हज़रते सय्यदना इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 1)

सय्यदे सज्जाद के सदके में साजिद रख मुझे  

इल्मे   हक  दे  बाकिरे  इल्मे  हुदा  के  वास्ते   

विलादत बा सआदत

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की पैदाइश पांच 5, शाबानुल मुअज़्ज़म बरोज़ जुमे रात 38, हिजरी मदीना शरीफ में हुई । 

इस्म नाम मुबारक

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने अपने बच्चों के नाम इज़हारे अकीदत के तौर पर अपने वालिद गिरामी के नाम पर रखते थे, यही वजह है के आप के अक्सर शहज़ादों के नाम “अली” हैं, अल बत्ता बड़े और छोटे होने की रियायत से उन्हें अकबर, असगर, सुगरा, और कुबरा, के इज़ाफ़ा से पुकारा जाता था, इसी मुनासिबत की बिना पर आप का नाम भी “अली” है । 

लक़ब व कुन्नियत

आप की कुन्नियत “अबू मुहम्मद” “अबुल हुसैन” अबुल कासिम” और अबू बक्र” है, और लक़ब आप का “सज्जाद” ज़ैनुल आबिदीन” सय्यदुल आबिदीन” ज़की और अमीन है ।   

तअलीमो तरबियत

आप ने दो बरस तक हज़रते सय्यदना अली मुर्तज़ा शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के आग़ोशे आतिफ़ात में परवरिश पाई, इस के बाद हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की ज़ेरे निगरानी उलूमे मारफत सीखे, यानि आप ने दो साल अपने दादा हज़रते शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के साथ गुज़ारे फिर दस साल अपने चचा हज़रते सय्यदना इमामे हसन रदियल्लाहु अन्हु के पास और गियारा 11, साल अपने वालिद माजिद हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के पास तरबियत पा कर उलूमे मारफत के अज़ीम मनाज़िल तै फरमाए ।  

वालिदा माजिदा

आप की वालिदा माजिदा उम्मे वलद थीं “यज़ दजरिद” (आखरी बादशाह फारस, अब आज के दौर में फारस का नया नाम मुल्के ईरान है) पिसर शहर यार बिन शेर विया बिन परवेज़ बिन हर मुज़ बिन किसरा नौशेरवा की बेटी थीं, नाम मुबारक इन का “सलाफ़ा” और दूसरा कोल “गज़ाला” और लक़ब शाहे ज़मान व “शहिर बनो” था । 

हुलिया शरीफ

आप अपने जद्दे अमजद हज़रते अली शेरे खुदा मुश्किल कुशा रदियल्लाहु अन्हु के हम शबीह थे, रंग मुबारक गंदुम जैसा था और पस्त क़द व लागर थे, रेश मुबारक में हिना और कुसम से ख़िज़ाब करते थे । 

विलादत की बशारत

हज़रत इमाम अल मदैनी हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं के उन्हों ने फ़रमाया: में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत मुबारक में हाज़िर था और हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु हुज़ूर की गोद में थे और हुज़ूर इन को खिला रहे थे तो हुज़ूर ने फ़रमाया: ऐ जाबिर ! इन के यहाँ एक बेटा पैदा होगा जिस का नाम अली होगा, जब क़यामत का दिन होगा मुनादी इसे इस लक़ब से पुकारेगा के “सय्यदुल आबिदीन” खड़े हो तो इन का वो बेटा खड़ा होगा फिर इस के यहाँ एक बच्चा होगा जिस का नाम “मुहम्मद बाकर” होगा, ऐ जाबिर अगर तुम इसे पाओ तो उसे मेरा सलाम कहना । 

नसब नामा शरीफ

अली बिन हुसैन, बिन अबी तालिब, बिन अब्दुल मुत्तलिब, बिन हाशिम, बिन अब्दे मुनाफ, बिन कुसई, बिन किलाब, बिन मुर्राह, बिन काब, बिन लुइ, बिन ग़ालिब, बिन फुहर, बिन मलिक, बिन नज़र, बिन किनाना है । 

