हज़रते सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 1)

क़ादरी कर कादरी रख क़दरियों में उठा
क़द्र अब्दुल क़ादिरे कुदरत नुमा के वास्ते

विलादत बा सआदत

आप की पैदाइश मुबारक एक 1, रमज़ानुल मुबारक बरोज़ जुमा 470, हिजरी मुताबिक 1075, या 1077, ईस्वी को बग़दाद शरीफ के करीब “क़स्बा जीलान” में हुई । हाफ़िज़ इमादुद्दीन इब्ने कसीर दमिश्क़ी ने अपनी तस्नीफ़ “अल बिदाया वन निहाया” इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु का सने विलादत 470, हिजरी ही लिखा है, और हज़रत इमाम याफ़ई रहमतुल्लाह अलैह अपनी तस्नीफ़ (मिरातुल जिनान) में लिखते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु से जब किसी ने आप के सने विलादत के मुतअल्लिक़ सवाल किया तो आप ने जवाब दिया के मुझे सही तौर पर याद नहीं अल बत्ता इतना ज़रूर जानता हूँ के जिस साल में बग़दाद आया था इसी साल शैख़ अबू मुहम्मद रिज़्क़ुल्लाह बिन अब्दुल वहाब तमीमी का विसाल हुआ, और ये 488, हिजरी था उस वक़्त मेरी उमर अठ्ठारह साल थी, इस हिसाब से आप की तारीखे पैदाइश 470, हिजरी ही है ।

इस्म मुबारक लक़ब व कुन्नियत

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु का इस्म नाम, मुबारक “अब्दुल क़ादिर” और आप की कुन्नियत “अबू मुहम्मद” और अल्काबात, महबूबे सुब्हानी, गौसुस सक़लैन, ग़ौसुल आज़म, पीरे पीरा, मीरे मीरा, बड़े पीर, पीर दस्तगीर रोशन ज़मीर, वगैरा हैं, (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, तबक़ातुल कुबरा शआरानी)

वक़्ते विलादत करामत का ज़हूर

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की विलादत माहे रमज़ानुल मुबारक में हुई और पहले ही दिन से रोज़ा रखा, सहरी से लेकर अफ्तार तक आप अपनी वालिदा मुहतरमा का दूध न पीते थे, चुनांचे इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की वालिदा मुहतरमा फरमाती हैं के जब मेरा फ़रज़न्दे अर्जमन्द अब्दुल क़ादिर पैदा हुआ तो तो रमज़ान शरीफ में दिन भर दूध न पीता था, (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर, नुज़हतुल खातिर अल फ़ातिर, तब्कातुल कुबरा जिल्द अव्वा)

आप के वालिदैन करीमैन आप के वालिद माजिद सय्यद अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह अलैह का इस्मे गिरामी “सय्यद मूसा” कुन्नियत “अबू सालेह” और लक़ब “जंगी दोस्त” था, आप जिलान के अकाबिर मशाइख में से थे ।
आप की वालिदा माजिदा का नाम “फातिमा” लक़ब “अमातुल जब्बार” “और उम्मे खैर” कुन्नियत थी । आप का पूरा नाम इस तरह है “उम्मुल खैर फात्मा” ।

आप के आबाओ अजदाद

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु का खदान सालिहीन का घराना था आप के नाना जान, दादा जान, वालिद माजिद, वलिदाह मुहतरमा, फूफी जान, भाई और साहब ज़ाद गान सब मुत्तक़ी व परहेज़गार थे, इसी वजह से लोग आप के खानदान को अशराफ का खानदान कहते थे ।

आप का नसब शरीफ

आप रहमतुल्लाह अलैह वालिद माजिद की निस्बत से “हसनी” हैं सिलसिलए नसब यूं है: मुहीयुद्दीन अबू मुहम्मद बिन अब्दुल क़ादिर, बिन सय्यद अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त, बिन सय्यद अबू अब्दुल्लाह, बिन सय्यद याह्या, बिन सय्यद मुहम्मद, बिन सय्यद दाऊद, बिन सय्यद मूसा सानी, बिन सय्यद अब्दुल्लाह, बिन सय्यद मूसा जोन, बिन सय्यद अब्दुल्लाह महिज़, बिन सय्यद इमाम हसन मुसन्ना, बिन सय्यद इमामे हसन, बिन सय्यदना अली मुर्तज़ा शेरे खुदा रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन,
आप चूंके नजीबुत तरफ़ैन हैं और वालिदा मजिदाह की तरफ से हुसैनी हैं, जिस की तफ्सील इस तरह है: हज़रत उम्मुल खैर फातिमा बिन्ते सय्यद अब्दुल्लाह सोमई, बिन अबू जमालुद्दीन, बिन सय्यद मुहम्मद, बिन सय्यद अबुल अता, बिन सय्यद कमालुद्दीन ईसा बिन, सय्यद अलाउद्दीन अल जव्वाद, बिन इमाम अली रज़ा, बिन इमाम मूसा काज़िम, बिन इमाम जाफर सादिक, बिन इमाम मुहम्मद बकर, बिन इमाम ज़ैनुल अबिदीन, बिन सय्यदुश शुहदा सर कार इमाम हुसैन, बिन सय्यदना अमीरुल मोमिनीन अली मुर्तज़ा रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।

