हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-2)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-2)

आप के उम्मी लक़ब होने की वजह

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का लक़ब “उम्मी” है इस लफ्ज़ के दो माने हैं या तो ये “उम्मुल क़ुरा” की तरफ निस्बत है। “उम्मुल क़ुरा” मक्का शरीफ का लक़ब है।  लिहाज़ा “उम्मी” के माना मक्का शरीफ के रहने वाले या “उम्मी” के ये माना हैं के आप ने दुनिया में किसी इंसान से लिखना पढ़ना नहीं सीखा। ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बहुत ही अज़ीमुश्शान मोजिज़ा है के दुनिया में किसी ने भी आप को नहीं पढ़ाया लिखाया। मगर अल्लाह पाक ने आप को इस क़द्र इल्म आता फ़रमाया के आप का सीना अव्वालीन व आखिरीन के उलूमो मआरिफ़ का ख़ज़ीना बन गया। और आप पर ऐसी किताब नाज़िल हुई जिस की शान “तिबयानन लिकुल्ली शयी इन” (हर हर चीज़ का रोशन बयान) “आरिफ़े बिल्लाह अल्लामा नूरुद्दीन उर्फ़ अब्दुर रहमान जामी” रहमतुल्लाह अलैह ने क्या खूब फ़रमाया है के: मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम न कभी मकतब में गए। न लिखना सीखा मगर आपने चश्मों अबरू के इशारे से सैंकड़ों मदरसों को सबक़ पढ़ा दिया।  ज़ाहिर है जिसका उस्ताद और तालीम देने वाला ख़ालिक़े आलम अल्लाह पाक हो भला उसको किसी और उस्ताद से तअलीम हासिल करने की किया ज़रूरत होगी? सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे अज़ाम इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरेलवी रहीमा हुल्लाह फरमाते हैं।

ऐसा उम्मी किस लिए मिन्नत काश उस्ताज़ हो 

 कया किफ़ालत उस को इक़रा रब्बुकल अकरम नहीं 

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उम्मी लक़ब होने का हक़ीक़ी राज़ किया है?

इस को तो अल्लाह पाक के सिवा कौन बता सकता है? लेकिन इस में चंद हिकमते और फायदे मालूम होते है। पहली हिकमत: ये के तमाम दुनिया को इल्मों हिकमत सिखाने वाले हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हों और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का उस्ताद सिर्फ अल्लाह पाक ही हो। कोई इंसान आप का उस्ताद न हो ताके कभी कोई ये न कहे सके के पैगम्बर तो मेरा पढ़ाया हुआ शागिर्द है। दूसरी हिकमत: ये के कोई शख्स कभी ये ख्याल न कर सके के फुलां आदमी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का उस्ताद था तो शायद वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ज़्यादा इल्म वाला होग। तीसरी हिकमत: ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे में कोई ये वहम भी न कर सके के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चूँकि पढ़े लिखे आदमी थे इस लिए उन्हों ने खुद ही क़ुरआन की आयतों को अपनी तरफ से बना कर पेश किया है और क़ुरआन उन्ही का बनाया हुआ कलाम है। चौथी हिकमत: जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पूरी दुनिया को किताबो हिकमत की तआलिम दें तो कोई ये न कह सके के पहली और पुरानी किताबों को देख देख कर इस क़िस्म की अनमोल और इन्क़िलाब आफरीन तअलीमात दुनिया के सामने पेश कर रहे हैं। पांचवी हिकमत: अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कोई उस्ताद होता तो आप को उस की तअज़ीम करनी पढ़ती, हांलांके हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह पाक ने इस लिए पैदा फ़रमाया था के सारा आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तअज़ीम करे, इस लिए अल्लाह पाक ने इस को गवारा नहीं फ़रमाया के मेरा महबूब किसी का शागिर्द बने और कोई उसका उस्ताद बने, (वल्लाहु तआला आलम)

काअबा शरीफ की तामीर कितनी बार हुई?

हज़रत अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती रहमतुल्लाह अलैह ने तारीख़े मक्का में तहरीर फ़रमाया है कि खाना ए काबा दस बार तामीर किया गया।

