हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 4)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 4)

शोअबे अबी तालिब सं 7, नबवी

ऐलाने नुबूवत के सातवें साल सं. 7, नबवी में कुफ्फारे मक्का ने जब देखा की रोज़ बरोज़ मुसलमानो की तादाद बढ़ती जा रही है और हज़रते हमज़ा व हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा जैसे बहादुराने क़ुरैश भी दामने इस्लाम में आ गए तो ग़ैज़ो गज़ब में ये लोग आपे से बाहर हो गए और तमाम सरदाराने क़ुरैश और मक्का के दूसरे कुफ्फार ने यह इस्कीम बनाई की हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम और आप के ख़ानदान का मुकम्मल बाइकाट कर दिया जाए और इन लोगों को तंग व अँधेरी जगह में महसूर (घेरना क़ैद करना) कर के इन का दाना पानी बंद कर दिया जाए ताकि ये लोग मुकम्मल तौर पर तबाहो बर्बाद हो जाएं | चुनाचे इस ख़ौफ़नाक तजवीज़ (राए, फैसला, मंसूबा, उपाए) के मुताबिक तमाम क़ुरैश के क़बीलों ने आपस में ये मुआहिदा (वादा, अहदो पैमान, इक़रार नामा) किया की जब तक बनी हाशिम के ख़ानदान वाले हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम को क़त्ल के लिए हमारे हवाले न कर दें |

  • कोई शख्स बनू हाशिम के खानदान से शादी ब्याह न करे |
  • कोई शख्स इन लोगों के हाथ किसी किस्म के सामान की खरीदो फरोख्त न करे |    
  • कोई शख्स इन लोगों से मेलजोल, सलाम व कलाम और मुलाक़ात व बात न करे | 
  • कोई शख्स इन लोगों के पास खाने पीने का कोई सामान न जाने दे |

मंसूर बिन इकरमा ने इस मुआहिदे को लिखा और तमाम सरदाराने क़ुरैश ने इस पर दस्तखत कर के इस दस्तावेज़ को काबे के अंदर लगा दिया | अबू तालिब मजबूरन हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम और दूसरे तमाम ख़ानदान वालों को ले कर पहाड़ की उस घाटी में जिसका नाम “शोअबे अबी तालिब” था पनाह ली | 

अबू लहिब के सिवा खानदाने बनू हाशिम के काफिरों ने भी खानदानी हमीयत व पासदारी की बिना पर इस मुआमले में हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम का साथ दिया और सब के सब पहाड़ के इस तंग्गो तारीक अँधेरे में क़ैद हो कर क़ैदियों जैसी ज़िन्दगी बसर करने लगे | और ये तीन साल तक का ज़माना इतना सख्त और कठिन गुज़रा की बनू हाशिम दरख्तों के पत्ते और सूखे चमड़े पका पका कर खाते थे | और इन के बच्चे भूक प्यास की शिद्दत से तड़प तड़प कर दिन रात रोया करते थे | संग दिल और ज़ालिम काफिरों ने हर तरफ पहरा बिठा दिया था की कहीं से भी घाटी के अंदर दाना पानी न जाने पाए |

मुसलसल तीन साल तक हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम और खानदाने बनू हाशिम इन होशरुबा मुसीबतों को झेलते रहे यहाँ तक की खुद क़ुरैश के कुछ रहिम दिलों को बनू हाशिम की इन मुसीबतों पर रहिम आ गया और उन लोगों ने इस ज़ालिमाना मुआहिदे को तोड़ने की तहरीक उठाई | चुनांचे हिशाम बिन अम्र आमिरि, ज़ुहैर बिन अबी उमय्या, मुतइम बिन अदी, अबुल बख़्तरी, ज़मआ बिन अल अस्वद वगैरा ये सब मिल कर एक साथ हरमे काबा में गए और ज़ुहैर ने जो अबुल मुत्तलिब के नवासे थे कुफ्फारे क़ुरैश को मुख़ातब कर के अपनी पुर जोश तक़रीर में यह कहा की ऐ! लोगों यह कहाँ का इन्साफ है? की हम लोग तो आराम से ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं और खानदाने बनू हाशिम के बच्चे भूक प्यास से बे करार हो कर बिलबिला रहे हैं | 

