हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 9)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 9)

उमैर और सफ़वान की ख़ौफ़नाक साज़िश

एक दिन उमैर और सफ़वान दोनों हतीमे क़ाबा में बैठे हुए मक़तूलीने बद्र पर आंसू बहा रहे थे | एक दम सफ़वान बोल उठा की ऐ उमैर! मेरा बाप और दूसरे रूओसाए मक्का जिस तरह बद्र में क़त्ल हुए उन को याद कर के सीने में दिल पाश पाश हो रहा है और अब ज़िन्दगी में कोई मज़ा बकी नहीं है | उमैर ने कहा की ऐ सफ़वान तुम सच कहते हो मेरे सीने मे भी इंतिकाम की आग भड़क रही है, मेरे अइज़्ज़ा व अकरिबा भी बद्र में बे दर्दी करे साथ क़त्ल किए गए हैं और मेरा बेटा मुसलमानो की कैद में है | खुदा की कसम! अगर में कर्ज़दार न होता और बाल बच्चों की फ़िक्र से दो चार न होता तो अभी अभी में तेज़ रफ़्तार घोड़े पर सवार हो कर मदीना जाता और फ़ौरन धोके से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़त्ल कर के फरार हो जाता ये सुन कर सफ़वान ने कहा की ऐ उमैर! तुम आपने क़र्ज़ और बच्चों की ज़रा भी फ़िक्र न करो | में खुदा के घर में अहद करता हूँ की तुम्हारा सारा क़र्ज़ अदा कर दूंगा और में तुम्हारे बच्चों की परवरिश का भी ज़िम्मेदार हूँ |

इस मुआहिदे के बाद उम्र सीधा घर आया और ज़हर में बुझी हुई तलवार ले कर घोड़े पर सवार हो गया जब मदीने में मस्जिदे नबवी के करीब पंहुचा तो हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने उस को पकड़ लिया और उस का गला दबाए और गर्दन पकड़े हुए दरबारे रिसालत में ले गए |हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा की क्यूं उमैर! किस इरादे से आए हो? जवाब दिया की आपने बेटे को छुड़ाने के लिए | आप ने फ़रमाया की क्या तुम ने और सफ़वान ने हतीमे काबा में बैठ कर मेरे क़त्ल की साज़िश नहीं की है? उमैर ये राज़ की बात सुन कर सन्नाटे में आ गया और कहा की में गवाही देता हूँ की बेशक आप अल्लाह पाक के रसूल हैं क्यूं की खुदा की कसम! मेरे और सफ़वान के सिवा इस राज़ को किसी को भी खबर नहीं थी | उधर मक्के में सफ़वान हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़त्ल की खबर सुनाने के लिए इंतिहाई बेकरार था और दिन गिन गिन कर उमैर के आने का इन्तिज़ार कर रहा था मगर जब इस ने अचानक ये सुना की उमैर मुसलमान हो गया हैरत से उस के पाऊं के नीचे से ज़मीन निकल गई और वो बोखला गया | हज़रते उमैर मुसलमान हो कर मक्के आए और जिस तरह वो पहले मुसलमानो के खून के प्यासे थे अब वो काफिरों की जान के दुश्मन बन गए और इंतिहाई बेखौफी और बहादुरी के साथ मक्के में इस्लाम की तब्लीग कर ने लगे यहाँ तक की इन की दावते इस्लाम से बड़े बड़े काफिरों के अँधेरे दिलों में नूरे ईमान की रौशनी से उजाला हो गया और येही उमैर अब सहाबी रसूल हज़रते उमैर रदियल्लाहु अन्हु कहलाने लगे | (तारीखे तबरी)

मुजाहिदीने बद्र के फ़ज़ाइल

जो सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम जंगे बद्र में जिहाद में शरीक हो गए वो तमाम सहाबा में एक खुसूसी शरफ़ के साथ मुमताज़ हैं और इन खुशनसीबों के फ़ज़ाइल में बहुत ही अज़ीमुश्शान फ़ज़ीलत ये है की इन सआदत मंदों के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये फ़रमाया है की: “बेशक अल्लाह पाक अहले बद्र से वाकिफ है और उस ने ये फरमा दिया है की तुम अब जो अमल चाहो करो बिला शुबा तुम्हारे लिए जन्नत वाजिब हो चुकी है या ये फ़रमाया की मेने तुम्हे बख्श दिया है |

