हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 20)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 20)

हज़रते हातिब बिन अबी बलतआ रदियल्लाहु अन्हु का खत

हज़रते हातिब बिन अबी बलतआ रदियल्लाहु अन्हु जो एक मुअज़्ज़ज़ सहाबी थे उन्हों ने कुरेश को एक खत इस मज़मून का लिख दिया की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जंग की तैयारियां कर रहे हैं, लिहाज़ा तुम लोग होशियार हो जाओ इस खत को उन्हों ने एक औरत के ज़रिए मक्के भेजा, अल्लाह पाक ने अपने हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इल्मे ग़ैब अता फ़रमाया था आप ने अपने इस इल्मे ग़ैब की बदौलत ये जान लिया की हज़रते हातिब बिन अबी बलतआ रदियल्लाहु अन्हु ने क्या कार्रवाई की है चुनांचे आप ने हज़रते अली व हज़रते ज़ुबेर व हज़रते मिक़दाद रदियल्लाहु अन्हुम को फ़ौरन ही रवाना फ़रमाया की तुम लोग “रौज़ए खाख” में चले जाओ वहां एक औरत है और उस के पास एक खत है उससे वो खत छीन कर मेरे पास लाओ, चुनांचे ये तीनो सहाबी तेज़ रफ़्तार घोड़े पर सवार हो कर “रौज़ए खाख”में पहुंचे और औरत को पा लिया | जब उस ने खत तलब किया तो उस ने कहा की मेरे पास कोई खत नहीं है हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की खुदा की कसम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कभी कोई झूट बात नहीं कह सकते, न हम लोग झूटे हैं लिहाज़ा तू खत नकाल कर हमें दे दे वरना हम तुझ को नग्गी कर के तलाश लेंगें | जब औरत मजबूर हो गई तो उस ने अपने बालों के जूड़े में से वो खत निकाल कर दे दिया जब ये लोग खत ले कर बारगाहे रिसालत में पहुंचे तो आप ने हज़रते हातिब बिन अबी बलतआ रदियल्लाहु अन्हु को बुलाया और फ़रमाया की ऐ हातिब ! ये तुम ने क्या किया? उन्हों ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप मेरे बारे में जल्दी न फरमाएं न में ने अपना दीन बदला है न मुर्दत हुआ हूँ मेरे इस खत लिखने की वजह सिर्फ ये है की मक्के में मेरे बीवी बच्चे हैं मगर मक्के में मेरा कोई रिश्तेदार नहीं है जो मेरे बीवी बच्चों की खबर गिरी और देख भाल करे |

मेरे सिवा दूसरे तमाम मुहाजिरीन के अज़ीज़ो अक़ारिब नक्के में मौजूद हैं जो उनके अहलो अयाल की देख भाल करते रहते हैं इस लिए मेने ये खत लिख कर कुरेश पर एक अपना एहसान रख दिया है ताकि में उनकी हमदर्दी हासिल कर लूँ और वो मेरे अहलो अयाल के साथ कोई बुरा सुलूक न करें | या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरा ईमान है की अल्लाह पाक ज़रुर उन काफिरों को शिकस्त देगा और मेरे इस खत से कुफ्फार को हरगिज़ हरगिज़ कोई फायदा नहीं हो सकता हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते हातिब बिन अबी बलतआ रदियल्लाहु अन्हु के इस बयान को सुन कर उन के उज़्र को कबूल फरमा लिया मगर हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु इस खत को देख कर इस कदर तैश में आ गए की आपे से बाहर हो गए और अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मुझे इजाज़त दीजिए की में इस मुनाफिक की गर्दन उड़ा दूँ | दूसरे सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम भी ग़ैज़ो गज़ब में भर गए लेकिन रहमते आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जबीने रहमत पर इक ज़रा शिकन भी नहीं आई और आप ने हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु से इरशाद फ़रमाया की ऐ उमर ! क्या तुम्हे खबर नहीं की हातिब अहले बद्र में से है और अल्लाह पाक ने अहले बद्र को मुख़ातब कर के फरमा दिया है की तुम जो चाहो करो तुम से कोई मुआख़िज़ा नहीं | ये सुन कर हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु की आंखें नम हो गईं और वो ये कह कर बिलकुल खमोश हो गए की अल्लाह पाक और उस के रसूल को हम सब से ज़ियादा इल्म है इसी मोके पर कुरआन शरीफ की ये आयत नाज़िल हुइ पारा 28, सूरह मुम्तहना आयत पहली: 

