हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 7)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 7)

जंगे बद्र, जंगे बद्र को बद्र क्यूँ कहा जाता है ?

“बद्र” मदीना शरीफ से तरीबन अस्सी मील की दूरी पे एक गाऊं का नाम है जहाँ ज़मानए जाहीलीय्यत में सालाना मेला लगता था | यहाँ एक कुँआ भी था जिस के मालिक का नाम “बद्र” था उसी के नाम पे इस जगह का नाम “बद्र” रख दिया गया इसी मक़ाम पर जंगे बद्र का वो अज़ीम मारिका हुआ जिस में कुफ्फारे कुरेश और मुसलमानो के बीच सख्त ख़ूंरेज़ी हुई और मुसलमानो को वो अज़ीमुश्शान फ़तेह मुबीन नसीब हुई जिस के बाद इस्लाम की इज़्ज़त व इकबाल का परचम इतना ऊँचा हो गया की कुफ्फारे कुरेश की अज़मतो शौकत बिकुल ही ख़ाक में मिल गई | अल्लाह पाक ने जंगे बद्र के दिन का नाम “यौमुल फ़ुरक़ान” रखा कुरआन शरीफ की सूरह अनफाल में तफ्सील के साथ और दूसरी सूरतों में इजमालन बार बार इस मारिके का ज़िक्र फ़रमाया और इस जंग में मुसलमानो की फ़तेह मुबीन के बारे में एहसान जताते हुए अल्लाह पाक ने पारा चार सूरह आले इमरान आयत 123, में इरशाद फ़रमाया की :


وَ لَقَدْ نَصَرَكُمُ اللّٰهُ بِبَدْرٍ وَّ اَنْتُمْ اَذِلَّةٌۚ-فَاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ(۱۲۳)

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- और यक़ीनन अल्लाह पाक ने तुम लोगों की मदद फ़रमाई बद्र में जब की तुम लोग कमज़ोर और बे सरो सामान थे तो तुम लोग अल्लाह पाक से डरते रो ताकि तुम लोग शुक्र गुज़ार हो जाओ |

जंगे बद्र का सबब

जंगे बद्र का असली सबब तो ये था की “अम्र बिन अल हज़्मी” के कत्ल से कुफ्फारे कुरेश में फैला हुआ ज़बरदस्त जोश था जिस से हर काफिर की ज़बान पर ये एक ही नारा था “की खून का बदला खून से ले कर रहेंगें |मगर बिलकुल अचानक ये सूरत पेश आई की कुरेश का वो काफिला जिस की तलाश में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक़ामे “ज़िल उशैराह” तशरीफ़ ले गए थे मगर वो काफिला हाथ नहीं आया था बिकुल अचानक मदीने में खबर मिली की अब वो ही काफिला मुल्के शाम से लोट कर मक्का जाने वाला है और ये भी पता चल गया की इस काफिले में अबू सुफियान बिन हर्ब व मखरिमा बिन नौफल व अम्र बिन अल आस वगैरा कुल तीस या चालीस आदमी हैं और कुफ्फारे कुरेश का माले तिजारत जो उस काफिले में है वो बहुत ज़्यादा है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने असहाब से फ़रमाया की कुफ्फारे कुरेश की टोलियां लूटमार की नियत से मदीने के अतराफ़ में बराबर गश्त लगाती रहती हैं और “कुर्ज़ बिन जाबिर फिहरि” मदीने की चरागाहों तक आ कर गारत गिरी डाका ज़नी कर गया है लिहाज़ा क्यूँ न हम भी कुफ्फारे कुरेश के इस काफिले पर हमला कर के उस को लूट लें ताकि कुफ्फारे कुरेश की शामी तिजारत बंद हो जाए और वो मजबूर हो कर हम से सुलाह करलें | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये इरशादे गिरामी सुन कर अंसार व मुहाजिरीन इस के लिए तय्यार हो गए |