खुदा की कसम! जब तक इस वहशीयाना मुआहिदे की दस्तावेज़ फाड़ कर पाऊँ से न कुचल दी जाएगी हरगिज़ हरगिज़ चैन से नहीं बैठ सकता | 

यह तक़रीर सुन कर अबू जाहिल ने तड़प कर कहा की खबरदार! हरगिज़ हरगिज़ तुम इस मुआहिदे को हाथ नहीं लगा सकते | ज़्मआ ने अबू जाहिल को ललकारा और इस ज़ोर से डांटा की अबू जाहिल की बोलती बंद हो गई | इसी तरह मुतइम अदि और हिशाम बिन अम्र ने भी खम ठोंक कर अबू जाहिल को झिड़क दिया और अबुल बख़्तरी ने तो साफ़ साफ़ कह दिया की ऐ अबू जाहिल! इस ज़ालिमाना मुआहिदे से न हम पहले राज़ी थे और न अब हम इस के पाबंद हैं

इसी मजमे में अबू तालिब भी एक तरफ बैठे हुए थे | उन्हों ने कहा की ऐ लोगों! मेरे भतीजे मुहम्मद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम कहते हैं की उस मुआहिदे की दस्तावेज़ को कीड़ों ने खा डाला है और सिर्फ जहाँ जहाँ खुदा का नाम लिखा हुआ था उस को कीड़ों ने छोड़ दिया है | लिहाज़ा मेरी राए ये है की तुम लोग उस दस्ता वेज को निकाल कर देखो अगर वाक़ई उस को कीड़ों ने खा लिया है जब तो उस को चाक (फाड़, चीरन,) कर के फेंक दो | अगर मेरे भतीजे का कहना गलत साबित हुआ तो में मुहम्मद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम को तुम्हारे हवाले कर दूंगा | यह सुन कर मुतइम बिन अदि काबे के अंदर गया और दस्तावेज़ को उतार लाया और सब लोगों ने उस को देखा तो वाक़ई सिवाए “अल्लाह पाक” के नाम के पूरी दस्तावेज़ को कीड़ों ने खा लिया था |

मुतइम बिन अदि ने सब के सामने उस दस्तावेज़ को फाड़ कर फेक दिया | और फिर क़ुरैश के चंद बहादुर बावजूदे की ये सब के सब उस वक़्त कुफ्र की हालत में थे हथ्यार ले कर घाटी में पहुंचे और खानदाने बनू हाशिम को एक एक आदमी को वहां से निकाल लाए और उनको उनके मकानों में आबाद कर दिया यह वाक़िआ सं. 10, नबवी का है मंसूर बिन इकरमा ने इस दस्तावेज़ को लिखा था उस पर यह कहरे इलाही टूटा की उस का हाथ शिल (बे हिस, बे जो कुछ भी हरकत न कर सके) हो कर सूख गया | 

गम का साल सं. 10, नबवी

हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम शोअबे अबी तालिब” से निकल कर अपने घर पे तशरीफ़ लाए और चंद ही दिन कुफ्फारे कुरेश के ज़ुल्मो सितम से कुछ अमान मिली थी की अबू तालिब बीमार हो गए और घाटी से बाहर आने के आठ महीने के बाद इन का इन्तिकाल हो गया |

हज़रत बीबी खदीजा की वफ़ात (गम का साल)

हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम के कल्बे मुबारक पर अभी अबू तालिब का ज़ख्म ताज़ा ही था की अबू तालिब की वफ़ात के तीन दिन या पांच दिन के बाद हज़रत बीबी खदीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा भी दुनिया से रुखसत हो गईं | मक्का में अबू तालिब के बाद सब से ज़्यादा जिस हस्ती ने रहमते आलम सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम की नुसरतो हिमायत में अपना तन मन धन सब कुछ कुर्बान किया वो हज़रते बीबी खदीजा दियल्लाहु तआला अन्हा की ज़ाते पाक थी | जिस वक़्त दुनिया में कोई आप सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम का मुख्लिस मुशीर (मश्वरा देने वाला) और गमख्वार नहीं था हज़रते बीबी खदीजा दियल्लाहु तआला अन्हा ही थीं की हर परेशानी के मोके पर पूरी जां निसारी के साथ आप सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम की गम ख्वारी और दिलदारी करती रहती थी इस लिए अबू तालिब और हज़रते बीबी खदीजा दियल्लाहु तआला अन्हा दोनों की वफ़ात से वफ़ात आप सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम के मददगार और गमगुसार दोनों ही दुनिया से उठा गए जिस से आप के कल्बे नाज़ुक पर इतना अज़ीम सदमा गुज़रा की आप ने इस साल का नाम “आमुल हुज़्न” (गम का साल ) रख दिया | “हज़रते बीबी खदीजा दियल्लाहु तआला अन्हा ने रमज़ान सं, 10, नबवी में विसाल फ़रमाया” | विसाल के वक़्त आप की उमर पैसंठ साल थी | मक़ामे हुजून (क़ब्रिस्तान जन्नतुल माला) में मदफ़ून हुईं | हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम खुद बा नफ़्से नफीस उन की क़ब्र में उतरे और अपने मुक़द्दस हाथों से उन की लाश मुबारक को ज़मीन के सुपुर्द फ़रमाया |

मदीना शरीफ में इस्लाम कियूँ फैला ?

अंसार अगरचे बुत परस्त थे मगर यहूदियों के मेल जोल से इतना जानते थे की नबी आखरूज़मा सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम का ज़ुहूर होने वाला है और मदीने के यहूदी अक्सर अंसार के दोनों कबीले ओस व ख़ज़रज को धमकियाँ भी दिया करते थे की नबी आखरूज़मा के हुज़ूर के वक़्त हम उन के लश्कर में शामिल हो कर तुम बुत परस्तों को दुनिया से नेस्तो नाबूद कर डालेंगें | इस लिए नबी आखरूज़मा की तशरीफ़ आवरी का यहूद और अंसार दोनों को इन्तिज़ार था |

सं, 11, नबवी में हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम मामूल के मुताबिक़ हज में आने वाले क़बीलों को दावते इस्लाम देने के लिए मिना के मैदान में तशरीफ़ ले गए और क़ुरआने मजीद की आयते सुना सुना कर लोगों के सामने इस्लाम पेश फरमाने लगे | हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम मिना में अक़बा (घाटी) के पास जहाँ आज “मस्जिदुल अक़बा” है तशरीफ़ फरमा थे की कबीलए ख़ज़रज के छे 6, आदमी आप के पास आए | आप सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इन लोगों से इन का नाम व नसब पूछा | फिर क़ुरआन की चंद आयते सुना कर इन लोगों को इस्लाम की दावत दी जिससे ये लोग बेहद मुतअस्सिर हो गए और एक दुसरे का मुँह देख कर वापसी में यह कहने लगे की यहूदी जिस नबीए आखरूज़मा की खुश खबरि देते रहे हैं यक़ीनन वो नबी यही हैं लिहाज़ा कहीं ऐसा न हो की यहूदी हम से पहले इस्लाम की दावत क़बूल करलें | यह कह कर सब एक साथ मुस्लमान हो गए और मदीने जा कर अपने अहले खानदान और रिश्तेदारों को भी इस्लाम की दावत दी | उन छे 6, खुशनसीबों के नाम यह हैं:

  1. हज़रते उक़्बा बिन आमिर नाबी,
  2. हज़रते अबू उमामा असअद बिन ज़रारह,
  3. हज़रते ओफ़ बिन हारिस, 
  4. हज़रते राफेअ बिन मालिक,
  5. हज़रते क़ुत्बा बिन आमिर बिन हदीदा,
  6. हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह बिन रय्याब,

