हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 39)

जानवरों का सजदा करना

अहादीस की अक्सर किताबों में चंद अल्फ़ाज़ के तग़य्युर तबदीली के साथ ये रिवायत मज़कूर है की एक अंसारी का ऊँट बिगड़ गया था और वो किसी के काबू में नहीं आता था बल्कि लोगों को काटने के लिए हमला किया करता था । लोगों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस की खबर दी । आप ने खुद उस ऊँट के पास जाने का इरादा फ़रमाया तो लोगों ने आप को रोका की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये ऊँट लोगों को दौड़ कर कुत्ते की तरह काट खाता है । आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया “मुझे इस का कोई खौफ नहीं है” ये कह कर आप आगे बड़े तो ऊँट ने आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने आ कर अपनी गर्दन डाल दी और आप को सजदा किया आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस के सर और गर्दन पर अपना दस्ते शफकत फेर दिया तो वो बिलकुल ही नरम पड़ गया और फरमा बरदार हो गया और आप ने उस को पकड़ कर उस के मालिक के हवाले कर दिया । फिर ये इरशाद फ़रमाया की खुदा की हर मखलूक जानती और मानती है की में अल्लाह पाक का रसूल हूँ लेकिन जिन्नो और इंसानो में से जो कुफ्फार हैं वो मेरी नुबुव्वत का इकरार नहीं करते । सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने ऊँट को सजदा करते हुए देख कर अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जब जानवर आप को सजदा करते हैं तो हम इंसानो को तो सब से पहले आप को सजदा करना चाहिए आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की अगर किसी इंसान का दुसरे इंसान को सजदा करना जाइज़ होता तो में औरतों को हुक्म देता की वो अपने शौहरों को सजदा किया करें ।

बारगाहे रिसालत में ऊँट की फरयाद

एक बार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक अंसारी के बाग़ में तशरीफ़ ले गए वहां एक ऊँट खड़ा हुआ ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था । जब उस ने आप को देखा तो एक दम बिलबिलाने लगा और उस की दोनों आँखों से आंसूं जारी हो गए । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने करीब जा कर उस के सर और कनपटी पर अपना दस्ते शफकत फेरा तो वो तसल्ली पा कर बिकुल खामोश हो गया । फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों से पूछा की इस ऊँट का मालिक कौन है? लोगों ने एक अंसारी का नाम बताया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़ौरन उन को बुलवाया और फ़रमाया की अल्लाह पाक ने इन जानवरों को तुम्हारे कब्ज़े में दे कर इन को तुम्हारा महकूम बना दिया है लिहाज़ा तुम लोगों पर लाज़िम है की तुम इन जानवरों पर रहम किया करो । तुम्हारे इस ऊँट ने मुझ से तुम्हारी शिकायत की है की तुम इस को भूका रखते हो और इस की ताकत से ज़ियादा इससे काम ले कर इस को तकलीफ देते हो ।

बे दूध की बकरी ने दूध दिया

हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की में एक नो उम्र लड़का था और मक्के में काफिरों के सरदार उक़्बा बिन अबी मुईत की बकरियां चराया करता था । इत्तिफाक से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु का मेरे पास से गुज़र हुआ, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझ से फ़रमाया की ऐ लड़के ! अगर तुम्हारी बकरियों के थनों में दूध हो तो हमे भी दूध पिलाओ, में ने अर्ज़ किया की में इन बकरियों का मालिक नहीं हूँ बल्कि इन का चरवाहा होने की हैसियत से अमीन हूँ में भला बगैर मालिक की इजाज़त के किस तरह इन बकरियों का दूध किसी को पिला सकता हूँ? हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया क्या तुम्हारी बकरियों में कोई बच्चा भी है? में ने कहा : जी हाँ आप ने फ़रमाया उस बच्चे को मेरे पास लाओ । में ले आया । हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु ने उस बच्चे की टांगों को पकड़ लिया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस के थन को अपना मुकद्द्स हाथ लगा दिया तो उस का थन दूध से भर गया फिर एक गहरे पथ्थर में आप ने उस का दूध दोहा, पहले खुद पिया फिर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु को पिलाया । हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की इस के बद मुझे भी पिलाया फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस बकरी के थन में हाथ मार कर फ़रमाया की ऐ ! थन तू सिमिट जा। चुनांचे फ़ौरन ही उस का थन सिमिट कर खुश्क हो गया । हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की में इस मोजिज़ें को देख कर बेहद मुतअस्सिर हुआ और में ने अर्ज़ किया की आप पर आसमान से जो कलम नाज़िल हुआ है मुझे भी सिखाओ । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की तुम ज़रूर सीखोगे तुम्हारे अंदर सिखने की सलाहियत है । चुनांचे में ने आप की ज़बाने मुबारक से सुन कर क़ुरआने मजीद की सत्तर सूरतें याद करलीं । हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु कहा करते थे की मेरे इस्लाम कबूल करने में इस मोजिज़ें को बहुत बड़ा दखल है ।