मदीने से रवानगी

चुनांचे 12, रमज़ान सं. 2, हिजरी को बड़ी जल्दी के साथ लोग चल पड़े जो जिस हाल में था उसी हाल में रवाना हो गया इस लश्कर में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ न ज़्यादा हथियार थे न फौजी राशन कोई बड़ी मिक़्दार थी क्यूँ की किसी को गुमान भी न था की इस सफर में कोई बड़ी जंग होगी | मगर जब मक्के में ये खबर फैली की मुस्लमान मुसल्लह हो कर कुरेश का काफिला लूटने के लिए मदीने से चल पड़े हैं तो मक्के में एक जोश फ़ैल गया और एक दम कुफ्फारे कुरेश की फ़ौज का दल बदला मुसलमानो पर हमला करने के लिए तय्यार हो गया | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस की इत्तिला मिली तो आप ने सहाबए किराम को जमा फरमा कर सूरते हाल से आगाह किया और साफ़ साफ़ फरमा दिया की मुमकिन है की इस सफर में कुफ्फारे कुरेश के काफिले से मुलाकात हो जाए और ये भी हो सकता है की कुफ्फारे मक्का के लश्कर से जंग की नौबत आ जाए | इरशादे गिरामी सुन कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक व हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म और दूसरे मुहाजिरीन ने बड़े जोशो खरोश का इज़हार किया गया मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अंसार का मुँह देख रहे थे क्यूँ की अंसार ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दस्ते मुबारक पर बैअत करते वक़्त तलवार उठाएंगें जब कुफ्फार मदीने पर चढ़ आएंगें और यहाँ मदीने से बाहर निकल कर जंग करने का मुआमला था |

अंसार में से कबीलए ख़ज़रज के सरदार हज़रते साद बिन उबादा रदियल्लाहु अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चेहरए अनवर देख कर बोल उठे की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या आप का इशारा हमारी तरफ है? खुदा की कसम हम वो जां निसार है की अगर आप का हुक्म हो तो हम समुन्दर में कूद पड़े इसी तरह अंसार के एक और मुअज़्ज़ज़ सरदार हज़रते मिक़दाद बिन अस्वद बिन अस्वद रदियल्लाहु अन्हु जोश में आ कर अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हम हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम की कौम की तरह ये न कहेंगें की आप और आप का खुदा जा कर लड़े बल्कि हम लोग आप के दाएं से बाएं से आगे पीछे से लड़ेंगें अंसार के इन दोनों सरदारों की तक़रीर सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा | मदीने से एक मील दूर चल कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने लश्कर का जाएज़ा लिया जो लोग कम उमर थे उन को वापस कर देने का हुक्म दिया क्यूँ की जंग के पुर खतर मोके पर भला बच्चों का क्या काम?

नन्हा सिपाही

मगर इन्ही बच्चों में हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास रदियल्लाहु अन्हु के छोटे भाई हज़रते उमेर बिन अबी वक़्क़ास रदियल्लाहु अन्हु भी थे | जब उन से वापस होने को कहा गया तो वो मचल गए और फूट फूट कर रोने लगे और किसी तरह वापस होने पर तय्यार न हुए | उनकी बेकरारी और गिरया व ज़ारी देख कर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कल्बे नाज़ुक मुतअस्सिर हो गया और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन को साथ चलने की इजाज़त दे दी| चुनांचे हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास रदियल्लाहु अन्हु ने उस नन्नेह सिपाही के गले में भी एक तलवार हमाइल कर दी मदीने से रवाना होने के वक़्त नमाज़ों के लिए हज़रते इब्ने उम्मे मकतूम रदियल्लाहु अन्हु को आप ने मस्जिद नबवी का इमाम मुकर्रर फरमा दिया था लेकिन जब आप मक़ामे “रोहा” में पहुचें तो मुनाफिक़ीन और यहूदियों की तरफ से कुछ खतरा महसूस फ़रमाया इस लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू लुबाबा बिन अब्दुल मुनज़िर रदियल्लाहु अन्हु को मदीने का हाकिम मुकर्रर फरमा कर इन को मदीने वापस जाने का हुक्म दिया और हज़रते आसिम बिन अदि रदियल्लाहु अन्हु मदीने के चढ़ाई वाले गाऊं पर निगरानी रखने का हुक्म फ़रमाया |इन इंतज़ामात के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम “बद्र” की जानिब चल पड़े जिधर से कुफ्फारे मक्का के आने की खबर थी अब कुल फ़ौज की तादाद तीन सौ तरह थी जिन में साठ मुहाजिर और बाक़ी अंसार थे मंज़िल बा मंज़िल सफर फरमाते हुए जब आप मक़ामे “सफ़रा” में पहुंचे तो दो आदमियों को जासूसी के लिए रवाना फ़रमाया ताकि वो काफिले का पता लगाएं वो किधर है ? और कहाँ तक पहुंचा है|