आप के नाना जान

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के नाना जान हज़रत अब्दुल्लाह सोमई रहमतुल्लाह अलैह जिलान शरीफ के मशाइख में से थे, आप निहायत ज़ाहिद, और परहेज़गार होने के अलावा साहिबे फ़ज़्लो कमाल भी थे, बड़े बड़े मशाईखिने किराम रहमतुल्लाह अलैहिम अजमईन से आप ने शरफ़े मुलाकात हासिल किया ।
हज़रत अब्दुल्लाह सोमई रहमतुल्लाह अलैह मुस्ताजाबुद दावात (यानि आप की दुआएं कुबूल होती थीं) अगर आप किसी शख्स से नाराज़ होते तो अल्लाह पाक उस शख्स से बदला लेता और जिससे आप खुश होते तो अल्लाह पाक उस शख्स को इनआमों इकराम से नवाज़ता, ज़ईफ़ुल जिस्म और नहीफुल बदन होने के बावजूद आप नवाफिल की कसरत किया करते थे और ज़िक्रो अज़कार में मशगूल बिज़ी रहते थे, आप अक्सर वाक़िआत होने से पहले उन की खबरे दे दिया करते थे और जिस तरह आप इन के रूनुमा होने की इत्तिला देते थे इसी तरह ही वाक़िआत रू पज़ीर होते थे ।

आप के वालिद को जंगी दोस्त क्यों कहा गया?

आप रहमतुल्लाह अलैह का लक़ब “जंगी दोस्त” इस लिए हुआ के आप रहमतुल्लाह अलैह ख़ालिसतन अल्लाह पाक की रज़ा के लिए नफ़्स कशी और रियाज़ते शरई में यकताए ज़माना थे, नेकी के कामो का हुक्म करने और बुराई से रोकने के लिए मशहूर थे, इस मुआमले में अपनी जान की भी परवाह न करते थे, चुनांचे, एक दिन आप रहमतुल्लाह अलैह जमा मस्जिद को जा रहे थे के ख़लीफ़ए वक़्त के चंद मुलाज़िम शराब के मटके निहायत ही एहतियात से सरों पर उठाए जा रहे थे, आप रहमतुल्लाह अलैह ने जब इन की तरफ देखा तो जलाल में आ गए और इन मटकों को तोड़ दिया, आप रहमतुल्लाह अलैह के रोअब और बुज़ुरगी के सामने किसी मुलाज़िम को दम मारने की जुरअत न हुई तो उन्हों ने ख़लीफ़ए वक़्त के सामने वाकिए का इज़हार किया और आप रहमतुल्लाह अलैह के खिलाफ खलीफा को उभारा, तो खलीफा ने कहा: “सय्यद मूसा रहमतुल्लाह अलैह को फ़ौरन मेरे दरबार में पेश करो, चुनांचे हज़रत सय्यद अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह अलैह दरबार में तशरीफ़ ले आए खलीफा उस वक़्त कुरसी पर ग़ैज़ो गज़ब से बैठा था, खलीफा ने ललकार कर कहा: आप कौन थे जिन्हों ने मेरे मुलज़िमीन की मेहनत को राईगां कर दिया? सय्यद अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: में मुहतसिब हूँ और में ने अपना फर्ज़े मंसबी अदा किया है, खलीफा ने कहा: आप किस के हुक्म से मुहतसिब मुकर्रर किए गए हैं? हज़रत सय्यद अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह अलैह ने रोअब दार लहजे में जवाब दिया जिस के हुक्म से तुम हुकूमत कर रहे हो, आप के इस इरशाद से खलीफा पर ऐसी रिक़्क़त तारी हुई के सर बा ज़ानों हो गया (यानि घुटनो पर सर रख कर बैठ गया) और थोड़ी देर के बाद सर को उठा कर अर्ज़ किया: हुज़ूरे वाला! “अम्र बिल मारूफ नहीं अनिल मुनकर” के अलावा मटको को तोड़ने में क्या हिकमत है? आप ने जवाब में इरशाद फ़रमाया: तुम्हारे हाल पर शफकत करते हुए नीज़ तुझ को दुनिया और आख़िरत की रुस्वाई और ज़िल्लत से बचाने की खातिर, खलीफा पर आप की इस हिकमत भरी गुफ्तुगू का बहुत असर हुआ और मुअतस्सिर हो कर आप की खिदमते अक़दस में अर्ज़ गुज़ार हुआ: आलीजाह! आप मेरी तरफ से भी “मुहतसिब” (काज़ी, मुफ़्ती, कोतवाल, मजिस्टीरेत) के ओहदे पर मामूर हैं, हज़रत सय्यद अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त रहमतुल्लाह ने अपने मुतावक्किलाना अंदाज़ में फ़रमाया: जब में अल्लाह पाक की तरफ से मामूर हूँ तो फिर मुझे खलक की तरफ से मामूर होने की क्या हाजत है, उसी दिन से आप “जंगी दोस्त” के लक़ब से मशहूर हुए । (सीरते गौसुस सक़लैन)

ग़ौस किसे कहते हैं?

