हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 10)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 10)

अबू दुजाना की खुश नसीबी

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दस्ते मुबारक में एक तलवार थी जिस पर ये शेर लिखा था की, बुज़दिली में शर्म है और आगे बढ़ कर लड़ने में इज़्ज़त है और आदमी बुज़दिली कर के तकदीर से नहीं बच सकता |हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की कौन है जो इस तलवार को ले कर इस का हक अदा करे ये सुन कर बहुत से लोग इस सदाअत के लिए लपके मगर ये फखरो शरफ़ हज़रते अबू दुजाना रदियल्लाहु अन्हु के नसीब में था की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी ये तलवार अपने हाथ से हज़रते अबू दुजाना रदियल्लाहु अन्हु के हाथ में दे दी | वो ये ऐजाज़ पा कर जोशे ख़ुशी में बेखुद हो गए और अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इस तलवार का हक क्या है ? इरशाद फ़रमाया की “तू इस से काफिरों को क़त्ल करे यहाँ तक की टेढ़ी हो जाए |

हज़रते अबू दुजाना रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में इस तलवार को इस के हक के साथ लेता हूँ | फिर वो अपने सर पर एक सुर्ख रंग का रुमाल बांध कर अकड़ते और इतराते हुए मैदाने जंग में निकल पड़े और दुश्मनो की सफों को चीरते हुए और तलवार चलाते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे की एक दम उन के सामने अबू सुफियान की बीवी “हिन्द” आ गई | हज़रते अबू दुजाना रदियल्लाहु अन्हु ने इरादा किया की इस पर तलवार चला दें मगर फिर इस ख्याल से की तलवार हटा ली की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुक़द्दस तलवार के लिए ये ज़ेब नहीं देता की वो किसी औरत का सर काटे | हज़रते अबू दुजाना रदियल्लाहु अन्हु की तरह हज़रते हम्ज़ा और हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुमा भी दुश्मनो की सफों में घुस गए और कुफ्फार का क़त्ले आम शुरू कर दिया |हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु इंतिहाई जोशे जिहाद में दो दस्ती तलवार मारते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे | इसी हालत में “सबआ गबशनि” सामने आ गया आप ने तड़प कर फ़रमाया की ऐ औरतों का खतना करने वाली औरत के बच्चे ! ठहर कहाँ जाता है? तू अल्लाह व रसूल से जंग करने चला आया है | ये कह कर उस पर तलवार चला दी, और वो दो टुकड़े हो कर ज़मीन पर ढेर हो गया |

हज़रते हम्ज़ा की शहादत

“वहशी” जो एक हब्शी गुलाम था और उस का आका ज़ुबेर बिन मुतअम उससे वादा कर चुका था की तू अगर हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु को क़त्ल कर दे तो में तुझ को आज़ाद कर दूंगा | वहशी एक चट्टान के पीछे छुपा हुआ था और हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु की ताक में था जू ही आप उस के करीब पहुंचे उस ने दूर से नेज़ा फेंक कर मारा जो आप की नाफ में लगा | और पुश्त के पार हो गया | इस हाल में भी हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु तलवार लेकर उस की तरफ बढ़े मगर ज़ख्म की ताब न ला कर गिर पड़े और शहादत से सरफ़राज़ हो गए |कुफ्फार के अलम बरदार खुद कट कट कर गिरते चले जा रहे थे मगर उन का झंडा गिरने नहीं पता था | उन काफिरों के जोशो खरोश का ये आलम था की जब एक काफिर ने जिस का नाम “सवाब” था मुशरिकीन का झंडा उठाया तो एक मुस्लमान ने उस को इस ज़ोर से तलवार मारी की उस के दोनों हाथ कट कर ज़मीन पे गिर पड़े मगर उस ने अपनी कोमी झंडे को ज़मीन पर गिरने नहीं दिया बल्कि झंडे को अपने सीने से दबाए हुए ज़मीन पर गिर पड़ा | इसी हालत में मुसलमानो ने उस को क़त्ल कर दिया | मगर वो क़त्ल होते हो ते ये कहता रहा “की मेने अपना फ़र्ज़ अदा कर दिया” था उस के मरते ही एक बहादुर औरत जिस का नाम “अमराह” था उस ने झपट कर कोमी झंडे को अपने हाथों में लेकर बुलंद कर दिया, ये मंज़र देख कर कुरेश को गैरत आई और उन की बिखरी हुई फौज सिमट आई और उन के उखड़े हुए कदम फिर जम गए | (बुखारी शरीफ जिल्द, 2)