तबलीग़े इस्लाम करने वाला भेड़िया

हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु फरममते हैं की एक भेड़िये ने एक बकरी को पकड़ लिया लेकिन बकरियों के चरवाहे ने भेड़िए पर हमला कर के उससे बकरी को छीन लिया । भेड़िया भाग कर एक टीले पर बैठ गया और कहने लगा की ऐ चरवाहे ! अल्लाह पाक ने मुझ को रिज़्क़ दिया था मगर तूने उस को मुझ से छीन लिया । चरवाहे ने ये सुन कर कहा की खुदा की कसम ! में ने आज से ज़ियादा कभी कोई हैरत अंगेज़ और तअज्जुब ख़ेज़ मंज़र नहीं देखा की एक भेड़िया अरबी ज़बान में मुझ से बात करता है । भेड़िया कहने लगा की ऐ चरवाहे ! इससे कहीं ज़ियादा अजीब बात तो ये है की तू यहाँ बकरियां चरा रहा है और तू उस नबी को छोड़े और उन से मुँह मोड़े हुए बैठा है जिन से ज़ियादा बुज़रुग और बुलंद मर्तबा कोई नबी नहीं आया । इस वक़्त जन्नत के तमाम दरवाज़े खुले हुए हैं और तमाम अहले जन्नत उस नबी के साथियों की शाने जिहाद का मंज़र देख रहे हैं और तेरे और उस नबी के दरमियान बस एक घाटी का फासला है । काश ! तू भी उस नबी की खिदमत में हाज़िर हो कर अल्लाह के लश्करों का एक सिपाही बन जाता । चरवाहे ने इस गुफ्तुगू से मुतअस्सिर हो कर कहा की अगर में यहाँ से चला गया तो मेरी बकरियों की हिफाज़त कौन करेगा? भेड़िये ने जवाब दिया की तेरे लौटने तक में खुद तेरे बकरियों की हिफाज़त करूंगा । चुनांचे चरवाहे ने अपनी बकरियों को भेड़िए के सुपुर्द कर दिया और और खुद बारगाहे रिसालत में हाज़िर हो कर मुस्लमान हो गया और वाकई भेड़िये के कहने के मुताबिक उस ने नबी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के असहाब को जिहाद में मसरूफ पाया । फिर चरवाहे ने भेड़िए के कलाम का हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से तज़किरा किया तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की तुम जाओ अपनी सब बकरियों को ज़िंदा सलामत पाओगे । चुनांचे चरवाहा जब लोटा तो ये मंज़र देख कर हैरान रह गया की भेड़िया उस की बकरियों की हिफाज़त कर रहा है और उस की कोई बकरी भी खत्म नहीं हुई है चरवाहे ने खुश हो कर भेड़िये के लिए एक बकरी ज़बह कर के पेश कर दी और भेड़िया उस को खा कर चल दिया ।

