हज़रते सय्यदना अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 1)

मुश्किलें हल कर शहे मुश्किल कुशा के वास्ते 

कर   बलाएं   रद   शहीदे  करबला  के  वास्ते 

इस्म मुबारक

अमीरुल मोमिनीन हज़रते सय्यदना अली शेरे खुदा मुश्किल कुशा फातेह खैबर हैदरे कररार रदियल्लाहु अन्हु, आप का इसमें गिरामी “अली” और कुन्नियत “अबुल हसन” अबू तुराब, और लक़ब मुरतज़ा, असदुल्लाह, शेरे खुदा, और हैदरे कर रार, है । 

वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद अबू तालिब, और दादा अब्दुल मुत्तलिब हैं, हुज़ूर सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हकीकी यानि सगे चचा थे । 

वालिदा माजिदा

आप की वालिदा माजिदा यानि आप की अम्मी जान का नाम “फात्मा बिन्ते असद” “फातिमा बिन्ते असद बिन हाशिम बिन अब्दे मुनाफ था” ये पहली हाशिमियाँ है के जिन के शिकम मुबारक से हाश्मी पैदा हुए जो इस्लाम लाईं और जिन्हों ने मक्का शरीफ से मदीना मुनव्वरा को हिजरत फ़रमाई इन की नमाज़े जनाज़ा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पढ़ी और अपनी कमीस मुबारक से कफ़न पहनाया और उन की लहिद (कब्र) खोदी और उससे मिटटी निकाली और खुद बा नफ़्से नफीस इन की कब्र में लेटे ताके इस से कब्र में आसानी हो और जन्नत के कपड़े इन्हें पहनाए जाएं । 

शिकमे मादर की करामतें

हज़रते सय्यदना अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु जब शिकमे मादर यानि अपनी माँ की पेट में थे तो आप की वालिदा माजिदा अजीब ख्वाब देखती रहीं कभी वो देखती के नूरानी शक्ल के कुछ लोग आये हैँ और मुझे खुश खबरि सुना रहे हैँ और जब तक आप शिकम (पेट) में रहे अजीब फरहत महसूस करती थीं और फरमाती हैं : जब कभी में किसी बुत को सजदा करने का क़स्द (इरादा) करती थीं तो मेरे शिकम में इस ज़ोर का दर्द शुरू हो जाता था के में सख्त तकलीफ महसूस करने लगतीं थीं यहाँ तक के में सजदा कर ने का इरादा ही छोड़ देती थीं । 

आप की विलादत (पैदाइश) मुबारक

आप की विलादत बा सआदत बरोज़ जुमा मुहर्रामुल हराम या रजाबुल मुरज्जब की तेराह 13, तारीख वाकिअए फील से तीस साल के बाद मक्का शरीफ में हुई, 15, अक्टूबर 599, ईस्वी को, आप की वालिदा माजिदा फरमाती हैँ : जब आप की पैदाइश हुई तो तीन दिन तक दूध ही नहीं पिया जिस की वजह से घर के अंदर मायूसी छा गई तो इस की खबर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक पहुंची आप तशरीफ़ लाए और हज़रते सय्यदना अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु को अपनी आग़ोशे रहमत में उठा कर प्यार मुहब्बक फ़रमाया और साथ ही अपनी ज़बान मुबारक हज़रते सय्यदना अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के दहन (मुँह) में डाली, हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ज़बान मुबारक को चूसने लगे और इस के बाद दूध भी पीने लगे । हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के सिर्फ पांच साल अपने वालिदैन के ज़ेरे साया परवरिश पाने के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी आग़ोशे रहमत में जगह अता की, और अपने सायाए रहमत में रख कर खुद इन की तरबियत फरमाने लगे, यहाँ तक इन की उम्र शरीफ दस 10, साल की हो गई । 

आप का हुलिया मुबारक

हज़रते अली शेरे खुदा कर्रा मल्लाहु तआला वजहहुल करीम का क़द, मीयाना बीचा का था, रंग मुबारक गंदुम (गेहूं) जैसा था, दूर से सब्ज़ रंग और करीब से सुर्ख व सफ़ेद मालूम होते थे, चेहरा मुबारक निहायत खूब सूरत और चौदवी रात के चाँद की तरह रोशन था, 