अबू लहब की इबरत नाक मौत

अबू लहब जंगे बद्र में शरीक नहीं हो सका | जब कुफ्फारे कुरेश शिकस्त खा कर मक्के वापस आए तो लोगों को ज़बानी जंगे बद्र के हालात सुन कर अबू लहब को इंतिहाई रंजो मालाम हुआ | इस के बाद ही वो चेचक की बड़ी बिमारी में मुब्तला हो गया जिससे उस का तमाम बदन सड़ गया और आठवे दिन मर गया अरब के लोग चेचक से बहुत डरते थे और इस बीमारी में मरने वाले को बहुत ही मनहूस समझते थे इस लिए इस के बेटों ने भी तीन दिन तक इस की लाश को हाथ नहीं लगाया मगर इस ख्याल से की ताना मारेंगें एक गढ्ढा खोद कर लकड़ियों से धकेलते हुए ले गए और उस गढ्ढे में लाश को गिरा कर ऊपर से मिटटी डाल दी और बाज़ मुअर्रिख़ीन ने लिखा है की दूर से लोगों ने उस गढ्ढे में इस क़द्र पथ्थर फेंके की उन पथ्थर से उस की लाश छुप गई |

ग़ज़वए बनी कैनुक़ाअ

रमज़ानुल मुबारक सं. 2, हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जंगे बद्र के मारिके से वापस हो कर मदीने वापस लोटे | इस के बाद ही 15, शव्वालुल मुकर्रम सं. 2, हिजरी में “ग़ज़वए बनी कैनुक़ाअ” का वाक़िआ दरपेश हो गया | हम पहले लिख चुके हैं की मदीने के अतराफ़ में यहूदियों के तीन बड़े बड़े कबीले आबाद थे “बनू कैनुक़ाअ, बनू नज़ीर, बनू क़ुरैज़ा” | इन तीनो से मुसलमानो का मुआहिदा था मगर जंगे बद्र के बाद जिस कबीले ने सब से पहले मुआहिदा तोड़ा वो कबीलए बनू कैनुक़ाअ के यहूदी थे जो सब से ज़्यादा बहादुर और दौलत मंद थे | वाकिअ ये हुआ की एक बुरका पोश अरब औरत यहूदियों के बाज़ार में आई, दुकानदारों ने शरत की और उस औरत को नग्गा कर दिया इस पर तमाम यहूदी चिल्ला चिल्ला कर हंसने लगे, औरत चिल्लाई तो एक अरबी आया और दुकानदार को क़त्ल कर दिया इस पर यहूदियों ने और अरबों में लड़ाई शुरू हो गई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खबर हुई तो तशरीफ़ लाए और यहूदियों की इस गैर शरीफाना हरकत पर मलामत फरमाने लगे | इस पर बनू कैनुक़ाअ के खबीस यहूदी बिगड़ गए और बोले की जंगे बद्र की फ़तेह से आप मगरूर न हो जाएं मक्के वाले जंग के मुआमले में बे ढंगे थे इस लिए आप ने उन को मार लिया अगर हम से आप का साबिक़ा पड़ा तो आप को मालूम हो जाएगा की जंग किस चीज़ का नाम है ? और लड़ने वाले कैसे होते हैं? जब यहूदियों ने मुआहिदा तोड़ दिया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने निस्फ़ शव्वाल सं. 2, हिजरी सनीचर के दिन इन यहूदियों पे हमला कर दिया | यहूदी जंग की ताब न ला सके और आपने किलों का फाटक बंद कर के किले में बंद हो गए मगर पन्द्र दिन के मुहासिरे के बाद बिला आखिर यहूदी मगलूब हो गए और हथियार डाल देने पर मजबूर हो गए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के मश्वरे से इन यहूदियों को शहर बद्र कर दिया और ये अहद शिकन बद ज़ात यहूदी मुल्के शाम के मक़ाम “अज़रआत में जा कर आबाद हो गए |

