हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 5)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 5)

काशानए नुबूवत का मुहासरा

कुफ्फारे मक्का ने अपने पिरोगिराम के मुताबिक काशानए नुबूवत को घेर लिया और इन्तिज़ार करने लगे की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सो जाएं तो इन पर कातिलाना हमला किया जाए | उस वक़्त घर में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास सिर्फ अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु अन्हु थे | कुफ्फारे मक्का अगरचे रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बद तरीन दुश्मन थे | मगर इस के बावजूद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास अमानत रखते थे | चुनांचे उस वक़्त भी बहुत सी अमानते काशानए नुबूवत में थीं | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया की तुम मेरी सब्ज़ रंग की चादर ओढ़ कर मेरे बिस्तर पर सो जाओ और मेरे चले जाने के बाद तुम कुरैश की तमाम अमानते इन के मालिकों को सौंप कर मदीने चले जाना |

ये बड़ा ही ख़ौफ़ नाक और बड़े सख्त खतरे का मौका था हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु को मालूम था की कुफ्फारे मक्का हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़त्ल का इरादा कर चुके हैं मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस फरमान से की तुम कुरैश की सारी अमानते लोटा कर मदीने चले आना हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु को यक़ीने कामिल था की में ज़िंदा रहूंगा और मदीने पहुंचूंगा इस लिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बिस्तर जो आज काँटों का बिछोना था, हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु के लिए फूलों की सेज बन गया और आप बिस्तर पर सुबह तक आराम के साथ मीठी मीठी नींद सोते रहे |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने बिस्तर पे हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु को सुला कर एक मुठ्ठी ख़ाक हाथ में ली और सूरह यासीन की शुरू की आयात पढ़ते हुए घर से बाहर तशरीफ़ लाए मुहासरा करने वाले काफिरों के सरों पर खाक डालते हुए उन के मजमे से साफ़ निकल गए | न किसी को नज़र आए न किसी को कुछ खबर हुई | एक दूसरा शख्स जो उस मजमे में नौजूद न था उस ने इन लोगों को खबर दी की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तो यहाँ से निकल गए और चलते वक़्त तुम्हारे सरों पर खाक डाल गए हैं | चुनांचे उन कोर बख्तों ने अपने सरों पे हाथ फेरा तो वाक़ई उन के सरों पे खाक मिटटी और धूल पढ़ी हुई थी |  

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने दौलत खाने से निकल कर मक़ामे “हज़ूरा” के पास खड़े हो गए और बड़ी हसरत के साथ काबा को देखा और फ़रमाया की ऐ शहरे मक्का! तू मुझ को तमाम दुनिया से ज़्यादा प्यारा है अगर मेरी कौम मुझ को तुझ से न निकालती तो में तेरे सिवा किसी और जगह रिहाइश न करता |

हज़रते अबू बक्र से पहले ही करार दाद हो चुकी थी वो भी उसी जगह आ गए और इस ख्याल से की कुफ्फारे मक्का हमारे क़दमों के निशान से हमारा रास्ता पहचान कर हमारा पीछा न करें फिर ये भी देखा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पैर मुबारक ज़ख़्मी हो गए हैं हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने कन्धों पे सवार कर लिया और इस तरह खारदार झाड़ियों और नोक दार पथ्थरों वाली पहाड़ियों को रोंदते हुए उसी रात “गारे सौर” पहुंचे |

हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु पहले खुद गार में दाखिल हुए और अच्छी तरह गार की सफाई की और अपने बदन के कपड़े फाड़ फाड़ कर गार के सभी सूराखों को बंद किया फिर हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम गार के अंदर तशरीफ़ ले गए और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की गोद में अपना सर मुबारक रख कर सो गए | हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु ने एक सूराख को अपनी एड़ी से बंद कर रखा था सूराखों के अंदर से एक सांप ने बार बार यारे गार के पाऊँ में काटा मगर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु जां निसार ने इस ख्याल से पाऊँ नहीं हटाया की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नींद में खलल न पड़े मगर दर्द की शिद्दत से आप के आंसुओं की धार के चंद क़तरात सरवरे कायनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रुखसार यानि चेहरे पे पढ़ गए |जिससे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बेदार हो गए और अपने यारे गार को रोता देख कर बे करार हो गए और पूछा: अबू बक्र! क्या हुआ? अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मुझे सांप ने काट लिया है ये सुन कर हुज़ूर  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़ख्म पे अपना लोआबे दहन लगा दिया जिस से फ़ौरन ही सारा दर्द खत्म हो गया | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तीन रात उस गार में रहे |

हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के जवान बेटे हज़रते अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु रोज़ाना रात को गार के मुँह पर सोते और सुबह सवेरे ही मक्का चले जाते और पता लगाते की कुरेश क्या तदबीरें कर रहे हैं? जो कुछ खबर मिलती शाम को आ कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ कर देते | हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के गुलाम हज़रते आमिर बिन फुहैरा रदियल्लाहु अन्हु कुछ रात गए चरागाह से बकरियां लेकर गार के पास आ जाते और इन बकरियों का दूध दोनों आलम के ताजदार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उन के यारे गार पी लेते थे |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तो गारे सौर में तशरीफ़ फरमा हो गए उधर आप के घर का मुहासरा करने वाले कुफ्फार जब सुबह को मकान में दाखिल हुए तो बिस्तरे नुबुव्वत पे हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु थे | ज़ालिमों ने थोड़ी देर आप से पूछ गछ कर के आप को छोड़ दिया फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तलाश में मक्का और चरों तरफ का चप्पा चप्पा छान मारा यहाँ तक की ढूंढते ढूंढते गारे सौर तक पहुंच गए गार के मुँह पर उस वक़्त अल्लाह पाक की हिफाज़त हो रही थी यानि गार के मुँह पर मकड़ी ने जाला तन दिया था और किनारे पर कबूतरी ने अंडे दे रखे थे ये सब देख कर कुफ्फारे कुरेश आपस में कहने लगे की इस गार में कोई इंसान मौजूद होता तो न मकड़ी जाला तनती न कबूतरी यहाँ अंडे देती कुफ्फार की आहट पा कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु कुछ घबराए और अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! अब हमारे दुश्मन इस क़द्र करीब आ गए हैं की अगर वो क़दमों पर नज़र डालेंगें तो हम को देख लेंगें हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की मत घबराओ! खुदा हमारे साथ है |

इस के बाद अल्लाह पाक ने हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के क़ल्ब पर सुकून इत्मीनान का ऐसा सकीना उतार दिया की वो बिलकुल ही बे खौफ हो गए | चौथे दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक रबीउल अव्वल दो शम्बा के दिन “गारे सौर” से बाहर तशरीफ़ लाए | अब्दुल्लाह बिन उरैक़त जिस को रहनुमाई के लिए किराए पे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नौकर रख लिया था वो करार दाद के मुताबिक दो ऊंटनियां ले कर गारे सौर पे हाज़िर था हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी ऊंटनी पे सवार हुए और एक ऊंटनी पे हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु और हज़रते आमिर बिन फुहैरा रदियल्लाहु अन्हु बैठे और अब्दुल्लाह बिन उरैक़त आगे आगे पैदल चलने लगा और आम रास्ते से हट कर समंदर के किनारे किनारे गैर मारूफ रास्तों से सफर शुरू कर दिया |    

मदीने में आफ़ताबे रिसालत की तजल्लियां

“मदीना शरीफ” का पुराना नाम “यसरब” है | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस शहर में सुकूनत फ़रमाई तो इस का नाम “मदीनतुन्नबी” यानि नबी का शहर पड़ गया | फिर ये नाम मुख़्तसर हो कर “मदीना” मशहूर हो गया | तारीखी हैसियत से ये बहुत पुराना शहर है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब ऐलाने नुबुव्वत फ़रमाया तो इस शहर में अरब के दो क़बीले “ओस” व “ख़ज़रज” और कुछ “यहूदी” आबाद थे |  “ओस” व “ख़ज़रज” कुफ्फारे मक्का की तरह “बुत परस्त” और यहूदी “अहले किताब” थे |  “ओस” व “ख़ज़रज” पहले तो बड़े इत्तिफ़ाक़ो इत्तिहाद के साथ मिल जुल कर रहते थे मगर फिर अरबों की फितरत के मुताबिक़ इन दोनों कबीलों में लड़ाइयां शुरू हो गईं यहाँ तक की आखरी लड़ाई जो तारीखे अरब में “जंगे बआस” के नाम से मश्हूर है इस क़द्र होलनाक ख़ूंरेज़ी हुई की इस लड़ाई में  “ओस” व “ख़ज़रज” के तकरीबन तमाम नामवर बहादुर लड़भिड़ कर कट मर गए और ये दोनों कबीले बेहद कमज़ोर हो गए यहूदी अगरचे तादाद में बहुत कम थे मगर चूँकि वो तालीम याफ्ता थे इस लिए ओस व ख़ज़रज हमेशा यहूदियों की इल्मी बरतरी से मरऊब और उन के ज़ेरे असर रहते थे |