हज़रते हन्ज़ला की शहादत

“अबू आमिर राहिब कुफ्फार की तरफ से लड़ रहा था” “मगर उस के बेटे हज़रते हन्ज़ला रदियल्लाहु अन्हु परचमे इस्लाम के नीचे जिहाद कर रहे थे” | हज़रते हन्ज़ला रदियल्लाहु अन्हु ने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझे इजाज़त दीजिये में अपनी तलवार से अपने बाप अबू आमिर राहिब का सर काट कर लाऊं मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रहमत ने ये गवारा नहीं किय की बेटे की तलवार बाप का सर काटे | हज़रते हन्ज़ला रदियल्लाहु अन्हु इस क़द्र जोश में भरे हुए थे सर हथेली पे रख कर इंतिहाई जांबाज़ी के साथ लड़ते हुए कल्बे लश्कर तक पहुंच गए और कुफ्फार के सिपाह सालार अबू सुफियान पर हमला कर दिया और करीब था की हज़रते हन्ज़ला रदियल्लाहु अन्हु की तलवार अबू सुफियान का फैसला कर दे की अचानक पीछे से “शद्दाद बिन अल अस्वद” ने झपट कर वार को रोका और हज़रते हन्ज़ला रदियल्लाहु अन्हु को शहीद कर दिया |

हज़रते हन्ज़ला रदियल्लाहु अन्हु के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की “फ़रिश्ते हन्ज़ला को ग़ुस्ल दे रहे हैं” ! जब उन की बीवी से उन का हाल पूछा गया तो उस ने कहाँ की जंगे उहद की रात में वो अपनी बीवी के साथ सोए थे, ग़ुस्ल की हाजत थी मगर दावते जंग की आवाज़ उन के कानो में पड़ी तो वो इसी हालत में जंग में शरीक हो गए | ये सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की यही वजह है की फरिश्तों ने ग़ुस्ल दिया | इसी वाकिए की बिना पर हज़रते हन्ज़ला रदियल्लाहु अन्हु को “गसीलुल मलाइका” के लक़ब से याद किया जकता है |इस जंग में मुजाहिदीन अंसार व मुहाजिरीन बड़ी दिलेरी और जांबाज़ी से लड़ते रहे यहाँ तक के मुशरिकीन के पाऊं उखड़ गए | हज़रते अली व हज़रते अबू दुजाना व हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास रदियल्लाहु अन्हुम वगैरा के मुजाहिदाना हमलों ने मुशरिकीन की कमर तोड़ दी | कुफ्फार के तमाम अलम बरदार उस्मान, अबू साद, मसाफे, तल्हा बिन अबू तल्हा, वगैरा एक एक कर के कट कट कर ज़मीन पर ढेर हो गए | कुफ्फार को शिकस्त हो गई और वो भागने लगे और उन की औरतें जो अशआर पढ़ पढ़ कर लश्करे कुफ्फार को जोश दिला रही थीं वो भी बद हवसी के आलम में अपने इज़ार उठाए हुए बरहना साक भगति हुई पहाड़ों पर दौड़ती चली जा रहीं थीं और मुसलमान क़त्लो गारत में मशगूल थे |