ऐलाने ईमान करने वाली गोह

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अनहुमा से रिवायत है की कबीलए बनी सुलेम का एक आराबी अचानक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नूरानी महफ़िल के पास से गुज़रा आप अपने असहाब के मजमा में तशरीफ़ फरमा थे । ये आराबी जंगल से एक गोह पकड़ कर ला रहा था । आराबी ने आप के बारे में लोगों से सवाल किया की वो कौन हैं? लोगों ने बताया की ये अल्लाह के नबी हैं । आराबी ने ये सुन कर आप की तरफ मुतवज्जेह हुआ और कहने लगा की मुझे लातो उज़्ज़ा की कसम है की में उस वक़्त तक आप पर ईमान नहीं लाऊंगा जब तक ये मेरी गोह आप की नुबुव्वत पर ईमान न लाए, ये कह कर उस ने गोह को आप के सामने डाल दिया । आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गोह को पुकारा तो उस ने “लब्बैक व सादेक” इतनी बुलंद आवाज़ से कहा की तमाम हाज़िरीन ने सुन लिया । फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा की ऐ गोह ! ये बता की में कौन हूँ? गोह ने बुलंद आवाज़ से कहा की आप रब्बुल आलमीन के रसूल हैं और आखरी नबी हैं जिस ने आप को सच्चा माना वो कामयाब हो गया और जिस ने आप को झुटलाया वो नामुराद हो गया । ये मंज़र देख कर आराबी इस कदर मुतअस्सिर हुआ की फ़ौरन ही कलमा पढ़ कर मुसलमान हो गया और कहने लगा की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में जिस वक़्त आप के पास आया था तो मेरी नज़र में रूए ज़मीन पर आप से ज़ियादा न पसंद कोई आदमी नहीं था लेकिन इस वक़्त मेरा ये हाल है की आप मेरे नज़दीक मेरी औलाद बल्कि मेरी जान से भी ज़ियादा प्यारे हो गए हो । आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की खुदा के लिए हम्द है जिस ने तुझ को ऐसे दीन की हिदायत दी जो हमेशा ग़ालिब रहेगा और कभी मगलूब नहीं होगा, फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस को सूरह फातिहा और सूरह इखलास की तालीम दी आराबी कुरआन की इन दो सूरतों को सुन कर कहने लगा की में ने बड़े बड़े फसीहो बलीग़ तवील व मुख़्तसर हर किस्म के कलामों को सुना है मगर खुदा की कसम ! में ने आज तक इससे बढ़ कर और इससे बेहतर कलाम कभी नहीं सुना ।

फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा से फ़रमाया की ये कबीलाए बनी सुलेम का मुफ़लिस इंसान है तुम लोग इस की माली मदद करो । ये सुन कर बहुत से लोगों ने उस को बहुत कुछ दिया यहाँ तक की हज़रते अब्दुर रहमान बिन औफ रदियल्लाहु अन्हु ने उस को दस गाभिन ऊंटनियां दीं । ये आराबी (आराबी कहते हैं गाऊं दिहात के रहने वाले आदमी को) तमाम माल व सामान को साथ ले कर जब अपने घर की तरफ चला तो रास्ते में देखा की उस की कोम बनी सुलेम एक हज़ार सवार नेज़ा और तलवार लिए हुए चले आ रहे हैं । उसने पूछा की तुम लोग कहाँ के लिए और किस इरादे से चले हो? सवारों ने जवाब दिया की हम लोग उस शख्स से लड़ने के लिए जा रहे हैं जो ये गुमान करता है की वो नबी है और हमारे देवताओं को बुरा भला कहता है ये सुन कर आराबी ने बुलंद आवाज़ से कलमा पढ़ा और अपना सारा वाक़िआ उन सवारों से बयान किया । सवारों ने जब आराबी की ज़बान से इस का ईमान अफ़रोज़ बयान को सुना तो सब ने “कलमा शरीफ” पढ़ा । फिर सब के सब बारगाहे नुबुव्वत में हाज़िर हुए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस कदर तेज़ी के साथ उन लोगों के इस्तकबाल के लिए खड़े हुए की आप की चादर आप के जिसमे पाक से गिर पड़ी और ये लोग कलमा पढ़ते हुए अपनी अपनी सवारियों से उतर पड़े और अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप हमे जो हुक्म देंगें हम आप के हर हुक्म की फरमा बरदारी करेंगें । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की तुम लोग हज़रते खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु के झंडे के नीचे जिहाद करते रहो । हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अनहुमा का बयान है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में बनी सुलेम के सिवा कोई कबीला भी ऐसा नहीं था जिस के एक हज़ार आदमी बयक वक़्त मुसलमान हुए हो । इस हदीस को तबरनी व बहकी हाकिम व इब्ने अदि जैसे बड़े बड़े मुहद्दिसीन ने रिवायत किया है ।

इंतिबाह

इस किस्म के सैंकड़ों मोजिज़ात में से ये चंद वाक़िआत इस बात की सूरज से ज़ियादा रोशन दलीलें हैं की रूए ज़मीन के तमाम हैवानात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जानते पहचानते और मानते हैं की आप नबीए आखरुज़्ज़मा, खात्मे पैगम्बरां हैं और ये सब के सब आप की मद हो सना करते हैं । मुजद्दिदे आज़म सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं की :