इस्लाम कबूल करने के बाद रसूले रहमत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुक़द्दस तालीम व तरबियत की बदौलत ओस व ख़ज़रज के तमाम पुराने इख़्तिलाफ़त ख़त्म हो गए और ये दोनों कबीले शीरो शकर की तरह मिलजुल कर रहने लगे और चूँकि इन लोगों ने इस्लाम और मुसलमानो की अपने तनमन धन से बे पनाह इमदाद व नुसरत कि इस लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन खुश नसीबों को “अंसार” के मुअज़ज़ लक़ब से सरफ़राज़ फरमा दिया और क़ुरआने करीम ने भी इन जां निसाराने इस्लाम की नुसरते रसूल व इमदादे मुस्लिमीन पर इन खुश नसीबों की मदहो सना का जा बजा खुत्बा पढ़ा और अज़रूए शरीअत अंसार की मुहब्बत और इन की जनाब में हुस्ने अक़ीदत तमाम उम्मते मुस्लिमा के लिए लाज़िमुल ईमान और वाजिबुल अमल क़रार पाई|   

100, सो ऊँट का इनआम

उधर अहले मक्का ने इश्तिहार दे दिया था की जो शख्स मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को गिरफ्तार कर के लाएगा उस को एक सो ऊँट इनआम मिलेगा | इस गिरां क़द्र इनआम के लालच में बहुत से लालची लोगों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तलाश शुरू कर दी कुछ लोग तो मंज़िलों दूर तक तआक़ुब यानि पीछे पीछे गए |

उम्मे मअबद की बकरी

दूसरे दिन मक़ामे कूदैद में उम्मे मअबद आतिका बिन्ते खालिद खुज़ाइया के मकान पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का गुज़र हुआ उम्मे मअबद एक ज़ईफ़ औरत थी जो अपने खेमे में सहन से बैठी रहा करती थी और मुसाफिरों को खाना पानी दिया करती थी | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उससे कुछ खाना खरीदने का इरादा किया मगर उस के पास कोई चीज़ मौजूद नहीं थी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने देखा की उस के खेमे में एक तरफ एक बहुत ही कमज़ोर बकरी है मालूम किया: के ये दूध देती है? उम्मे मअबद ने कहा नहीं आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की अगर तुम इजाज़त दो तो में इस का दूध दोह लूँ उम्मे मअबद ने इजाज़त दे दी और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “बिस्मिल्लाह” पढ़ कर जो उस के थन को हाथ लगाया तो उस का थन दूध से भर गया और इतना दूध निकला की सब लोग सैराब हो गए और उम्मे मअबद के तमाम बर्तन दूध से भर गए ये मोजिज़ा देख कर उम्मे मअबद और उन के खानदान दोनों ने मज़हबे इस्लाम कबूल कर लिया |

रिवायत है की उम्मे मअबद की ये बकरी सं, अठ्ठारा हिजरी तक ज़िंदा रही और बराबर दूध देती रही और हज़रते उम्र रदियल्लाहु अन्हु के दौरे खिलाफत में जब “आमुर्रमाद” का सख्त कहत पड़ा की तमाम जानवरों के थनों का दूध खुश्क हो गया उस वक़्त भी ये बकरी सुबहो शाम बराबर दूध देती रही |

सुराका का घोड़ा जब उम्मे मअबद के घर से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आगे रवाना हुए तो मक्के का एक मशहूर शाह सवार सुराका बिन मालिक जाशम तेज़ रफ़्तार घोड़े पर सवार हो कर पीछा करता हुआ आया | करीब पहुंच कर हमला करने का इरादा किया मगर उस के घोड़े ने ठोकर खाई और वो घोड़े से गिर गया मगर सो ऊंटों का इनआम कोई मामूली चीज़ न थी इनआम के लालच ने उसे दोबारा उभारा और वो हमले की नियत से आगे बड़ा तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआ से पथरीली ज़मीन में उस के घोड़े का पाऊं घुटनो तक ज़मीन में धंस गया सुराका ये मोजिज़ा देख कर खौफ व दहशत से कांपने लगा और अमान! अमान! पुकारने लगा | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दमो करम का समंदर था सुराका की लाचारी और गिरया व ज़ारी पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दरयाए रहमत जोश में आ गया दुआ फ़रमा दी तो ज़मीन ने उस के घोड़े को छोड़ दिया | इस के बाद सुराका ने अर्ज़ किया की मुझ को अम्न का परवाना लिख दीजिए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म से हज़रते आमिर बिन फुहेरा रदियल्लाहु अन्हु ने सुराका के लिए अम्न की तहरीर लिख दी सुराका ने उस तहरीर को अपने तरकश में रख लिया और वापस लोट गया | 

