हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 38)

हज़रते अली की शहादत

हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु और बाज़ दूसरे सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक सफर में थे तो आप ने इरशाद फ़रमाया की में बता दूँ सब से बढ़ कर दो बद बख्त इंसान कौन हैं? लोगों ने अर्ज़ की हाँ या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बता दीजिए । आप ने इरशाद फ़रमाया की एक कोमे समूद का सुर्ख रंग वाला वो बद बख्त जिस ने हज़रते सालेह अलैहिस्सलाम की ऊंटनी को क़त्ल किया और दूसरा वो बद बख्त इंसान जो ऐ अली ! तुम्हारे यहाँ पर तलवार मरेगा यानि शहीद करेगा। ये ग़ैब की खबर इस तरह ज़हूर पज़ीर हुई की 17, रमज़ान मुबारक सं 40, हिजरी को अब्दुर रहमान बिन मुल्जिम ख़ारजी ने हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु पर तलवार से क़ातिलाना हमला किया जिस से ज़ख़्मी हो कर दो दिन बाद हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु शहादत से सरफ़राज़ हुए ।

हज़रते सअद रदियल्लाहु अन्हु के लिए खुश खबरी तुम अभी नहीं मरोगे

हज़रते सअद बिन अबी वक्कास रदियल्लाहु अन्हु हज्जतुल विदा में मक्का शरीफ जा कर इस कदर शदीद बीमार हो गए की उन को अपनी ज़िन्दगी की उम्मीद न रही । उन को इस बात की बहुत ज़ियादा बेचैनी थी की अगर में मर गया तो मेरी हिजरत न मुकम्मल रह जाएगी । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन की इयादत के लिए तशरीफ़ ले गए आप ने उन की बे करारी देख कर तसल्ली दी और उन के लिए दुआ भी फ़रमाई और ये बशारत दी की उम्मीद है की तुम अभी नहीं मरोगे बल्कि तुम्हारी ज़िन्दगी लम्बी होगी और बहुत से लोगों को तुम से नफा और बहुत से लोगों को तुम से नुकसान पहुंचेगा । ये हज़रते सअद रदियल्लाहु अन्हु के लिए फुतुहाते अजम की बशारत थी । क्यूंकि तारीख गवाह है की हज़रते सअद रदियल्लाहु अन्हु ने इस्लामी लश्कर का सिपह सालार बन कर ईरान पे फौज कशी की और चंद साल में बड़े बड़े मारिकों के बाद बादशाहे ईरान किसरा के तख़्त व ताज को छीन लिया । इस तरह मुसलमानो को इन की ज़ात से बड़ा फ़ायदा और कुफ्फारे मजूस को इन की ज़ात से नुकसान अज़ीम हुआ । ईरान हज़रते उमर फारूक आज़म रदियल्लाहु अन्हु के दौरे खिलाफत में फतह हुआ और इस लड़ाई का नक्शए जंग खुद अमीरुल मोमिनीन ने माहिरीन जंग के मश्वरे से तय्यार फ़रमाया था ।

हिजाज़ की आग

हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की क़यामत उस वक़्त तक नहीं आएगी जब तक हिजाज़ की ज़मीन से एक ऐसी आग न निकले जिस की रौशनी में बसरा के ऊंटों की गरदने दिखने लगेंगीं, इस ग़ैब की खबर का ज़हूर सं 654, हिजरी में हुआ । चुनांन्चे हज़रते इमाम नववि रदियल्लाहु अन्हु ने इस हदीस की शराह में तहरीर फ़रमाया है की ये आग हमारे ज़माने में सं 654, हिजरी में मदीना के अंदर ज़ाहिर हुई । ये आग इस कदर बड़ी थी की मदीने के मशरिक की जानिब से ले कर “हुर्राह” की पहाड़ियों तक फैली हुई थी इस आग का हाल मुल्के शाम और तमाम शहरों में तवातुर के तरीके पर मालूम हुआ है और हम से उस शख्स ने बयान किया जो उस वक़्त मदीने में मौजूद था ।