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- ऐ ईमान वालो ! मेरे और अपने दुश्मन काफिरों को दोस्त न बनाओ | 

बहर हाल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते हातिब बिन अबी बलतआ रदियल्लाहु अन्हु को मुआफ फरमा दिया | 

मक्के पर हमला

गरज़ 10, रमज़ानुल मुबारक सं. आठ हिजरी को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीने से दस हज़ार का लश्करे पुर अनवार साथ ले कर मक्के की तरफ रवाना हुए, बाज़ रिवायतों में है की फतेह मक्का में आप के साथ बारह हज़ार का लश्कर था इन दोनों रिवायतों में कोई तआरूज़ नहीं, हो सकता है की मदीने से रवानगी के वक़्त दस हज़ार का लश्कर रहा हो | फिर रास्ते में बाज़ कबाइल इस लश्कर में शामिल हो गए हों तो मक्के पहुंच कर इस लश्कर की तादाद बारह हज़ार हो गई हो | बहर हाल मदीने से चलते वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और तमाम सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम रोज़ादार थे जब आप “मक़ामे कदीद” में पहुंचे तो पानी माँगा और अपनी सवारी पर बैठे हुए पूरे लश्कर को दिखा कर आप ने दिन में पानी नोश फ़रमाया और सब को रोज़ा छोड़ देने का हुक्म दिया | चुनांचे आप और आप के असहाब ने सफर और जिहाद में होने की वजह से रोज़ा रखना मोकूफ कर दिया | 

हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु वगैरा से मुलाकात

जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक़ामे “जुहफा” में पहुंचे तो वहां हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चचा हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु अपने अहलो अयाल के साथ खिदमते अक़दस में हाज़िर हुए | ये मुसलमान हो कर आए थे बल्कि इस से बहुत पहले मुसलमान हो चुके थे और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मर्ज़ी से मक्के में मुकीम थे और हुज्जाज को ज़मज़म पिलाने के मुअज़्ज़ज़ उहदे पर फ़ाइज़ थे | और आप के साथ में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चचा हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब के फ़रज़न्द जिन का नाम भी अबू सुफियान था और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फ़ूफीज़ाद भाई अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या जो उम्मुल मोमिनीन हज़रते बीबी उम्मे सलमा रदियल्लाहु अन्हा के सौतेले भाई भी थे बारगाहे अक़दस में हाज़िर हुए | इन दोनों साहिबों की हाज़िरी का हाल जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मालूम हुआ तो आप ने इन दोनों साहिबों की मुलाकात से इंकार फरमा दिया | क्यूंकि इन दोनों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत ज़ियादा तकलीफ पहुचाई थीं ख़ुसूसन अबू सुफियान बिन अल हारिस आप के चचा ज़ाद भाई जो ऐलाने नुबुव्वत से पहले आप के इंतिहाई जांनिसारों में से थे मगर ऐलाने नुबूवत के बाद इन्होने अपने कसीदों में इतनी शर्मनाक और बेहूदा हिजो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कर डाली थी की आप का दिल ज़ख़्मी हो गया था इस लिए आप इन दोनो से इंतिहाई नाराज़ व बेज़ार थे मगर हज़रते बीबी उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हा ने इन दोनों का कुसूर माफ़ कर ने के लिए बहुत ही पुर ज़ोर सिफारिश की और अबू सुफियान बिन हारिस ने ये कह दिया की अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरा कुसूर माफ़ न फ़रमाया तो में अपने छोटे छोटे बच्चों को ले कर अरब के रेगिस्तान में चला जाऊँगा ताकि वहीँ बगैर दाना पानी के भूक प्यास से तड़प तड़प कर में और मेरे बच्चे मर कर फना हो जाएं |

