज़कूरा दुरूद जिसे “सालतुल ख़िताम” कहते हैं पेश फ़रमाया।

आप का ज़ोके शायरी

आप का अदबी और शायरी ज़ोक भी बहुत उम्दा था और बरजस्ता अशआर कहा करते थे चुनांचे आप के अशआर उर्दू फ़ारसी में अक्सर मिलते हैं मैदाने शेरो शायरी में आप अपना तखल्लुस ऐनी फरमाते थे, आप की बहुत मश्हूरो मारूफ मनकबत जो सरकार गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की शान में है उस का पहला शेर ये है “गौसे आज़म बमाने बे सरू सामां मादादे, किब्लए दीं मादादे काबए इमां मादादे” ये आप ही की लिखी हुई है।

कास गंज बा रोकन हो गया

दुनिया को शायद इस बात का इल्म न हो के वो कास गंज जो आज जक्शन और एक मशहूर क़स्बा तिजारती मर्कज़ बना हुआ है जो पहले एक सहरा वीरान जंगल रहज़नो डाकूओ का मस्कन था, हज़रत ही के हुक्म से एक मुरीदे ख़ास सरदार याकूत खान ने आबाद किया था, जिस की वजह से जिला एटा के अंदर पट्याली, सहावर गंज, दंड वाड़, और जलेसर वगेरा हैं, जहाँ इस्लाम की शुआ फैली और लोग हल्का बगोशे इस्लाम हुए वो आप ही की ज़ाते बा बरकात का समराह है,

नवाब अहमद खान बंगश हाकिमे फर्रखाबाद ने 1175, हिजरी में बारह गाऊं दरगाह मुअल्ला खानकाहे बरकातिया के लिए वक़्फ़ किए थे, मौसूफ़ को सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु से भी काफी अकीदत थी जिस का इज़हार इस तौर पर किया के बारह गाऊँ से आधे सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में नज़र किया और आधे गाऊँ बनाम हज़रत शाह निजातुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह छोटे सरकार की खिदमत में पेश फ़रमाया।

आप के दौर में नालेंन शरीफ व क़दम रसूल

आप के दौर में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मूए मुबारक यानि दाढ़ी के बाल मुबारक, क़दम शरीफ, और नालेंन शरीफ के तबर्रुकात आए, ये तबर्रुकात सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु को हाजी जमालुद्दीन से, जो सहाबिए रसूल हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु या इन के भाई की औलाद में थे उन से हासिल किए थे, इन के अलावा हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम के मज़ार शरीफ के मुकद्द्स टुकड़ा और सरकार गौसे आज़म जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की लिखी हुई बिस्मिल्लाह शरीफ भी जमा फ़रमाई, इन सभी तबर्रुकात की उर्स में ज़ायरीन हज़रात को ज़ियारत कराई जाती है।

आप की चंद मशहूर तसनीफ़

(1) काशिफ़ुल इस्तार शरीफ, (2) फस्सुल कलिमात, (3) मसनवी इत्तिफाकिया, (4) क़सीदाह गोहरे बार उर्दू, (5) रिसाला अक़ाइद, इस के अलावा चंद ब्याज़ में अमाल व अशग़ाल औरादो अज़कार भी तहरीर फरमाए हैं।


औलादे किराम

आप का निकाह हज़रत सय्यद मुहसिन बिलगिरामि उर्फ़ सय्यद मुहम्मद रोशन बिन सय्यद मुहम्मद सईद खेरुल्लाह की साहब ज़ादी “दियानत फातिमा” से हुआ, जिन से चार साहब ज़ादे, (1) हज़रत सय्यद शाह आले अहमद अच्छे मियां, (2) हज़रत सय्यद शाह आले बरकात सुथरे मियां, (3) हज़रत सय्यद शाह आले हुसैन सच्चे मियां, (4) हज़रत सय्यद अली इन का बचपन में ही इन्तिकाल हो गया था रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, और एक साहब ज़ादी वाफिया बीबी उर्फ़ बूबू साहिबा थीं जिन का निकाह हज़रत के हमशीर ज़ादाह सय्यद अमीर अली बिन सय्यद मुहम्मद अहसन बिन सय्यद मुहम्मद रज़ा से हुआ, इन की औलाद आरा कोआत वगैरा में है,

आप के खुलफाए किराम

हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु के मशहूर खुलफाए किराम के नाम मुन्दर्जा ज़ैल हैं जिन्होंने आप के मिशन को आगे बढ़ाया और दीनो मज़हब की अज़ीम खिदमात अंजाम दीं,

  1. हज़रत अबुल फ़ज़्ल हज़रत सय्यद शाह आले अहमद अच्छे मियां मारहरवी,
  2. हज़रत शाह मसीहुल्लाह,
  3. हज़रत शाह ऐनुल हक,
  4. हज़रत शाह अली शेर,
  5. हज़रत शाह हफ़ीज़ुल्लाह,
  6. हज़रत शाह रहीमुल्लाह,
  7. हज़रत शाह सैफुल्लाह,सहावी,
  8. हज़रत शाह रमज़ानुल्लाह,
  9. हज़रत शाह मौलवी गुलाम मुहीयुद्दीन,
  10. हज़रत शाह दीदार अली,
  11. हज़रत शाह खैरात अली,
  12. हज़रत शाह आबिद,
  13. हज़रत शाह माजिद,
  14. हज़रत शाह इज़्ज़ातुल्लाह,
  15. हज़रत शाह नुरुल्लाह,
  16. हज़रत शाह करम अली,
  17. हज़रत शाह अब्दुल्लाह,
  18. हज़रत शाह महफूज़,
  19. हज़रत शाह गुलाम रसूल,
  20. हज़रत शाह मीर हुसैन मुलक्कब शाह हसन,
  21. हज़रत शाह अब्दुल गनी,
  22. हज़रत शाह अब्दुल हकीम,
  23. हज़रत शाह नसीरद्दीन,
  24. हज़रत शाह मकन,
  25. हजऱत शाह ज़ाहिद रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, अक्सर खुलफाए किराम से सिलसिला जारी है।

विसाल मुबारक व उर्स

आप ने 14, मुहर्रमुल हराम 1198, हिजरी बरोज़ बुध की शब बाद नमाज़े मगरिब इस दारे फानी से कूच फ़रमाया।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुकद्द्स मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी हिन्द में बीच बरामदे में मशरिक की तरफ ज़ियारत गाहे खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

Share Zaroor Karen Jazakallah

रेफरेन्स हवाला

(1) तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
(2) तज़किराए मशाइखे मारहरा
(3) खानदाने बरकात
(4) बरकाती कोइज़
(5) नूर मदाहे हुज़ूर

Share this post