अख़लाक़ व आदत

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु अपने अस्लाफ के अख़लाक़ व ख़ासाइल के पैकर थे, आप बहुत ही शाइस्ता और बा अदब थे, अपने बड़ों का अदब एहतिराम करते, मुसीबत ज़दों की फ़रया दरसी करते, मफ्लू कुल हाल और गरीब लोग आप की ज़ात में बे पनाह हम दरदी और शफकत पाते थे, उमर अबू नसर: ने लिखा है के आप ने बेशुमार गुलाम खरीद कर आज़ाद किए, आप अपने बद तिरिन दुश्मनो से भी महरबानी का बरताओ करते थे,

मरवान इब्ने हकम: जो आप की दुश्मनी में हमेशा पेश पेश रहता था जब वो हुकूमत के ज़ेरे इताब आया तो अपने अहलो अयाल के लिए आप से पनाह के लिए तलब गार हुआ तो आप ने बड़ी खंदा पेशानी से इस के अहले खाना को एक तवील लम्बे अरसे तक पनाह दी और इन की खबर गिरी करते रहे । 

आप के अख़लाके करीमाना ने खल्के खुदा को आप का गरवीदा बना दिया था, एक बार का वाकिअ है की आप ने सुना के कोई शख्स आप को बुरा कहता है आप उस के पास तशरीफ़ ले गए और उससे ऐसा हुस्ने सुलूक किया के वो आप के साथियों में शामिल हो गया, शोआरा ने आप की निजाबत व शराफत, अख़लाके हसना और इबादत गुज़ारी पर बे शुमार क़साइद कहें हैं । 

फ़ज़ाइलो कमालात

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु वारिसे नुबुव्वत, चिरागे उम्मत, सय्यदे मज़लूम, ज़ैने इबादत व शमे औताद, सय्यदना अबुल हसन अली, अल मारूफ, ज़ैनुल आबिदीन, बिन इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हुम, अपने ज़माने में सब से ज़ियादा इबादत गुज़ार, कश्फे हक़ाइक़ व नुतके दकाइक में मशहूर थे, इमाम ज़हरी फरमाते हैं के में ने किसी कुरैशी को इमाम ज़ैनुल आबिदीन से अफ़ज़ल व आला नहीं देखा, और हज़रते सईद बिन मुसय्यब रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेरी नज़र में इन से बढ़ कर कोई साहिबे तक़वा नहीं है, हज़रते इब्ने अब्बास रदियल्लाहु अन्हु जब आप को देखते तो फरमाते “शाबाश ऐ महबूब के बेटे” । 

अबू हाज़िम फरमाते हैं के हमने आप से ज़ियादा अफ़ज़ल व फ़क़ीह किसी को नहीं पाया, ज़हबी और उईना, का कोल है के हमने कोई कुरैशी आप से अफ़ज़ल नहीं देखा, हज़रते इमाम मलिक रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के आप अहले फ़ज़ल में से थे, इब्ने अबी शैबा का कोल है की हदीस की सनादों में सब से ज़ियादा सही सनद वो है जिस में “इमाम ज़ैनुल आबिदीन” अपने वालिद माजिद इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु और वो अपने वालिद हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत करें । 

इसार व क़ुरबानी

आप ने अपनी ज़िन्दगी में दो मर्तबा अपना सारा माल व असबाब खुदा की राह में खैरात किया, आप की सखावत का ये आलम था की आप बहुत से मदीना शरीफ के गरीबों के घरों में पोशीदा तरीकों से रकम भेजा करते थे के इन गरीबों को खबर नहीं होती थी के ये कहाँ से आता है? मगर जब आप का विसाल हो गया तो इन गरीबों को पता चला के ये हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की सख्वात थी । 