न गहा अचानक जंग का पांसा पलट गया

कुफ्फार की भगदड़ और मुसलमानो के फ़ातिहाना कत्लो गारत का यह मंज़र देख कर वोह पचास तीर अंदाज़ मुस्लमान जो दर्रे की हिफाज़त पर मुक़र्रर किए गए थे वोह भी आपस में एक दूसरे से यह कहने लगे की गनीमत लूटो गनीमत लूटो तुम्हारी फतह हो गई उन लोगो के अफसर हज़रते अब्दुल्लाह बन ज़ुबैर रदियल्लाहु अन्हु ने हर चंद रोका और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान याद दिलाया और फरमाने मुस्तफ़वी की मुखालफत से डराया मगर उन तीर अंदाज़ मुसलमानो ने एक न सुनी और अपनी जगह छोड़ कर माले गनीमत लूटने में मसरूफ हो गए लश्करे कुफ्फार का एक अफसर खालिद बिन वलीद पहाड़ की बुलंदी से यह मंज़र देख रहा था जब उस ने देखा की दर्रा पहरेदारो से खाली हो गया है फ़ौरन ही उस ने पीछे के रास्ते से फौज ला कर मुसलमानो के पीछे से हमला कर दिया | हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हु ने चंद जांबाज़ों के साथ इंतिहाई दिलेराना मुकाबला किया मगर ये सब के सब शहीद हो गए | अब क्या था काफिरों की फौज के लिए रास्ता साफ़ हो गया खालिद बिन वलीद ने ज़बर दस्त हमला कर दिया ये देख कर भागति हुई कुफ्फारे कुरेश की फौज भी पलट पड़ी | मुसलमान माले गनीमत लूटने में मसरूफ थे पीछे से फिर कर देखा तलवारें बरस रहीं थीं और कुफ्फार आगे पीछे दोनों तरफ से मुसलमानो पर हमला कर रहे थे और मुसलमानो का लश्कर चक्की के दो पाटों में दानो की तरह पिसने लगा और मुसलमानो में ऐसी बद हवसी और अब्तरि फ़ैल गई की अपने और बेगाने की तमीज़ नहीं रही | खुद मुसलमान मुसलमानो की तलवारों से क़त्ल हुए चुनांचे हज़रते हुज़ैफ़ा रदियल्लाहु अन्हु के वालिद हज़रते यमान रदियल्लाहु अन्हु खुद मुसलमानो की तलवारों से शहीद हुए | हज़रते हुज़ैफ़ा रदियल्लाहु अन्हु चिल्ला ते ही रहे की “ऐ मुसलमानो ! ये मेरे बाप हैं | मगर कुछ अजीब बद हवसी फैली हुई थी की किसी को किसी का धियान ही नहीं था और मुसलमानो ने हज़रते यमान रदियल्लाहु अन्हु को शहीद कर दिया |

हज़रते मुसअब बिन उमैर भी शहीद :- फिर बड़ा गज़ब ये हुआ की लश्करे इस्लाम के अलम बरदार हज़रते मुसअब बिन उमैर रदियल्लाहु अन्हु पर इब्ने कमीआ काफिर झपटा और उन के दाएं हाथ पर इस ज़ोर से तलवार चला दी की उन का दायां हाथ कट कर गिर पड़ा इस जांबाज़ मुहाजिर ने झपट कर इस्लामी झंडे को बाएं हाथ से पकड़ लिया मगर इब्ने कमीआ ने तलवार मार कर उन के बाएं हाथ को भी शहीद कर दिया दोनों हाथ कट चुके थे मगर हज़रते मुसअब बिन उमैर रदियल्लाहु अन्हु अपने दोनों कटे हुए बाज़ुओ से परचमे इस्लाम को अपने सीने से लगाए हुए खड़े रहे और बुलंद आवाज़ से ये आयत पढ़ते रहे की