ऑंखें बड़ी बड़ी सियाह रोशन मिस्ल चांदी की सुराही के जैसी, कन्धा कन्धों की हड्डियां चौड़ीं चौड़ीं मिस्ल शेर के जैसी, दाढ़ी मुबारिका तवीलो अरीज़ थी के दोनों कन्धों तक पहुंची हुई थी, बदन फरबा, और बदन पर बाल कसरत से थे, बाजूं कलाइयां गोश्त से पुर, मज़बूत ज़बरदस्त और ज़ोर आवर ऐसे के जिस को पकड़ लेते वो सांस न ले सकता । 

जिस्म मुबारक

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिस्म मुबारक की तरह गठा व कसा हुआ था । 

राने

पुर गोश्त और पिंडलियाँ पतली थीं और मारिका कारज़ार जंग में बहुत ही चुस्ती फुर्ती से चलते, “दिल” आप का बहुत कवि मज़बूत था किसी दुश्मन की कुछ परवा न रखते और अपने इरादा को कर गुज़र ने में कभी न डरते और जो आप का मुक़ाबिल होता उस पर आप ही ग़ालिब आते शिद्द्त की सरदी और शिद्द्त की गर्मी दोनों आप के वास्ते बराबर थीं । अगर चाहते गर्मियों में जाड़े का लिबास पहन लेते और जाड़े में गर्मियों का लिबास ज़ेब तन फरमा लेते । 

नसब नामा शरीफ

आप का नसब नामा शरीफ इस तरह है : अली बिन अबी तालिब, बिन अब्दुल मुत्तलिब, बिन हाशिम, बिन अब्दे मुनाफ, बिन कुसई, बिन किलाब, बिन मुर्राह, बिन काब, बिन लुई, बिन ग़ालिब, बिन फुहर, बिन मालिक, बिन नज़र, बिन किनाना,

आप की कुन्नियत “अबू तुराब” की वजह तस्मिया

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की कुन्नियत “अबू तुराब” की वजह तस्मिया क़ुतुब सेर में यूं मन्क़ूल है के हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु एक बार ज़ौजा मुहतरमा हज़रते सय्यदा फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा से नाराज़ हो गए और मस्जिद में जा कर फर्श पर लेट गए जिस से आप के जिस्म मुबारक को मिटटी लग गई, इस दौरान हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी बेटी से मिलने गए तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पता चला के हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु नाराज़ हो कर मस्जिद में चले गए हैं, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप को लेने के लिए मस्जिद में पहुंचे तो आप सो रहे थे, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप को मुख़ातब कर के फ़रमाया “ऐ अबू तुराब उठ” आप ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बात सुनी तो उठ कर खड़े हुए, चुनांचे उसी दिन से हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की कुन्नियत “अबू तुराब” मशहूर हो गई |

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु : की कुन्नियत “अबू तुराब” के सिलसिले में एक और रिवायत क़ुतुब सेर में ये मौजूद है के ग़ज़वए अशीरा के सफर में जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को आराम करने के लिए एक नखलिस्तान में आराम करने का हुक्म दिया तो हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु एक पेड़ के नीचे जा कर लेट गए सहराई मिटटी आप के जिस्म मुबारक से लग गई, इस दौरान हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप को तलाश करते हुए तशरीफ़ लाए और यूं सोता हुआ देख कर फ़रमाया “ऐ अबू तुराब उठो” चुनांचे आप फ़ौरन उठ गए, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “ऐ अबू तुराब” में तुझे ये न बताऊँ के सब से ज़ियादा बद बख्त कौन है? हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया बताइए, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया एक वो शख्स जिस ने हज़रते सालेह अलैहिस्सलाम की ऊंटनी की कूंचे काटीं और दूसरा वो शख्स जो तेरा क़त्ल करेगा, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ये फरमाते जाते और हज़रते अली, के चेहरे मुबारक पर हाथ फेरते थे, चुनांचे उसी दिन के बाद हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की कुन्नियत “अबू तुराब” मशहूर हुई |  