हिल्म व सब्र

आप बहुत ही हलीम व साबिर व शाकिर थे, यज़ीद पलीद के दौरे हुकूमत में आप को कर्बला से मुल्के दमिश्क तक हथकड़ी और बेड़ी पहना कर लाया गया था, फिर अब्दुल मलिक बिन मरवान ने अपनी हुकूमत के ज़माने में आप को लोहे की हथ कड़ी और गले में भरी तोक पहना कर मदीना शरीफ से मुल्के शाम तक चलने पर मजबूर किया और दमिश्क में आप को कैद कर दिया गया, आप ने इन तमाम मशक्कतों को बर्दाश्त फ़रमाया और उफ़ भी नहीं किया, बल्कि हर दम व हर कदम पर सब्र शुक्र इलाही के पैकर बने रहे और ज़बान पर शुक्र इलाही के सिवा एक लफ्ज़ भी शिकवा फर्याद का न लाए, आप के अकीदत शिआर व वफादार शागिर्द इमाम ज़हरी को आप की गिरफ़्तारी की खबर मालूम हुई तो तड़प गए और मुल्के दमिश्क में अब्दुल मलिक बिन मरवान के दरबार में पहुंच कर आप को रिहा कराया और फिर पूरे इजाज़ो इकराम के साथ आप को मदीना शरीफ लाए । 

बुर्द बारी

एक दिन हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु घर से तशरीफ़ ले जा रहे थे के रास्ते में एक गुस्ताख़ ने आप को बुरा भला कहना शुरू किया, आप ने उससे फ़रमाया के भाई ! जो कुछ तुम ने मुझे कहा है अगर में वाकई ऐसा हूँ तो खुदा मुझे माफ़ फरमाए, वो शख्स ये सुन कर बड़ा नादिम हुआ और बढ़ कर आप की पेशानी का बोसा दे कर कहने लगा हुज़ूर, में ने जो कुछ कहा है आप हरगिज़ ऐसे नहीं हैं बल्कि में ही झूठा हूँ, आप मेरी मगफिरत की दुआ फरमा दो, आप ने फ़रमाया अच्छा जाओ, खुदा तुम्हे माफ़ फरमाए । 

अपने वालिद की शहादत पे रोना

रिवायत है : एक दिन आप मदीना शरीफ की गली में जा रहे थे की एक कस्साब को देखा एक एक बकरी को ज़मीन पर लिटाए हुए है और उसे ज़िबाह करने के लिए छोरी पथ्थर पे तेज़ कर रहा है, ये देखते ही आप की हालत गैर तब्दील हो गई वालिद माजिद की शहादत याद कर के इस कदर रूए की हिचकियाँ बंद गईं, फिर आप ने इस कस्साब से पूछा ऐ भाई तू ने इस बकरी को दाना पानी दिया है या नहीं? उस ने अर्ज़ किया, ऐ “इमाम” में इस को तीन रोज़ से दाना पानी खिला पिला रहा हूँ और इस वक़्त भी पिला कर लाया हूँ ये सुन कर आप ने सर्द आह खींची और रो कर फ़रमाया, अफ़सोस ! शहर कूफ़ियों ने मेरे वालिद मज़लूम की बकरी जैसी भी कदर न की तीन रोज़ तक भूका प्यासा रख कर इसी तरह शहीद कर डाला ।   (रौज़ुर रियाहीन)

इबादतों रियाज़त

आप ने अपने वालिद बुज़ुर्ग वार हज़रत सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की शहादत के बाद दुनिया की लज़्ज़तों को बिलकुल तर्क (छोड़ना) कर दिया और यादे खुदा में मशगूल हो गए, रातो दिन वाक़िआते कर्बला और मसाइबे आले इबा को याद कर के रोते थे न दिन को चैन न रात को आराम था, जब शफकते पिदरी और उनकी बे कसी व बे बसी याद आती तो रोते बे खुद हो जाते थे । 

आप की नमाज़ मुबारक

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु जब नमाज़ के लिए वुज़ू करने बैठते तो आप का चेहरा मुबारक ज़र्द (पीला) हो जाता था और जब आप नमाज़ के लिए खड़े होते तो तग़य्युर रंग के बाइस पहचानना मुश्किल हो जाता था लोग आप से मालूम करते की ऐ फ़रज़न्दे रसूल ! आप का ये कैसा हाल हो जाता है? तो आप ने फ़रमाया, लोगों ! नमाज़ अल्लाह के यहाँ पेशी का वक़्त है, कौन ऐसा नादान होगा जो रब्बे काइनात की पेशी के वक़्त हसंता खेलता हुआ उस की अदालत में हाज़िर होगा ।   (अवारिफुल मुआरिफ़)