  1. सबसे पहले फरिश्तों ने ठीक बैतुल मअ्मूर’ के सामने ज़मीन पर खाना-ए-काबा को बनाया।
  2. फिर हज़रते आदम अलैहिस्सलाम’ ने इस की तामीर फ़रमाई।
  3. इस के बाद हज़रते आदम अलैहिस्सलाम’ के फ़रज़न्दों ने इस इमारत को बनाया।
  4. इस के बाद हज़रते इब्राहीम ख़लीलुल्लाह’ और उनके फ़रज़न्दे अरजमंद इस्माईल अलैहिस्सलाम’ ने इस मुक़द्दस घर को तामीर किया, जिसका तज़्किरा क़ुरआन में है।
  5. क़ौमे अ़मालक़ा की इमारत।
  6. इस के बाद क़बीला-ए-जुरहम ने इस की इमारत बनाई।
  7. कुरैश के मुरिसे आला कुसय्यी बिन किलाब की तामीर।
  8. कुरैश की तामीर जिस में खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी शिरकत फ़रमाई कुरैश के साथ खुद भी अपने कंधे मुबारक पर पत्थर उठा-उठा कर लाते रहे।
  9. हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर रदियल्लाहु अन्हु ने अपने दौरे खिलाफ़त में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बनाये हुए नक्शे के मुताबिक तामीर कियायानी हतीम की ज़मीन को काबा में दाख़िल कर दिया और दरवाज़ा सतहे ज़मीन के बराबर नीचे रखा, एक दरवाज़ा पूरब की जानिब और एक दरवाज़ा पश्चिम की जानिब बना दिया।
  10. अब्दुल-मलिक बिन मरवान उमवी के ज़ालिम गवर्नर हज्जाज बिन युसूफ सकफ़ी ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन 

ज़ुबैर रदियल्लाहु अन्हु को शहीद कर दिया ओर उनके बनाए हुए काबा को ढहा दिय फिर ज़माना-ए-जाहिलिय्यत के नक्शे के मुताबिक काबा बना दिया जो आज तक मौजूद है लेकिन हज़रत अल्लामा हलवी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी सीरत में लिखा है कि नए सिरे से काबा की तामीरे 

  • हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम’ की तामीर।
  • ज़माना-ए-जाहिलिय्यत में कुरैश की इमारत और इन दोनों तामीरों में दो हज़ार सात सौ पैंतीस बरस की दूरी है।
  • हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रदियल्लाहु अन्हु की तामीर जो कुरैश की तामीर के बयासी साल बाद हुई।फरिश्ते और हज़रते आदम अलैहिस्सलाम’ और उनके बेटों की तामीरात के बारे में अल्लामा हलबी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया कि यह सही रिवायतों से साबित नहीं है।बाकी तामीरों के बारे में उन्होंने लिखा है कि यह इमारत में मामूली तरमीम या टूट-फूट की मरम्मत थी! नई तामीर नहीं थी। वल्लाहु तआला आलम।  

  “ऐलाने नुबूवत के बाद”

गारे हिरा किया है?

मक्का शरीफ से तक़रीबन तीन मील की दूरी पर “जबले हिरा” नामी पहाड़ के ऊपर एक गार (कोठरी खोह) है। जिस को “गारे हिरा” कहते हैं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अक्सर कई कई दिनों का खाना पानी साथ लेकर इस गार के पुर सुकून माहौल के अंदर खुदा की इबादत में मसरूफ रहा करते थे। जब खाना पानी ख़त्म हो जाता तो कभी खुद घर पर आ कर ले जाते और कभी हज़रत बीबी खदीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा खाना पानी गार में पंहुचा दिया करती थी। आज भी ये नूरानी गार अपनी असली हालत में मौजूद और ज़्यारत गाहे खलाइक़ है।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर “पहली वही” की शुरुआत

एक दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम “गारे हिरा” के अंदर इबादत में मशगूल थे के बिलकुल अचानक गार में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास एक फरिश्ता ज़ाहिर हुआ।  (ये हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम थे जो हमेशा अल्लाह पाक का पैगाम उसके रसूलों अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम तक पहुंचाते रहे) फ़रिश्ते ने एक दम कहा के “पढ़िए” हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा में पढ़ने वाला नहीं हूँ। फ़रिश्ते ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पकड़ा और निहायत गर्म जोशी के साथ आप से ज़ोरदार मुआनका किया फिर छोड़ कर कहा के “पढ़िए” आप ने फिर फ़रमाया के “में पढ़ने वाला नहीं हूँ” फ़रिश्ते ने दूसरी बार फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आपने सीने से चिमटा लिया और छोड़ कर कहा के “पढ़िए” आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर वही फ़रमाया के में पढ़ने वाला नहीं हूँ। तीसरी बार फिर फ़रिश्ते ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत ज़ोर से अपने सीने से लगा कर छोड़ा और कहा के: “इक़रा बिस्मी रबी कल लज़ी ख़लक़” तर्जुमा कंज़ुल इमान: पढ़ो आपने रब के नाम से जिस ने पैदा किया आदमी को खून की फटक से बनाया पढ़ो और तुम्हारा रब ही सब से बड़ा करीम जिस ने क़लम से लिखना सिखाया आदमी को सिखाया जो न जनता था। (पारा तीस सूरह अलक) यही सब से पहली वही थी जो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल हुई। 