मज़हबे इस्लाम में आप का दाखिला

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अपने प्यारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म फ़रमाया : सब से पहले आप अपने खानदान वालों को ईमान की दावत पेश कीजिए और उन के अफ़आलो अख़लाक़ की इस्लाह कीजिए, मशीयते रब्बानी के मुताबिक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उम्मुल मोमिनीन हज़रते ख़दीजातुल कुबरा रदियल्लाहु अन्हा और अपने जांनिसार साथी हज़रते सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु व अपने बिरादरे अज़ीज़ हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के सामने इस्लाम पेश फ़रमाया जिन को सुन कर तमाम खुश नसीब उसी वक़्त मुसलमान हो गए । मुअर्रिख़ीन व मुहद्दिसीन किराम का इस बात पर इत्तिफ़ाक़ है की बड़ी उम्र वालों में हज़रते सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु, छोटी उम्र वालों में हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु, उस वक़्त आप की उम्र 13, या नो 9, या आठ 8, साल की थी और औरतों में सब से पहले हज़रते ख़दीजातुल कुबरा रदियल्लाहु अन्हा ने इस्लाम कबूल फ़रमाया।

आप के कमालात व ख़ौफ़े खुदा

हज़रते अल्लामा इब्ने हजर मक्की रहमतुल्लाह अलैह ने “ज़वाजिर” में तहरीर किया है के हज़रते अमीर मुआविआ रदियल्लाहु अन्हु ने ज़ीरार से बहुत ही ज़िद के साथ कहा : तुम हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की सिफ़ात बयान करो यहाँ तक के हज़रते अमीर मुआविआ रदियल्लाहु अन्हु के इसरार कर ने पर उन्हों ने बयान करना शुरू किया के :

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु का इल्म वसी बहुत ज़ियादा था, आप आरिफ़े बिल्लाह थे, दीन की ताईद में सख्त थे, कलाम आप का हक़ के बातिल से जुदा करता था, इंसाफ के साथ हुक्म करते थे दुनिया की ज़ेबो ज़ीनत आप को पसंद न थी, रात और उस की तारीकी से मुहब्बत रखते थे, अक्सर ख़ौफ़े खुदा से रोया करते थे और बसा औकात मुतफक्किर रहते थे हमेशा अपने नफ़्स को मलामत करते थे, मोटा कपड़ा पसंद फरमाते थे जो खाना मौजूद होता पसंद करते थे, ज़ायका और लज़्ज़त का ख़याल नहीं फरमाते थे, हम लोगों में मिस्ल हमारे रहते थे और अपने मरातिब का कुछ लिहाज़ न करते थे जो शख्स बुलाता था उस के पास जाते थे और हम लोग बावजूद कमाले तक़र्रूब और नज़दीकी के आप से बा वजहे कमाले हैबत के कलाम नहीं कर सकते थे, दीनदारों की अज़मत फरमाते थे, गरीब मुहताज को दोस्त रखते थे, कोई ज़बरदस्त आदमी अगर ना हक पर होता तो उस को ये उम्मीद न होती की आप हमारी कुछ रियाअत करेंगें । किसी कमज़ोर हक़ दार को ये सोच कर किसी तरह मायूसी न होती के आप मेरे ज़ोफ़ कमज़ोरी की वजह से मेरा कुछ ख़याल न करेंगें और कसम खा कर ज़िरार ने बयान किया के देखा में ने हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु को पिछली रात में जब के सियाही इस की तमाम आलम में फैली थी और सितारे छुप गए थे की उस वक़्त आप मस्जिद की महराब में दाढ़ी पकड़े थे और इस तरह बे चैन थे जैसे किसी के सांप वगैरा ने काट लिया हो और वो बे चैन हो और आप इस तरह रोते थे जैसे कोई गमगीन रोता है और कहते थे रब्बना रब्बना और अल्लाह पाक की जनाब में आजिज़ी करते, और फरमाते थे : ऐ दुनिया ऐ दुनिया मुतवज्जहे हुई तू मेरी तरफ, या मुश्ताक हुई। दूर हो, दूर हो, किसी और के फरेब दे में ने तुझ के तीन तलाकें बाइन दीं यानि में तुझ से किनारा कशी करता हूँ क्यों की तेरी उम्र कम है और ऐश तेरा ज़लील और खौफ तुझ में बहुत है और महसूस करते थे । ये सुन कर हज़रते अमीरे मुआविया रदियल्लाहु अन्हु की आँखों से आंसूं बहने लगे और दाढ़ी तक बह आए और इस तरह रूए के उस को रोक न सके आखिर आस्तीन से पोछने लगे और तमाम हाज़रीन पर यही हालत तारी हो गई फिर कहा हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु ने रहम फरमाए अल्लाह पाक हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु पर कसम खुदा की वो ऐसे ही थे जैसा की तुम ने बयान किया ।