इसी तरह हज़रते अल्लामा जलालुद्दीन सीयुति रदियल्लाहु अन्हु ने तहरीर फ़रमाया है की 3, जमादिउल आखिर सं 654, हिजरी को मदीना शरीफ में अचानक एक घबराहट की आवाज़ सुनाई देने लगी फिर निहायत ही ज़ोरदार ज़लज़ला आया जिस के झटके थोड़े थोड़े वक्फे के बाद दो दिन तक महसूस किये जाते रहे । फिर बिलकुल अचानक कबीलए क़ुरैज़ा के करीब पहाड़ों में एक ऐसी खौफनाक आग नमूदार हुई जिस के बुलंद शोले मदीने से ऐसे दिख रहे थे की गोया ये आग मदीना शरीफ के घरों में लगी हुई है । फिर ये आग बहते हुए नाले की तरह सैलाब के मानिंद फैलने लगी और ऐसा महसूस होने लगा की पहाड़ियां आग बन कर बहती चली जा रही है और फिर उस के शोले इस कदर बुलंद हो गए की आग का एक पहाड़ नज़र आने लगा और आग के शरारे हर चारो तरफ फ़ज़ाओं में उड़ने लगे । यहाँ तक की उस आग की रौशनी मक्का शरीफ से नज़र आने लगी और बहुत से लोगों ने शहर बसरा में रात को उसी आग की रौशनी में ऊंटों की गरदनों को देख लिया । अहले मदीना आग के इस होलनाक मंज़र से लरज़ा बर अंदाम हो कर दहशत और घबराहट के आलम में तौबा और अस्तगफार करते हुए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रौज़ए अक़दस के पास पनाह लेने के लिए इकठ्ठा हो गए । एक माह से ज़ाइद अरसे तक ये आग जलती रही और फिर खुद बखुद रफ्ता रफ्ता इस तरह बुझ गई की उस का कोई निशान भी बाकी नहीं रहा ।

फ़ितनो के अलम बरदार

हज़रते हुज़ैफ़ा बिन यमान सहाबी रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की खुदा की कसम ! में नहीं जानता की मेरे साथी भूल गए है या जानते हुए अनजान बन रहे है । वल्लाह ! दुनिया के ख़ातिमे तक जितने फ़ितनो के ऐसे क़ाइदीन हैं जिन के मुत्ताबिईन की तादाद तीन सौ या इस से ज़ाइद हों उन सब फ़ितनो के अलम बरदारों का नाम उन के बापों का नाम उन के कबीलों का नाम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हम लोगों को बता दिया है । इस हदीस से साबित होता है की क़यामत तक पैदा होने वाले गुमराहों और फ़ितनो के हज़ारों लाखों सरदारों और अलम बरदारों के नाम वल्दियत व सुकूनत के साथ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा को बता दिए । ज़ाहिर है की ये इल्मे ग़ैब है जो अल्लाह पाक ने अपने हबीब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अत फ़रमाया ।

क़यामत तक के वाक़िआत

मुस्लिम शरीफ की हदीस है, हज़रते अम्र बिन अख्तब अंसारी रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की एक दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हम लोगों को नमाज़े फज्र पढ़ा कर मिम्बर पर तशरीफ़ ले गए और हम लोगों को खुत्बा सुनाते रहे यहाँ तक की नमाज़े ज़ोहर का वक़्त आ गया । फिर आप ने मिम्बर से उतर कर नमाज़े ज़ोहर अदा फ़रमाई । फिर खुत्बा देने में मशगूल हो गए यहाँ तक की नमाज़े असर का वक़्त हो गया । उस वक़्त आप ने मिम्बर से उतर कर नमाज़े असर पढ़ाई फिर मिम्बर पर चढ़ कर खुत्बा पढ़ने लगे यहाँ तक की सूरज ग़ुरूब हो गया तो उस दिन भर के ख़ुत्बे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हम लोगों को उन तमाम वाक़िआत की खबर दे दी जो क़यामत तक होने वाले थे तो जिस शख्स ने जिस क़द्र ज़ियादा उस ख़ुत्बे को याद रखा वो हम सहाबा में सब से ज़ियादा इल्म वाला है ।

चट्टान का बिखर जाना

ग़ज़वए खंदक के बयान में हम तफ्सील के साथ लिख चुके हैं की सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम मदीने के चारों तरफ कुफ्फार के हमलों से बचने के लिए खंदक खोद रहे थे, इत्तिफ़ाक़ से एक बहुत ही सख्त चट्टान निकल आई । सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने अपनी इज्तिमाई ताकत से हर चंद उस को तोड़ना चाहा मगर वो किसी तरह न टूट सकी, फाबड़े उस पर पड़ पड़ कर उचट जाते थे । जब लोगों ने मजबूर हो कर खिदमते अक़दस में ये माजरा अर्ज़ किया तो आप खुद उठ कर तशरीफ़ लाए और फावड़ा हाथ में ले कर एक ज़र्ब लगाई तो वो चट्टान रेत के भुरभुरे टीलों की तरह चूर हो कर बिखर गई ।