इन आयतों को याद कर के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने घर तशरीफ़ लाए। मगर इस वाक़िए से जो बिलकुल नागहानी तौर पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पेश आया इस से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़ल्ब मुबारक पर लरज़ाह तारी था आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने घर वालों से फ़रमाया के मुझे कमली उड़ाओ, मुझे कमली उड़ाओ जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खौफ दूर हुआ कुछ सुकून हुआ तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत बीबी खदीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा से गार में पेश आने वाला वाक़िआ बयान किया और फ़रमाया के मुझे अपनी जान का डर है ये सुन कर हज़रत बीबी खदीजा  रदियल्लाहु तआला अन्हा ने कहा के नहीं, हरगिज़ नहीं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जान को कोई खतरा नहीं है।  खुदा की क़सम अल्लाह पाक कभी भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को रुस्वा नहीं करे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तो रिश्तेदारों के साथ बेहतरीन सुलूक करते हैं। दूसरों का बार खुद उठाते हैं खुद कमा कमा कर मुफ़लिसों और मुहताजों को अता फरमाते हैं। मुसाफिरों की मेहमान नवाज़ी करते हैं और हक़ व इन्साफ की खातिर सब की मुसीबतों और मुश्किलात में काम आते हैं। इस के बाद हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने चचा “वरक़ा बिन नोफ़िल” के पास ले गईं। वरक़ा बिन नोफ़िल उन लोगों में से थे जो “मवाहिद” थे और अहले मक्का के शिरको बुत परस्ती से बेज़ार हो कर “नसरानी” हो गए थे और इंजील का इब्रानी ज़बान से अरबी में तर्जुमा किया करते थे। बहुत बूढ़े और नबीना हो चुके थे। हज़रत बीबी खदीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा ने उन से कहा के भाई जान! आप अपने भतीजे की बात सुनिए। वरक़ा बिन नोफ़िल ने कहा बताइए। आपने क्या देखा है? हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गारे हिरा का पूरा वाक़िआ बयान फ़रमाया। ये सुन कर वरक़ा बिन नोफ़िल ने कहा के ये तो वही फरिश्ता है जिस को अल्लाह पाक ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास भेजा था। फिर वरक़ा बिन नोफ़िल कहने लगे के काश! में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऐलाने नुबूवत के ज़माने में तंदरुस्त जवान होता। काश में उस वक़्त तक ज़िंदा रहता जब आप की कौम आप को मक्का शरीफ से बाहर निकालेगी। ये सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तअज्जुब से फ़रमाया के क्या मक्का वाले मुझे मक्का से निकाल देंगे तो वरक़ा ने कहा जी हा! जो शख्स भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरह नुबूवत ले कर आया लोग उस के साथ दुश्मनी पर कमर बस्ता हो गए। उस के बाद कुछ दिनों तक वही उतर ने का सिलसिला बंद हो गया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वही के इन्तिज़ार में मुज़्तरिब और बेक़रार रहने लगे।

यहाँ तक के एक दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कहीं घर से बाहर तशरीफ़ ले जा रहे थे के किसी ने “या मुहम्मद” सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कह कर पुकारा। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आसमान की तरफ सर उठा कर देखा तो ये नज़र आया के वही फरिश्ता (हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम) जो गारे हिरा में आया था आसमानो ज़मीन के दरमियान एक कुर्सी पर बैठा हुआ है ये मंज़र देख कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़ल्ब मुबारक में एक खौफ की कैफियत पैदा हो गई और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम माकन पर आ कर लेट गए और घर वालों से फ़रमाया के मुझे कम्बल उड़ाओ। मुझे कम्बल उड़ाओ। चुनाचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कम्बल ओढ़ कर लेटे हुए थे के नागहा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर सूरह “मुदस्सिर” की इब्तिदाई आयात नाज़िल हुईं और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फरमान नाज़िल हुआ के: तर्जुमा कंज़ुल ईमान ऐ बाला पोश ओढ़ने वाले खड़े हो जाओ फिर डर सुनाओ और आपने रब ही की बड़ाई बोलो और अपने कपड़े पाक रखो और बुतों से दूर रहो। (पारा 29, सूरह मुदस्सिर) इन आयात के नुज़ूल के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने दअवते इस्लाम के मनसब पर मामूर फ़रमा दिया और आप अल्लाह पाक के हुक्म के मुताबिक दावते हक़ और तबलीग़े इस्लाम के लिए कमर बस्ता हो गए।   

   “दावते इस्लाम के लिए तीन दौर”

“पहला दौर” हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर सब से पहले कौन कौन ईमान लाया?