आप की फ़ज़ीलतें

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु आप सिलसिलए आलिया क़ादरिया रज़विया के दूसरे इमामे फसीह व शैख़े तरीकत हैँ, और खुल्फ़ए राशिदीन में चौथे खलीफा हैँ, आप के फ़ज़ाइलो मनाक़िब में बेशुमार अहादीस मौजूद हैँ यहां पर चंद नमूने पेश करते हैँ :

हज़रते सय्यदना हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ाली शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह “अह्याउल उलूम” में लिखते हैँ की जब शबे हिजरत हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बिस्तर मुबारक पे सो रहे थे, अल्लाह पाक ने हज़रते जिब्रील व मिकाइल अलैहिमुस्सलाम को वही भेजी के में ने तुम दोनों को एक दूसरे का भाई बनाया है और तुम दोनों में एक की उम्र दूसरे से ज़े ज़ियादा बनाई है तुम दोनों में से कोई है की अपनी उम्र का हिस्सा अपने दूसरे भाई के दे दे? मगर किसी ने अपनी उम्र की कमी को गवारा न किया, अल्लाह पाक ने फ़रमाया तुम दोनों मिस्ल अली के हर गिज़ नहीं हो, में ने उस को अपने हबीब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का भाई बनाया है देखो वो अपने भाई के बिस्तर पर सो रहा है और अपनी ज़िन्दगी को इन पर फ़िदा कर रहा है, तुम दोनों ज़मीन पर जा कर इन को उन के दुश्मनो से बचाओ । हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के सिर हाने और हज़रते मिकाइल अलैहिस्सलाम पाईंती में उतरे और तमाम रात इन की हिफाज़त करते रहे।  