फिर इब्ने कमीआ ने उन को तीर मार मार कर शहीद कर दिया | हज़रते मुसअब बिन उमैर रदियल्लाहु अन्हु जो सूरत में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कुछ मुशाबेह थे उन को ज़मीन पर गिरते हुए देख कर कुफ्फार ने गुल मचा दिया की (मआज़ल्लाह) हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़त्ल हो गए | अल्लाहु अकबर ! इस आवाज़ ने गज़ब ही ढा दिया मुसलमान ये सुन कर बिकुल ही सरासीमा और परागन्दा दिमाग हो गए और मैदाने जंग छोड़ कर भागने लगे | बड़े बड़े बहादुरों के पाऊं उखड़ गए और मुसलमानो में तीन गिरोह हो गए | कुछ लोग तो भाग कर मदीने के करीब पहुंच गए, कुछ लोग सहम कर मुर्दा दिल हो गए जहाँ थे वहीँ रह गए अपनी जान बचते रहे या जंग कर ते रहे, कुछ लोग जिन की तादाद बारह 12, थी वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ साबित क़दम रहे | इस हल चल और भगदड़ में बहुत से लोगों ने तो बिलकुल ही हिम्मत हार दी और जो जांबाज़ी के साथ लड़ना चाहते थे वो भी दुश्मनो के दो तरफ हमलो के नरगे में फस कर मजबूर व लाचार हो चुके थे ताजदारे दो अलम कहाँ हैं ? और किस हाल में हैं ? किसी को इस की खबर नहीं थी |

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु तलवार चलाते और दुश्मनो की सफों की दरहम बरहम करते चले जाते थे मगर वो हर तरफ मुड़ मुड़ कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखते थे मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नज़र न आने से वो इंतिहाई इज़्तिराब व बेकरारी के आलम में थे | हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु के चचा हज़रते अनस बिन नज़्र रदियल्लाहु अन्हु लड़ते लड़ते मैदाने जंग से भी कुछ आगे निकल पड़े वहां जा कर देखा की कुछ मुसलमानो ने मायूस हो कर हथियार फेंक दिए हैं | हज़रते अनस बिन नज़्र रदियल्लाहु अन्हु ने पूछा की तुम लोग यहाँ बैठे क्या कर रहे हो? जिन के लिए लड़ते थे वो तो शहीद हो गए | हज़रते अनस बिन नज़्र रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की अगर वाकई हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शहीद हो चुके तो फिर हम उन के बाद ज़िंदा रह कर क्या करेंगें? चलो हम भी इसी मैदान में शहीद हो कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास पहुंच जाएं ये कह कर आप दुश्मनो के लश्कर में लड़ते हुए घुस गए और आखरी दम तक इंतिहाई जोशे जिहाद और और जांबाज़ी के साथ जंग करते रहे यहाँ तक की शहीद हो गए | लड़ाई खत्म होने के बाद जब इन की लाश देखि गई तो अस्सी से ज़्यादा तीर व तलवार और नेज़े के ज़ख्म इन के बदन पे थे काफिरों ने इन के बदन को छलनी बना दिया था और नाक कान काट कर इन की सूरत बिगड़ी थी कोई शख्स इन की लाश को पहचान न सका सिर्फ इन की बहन ने इन की उँगलियों को देख कर इन को पहचाना |इसी तरह हज़रते साबित बिन दहदाह रदियल्लाहु अन्हु ने मायूस हो जाने वाले अंसारियों से कहा की ऐ ! जमाते अंसार अगर बिल फ़र्ज़ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शहीद भी हो गए तो तुम हिम्मत क्यूं हार गए? तुम्हारा अल्लाह तो ज़िंदा है लिहाज़ा तुम लोग उठो और अल्लाह के दीन के लिए जिहाद करो, ये कह कर आपने चंद अंसारियों को आपने साथ लिया और लश्करे कुफ्फार पर भोके शेरोन की तरह हमला कर दिया और आखिर खालिद बिन वलीद के नेज़े से जामे शहादत नोश कर लिया |