तीन साल तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इंतिहाई पोशीदा तौर पर निहायत राज़दारी के साथ तबलीग़े इस्लाम का फ़र्ज़ अदा फरमाते है और इस दरमियान में औरतों में सब से पहले हज़रत खदीजा रदियल्लाहु अन्हा और आज़ाद मर्दों में सब से पहले हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु और लड़कों में सब से पहले हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु और गुलामो में सब से पहले ज़ैद बिन हारसा रदियल्लाहु अन्हु ईमान लाए। फिर हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की दावते तब्लीग से हज़रत उस्मान, हज़रत ज़ुबेर बिन अवाम, हज़रत अब्दुर रहमान बिन ओफ, हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास, हज़रत तल्हा बिन उबैदुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हुम भी जल्द ही दामने इस्लाम में आ गए, फिर चंद दिनों के बाद। हज़रत अबू उबैदा बिन जर्राह, हज़रत अबू सलमा अब्दुल्लाह बिन अब्दुल असद, हज़रत अरक़म बिन अबू अरक़म, हज़रत उस्मान बिन मज़ऊन,और उन के दोनों भाई हज़रत कुदामा और हज़रत अब्दुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हुम भी इस्लाम में दाखिल हो गए। फिर कुछ मुद्दत के बाद हज़रत अबू ज़र गिफारी व हज़रत सुहैब रूमी, हज़रत अब्दुल्लाह बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब, सईद बिन ज़ैद अमर बिन नफील और उन की बीवी फात्मा बिन्ते खत्ताब हज़रत उमर की बहन रदियल्लाहु तआला अन्हुम भी इस्लाम क़बूल कर लिया। और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की चची जान हज़रत उम्मुल फ़ज़्ल हज़रत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब की बीवी और हज़रत अस्मा बिन्ते अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हुम भी मुसलमान हो गईं इन के अलावा दूसरे बहुत से मर्दों और औरतों ने भी इस्लाम लाने का शरफ़ हासिल कर लिया।   

दूसरा दौर :- तीन साल की इस पोशीदा (छुपना छुपाना) दावते इस्लाम में मुसलमानो की एक जमाअत तय्यार हो गई उस के बाद अल्लाह पाक ने अपने हबीब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर पारा उन्नीस “सूरह शोआरा” की आयत नाज़िल की तर्जुमा कंज़ुल ईमान: “और ऐ महबूब क़रीब तर रिश्तेदारों को डराओ” तो एक दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कोहे सफ़ा की चोटि पर चढ़ कर “या माशर क़ुरैश” कह कर क़बिलए क़ुरैश को पुकारा। जब सब क़ुरैश जमा हो गए तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के ऐ मेरी कोम: अगर में तुम लोगों से ये कह दूँ के इस पहाड़ के पीछे एक लश्कर छुपा हुआ है जो तुम पर हमला करने वाला है तो क्या तुम लोग मेरी बात का यक़ीन कर लोगे? तो सब ने एक ज़बान हो कर कहा के हाँ: हाँ: हम यक़ीनन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बात का यक़ीन कर लोगे कियुँकि हमने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हमेशा सच्चा और “अमीन” ही पाया आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के अच्छा तो फिर में ये कहता हूँ के में तुम लोगों को अज़ाबे इलाही से डरा रहा हूँ और अगर तुम लोग ईमान न लाओगे तो तुम पर अज़ाबे इलाही उतर पड़ेगा। ये सुन कर तमाम क़ुरैश जिन में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चचा अबू लहब भी था। सख्त नाराज़ हो कर सब के सब चले गए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में औल फ़ोल बकने लगे।  (बुखारी शरीफ जिल्द 2, व आम्मा तफ़ासीर)

तीरसा दौर :- अब वो वक़्त आ गया के ऐलाने नुबूवत के चौथे साल “सूरह हजर” की आयत “फस्दा बिमा तुमरू” नाज़िल फ़रमाई और अल्लाह पाक ने ये हुक्म फ़रमाया के ऐ महबूब! आप को जो हुक्म दिया गया है उस को अलल ऐलान यानि खुल्लम खुल्ला बयान फरमाइए। चुनाचे उसके बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऐलानिया तौर पर दीने इस्लाम की तब्लीग फरमाने लगे। और शिर्क व बुत परस्ती की खुल्लम खुल्ला बुराई बयान फरमाने लगे। और तमाम क़ुरैश बल्कि तमाम अहले मक्का बल्कि पूरा अरब आप की मुखालिफत पर कमर बस्ता हो गया। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मुसलमानो की इज़ारसानियों का एक तवील (लम्बा) सिलसिला शुरू हो गया।

हुज़ूर रह्मते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कुफ्फारे मक्का का ज़ुल्मो सितम

कुफ्फारे  मक्का खानदाने बनु हाशिम के इन्तेक़ाम और लड़ाई भड़क उठने के खौफ से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़त्ल  तो नहीं कर सके लेकिन तरह तरह की तकलीफों और मुसीबतों से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ज़ुल्मो सितम का पहाड़ तोड़ने लगे। चुनाचे सब से पहले तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के काहिन, साहिर, मजनून, होने का हर कूचे बाज़ार का पिरोपैगंडा करने लगे।  आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पीछे शरीर लड़कों का गोल लगा दिया जो रास्तों में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर फभतियाँ कस्ते, गलियां देते और ये दीवाना है दीवाना, का शोर मचा मचा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऊपर पत्थर फेंकते।  कभी कुफ्फारे मक्का आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रास्तों में कांटे बिछाते। कभी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिस्म मुबारक पर निजासत डाल देते कभी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को धक्का देते। कभी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुक़द्दस और नाज़ुक गर्दन में चादर का फंदा डाल कर गला घोंटने की कोशिश करते। 