रास्ते में जो शख्स भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे में मालूम करता तो सुराका उस को ये कह कर लोटा देते की मेने बड़ी दूर तक बहुत ज़्यादा तलाश किया मगर आं हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस तरफ नहीं हैं वापस लोट ते हुए सुराका ने कुछ सामाने सफर भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में बतौर नज़राना के पेश क्या मगर आं हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़ाबून नहीं फ़रमाया | 

(यहाँ पे आं से मुराद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं) सुराका उस वक़्त तो मुस्लमान नहीं हुए मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अज़मते नुबूवत और इस्लाम की सदाक़त का सिक्का उन के दिल पे बैठ गया | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़तेह मक्का और जंगे ताइफ़ व हुनैन से फारिग हो कर “जीईराना” में पढ़ाओ किया तो सुराका उसी परवनाए अम्न को लेकर बारगाहे नुबूवत में हाज़िर हो गए और अपने कबीले की बहुत बड़ी जमाअत के साथ इस्लाम कबूल कर लिया |

वाज़ेह रहे की ये वही सुराका बिन मालिक रदियल्लाहु अन्हु हैं जिन के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने इल्मे ग़ैब से ग़ैब की खबर देते हुए ये इरशाद फ़रमाया! की ऐ सुराका तेरा क्या हाल होगा जब तुझ को मुलके फारस के बादशाह किसरा के दोनों कंगन पहनाएं जाएंगे? इस इरशाद के बरसों बाद जब हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु के दौरे खिलाफत में ईरान फ़तेह हुआ और किसरा के कंगन दरबारे खिलाफत में लाए गए तो अमीरुल मोमिनीन हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान की तस्दीक व तहक़ीक़ के लिए वो कंगन हज़रते सुराका बिन मालिक रदियल्लाहु अन्हु को पहना दिए और फ़रमाया के ऐ सुराका! ये कहो की अल्लाह पाक ही के लिए हम्द है जिसने इन कंगना को बादशाहे फारस किसरा से छीन कर सुराका बद्वि को पहना दिया हज़रते सुराका रदियल्लाहु अन्हु ने सं, 24, हिजरी में विसाल फ़रमाया | जब के हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु तख्ते खिलाफत पर रौनक अफ़रोज़ थे |

बुरैदा अस्लमी का झंडा

जब हुज़ूर अलैहिस्सलाम मदीने के करीब पहुंच गए तो “बुरैदा अस्लमी” क़बीलए बनी सहम के सत्तर सवारों को साथ लेकर इस लालच में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गिरफ़्तारी के लिए आए की कुरेश से एक सो ऊँट इनआम मिल जाएगा | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने आए और पूछा की आप कौन हैं? तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया में मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह हूँ और खुदा का रसूल हूँ | जमाल व जलाले नुबूवत का उन के क्लब पर ऐसा असर हुआ की फ़ौरन ही कलमए शहादत पढ़ कर दामने इस्लाम में दाखिल हो गए और कमाले अक़ीदत से ये दरख्वास्त पेश की, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मेरी तमन्ना है की मदीने में हुज़ूर का दाखिला एक झंडे के साथ होना चाहिए, ये कहा और अपना इमामा सर से उतार कर अपने नेज़े पे बांध लिया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अलम बरदार बन कर मदिने तक आगे आगे चलते रहे फिर मालूम किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आप मदीने में कहाँ उतरेंगें? हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की मेरी ऊंटनी खुदा की तरफ से मामूर है ये जहाँ बैठ जाएगी वो मेरी क़याम गाह है | 