पहाड़ों का सलाम करना

हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं की एक बार में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ मक्का शरीफ में एक तरफ को निकला तो में ने देखा की जो दरख़्त और पहाड़ भी सामने आता है उस से “सलाम” की आवाज़ आती है और में खुद इस आवाज़ को अपने कानो से सुन रहा था ।
इसी तरह हज़रते जाबिर बिन समुराह रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की मक्के में एक पथ्थर है जो मुझ को सलाम किया करता था में अब भी उस को पहचान हूँ ।

मुठ्ठी भर ख़ाक का शाहकार

मुस्लिम शरीफ की हदीस में हज़रते सलमाह बिन अक्वा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की जंगे हुनैन में जब कुफ्फार ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चारों तरफ से घेर लिया तो आप अपनी सवारी से उतर पड़े और ज़मीन से एक मुठ्ठी ले कर कुफ्फार के चेहरों पर फेंकी और “शाहातिल वुजूहु” फ़रमाया तो काफिरों के लश्कर में कोई एक इंसान भी बाकी नहीं रहा जिस की दोनों आँखें इसी मिटटी से न भर गई हो चुनांचे वो सब अपनी अपनी आँखें मलते हुए पीठ फेर कर भाग निकले और शिकस्त खा गए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के अमवाले गनीमत को मुसलमानो के दरमियान तकसीम फरमा दिया । इसी तरह हिजरत की रात में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने काशानए नुबुव्वत का मुहासरा करने वाले काफिरों पर जब एक मुठ्ठी खाक फेंकी तो ये मुठ्ठी भर मिटटी तमाम काफिरों के सरों पर पड़ गई ।

खोशा (गुंचा) पेड़ से उतर पड़ा

हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की एक आराबी (गाऊं और दिहात के रहने वाले को देहाती और आराबी कहते हैं) बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुआ और उस ने आप से अर्ज़ किया की मुझे ये क्यूँकर यकीन हो की आप खुदा के पैगम्बर हैं? आप ने फ़रमाया की उस खजूर के दरख्त पर जो खोशा (गुंचा) लटक रहा है अगर में उस को अपने पास बुलाऊँ और वो मेरे पास आ जाए तो क्या तुम मेरी नुबुव्वत पर ईमान लाओगे? उस ने कहा की हां बेशक में आप का ये मोजिज़ा देख कर ज़रूर आप को खुदा का रसूल मान लूँगा | आप ने खजूर के उस ख़ोशे को बुलाया तो वो फ़ौरन ही चल कर दरख़्त से उतरा और आप के पास आ गया फिर आप ने हुक्म दिया तो वो वापस जा कर दरख्त में अपनी जगह पर पेवस्त हो गया | ये मोजिज़ा देख कर वो आराबी फ़ौरन ही मज़हबे इस्लाम में दाखिल हो गया |

दरख़्त चल कर आया

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर ने फ़रमाया की हम लोग हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक सफर में थे । एक आराबी आप के पास आया, आप ने उस को इस्लाम की दावत दी, उस आराबी ने सवाल किया की क्या आप की नुबुव्वत पर कोई गवाह भी है? हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की हाँ ये पेड़ जो मैदान के किनारे पर है मेरी नुबुव्वत की गवाही देगा । चुनांन्चे आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस पेड़ को बुलाया और वो फ़ौरन ही ज़मीन चीरता हुआ अपनी जगह से चल कर बारगाहे अक़दस में हाज़िर हो गया और उस ने बा आवाज़े बुलंद तीन बार आप की नुबुव्वत की गवाही दी । फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस को इशारा फ़रमाया तो वो पेड़ ज़मीन में चलता हुआ अपनी जगह पर चला गया।