नमाज़ में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गर्दन में चादर का फंदा डालना

रिवायत है के एक मर्तबा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हरमे काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे के एक दम संग दिल काफिर उक़्बा बिन अबी मुईत ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गले में चादर का फंदा डाल कर इस ज़ोर से खींचा के आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दम घुटने लगा। चुनांचे ये मंज़र देख कर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु बेकरार हो कर दौड़ पड़े और उक़्बा बिन अबी मुईत को धक्का देकर दफा किया और कहा के क्या तुम लोग ऐसे आदमी को क़त्ल करते हो जो ये कहता है के “मेरा रब अल्लाह है” इस धक्कम दुक्का में हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु ने कुफ्फार को मारा भी और कुफ्फार की मार भी खाई। (ज़ुरकानि जिल्द 1, बुखारी जिल्द 1,)

ये दीवाना हो गया है इस की बात न सुनो

कुफ्फारे मक्का आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मोजिज़ात और रोहानी तसीरात व तसर्रुफ़ात को देख कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सब से बड़ा जादू गर कहते। जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़ुरआन शरीफ की तिलाफ़त फरमाते तो ये कुफ्फार क़ुरआन और क़ुरआन लाने वाले जिब्राइल और क़ुरआन नाज़िल फरमाने वाले अल्लाह पाक को गलियां देते थे। और गली कूचों में पहरा बिठा देते के क़ुरआन की आवाज़ किसी के कान में न पड़े और तालियां पीट पीट कर और सीटियां बजा बजा कर इस क़द्र शोरो गुल मचाते की क़ुरआन की आवाज़ किसी को सुनाई नहीं देती थी। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब कहीं किसी आम मजमे में या कुफ्फार के मेलों में क़ुरआन पढ़ कर सुनाते या दावते ईमान का वाइज़ फरमाते तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चचा अबू लहब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पीछे पीछे चिल्ला चिल्ला कर कहता जाता था के ऐ लोगों! “ये मेरा भतीजा झूठा है दीवाना हो गया है” तुम लोग इस की कोई बात न सुनो।  (मआज़ अल्लाह)

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमब पर धूल उड़ाना

एक मर्तबा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम “ज़ुलमिजाज़” के बाज़ार में दावते इस्लाम का वाइज़ फरमाने के लिए तशरीफ़ ले गए और लोगों को कलमए हक़ की दावत दी तो अबू जाहिल आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर धूल उड़ाता जाता था और कहता था के ऐ! लोगों इस के फरेब (धोका) में मत आना ये चाहता है के तुम लोग “लात उज़्ज़ा” की इबादत छोड़ दो।  (मुसनदे इमाम अहमद जिल्द 4,)

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पुश्ते अनवर पे ऊँट की ओझड़ी

इसी तरह एक बार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हरमे काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे ऐन हालते नमाज़ में अबू जाहिल ने कहा के कोई है? जो आले फुलां के ज़िबाह किए हुए ऊँट की ओझड़ी ला कर सजदे की हालत में इन के कन्धों पर रख दे। ये सुन कर उक़्बा बिन अबी मुईत काफिर उठा और इस ओझड़ी को लाकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दोशे मुबारक    (कन्धों) पर रख दी। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सजदे में थे देर तक ओझड़ी कन्धों और गर्दन पे पड़ी रही और कुफ्फार ठठा मार मार कर हँसते रहे और मारे हसीं के एक दूसरे पर गिर गिर पढ़ते रहे आखिर हज़रत बीबी फातिमा रदियल्लाहु अन्हा जो इन दिनों अभी कम सिन छोटी लड़की थीं आयीं और इन काफिरों को बुरा भला कहते हुए इस ओझड़ी को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दोशे मुबारक से हटाया। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़ल्ब मुबरक पर क़ुरैश की इस शरारत से इंतिहाई सदमा गुज़रा और नमाज़ से फारिग हो कर तीन मर्तबा ये दुआ मांगी के ऐ अल्लाह! तू क़ुरैश को अपनी गिरफ्त में पकड़ ले। फिर अबू जहिल, उतबा बिन रबिया, शैबा बिन रबिआ, वलीद बिन उतबा, उम्मय्या बिन खलफ, अम्मारा बिन वलीद का नाम लेकर दुआ मांगी के इलाही! तू इन को अपनी गिरफ्त में ले ले। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के खुदा की कसम! मेने इन सब काफिरों को “जंगे बद्र” के दिन देखा के इन की लाशें पड़ी हुई हैं। फिर इन सब कुफ्फार की लाशों को घसीट कर निहायत ज़िल्लत के साथ बद्र के एक गड्डे में डाल दिया गया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के इन गड्ढे वालों पर खुदा की लाअनत है।  (बुखारी जिल्द 1,)