ग़ज़वए सवीक़

ये हम तहरीर कर चुके हैं की जंगे बद्र के बाद मक्के के हर घर में सरदारने कुरेश के क़त्ल हो जाने का मातल बरपा था और अपने मक़तूलों का बदला लेने के लिए मक्के का बच्चा बच्चा बेचैन और बे करार था | चुनांचे ग़ज़वए सवीक और जंगे उहद वगैरा की लड़ाइयां मक्का वालों के इसी जोशे इंतिकाम का नतीजा हैं|उतबा और अबू जहल के क़त्ल हो जाने के बाद अब कुरेश का सरदारे आज़म अबू सुफियान था और इस मनसब का सब से बड़ा काम ग़ज़वए बद्र का इंतिकाम था | चुनांचे अबू सुफियान ने कसम खा ली जब तक बद्र के मक़तूलों का मुसलमानो से बदला न लूँगा न ग़ुस्ले जनाबत करूंगा न सर में तेल डालूँ गा| चुनांचे जंगे बद्र के दो माह बाद ज़ुल हिज्जा सं. 2, हिजरी में अबू सुफियान दो सौ शुतुर सवारों का लश्कर ले कर मदीने की तरफ बड़ा | इस को यहूदियों पर बड़ा भरोसा बल्कि नाज़ था की मुसलमानो के मुकाबले में वो इस की इमदाद करेंगें | इसी उम्मीद पर अबू सुफियान पहले “हुयय बिन अख्तब” यहूदी के पास गया मगर उसने दरवाज़ा भी नहीं खोला | वहां से मायूस हो कर सलाम बिन मुश्कम से मिला जो कबीलए बनू नज़ीर के यहूदियों का सरदार था और यहूद के तिजारती ख़ज़ाने का मैनेजर भी था उस ने अबू सुफियान का पुरजोश इस्तकबाल किया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तमाम जंगी राज़ों से अबू सुफियान को आगाह कर दिया | सुबह को अबू सुफियान ने मक़ामे “अरीज़” पर हमला किया ये बस्ती मदीने से तीन मील की दूरी पर थी, इस हमले में अबू सुफियान ने एक अंसारी सहाबी को जिनका नाम साद बिन अम्र रदियल्लाहु अन्हु थे उन को शहीद कर दिया और कुछ पेड़ों को काट डाला और मुसलमानो के चंद घरों और बगात को आग लगा कर जला दिया, इन हरकतों से उस के गुमान में उस की कसम पूरी हो गई | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस की खबर हुई तो आप ने उस का पीछा किया लेकिन अबू सुफियान बद हवास हो कर इस क़द्र तेज़ी से भगा की भागते हुए अपना बोझ हल्का करने के लिए सत्तू की बुरियाँ जो वो अपनी फौज के राशन के लिए लाया था फेंकता चला गया जो मुसलमानो के हाथ आए | अरबी ज़बान में सत्तू को “सवीक” कहते हैं इस लिए इस ग़ज़वे का नाम “ग़ज़वए सवीक” पड़ गया | (मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 2,)

हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की शादी

इसी साल सं. 2, हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सब से प्यारी बेटी हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा की शादी खाना आबादी हज़रते अली कर्रा मल्लाहु वजहहुल करीम के साथ हुई | ये शादी इंतिहाई वक़ार और सादगी के साथ हुई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया की वो हज़रते अबू बक्र सिद्दीक व उमर व उस्मान व अब्दुर रहमान बिन ओफ़ और दूसरे चंद मुहाजिरीन व अंसार रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन को बुलाया गया | चुनांचे जब सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम जमा हो गए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुत्बा पढ़ा और निकाह पढ़ा दिया | शहंशाहे कौनैन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शहज़ादीए इस्लाम हज़रते बीबी फातिमा रदियल्लाहु अन्हा को जहेज़ में जो सामान दिया उस की फेहरिस्त ये है |

एक कमली, बान की एक चारपाई, चमड़े का गद्दा जिस में रोइ की जगह खाल की छल भरी हुई थी, एक छागल एक मश्क, दो चक्कियां, दो मिटटी के घड़े, | हज़रते हारिस बिन नोमान अंसारी रदियल्लाहु अन्हु ने अपना एक मकान हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस लिए नज़्र कर दिया की इस में हज़रते अली और हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा आराम से रहें | जब हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा रुखसत हो कर नए घर में गईं तो ईशा की नमाज़ के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए और एक बर्तन में पानी तलब फ़रमाया और उस में कुल्ली फरमा कर हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के सीने और बाज़ुओं पे पानी छिड़का फिर हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा को बुलाया और उन के सर और सीने पर भी पानी छिड़का और फिर यूं दुआ फ़रमाई या अल्लाह पाक, में अली और फातिमा और इन की औलाद को तेरी पनाह में देता हूँ की ये सब शैतान के शर से महफूज़ रहें |

