हज़रते सय्यदना अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 3)

क़ब्र वालों से बात चीत

हज़रते सईद बिन मुसय्यब रदियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं के हम लोग हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के साथ मदीना शरीफ के क़ब्रिस्तान जन्नतुल बकी में गए तो अमीरुल मोमिनीन ने क़ब्रों के सामने खड़े हो कर बा आवाज़ बुलंद फ़रमाया, ऐ क़ब्र वालों ! अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह अलैह क्या तुम लोग अपनी खबरें हमें सुनाओगे या हम तुम लोगों को तुम्हारी खबरें सुनाएं? इस के जवाब में क़ब्रों के अंदर से आवाज़ आई व अलैकुमुस्सलाम व रहमतुल्लाह व बारकातुह ऐ अमीरुल मोमिनीन ! आप हमें ये सुनाइए के हमारी मोत के बाद हमारे घरों में क्या क्या मुआमलात हुए? हज़रते अमीरुल मोमिनीन ने फ़रमाया ! ऐ क़ब्र वालों ! तुम्हारे बाद तुम्हारे घरों की खबर ये है के तुम्हारी बीवी ने दूसरी शादी कर ली और तुम्हारे माल व दौलत को तुम्हारे वारिसों ने आपस में तकसीम कर लिया और तुम्हारे छोटे छोटे बच्चे यतीम हो कर दर बद्र फिर रहे हैं और तुम्हारे मज़बूत और ऊँचें ऊंचे महलों में तुम्हारे दुश्मन आराम और चैन के साथ ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं, इस के जवाब में क़ब्रों में से एक मुर्दे की दर्द नाक आवाज़ आई के ऐ अमीरुल मोमिनीन हमारी खबर ये है के हमारे कफ़न पुराने हो कर फट चुके हैं और जो कुछ हमने दुनिया में खर्च किया था उस को हमने यहाँ पा लिया और जो कुछ हमने दुनिया में छोड़ आए थे इस में हमे घाटा ही घाटा उठाना पड़ा । 

डूबा हुआ सूरज दुबारा निकला आया

सही रवायतों से साबित है के अल्लाह पाक ने आप की वजह से दो बार डूबे हुए सूरज को दुबारा निकाल दिया एक तो मक़ामे सहबा में जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम असर की नमाज़ अदा फरमा कर मौलाए काइनात अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के ज़ानों पर सर रख कर सो रहे थे के इसी बीच में वही का नुज़ूल हो गया और ये सिलसिला इतनी देर तक कायम रहा के सूरज ग़ुरूब हो गया और हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की नमाज़े असर क़ज़ा हो गई, जब वही के नुज़ूल का सिलसिला ख़त्म हुआ तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु से पूछा के असर की नमाज़ तुम ने अदा की? आप के हुक्म से अदा करूंगा और में ने बेदार इस लिए नहीं फ़रमाया ये अदब के खिलाफ है,          

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुआ फ़रमाई तो डूबा हुआ सूरज वापस आ गया और आप ने असर की नमाज़ अदा फ़रमाई, 

दूसरी बार विसाले हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद जिस वक़्त आप बाबिल की तरफ सफर में थे और आप ने चाहा के फुरात से पार उतरें तो वो असर की नमाज़ का वक़्त था यहाँ तक के आप और आप के कुछ साथियों ने असर की नमाज़ अदा फरमा ली और दुसरे असहाब जो चौपायों और सामने को दरिया से पार कर रहे थे वक़्त ज़ियादा हो जाने की वजह से सूरज डूब गया और असर की नमाज़ क़ज़ा हो गई उस वक़्त आप के असहाब ने आप की खदमत में नमाज़े असर की कज़ा हो जाने की परेशानी ज़ाहिर की तो आप ने काज़ियल हाजात की बारगाह में दुआ के लिए हाथ उठाए तो अल्लाह पाक ने सूरज को लोटा दिया और आप के असहाब ने असर की नमाज़ पढ़ी इस के बाद सूरज डूब गया ।

आप की शादी मुबारक व अज़वाज (बीवियां)