चंद शरीर कुफ़्फ़ारों के नाम ये हैं

जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुश्मनी और तकलीफ पहुंचाने में बहुत ज़्यादा आगे थे उन में से चंद शरीरों के नाम ये हैं। अबू लहब, अस्वद बिन यग़ूस, हारिस बिन क़ैस बिन अदि, वलीद बिन मुगीरा, उम्मया बिन खलफ, अबी बिन खलफ, अबू केस बिन फाकिहा, आस बिन वाइल, नज़र बिन हारिस, मुम्बा बिन हुज्जाज, ज़हीर बिन अबी उम्मय्या, साइब बिन सैफी, अदि बिन हमरा, अस्वद बिन अब्दुल असद, आस बिन सईद बिन अल आस, आस बिन हाशिम, उक़्बा बिन अबी मुईत, हुक्म बिन अबिल आस, ये सब के सब हुज़ूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पड़ौसी थे और इन मे से अक्सर बहुत ही मालदार और साहिबे इक़्तिदार थे और दिन रात सरवारे काइनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तकलीफ रसानी में मसरूफ रहते थे। (नऊज़ो बिल्लाह में मिंजा लिक) 

हुज़ूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जांनिसार सहाबा पर कुफ्फारे मक्का का ज़ुल्मो सितम

रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ साथ गरीब मुसलमानो पर भी कुफ्फारे मक्का ने ऐसे ऐसे ज़ुल्मो सितम के पहाड़ तोड़े के मक्का की ज़मीन बिलबिला उठी। ये आसमान था के कुफ्फारे मक्का इन मुसलमानो को दम ज़दन (एक बार में ही, बहुत लज्दी) क़त्ल कर डालते मगर इस से इन काफिरों के जोशे इंतिकाम का नशा नहीं उतर सकता था कियुँकि कुफ्फार इस बात में अपनी शान समझते थे के इन मुसलमानो को इतना सताओ के वो इस्लाम को छोड़ कर फिर शिरको बुत परस्ती करने लगें। इस लिए क़त्ल कर देने के बजाए कुफ्फारे मक्का मुसलमानो को तरह तरह की सज़ाओं और तकलीफ पहुंचने के साथ सताते थे। मगर खुदा की क़सम! शराबे तौहीद के इन मस्तों ने अपने इस्तक़लाल व इस्तेक़ामत का वो मंज़र पेश कर दिया के पहाड़ों की चोटियाँ सर उठा उठा कर हैरत के साथ इन इस्लाम के शैदाइयों जज़्बए इस्तिक़ामत का नज़ारा करती रहीं। संग दिल, बे रहिम और दरिंदाह सिफ़त काफिरों ने इन गरीब व बे कस मुसलमानो पर जबरो इकराह और ज़ुल्मो सितम का कोई दक़ीक़ा लम्हा बाक़ी नहीं छोड़ा मगर एक मुस्लमान के भी पाए इस्तिक़ामत में ज़र्रा बराबर तज़लज़ुल नहीं पैदा हुआ और एक मुस्लमान का बच्चा भी इस्लाम से मुँह फेर कर काफिरो मुर्तद नहीं हुआ। 

कुफ्फारे मक्का का सहाबिए रसूल हज़रत खुबाब को सज़ा देना

 हज़रत खुबाब बिनुल अरत रदियल्लाहु अन्हु ये उस ज़माने में इस्लाम लाए जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत अरक़म बिन अबू अरक़म रदियल्लाहु अन्हु के घर में मुक़ीम थे और सिर्फ चंद ही आदमी मुस्लमान हुए थे। क़ुरैश ने इन को बेहद सताया। यहाँ तक के कोयले के अंगारों पर उनको चित लिटा दिया और एक शख्स उनके सीने पर पाऊँ रख कर खड़ा हो गया। यहाँ तक के उनकी पीठ की चर्बी और रतूबत से कोयले बुझ गए। बरसों के बाद हज़रत खुबाब रदियल्लाहु अन्हु ने ये वाक़िआ हज़रत अमीरुल मोमिनीन उम्र रदियल्लाहु अन्हु के सामने बयान किया तो अपनी पीठ खोल कर दिखाई। पूरी पीठ पर सफ़ेद सफ़ेद गाड़ धब्बे पड़े हुए थे इस इबरत नाक मंज़र को देख कर हज़रत अमीरुल मोमिनीन उमर रदियल्लाहु अन्हु का दिल भर आया और वो रो पड़े। (तबक़ात इब्ने सअद जिल्द 3,)