सं. 2, हिजरी के अलग अलग वाक़िआत :-
1, इसी साल रोज़ा और ज़कात की फ़र्ज़ियत के अहकाम नाज़िल हुए और नमाज़ की तरह रोज़ा और ज़कात भी मुसलमानो पर फ़र्ज़ हो गए |
2, इसी साल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ईदुल फ़ित्र की नमाज़ जमात के साथ ईदगाह में अदा फ़रमाई, इससे पहले ईदुल फ़ित्र की नमाज़ नहीं हुई थी|
3, सदक़ए फ़ित्र अदा करने का हुक्म इसी साल जारी हुआ |
4, इसी साल 10, ज़ुल हिज्जा को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बकरा ईद की नमाज़ अदा फ़रमाई और नमाज़ के बाद दो मेंढ़ों की क़ुरबानी फ़रमाई थी |
5, इसी साल “ग़ज़वए करतुल कुद्र” व ग़ज़वए बहरान” वगैरा चंद छोटे छोटे गज़्वात भी पेश आए जिन में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शिरकत फ़रमाई मगर इन गज़्वात में कोई जंग नहीं हुई | (मवाहिबे लदुन्निया व ज़ुरक़ानी जिल्द 2)

                                           "हिजरत का तीसरा साल सं. 3, हिजरी" 
जंगे उहद

इस साल का सब से बड़ा वाक़िआ “जंगे उहद” है | “उहद” एक पहाड़ का नाम है जो मदीना शरीफ से तकरीबन तीन मील दूर है | चूँकि हक व बातिल का ये अज़ीम मारिका इसी पहाड़ के दामन में दरपेश हुआ इसी लिए ये लड़ाई “ग़ज़वए उहद” के नाम से मशहूर है और कुरआन शरीफ की मुख्तलिफ आयतों में इस लड़ाई के वाक़िआत का अल्लाह पाक ने तज़किराह फ़रमाया है |

जंगे उहद का सबब वजह

ये आप पढ़ चुके हैं की “जंगे बद्र में सत्तर कुफ्फार क़त्ल हुए और सत्तर गिरफ्तार” हुए थे | और जो क़त्ल हुए उन में से अक्सर कुफ्फारे कुरेश के सरदार बल्कि ताजदार थे | इस बिना पर मक्का का एक एक घर मातम कधा बना हुआ था | और कुरेश का बच्चा बच्चा जोशे इंतिकाम में आतिशे ग़ैज़ो गज़ब का तन्नूर बन कर मुसलमानो से लड़ने के लिए बेकरार था | अरब ख़ुसूसन कुरेश का ये तुर्रए इम्तियाज़ था की वो अपने एक एक मकतूल के खून का बदला लेने को इतना बड़ा फ़र्ज़ समझते थे जिस को अदा किए बगैर गोया इन की हस्ती कायम नहीं रह सकती थी | चुनांचे जंगे बद्र के मक़तूलों के मातम से जब कुरैशियों को फुर्सत मिली तो उन होने ये अज़्म इरादा कर लिया की जिस क़द्र मुमकिन हो जलिद से जल्द मुसलमानो से अपने मक़तूलों के खून का बदला लेना चाहिए | चुनांचे अबू जहल का बेटा इकरिमा और उमय्या का लड़का सफ़वान और दूसरे कुफ्फारे कुरेश जिन के बाप भाई, बेटे जंगे बद्र में क़त्ल हो चुके थे सब के सब अबू सुफियान के पास गए और कहा की मुसलमानो ने हमारी कौम के तमाम सरदारों को क़त्ल कर डाला है इस का बदला लेना हमारा कोमी फ़रीज़ा है लिहाज़ा हमारी चाहत है की कुरेश की मुश्तरीका तिजारत में इम साल जितना नफा हुआ है वो सब कौम के जंगी फंड में जमा हो जाना चाहिए और इस रक़म से बेहतरीन हथियार खरीद कर अपनी लश्करी ताकत बहुत जल्द मज़बूत कर लेनी चाहिए और फिर एक अज़ीम फौज ले कर मदीने पर चढाई कर के बानिए इस्लाम और मुसलमानो को दुनिया से नेस्तो नाबूद कर देना चाहिए|