मुहद्दिस बज़्ज़ार व इमाम बहकी व इमाम बगवी ने इस हदीस, में ये रिवायत भी तहरीर फ़रमाई है की उस पेड़ ने बारगाहे अक़दस में आ कर “अस्सलामु अलईका या रसूलल्लाह” कहा, आराबी ये मोजिज़ा देखते ही मुस्लमान हो गया और जोशे अकीदत में अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझे इजाज़त दीजिए की में आप को सजदा करूँ । आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की अगर में खुदा के सिवा किसी दूसरे को सजदा करने का हुक्म देता तो में औरतों को हुक्म देता की वो अपने शौहरों को सजदा किया करें । ये फरमा कर आप ने उस को सजदा करने की इजाज़त नहीं दी फिर उस ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अगर आप इजाज़त दें तो में आप के दस्ते मुबारक और मुकद्द्स पाऊं को बोसा दूँ । आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस को इस की इजाज़त दे दी । चुनांचे उस ने आप के मुकद्द्स हाथ और मुबारक पाऊं को वालिहाना अकीदत के साथ चूम लिया ।

इसी तरह हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की सफर में एक मंज़िल पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस्तिंजा फरमाने के लिए मैदान में तशरीफ़ ले गए मगर कहीं कोई आड़ की जगह नज़र नहीं आई । हाँ अल बत्ता उस मैदान में दो पेड़ नज़र आए, जो एक दूसरे से काफी दूर थे । आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक पेड़ की शाख पकड़ कर चलने का हुक्म दिया तो वो पेड़ इस तरह आप के साथ साथ चलने लगा जिस तरह महार वाला ऊँट की महार पकड़ने वाले के साथ चलने लगता है फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दूसरे पेड़ की टहनी थाम कर उस को भी चलने का इशारा फ़रमाया तो वो भी चल पड़ा और दोनों पेड़ एक दूसरे से मिल गए और आप ने उस की आड़ में अपनी हाजत रफा फ़रमाई । इस के बाद आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया तो वो दोनों पेड़ ज़मीन चीरते हुए चल पड़े और अपनी अपनी जगह पर पहुंच कर जा खड़े हुए ।

इंतिबाह

ये वो मोजिज़ा है जिस को हज़रते अल्लामा इमाम बूसीरी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने क़सीदाए बुरदा शरीफ में तहरीर फ़रमाया, आप फरमाते हैं की आप के बुलाने पर पेड़ सजदा करते हुए बिला क़दम के अपनी पिंडली से चलते हुए आप के पास हाज़िर हुए । नीज़ पहली हदीस से साबित हुआ की दीनदार बुज़ुर्गों मसलन उलमा व मशाइख की ताज़ीम के लिए उन के हाथ पाऊं को बोसा देना जाइज़ है । चुनांचे हज़रते इमाम नववि रदियल्लाहु अन्हु ने अपनी किताब “अज़कार” में और हम ने अपनी किताब “नवादिरूल हदीस” में इस मसले को मुफ़स्सल तहरीर किया है ।

छड़ी रोशन हो गई

हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की दो सहाबी हज़रते उसैद बिन हुज़ैर और अब्बाद बिन बिशर रदियल्लाहु अन्हुमा अँधेरी रात में बहुत देर तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बात करते रहे जब ये दोनों बारगाहे रिसालत से अपने घरों के लिए रवाना हुए तो एक की छड़ी अचानक खुद बा खुद रोशन हो गई और वो दोनों उसी छड़ी की रौशनी में चलते रहे जब कुछ दूर चल कर दोनों के घरों का रास्ता अलग अलग हो गया तो दूसरे की छड़ी भी रोशनी के सहारे सख्त अँधेरी रात में अपने अपने घरों तक पहुंच गए ।

इसी तरह इमाम अहमद ने हज़रते अबू सईद खुदरी रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है के एक मर्तबा हज़रते क़तादा बिन नोमान रदियल्लाहु अन्हु ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ ईशा की नमाज़ पढ़ी । रात सख्त अँधेरी थी और आसमान पर घनघोर घटा छाई हुई थी । बा वक़्ते रवानगी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दस्ते मुबारक से उन्हों ने पेड़ की एक शाख अता फ़रमाई और इरशाद फ़रमाया की तुम बिला ख़ौफ़ो खतर अपने घर जाओ ये शाख तुम्हारे हाथ में ऐसी रोशन हो जाएगी की दस आदमी तुम्हारे आगे और दस आदमी तुम्हारे पीछे इस की रौशनी में चल सकें और जब तुम घर पहुँचेंगें तो एक काली चीज़ को देखोगे उस को मार कर घर से निकाल देना । चुनांचे ऐसा ही हुआ की जूँ ही हज़रते क़तादा रदियल्लाहु अन्हु काशानए नुबुव्वत से निकले वो शाख रोशन हो गई और वो उसी की रौशनी में चल कर अपने घर पहुंच गए और देखा की वहां एक काली चीज़ मौजूद है आप ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान के मुताबिक उस को मार कर घर से बाहर निकाल दिया ।