अपने मौला की है बस शान अज़ीम
जानवर भी करें जिन की ताज़ीम

संग करते हैं अदब से तस्लीम
पेड़ सजदे में गिरा करते हैं

हाँ यहीं करती हैं चिड़ियाँ फरयाद
हाँ यहीं चाहती हैं हिरनी दाद

इसी दर पर शुतराने नाशाद
गिलाए रंजो अना करते हैं

उम्मे सुलैम की रोटियां

एक दिन हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु अपने घर में आए और अपनी बीवी उम्मे सुलैम रदियल्लाहु अन्हा से कहा की क्या तुम्हारे पास खाने की कोई चीज़ है? में ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कमज़ोर आवाज़ से ये महसूस किया की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भूके हैं । उम्मे सुलैम रदियल्लाहु अन्हा ने जों की कुछ रोटियां दुपट्टे में लपेट कर हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु के हाथ आप की खिदमत में भेज दीं । हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु जब बारगाहे नुबुव्वत में पहुंचे तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिदे नबवी में सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के मजमे में तशरीफ़ फरमा थे । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा की क्या अबू तल्हा ने तुम्हारे हाथ खाना भेजा है? उन्हों ने कहा की “जी हाँ” ये सुन कर आप अपने असहाब के साथ उठे और हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु के मकान पे तशरीफ़ लाए । हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु ने दौड़ कर हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु को इस बात की खबर दी, उन्हों ने बीबी उम्मे सुलैम से कहा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक जमाअत के साथ हमारे घर पर तशरीफ़ ला रहे हैं । हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु ने मकान से निकल कर निहायत ही गर्मजोशी के साथ आप का इस्तकबाल किया । आप ने तशरीफ़ ला कर हज़रते बीबी उम्मे सुलैम रदियल्लाहु अन्हा से फ़रमाया की जो कुछ तुम्हारे पास हो लाओ । उन्हों ने वो ही चंद रोटियां पेश कर दीं जिन को हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु के हाथ बारगाहे रिसालत में भेजा था । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म से उन रोटियों का चूरा बनाया गया और हज़रते बीबी उम्मे सुलैम रदियल्लाहु अन्हा ने उस चूरे पर बतौरे सालन के घी डाल दिया, उन चंद रोटियों में आप के मोजिज़ाना तसर्रुफ़ात से इस कदर बरकत हुई की आप दस दस आदमियों को मकान के अंदर बुला बुला कर खिलाते रहे और वो लोग खूब शिकम सेर हो कर खाते रहे यहाँ तक की सत्तर या अस्सी आदमियों ने खूब शिकम सेर हो कर खा लिया ।

हज़रते जाबिर की खजूरें

हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु के वालिद यहूदियों के कर्ज़दार थे और जंगे उहद में शहीद हो गए, हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरे वलीद ने अपने ऊपर क़र्ज़ छोड़ कर वफ़ात पाई है और खजूरों के सिवा मेरे पास क़र्ज़ अदा करने का कोई सामान नहीं है, सिर्फ खजूरों की पैदावार से कई साल तक ये क़र्ज़ अदा नहीं हो सकता आप मेरे बाग़ में तशरीफ़ ले चलें ताके आप के अदब से यहूदी अपना क़र्ज़ वुसूल करने में मुझ पर सख्ती न करें । चुनांचे आप बाग़ में तशरीफ़ लाए और खजूरों का जो ढेर लगा हुआ है उस के पस एक चक्कर लगा कर दुआ फ़रमाई और खुद खजूरों के ढेर पर बैठ गए । आप के मोजिज़ाना तसर्रुफ़ और दुआ की तासीर से इन खजूरों में इतनी बरकत हुई की तमाम क़र्ज़ अदा हो गया और जिस कदर खजूरें कर्जदारों को दी गईं उतनी बच भी गईं ।

हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु की थैली

हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमते अक़दस में कुछ खजूरें लेकर हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इन खजूरों में बरकत की दुआ फरमा दीजिए । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन खजूरों को इकठ्ठा कर के दुआए बरकत फरमा दी और इरशाद फ़रमाया की तुम इन को अपने तोशादान में रख लो और तुम जब चाहो हाथ डाल कर इस में से निकालते रहो लेकिन कभी तोशादान झाड़ कर बिलकुल खली न कर देना । चुनांचे हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु तीस साल तक उन खजूरों को खाते रहे बल्कि कई मन उस में से खैरात भी कर चुके मगर वो खत्म न हुईं । हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु हमेशा उस थैली को अपनी कमर से बांधे रहते थे यहाँ तक की हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु की शहादत के दिन वो थैली उन की कमर से कट कर कहीं गिर गई । इस थैली के ज़ाए खो जाने का हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु को उम्र भर सदमा और अफ़सोस रहा । चुनांचे वो हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु की शहादत के दिन निहायत रिक़्क़त अंगेज़ और दर्द भरे लहज़े में ये शेर पढ़ते हुए चलते फिरते थे की : लोगों के लिए एक गम है और मेरे लिए दो गम हैं एक थैली का गम दूसरा शैख़ उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु का गम ।