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के बारे में रिवायतों में इख्तिलाफ है यहां पे हम चंद रिवायतें दर्ज करते हैं 

  1. पहली बीवी हज़रते सय्यदह फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा बिन्ते रसूल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम थीं जब तक हज़रते सय्यदह फातिमा ज़िंदा रहीं आप ने कोई दूसरा निकाह नहीं फ़रमाया हज़रते फातिमा से तीन बेटे हज़रते इमाम हसन, हज़रते इमाम हुसैन और हज़रते मुहसिन और तीन बेटियां उम्मे कुलसूम कुबरा, ज़ैनब व रुकय्या कुबरा थीं, 
  2. दूसरी बीवी उमामा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नवासी व हज़रत बीवी ज़ैनब की साहब ज़ादी थीं, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन को बहुत प्यार करते थे, हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने हस्बे वसीयत हज़रते सय्यदह के इन से निकाह किया था और इन से सिर्फ एक साहब ज़ादे मुहम्मद औसत पैदा हुए । 
  3. (तीसरी बीवी अस्मा बिन्ते उमेस थीं, ये आप के भाई हज़रते जाफर तय्यार रदियल्लाहु अन्हु की बीवी थीं उन की वफ़ात के बाद हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु ने इन से निकाह किया था, बादे वफ़ात, हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु ये आप के निकाह मे आईं इन से दो साहब ज़ादे हज़रते ओन, और याह्या, पैदा हुए, 
  4. चौथी बीवी हज़रते खौला बिन्ते जाफर बिन केस बिन सलमा थीं, इन से हज़रते मुहम्मद अकबर जिन को मुहम्मद हनीफ और मुहम्मद बिन हनफ़िया, भी कहते हैं पैदा हुए, साहब ज़ादे बड़े बहादुर और सखी और खुश तकदीर थे, विसाल इक्कीयावन 51, हिजरी में हुआ । 
  5. पांचवी बीवी उम्मुल बनीन बिन्ते हराम बिन खालिद बिन जाफर बिन रबीआ कुलाबी थीं । उन से हज़रते अब्बास, हज़रते जाफर, हज़रते उस्मान, हज़रते अब्दुल्लाह, और ये चरों साहब ज़ादे हमराह सय्यदुश शुहदाह के कर्बला में शहीद हुए । 
  6. छटी बीवी उम्मे हबीब बिन्ते रबिआ थीं, इन से एक साहब ज़ादे हज़रते अमर और एक साहब ज़ादी रुकय्या सुगरा तवाम पैदा हुए । 
  7. सातवीं बीवी लैला बिन्ते मसऊद, थीं, इन से दो साहब ज़ादे पैदा हुए एक अब्दुल्लाह सानी, जिन को मुख्तार बिन अबी उबैद ने क़त्ल किया दूसरे अबू बकर, जो कर्बला में शहीद हुए । 
  8. आठवीं बीवी उम्मे सअद, बिन्ते उर्वाह थीं इन से दो बेटियां पैदा हुईं उम्मुल हसन और रमरतुल कुबरा पैदा हुईं । 
  9. नवी बीवी का नाम और उन से कौन कौन औलादें हुईं मालूम नहीं हो सका । 

आप की औलाद किराम

आप के कुल साहब ज़ादे पन्द्रा 15, थे, जिन के नाम इस तरह हैं । 

  1. हज़रते हसन 
  2. हज़रते हुसैन 
  3. हज़रते मुहसिन 
  4. मुहम्मद अकबर 
  5. मुहम्मद औसत 
  6. मुहम्मद असगर 
  7. अब्बास 
  8. उस्मान 
  9. जाफर 
  10. अब्दुल्लाह 
  11. उबैदुल्लाह सानी 
  12. अबू बक्र
  13. उमर
  14. याह्या 
  15. ओन रिद्वानुल्लाही तआला अजमईन । 