लकड़ी तलवार बन गई

जंगे बद्र के दिन हज़रते उक्काशा बिन मुहसिन रदियल्लाहु अन्हु की तलवार टूट गई तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन को एक दरख्त (पेड़) की टहनी दे कर फ़रमाया की “तुम इस से जंग करो” वो टहनी उन के हाथ में आते ही एक निहायत नफीस और बेहतरीन तलवार बन गई जिस से वो उमर भर तमाम लड़ाइयों में जंग करते रहे यहाँ तक की हज़रते अमीरुल मोमिनीन अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के दौरे खिलाफत में वो शहादत से सरफ़राज़ हो गए ।

इसी तरह हज़रते अब्दुल्लाह बिन जहश रदियल्लाहु अन्हु की तलवार जंगे उहद के दिन टूट गई थी तो उन को भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक खजूर की शाख दे कर इरशाद फ़रमाया की तुम इस से लड़ो वो हज़रते अब्दुल्लाह बिन जहश रदियल्लाहु अन्हु के हाथ में आते ही एक तलवार बन गई । हज़रते अब्दुल्लाह बिन जहश रदियल्लाहु अन्हु की उस तलवार का नाम “अर्जून” था ये खुलफ़ा बनू अल अब्बास के दौरे हुकूमत तक बाकी रही यहाँ तक की यहाँ तक की खलीफा मोतसिम बिल्लाह के एक अमीर ने इस तलवार को बाईस 22, दीनार में ख़रीदा और हज़रते उक्काशा बिन मुहसिन रदियल्लाहु अन्हु की तलवार का नाम “ओन” था, ये दोनों तलवारें हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मोजिज़ात और आप के तसर्रुफ़ात की यादगार थीं ।

रोने वाला सुतून (लकड़ी)

मस्जिदे नबवी में पहले मिम्बर नहीं था, खजूर के तने का एक सुतून था इसी से टेक लगा कर आप खुत्बा पढ़ा करते थे । जब एक अंसारी औरत ने एक मिम्बर बनवा कर मस्जिदे नबवी में रखा तो आप ने उस पर खड़े हो कर खुत्बा देना शुरू कर दिया । अचानक उस सुतून से बच्चे की तरह रोने की आवाज़ आने लगी और कुछ रिवायात में आया है की ऊंटनियों की तरह बिलबिलाने की आवाज़ आई । ये रआवियाने हदीस के मुख्तलिफ ज़ोक की बिना पर रोने की मुख्तलिफ तश्बीहें हैं रावियों का मक़सूद ये है की दर्दे फिराक से बिलबिला कर और बेक़रार हो कर सुतून ज़ार ज़ार रोने लगा और कुछ रिवायतों में ये भी आया है की सुतून इस कदर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा की जोशे गिरया से फ़ट जाए और इस रोने की आवाज़ को मस्जिदे नबवी के तमाम नमाज़ियों ने अपने कानो से सुना । सुतून की गिरया व ज़ारी को सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मिम्बर से उतर आए और सुतून पर तस्कीन देने के लिए अपना मुकद्द्स हाथ रख दिया और उस को अपने सीने से लगा लिया तो वो सुतून इस तरह हिचकियाँ ले ले कर रोने लगा जिस तरह रोने वाले बच्चे को जब चुप कराया जाता है तो वो हिचकियाँ ले ले कर रोने लगता है । बिला आखिर जब आप ने सुतून को अपने सीने से चिमटा लिया तो वो सुकून पा कर खमोश हो गया और आप ने इरशाद फ़रमाया की सुतून का ये रोना इस बिना पर था की ये पहले खुदा का ज़िक्र सुनता था अब जो न सुना तो रोने लगा ।