हज़रते इब्ने अब्बास रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की एक बार हज़रत हसनैन करीमैन रदियल्लाहु अन्हुमा बीमार हो गए, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु और हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु को साथ ले कर उन की इयादत को तशरीफ़ लाए सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु से कहा “या अबल हसन” ! आप इन नूर चश्मों के वास्ते नज़र मानते तो बेहतर होता चुनांचे हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु और हज़रते सय्यदह फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा और आप की कनीज़ फ़िज़ा ने हज़रते हसनैन की सेहत पर तीन रोज़े रखने की नज़र मानी, अल्लाह के फ़ज़्लो करम से दोनों शहज़ादे सेहत याब हो गए, तो सब ने मिल कर रोज़े रखे घर का आलम था की गल्ले की किस्म से कुछ भी घर में मौजूद न था जो इफ्तार के लिए काम आता, हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने शमऊन यहूदी खैबरी से तीन पैमाना जो क़र्ज़ लिया था और एक पैमाना हज़रते सय्यदह फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा ने पीस कर पांच रोटियां आदमियों की तादाद के मुताबिक पकाईं । जब इफ्तार के लिए सब अपने अपने आगे रोटी ले कर बैठे इतने में एक साइल ने आ कर सदा बुलंद की अस्सलामु अलईकुम या अहले बैते रसूल में मुसलमान मिस्कीनों में से एक मिस्कीन मुसलमान हूँ मुझे कुछ खिला दो, खुदा तुम्हे जन्नत की नेमतों में से खिलाएगा, फ़क़ीर की आवाज़ पर सब ने अपना अपना खाना उसे बख्श दिया और पानी से इफ्तार कर के सो गए और इसी पानी पर दिन भर रोज़ा रखा जब रात हुई और इफ्तार के लिए खाना पकाया गया तो एक साइल ने आ कर सदा बुलंद की, में यतीम हूँ उस की आवाज़ पर सब ने अपना अपना खाना उस के हवाले कर दिया और पानी से इफ्तार कर के सो गए चुनांचे इसी तीसरे दिन भी, एक कैदी ने आ कर आवाज़ लगाई और इस कैदी को सब ने अपना अपना खाना दे दिया और सिर्फ पानी पी कर रोज़े की नियत करली सुबह को हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु हज़रते हसनैन का हाथ पकड़े हुए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुए, उस वक़्त दोनों शहज़ादे बेद की लकड़ी की तरह काँप रहे थे, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन को देख कर फ़रमाया : इन की ये क्या हालत है जिस की वजह से मुझे तकलीफ हो रही है? फिर हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के घर तशरीफ़ ले गए हज़रते सय्यदह फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा को मेहराब में देखा की आप का शिकम मुबारक बिलकुल ही पस्त है और आँखें कमज़ोर हो गईं है, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ये हालत देख कर निहायत मलाल हुआ और आप के कल्बे नाज़ुक पर इन हज़रात की तकलीफ का काफी असर हुआ इसी वक़त हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए और ये आयते करीमा ले कर नाज़िल हुए अल्लाह पाक आप को अहले बैत की निस्बत के मुबारक बाद देता है :

तर्जुमाए कंज़ुल ईमान :- वो जो अपने माल खैरात करते हैँ रात में और दिन में छुपे और ज़ाहिर इन के लिए इन का नेक बदला है इन को  रब के पास उन को कुछ न अंदेशा हो न कुछ गम । 

हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है के हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के पास सिर्फ चार दिरहम थे आप ने एक दिरहम रात को खुदा की राह में दे दिया और एक दिरहम पोशीदा और एक ज़ाहिर तोर पर दिया तो अल्लाह पाक ने आप की शान में ये आयात नाज़िल  फ़रमाई ।

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु का दुशमन मुनाफिक होगा

हज़रते ज़र बिन हबीश से रिवायत है की हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया : कसम है उस की दाने को फाड़ कर दरख्त (पेड़) निकाला और जान को पैदा किया हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझ से फ़रमाया था के ऐ अली ! तुम से वही मुहब्बत करेगा जो मोमिन होगा और वही बुज़ग रखेगा जो मुनाफिक होगा, 

हज़रते इमरान बिन हसीन से रिवायत है के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अली, मेरे हैँ और में इन का हूँ और वो तमाम मोमिनो के महबूब प्यारे हैँ । 

सहल बिन सअद से रिवायत है के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जंगे खैबर के दिन इरशाद फ़रमाया : कल ये झंडा ऐसे शख्स को दूंगा जिस के हाथों पर अल्लाह पाक फतह देगा वो शख्स अल्लाह से और उस के रसूल से मुहब्बत रखता है और अल्लाह और उस का रसूल उससे मुहब्बत रखता है । फिर जब सुबह हुई तो लोग बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए उस वक़्त तमाम अपने दिलों में ये उम्मीद लिए हुए थे के झंडा इन के हाथ में दिया जाएगा मगर आप ने पूछा के अली बिन अबी तालिब, कहाँ हैँ? लोगों ने कहा उन की आँखों में आशोबे चश्म है आप ने फ़रमाया उन के बुला लाओ चुनांचे आप के बुलाया गया । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन की आँखों में अपना लुआब दहन लगा दिया तो वो अच्छे हो गए गोया के उन्हें कोई तकलीफ थी ही नहीं फिर आप ने उन को झंडा दिया । 