“गौसियत” बुज़ुरगी का एक ख़ास दर्जा है, लफ़्ज़े, “ग़ौसे” लुग़वी माना हैं “फरयदरस यानि फर्याद को पहुंच ने वाला” चूंके इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु गरीबों, बे कसों, ला चार, हाजत मंदों, के मदद गार हैं इसी लिए आप रहमतुल्लाह अलैह को “ग़ौसे आज़म” के खिताब से सरफ़राज़ किया गया, और बाज़ अकीदत मंद आप को “पीराने पीर पीर दस्तगीर” के लक़ब से भी याद करते हैं,

आप की नेक सीरत बीवियां

हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह अपनी शोहराए आफ़ाक़ तस्नीफ़ “अवारिफु मआरिफ़” में तहरीर फरमाते हैं: “एक शख्स ने इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु से पूछा या” सय्यदी! आप ने निकाह क्यों किया? इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: बेशक में निकाह नहीं करना चाहता था के इससे मेरे दूसरे कामो में खलल पैदा हो जाएगा, मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे हुक्म फ़रमाया के “अब्दुल क़ादिर! तुम निकाह कर लो अल्लाह पाक के हाँ हर काम का एक वक़्त मुकर्रर है, फिर ये जब वक़्त आया तो अल्लाह पाक ने मुझे “चार बीवियां” अता फ़रमाई जिन में से हर एक मुझ से कामिल मुहब्बत रखती है” इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की बीवियां भी आप के रूहानी कमालात से फ़ैज़याब थीं आप के साहब ज़ादे हज़रत शैख़ अब्दुल जब्बार रदियल्लाहु अन्हु अपनी वालिदा माजिदा के मुतअल्लिक़ बयान करते हैं के जब भी वालिदा मुहतरमा किसी अँधेरे मकान में तशरीफ़ ले जाती थीं तो वहां चिराग की तरह रौशनी हो जाती थी, एक मोके पर मेरे वालिद मुहतरम गौसे पाक रदियल्लाहु अन्हु भी वहां तशरीफ़ ले आए, जैसे ही आप की नज़र इस रौशनी पर पड़ी तो वो रौशनी फ़ौरन गाइब हो गई, तो आप ने इरशाद फ़रमाया के “ये शैतान” था जो तेरी खिदमत करता था इसी लिए में ने उसे खत्म कर दिया, अब में इस रौशनी को रहमानी नूर में तब्दील किए देता हूँ इस के बाद वालिदा मुहतरमा जब भी किसी तारीक मकान में जाती थीं तो वहां ऐसा नूर होता जो चाँद की रौशनी की तरह मालूम होता था । (बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार)

फूफी साहिबा भी मुस्ताजाबुद दावात थी

शैख़ अबुल अब्बास और सालेह मुतबिकि ने बयान किया है: के एक दफा जिलान में कहित साली हो गई यानि सूखा पड़ गया लोगों ने नमाज़े इसतस्का पढ़ी लेकिन बारिश नहीं हुई तो लोग आप की “फूफी जान हज़रते सय्यदह उम्मे आईशा रहमतुल्लाह अलैहा” के घर आए और आप से बारिश के लिए दुआ की दरखास्त की वो अपने घर के सेहन की तरफ तशरीफ़ लाईं और ज़मीन पर झाड़ू दे कर दुआ मांगी: ऐ रब्बुल आलमीन! में ने तो झाड़ू दे दी है और अब तू छिड़काओ फरमा दे, कुछ ही देर में आसमान से इस कदर मूसला धार बारिश होने लगी, लोग अपने घरों को भीगते हुए गए, ।

औलियाए साबिक़ीन की पेशन गोइयाँ

अक्सर औलियाए किबार व मशाइखे ज़ी वकार, ने आप की विलादते बा सआदत से पहले आप के आने की खबर बताई कुछ ने विलादत के थोड़े ही दिनों बाद और अक्सर ने आप के मशहूर होने से पहले आप की अज़मतो जलात की खबर दी है इन में से चंद के अक़वाल यहाँ पेश करते हैं:

सय्यदुत ताइफ़ा जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु अन्हु

शैखुल मशाइख सय्यदुत ताइफ़ा जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु अन्हु, जो इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु से दो सो साल पहले गुज़रे हैं, एक दिन मुराकिबा (तसव्वुर, दूसरी चीज़ों की तरफ से ख्यालात छोड़ कर खुदा की तरफ धियान लगाना, गर्दन झुका कर यादे खुदा में खो जाना) में थे के यकायक उन्होंने सर उठाया और फ़रमाया मुझे आलमे ग़ैब से मालूम हुआ है के पांचवीं सदी के बीच में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादे पाक में से एक क़ुत्बे आलम होगा जिन का लक़ब “मुहीयुद्दीन” और इस्मे मुबारक “सय्यद अब्दुल क़ादिर” होगा, और वो गौसे आज़म होगा, और जिलान में पैदाइश होगी उन को आखिरी नबी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादे पाक में से अइम्माए किराम और सहाबाए किराम के अलावा अव्वालीन व आखिरीन हर वाली, और वलिय्या, की गर्दन पर मेरा क़दम कहने का हुक्म होगा, ।

शैख़ मुहम्मद शबनकी रदियल्लाहु अन्हु

आप फरमाते हैं के में ने, अपने पीरे कामिल “शैख़ अबू बक्र बिन हवारा रदियल्लाहु अन्हु” से सुना के इराक के “औताद” आठ 8, हैं: (1) हज़रत शैख़ मारूफ करखी (2) हज़रत सय्यदना इमाम अहमद बिन हम्बल, (3) हज़रत शैख़ बिशर हाफी, (4) हज़रत मंसूर बिन अम्मार, (5) सय्यदुत ताइफ़ा जुनैदे बगदादी, (6) हज़रत शैख़ सिरि सकती, (7) हज़रत सय्यदना शैख़ सोहिल बिन अब्दुल्लाह बिन तुस्तरी, (8) सुल्तानुल औलिया इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ।

हज़रते इमाम हसन अस्करी रदियल्लाहु अन्हु

शैख़ अबू मुहम्मद बताही का बयान है के हज़रते इमाम हसन अस्करी रदियल्लाहु अन्हु ने बा वक़्ते विसाल अपना “जुब्बा मुबारक” हज़रत सय्यद शैख़ मारूफ करखी रदियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द कर के, वसीयत की ये अमानत इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु तक पंहुचा देना के मेरे बाद आखरी पांचवीं सदी में एक बुज़रुग होंगें, हज़रत सय्यद शैख़ मारूफ करखी रदियल्लाहु अन्हु ने ये जुब्बा सय्यदुत ताइफ़ा जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु अन्हु तक पहुंचाया, उन्होंने “शैख़ नूरी” को सुपुर्द किया इसी तरह ये मुक़द्दस अमानत मुन्तक़िल होते होते एक आरिफ़े बिल्लाह के ज़रिए माहे शव्वाल 457, हिजरी में इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु तक पहुंच गई,

हज़रत हसन बसरी रदियल्लाहु अन्हु

मुहम्मद बिन अहमद सईद जरीउज़ ज़न्जानी कुद्दीसा सिररुहू, ने अपनी किताब “रौज़तुन नवाज़िर व नुज़हतुल ख्वातिर” के आठवे बाब में इन मशाइख़ीन का जिन्हों ने इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के कुतबीयत, मर्तबे की शहादत देने का तज़किराह फरमाते हुए रकम तराज़ हैं, आप से पहले “औलियाए रहमान” में से कोई भी हज़रत का मुनकिर न था, बल्के उन्होंने आप की आमद आमद की बशारत दी, हज़रत हसन बसरी रदियल्लाहु अन्हु ने अपने ज़माने मुबारक से ले कर इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के ज़मानाए मुबाक तक बिल्वज़ाहत, आगाह फरमा दिया है के जितने भी औलिया अल्लाह गुज़रे हैं सब ने, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की खबर दी ।

शैख़ अबू अहमद अब्दुल्लाह अल जूनी कुद्दीसा सिररुहू

शैख़ अबू अहमद अब्दुल्लाह अल जूनी अल मुलक्कब बिल हक्की कुद्दीसा सिररुहू ने 468, हिजरी में कोहे हर्द, में अपनी खल्वत में इरशाद फ़रमाया के अनक़रीब बिलादे अजम में एक लड़का पैदा होगा जिस की करामात और खवारिक की वजह से बहुत शोहरत होगी, उस को तमाम औलियाए रहमान, के नज़दीक मकबूलियत ताम्मा हासिल होगी, उस के वुजूद से अहले ज़माना शरफ हासिल करेंगें और जो उस की ज़ियारत करेगा नफ़ा उठाएगा,