बैअते अक़बए ऊला

दूसरे साल सं, 12, नबवी में हज के मोके पर मदीने के बारह लोग मिना की इसी घाटी में छुप कर मुशर्रफ बा इस्लाम हुए और हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम से बैअत हुए | तारीखे इस्लाम में इस बैअत का नाम “बैअते अक़बए ऊला” है |

साथ ही इन लोगों ने हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम से यह दरख्वास्त भी की अहकामे इस्लाम की तालीम के लिए कोई मुअल्लिम भी इन लोगों के साथ कर दिया जाए | चुनाचे हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते मुसअब बिन उमैर रदियल्लाहु तआला अन्हु को इन लोगों के साथ मदीना शरीफ भेज दिया | वो मदीना शरीफ में हज़रते असद बिन ज़रारह रदियल्लाहु तआला अन्हु के मकान पर ठहरे और अंसार के एक एक घर में जा जा कर इस्लाम की तब्लीग करने लगे और रोज़ाना एक दो नए आदमी आग़ोशे इस्लाम में आने लगे | यहाँ तक की रफ्ता रफ्ता मदीना शरीफ से क़ुबा तक घर घर इस्लाम फ़ैल गया |

क़बीलए ओस के सरदार साद बिन मुआज़ रदियल्लाहु तआला अन्हु बहुत ही बहादुर और बा असर शख्स थे | हज़रते मुसअब बिन उमैर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने जब उन के सामने इस्लाम की दावत पेश की तो उन्हों ने पहले तो इस्लाम से नफरत व बेज़ारी ज़ाहिर की मगर जब हज़रते मुसअब बिन उमैर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने उन को क़ुरआने मजीद पढ़ कर सुनाया तो एक दम उन का दिल पसीज गया और इस क़द्र मुतअस्सिर हुए की सआदते ईमान से सरफ़राज़ हो गए | 

इन के मुस्लमान होते ही इन का क़बीला “ओस” भी दामने इस्लाम में आ गया उसी साल बाक़ौले मशहूर माहे रजब की सत्ताईसवीं रात को हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम को बा हालते बेदारी “मेराजे जिस्मानी हुई” | और इसी सफर में रजब में पांच नमाज़े फ़र्ज़ हुईं |

बैअते अक़बए सानिया

इस के बाद एक साल बाद सं, 13, नबवी में हज के मोके पर मदीना शरीफ के तक़रीबन बहत्तर लोगों ने निमा की इसी घाटी में अपने बुत परस्त साथियों से छुप कर हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम के दस्ते हक़ परस्त पर बैअत की और यह अहद किया की हम लोग आप सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम की और इस्लाम की हिफाज़त के लिए अपनी जांन क़ुर्बान कर देंगें|

इस मोके पर हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम के चचा हज़रते अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हु भी मौजूद थे जो अभी तक मुस्लमान नहीं हुए थे | 

उन होने मदीना वालों से कहा की देखो! मुहम्मद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम अपने खानदान बनी हाशिम में हर तरह मुहतरम और बा इज़्ज़त हैं | हम लोगों ने दुश्मनो के मुकाबले में सीना सिपर हो कर हमेशा इन की हिफाज़त की है | अब तुम लोग इन को अपने वतन में ले जाने के ख्वाइश मंद हो तो सुन लो ! अगर मरते दम तक तुम लोग इन का साथ दे सको तो बेहतर है वरना अभी से किनारा कश हो जाओ यह सुन कर हज़रते बरा बिन आज़िब रदियल्लाहु तआला अन्हु तैश में आ कर कहने लगे की हम लोग तलवारों की गोद में पले हैं हज़रते बरा बिन आज़िब रदियल्लाहु तआला अन्हु इतना ही कह पाए थे की हज़रते अबुल हैसम रदियल्लाहु तआला अन्हु ने बात काटते हुए यह कहा की या रसूलल्लाह सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ! हम लोगों के यहूदियों से पुराने तअल्लुक़ात हैं | 