हज़रते ज़ुबेर के बेश कीमत कपड़े

इस सफर में हुस्ने इत्तिफ़ाक़ से हज़रते ज़ुबेर बिन अव्वाम रदियल्लाहु अन्हु से मुलाकात हो गई जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फूफी हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा के बेटे हैं | ये मुल्के शाम से तिजारत का माल ले कर आ रहे थे इन्हों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में चंद नफीस कपड़े  बतौरे नज़राना पेश किए जिन को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कबूल फरमा लिया |

शहंशाहे रिसालत मदीना शरीफ में

 हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद आमद की खबर चूँकि मदीने में पहले से पहुंच चूँकि थी और औरतों बच्चों तक की ज़बानो पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तशरीफ़ आवरी का चर्चा था | इस लिए अहले मदीना आप के दीदार के लिए इंतिहाई मुश्ताक व बे क़रार थे रोज़ाना सुबह से निकल निकल कर शहर के बाहर सरापा इन्तिज़ार बन कर इस्तकबाल के लिए तय्यार रहते थे और जब धूप तेज़ हो जाती तो हसरत व अफ़सोस के साथ अपने घरों को वापस लोट जाते | एक दिन अपने मामूल के मुताबिक अहले मदीना आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की राह देख कर वापस जा चुके थे की अचानक एक यहूदी ने अपने किले से देखा की ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सवारी मदीने के करीब आ पहुंची है | उस ने बुलंद आवाज़ से पुकारा की ऐ मदीने वालों! तुम जिस का रोज़ाना इन्तिज़ार करते थे वो कारवाने रहमत ये सुन सुन कर तमाम अंसार बंद पे हथियार सजा कर और वज्द व शादमानी से बे क़रार हो कर ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इस्तकबाल कर ने के लिए अपने घरों से नकल पड़े और नारए तकबीर की आवाज़ से तमाम शहर गूँज उठा | 

मदीना शरीफ से तीन मील के फासले पर जहाँ आज “मस्जिदे कुबा” है 12, रबीउल अव्वल को ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रोकन अफ़रोज़ हुए और कबीलए अम्र बिन ओफ़ के खानदान में हज़रते कुलसूम बिन हदम रदियल्लाहु अन्हु के मकान में तशरीफ़ फरमा हुए | अहले खानदान ने इस फखरो शरफ़ पर की दो आलम के मेज़बान इन के मेहमान बने अल्लाहु अकबर का पुर जोश नारा लगाया | चरों तरफ से अंसार जोशे मसर्रत में आते और बारगाहे रिसालत में “सलातो सलाम” का नज़राना पेश करते | अक्सर सहाबए किराम जो हुज़ूर अलैहिस्सलातो वस्सलाम से पहले हिजरत कर के मदीना शरीफ आए थे वो लोग भी इस माकन में ठहरे हुए थे | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु भी हुक्मे नबवी के मुताबिक कुरेश की अमानतें वापस लोटा कर तीसरे दिन मक्का से चल पड़े थे वो भी मदीना आ गए और इसी माकन में ठहरे और हज़रते कुलसूम बिन हदम रदियल्लाहु अन्हु इन के खानदान वाले इन तमाम मुकद्द्स महमानो की मेहमान नवाज़ी में दिन रात मसरूफ रहने लगे 

 “हुज़ूर ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मदनी ज़िन्दगी”

“हिजरत का पहला साल” 1, हिजरी “मस्जिदे कुबा ” :- “कुबा” में सब से पहला काम एक मस्जिद की तामीर थी इस मकसद के लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते कुलसूम बिन हदम रदियल्लाहु अन्हु की एक ज़मीन को पसंद फ़रमाया जहाँ खानदाने अम्र बिन ओफ़ की खजूरें सूखी जाती थी इसी जगह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने मुकद्द्स हाथों से एक मस्जिद की बुनियाद डाली | ये वही मस्जिद है जो आज भी “मस्जिदे कुबा” के नाम से मशहूर है जिस की शान में कुरआन शरीफ में पारा 11, वा सूरह तौबा की आयात 108, नाज़िल हुई:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान:- यक़ीनन वो मस्जिद जिस की बुनियाद पहले ही दिन से परहेज़गारी पे रखी हुई है वो इस बात की ज़्यादा हक़दार है की आप इस में खड़े हों इस (मस्जिद) में ऐसे लोग हैं जिन को पाकि बहुत पसंद है और अल्लाह पाक रहने वालों से मुहब्बत फरमाता है इस मुबारक मस्जिद की तामीर में सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के साथ साथ खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी नफ़्से नफीस अपने दस्ते मुबारक से इतने बड़े बड़े पथ्थर उठाते थे की उनके बोझ से जिसमे नाज़ुक खम हो जाता था और अगर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जां निसार असहाब में से कोई अर्ज़ करता या रसूलल्लाह! आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर हमारे माँ बाप क़ुर्बान हो जाएं आप छोड़ दीजिए हम उठाएंगें, तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस की दिल जोई के लिए छोड़ देते मगर फिर उसी वज़न का दूसरा पथ्थर उठा लेते और खुद ही उस को ला कर इमारत में लगाते और तामीरी काम में जोश व वलवला  पैदा करने के लिए सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के साथ आवाज़ मिला कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हु ये अशआर पढ़ते जाते थे: वो कामयाब है जो मस्जिद तामीर करता है और उठते बैठते क़ुरआन पढ़ता है और सोते हुए रात नहीं गुज़ारता|