हज़रत शैख़ अबू बक्र बिन हवारा रदियल्लाहु अन्हु

एक रोज़ इन्हों ने अपने मुरीदों से फ़रमाया के अनक़रीब ईराक, में एक अजमी शख्स जो अल्लाह पाक और लोगों के नज़दीक आली मर्तबा होगा, उस का नाम “अब्दुल क़ादिर” होगा और बग़दाद शरीफ, में सुकूनत इख्तियार करेगा, और ये ऐलान करेगा, के “मेरा ये कदम तमाम औलिया की गर्दनो पर है” और ज़माने के तमाम औलियाए किराम उस के फरमा बरदार होंगें ।

हज़रत शैख़ मुस्लिमा बिन नेमतुस सेरोजी कुद्दीसा सिररुहू

से किसी ने पूछा के इस वक़्त “क़ुत्बे वक़्त” कौन है? तो आप ने इरशाद फ़रमाया, क़ुत्बे वक़्त मक्का शरीफ में हैं, और भी वो लोगों पर मख़फ़ी पोशीदह हैं, उन्हें सालिहीन के सिवा दूसरा कोई नहीं पहचानता, नीज़ ईराक की तरफ इशारह कर के फ़रमाया के अनक़रीब एक अजमी शख्स जिन का नाम इस्मे गिरामी “अब्दुल क़ादिर” होगा, जिन से करामात और खवारिक आदात बा कसरत ज़ाहिर होंगें, और यही वो गैस और कुतब, होंगें जो मजमे में ऐलान करेंगे “मेरा ये कदम हर वली के गर्दन पर है” और अपने इस कौल में हक बा जानिब होंगें, तमाम औलिया, वक़्त आप के कदम के नीचे होंगें, अल्लाह पाक उन की बा बरकत और उन की करामात की तस्दीक कर ने की वजह से लोगों को नफ़ा पहुंचाएगा ।

हज़रत शैख़ खलील बल्खी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

आप एक साहिबे कश्फ़ बुज़रुग गुज़रे हैं, एक दिन मजलिस में दर्स दे रहे थे के यकायक इन पर कश्फ़ की हालत तारी हुई, और फ़रमाया के अल्लाह पाक का एक बुर्गज़ीदाह बंदह सर ज़मीने मुल्के इराक में पांचवीं सदी के आखरी में ज़ाहिर होगा, दीने हक को उस के दम से फरोग होगा, और वो अपने वक़्त का “गैस” होगा, खुदा की मखलूक उस की इत्तिबा करेगी, और वो तमाम औलिया, व अक्ताब का सरदार होगा, हज़रत शैख़ खलील बल्खी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु से बहुत साल पहले वफ़ात पाई । (अज़्कारुल अबरार)

हज़रत अबू अब्दुल्लाह अली कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

हज़रत इमाम याकूब हमदानी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से रिवायत है के मेरे “पीरो मुरशिद” ने एक बार मुझे बताया के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की विलादत से कई साल पहले उन्हों ने शैखुल मशाइख “हज़रत अबू अब्दुल्लाह अली कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी” से सुना के ज़मानाए करीब में एक “बुज़रुग” का ज़हूर होगा सर ज़मीने मुल्के ईराक पर जो अल्लाह का ख़ास बंदह होगा, और उस का नाम अब्दुल क़ादिर होगा, अल्लाह पाक ने उसे तमाम औलिया का सरताज बनाया है ।

अपनी विलायत का छोटी उमर में इल्म होना

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु से किसी ने पुछा: आप को कब से मालूम हुआ के आप अल्लाह पाक के “वली” हैं तो आप ने इरशाद फ़रमाया: में बारह 12, साल का था के अपने शहर के मदरसे में पढ़ने के लिए जाया करता था तो में अपने इर्द गिर्द फरिश्तों को चलते देखता था, और जब मदरसे में पहुँचता तो में उन्हें ये कहते हुए सुनता के हट जाओ! अल्लाह के “वली” को बैठने के लिए जगह दो । इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के जब में सगीर सन (कम उमर, छोटी उमर) के आलम में मदरसे को जाया करता था तो रोज़ाना एक फरिश्ता इंसानी शक्ल में मेरे पास आता और मुझे मदरसे ले जाता, खुद भी मेरे पास बैठा रहता, में उस को मुतलक़न ना पहचानता था के ये फरिश्ता है,

एक रोज़ में ने उससे पूछा आप कौन हैं? तो उस ने जवाब दिया में फ़रिश्तो में से एक फरिश्ता हूँ, अल्लाह पाक ने मुझे इसी लिए भेजा है के में मदरसे में आप के साथ रहा करूँ,
इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के एक रोज़ मेरे करीब से एक शख्स गुज़रा जिस को में बिलकुल नहीं जानता था, उस ने जब फरिश्तों को ये कहते सुना के कोशादाह हो जाओ यानि हट जाओ ताके अल्लाह का “वाली” बैठ जाए तो उस ने फरिश्तों में से एक को पूछा ये लड़का किस का है? तो फ़रिश्ते ने जवाब दिया, ये सादात के घराने का लड़का है तो उस ने कहा, अनक़रीब ये बड़ी शान वाला होगा, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के चालीस साल के बाद में ने उन को पहचाना के वो “अब्दाले वक़्त” वक़्त में से था, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के में जब बचपन में कभी बच्चों के साथ खेलने का इरादा करता तो में किसी कहने वाले की आवाज़ को सुनता जो मुझे कहता, मुबारक ऐ खुश बख्त और खुश नसीब तुम मेरे पास आ जाओ, तो में फ़ौरन वालिदा मुहतरमा की गोद में चला जाता,