अब ज़ाहिर है के हमारे मुसलमान हो जाने के बाद यह तअल्लुक़ टूट जाएंगें | कहीं ऐसा न हो की जब अल्लाह पाक आप सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम को ग़लबा अता फरमाए तो आप लोग हम लोगों को छोड़ कर अपने वतन मक्का चले जाएं| यह सुन कर हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया की तुम लोग इत्मीनान रखो की “तुम्हारा खून मेरा खून है और यक़ीन करो मेरा जीना मरना तुम्हारे साथ है | में तुम्हारा हूँ और तुम मेरे हो | तुम्हारा दुश्मन मेरा दुश्मन और तुम्हारा दोस्त मेरा दोस्त है” |

जब अंसार यह बैअत कर रहे थे तो हज़रते साअद बिन ज़रारह रदियल्लाहु तआला अन्हु ने या हज़रते अब्बास बिन नज़ला रदियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा की मेरे भाइयो! तुम्हे ये भी खबर है? की तुम लोग किस चीज़ पर बैअत कर रहे हो? खूब समझ लो की यह अरबो आजम के साथ ऐलाने जंग है | अंसार ने निहायत ही तैश में आ कर पुर जोश लहजे में कहा की हाँ! हम लोग इसी पर बैअत कर रहे हैं | बैअत हो जाने के बाद आप सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इस जमात में से 12, बाराह आदमियों को नक़ीब (सरदार) मुक़र्रर फ़रमाया | इन में 9, नो आदमी क़बीलए ख़ज़रज के और तीन आदमी क़बीलए ओस के थे जिन के मुबारक नाम ये हैं:

  1. हज़रते अबू उमामा असअद बिन ज़रारह,
  2. हज़रते सअद बिन रबी,
  3. हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा,
  4. हज़रते राफे बिन मालिक,
  5. हज़रते बरा बिन मारूर,
  6. हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र,
  7. हज़रते सअद बिन उबादा,
  8. हज़रते मुनज़िर बिन उमर,
  9. हज़रते उबादा बिन साबित,
  10. हज़रते उसैद बिन हुज़ैर,
  11. ज़रते सअद बिन खेसमा,
  12. ज़रते अबुल हैसम बिन तैहान |
  13. यह तीन शख्स कबीलए ओस के हैं |

इस के बाद यह तमाम हज़रात अपने अपने डेरों पर चले गए | सुबह के वक़्त जब कुरेश को इस की इत्तिला पहुंची तो वो आग बगूला हो गए और उन लोगों ने डांट कर मदीने वालों से पूछा की क्या तुम लोगों ने हमारे साथ जंग करने पर मुहम्मद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम से बैअत की है? अंसार के कुछ साथियों ने जो मुस्लमान नहीं हुए थे अपनी ला इल्मी ज़ाहिर की | यह सुन कर कुरेश वापस चले गए मगर जब तहक़ीक़ के बाद कुछ अंसार की बैअत का हाल मालूम हुआ तो कुरेश ग़ैज़ो गज़ब में आपे से बाहर हो गए और बैअत करने वालों की गिरफ्तारी के लिए पीछा किया मगर कुरेश हज़रते साद बिन उबादा रदियल्लाहु तआला अन्हु के सिवा किसी और को नहीं पकड़ सके | कुरेश हज़रते साद बिन उबादा रदियल्लाहु तआला अन्हु को अपने साथ मक्का लाए और उन को कैद कर दिया मगर जब जुबेर बिन मुतइम और हारिस बिन हर्ब बिन उमय्या को पता चला तो इन दोनों ने कुरेश को समझाया की खुदा के लिए साद बिन उबादा रदियल्लाहु तआला अन्हु को फौरन छोड़ दो वरना तुम्हारी मुल्के शाम की तिजारत खतरे में पड़ जाएगी | यह सुन कर कुरेश ने हज़रते साद बिन उबादा को कैद से रिहा कर दिया और वो बा खैरियत मदीना शरीफ पहुंच गए |    