हज़रते उम्मे मालिक रदियल्लाहु अन्हा का कुप्पा

हज़रते उम्मे मालिक रदियल्लाहु अन्हा के पास एक कुप्पा था जिस में वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास हदिय्ये में घी भेजा करती थीं उस कुप्पे में इतनी अज़ीम बरकतों का ज़हूर हुआ की जब भी हज़रते उम्मे मालिक रदियल्लाहु अन्हा के बेटे सालन मांगते थे और घर में कोई सालन नहीं होता था तो वो उस कुप्पे में से घी निकाल कर अपने बेटों को दे दिया करती थीं । एक मुद्दते दराज़ तक वो हमेशा उस कुप्पे में से घी निकाल निकाल कर अपने घर का सालन बनाया करती थीं । एक दिन उन्हों ने उस कुप्पे को निचोड़ कर बिलकुल ही खाली कर दिया । जब बारगाहे नुबुव्वत में हाज़िर हुईं तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा की क्या तुम ने उस कुप्पे को निचोड़ डाला? उन्हों ने कहा की जी हाँ, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की अगर तुम उस कुप्पे को न निचोड़तीं और यूं ही छोड़ देतीं । तो हमेशा उस में से घी निकलता ही रहता । इस हदीस को इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है ।

बरकत वाला प्याला

हज़रते समुराह बिन जुन्दब रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास एक प्याला भर कर खाना था, हम लोग दस दस आदमी बारी बारी सुबह से शाम तक उस प्याले में लगातार खाते रहे । लोगों ने पूछा की एक ही प्याला तो खाना था तो वो कहाँ से बढ़ता रहता था? (की लोग इस कदर ज़ियादा तादाद में दिन भर उस को खाते रहे) तो उन्हों ने आसमान की तरफ इशारा कर के कहा की “वहां से ।”

थोड़ा तोशा, अज़ीम बरकत

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चौदह सौ लोगों की जमाअत के साथ एक सफर में थे, सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने भूक से बेताब हो कर सवारी की ऊंटनियों को ज़बाह करने का इरादा किया तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मना फ़रमा दिया और हुक्म दिया की तमाम लश्कर वाले अपना अपना तोशा एक दस्तर ख्वान पर जमा करें । चुनांचे जिस के पास जो कुछ था ला कर रख दिया तो तमाम सामान इतनी जगह में आ गया जिस पर एक बकरी बैठ सकती थी लेकिन चौदह सौ आदमियों ने उस में से शिकम सेर हो कर खा भी लिया और अपने अपने तोशादानो को भी भर लिया । खाने के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पानी माँगा, एक सहाबी रदियल्लाहु अन्हु एक बर्तन में थोड़ा सा पानी लाए, आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस को प्याले में उंडेल दिया और अपना दस्ते मुबारक उस में डाल दिया तो चौदह सौ आदमियों ने उस से वुज़ू किया ।

बरकत वाली कलेजी

एक सफर में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक सौ तीस सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम साथ में थे । आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन लोगों से दरयाफ्त फ़रमाया की क्या तुम लोगों के पास खाने का सामान है ? ये सुन कर एक शख्स एक साआ आटा लाया और वो गूँधा गया फिर एक बहुत तंदुरुस्त लम्बा चौड़ा काफिर बकरियां हांकता हुआ आप के पास आया । आप ने उस से एक बकरी खरीदी और ज़बह करने के बाद उस की कलेजी को भूनने का हुक्म दिया फिर एक सौ तीस आदमियों में से हर एक का उस कलेजी में से एक एक बोटी काट कर हिस्सा लगाया, अगर वो हाज़िर था तो उस को अता फ़रमा दिया और अगर वो गाइब था तो उस का हिस्सा छुपा कर रख दिया, जब गोश्त तय्यार हुआ तो उस में से दो प्याला भर कर अलग रख दिया फिर बाकि गोश्त और एक सअ आटे की रोटी से एक सौ तीस आदमियों की जमाअत शिकम सेर खा कर आसूदा हो गई और दो प्याला भर कर गोश्त फ़ाज़िल बच गया जिस को ऊँट पर लाद लिया गया,

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

Share this post