आप को इल्मे दीन हासिल करने का इशारह

हज़रत शैख़ मुहम्मद काईदुल आवानी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बयान करते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने हम से फ़रमाया के हज के दिन बचपन में मुझे एक मर्तबा जंगल की तरफ जाने का इत्तिफाक हुआ, और एक बैल के पीछे पीछे चल रहा था, के उस बैल ने मेरी तरफ देख कर कहा ऐ अब्दुल कादिर! तुम को इस तरह के कामो के लिए तो पैदा नहीं किया गया, में घबरा कर घर लोटा, और अपने घर की छत पर चढ़ गया, तो में ने अरफ़ात के मैदान में लोगों को खड़े हुए देखा, इस के बाद में ने अपनी वालिदा माजिदा की खिदमते अक़दस में हाज़िर हो कर अर्ज़ किया, आप मुझे अल्लाह पाक की राह में वक़्फ़ कर दें, और मुझे बग़दाद जाने की इजाज़त दे दीजिए के में वहां जा कर इल्मे दीन हासिल करूँ और सलिहीन की ज़ियारत करूँ, आप ने मुझ से इस की वजह पूछी, में ने बेल वाला वाक़िआ अर्ज़ किया, तो आप की मुबारक आँखों में आंसू आ गए और वो अस्सी 80, दीनार जो मेरे वालिद माजिद की वरासत थे, मेरे पास ले आईं तो में ने उन से चालीस दीनार ले लिए, और चालीस दीनार अपने भाई सय्यद अबू अहमद रहमतुल्लाह अलैह के लिए छोड़ दिए, आप ने मेरे चालीस दीनार मेरी गुदड़ी में सी दिए और मुझे बग़दाद जाने की इजाज़त अता फ़रमादी, आप ने मुझे हर हाल में रास्त गोई और सचाई को अपनाने की ताकीद फ़रमाई, ऐ मेरे फ़रज़न्दे अर्जमन्द! में तुझे महिज़ अल्लाह पाक की रज़ा और खुश नूदी की खातिर अपने पास से जुदा करती हूँ और अब मुझे तुम्हारा मुँह कयामत को ही देखना नसीब होगा ।

बग़दाद में तशरीफ़ लाना

आरिफ़े बिल्लाह हज़रत अल्लामा नूरुद्दीन अबुल हसन अली बिन युसूफ शतनूफी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अपनी तस्नीफ़े लतीफ़ “बहजतुल असरार शरीफ” में तहरीर फरमाते हैं के जब इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने अपने कुदूमे मेमनत लुज़ूम से बग़दाद शरीफ को शरफ़ बख्शा तो बग़दाद की सआदत मंदी के जुमला आसार नुमाया हो गए, बड़ी खुश किस्मती की बात है के उन का मुबारक कदम पहुंचते ही रहमत के बादल छा गए बाराने रहमत के बदल निसार होने लगे जिस से इस सर ज़मीन में रुश्दो हिदायत की रौशनी में दुगना डबल इज़ाफ़ा हो गया और घर घर उजाला हो गया ।

आप का इल्मे दीन हासिल करना

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने जब देखा के इल्मे दीन हासिल करना हर एक मुसलमान पर सिर्फ ज़रूरी ही नही बल्के नफ़्स व रूहानी, बिमारियों के लिए शिफ़ाए कुल्ली है, इल्मे दीन परहेज़गारी का एक सीधा रास्ता है, और इस की हुज्जत और वाज़ेह दलील है नीज़ बहुत बड़ा दर्जा है,
इल्मे दीन यकीन के तमाम तरीकों में सब से आला और बेहतर है, नेक लोगों का मायाए फखरे नाज़ और सनद है, तो आप ने उस के हुसूल के लिए बड़ी जिद्दो जाहिद की, और दूर नज़दीक के उल्माए किराम, व मशाइख़ीन, फुकहा, उलमा, फुज़्ला, से बड़ी कोशिश से हासिल किया ।