अबू सुफियान की चालाकी

उधर कुफ्फारे कुरेश के जासूस भी अपना काम बुहत तेज़ी से कर रहे थे | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीने से रवाना हुए तो अबू सुफियान को इस की खबर मिल गई | इस ने फ़ौरन ही “ज़मज़म बिन अम्र गिफारी” को मक्का भेजा की वो कुरेश को इस की खबर कर दे ताकि वो अपने काफिले की हिफाज़त का इंतिज़ाम करें और खुद रास्ता बदल कर काफिले को समंदर की तरफ ले कर रवाना हो गया | अबू सुफियान का क़ासिद ज़मज़म बिन अम्र गिफारी जब मक्का पंहुचा तो उस वक़्त के दस्तूर के मुताबिक की जब कोई खौफनाक खबर सुनानी होती तो खबर सुनाने वाला अपने कपड़े फाड़ कर और ऊँट की पीठ पर खड़ा हो कर चिल्ला चिल्ला कर खबर सुनाया करता था | ज़मज़म बिन अम्र गिफारीने अपना कुरता फाड़ लिया और ऊँट की पीठ पर खड़ा हो कर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा की ऐ अहले मक्का ! तुम्हारा सारा माले तिजारत अबू सुफ़यान के काफिले में है और मुसलमानो ने इस काफिले का रास्ता रोक कर काफिले को लूटने का अज़्म (इरादा) कर लिया है लिहाज़ा जल्दी करो और बहुत जल्द अपने इस काफिले को बचाने के लिए हथियार ले कर दौड़ पड़े |

कुफ्फारे कुरेश का जोश

जब मक्का में ये खौफनाक खबर पहुंची तो इस क़द्र हलचल मच गई की मक्का का सारा अम्नो सुकून खत्म हो गया तमाम कबाईले कुरेश अपने घरों से निकल पड़े, सरदाराने मक्का में से सिर्फ अबू लहब अपनी बीमारी की वजह से नहीं निकला, इस के सिवा तमाम रूओसाए कुरेश पूरी तरह मुसल्लह हो कर निकल पड़े और चूँकि मक़ामे नखला का वाक़िआ बिलकुल ही ताज़ा था जिस में अम्र बिन अल हज़्मी मुसलमानो के हाथ से मारा गया था और उस के काफिले को मुसलमानो ने लूट लिया था इस लिए कुफ्फारे कुरेश जोशी इंतिकाम में आप से बाहर हो रहे थे | एक हज़ार का लश्करे जर्रार जिस का हर सिपाही पूरी तरह मुसल्लह, डवल हथियार, फ़ौज की खुराक का ये इंतिज़ाम था की कुरेश के मालदार लोग यानि अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब, उतबा बिन रबीआ, हारिस बिन आमिर, नज़र बिन अल हारिस, अबू जहिल, उमय्या वगैरह बारी बारी से रोज़ाना दस दस ऊँट ज़ब्ह करते थे और पूरे लश्कर को खिलाते थे “उतबा बिन रबीआ” जो कुरेश का सब से बड़ा रईसे आज़म था पूरे लश्कर का सिपह सालार था |

अबू सुफियान बच कर निकल गया

अबू सुफियान जब आम रास्ते से मुड़ कर समंदर के रास्ते पर चल पड़ा और खतरे के मक़ामात से बहुत दूर पहुंच गया और इस को अपनी हिफाज़त का पूरा पूरा इत्मीनान हो गया तो इस ने कुरेश को एक तेज़ रफ़्तार क़ासिद के ज़रिए खत भेज दिया की तुम लोग अपने माल और आदमियों को बचाने के लिए अपने घरों से हथियार ले कर निकल पड़े थे अब तुम लोग अपने अपने घरों को वापस लोट जाओ क्यों की हम लोग मुसलमानो की यलगार और लूट मार से बच गए हैं और जानो माल की सलामती के साथ हम मक्का पहुंच रहे हैं |