आप का अख़लाक़ो किरदार

हज़रत अली मुरतज़ा रदियल्लाहु अन्हु की मुक़द्दस ज़िंदगी अख़्लाक़िआत का हसींन मुरक़्क़ा है क़ुदरत ने आपको हुस्न का पैकर बनाया था “उस्दुल गाबा” की रिवायत है, की आप ने एक इम्तियाज़ी हैसियत के मालिक होने के बावजूद कभी दूसरों से अपने को मुम्ताज़ तसव्वर नहीं किया हमेशा खंदा पेशानी और इंकिसारी की ज़िंदगी बसर करते रहे, आम लोगो की तरह घर का काम भी कर लिया करते थे अपने हाथ से फटे हुए कपड़ो में पैबंद भी लगा लिया करते थे सरकार दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ंदक़ खोदने का हुक्म दिया तो सय्यदना अली मुरतज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने एक मामूली मज़दूर की तरह काम लिया और खुद ही मिटटी उठा कर बाहर फेंकते थे और अगर कोई सामने बड़ा पत्थर आ जाता तो अपनी खुदा दाद कुव्वत से उस को रेज़ा रेज़ा कर देते थे ।   

जूदो सखावत

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु हलीमो करीम थे, आप कभी किसी के ऊपर नाराज़ नहीं होते थे अगर किसी से कोई गलती भी हो जाती तो रहमो करम से दर गुज़र फरमा देते थे, हज़रते अबू ज़र गिफारी रदियल्लाहु अन्हु का बयान है के हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु बड़े ऊलुल अज़्म, बुलंद जिहत सच्चाई बयान करने वाले, नर्म तबीअत और खुश तबअ थे । गरीबों को नवाज़ने का जज़्बा आप के दिल में समंदर की तरह लहरे मारा करता था, आप अपने घर से दूर जा कर गरीबो, मिस्कीनों, मुहताजों, कमज़ोरों और अपाहिजों की खिदमत और इन सब की मदद फ़रमाया करते थे । मरीज़ों की खूब देख भाल भी करते थे ।

आप की बहादुरी

हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैँ के हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु लोगों में सब से ज़ियादा बहादुर हैँ इसी वजह से लोग उन्हों “अशजा उन्नास” (लोगों में सब से ज़ियादा बहादुर कहते हैं) आप के हैरत अंगेज़ शुजाअत मंदाना कारनामो को अगर जमा किया जाए तो एक ज़खीम किताब तैयार हो जाए । 

हज़रते अबू ज़र गिफारी रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की हिजरत से पहले जब कुरेशे मक्का ने मआज़ अल्लाह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़त्ल करने की इस्कीम बनाई तो अल्लाह पाक ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हुक्म दिया के आप हिजरत कर जाएं हुक्मे इलाही पा कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हिजरत की तैय्यारी फ़रमाई और हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु को कुछ अमानते सौंप कर के अपने बिस्तरे नुबुव्वत पर सोने का हुक्म दिया, हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने इस खतरनाक माहौल में अपने नबी पाक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म पर अपनी जान को बारगाहे रिसालत में नज़र कर के ज़िन्दगी की बे मिसाल क़ुरबानी पेश फ़रमाई, खुद आप का बयान है के मुझे ऐसी नींद ज़िन्दगी के किसी हिस्से में नहीं आई क्यूंकि में रहमते आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़मानत पर सोया था के इन तमाम सामानो के दे कर तुम्हे मुझ से फिर मुलाकात करना है । 

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु : ग़ज़वए तबूक के सिवा तमाम गज़्वात में हाज़िर रहे और बड़े बड़े सूरमाओं को मोत की घाट उतारा एक दिन में आप और ज़ुबेर बिन अव्वाम ने सात सौ आदमी बनी क़ुरैज़ा के क़त्ल किए ।  (मदारिजुन नुबुव्वत)

हज़रते अबू राफे रदियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैँ के जंगे खैबर में जब घमसान की जंग होने लगी तो हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की ढाल कट कर गिर पड़ी जोशे जिहाद में आप आगे बड़े खैबर के किले का फाटक उखाड़ डाला और उस के किवाड़ को ढाल बना कर इस पर दुश्मनो की तलवारों को रोकते थे ये दरवाज़ा इतना वज़नी था के जंग खत्म होने के बाद चालीस आदमी मिल कर भी उस को नहीं उठा सकते थे ।  