आप के असातिज़ाए किराम

क़ुरआन शरीफ तो आप ने पहले ही पढ़ लिया था, इस के बाद आप ने इल्मे फ़िक़्ह, इल्मे हदीस, इल्मे तफ़्सीर, इल्मे किरात, इल्मे कलाम, इल्मे लुग़त, इल्मे नोह, इल्मे मुनाज़राह, अरसए दराज़ तक जय्यद फुकहा मसलन, अबुल वफ़ा अली बिन अकील हंबली, अबुल खत्ताब महफूज़ अल कूज़ाफ़ी हम्बली, अबुल हसन मुहम्मद बिन क़ाज़ी अबू याला, मुहम्मद बिन अल हुसैन बिन मुहम्मद अल फराउल हम्बली, और क़ाज़ी अबू सईद से हासिल किया, इल्मे हदीस शरीफ: इल्मे हदीस में अकाबिर मुहद्दिसीन शैख़ अबू ग़ालिब मुहम्मद बिन हसन अल बाकलानी, शैख़ अबुल खत्ताब महफूज़ अल कूज़ाती हम्बली, शैख़ अबू सईद मुहम्मद बिन अब्दुल करीम बिन हशीशा, शैख़ अबुल गनाइम मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन अली बिन मैमून अल फ़रसी, शैख़ अबू बक्र अहमद बिन मुज़फ्फर, शैख़ अबू जाफर बिन अहमद बिन हुसैन कारी अल सिराज, शैख़ अबुल कासिम अली बिन अहमद बिन बिनान करख़ी, अबू तालिब अब्दुल क़ादिर बिन मुहम्मद बिन युसूफ, अब्दुर रहमान बिन अहमद, अबुल बरकात हीबतुल्लाह इब्ने मुबारक, शैख़ अबू नस्र मुहम्मद, अबू ग़ालिब अहमद, अबू अब्दुल्लाह याह्या, अबुल हसन बिन मुबारक तीयूरी, अबू मंसूर अब्दुर रहमान कज़ाक, अबुल बरकात तलहतुल आकूली, रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन वगैरा से हासिल फ़रमाया, इल्मे अदब: आप ने अबू ज़करिया याह्या बिन अली तबरेज़ी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से हासिल फ़रमाया, इल्मे तसव्वुफ़: आप ने हज़रत शैख़ अबू याकूब युसूफ बिन अय्यूब हमदानी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से हासिल फ़रमाया ।

बैअतो खिलाफत

आप ने खिरका शरीफ अपने पीरो मुरशिद “हज़रत सय्यदना शैख़ क़ाज़ी अबू सईद मुबारक मख़ज़ूमी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी” से पहना और इन होने हज़रत शैख़ अबुल हाशिम अली बिन अहमद कुरैशी, से इन्हों ने हज़रत शैख़ अबुल फराह तरतूसी, से और इन होने हज़रत शैख़ अबुल फ़ज़्ल अब्दुल वाहिद तमीमी से और इन होने हज़रत शैख़ अबू बक्र शिब्ली, से और इन होने हज़रत शैख़ अबुल कासिम जुनैदी बगदादी, से और इन होने हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति, से और इन होने हज़रत शैख़ मारूफ करखी, से और इन होने हज़रत शैख़ दाऊद ताई, से और इन होने हज़रत शैख़ सय्यद हबीब अजमी, से और इन होने हज़रत शैख़ हसन बसरी, से और इन होने हज़रत अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम, से और आप ने सरवरे काइनात फखरे मौजूदात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहना ।

आप के फ़ज़ाइलो कमालात

मक़बूले बारगाहे इलाही, शेरे बुस्तान, मूरिदे ला मुतनाही, मरदे मैदां, जमाले ख़ुर्शीदे अफलाके करामत, गोहरे दरियाए विलायत, गुले सर सबद गुलशने शरीअत, बहरे बे ख़ज़ाँ, गुलिस्ताने तरीकत, मेवाह अश्जारे बुस्ताने मारफअत, हकीकत अफ्ज़ले अतकियाए किराम, अस्लेह औलियाए किराम, फैज़ बख़्शिश ज़माना, मुर्शिदे यगाना, हादीऐ रोज़गार, मज़हरे परवरदिगार, मुक़्तदाए अरबाबे हिदायत, पेशवाए अस्हाबे इस्तिक़ामत, सय्यद सहियुंन नसब, रोनके बज़्मे सब्रो तहम्मुल, नूर दीदाए शहीदे कर्बला, क़ुत्बुल अक्ताब, फरदुल अहबाब, हज़रत अबू मुहम्मद सय्यद मुहीयुद्दीन, महबूबे सुब्हानी शैख़ “अब्दुल क़ादिर जिलानी गौसे आज़म कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी” आप सिलसिलए क़दीरिया रज़विया के सत्तरवें 17, वे इमाम व शैख़े तरीकत हैं, आप के फ़ज़ाइल का इहाता ताकते बशरी से बाला तर है,
हज़रत अबू ज़करिया कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से मन्क़ूल है के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया: एक रात में ने ख्वाब में देखा के हुज़ूर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक तख़्त मुरस्सा पर जलवा गर हो कर तशरीफ़ लाए और मुझे निहायत उल्फत व मुहब्बत से अपने पास बिठाया और मेरी पेशानी पर बोसा दिया और अपने जिसमे अनवर से पैरहन मुबारक मुझ को पहनाया।