कुफ्फार में इख्तिलाफ

अबू सूफ़िया का ये खत कुफ्फारे मक्का को उस वक़्त मिला जब वो मक़ामे “जुहफा” में थे | खत पढ़ कर क़बीलए बनू ज़हरा और क़बीलए बनू अदी के सरदारों ने कहा की अब मुसलमानो से लड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है लिहाज़ा हम लोगों को वापस लोट जाना चाहिए ये सुन कर अबू जहल बिगड़ गया और कहने लगा की कसम! इसी शान के साथ बद्र तक जाएंगे, वहां ऊँट ज़ब्ह करेंगें और खूब खाएंगें, खिलाएंगें, शराब पिएंगें, नाच रंग की महफ़िल जमाएंगें तमाम कबाइले अर्ब पर हमारी अज़मत और शौकत का सिक्का बैठा जाए और वो हमेशा हम से डरते रहे | कुफ्फारे कुरेश ने अबू जहल की राए पर अमल किया लेकिन बनू ज़हरा बनू अदी के दोनों कबीले वापस लोट गए इन दोनों कबीलों के सिवा बाकि कुफ्फारे कुरेश के तमाम कबाइल जंगे बद्र में शामिल हुए |

कुफ्फारे कुरेश बद्र में

कुफ्फारे कुरेश चूँकि मुसलमानो से पहले बद्र में पहुंच गए थे इस लिए मुनासिब जगहों पर उन लोगों ने अपना कब्ज़ा जमा लिया था | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब बद्र के करीब पहुंचे तो शाम के वक़्त हज़रते अली, हज़रते ज़ुबेर, हज़रते साद, बिन अबी वक़्क़ास रदियल्लाहु अन्हुम को बद्र की तरफ भेजा ताकि ये लोग कुफ्फारे कुरेश के बारे में खबर लाएं | इन हज़रात ने कुरेश के दो गुलामो को पकड़ लिया जो लश्करे कुफ्फार के लिए पानी भरने पर मुकर्रर थे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन दोनों गुलामो से मालूम किया की बताओ उस कुरैशी फ़ौज में कुरेश के सरदारों में कौन कौन है? तो दोनों गुलामो ने बताया की उतबा बिन रबीआ, शैबा बिन रबीआ, अबुल बख़्तरी, हकीम बिन हिज़ाम, नौफल बिन ख़ुवैलिद, हारिस बिन आमिर, नज़र बिन अल हारिस, जमा बिन अल अस्वद, अबू जहल बिन हिशाम, उमय्या बिन ख़लफ़, सुहैल बिन अम्र, अम्र बिन अब्दे वुद, अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब वगैरह सब इस लश्कर में मोजोद थे| ये फेहरिस्त सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने असहाब की तरफ मुतावज्जेह हुए और फ़रमाया की मुसलमानो ! सुन लो मक्का ने अपने जिगर के टुकड़ों को तुम्हारी तरफ डाल दिया है |

ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बद्र के मैदान में

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब बद्र में नुज़ूल फ़रमाया तो ऐसी जगह पड़ाव डाला की जहाँ न कोई कुँआ था न कोई चश्मा और वहां की ज़मीन इतनी रेतीली थी की घोड़े के पाऊँ ज़मीन में धंसते थे | ये देख कर हज़रते हुबाब बिन मुनज़िर रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आपने पड़ाव के लिए जिस जगह को चुना है ये वही की रू से है या फौजी तदबीर है ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की इस के बारे में कोई वही नहीं उतरी है हज़रते हुबाब बिन मुनज़िर रदियल्लाहु अन्हु ने कहा की मेरी राए में जंगी तदबीर की रू से बेहतर ये है की हम कुछ आगे बढ़कर पानी के चश्मों पर क़ब्ज़ा करलें ताकि कुफ्फार जिन कुँओं पर काबिज़ हैं वो बेकार हो जाएं क्यों की इन्ही चश्मों से उन के कूँओं में पानी जाता है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन की राए को पसंद फ़रमाया और उसी पर अमल किया गया खुदा की शान की बारिश भी हो गई जिससे मैदान की गर्द और रेत जम गई जिस पर मुसलमानो के लिए चलना फिरना आसान हो गया और कुफ्फार की ज़मीन पर कीचड़ हो गई जिस से उन को चलने फिरने में दुश्वारी हो गई और मुसलमानो ने बारिश का पानी रोक कर जा बजा होज़ बना लिए ताकि ये पानी ग़ुस्ल और वुज़ू के काम आए इसी एहसान को अल्लाह पाक ने कुरआन शरीफ सूरह अनफाल आयत 11, में बयान फ़रमाया की: तर्जुमा कंज़ुल ईमान, और खुदा ने आसमान से पानी बरसा दिया ताकि वो तुम लोगों को पाक करे |