अबू सुफियान ने कुरेश की खुशी ख़ुशी ये दरख्वास्त मंज़ूर कर ली| लेकिन कुरेश को जंगे बद्र से ये तजुर्बा हो चुका था की मुसलमानो से लड़ना कोई आसान काम नहीं है | आँधियों और तुफानो का मुकाबला, समंदर की मौत से टकराना पहाड़ों से टक्कर लेना बहुत आसान है मगर मुहम्मदुर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आशिकों से जंग करना बड़ा ही मुश्किल काम है | इस लिए इन्होने अपनी जंगी ताकत को बहुत ज़्यादा बड़ी करना ज़रूरी समझा | चुनांचे इन लोगों ने हथियारों की तय्यारी और समाने जंग की खरीदारी में पानी की तरह रूपया बहाने के साथ साथ पूरे अर्ब में जंग का जोश और लड़ाई का बुखार फ़ैलाने के लिए बड़े बड़े शायरों को चुन लिया जो अपनी अपनी आतश बयानी से तमाम कबाईले अर्ब में जोशो इंतिकाम की आग लगा दी “अम्र जह्मी” और “मसाफे” ये दोनों अपनी शायरी में शुहराए अफाक थे | इन दोनों ने बा काइदा दौरा कर के तमाम कबाईले अर्ब में ऐसा जोश और इश्तिआल पैदा कर दिया की बच्चा बच्चा “खून का बदला खून” का नारा लगाते हुए मरने और मारने पर तय्यार हो गया जिस का नतीजा ये हुआ की एक बहुत बड़ी फौज तय्यार हो गई मर्दों के साथ साथ बड़े बड़े मुअज़ज़ और मालदार घराने की औरतें भी जोशे इंतिकाम से लबरेज़ हो कर फौज में शामिल हो गईं जिन के बाप भाई, बेटे शोहर जंगे बद्र में क़त्ल हुए थे |उन औरतों ने कसम खा ली थी की हम अपने रिश्तेदारों के कातिलों का खून पी कर ही दम लेंगें | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चचा हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने हिंदा के बाप उतबा और ज़ुबेर बिन मुतईम के चचा को जंगे बद्र में क़त्ल किया था | इस बिना पर “हिंदा” ने “वहशी” को जो ज़ुबेर बिन मुतईम का गुलाम था हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु के क़त्ल पे तय्यार किया और ये वादा किया की अगर उस ने हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु को क़त्ल कर दिया तो वो इस कार गुज़ारी के सिले में आज़ाद कर दिया जाएगा | (मवाहिबे लदुन्निया व ज़ुरक़ानी जिल्द 2,)