हज़रते बीबी उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हा ने बारगाहे रिसालत में आबदीदा हो कर अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या आप के चचा का बेटा और आप की फूफी का बेटा तमाम इंसानो से ज़ियादा बद नसीब रहेगा? क्या इन दोनों को आप की रहमत से कोई हिस्सा नहीं मिलेगा? जान छिड़कने वाली बीवी के इन दर्द अंगेज़ कलिमात से रहमतुलिल्ल आलमीन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रहमते भरे दिल में रहमो करम और अफ़्वो दर गुज़र के समंदर मोज़े मारने लगे | फिर हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने इन दोनों को ये मश्वरा दिया की तुम दोनों अचानक बारगाहे रिसालत में सामने जा कर खड़े हो जाओ और जिस तरह हज़रते युसूफ अलैहिस्सलाम के भाइयों ने कहा था वो ही तुम दोनों कहो की: कुरआन शरीफ पारा 13, सूरह युसूफ आयत 91, में है की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- यक़ीनन अल्लाह पाक ने हम पर फ़ज़ीलत दी है और हम बिला शुबा खतावार हैं | चुनांचे उन दोनों साहिबों ने दरबारे रिसालत में अचानक हाज़िर हो कर यही कहा | एक दम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जबीने रहमत पर रहमो करम के हज़ारों सितारे चमकने लगे और आप ने उन के जवाब में बे एनीही वही जुमला अपनी ज़बान में फ़रमाया था कुरआन शरीफ पारा 13, सूरह युसूफ आयत 92, में है की:   

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- आज तुम से कोई मुआख़िज़ा नहीं है अल्लाह पाक तुम्हे बख्श दे वो अरहमुर रहीमीन है | जब कुसूर माफ़ हो गया तो अबू सुफियान बिन हारिस रदियल्लाहु अन्हु ने ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरीफ में अशआर लिखे और ज़मानाए जाहिलियत के दौर में जो कुछ आप की हिजो में लिखा था उस की माज़िरात की और इस के बाद उम्र भर निहायत सच्चे और साबित कदम मुसलमान रहे मगर हया की वजह से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने कभी सर नहीं उठाते थे और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी इन के साथ बहुत ज़ियादा मुहब्बत रखते थे और फ़रमाया करते थे की मुझे उम्मीद है की अबू सुफियान बिन हारिस मेरे चचा हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु के कायम मकाम साबित होंगें | 

मीलो तक आग ही आग

मक्के से एक मंज़िल के फ़ासिले पर “मरूज़ ज़हरान” में पहुंच कर इस्लामी लश्कर ने पड़ाव डाला और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फौज को हुक्म दिया की हर मुजाहिद अपना अलग अलग चूल्ह जलाए दस हज़ार मुजाहिदीन ने जो अलग अलग चूलेह जलाए तो “मरूज़ ज़हरान” के पूरे मैदान में मीलो तक आग ही आग नज़र आने लगी | 

कुरेश का जासूस

कुरेश को मालूम ही हो चुका था की मदीने से फौजें आ रहीं हैं | मगर सूरते हाल की तहक़ीक़ के लिए कुरेश ने अबू सुफियान बिन हर्ब, हकीम बिन हिज़ाम व बुदैल बिन वरका को अपना जासूस बना कर भेजा | हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु बेहद फ़िक्र मंद हो कर कुरेश के अंजाम पर अफ़सोस कर रहे थे | वो ये सोचते थे की अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमइतने अज़ीम लश्कर के साथ मक्के में फ़ातिहाना दाखिल हुए तो आज कुरेश का ख़ातिमा हो जाएगा | चुनांचे वो रात के वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सफ़ेद खच्चर पर सवार हो कर इस इरादे से मक्के चले की कुरेश को इस खतरे से आगाह कर के उन्हें तय्यार करें की चल कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुआफी मांग कर सुलाह कर लो वर्ण तुम्हारी खेर नहीं | 