कुफ्फारे मक्का का सहाबिए रसूल हज़रत बिलाल हब्शी रदियल्लाहु अन्हु को सज़ा देना

हज़रत बिलाल रदियल्लाहु अन्हु को जो उम्मय्या बिन अबी ख़लफ़ काफिर के गुलाम थे। उनकी गर्दन में रस्सी बांध कर कूचे और बाज़ार में उनको घसीटा जाता था। उनकी पीठ पर लाठियां बरसाईं जाती थीं और ठीक दोपहर के वक़्त तेज़ धूप में गर्म गर्म रेत पर उनको लिटा कर भरी पथ्थर उनकी छाती पे रख दिया जाता था के उनकी ज़बान बाहर निकल आती थी। उम्मय्या काफिर कहता था के इस्लाम से फिर जाओ वरना इसी तरह घुट घुट कर मर जा ओगे मगर इस हाल में भी हज़रत बिलाल हब्शी रदियल्लाहु अन्हु की पेशानी पर बल नहीं आता था बल्कि ज़ोर ज़ोर से “अहद अहद” यानि एक एक का नारा लगते थे और बुलंद आवाज़ से कहते थे के “खुदा एक है खुदा एक है” (सीरते इब्ने हिशाम जिल्द 1,)   

कुफ्फारे मक्का ने हज़रते बीबी सुमय्या रदियल्लाहु अन्हा को बहुत सख्त सज़ा दी

 हज़रते अम्मार बिन यासिर रदियल्लाहु अन्हु को गरम गरम बालू (रेत) पर चित लिटा कर कुफ्फारे क़ुरैश इस क़द्र मारते थे के ये बेहोश हो जाते थे। इनकी वालिदा हज़रते बीबी सुमय्या रदियल्लाहु अन्हा को इस्लाम लाने की वजह से अबू जाहिल ने उनकी नाफ के निचे ऐसा नेज़ा मारा के ये शहीद हो गईं। हज़रते अम्मार रदियल्लाहु अन्हु के वालिद हज़रत यासिर रदियल्लाहु अन्हु भी कुफ्फार की मार खाते खाते शहीद हो गए। हज़रते सुहैब रूमी रदियल्लाहु अन्हु को कुफ्फारे मक्का इस क़द्र तरह तरह की तकलीफें देते और ऐसी ऐसी मार धाड़ करते के ये घंटों बे होश रहते। जब ये हिजरत करने लगे तो कुफ्फारे मक्का ने कहा के तुम अपना सारा माल व सामान यहाँ छोड़ कर मदीना जा सकते हो। आप ख़ुशी ख़ुशी दुनिया की दौलत पर लात मार कर अपनी मताए ईमान को साथ लेकर मदीना चले गए। कुफ्फारे मक्का हज़रत अबू फकीहा रदियल्लाहु अन्हु सफ़वान बिन उम्मया काफिर के गुलाम थे और हज़रत बिलाल रदियल्लाहु अन्हु के साथ ही मुस्लमान हुए थे। जब सफ़वान को इन के इस्लाम का पता चला तो उसने इन के गले में रस्सी का फंदा डाल कर घसीटा और गर्म जलती हुई ज़मीन पर इन को चित लिटा कर भारी पथ्थर रख दिया जब इन को कुफ्फार घसीट कर ले जा रहे थे रास्ते में इत्तिफ़ाक़ से एक कीड़ा नज़र आया। उम्मय्या काफिर ने ताना मारते हुए कहा के “देख तेरा खुदा यही तो नहीं है” हज़रत अबू फकीहा ने फ़रमाया के “ऐ काफिर के बच्चे! खामोश मेरा और तेरा खुदा अल्लाह पाक है। ये सुन कर उम्मय्या काफिर गज़ब नाक हो गया और इस ज़ोर से उनका गला घोंटना शुरू किया के वो बेहोश हो गए और लोगों ने समझा के उन का दम निकल गया।इसी तरह हज़रत आमिर बिन फुहीरा रदियल्लाहु अन्हु को भी इस क़द्र मारा जाता था के उन के जिस्म की बोटी बोटी दर्द करती। 