(तारीख़ुल खुलफ़ा, ज़ुर कानि जिल्द 2,)

मुजद्दिदे आज़म सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं :

शेरे शम शीरे ज़न शाहे खैबर शिकन 

परतवे दस्ते क़ुदरत पे लाखो सलाम 

अजीबो गरीब फैसले

ज़र बिन हबीश का बयान है, के दो आदमी सुबह के वक़्त नाश्ते के लिए बैठे एक के पास पांच रोटियां थीं और दूसरे के पास तीन, इतने में एक आदमी इधर से गुज़रा इस ने सलाम किया तो इन दोनों ने इस को भी नाश्ते में शामिल कर लिया और इन आठों रोटियों के इन तीनो अफ़राद ने मिल कर खा लिया खाने के बाद इस तीसरे आदमी ने जाते वक़्त आठ दिरहम दिए और कहा, चूँकि में ने तुम्हारा खाना खाया है इस लिए ये इस की कीमत है इसे तुम दोनों आपस में बाँट लो इन दोनों में बटवारे पर झगड़ा हो गया । पांच रोटियों वाले ने कहा, पांच दिरहम में लूँगा और तीन तुम्हारे हुए, तीन रोटियों वाले ने कहा, में पांच का मुआमला नहीं आधा आधा हिस्सा बांटूंगा गरज़ ये के ये मुकद्दमा हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के पास पंहुचा । 

आप ने पूरे मुक़द्दिमे को सुनने के बाद तीन रोटियों वाले से फ़रमाया, तुम्हारा साथी जो कहता है उस को कबूल कर लो क्यूंकि उस की रोटियां ज़ियादा थीं और तुम्हारे हिस्से के जो ये तीन दिरहम देता है वो ले लो इस पर तीन रोटी वाले ने कहा, में आप के इस गैर मुंसिफाना फैसले को कैसे कबूल कर लूं? हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया ये फैसला गैर मुंसिफाना नहीं बल्के तुम्हारे हक में कमी के बजाए इज़ाफ़ा ही है और हकीकत में सिर्फ एक दिरहम तुम को मिलना चाहिए और सात तुम्हारे साथी को, इस पर इस झगड़ालू ने कहा “सुब्हान अल्लाह ये कैसे? ज़रा आप समझा दीजिए । 

आप ने फ़रमाया आठ रोटियों के चौबीस टुकड़े तुम तीनो ने खाए लेकिन ये नहीं कहा जा सकता के किस ने कम और किस ने ज़ियादा खाया, इस लिए अपनी रोटियों के बराबर हिस्से करो तुम्हारी तीन रोटियों के नो टुकड़ों में से जब के तमाम रोटियों के चौबीस टुकड़ों हुए आठ टुकड़े तुम ने खाए और तुम्हारा एक टुकड़ा बाकी बचा और तुम्हारे साथी की पांच रोटियों के पन्द्रा 15, टुकड़े हुए जिस में से उस ने भी चौबीस टुकड़ों में से सिर्फ आठ टुकड़े खाए, उस के सात टुकड़े बाकी बचे यानि मेहमान ने तुम्हारी रोटियों में से एक टुकड़ा और तुम्हारे साथी की रोटियों में से सात टुकड़े खाए, इस लिए तुम्हारे एक टुकड़े के बदले में तुम को एक दिरहम और तुम्हारे साथी को  सात दिरहम मिलने चाहिए, गरज़ ये के तफ्सील से सुनने के बाद इस शख्स ने आप के फैसले के कबूल कर लिया । 

रेफरेन्स हवाला                         

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) तारीख़ुल खुलफ़ा,
(5) शजराए तय्यबा नुरुल अबसार,
(6) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(7) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(8) सीरते हज़रते सय्य्दना अली मुर्तज़ा,
(9) हज़रते अली के सौ 100, वाक़िआत,
(10) खुलफाए राशिदीन,    

   

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