मगर बुखारी की रिवायत में है की कुरेश को ये खबर तो मिल गई थी की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीने से रवाना हो गए हैं मगर उन्हें ये पता न था की आप का लश्कर “मररुज़्ज़हरान”  तक आ गया है इस लिए अबू सुफियान बिन हर्ब और हकीम बिन हिज़ाम व बुदेल बिन वरका इस तलाश व जुस्तुजू में निकले थे की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का लश्कर कहाँ है? जब ये तीनो “मररुज़्ज़हरान”  के करीब पहुंचे तो देखा की मीलो तक आग ही आग जल रही है ये मंज़र देख कर ये तीनो हैरान रह गए और अबू सुफियान बिन हर्ब ने कहा की में ने तो ज़िन्दगी में कभी इतनी दूर तक फैली आग इस मैदान में जलते हुए नहीं देखि | आखिर ये कोन सा कबीला है? बुदैल बिन वरका ने कहा की बनी अम्र मालूम होते हैं अबू सुफियान ने कहा की नहीं, बनी अम्र इतनी कसीर तादाद में कहाँ हैं जो उन की आग से  “मररुज़्ज़हरान” का पूरा मैदान भर जाएगा | 

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लश्कर की आग है हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु ने अबू सुफियान बिन हर्ब से कहा की तुम मेरे खच्चर पर सवार हो जाओ वरना अगर मुसलमानो ने तुम्हे देख लिया तो अभी तुम को क़त्ल कर डालेंगें | जब ये लोग लश्कर गाह में पहुंचे तो हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु और दूसरे चंद मुसलमानो ने जो लश्कर गाह का पहरा दे रहे थे | अबू सुफियान को  देख लिया हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु अपने जज़्बए इंतिकाम को ज़ब्त न कर सके और अबू सुफियान को देखते ही उन की ज़बान से निकला की अरे ये तो खुदा का दुश्मन अबू सुफियान है | दौड़ते हुए बारगाहे रिसालत में पहुंचे और अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अबू सुफियान हाथ आ गया है अगर इजाज़त हो तो अभी उस का सर उड़ा दूँ | इतने में हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु भी उन तीनो मुशरिकों को साथ लिए हुए दरबारे रसूल में हाज़िर हो गए और उन लोगों की जान बख्शी की सिफारिश पेश कर दी और ये कहा की या रसूलल्लाह  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! में ने इन सब को अमान दे दी है | 

अबू सुफियान का इस्लाम

अबू सुफियान बिन हर्ब की इस्लाम दुश्मनी कोई ढकी छुपी चीज़ नहीं थी | मक्के में रसूले करीम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सख्त से सख्त ईज़ाएं दी, मदीने पर बार बार हमला करना, कबाइले अरब को इश्तिआल दिला कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़त्ल की बारहा साज़िशें, यहूदियों और तमाम कुफ्फारे अरब से साजबाज़ कर के इस्लाम और बानिए इस्लाम के ख़ातिमे की कोशिशों ये वो न काबिले नुआफी जराइम थे जो पुकार पुकार कर कह रहे थे की अबू सुफियान का क़त्ल बिलकुल दुरुस्त व जाइज़ और बर महल है | लेकिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिन को कुरआन ने “रऊफ़ुर रहीम” के लक़ब से याद किया है | उन की रहमत चुमकार चुमकार कर अबू सुफियान के कान में कह रही थी की ऐ मुजरिम ! मत डर | ये दुनिया के सलातीन का दरबार नहीं है बल्कि ये रहमतुलिल्ल आलमीन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाहे रहमत है बुखारी शरीफ की रिवायत में है की अबू सुफियान बारगाहे अक़दस में हाज़िर हुए तो फ़ौरन ही इस्लाम कबूल कर लिया इस लिए जान बच गई | 