साहब ज़ादियाँ (बेटियां) सतराह 17, थीं जिन के अस्मए मुबारक (नाम) ये हैं ।  

  1. उम्मे कुलसूम कुबरा 
  2. ज़ैनब 
  3. रुकय्या कुबरा 
  4. रुकय्या सुगरा 
  5. उम्मुल हसन 
  6. रमला कुबरा 
  7. रमला सुगरा 
  8. उम्मे हानी
  9. उम्मे कुलसूम सुगरा 
  10. मेमूना 
  11. फात्मा 
  12. उम्मुल खैर
  13. उम्मे सलमाह
  14. उम्मे जाफर 
  15. हिमाना नफीसा रिद्वानुल्लाही तआला अजमईन । 

आप के साहब ज़ादों में सिर्फ पांच की नस्ल बाकी है, हज़रते इमामे हसन, हज़रते इमामे हुसैन, हज़रते अब्बास, हज़रते मुहम्मद बिन हनफ़िया और हज़रते उमर रिद्वानुल्लाही तआला अजमईन । और साहब ज़ादियों में से सिर्फ एक साहब ज़ादी ज़ैनब बिन्ते फातिमा की नस्ल मौजूद है जिन का निकाह हज़रते अब्दुल्लाह बिन जाफर रदियल्लाहु अन्हुमा से हुआ था । 

हज़रते अल्लामा मुफ़्ती अहमद यार खान रहमतुल्लाह अलैह ने आप के बारह 12, साहब ज़ादे और नो 9, साहब ज़ादियाँ तहरीर फ़रमाई हैं जब के सही तादाद में हज़रते अल्लामा मुहम्मद मियां माराहरवी रहमतुल्लाह अलैह ने अठ्ठारह 18, लड़के और अठ्ठारह 18, लड़कियां तहरीर फ़रमाई हैं । 

आप के खुल फ़ाए किराम

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के छेह 6, खलीफा थे, जिन के अस्मए मुबारक ये हैं, 

  1. हज़रते कुमैल बिन ज़ियाद
  2. हज़रते ख्वाजा ओवैस करनी 
  3. हज़रते क़ाज़ी अबुल मुक़दाम शारेह बिन हानि ज़ैद हारसी 
  4. हज़रते ख्वाजा हसन बसरी रिद्वानुल्लाही तआला अजमईन ।
आप के मलफ़ूज़ात शरीफ
  • हिकमत की बात गोया मोमिन की गुमशुदा चीज़ है जिसे वो जहां देख लेता है । 
  • बसारत का चले जाना चश्म बसीरत के अँधा होने से अच्छा है । 
  • जो शख्स माल देने में सब से ज़ियादा बख़ील हो वो अपनी इज़्ज़त के देने में सब से ज़ियादा सखी होता है । 
  • जो शख्स अपने दुश्मन के क़रीब रहता है उस का जिस्म गम की वजह से घुल कर लागर हो जाता है । 
  • खुदा की रहमत से न उम्मीद होना निहायत नुक्सान देह है । 
  • दीन की दुरुस्ती दुनिया के नुक्सान कर ने से हासिल होती है । 
  • फुर्सत को खोना बहुत बड़ी मुसीबत है । 
  • इल्म माल से बेहतर है क्यूंकि इल्म तुम्हारी हिफाज़त करता है और तुम माल की हिफाज़त करते हो । 
  • हक निहायत ज़बरदस्त मदद गार है और झूट बहुत कमज़ोर मदद गार है ।  
  • सब्र एक ऐसी सवारी है जो कभी ठोकर नहीं खाती । 
  • जब रिज़्क़ की तंगी तेरे ऊपर हो तू बख्शीश मांग अल्लाह पाक से यानि अस्तग़्फ़िरुल्लाह और कलमा पढ़ कुशादगी होगी । 
  • बुराइयों से परहेज़ करना नेकियां कमाने से बेहतर है । 
  • अक़ीदे में शक करना शिर्क के बराबर है । 

फ़रमाया अल्लाह पाक ने दुनिया में फक्र में सवाब भी रखा है और अज़ाब भी है वो फक्र जिस में सवाब मौजूद है वो ये है साहिबे फक्र के अख़लाक़ नेक हों, अपने रब का इताअत गुज़ार बन्दा हो ।  और अपने हाल की शिकायत अपने लब पे न लाए और अपने फक्र पर अल्लाह पाक का शुक्र बजा लाए और वो फक्र जिस में अज़ाब है इस की अलामत ये है के साहिबे फक्र के अखलाक बुरे हों और अपने रब का ना फरमान हो, अपने फक्र पर बहुत शिक्वाह शिकायत करे और हुक्मे इलाही या तकदीर पर गुस्सा करे ।  