हिजरते मदीना

मदीना शरीफ में जब इस्लाम और मुसलमानो को पनाह मिल गई तो हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम को आम इजाज़त देदी के वो मक्का से हिजरत कर के मदीना चलें जाएं | चुनाचे सब से पहले हज़रत अबू सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने हिजरत की उन के बाद यके बाद दीगरे दूसरे लोग भी मदीना शरीफ रवाना होने लगे जब कुफ्फारे क़ुरैश को पता चला तो उन होने रोक टोक शुरू कर दी | मगर छुप छुपा कर लोगों ने हिजरत का सिलसिला जारी रखा यहाँ तक के धीरे धीरे बहुत से सहाबए किराम मदीना शरीफ चले गए | सिर्फ वही हज़रात मक्का शरीफ रह गए | जो या तो काफिरों की कैद में थे | या अपनी मुफलिसी गरीबी की वजह से मजबूर थे |

हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम को चूँकि अभी तक खुदा की तरफ से हिजरत का हुक्म नहीं मिला था इस लिए आप मक्का में ही मुक़ीम रहे और हज़रते अबू बक़र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु व हज़रते अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु को भी आप ने रोक लिया था | लिहाज़ा ये दोनों शमए नुबूवत के परवाने भी आप ही के साथ मक्का में ठहरे हुए थे |

कुफ्फारे मक्की की कॉन्फ्रेंस

जब मक्के के काफिरों ने यह देख लिया की हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम और मुसलमानो के मददगार मक्के से बाहर मदीने में भी हो गए और मदीने जाने वाले मुसलमानो को अंसार ने अपनी पनाह में ले लिया है तो कुफ्फारे मक्का को यह खतरा महसूस होने लगा की कहीं ऐसा न हो की मुहम्मद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम भी मदीने चलें जाएं और वहां से अपने हामियों की फ़ौज़ लेकर मक्के पे चढ़ाई न कर दें | चुनाचे इस खतरे का दरवाज़ा बंद कर ने के लिए कुफ्फारे मक्का ने अपने दारुन्नदवा (यह एक मक्के का पंचायत घर था) में एक बहुत बड़ी कॉन्फ्रेंस मुनअक़िद की | और यह कुफ्फारे मक्का का ऐसा ज़बर दस्त नुमाइंदा इज्तिमा था की मक्का का कोई भी ऐसा दानिश्वर और बा असर शख्स न था जो इस कॉन्फ्रेंस में शरीक न हुआ हो | ख़ुसूसीयत के साथ अबू सुफ़यान, अबू जहिल, उत्बा, जुबेर बिन मुतइम, नज़्र बिन हारिस, अबुल बख्तरी, ज़मा बिन अस्वद, हक़ीम बिन हिज़ाम, उम्मय्या बिन खलफ, वगैरा वगैरा तमाम सरदाराने कुरेश इस मजलिस में मौजूद थे | 

शैतान लाईन भी कंबल ओढ़े एक बुजरुग शैख़ की सूरत में आ गया | कुरेश के सरदारों ने नाम व नस्ब पूछा तो बोला की में “शैख़े नज्द” हूँ | इस लिए आया हूँ इस कॉन्फ्रेंस में की में तुम्हारे मुआमले में अपनी राए भी पेश कर दूँ | यह सुन कर कुरेश के सरदारों ने इब्लीस को भी अपनी कॉन्फ्रेंस में शरीक कर लिया और कॉन्फ्रेंस की कार्रवाई शुरू हो गई |