मगर एक रिवायत ये भी है की हकीम बिन हिज़ाम और बुदैल बिन वरका ने तो फ़ौरन रात ही में इस्लाम कबूल कर लिया मगर अबू सुफियान ने सुबह को कालिमा पढ़ा | और बाज़ रिवायत में ये भी आया है की अबू सुफियान और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरमियान एक मुकालमा हुआ इस के बाद अबू सुफियान अपने इस्लाम का ऐलान किया वो मुकलमा ये है: 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  क्यूं ऐ अबू सुफ़ियान ! क्या अब भी तुम्हे यकीन न आया की खुदा एक है?
अबू सुफियानक्यूं नहीं कोई और खुदा होता तो आज हमारे काम आता |   
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम       क्या इस में तुम्हे कोई शक है की में अल्लाह का रसूल हूँ?
अबू सुफियान            हाँ ! इस में तो अभी मुझे कुछ शुबा है | 
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम   मगर फिर इस के बाद उन्हों ने कलमा पढ़ लिया और उस वक़्त उन का ईमान मुतज़लज़ था लेकिन बिला

आखिर वो सच्चे मुस्लमान बन गए | चुनांचे ग़ज़वए ताइफ़ में मुसलमानो की फौज में शामिल हो कर उन्हें ने कुफ्फार से जंग की और इसी में इन की एक आखँ ज़ख़्मी हो गई फिर ये जंगे यरमूक में भी जिहाद के लिए गए | 

लश्करे इस्लाम का जाहो जलाल

मुजाहिदीने इस्लाम का लश्कर जब मक्के की तरफ बढ़ा तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया की आप अबू सुफियान को किसी ऐसे मकाम पर खड़ा कर दें की ये अफ़्वाजे इलाही का जलाल अपनी आँखों से देख लें | चुनांचे जहाँ रास्ता कुछ तंग था एक बुलंद जगह पर हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु ने अबू सुफियान को खड़ा कर दिया | थोड़ी देर के बाद इस्लामी लश्कर समंदर की मोजों की तरफ उमनडता हुआ रवाना हुआ और कबाइले अरब की फौजें हथियार सज सज कर यके बाद दीगरे अबू सुफियान के सामने से गुजरने लगीं | सब से पहले कबीलए गिफार का बा वकार परचम नज़र आया | अबू सुफियान ने सहम कर पूछा की ये कौन लोग हैं? हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु ने कहा की मुझे कबीलए गिफार से क्या मतलब है? फिर जुहैना फिर साद बिन हुजैम, फिर सुलैम के कबाइल की फौजें ज़र्क बर्क हथियारों में डूबे हुए परचम लहराते और तकबीर के नारे मरते हुए सामने से निकल गए| अबू सुफियान हर फौज का जलाल देख कर मरऊब हो जाते थे और हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु से हर फौज के बारे में पूछते जाते थे की ये कौन है? ये किन लोगों का लश्कर है? इस के बाद अंसार का लश्करे पुर अनवार इतनी अजीब शान और ऐसी निराली आन बान से चली की देख ने वालों के दिल दहल गए अबू सुफियान ने इस फौज की शानो शौकत से हैरान हो कर कहा की ऐ अब्बास ! ये कौन लोग हैं? आप रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की ये “अंसार” हैं अचानक अंसार के अलम बरदार हज़रते साद बिन उबादा रदियल्लाहु अन्हु झंडा लिए हुए अबू सुफियान के करीब से गुज़रे और जब अबू सुफियान को देखा तो बुलंद आवाज़ से कहा की ऐ अबू सुफियान ! आज घमसान की जंग का दिन है आज काबे में ख़ूंरेज़ी हलाल कर दी जाएगी |