मस्जिदुल जुमुआ

चौदह या बीस दिन के क़याम में मस्जिदे क़ुबा की तामीर फरमा कर जुमुआ के दिन आप “कुबा” से शहर मदीना की तरफ रवाना हुए, रास्ते में क़बीलए बनी सालिम की मस्जिद में पहला जुमुआ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पढ़ा | ये वो मस्जिद है जो आज तक “मस्जिदुल जुमुआ” के नाम से मशहूर है अहले शहर को खबर हुई तो हर तरफ से लोग शोक जज़्बे में मुश्ताकाना इस्तकबाल के लिए दौड़ पड़े | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दादा अब्दुल मुत्तलिब के ननहाली रिश्तेदार “बनू नज्जार” हथियार लगाए “कुबा” से शहर तक दो सफ बना कर मस्ताना वार चल रहे थे आप रास्ते में तमाम क़बीले की मुहब्बत का शुक्रिया अदा करते और सब को खेरो बर्त्तक की दुआएं देते हुए चले जा रहे थे | शहर करीब आ गया तो अहले मदीना के जोशो खरोश का ये आलम था की पर्दा नशीन ख़वातीन मकानों की छतों पर चढ़ गाईं और ये इस्तक़बालिया अशआर पढ़ने लगीं

 

तला अल बदरू अलैना  निम् सनी यातिल वदाआ

वजाबश शुक्रू अलैना  माँ दा आ लिल्लाहि दाई

यानि हम पर चाँद  तुलू हो गया विदा की घाटियों से हम पर खुदा का शुक्र वाजिब है | जब तक अल्लाह पाक से दुआ मांगने वाले दुआ मांगते रहें | हम खानदाने “बनू नज्जार” की बच्चियां हैं, वाह क्या ही खूब हुआ की हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारे पड़ोसी हो गए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन बच्चियों के जोशे मसर्रत और इन की वालिहाना मुहब्बत से मुतअस्सिर हो कर पूछा की ऐ बच्चियों! क्या तुम मुझ से मुहब्बत करती हो? तो बच्चीयों ने एक ज़बान हो कर कहा की जी हाँ! जी हाँ! ये सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुश हो कर मुस्कुराते हुए फ़रमाया के “में भी तुम से मुहब्बत करता हूँ” छोटे छोटे लड़के और गुलाम झुण्ड के झुडं मारे ख़ुशी के मदीने की गलियों में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद आमद का नारा लगाते हुए दौड़ते फिरते थे | सहाबी रसूल बरा बिन आज़िब रदियल्लाहु अन्हु फरमाते है की जो फरहत व सुरूर और अनवारो तजल्लियात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मदीने में तशरीफ़ लाने के दिन ज़ाहिर हुए न इससे पहले कभी ज़ाहिर हुए थे न इस के बाद |

अबू अय्यूब अंसारी का मकान

तमाम कबीले अंसार जो रास्ते में थे इंतिहाई जोशे मुहब्बत के साथ ऊंटनी की महार थाम कर अर्ज़ करते या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आप हमारे घरों को शरफ़े नुज़ूल बख्शें मगर आप उन सब मुहिब्बीन से ये फरमाते की मेरी ऊंटनी की महार छोड़ दो जिस जगह खुदा को मंज़ूर होगा उसी जगह मेरी ऊंटनी बैठ जाएगी | चुनांचे जिस जगह आज मस्जिदे नबवी शरीफ है उस के पास हज़रते अबू अय्यूब अंसारी रदियल्लाहु अन्हु का माकन था उसी जगह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ऊंटनी बैठ गई और हज़रते अबू अय्यूब अंसारी रदियल्लाहु अन्हु आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इजाज़त से आपका सामान उठा कर अपने घर में ले गए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन्हीं के मकान में ठहरे हज़रते अबू अय्यूब अंसारी रदियल्लाहु अन्हु ने ऊपर की मंज़िल पेश की मगर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुलाकातियों की आसानी का लिहाज़ फरमाते हुए नीचे की मज़िल को पसंद किया | 