कुफ्फारे मक्का का हज़रते बीबी लबीना को मरना

हज़रते बीबी लबीना रदियल्लाहु अन्हा जो लोंडी थीं। हज़रत उम्र रदियल्लाहु अन्हु जब कुफ्र की हालत में थे इस गरीब लोंडी को इस क़द्र मारते थे के मारते मारते थक जाते थे मगर हज़रते बीबी लबीना रदियल्लाहु अन्हा उफ़ नहीं करती थीं बल्कि निहायत जुर्रत व इस्तक़लाल के साथ कहती थीं के ऐ उमर! अगर तुम खुदा के सच्चे रसूल पर ईमान नहीं लाओगे तो खुदा तुम से ज़रूर इंतिकाम लेगा। सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम। “हज़रते ज़ुनैराह रदियल्लाहु अन्हा” हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु के घराने की बांदी थीं। ये मुस्लमान हो गईं तो इन को इस क़द्र काफिरों ने मारा के इन की आँखें जाती रहीं। मगर अल्लाह पाक ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआ से फिर उन की आँखों में रौशनी अता फ़रमा दी तो मुशरिकीन कहने लगे के ये मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जादू का असर है। इसी तरह हज़रत बीबी “नहदिया” और हज़रत बीबी अबीस रदियल्लाहु तआला अन्हुमा भी बन्दियाँ थीं। इस्लाम लाने के बाद कुफ्फारे मक्का ने इन दोनों को तरह तरह की तकलीफें देकर बे पनाह सताया मगर ये अल्लाह वालियां सब्रो शुक्र के साथ इन बड़ी बड़ी मुसीबतों को झेलती रहीं हैं और इस्लाम से इन के क़दम नहीं डगमगाए। हज़रते यारे गारे मुस्तफा अबू बक्र सिद्दीक बा सफ़ा रदियल्लाहु अन्हु ने किस किस तरह इस्लाम पर अपनी दौलत निसार की इस की एक झलक ये है के आप ने इन गरीब व बे कस मुसलमानो में से अक्सर की जान बचाई। आपने हज़रत बिलाल व आमिर बिन फुहीरा व अबू फकीहा व लाबीना व ज़ुनैरा व नहदिया व उम्मे अबीस रदियल्लाहु तआला अन्हुम इन तमाम गुलामो को बड़ी बड़ी रक़मे देकर ख़रीदा और सब को आज़ाद कर दिया और इन मज़लूमो को काफिरों की तकलीफों से बचा लिया।

कुफ्फारे मक्का का सहाबिए रसूल हज़रत अबू ज़र गिफारी को सज़ा देना

हज़रत अबू ज़र गिफारी रदियल्लाहु अन्हु जब दामने इस्लाम में आए तो मक्का में एक मुसाफिर की हैसियत से कई दिन तक हरमे काबा में रहे। ये रोज़ाना ज़ोर ज़ोर से चिल्ला चिल्ला कर अपने इस्लाम का ऐलान करते थे और रोज़ाना कुफ्फारे क़ुरैश उनको इस क़द्र मारते थे के ये लहू लूहान हो जाते थे और इन दिनों में आबे ज़मज़म के सिवा इन को कुछ भी खाने पीने को नहीं मिला। वाज़ेह रहे के कुफ्फारे मक्का का ये सुलूक सिर्फ गरीबों और गुलामो ही तक महदूद नहीं था बल्कि इस्लाम लाने के जुर्म में बड़े बड़े मालदारों और रईसों को भी इन ज़ालिमों ने नहीं बख्शा। हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु जो शहर मक्का के एक अमीर दौलत मंद इज़्ज़त दार और मुमताज़ मुअज़्ज़िज़ीन में से थे मगर इन को भी हरमे काबा में कुफ्फारे क़ुरैश ने इस क़द्र मारा के इन का सर खून से लत पत हो गया। इसी तरह हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु जो निहायत मालदार और साहिबे इक़्तिदार थे। जब ये मुस्लमान हुए तो गैरो ने नहीं बल्कि खुद इन के चचा ने इन को रस्सियों में जकड़ कर खूब खूब मारा। हज़रत ज़ुबेर बिन अवाम रदियल्लाहु अन्हु बड़े रोअब और दबदबे के आदमी थे मगर इन्हो ने जब इस्लाम क़बूल किया तो इन के चचा इन को चटाई में लपेट कर इन की नाक में धुंआ देते थे जिससे उन का दम घुटने लगता था। हज़रत उम्र रदियल्लाहु अन्हु के चचा ज़ाद भाई और बहनोई हज़रत सईद बिन ज़ैद रदियल्लाहु अन्हु कितने शानो अज़मत वाले रईस थे मगर जब उनके इस्लाम का हज़रत उम्र रदियल्लाहु अन्हु को पता चला तो उन को रस्सी में बांधकर मारा और साथ ही हज़रत उम्र रदियल्लाहु अन्हु ने अपनी बहन हज़रत बीबी फात्मा बिन्ते खत्ताब रदियल्लाहु अन्हु को भी इस ज़ोर से थपड़ के इन के कान के आवेज़ें गिर पड़ें और चेहरे पर खून बह निकला।      

रेफरेन्स हवाला:
  • शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2
  • बुखारी शरीफ जिल्द 2
  • सीरते मुस्तफा जाने रहमत
  • अशरफुस सेर
  • ज़िया उन नबी
  • सीरते मुस्तफा
  • सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1
  • सीरते रसूले अकरम
  • तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया
  • गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी
  • मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2
  • रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी
  • तुहफए रसूलिया मुतरजिम
  • मकालाते सीरते तय्यबा
  • सीरते खातमुन नबीयीन
  • वाक़िआते सीरतुन नबी
  • इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन,
  • तवारीखे हबीबे इलाह
  • सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया

 

Share this post