जंग जारी थी और जाँ निसाराने इस्लाम जो जहाँ थे वही लड़ाई में मसरूफ थे मगर सब की निगाहें इंतिहाई बेकरारी के साथ जमाले नुबूवत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तलाश करती थीं, ऐन मायूसी के आलम में सब से पहले जिस ने ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा वो हज़रते काब बिन मालिक रदियल्लाहु अन्हु की खुश नसीब आँखें हैं, उन्हों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पहचान कर मुसलमानो को पुकारा की ऐ मुसलमानो! इधर आओ, रसूले खुदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ये हैं, इस आवाज़ को सुन कर तमाम जांनिसारों में जान पड़ गई और हर तरफ से दौड़ दौड़ कर मुस्लमान आने लगे, कुफ्फार ने भी हर तरफ से हमला रोक कर रहमते आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कातिलाना हमला कर ने के लिए सारा ज़ोर लगा दिया | लश्करे कुफ्फार का दल बदला हुजूम के साथ उमण्ड पड़े और बार बार मदनी ताजदार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर यलगार करने लगा मगर ज़ुल्फ़िकार की बिजली से ये बादल फट फट कर रह जाता था |

ज़ियाद बिन सकन की शुजाअत और शहादत

एक बार कुफ्फार का हुजूम हमला आवर हुआ तो सरवरे आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की कोन है जो मेरे ऊपर अपनी जान कुर्बान करता है? ये सुनते ही हज़रते ज़ियाद बिन सकन रदियल्लाहु अन्हु पांच अंसारियों को लेकर आगे बढ़े और हर एक ने लड़ते हुए अपनी जाने फ़िदा कर दीं | हज़रते ज़ियाद बिन सकन रदियल्लाहु अन्हु ज़ख्मो से लाचार हो कर ज़मीन पर गिर पड़े मगर कुछ कुछ जान बाकि थी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया इन की लाश को मेरे पास उठा लाओ, जब लोगो ने उन की लाश को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में पेश किया तो हज़रते ज़ियाद बिन सकन रदियल्लाहु अन्हु ने खिसक कर महबूबे खुदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़दमों पे अपना मुँह रख दिया और इसी हालत में उन की रूह परवाज़ कर गई |अल्लाहु अकबर ! हज़रते ज़ियाद बिन सकन रदियल्लाहु अन्हु की इस मोत पर लाखों ज़िंदगियाँ कुर्बान हैं ! सुब्हान अल्लाह |

खजूर खाते खाते जन्नत में

इस घमसान की लड़ाई और मारधाड़ के हंगामो में एक बहादुर मुस्लमान खड़ा हुआ, निहायत बे परवाई के साथ खजूरें खा रहा था | एक दम आगे बढ़ा और अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर में इस वक़्त शहीद हो जाऊं तो मेरा ठिकाना कहाँ होगा? आप ने इरशाद फ़रमाया की तू जन्नत में जाएगा वो बहादुर इस बशारत को सुन कर मस्त बेखुद हो गया एक दम कुफ्फार के हुजूम में कूद पड़ा और ऐसी बहादुरी के साथ लड़ने लगा की काफिरों के दिल दहल गए इसी तरह जंग करते करते शहीद हो गया |