मुसलमानो की तय्यारी और जोश

ये खबर सुन कर 14, शव्वाल सा. 3, हिजरी जुमे की रात में हज़रते साद बिन मुआज़ व हज़रते उसैद बिन हुज़ैर व हज़रते उबादा रदियल्लाहु अन्हुम हथियार ले कर चंद अंसारियों के साथ रात भर काशानए नुबूवत का पहरा देते रहे और शहर मदीना के अहम नाकों पे भी अंसार का पहरा बिठा दिया गया | सुबह को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंसार व मुहाजिरीन को जमा फरमा कर मश्वरा फ़रमाया की शहर के अंदर रह कर दुश्मनो की फौज का मुकाबला किया जाए या शहर से बाहर निकल कर मैदान में ये जंग लड़ी जाए? मुहाजिरीन ने आम तौर पर और अंसार में से बड़े बूढ़ों ने ये राय दी के औरतों और बच्चों को किलों में महफूज़ कर दिया जाए और शहर के अंदर रह कर दुश्मनो का मुकाबला किया जाए | मुनाफिकों का सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य भी उस मजलिस में मौजूद था | उस ने भी ये कहा की शहर में पनाह गीर हो कर कुफ्फारे कुरेश के हमलों का बचाओ किया जाए, मगर चंद कम सिन नौजवान जो जंगे बद्र में शरीक नहीं हुए थे और जोशे जिहाद में आपे से बाहर हो रहे थे वो इस राय पे अड़ गए की मैदान में नकिल कर इन दुशमने इस्लाम से फैसला कुन जंग लड़ी जाए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सब की राय सुनली | फिर मकान में जा कर हथियार ज़ेबेतन फरमाए और बाहर तशरीफ़ लाए | अब तमाम लोग इस बात पे मुत्तफिक हो गए की शहर के अंदर ही रह कर कुफ्फारे कुरेश के हमलों को रोका जाए मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की पैगम्बर के लिए ये ज़ेब नहीं है की हथियार पहन कर उतार दे यहाँ तक की अल्लाह पाक उस के और उस के दुश्मनो के बीच फैसला फरमा दे अब तुम लोग खुदा का नाम ले कर मैदान में निकल पड़ो अगर तुम लोग सब्र के साथ मैदाने जंग में डटे रहोगे तो ज़रूर तुम्हारी फतह होगी |फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंसार के कबीलए ओस का झंडा हज़रते उसैद बिन हुज़ैर रदियल्लाहु अन्हु को और कबीलए ख़ज़रज का झंडा हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु को दिया और एक हज़ार की फौज लेकर मदीने से बाहर निकले |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यहूद की इमदाद को ठुकरा दिया

शहर से निकलते ही आप ने देख की एक फौज चली आ रही है | आप ने पूछा ये कौन लोग हैं? लोगों ने अर्ज़ किया की या रसूलाललह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये रईसुल मुनाफिक़ीन अब्दुल्लाह बिन उबय्य के हलीफ़ (साथी साथियों) यहूदियों का लश्कर है जो आप की इमदाद के लिए आ रहा है आप ने इरशाद फ़रमाया की:इन लोगों से कहदो की वापस लोट जाएं | हम मुशरिकों के मुकाबले में मुशरिकों की मदद नहीं लेंगें | चुनांचे यहूदियों का ये लश्कर वापस चला गया फिर अब्दुल्लाह बिन उबय्य (मुनाफिकों का सरदार) भी जो तीन सौ आदमियों को ले कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ आया था ये कह कर वापस चला गया की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरा मश्वरा कबूल नहीं किया और मेरी राय के खिलाफ मैदान में निकल पड़े, लिहाज़ा में इन का साथ नहीं दूंगा |अब्दुल्लाह बिन उबय्य की बात सुन कर कबीलए ख़ज़रज में से “बनू सलमा” के और कबीलए ओस में से “बनू” हारिसा” के लोगों ने भी वापस लोट जाने का इरादा किया मगर अल्लाह पाक ने इन लोगों के दिलों में अचानक मुहब्बते इस्लाम का ऐसा जज़्बा पैदा फरमा दिया की इन लोगों के क़दम जम गए | चुनांचे अल्लाह पाक ने कुरआन शरीफ पारा चार सूरह आले इमरान आयत 122, में इन लोगों का ज़िक्र फरमाते हुए इरशाद फ़रमाया की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- जब तुम में के दो गिरोहों का इरादा हुआ की न मरदी कर जाएं और अल्लाह पाक इन का संभालने वाला है और मुसलमानो को अल्लाह ही पर भरोसा होना चाहिए |अब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लश्कर के कुल सात सौ सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम रह गए जिन में कुल एक सौ ज़िरह पोश थे और कुफ्फार की तीन हज़ार का लश्कर था जिन में सात सौ ज़िरह पोश जवान, दो सौ घोड़े, तीन हज़ार ऊँट और पंदिरह औरतें थीं |
शहर से बाहर निकल कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी फौज का मुआइना फ़रमाया और जो लोग कम उमर थे उन को वापस लोटा दिया की जंग के होलनाक मोके पर बच्चों का क्या काम ? |