आप का इल्मी मकाम

इमामे रब्बानी हज़रत शैख़ अब्दुल वहाब शारानी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी और अल्लामा मुहम्मद बिन याह्या हल्बी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी तहरीर फरमाते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु “तेरह 13, इल्मो” में तकरीर इरशाद फ़रमाया करते थे, (तब्कातुल कुबरा जिल्द अव्वल) हज़रत शैख़ अब्दुल वहाब शारानी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के मदरसा आलिया में लोग आप से इल्मे तफ़्सीर, इल्मे हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, और इल्मे कलाम पढ़ते थे, दोपहर से पहले और बाद दोनों वक़्त तफ़्सीर, हदीस, फ़िक़्ह, कलाम, उसूल, और इल्मे नोह् लोगों को पढ़ाते थे, और ज़ोहर के बाद किरात के साथ कुरआन शरीफ पढ़ाते थे,

हज़रत अबू मुहम्मद अल खिशाब नोहवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

बयान करते हैं के में ऐन आलमे शबाब में इल्मे नोह् पढ़ता था, उस वक़्त अक्सर लोगों से आप के औसाफ़ सुनने में आते के आप निहायत फसाहत और बलाग़त से वाइज़ फरमाते हैं, इस लिए में आप के वाइज़ सुनने का शाइक (चाहने वाला तमन्ना करने वाला) था, मगर अदीमुल फुरसति हाइल होती रही, चुनांचे एक दफा लोगों के साथ आप की मजलिसे वाइज़ में हाज़िर हुआ, आप ने मेरी तरफ इल्तिफ़ात कर के फ़रमाया के तुम मेरे पास रहो, तो हम तुम्हें सीबोईया बना देंगें, में ने रज़ा मंदी का इज़हार किया, और उसी वक़्त से ही आप की खिदमते आलिया में हाज़िर रहना शुरू कर दिया, और कम वक़्त में ही मुझे आप की बारगाहे आलिया से वो कुछ हासिल हुआ जो के में इस उमर तक हासिल ना कर सका था, मसाइले नोहविया, उलूमे अकलिया, व नकलिया, जो के मुझे अब तक मालूम ना हुए थे अच्छी तरह ज़हन नशीन हो गए ।

आप के इल्म का इम्तिहान लेने के लिए सौ फुक़्हा का आना

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के इल्मों इरफ़ान की शोहरत जब दूर दराज़ के मुल्कों और शहरों में हुई, तो अजल्ला फुकहा (जलीलुल क़द्र, शान वाला) में से एक सौ फुकहाए किराम आप के इल्म का इम्तिहान लेने की गरज़ से हाज़िर हुए, और इन फुकहाए किराम में से हर एक फकीह बहुत से पेचीदह मसाइल ले कर हाज़िर हुआ, जब वो सब फकीह बैठ गए तो आप ने अपनी गर्दन मुबारक झुकाली और आप के सीने मुबारक से नूर की एक किरन ज़ाहिर हुई जो इन सब फुकहा के सीनो पर पड़ी, जिसे से इन के दिल में जो सवालात थे वो सब सल्ब हो गए, वो सख्त परेशान और मुज़्तरिब हुए, सब ने मिलकर ज़ोर से चीख मारी और अपने कपड़े फाड़ डाले, अपनी पगड़ियां फेंक दीं, उस के बाद आप कुर्सी पर जलवा अफ़रोज़ हुए, और इन के सवालात (जो अपने दिलों में लेकर हाज़िर हुए थे) के जवाबात इरशाद फरमाए जिस पर सब फुकहाए किराम ने आप के इल्मों फ़ज़्ल का ऐतिराफ़ किया । (जामे करामाते औलिया जिल्द 1, तब्कातुल कुबरा जिल्द 1,)

रेफरेन्स हवाला
  • बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार,
  • तबक़ातुल कुबरा जिल्द 1, शआरानी,
  • कलाईदुल जवाहिर,
  • हयाते गौसुलवरा,
  • सीरते गौसे आज़म,
  • ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
  • अख़बारूल अखियार फ़ारसी व उर्दू,
  • मसालिकुस्सलिकीन जिल्द अव्वल,
  • अवारिफुल मआरिफ़,
  • तज़किराए मशाइखे इज़ाम जिल्द अव्वल,
  • सैरुल अखियार महफिले औलिया,
  • हक़ीकते गुलज़ारे साबरी,
  • जामे करामाते औलिया जिल्द 1,
  • अल्लाह के मशहूर वली,
  • तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
  • सीरते गौसुस सक़लैन,
  • सफीनतुल औलिया,
  • नफ़्हातुल उन्स,
  • गौसे पाक के हालात,

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