सरवरे कायनात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शब् बेदारी

17, रमज़ानुल मुबारक सं. 2, हिजरी जुमे की रात तमाम फौज आराम व चैन से सो रही थी मगर एक सरवरे कायनात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ात थी जो सारी रात अल्लाह पाक से लो लगाए दुआ में मसरूफ थी सुबह हुई तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों को नमाज़ के लिए बेदार फ़रमाया फिर नमाज़ के बाद कुरआन की आयते जिहाद सुना कर ऐसा लरज़ा ख़ेज़ और वलवला अंगेज़ वाइज़ फ़रमाया की मुजाहिदीने इस्लाम की रगों के खून का क़तरा क़तरा जोशो खरोश का समंदर बन कर तूफानी मोजे मारने लगा और लोग मैदाने जंग के लिए तय्यार हो गए |

कौन कब? कहाँ मरेगा?

रात ही में चंद जां निसार के साथ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मैदाने जंग का मुआयना फ़रमाया, उस वक़्त दस्ते मुबारक में एक छड़ी थी आप उसी छड़ी से ज़मीन पर लकीर बनाते थे और ये फरमाते जाते थे की ये फुलां काफिर के क़त्ल होने की जगह है और कल यहाँ फुला काफिर की लाश पड़ी हुई मिलेगी | चुनांचे ऐसा ही हुआ की आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जिस जगह जिस काफिर की क़त्ल गाह बताई थी उस काफिर की लाश ठीक उसी जगह पाई गई उन में से किसी एक ने लकीर से बाल बराबर भी नहीं हटा था | (सही मुस्लिम शरीफ) इस हदीस से साफ़ और सरीह तौर पर ये मसला साबित हो जाता है की कौन कब? और कहाँ मरेगा? इन दोनों ग़ैब की बातों का इल्म अल्लाह पाक ने अपने हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अता फ़रमाया था |

लड़ाई टलते टलते फिर ठन गई

कुफ्फारे कुरेश लड़ने के लिए बेताब थे मगर उन लोगों में सुलझे दिलो दिमाग के लोग भी थे जो ख़ूंरेज़ी को पसंद नहीं करते थे | चुनांचे हकीम बिन हिज़ाम जो बाद में मुस्लमान हो गए बहुत ही संजीदा और नरम मिजाज़ थे उन्होंने अपने लश्कर के सिपाह सालार उतबा बिन राबिआ से कहा की आखिर इस ख़ूंरेज़ी से क्या फ़ायदा? में आप को एक निहायत ही मुखलिसना मश्वरा देता हूँ वो ये है की कुरेश का जो कुछ मुतालबा है वो अम्र बिन अल हज़्मी का खून है और वो आप का हलीफ़ है आप उस का खून का बदला अदा कर दीजिए, इस तरह ये लड़ाई टल जाएगी और आज का दिन आप की तारीखी ज़िन्दगी में आप की नेक नामी की यादगार बन जाएगा की आप के तदब्बुर से एक बहुत ही ख़ौफ़नाक और ख़ूनी लड़ाई टल गई उतबा बा ज़ाते खुद बहुत ही मुदब्बिर और नेक नफ़्स आदमी था | इस ने बा ख़ुशी इस मुखलिसना मश्वरे को कबूल कर लिया मगर इस मुआमले में अबू जहिल की मंज़ूरी भी ज़रूरी थी | चुनांचे हकिम बिन हिज़ाम जब उतबा बिन रबीआ का ये पैगाम ले कर अबू जहिल के पास गए तो अबू जहिल की रगे जहालत भड़क उठी और उसने एक खून खौला देने वाला ताना मारा और कहा की हाँ हाँ! में खूब समझता हूँ की उतबा की हिम्मत ने जवाब दे दिया चूँकि उस का बेटा हुज़ैफ़ा मुस्लमान हो कर इस्लामी लश्कर के साथ आया है इस लिए वो जंग से जी चुराता है ताकि उस के बेटे पर आंच न आए |