बच्चों का जोशे जिहाद

मगर जब हज़रते राफे बिन ख़दीज रदियल्लाहु अन्हु से कहा गया की तुम बहुत छोटे हो तुम भी वापस चले जाओ तो वो फ़ौरन अंगूंठों के बल खड़े हो गए ताकि उन का क़द ऊंचा नज़र आए | चुनांचे उन की ये तरकीब चल गई और वो फौज में शामिल कर लिए गए | हज़रते समुरह रदियल्लाहु अन्हु जो एक कम उमर नौजवान थे जब इन को वापस किया जाने लगा तो इन्होने अर्ज़ किया की में राफे बिन ख़दीज को कुश्ती में हरा देता हूँ | इस लिए अगर उन को फौज में लिया गया तो फिर मुझ को भी ज़रूर जंग में शरीक होने की इजाज़त मिलनी चाहिए चुनांचे दोनों का मुकाबला कराया गया और वाकई हज़रते समुरह रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते राफे बिन ख़दीज रदियल्लाहु अन्हु को ज़मीन पर दे मारा | इस तरह इन दोनों पुरजोश नो जवानो को जंगे उहद में शिरकत की सदाअत नसीब हो गई|

मताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मैदाने जंग में

मुशरिकीन तो 12, शव्वाल सं. तीन 3, हिजरी बुध के दिन ही मदीने के करीब पहुंच कर कोहे उहद पर अपना पड़ाव डाल चुके थे मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम 14, शव्वाल सं. तीन 3, हिजरी बाद नमाज़े जुमा मदीने से रवाना हुए | रात को बनी नज्जार में रहे और 15, शव्वाल सनीचर के दिन नमाज़े फजर के बाद उहद में पहुंचे | हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु ने अज़ान दी और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़े फजर पढ़ाकर मैदाने जंग में मोर्चा बंदी शुरू फ़रमाई | हज़रते उकाशा बिन मेहसिन असदी को लश्कर के मेमना (दाएं बाज़ू) पर और हज़रते अबू उबैदा बिन अल जर्राह व हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास को मुकद्दमा (अगले हिस्से) हिस्से पर और हज़रते मिक़दाद बिन अम्र को साका (पिछले हिस्से) पर अफसर मुकर्रर फ़रमाया रदियल्लाहु अन्हुम और सफ बंदी के वक़्त उहद पहाड़ को पुश्त पर रखा और कोहे ईनैन को जो वादिए कनात में है अपने बाएं तरफ रखा | लश्कर के पीछे पहाड़ में एक दर्रा यानि तंग रास्ता था जिस में से गुज़र कर कुफ्फारे कुरेश मुसलमानो की सफों के पीछे से हमला आवर हो सकते थे इस लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस तंग रस्ते की हिफाज़त के लिए पचास तीर अंदाज़ों का दस्ता मुकर्रर फ़रमाया और हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हु को इस दस्ते का अफसर बना दिया और ये हुक्म दिया की देखों हम चाहें मगलूब हों या ग़ालिब मगर तुम लोग अपनी इस जगह से उस वक़्त तक नहीं हटना जब तक में तुम्हारे पास किसी को न भेजूं | मुशरिकीन ने भी निहायत बा कईदगी के साथ अपनी सफों को दुरुस्त किया | चुनांचे उन होने अपने लश्कर के मेमना पर खालिद बिन वलीद को और मेसरह पर इकरिमा बिन अबू जहल को अफसर बना दिया, सवारों का दस्ता सफ़वान बिन उमय्या की कमान में था तीर अंदाज़ों का एक दस्ता अलग था जिन का सरदार अब्दुल्लाह बिन रबीआ था और और पूरे लश्कर का अलम बरदार तल्हा बिन अबू तल्हा था जो कबीलए बनी अब्दुद्दार का एक आदमी था,| हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब ये देखा की पूरे लश्करे कुफ्फार का अलम बरदार कबीलए बनी अब्दुद्दार का एक शख्स है तो आप ने भी इस्लामी लश्कर का झंडा हज़रते मुसअब बिन उमैर रदियल्लाहु अन्हु को अता फ़रमाया जो कबीलए बनी अब्दुद्दार से तअल्लुक़ रखते थे |