हज़रते अबू अय्यूब अंसारी रदियल्लाहु अन्हु दोनों वक़्त आप के लिए खाना भेजते और आपका बचा हुआ खाना तबर्रुक समझ कर मियां बीवी खाते | खाने में जहाँ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उँगलियों का निशान पड़ा होता हुसूले बरकत के लिए हज़रते अबू अय्यूब अंसारी रदियल्लाहु अन्हु उसी जगह से लुक्मा उठाते और बहुत अदब व एहतिराम अक़ीदत जा निसारी का मुज़ाहिरा करते | एक बार मकान के ऊपर की मंज़िल पर पानी का घड़ा टूट गया तो इस अंदेशे से की कहीं पानी बह कर नीचे की मंज़िल में न चला जाए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कुछ तकलीफ न हो जाए हज़रते अबू अय्यूब अंसारी रदियल्लाहु अन्हुने सारा पानी अपने लिहाफ में खुश्क कर लिया, घर में यही एक लिहाफ था जो गीला हो गया | रात भर मियां बीवी ने सर्दी खाई मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ज़र्रा बराबर तकलीफ पहुंच जाए ये गवारा नहीं किया | सात महीने तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मेज़बानी का शरफ़ हासिल किया | जब मस्जिदे नबवी और इस के अस पास के हुजरे तय्यार हो गए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन हुजरों में अपनी अज़्वाजे मुतह्हरात (पाक बीवियां) के साथ रहने लगे |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अहलो अयाल मदीने में

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब की अभी हज़रते अबू अय्यूब अंसारी रदियल्लाहु अन्हु के मकान में ही तशरीफ़ फरमा थे आपने अपने गुलाम हज़रते ज़ैद बिन हारसा और हज़रते अबू राफे रदियल्लाहु अन्हुमा को पांचसो दिरहम और दो ऊँट दे कर मक्का भेजा तकि ये दोनों साहिबान अपने साथ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अहलो अयाल को मदीना लाएं चुनांचे ये दोनों हज़रात जा कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दो साहिब ज़ादियों हज़रते फातिमा और हज़रते उम्मे कुलसूम रदियल्लाहु अन्हुमा और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ोजए मुतह्हरात उम्मुल मोमिनीन हज़रते बीवी सौदाह रदियल्लाहु अन्हा और हज़रते उसामा बिन ज़ैद और हज़रते उम्मे ऐमन रदियल्लाहु अन्हुमा को मदीना ले आए |

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहबज़ादी हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हु न आ सकीं क्यों की उन के शोहर हज़रते अबुल आस बिन अरबिआ रदियल्लाहु अन्हु ने इन को मक्के में रोक लिया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक साहबज़ादी हज़रते बीबी रुकय्या रदियल्लाहु अन्हा अपने शोहर हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु के साथ “हब्शा” में थीं | इन्ही लोगों के साथ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियताल्लाहु अन्हु के बेटे हज़रते अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु भी अपने सब घर वालों के साथ ले कर मक्के में आ गए इन में बीवी आयेशा रदियल्लाहु अन्हा भी थीं ये सब लोग मदीने आ कर पहले हज़रते हारिस बिन नोमान रदियल्लाहु अन्हु के मकान पर ठहरे |

मस्जिदे नबवी की तामीर

मदीना शरीफ में कोई ऐसी जगह नहीं थी जहाँ मुसलमान बा जमाअत नमाज़ पढ़ सकें इस लिए मस्जिद की तामीर निहायत ज़रूरी थी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़याम गाह के करीब ही “बनू नज्जार” का एक बाग़ था आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मस्जिद तामीर करने के लिए उस बाग़ को कीमत दे कर खरीदना चाहा उन लोगों ने ये कह कर “या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! हम खुद ही से इस की कीमत अजरो सवाब लेंगें | मुफ्त में जमीन मस्जिद की तामीर के लिए पेश कर दी लेकिन चूंकि ये ज़मीन असल में उन दो यतीमो की थी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन दोनों यतीम बच्चों को बुला भेजा | उन यतीम बच्चों ने भी ज़मीन मस्जिद के लिए नज़्र करनी चाही मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस को पसंद नहीं फ़रमाया इस लिए हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के माल से आप ने इस की क़ीमत अदा की |