लंगड़ाते हुए जन्नत में

अम्र बिन जमूह अंसारी रदियल्लाहु अन्हु लंगड़े थे | ये घर से निकलते वक़्त ये दुआ मांग कर चले थे की या अल्लाह ! मुझे मैदाने जंग से अहले आयल में आना नसीब मत कर, इन के चार बेटे भी जिहाद में मसरूफ थे | लोगों ने इन को लंगड़ा होने की बिना पर जंग करने से रोक दिया तो ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में गिड़गिड़ा कर अर्ज़ करने लगे की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मुझ को जंग में लड़ने की इजाज़त अता फरमाइए, मेरी तमन्ना है की लंगड़ाता हुआ बागे बहिश्त में खिरामा खिरामा चला जाऊँ | उन की बे करारी और गिरया व ज़ारी से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कल्बे मुबारक मुतअस्सिर हो गया और आप ने उन को जंग की इजाज़त दे दी | ये ख़ुशी से उछाल पड़े और अपने एक बेटे को साथ लेकर काफिरों की भीड़ में घुस गए हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की मेने हज़रते अम्र बिन जमहू रदियल्लाहु अन्हु को देखा की वो मैदाने जंग में ये कहते हुए चल रहे थे की “खुदा की कसम” ! में जन्नत का मुश्ताक़ हूँ | उन के साथ साथ उन को सहारा देते हुए उन का लड़का भी इंतिहाई शुजाअत के साथ लड़ रहा था यहाँ तक की ये दोनों शहादत से सरफ़राज़ बागे जन्नत में पहुंच गए | खत्म हो जाने के बाद इन की बीवी हिन्द ज़ौजए अम्र बिन जमूह मैदाने जंग में पहुंची और उस ने एक ऊँट पर इन की और आपने भाई और बेटे की लाश को लाद कर दफन के लिए मदीना लाना चाहा तो हज़ारों कोशिशों के बा वजूद किसी तरह भी वो ऊँट एक कदम भी मदीने की तरफ नहीं चला बल्कि वो मैदाने जंग ही की तरफ भाग भाग कर जाता रहा | हिन्द ने जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ये माजरा अर्ज़ किया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की ये बता : क्या अम्र बिन जमहू रदियल्लाहु अन्हु ने घर से निकलते वक़्त कुछ कहा था? हिन्द ने कहा की जी हाँ ! वो ये दुआ कर के घर से निकले थे की “या अल्लाह पाक” ! मुझ को मैदाने जंग से अहलो आयल में आना नसीब मत कर | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की यही वजह है की ऊँट मदीने की तरफ नहीं जा रहा है |

ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़ख़्मी

इसी बे करारी और परेशानी के आलम में जब की बिखरे हुए मुसलमान अभी रहमते आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास जमा भी नहीं हुए थे की अब्दुल्लाह बिन कमीआ जो कुरेश के बहादुरों में बहुत ही नामवर था | उस ने अचानक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख लिया | एक दम बिजली की तरह सफों को चीरता हुआ आया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क़ातिलाना हमला कर दिया | ज़ालिम ने पूरी ताक़त से आप के चेहरे मुबारक पर तलवार मारी जिससे खोद की दो कड़ियाँ रूखे अनवर में चुभ गई | एक दूसरे काफिर ने आप के चेहराए अनवर पर ऐसा पथ्थर मारा की आप के दो दांत मुबारक शहीद हो गए | और नीचे का मुक़द्दस होंट ज़ख़्मी हो गया | इसी हालत में उबय्या बिन ख़लफ़ मलऊन अपने घोड़े पर सवार हो कर आप को शहीद कर देने की नियत से आगे बढ़ा | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने एक जांनिसार सहाबी हज़रते हारिस बिन सम्मा रदियल्लाहु अन्हु से एक छोटा सा नेज़ा ले कर उबय्या बिन ख़लफ़ की गर्दन पर मारा जिससे वो तिलमिला गया | गर्दन पर बहुत मामूली ज़ख्म आया और वो भाग निकला मगर अपने लश्कर में जा कर अपनी गर्दन के ज़ख्म के बारे में लोगों से अपनी तकलीफ और परेशानी ज़ाहिर करने लगा और बेपनाह न काबिले बर्दाश्त दर्द की शिकायत करने लगा | इस पर उस के साथियों ने कहा की ये तो मामूली खराश है, तुम इस क़द्र परेशां क्यूं हो? उस ने कहा की तुम लोग नहीं जानते की एक बार मुझ से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा था की में तुम को क़त्ल करूंगा इस लिए | ये तो बेहरे हाल ज़ख्म है मेरा तो अक़ीदा है की अगर वो मेरे ऊपर थूक देते तो भी में समझ लेता की मेरी मोत यक़ीनी है |इस का वाक़िआ ये है की उबय्य बिन खलफ ने मक्का में एक घोड़ा पाला था जिस का नाम इस ने “औद” रखा था वो रोज़ाना उस को चराता था और लोगों से कहता था की में इसी घोड़े पर सवार हो कर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़त्ल करूंगा | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस की खबर हुई तो आपने फ़रमाया की इंशा अल्लाह में उबय्य बिन ख़लफ़ को क़त्ल करूंगा | चुनांचे उबय्य बिन ख़लफ़ उसी घोड़े पे चढ़ कर जंगे उहद में आया था जो ये वाकिअ पेश आया |उबय्य बिन ख़लफ़ नेज़े के ज़ख्म से बेकरार हो कर रास्ते भर तड़पता और बिलबिलाता रहा यहाँ तक की जंगे उहद से वापस आते हुए मक़ामे “सरफ” में मर गया | इस तरह इब्ने कमिअ मलऊन जिस ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रूखे अनवर पे तलवार चला दी थी एक पहाड़ी बकरे को अल्लाह पाक ने उस पर मुसल्लत फरमा दिया और उस ने इस को सींग मार मार कर छलनी बना डाला और पहाड़ की बुलंदी से नीचे गिरा दिया जिससे इस की लाश के टुकड़े टुकड़े हो कर ज़मीन पर बिखर गए |

सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम का जोशे जाँ निसारी

जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़ख़्मी हो गए तो चरों तरफ से कुफ्फार ने आप पर तीर व तलवार का वार शुरू कर दिया और कुफ्फार का बे पनाह हुजूम आप के हर तरफ से हमला करने लगा जिससे आप कुफ्फार के नार्गे में महसूर होने लगा ये मंज़र देख कर जांनिसार सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम का जोशे जं निसरि से खून खोलने लगा और वो अपना सर हथेली पे रख कर आप को बचाने के लिए इस जंग की आग में कूद पड़े और आप के गिर्द एक हल्का बना लिया | हज़रते अबू दुजाना रदियल्लाहु अन्हु झुक कर आप के लिए ढाल बन गए और चरों तरफ से जो तलवारें बरस रहीं थीं उन को वो अपनी पुष्ट पर लेते रहे और आप तक किसी तलवार या नेज़े की मार को पहुंचने ही नहीं देते थे | हज़रते तल्हा रदियल्लाहु अन्हु की जाँनिसारी का ये आलम था की वो कुफ्फार की तलवारों के वार को अपने हाथ पे रोक ते थे यहाँ तक की इन का एक हाथ कट कर शिल हो गया और इनके बदन पे पैंतीस या उन्तालीस ज़ख्म लगे | गरज़ जांनिसार सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिफाज़त में अपनी जानो की परवा नहीं की और ऐसी बहादुरी और जांबाज़ी से जंग करते रहे की तारीखे आलम में इस की मिसाल नहीं मिल सकती |

हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु निशाना बाज़ी में मशहूर थे | उन होने इस मोके पर इस क़द्र तीर बरसाए की कई कमाने टूट गईं | उन होने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपनी पीठ के पीछे बिठ्ठा लिया था ताकि दुशमनो के तीर या तलवार का कोई वार आप पर न आ सके | कभी कभी आप दुश्मनो की फौज को देखने के लिए गर्दन उठाते तो हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु अर्ज़ करते या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे माँ बाप आप पर क़ुर्बान ! आप गर्दन न उठाएं, कहीं ऐसा न हो की दुश्मनो का कोई तीर आप को लग जाए या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप मेरी पीठ के पीछे ही रहें मेरा सीना आप के लिए ढाल बना हुआ है |हज़रते क़तादा बिन नोमान अंसारी रदियल्लाहु अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहराए अनवर को बचाने के लिए अपना चेहरा दुश्मनो के सामने किए हुए थे | अचानक काफिरों का एक तीर इन की आँख में आ कर लगा और आँख बाहर निकल आई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दस्ते मुबारक से उन की आँख को उठा कर आँख के हल्के में रख दिया और यूं दुआ फ़रमाई की या अल्लाह पाक ! क़तादा की आँख बचाले जिस ने तेरे रसूल के चेहरे को बचाया है | मशहूर है की उन की वो आंख दूसरी आंख से ज़्यादा रोशन और खूबसूरत हो गई |
हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास रदियल्लाहु अन्हु भी तीर अंदाज़ी में बहुत कमाल के थे | ये भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हफ़ाज़त में जल्दी जल्दी तीर चला रहे थे और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद अपने हाथ मुबारक से तीर उठा उठा कर इन को देते थे और फरमाते थे की ऐ साद ! तीर बरसते जाओ तुम पर मेरे माँ बाप कुर्बान | ज़ालिम कुफ्फार इंतिहाई बे दर्दी के साथ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर तीर बरसा रहे थे मगर उस वक़्त भी ज़बाने मुबारक पे ये दुआ थी: ऐ अल्लाह मेरी कोम को बख्श दे वो मुझे जानते नहीं हैं | (मुस्लिम शरीफ जिल्द 2)

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दांत मुबारक के सदमे और चेहराए अनवर के ज़ख्मो से निढाल हो रहे थे | इस हालत में आप उन गड्ढों में से एक गड्ढे में गिर पड़े जो अबू आमिर फासिक ने जाबजा खोद कर उन को छुपा दिया था ताकि मुस्लमान ला इल्मी में इन गड्ढों के अंदर गिर पड़ें | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने आप का हाथ मुबारक पकड़ा और हज़रते तल्हा बिन उबैदुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु ने आपको उठाया | हज़रते अबू उबैदा बिन अल जर्राह रदियल्लाहु अन्हु ने खोद (लोहे की टोपी) की कड़ी का एक हल्का जो चेहराए अनवर में चुभ गया था अपने दांतों से पकड़ कर इस ज़ोर के साथ खींच कर निकाला की इनका एक दांत टूट कर ज़मीन पर गिर पड़ा | फिर दूसरा हल्का जो दांतों से पकड़ कर खींचा तो दूसरा भी टूट गया | चेहराए अनवर से जो खून बहा उस को हज़रते अबू सईद खुदरी रदियल्लाहु अन्हु के वालिद हज़रते मालिक बिन सिनान रदियल्लाहु अन्हु ने जोशे अक़ीदत से चूस चूस कर पी लिया और एक क़तरा भी गिरने नहीं दिया | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की ऐ मालिक बिन सिनान ! क्या तूने मेरा खून पी डाला? अर्ज़ किया की जी हाँ या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इरशाद फ़रमाया की जिस ने मेरा खून पी लिया जहन्नम की क्या मजाल जो उस को छू सके | इस हालत में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने जांनिसारों के साथ पहाड़ की बुलंदी पे चढ़ गए जहाँ कुफ्फार के लिए पहुंचना दुश्वार था | अबू सूफ़िया ने देख लिया और फौज लेकर वो भी पहाड़ पर चढ़ने लगा लेकिन हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु और दुसरे जांनिसार सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम ने काफिरों पर इस ज़ोर से पथ्थर बरसाए की अबू सुफियान इस की ताब न ला सका और पहाड़ से उतर गया |हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने चंद सहाबा के साथ पहाड़ की एक घाटी में तशरीफ़ फरमा थे और चेहराए मुबारक से खून बह रहा था | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु अपनी ढाल में पानी भर भर कर ला रहे थे और हज़रते फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा अपने हाथों से खून धो रही थीं मगर खून बंद नहीं होता था बिला आखिर खजूर की चटाई का एक टुकड़ा जलाया और उस की राख ज़ख्म पर रख दी तो खून फौरन रुक गया |

रेफरेन्स ( हवाला )

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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