जब हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम का मुआमला पेश हुआ तो अबुल बख़्तरी ने यह राए दी की इन को किसी कोठरी में बंद कर के इन के हाथ पाऊँ बांध दो और एक सुराख से खाना पानी इन को दिया करो | “शैख़े नज्दी” (शैतान) ने कहा की यह राए अच्छी नहीं है | खुदा की कसम! अगर तुम लोगों ने उन को किसी मकान में कैद कर दिया तो यक़ीनन उन के जां निसार असहाब को इस की भी खबर लग जाएगी और वो अपनी जान पर खेल कर उन को कैद से छुड़ा लेंगें |

अबुल अस्वद रबीआ बिन अम्र आमिरि ने यह मश्वरा दिया की इन को मक्का से निकाल दो ताकि यह किसी दुसरे शहर में जा कर रहें | इस तरह हम को इन के क़ुरआन पढ़ने और इन की तबलीग़े इस्लाम से निजात मिल जाएगी | यह सुन कर  “शैख़े नज्दी” ने बिगड़ कर कहा की तुम्हारी इस राए पर लानत क्या तुम लोगों को मालूम नहीं की मुहम्मद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम के कलाम में कितनी मिठास और तासीर व दिल कशी है? खुदा की कसम! अगर तुम लोग इन को शहर बदर कर के छोड़ दोगे तो यह पूरे मुल्के अरब में लोगों को कुरआन सुना सुना कर तमाम क़बाइले अरब को अपना ताबेदार फरमान बना लेंगें और फिर अपने साथ एक अज़ीम लश्कर को ले कर तुम पर ऐसी यलगार कर देंगें की तुम इन के मुकाबले से आजिज़ व लाचार हो जाओगे और फिर बा जुज़ इस के की तुम इन के गुलाम बन कर रहो कुछ बनाए न बनेगी इस लिए इन को जिला वतन करने की तो बात ही मत करो |

अबू जहिल बोला की साहिबो! मेरे ज़हन में एक राए है जो अब तक किसी को नहीं सूझी यह सुन कर सब के कान खड़े हो गए और सब ने बड़े इश्तियाक़ के साथ पूछा की वो क्या है? तो अबू जहिल ने कहा की मेरी राए यह है की हर कबीले एक एक मशहूर बहादुर तलवार ले कर उठ खड़ा हो और सब एक बार में ही हमला कर के मुहम्मद सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम को क़त्ल कर डालें |

इस तदबीर से खून कर ने का जुर्म तमाम कबीले वालों के सर पे रहेगा | ज़ाहिर है के खानदाने बनू हाशिम इस खून का बदला लेने के लिए तमाम कबीलों से लड़ने की ताक़त नहीं रख सकते | लिहाज़ा यक़ीनन वो खूनबहा लेने पर राज़ी हो जाएंगें और हम लोग मिल जुलकर आसानी के साथ खून बहा की रक़म अदा कर देंगें | अबू जहिल की यह खूनी तजवीज़ सुन कर “शैख़े नज्दी” मारे ख़ुशी के उछल पड़ा और कहा की बेशक यह तदबीर बिलकुल दुरुस्त है |

इस के सिवा और कोई तजवीज़ काबिले क़बूल नहीं हो सकती है | तमाम शुरकाए कॉन्फ्रेंस ने इत्तिफ़ाक़े राए से इस तजवीज़ को पास कर दया और मजलिसे शूरा बर्ख्वस्त हो गई और हर शख्स यह खौफनाक अज़्म ले कर अपने अपने घर चला गया | अल्लाह पाक ने क़ुरआने मजीद की मन्दर्जा ज़ैल आयात में इस वाकिए का ज़िक्र फरमाते हुए इरशाद फ़रमाया की:

وَ اِذْ یَمْكُرُ بِكَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا لِیُثْبِتُوْكَ اَوْ یَقْتُلُوْكَ اَوْ یُخْرِجُوْكَؕ-وَ یَمْكُرُوْنَ وَ یَمْكُرُ اللّٰهُؕ-وَ اللّٰهُ خَیْرُ الْمٰكِرِیْن (۳۰)