फिर अबू जहिल ने इसी पर बस नहीं किया बल्कि अम्र बिन अल हज़्मी मकतूल को बुला कर कहा की देखो तुम्हारे मकतूल भाई अम्र बिन अल हज़्मी के खून का बदला लेने की सारी इस्कीमे खत्म हो जा रही हैं क्यूं की हमारे लश्कर का सिपाह सालार उतबा बुज़दिली देखा रहा है ये सुनते ही आमिर बिन अल हज़्मी ने अरब के दस्तूर के मुताबिक अपने कपडे फाड़ डाले और अपने सर पे धूल डालते हुए “व उमराह व उमराह” का नारा लगाना शुरू कर दिया इस कार्रवाई ने कुफ्फारे कुरेश की तमाम फौज में आग लगा दी और सारा लश्कर “खून का बदला खून” के नारो से गूंजने लगा और हर सिपाही जोश में आपे से बाहर हो कर जंग के लिए बेकरार हो गया उतबा ने जब अबू जहिल का ताना सुना तो वो भी गुस्से में भर गया और कहा की अबू जहिल से कह दो मैदाने जंग बताएगा की बुज़दिल कौन है? ये कह कर लोहे की टोपी तलब की मगर उस का सर इतना बड़ा था के कोई टोपी उस के सर पर ठीक नहीं बैठी तो मजबूरन उस ने अपने सर पर कपड़ा लपेटा और हथियार पहन कर जंग के लिए तैयार हो गए |

मुजाहिदीन की सफ आरए

17, रमज़ानुल मुबारक सं. 2, हिजरी जुमे के दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुजाहिदीने इस्लाम को सफ बंदी का हुक्म दिया | दस्ते मुबारक में एक छड़ी थी उस के इशारे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सफों को दुरुस्त फरमा रहे थे की कोई शख्स आगे पीछे न रहने पाए और ये भी हुक्म फरमा दिया की कोई शख्स भी सिर्फ ज़िक्रुल्लाह के अलावा शोरो गुल न करे | ऐन ऐसे वक़्त में की जंग का नक्कारा बजने वाला ही है दो ऐसे वाक़िआत दर पेश हो गए जो निहायत ही इबरत ख़ेज़ और बुहत ज़्यादा नसीहत अमेज़ हैं|

शिकमे मुबारक का बोसा

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी छड़ी के इशारे से सफें सीधी फरमा रहे थे की आप ने देख की हज़रते सवाद अंसारी रदियल्लो अन्हु का पेट सफ से कुछ आगे निकला हुआ था आप ने अपनी छड़ी से उन के पेट पर कोंचा दे कर फ़रमाया की “ऐ सवाद सीधे खड़े हो जाओ” हज़रते सवाद अंसारी रदियल्लो अन्हु ने कहा की या रसूलल्लाह! आप ने मेरे पेट पर छड़ी मारी है मुझे आप से इस का बदला लेना है | ये सुनकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना पैरहन शरीफ उठा कर फ़रमाया की ऐ सवाद ! लो मेरा शिकम हाज़िर है तुम इस पर छड़ी मार कर मुझ से अपना बदला ले लो |हज़रते सवाद रदियल्लो अन्हु ने दौड़कर आप के शिकम मुबारक को चूम लिया और फिर निहायत ही वालिहाना अंदाज़ में इंतिहाई गर्म जोशी के साथ आप के जिसमे अक़दस से लिपट गए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की ऐ सवाद! तुमने ऐसा क्यूं किया? अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! में इस वक़्त जंग की सफ में अपना सर हथेली पर रख कर खड़ा हूँ शायद मोत का वक़्त आ गया हो, इस वक़्त मेरे दिल में तमन्ना ने जोश मारा की काश! मरते वक़्त मेरा बदन आप के जिसमे पाक से छु जाए ये सुनकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते सवाद अंसारी रदियल्लो अन्हु के इस ज़ज़बये मुहब्बत की कदर फरमाते हुए उन के लिए खेरो बरकत की दुआ फ़रमाई और हज़रते सवाद अंसारी रदियल्लो अन्हु ने दरबारे रिसालत में माज़रत करते हुए अपना बदला मुआफ कर दिया और तमाम सहाबए किराम हज़रते सवाद अंसारी रदियल्लो अन्हु की इस आशिकाना अदा को हैरत से देखते हुए उन का मुँह तकते रह गए |