जंगे बद्र की इब्तिदा शुरआत

सब से पहले कुफ्फारे कुरेश की औरतों दफ़ बजा बजा कर ऐसे अशआर गाती हुई आगे बढ़ीं जिन में जंगे बद्र के मक़तूलीन का मातम और इन्तिक़ामे खून का जोश भरा हुआ था | लश्करे कुफ्फार के सिपाह सालार अबू सुफियान की बीबी “हिन्द” आगे आगे और कुफ्फारे कुरेश के मुअज़्ज़ज़ घरानो की चौदह औरतें उस के साथ साथ थीं और ये सब आवाज़ मिला कर ये अशआर गा रहीं थीं की: हम आसमान के तारों की बेटियां हैं, हम कालीनों पर चलने वालियां हैं, अगर तुम बढ़ कर लड़ोगे तो हम तुम से गले मिलेगें और पीछे क़दम हटा तो हम तुम से अलग हो जाएंगें|मुशरिकीन की सफों में जो शख्स सब से पहले जंग के लिए निकला वो “अबू आमिर ओसी” था | जिस की इब्तिदा और पारसाई की बिना पर मदीना वाले उस को “राहिब” कहा करते थे मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस का नाम “फासिक” रखा था ज़मानए जाहिलियत में ये शख्स अपने कबीले ओस का सरदार था और मदीने का मक़बूले आम आदमी था | मगर जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीने में तशरीफ़ लाए तो ये शख्स हसद में जल भुनकर खुदा के महबूब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुखालिफत करने लगा और मदीने से निकल कर मक्के चला गया और कुफ्फारे कुरेश को आप से जंग कर ने पर तय्यार किया | इस को बड़ा भरोसा था की मेरी कोम जब मुझे देखेगी तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साथ छोड़ देगी | चुनांचे उस ने मैदान में निकल कर पुकारा की ऐ अंसार ! क्या तुम लोग मुझे पहचानते हो ? में अबू आमिर राहिब हूँ | अंसार ने चिल्ला कर कहा : हाँ हाँ ! ऐ फासिक ! हम तुझ को खूब पहचानते हैं | खुदा तुझे ज़लील करे अबू आमिर अपने लिए फासिक का लफ्ज़ सुनकर तिलमिला गया | कहने लगा की हाए अफ़सोस ! मेरे बाद मेरी कोम बिकुल ही बदल गई फिर कुफ्फारे कुरेश की एक टोली जो उस के साथ थी मुसलमानो पर तीर बरसाने लगी | इस के जवाब में अंसार ने भी इस ज़ोर की संग बारी की, की अबू आमिर और उस के साथी मैदाने जंग से भाग खड़े हुए |

लश्करे कुफ्फार का अलम बरदार तल्हा बिन अबू तल्हा सफ से निकल कर मैदान में आया और कहने लगा की क्यों मुसलमानो ! तुम में कोई ऐसा है की या वो मुझ को दोज़ख में पंहुचा दे या खुद मेरे हाथ से वो जन्नत में पहुंच जाए | उस का ये घमंड से भरा जुमला सुन कर हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की “हाँ में हूँ” ये कह कर फ़तेह खैबर ने ज़ुल्फ़िकार के एक ही वार से उस का सर फाड़ दिया और वो ज़मीन पे तड़पने लगा और शेरे खुदा मुँह फेर कर वहां से हट गए लोगों ने पुछा की आपने उस का सर क्यों नहीं काट लिया ? शेरे खुदा ने फ़रमाया की जब वो ज़मीन पे गिरा तो उस की शर्मगाह खुल गई और वो मुझे कसम देने लगा की मुझे माफ़ कर दीजिए उस बेहया को बे सत्र देख कर मुझे शर्म दामन गीर हो गई इस लिए मेने मुँह फेर लिया | तल्हा के बाद उस का भाई उस्मान बिन अबू तल्हा रज्ज का ये शेर पढता हुआ हमला आवर हुआ की : अलम बरदार का फ़र्ज़ है की नेज़े को खून में रंग दे या वो टकरा कर टूट जाए | हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु उस के मुकाबले के लिए तलवार लेकर निकले और उस के कंधे पर ऐसा भर पूर हाथ मारा की तलवार रीढ़ की हड्डी को कटती हुई कमर तक पहुंच गई और आपके मुँह से ये नारा निकला की: में हाजियों के सैराब कर ने वाले अब्दुल मुत्तलिब का बेटा हूँ इस के बाद आम जंग शुरू हो गई और मैदाने जंग में कुश्तो खून का बाज़ार गर्म हो गया |

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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