हर रातो दिन में 1000, नफ़्ल पढ़ते थे

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु हर रोज़ व शब् (रात) में एक हज़ार रकअत नफ़्ल पढ़ा करते थे एक रोज़ आप अपने मकान में नफ़्ल पढ़ रहे थे के आप के मकान को आग लग गई, लोग आग बुझाने लगे मगर आप इसी ख़ुज़ू खुशु के साथ नमाज़े नफ़्ल अदा करते रहे, जब आग बुझ गई तो आप नमाज़ से फारिग हुए लोगों ने अर्ज़ किया, हुज़ूर ! मकान को आग लग गई थी हम लोग बुझाने में मसरूफ थे मगर आप ने परवाह तक न फ़रमाई? आप ने इरशाद फ़रमाया तुम लोग ये आग बुझा रहे थे और में आख़िरत की आग बुझाने में मशगूल (बिज़ी) था ।  

(रौज़ुर रियाहीन, हयातुल हैवान पहली जिल्द,)

शैतान का सांप बन जाना

हज़रते तल्हा शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह ने लिखा है की एक बार मेहराब इबादत में शैतान सांप की शक्ल में ज़ाहिर हुआ ताके इमाम अली इब्ने हुसैन रदियल्लाहु अन्हुमा के इस्तग्राक में खलल डाले, उस ने आप की  अनगुश्ते पा को दानतों में दबाया मगर आप की मशग़ूलियत में ज़रा भी फर्क न आया, आखिर वो पशिमान शर्मिंदाह हो कर दूर जा कर खड़ा हो गया और फिर ये तीन बार फ़िज़ा में बुलंद हुई जो कह रही थी:

“आप ही इबादतों की ज़ीनत हैं, आप ही सजदह गुज़ारों के सरदार हैं”  (अस हुत तवारीख)

ख़ौफ़े खुदा

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु बड़े खुदा तरस (डरना) थे, आप का सीना गोया खौफ व ख़शीयत इलाही का खज़ाना था, रिवायत है: की एक बार आप हज्जे बैतुल्लाह को तशरीफ़ ले जा रहे थे और हज का एहराम बांधा था तो लब्बैक नहीं पढ़ा लोगों ने कहा, हुज़ूर लब्बैक क्यों नहीं पढ़ते? तो आब दीदह हो कर इरशाद फरमाते हैं की मुझे खौफ मालूम होता है की में लब्बैक कहूँ और खुदा की तरफ से ला, (नहीं) लब्बैक की आवाज़ न आ जाए के नहीं नहीं तेरी हाज़री कबूल नहीं, लोगों ने अर्ज़ किया हुज़ूर बगैर लब्बैक पढ़े हुए आप का एहराम कैसे होगा? तो आप ने बुलंद आवाज़ से “लब्बेल अल्ला हम्म लब्बैक” पढ़ा मगर एक दम लरज़ कर ख़ौफ़े इलाही से ऊँट की पीठ से ज़मीन पर गिर पढ़े और बेहोश हो गए जब होश में आते लब्बैक पढ़ते और फिर बे होश हो जाते यहाँ तक के इसी हालत में आप ने हज अदा फ़रमाया । 

क़ुरआन शरीफ की तिलावत करना

हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं की मेरे दादा जान हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु जब कुरआन शरीफ की तिलावत फरमाते थे तो आप खुश इल्हानी से लोग खीचें चले आते थे यहाँ तक के आप के इर्द गिर्द लोगों की कसीर तादाद जमा हो जाती थी और हाज़रीन ऐसे खुद रफ्ता हो जाते के एक दूसरे की खबर तक न होती थी । 