आप की शहादत का वाक़िआ

आप की शहादत का वाकिअ जो तारीखे इस्लाम का बहुत ही दर्द नाक वाक़िआ है क़त्ल के सिलसिले में वाक़िआ यूं दर्ज है के तीन खबीस क़िस्म के ख़ारजी अब्दुर रहमान बिन मुलिजम मुरादी, बर्क बिन अब्दुल्लाह तमीमी और अमर बिन बुकेर तमीमी ये तीनो मक्का शरीफ में जमा हुए और आपस में ये फैसा किया के हज़रते अली व हज़रते मुआविया व हज़रते अमर बिन आस रदियल्लाहु अन्हुम को एक मुअय्यन (फिक्स) तारीख में क़त्ल कर दिया जाए  | 

और इमाम सदी से ये मन्क़ूल है : के अब्दुर रहमान बिन मुलिजम एक ख़ारजी औरत क़िताम पर आशिक हो गया और इस ख़बीसा की शादी का महर तीन हज़ार दिरहम एक गुलाम एक लोंडी और हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु का क़त्ल करना करार पाया  |

ये तीनो अश्ख़ास मक्का शरीफ में जमा हुए और ये वाक़िआ सतराह 17, रमज़ानुल मुबारक को तय किया गया, ये तीनो अपने अपने अहिद को पूरा कर ने के लिए तय्यार हो गए और बर्क ने दमिश्क जा कर हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु पर हमला किया, इन का सुरीन ज़ख़्मी हो गया मगर जान बच गई, हज़रते अमीर मुआविया ने इस को गिरफ्तार कर के इस के हाथ पाऊँ काट कर छोड़ दिया और अम्र बिन बुकेर हज़रते अम्र बिन आस रदियल्लाहु अन्हु के क़त्ल के वास्ते मिस्र को रवाना हुआ और जिस रोज़ ये मिस्र में दाखिल हुआ तो हज़रते अम्र बिन आस रदियल्लाहु अन्हु पुश्त या शिकम में दर्द था उन्हों ने अपनी जगह पर सुहैल आमरी या खारजा को नमाज़ पढ़ाने के वास्ते भेज दिया,  इब्ने बुकेर ने सुहैल आमरी को हज़रते अम्र बिन आस रदियल्लाहु अन्हु समझ कर क़त्ल कर डाला जिस वक़्त सुहैल आमरी मकतूल हुए जमाअत के लोगों ने इब्ने बुकेर को पकड़ा और हज़रते अम्र बिन आस रदियल्लाहु अन्हु के पास लाए | उन्हों ने फ़रमाया तूने किस को क़त्ल किया है लोग कहते हैं के खारजा मकतूल हुए? इस ने जवाब दिया में ने अम्र के क़त्ल का इरादा किया था लेकिन अल्लाह पाक ने खारजा का इरादा किया | आप ने इस के क़त्ल का हुक्म दिया और इब्ने मुल्जिम ने कूफ़ा शहर में आ कर अपने साथियों से मुलाकात की और हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के क़त्ल का अज़्म मुसमंम यानि पक्का इरादा कर लिया | हस्बे मामूल रात के पिछले हिस्से में हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु बेदार हुए और अपने फ़रज़न्द (बेटे) हज़रते इमामे हसन रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया: नूरे नज़र आज रात में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत से मुशर्रफ हुआ हूँ और में ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप की उम्मत से मुझे कोई राहत नहीं मिली तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझ से फ़रमाया तुम ज़ालिमों के लिए बद दुआ करो तो में ने ये दुआ मांगी है के या अल्लाह तू मुझे इन लोगों के बदले इन से बेहतर लोगों के बदले इन से अच्छे लोगों का साथ अता फरमा और इन लोगों को मेरी जगह ऐसे शख्स को अता फरमा जो इन लोगों के हक में बहुत ही बुरा हो,