अहद की पाबंदी

इत्तिफ़ाक़ से हज़रते हुज़ैफ़ा बिन अल यमान और हज़रते हसील रदियल्लाहु अहुम कहीं से आ रहे थे | रास्ते में कुफ्फार ने इन दोनों को रोका की तुम दोनों बद्र के मैदान में हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मदद करने के लिए जा रहे हो इन दोनों ने इंकार किया और जंग में न होने का अहिद किया चुनांचे कुफ्फार ने इन दोनों को छोड़ दिया जब ये दोनों बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अपना वाक़िआ बयान किया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन दोनों को को लड़ाई की सफों से अलग कर दिया और इरशाद फ़रमाया की हर हर हाल में अहद की पाबन्दी करेंगें हमको सिर्फ खुदा की मदद दरकार है |

नाज़रीन किराम ! गौर कीजिए दुनिया जानती है की जंग के मोके पर ख़ुसूसन ऐसी सूरत में जब की दुश्मनो के अज़ीमुश्शान लश्कर का मुकाबला हो एक एक सिपाही कितना क़ीमती होता है मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी कमज़ोर फौज को दो बहादुर और जाँबजा मुजाहिदों से महरूम रखना पसंद फ़रमाया मगर कोई मुस्लमान किसी काफिर से भी बद अहदी और वादा खिलाफी करे इस को गवारा नहीं फ़रमाया |अल्लाहु अकबर! ऐ अक्वामे आलम के बादशाहों! लिल्लाह मुझे बताओ की क्या तुम्हारी तारीखे ज़िन्दगी के बड़े बड़े दफ्तरों में कोई ऐसा चमकता हुआ वर्क पेज भी है? ऐ चाँद व सूरज की दूरबीन निगाहों! तुम खुदा के लिए बताओ! क्या तुम्हारी आँखों ने कभी भी सफ्हे हस्ती पर पाबंदिए अहद की कोई ऐसी मिसाल देखि है? खुदा की कसम मुझे यक़ीन है की तुम इस के जवाब में “नहीं” के सिवा कुछ भी नहीं कह सकते |

दोनों लश्कर आमने सामने :- अब वो वक़्त है की मैदाने बद्र में हक्को बातिल की दोनों सफें एक दूसरे के सामने खड़ी है | अल्लाह पाक कुरआन मशरिफ में ऐलान कर रहा है पारा 3, सूरह आले इमरान आयत 13, में:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- जो लोग बाह्म लड़े उन में तुम्हारे लिए इबरत का निशान है एक खुदा की राह में लड़ रहा था और दूसरा मुन्किरे खुदा था |
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुजाहिदीने इस्लाम की सफ बंदी से फारिग हो कर मुजाहिदीन की करार दाद के मुताबिक़ अपने उस छप्पर में तशरीफ़ ले गए जिस को सहाबए किराम ने आप की नशिश्त के लिए बनाया था | अब इस छप्पर की हिफाज़त का सवाल बेहद अहम था क्यूं की कुफ्फारे कुरेश के हमलो का अस्ल निशान हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल ही की ज़ात थी किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी की इस छप्पर का पहरा दे लेकिन इस मोके पर भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के यारे गार हज़रते सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहु अन्हु ही की किस्मत में ये सआदत लिखी थी की वो नग्गी तलवार ले कर इस झोपड़ी के पास डटे रहे और हज़रते साद बिन मुआज़ रदियल्लाहु अन्हु भी चंद अंसारियों के साथ इस छप्पर के पास पहरा देते रहे |