हज़रते बुरैदा रदियल्लाहु अन्हु की हदीस में ये भी वारिद है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस सुतून को अपने सीने से लगा कर ये फ़रमाया की ऐ सुतून ! अगर तू चाहे तो में तुझ को फिर उसी बाग़ में तेरी पहली जगह पर पंहुचा दूँ ताकि तू पहले की तरह हरा भरा पेड़ हो जाए और हमेशा फलता फूलता रहे और अगर तेरी खाइश हो तो में तुझ को बागे बहिश्त में एक दरख़्त बना देने के लिए खुदा से दुआ कर दूँ ताकि जन्नत में खुदा के औलिया तेरा फल कहते रहें । ये सुन कर सुतून ने इतनी ज़ोर से जवाब दिया की आस पास के लोगों ने भी सुन लिया, सुतून का जवाब ये था की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरी यही तमन्ना है की में जन्नत का एक पेड़ बना दिया जाऊं ताकि खुदा के औलिया मेरा फल खाते रहें और मुझे हयाते जाविदानी मिल जाए । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की ऐ ! सुतून में ने तेरी ये आरज़ू को मंज़ूर कर लिया । फिर आप ने सामेईन से फ़रमाया की ऐ लोगों देखो इस सुतून ने दारुल फना की ज़िन्दगी को ठुकरा कर दारुल बका की हयात को इख़्तियार कर लिया ।
एक रिवायत में ये भी आया है की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सुतून को अपने सीने से लगा कर इरशाद फ़रमाया की मुझे उस ज़ात की कसम है जिस के क़ब्ज़ए कुदरत में मेरी जान है की अगर में इस सुतून को अपने सीने से चिमटाता तो क़यामत तक ये रोता ही रहता,

वाज़ेह रहे की सुतून (लकड़ी) का गिरया यानि रोना ये मोजिज़ा अहादीस और सीरत की किताबों में 11, सहाबियों से मन्क़ूल है जिन के नाम ये हैं :
(1) जाबिर बिन अब्दुल्लाह (2) उबय्य बिन काब (3) अनस बिन मालिक (4) अब्दुल्लाह बिन उमर (5) अब्दुल्लाह बिन अब्बास (6) सहल बिन सअद (7) अबू सईद खुदरी (8) बुरैदा (9) उम्मे सलमाह (10) मुत्तलिब बिन अबी वदाअ (11) आइशा रदियल्लाहु अन्हुम फिर दौरे सहाबा के बाद भी हर ज़माने में रावियों की एक जमाअते कसीरा इस हदीस को रिवायत करती रही ।
यहाँ तक की अल्लामा काज़ी अयाज़ ताजुद्दीन सुबकी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया की सुतून (लकड़ी) का गिरया यानि रोना ये हदीस “खबरे मुतवातिर” है ।

इस सुतून के बारे में एक रिवायत है की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस को अपने मिम्बर के नीचे दफ़न फरमा दिया और एक रिवायत में आया है की आप ने इस को मस्जिदे नबवी की छत में लगा दिया । इन दोनों रिवायतों में शारिहिने हदीस ने इस तरह ततबीक़ दी है की पहले हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस को दफ़न फरमा दिया फिर इस ख्याल से की ये लोगों के कदमो से पामाल होगा उस को ज़मीन से निकाल कर छत में लगा दिया इस तरह ज़मीन में दफ़न करने और छत में लगाने की दोनों रिवायतें दो वक़्तों में होने के लिहाज़ से दुरुस्त हैं । वल्लाहु आलम,
फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद जब नई तामीर के लिए मस्जिदे नबवी मुन्हदिम की गई और ये सुतून छत से निकला गया तो इस को मशहूर सहाबी हज़रते उबय्य बिन काब रदियल्लाहु अन्हु ने एक मुकद्द्स तबर्रुक समझ कर उठा लिया और इस को अपने पास रख लिया यहाँ तक की ये बिलकुल ही कोहना और पुराना हो कर चूर चूर हो गया ।

इस सुतून को दफ़न कर ने के बारे में अल्लामा ज़ुर कानी रहमतुल्लाह अलैह ने ये नुक्ता तहरीर फ़रमाया है की अगरचे ये खुश्क लकड़ी का एक सुतून था मगर ये दरजातो मरातिब में एक मर्दे मोमिन के मिस्ल करार दिया गया क्यूंकि ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इश्को मुहब्बत में रोया था और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ इश्क मुहब्बत का ये बर्ताव ये ईमान वालों ही का ख़ास हिस्सा है ।

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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