अभी आप साहब ज़ादे से यही फरमा रहे थे के इब्ने नबाह मुअज़्ज़िन ने आ कर अस्सलात कहा यानि नमाज़ को चलिए | चुनांचे आप घर से लोगों को नमाज़ के लिए आवाज़ देते हुए मस्जिद को चले आप मस्जिद में दाखिल हुए और अब्दुर रहमान इब्ने मुल्जिम शकीउल क़ल्ब सुतून के पीछे खड़ा हुआ था | अचानक धोके से आप की पेशानी पर ज़हर में बुझी हुई ऐसी तलवार मारी के आप का चेहरा मुबारक कुहनी तक कटता चला गया तलवार दिमाग में जा कर रुकी शमशीर लगते ही आप ने फ़रमाया रब्बे काअबा की कसम में कामयाब हो गया | फिर चरों तरफ से लोग इस बद बख्त क़ातिल पे टूट पड़े और भागते हुए पकड़ लिया गया और आप के सामने लाया गया तो आप ने फ़रमाया :

क़ैद करो और इस को अच्छा खाना दो और इस के लिए नरम बिस्तर तय्यार करो अगर में ज़िंदा रहा तो अपने खून के माफ़ कर देने का मुख्तार हूँ चाहे माफ़ करूँ या बदला लूँ और अगर में इन्तिकाल कर गया तो इस को भी मेरे साथ क़त्ल कर देना और अल्लाह पाक इस का बदला लेगा |

आप इसी ज़ख्म की हालत में जुमा और सनीचर के रोज़ ज़िंदह रहे और इतवार की रात को वफ़ात पा गए | 

तारीखे विसाल

आप का विसाल इक्कीस 21, रमज़ानुल मुबारक 40, हिजरी मुताबिक 4, फरबरी 661, ईस्वी इतवार की शब् को हुआ  | और इसी तारीख को हर साल आप का उर्स दुनिया भर में धूम धाम से मनाया जाता है |

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो |  

आप की आखिरी वसीयत

अपने आखरी वक़्त में हज़रते हसनैन करीमैन रदियल्लाहु अन्हु को बुला कर फ़रमाया के तुम को तक्वा की वसीयत करता हूँ और ये के दुनिया को मत चाहना अगर वो तुम्हे चाहे और इस में से अगर कुछ तुम से जाता रहे तो तो इस पे रोना नहीं, हक़ बोलना, यतीमो पे रहम करना, कमज़ोरों की मदद करना फिर अपने साहब ज़ादे मुहम्मद बिन हनफ़िया को भी यही वसीयत की और अपने दोनों भाइयों सिब्तैन करीमैन की इज़्ज़तो तौकीर फरमा बरदारी की ताकीद की फिर सिब्तैन करीमैन को इन का लिहाज़ रखने की वसीयत की और इस के बाद कोई कलाम नहीं किया सिवाए कलमा शरीफ के।      

तज्हीज़ व तकफीन

आप को हज़राते हसनैन करीमैन व हज़रत अब्दुल्लाह बिन जाफर रदियल्लाहु अन्हुम ने ग़ुस्ल दिया और कफ़न में तीन कपड़े थे जिस में कमीस इमाम नहीं था, इमामे हसन रदियल्लाहु अन्हु ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई । 

आप का मज़ार शरीफ

आप के मज़ार मुबारक के बारे में मुख्तलिफ अक़वाल हैं, मशहूर क़ौल ये है के मुल्के ईराक के शहर नजफ़ अशरफ में है । 

आप की खिलाफत

चार 4, साल 8, आठ महीने नो 9, दिन खिलाफत की ज़िम्मे दारी को संभाला ।     

रेफरेन्स हवाला        

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) तारीख़ुल खुलफ़ा,
(5) शजराए तय्यबा नुरुल अबसार,
(6) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(7) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(8) सीरते हज़रते सय्य्दना अली मुर्तज़ा,
(9) हज़रते अली के सौ 100, वाक़िआत,
(10) खुलफाए राशिदीन,    

       

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