दुआए नबवी

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस नाज़ुक घड़ी में जनाबे बारी से लौ लगाए गिरया व ज़ारी के साथ खड़े हो कर हाथ फैलाए ये दुआ मांग रहे थे की “खुदा वंद! तू ने मुझ से जो वादा फ़रमाया है आज उसे पूरा फरमा दे | आप पर इस क़द्र रिक़्क़त और महवियत तारी थी की जोशे गिरया में चदारे मुबारक दोशे अनवर से गिर गिर पड़ती थी मगर आप को खबर नहीं होती थी, कभी आप सजदे में सर रख कर इस तरह दुआ मांगते की “इलाही! अगर ये चंद नुफ़ूस खत्म हो गए तो फिर क़यामत तक रूए ज़मीन पर तेरी इबादत करने वाले न रहेंगें |

हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु आप के यारे गार थे | आप को इस तरह बे करार देख कर उन के दिल का सुकून व करार जाता रहा और उन पे रिक़्क़त तारी हो गई और उन्हों ने चादरे मुबारक को उठा कर आप के मुक़द्दस कन्धों पे रख दिया और आप का दस्ते मुबारक थाम कर भर्राई हुई आवाज़ में बड़े अदब के साथ अर्ज़ किया की “हुज़ूर! अब बस कीजिए खुदा ज़रूर अपना वादा पूरा फरमाएगा | अपने यारे गार सिद्दीक़े अकबर जांनिसार की बात मान कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुआ खत्म कर दी और आप की ज़बाने मुबारक पर इस आयत का विर्द जारी हो गया पारा 27, सूरह कमर आयत 45, में है:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- अन करीब (कुफ्फार की) फौज को शिकस्त दे दी जाएगी और वो पीठ फेर कर भाग जाएंगें | आप इस आयत को बार बार पढ़ते रहे जिस में फ़तेह मुबीन की बशरत की तरफ इशारा था |

लड़ाई किस तरह शुरू हुई?

जंग की इब्तिदा इस तरह हुई की सब से पहले आमिर बिन अल हज़्मी जो अपने मकतूल भाई अम्र बिन अल हज़्मी के खून का बदला लेने के लिए बे करार था जंग के लिए आगे बड़ा उस के मुकाबले के लिए हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु के गुलाम हज़रते महजआ रदियल्लाहु अन्हु मैदान में निकले और लड़ते हुए शहादत से सरफ़राज़ हो गए | फिर हज़रते हारिस बिन सुराका अंसारी रदियल्लाहु अन्हु होज़ से पानी पी रहे थे की अचानक उन को कुफ्फार का एक तीर लगा और वो शहीद हो गए |

हज़रते उमैर का शौके शहादत

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब जोशे जिहाद का वाइज़ फरमाते हुए ये इरशाद फ़रमाया की मुसलमानो! उस जन्नत की तरफ बढ़ो जिस की चौड़ाई आसमानो ज़मीन के बराबर है तो हज़रते उमैर बिन अल हमाम अंसारी रदियल्लाहु अन्हु बोल उठे की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! क्या जन्नत की चौड़ाई ज़मीनो आसमान के बराबर है? इरशाद फ़रमाया की हाँ ये सुन कर हज़रते उमैर रदियल्लाहु अन्हु ने कहा! “वाह व” आप ने मालूम किया की ऐ उमैर! तुम ने “वाह व” किस लिए कहा? अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! फ़क़त इस उम्मीद पर की में भी जन्नत में दाखिल हो जाऊं | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुश खबरी सुनाते हुए इरशाद फ़रमाया की ऐ उमैर! तू बेशक जन्नती है | हज़रते उमैर रदियल्लाहु अन्हु उस वक़्त खजूरें खा रहे थे ये बशर्त सुनते ही मारे ख़ुशी के खजूरें फेंक कर खड़े हो गए और एक दम कुफ्फार के लश्कर पर तलवार ले कर टूट पड़े और जांबाज़ी के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए | (सही मुस्लिम शरीफ)

रेफरेन्स (हवाला)

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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