तर्जुमा कंज़ुल ईमान:- ऐ महबूब याद कीजिए जिस वक़्त कुफ्फार आप के बारे में ख़ुफ़िया तदबीर कर रहे थे की आप को कैद कर दें या क़त्ल कर दें या शहर बदर कर दें ये लोग ख़ुफ़िया तदबीर कर रहे थे और अल्लाह ख़ुफ़िया तदबीर कर रहा था और अल्लाह की पोशीदा तदबीर सब से बेहतर है |

हिजरते रसूल का वाक़िआ

जब कुफ्फार हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम के क़त्ल पर इत्तिफ़ाक़ कर के कॉन्फरेंस ख़त्म कर चुके और अपने अपने घरों को रवाना हो गए तो हज़रते जिब्रीले अमीन अलैहिस्सलाम अल्लाह पाक का हुक्म ले कर नाज़िल हो गए की ऐ महबूब! आज रात को आप अपने बिस्तर पर न सोएँ और हिजरत कर के मदीना तशरीफ़ ले जाएं | चुनाचे ऐन दोपहर के वक़्त हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु के घर तशरीफ़ ले गए और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु से फ़रमाया की सब घर वालों की हटा दो कुछ मश्वरा करना है | हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम! आप पर मेरे माँ बाप क़ुर्बान यहाँ आप की अहलिया (हज़रते आयेशा रदियल्लाहु अन्हा के सिवा और कोई नहीं है | उस वक़्त हज़रते आयेशा रदियल्लाहु अन्हा से हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम की शादी हो चुकी थी) हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की ऐ अबू बक्र! अल्लाह पाक ने मुझे हिजरत की इजाज़त फरमा दी है |  

हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु से फ़रमाया की आप पर मेरे माँ बाप क़ुर्बान मुझे भी साथ ले चलें आप सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन की दरख्वास्त मंज़ूर कर ली हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने चार महीने से दो ऊंटनियां बबूल की पत्ती खिला खिला कर तय्यार की थीं हिजरत के वक़्त यह सवारी के काम आएंगीं | 

अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम! इन में से एक ऊंटनी आप क़ुबूल फ़रमालें | आप सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की कबूल है मगर में इस की कीमत दूंगा |  हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने बा दिले न ख्वास्ता फरमाने रिसालत से मजबूर हो कर इस को कबूल किया | हज़रते आईशा सिद्दीका रदियल्लाहु अन्हा तो उस वक्त बहुत कम उम्र थीं लेकिन उन की बड़ी बहन हज़रते बीबी अस्मा रदियल्लाहु अन्हा ने सामाने सफर दुरुस्त किया और तोषदान में खाना रख कर अपनी कमर के पटके को फाड़ कर दो टुकड़े किए एक से तोशादान को बांधा और दूसरे से मश्क का मुँह बांधा | यह वो काबिले फर्ख शरफ़ है जिस की बिना पर इन को (ज़ातुन्नताकेंन) यानि दो पटके वाली मुअज़ज़ लक़ब से याद किया जाता है |

इस के बाद हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक काफिर को जिस का नाम “अब्दुल्लाह बिन  “उरैक़त” था जो रास्तों का माहिर था रहनुमाई के लिए उजरत पर नौकर रखा और इन दोनों ऊटनियों को उस के सुपुर्द कर के फ़रमाया की तीन रातों के बाद वो इन दोनों ऊटनियों को लेकर “गारे सौर” के पास आ जाए | यह सारा निज़ाम कर लेने के बाद हुज़ूर सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम अपने मकान पे तशरीफ़ लाए |

रेफरेन्स (हवाला)
  • शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2
  • बुखारी शरीफ जिल्द 2
  • सीरते मुस्तफा जाने रहमत
  • अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी
  • सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1
  • सीरते रसूले अकरम
  • तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया
  • गुलदस्ताए सीरतुन नबी
  • सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2
  • रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम
  • मकालाते सीरते तय्यबा
  • सीरते खातमुन नबीयीन
  • वाक़िआते सीरतुन नबी
  • इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन
  • तवारीखे हबीबे इलाह
  • सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया

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