अबू सुफियान ये सुन कर घबरा गए और हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु से कहा की ऐ अब्बास ! सुन लो ! आज कुरेश की हलाकत तुम्हे मुबारक हो फिर अबू सुफियान को चेन नहीं आया तो पूछा की बहुत देर हो गई है अभी तक में ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नहीं देखा की वो कौन से लश्कर में हैं ! इतने में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम परचमे नुबुव्वत के साए में अपने नूरानी लश्कर के हमराह पैगम्बरना जाहो जलाल के साथ नमूदार हुए | अबू सुफियान ने जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा तो चिल्ला कर कहा की ऐ हुज़ूर ! क्या आप ने सुना की साद बिन उबादा रदियल्लाहु अन्हु क्या कहते हुए गए हैं? इरशाद फ़रमाया की उन्हों ने क्या कहा है? अबू सुफियान बोले की उन्हों ने ये कहा है की आज काबा हलाल कर दिया जाएगा | आप ने इरशाद फ़रमाया की साद बिन उबादा रदियल्लाहु अन्हु ने गलत कहा आज तो काबे की अज़मत का दिन है आज तो काबे को लिबास पहनने का दिन है और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की साद बिन उबादा ने इतनी गलत बात क्यूं कह दी आप ने उन के हाथ से झंडा ले कर उन के बेटे कैस बिन साद रदियल्लाहु अन्हु के हाथ में दे दिया |  

और एक रिवायत में ये है की जब अबू सुफियान ने बारगाहे रसूल में ये शिकायत की, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अभी अभी साद बिन उबादा ये कहते हुए गए हैं की आज घमसान की लड़ाई का दिन है | तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खफ़गी का इज़हार फरमाते हुए इरशाद फ़रमाया की साद बिन उबादा ने गलत कहा बल्कि ऐ अबू सुफियान आज का दिन तो “रहमत” का दिन है | फिर फ़ातिहाना शानो शौकत के साथ बानिए काबा के जानशीन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्के की सर ज़मीन में नुज़ूले इजलाल फ़रमाया और हुक्म दिया की मेरा झंडा मक़ामे “हुजून” के पास गाड़ा जाए और हज़रते खालिद बिन वलीद के नाम फरमान जारी फ़रमाया की वो फोजों के साथ मक्के के बालाई हिस्से यानि “कदा” की तरफ से मक्के में दाखिल हो |

फ़ातेहे मक्का का पहला फरमान

ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्के की सरज़मीन में क़दम रखते ही जो पहला फरमान जारी फ़रमाया वो ये ऐलान था की जिस के लफ्ज़ लफ्ज़ में रहमतों के दरिया मोजें मार रहे हैं:

“जो शख्स हथियार डाल देगा उस के लिए अमान है | जो शख्स अपना दरवाज़ा बंद कर लेगा उस के लिए अमान है | जो काबे में दाखिल हो जाएगा उस के लिए अमान है | इस मोके पर हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अबू सुफियान एक फख्र पंसद आदमी है इस के लिए कोई ऐसी इम्तियाज़ी बात फरमा दीजिए की उस का सर फर्खर से ऊंचा हो जाए तो आप ने फरमा दिया की “जो अबू सुफियान के घर में दाखिल हो जाए उस के लिए अमान है” इस के बाद अबू सुफियान मक्के में बुलंद आवाज़ से पुकार पुकार कर ऐलान करने लगे की कुरेश ! मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  इतना बड़ा लश्कर ले कर आ गए हैं की इस का मुकाबला करने की किसी में भी ताकत नहीं है जो अबू सुफियान के घर में दाखिल हो जाए उस के लिए अमान है | अबू सुफियान की ज़बान से ये कम हिम्मती की बात सुनकर उस की बीवी हिन्द बनते उतबा जल भूनकर कबाब हो गई और तैश में आ कर अबू सुफियान की मूछ पकड़ ली और चिल्ला कर कहने लगी के ऐ बनी किनाना ! इस कम बख्त को क़त्ल कर दो ये कैसी बुज़दिली और कम हिम्मती की बात कर रहा है हिन्द की इस चीखो पुकार की आवाज़ सुनकर तमाम बनू किनाना का खानदान अबू सुफियान के मकान में जमा हो गया और अबू सुफियान ने साफ साफ कह दिया की इस वक़्त गुस्से और तैश की बातों से कुछ काम नहीं चल सकता में पूरे इस्लामी लश्कर को अपनी आँख से देख कर आया हूँ और में तुम लोगों को यकीन दिलाता हूँ की अब हम लोगों से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मुकाबला नहीं हो सकता ये खैरियत है की उन्होंने ऐलान कर दिया है की जो अबू सुफियान के मकान में चला जाए उस के लिए अमान है लिहाज़ा ज़ियादा से ज़ियादा लोग मेरे मकान में आ कर पनाह ले लें | खानदान वालों ने कहा की तेरे मकान में भला कितने इंसान आ सकेंगें?  अबू सुफियान ने बताया की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन लोगों को भी अमान दे दी है जो अपने दरवाज़े बंद करलें या माजिदी हराम में दाखिल हो जाएं या हथियार डाल दें | अबू सुफियान ने ये बयान सुनकर कोई अबू सुफियान के मकान में चला गया कोई मस्जिदे हराम की तरफ भागा कोई अपना हथियार ज़मीन पर रख कर खड़ा हो गया |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस ऐलान रहमत निशान यानि मुकम्मल अम्नो अमान का फरमान जारी कर देने के बाद एक क़तरा खून बहाने का कोई इमकान ही नहीं था | लेकिन इकरिमा बिन अबू जहल व सफ़वान बिन उमय्या व सुहैल बिन अम्र और जमाश बिन केस ने मक़ामे “ख़नदमा” में मुख्तलिफ कबाइल के ओबाश को जमा किया था इन लोगों ने हज़रते खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु की फौज में से दो आदमियों हज़रते कर्ज़ बिन जाबिर फहरी और हुबेश बिन अशअर रदियल्लाहु अन्हुम को शहीद कर दिया और इस्लामी लश्कर पर तीर बरसाना शुरू कर दिया | बुखारी की रिवायत में इन्ही दो हज़रात की शहादत का ज़िक्र है मगर ज़ुर कानि वगैरा किताबों से पता चलता है की तीन सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को कुफ्फारे कुरेश ने क़त्ल कर दिया दो वो जो ऊपर ज़िक्र किए गए और एक हज़रते मुस्लिमा बिन अल मीला रदियल्लाहु अन्हु और बारह या तेरह कुफ्फार भी मारे गए और बाकी मैदान छोड़ कर भाग निकले | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब देखा की तलवारें चमक रही हैं तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दरयाफ्त फ़रमाया की में ने तो हज़रते खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु को जंग करने से मना कर दिया था फिर ये तलवारें कैसी चल रही हैं? लोगों ने अर्ज़ किया की पहल कुफ्फार की तरफ से हुई है इस लिए लड़ने के सिवा हज़रते खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु की फौज के लिए कोई चाराए कार ही नहीं था | ये सुनकर इरशाद फ़रमाया की क़ज़ाए इलाही यही थी और खुदा ने जो चाहा वहॉ बेहतर है | 

ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मक्के में दाखिला

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब फ़ातिहाना हैसियत से मक्के में दाखिल होने लगे तो आप अपनी ऊंटनी “कस्वा” पर सवार थे एक काले रंग का इमाम बांधे हुए थे और बुखारी में है की आप के सर पर “मिगफर” था एक जानिब हज़रते अबू बक्र सिद्दीक और दूसरी जानिब उसैद बिन हुज़ैर रदियल्लाहु अन्हुमा थे और आप के चरों तरफ जोश में भरा हुआ और हथियारों में डूबा हुआ लश्कर था जिस के दरमियान को क़ुब्बए नबवी था इस शानो शौकत को देख कर अबू सुफियान ने हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु से कहा की ऐ अब्बास ! तुम्हारा भतीजा तो बादशाह हो गया हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया की तेरा बुरा हो अबू सुफियान ! ये बादशाहत नहीं है बल्कि ये “नुबुव्वत” है इस शहाना जुलूस के जहो जलाल को बा वुजूद शहंशाहे रिसालत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शाने तवाज़ो का ये आलम था की एक सूरह फातिहा की तिलावत फरमाते हुए इस तरह सर झुकाए हुए ऊंटनी पर बैठे हुए थे की आप का सर ऊंटनी के पालने से अलग अलग जाता था अल्लाह पाक का शुक्र अदा करने और उस की बारगाहे अज़मत में अपने इज़्ज़ो नियाज़ मंदी का इज़हार करने के लिए थी |

रेफरेन्स (हवाला)

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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