इस ज़मीन में कुछ दरख्त (पेड़)  खंडरात और कुछ मुशरिकों की कब्रें थीं |आप ने पेड़ों को काटने और मुश्रिकीन की कब्रों को खोद कर फेक देने का हुक्म दिया फिर ज़मीन को हमवार कर के खुद आप ने अपने दस्ते मुबारक से मस्जिद की बुनियाद डाली और कच्ची ईटों की दीवार और खजूर के सुतूनों पर खजूर की पत्तियों से छत बानी जो बारिश में टपकती थी इस मस्जिद की तामीर में सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के साथ खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी ईटें उठा उठा कर लाते थे और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को जोश दिलाने के लिए उन के साथ आवाज़ मिला कर ये शेर पढ़ते थे की: ऐ अल्लाह भलाई तो सिर्फ आख़िरत ही की भलाई है लिहाज़ा ऐ अल्लाह तू अंसार व मुहाजिरीन को बख्श दे | इसी मस्जिद का नाम “मस्जिदे नबवी” है ये मस्जिद हर किस्म के दुनयावी तकल्लुफ़ात और इस्लाम की सादगी की सच्ची और सही तस्वीर थी | इस मस्जिद की इमारतें अव्वल तूल व अर्ज़ में साठ गज़ लम्बी चौव्वन गज़ छोड़ी थी और इस का क़िबला बैतुल मुकद्द्स की तरफ बनाया गया था मगर जब क़िबला बदल कर काबे की तरफ हो गया तो मस्जिद को शिमालि जानिब एक नया दरवाज़ा क़ाइम किया गया इस के बाद मुख्तलिफ ज़माने में तजदीद व तौसिअ होती रही |   

मस्जिद के एक किनारे पर एक चबूतरा था जिस पर खजूर की पत्तियों से छत बना दी गई थी इसी चबूतरे का नाम “सुफ़्फ़ा” है जो सहाबा घरबार नहीं रखते थे वो इसी चबूतरे पर सोते बैठे थे और यही लोग “अस्हाबे सुफ़्फ़ा” कहलाते थे |

अज़ान की इब्तिदा (शुरूआत)

मस्जिदे नबवी की तामीर तो मुकम्मल हो गई मगर लोगों को नमाज़ के वक़्त इकठ्ठा करने का कोई ज़रिया नहीं था जिससे नमाज़ बा जमाअत पढ़ी जा सके, इस सिलसिले में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुुम से मश्वरा फ़रमाया, बाज़ ने नमाज़ के वक़्त आग जलाने का मश्वरा दिया, कुछ ने नाकूस बजाने की राए दी मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गैर मुस्लिमो के इन तरीकों को पसंद नहीं फ़रमाया | हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने ये तजवीज़ पेश की हर नमाज़ के वक़्त किसी आदमी को भेज दिया जाए जो पूरी मुस्लिम आबादी में नमाज़ का ऐलान कर दे | हुज़ूर  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस राए को पसंद किया और हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया के वो नमाज़ों के वक़्त लोगों को पुकार दिया करें | चुनांचे वो “अस्सलातू जामिआ” कह कर पांचों नमाज़ के वक़्त ऐलान करते थे, इसी दरमियान में एक सहाबी हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ैद अंसारी रदियल्लाहु अन्हु ने ख्वाब देखा की अज़ाने शरई के अल्फ़ाज़ कोई सुना रहा है इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु और दुसरे सहाबा को भी इसी तरह के ख्वाब नज़र आए | हुज़ूर                          

सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मिन जानिब अल्लाह समझ कर कबूल फ़रमाया और हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ैद रदियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया के तुम बिलाल को अज़ान के कलमात सीखा दो क्यों की वो तुम से ज़्यादा बुलंद आवाज़ हैं | चुनांचे उसी दिन से शरई अज़ान का तरीका जो आज तक जारी है वो क़यामत तक जारी रहेगा |   

रेफरेन्स हवाला
  • शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2
  • बुखारी जिल्द 2
  • सीरते मुस्तफा
  • सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1
  • सीरते रसूले अकरम
  • तज़किरे मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया
  • गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी
  • मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1

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