मैदाने कर्बला से वापसी

रिवायत है: की हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु को आप के शहज़ादों समीत मैदाने कर्बला में शहीद कर दिया गया, तो हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु के सिवा कोई बाकी न बचा की औरतों की देख भाल कर सके आप उस वक़्त शदीद बीमार थे, जब हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु को अहले बैते अत हार के साथ ऊंटों की नग्गी पीठ पर सवार करा के मुल्के दमिश्क में यज़ीद के सामने लाया गया तो किसी ने आप से पूछा: ऐ अली रहमत के घर वाले ! तुम ने कैसे सुबह की? आप ने जवाब दिया, हमने अपनी कोम में इस तरह सुबह की जिस तरह हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम की कोम ने फिरओन में सुबह की थी की फ़िरऔनियों ने उन के बच्चों को क़त्ल किया और उन की औरतों और बच्चियों को ज़िंदा रखा, लिहाज़ा हम नहीं जानते की इस इम्तिहान गाह में हमारी सुबह शाम के मुकाबले में क्या हकीकत रखेगी, हम खुदा की नेमतों पर शुक्र बजा लाते हैं और उस की बला व मुसीबतों पर सब्र करते हैं बस यही हमारी मुसीबत की हकीकत है । 

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु जब कर्बला से लौटने लगे तो अपनी इल्तिजा व सलामे अकीदत बारगाहे रिसालत में बड़े ही दर्द भरे अंदाज़ में पढ़ा था जो अपनी फ़साहतो बलाग़त में बे मिसाल है वो क़सीदाह ये है :

ऐ बादे सबा ! अगर तू किसी दिन हराम की सर ज़मीन पर जाए तो मेरा सलाम उस रौज़ाए अक़दस तक पहुंचना जिस में अज़मत वाले नबी आराम फरमा हैं,

वो कौन हैं जिन का चेहराए मुबारक चढ़ता सूरज और जिन का रुखसार ज़ुल्मतों का चाँद है वो कौन हैं जिन की ज़ात हिदायत का नूर और जिन का दस्ते मुकद्द्स अज़्म का बहरे बेकरां है,

उन का लाया हुआ कुरआन हमारी दलील है जो गुज़िश्ता तमाम दिनों के लिए तारीख है जब इस के अहकाम हम तक पहुंचे सुहफे आसमानी कल अदम हो गए,

नबी की जुदाई की शमशीर से हमारे जिगर ज़ख़्मी हैं, इस शहर वाले कितने खुश नसीब हैं जिस में अज़मत व जलाल वाले नबी तशरीफ़ फरमा हैं,

ऐ काश ! में उस शख्स जैसा होता जो साहिबे इल्म नबी का रोज़ो शब् बिल दवाम पैरवी करने वाला हो, ख़ुदाए करीम अपने कर्म से तू मुझे ऐसा ही बना दे,

मेरे दिल में एक हसरत है के में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गुज़रे हुए तमाम औकात में वो तारीफ़ क्यों न करता जो उन के बारे में आज नसीब हुई,

ऐ मुस्तफा ! ऐ मुज्तबा ! हमारे गुनाहों पे रहम फरमा हमारे आमाल हिरसो हवस सियाह कारियों ज़ुल्मो जबर से पुर हैं,

में तनहा उम्मीद वार नहीं बल्कि मेरे तमाम क़ुराबत दार उम्मीद रखते हैं की ऐ नबी मुकर्रम आप आख़िरत में हमारी शफ़ाअत फ़रमाएंगें,

ऐ रहमतुल्लिल आलमीन “ज़ैनुल अबिदीन” की दस्तिगिरि फरमाइए जो भीड़ और अज़्दहाम में ज़ालिमों के हाथों में घिरा हुआ है ।     

यज़ीद की गुस्ताखी

जब अहले बैत का लुटा हुआ काफला यज़ीद पलीद के दरबार में पंहुचा तो उस ने ज़नाने हरम मुहतरम को भरे दरबार में बुलाया, हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा ने यज़ीद की इस बद तमीज़ी पर फ़रमाया, ऐ बे हया ! क्या तुझ में शर्मों गैरत की कुछ भी खू बाकी नहीं रही की तेरी औरतें जो इस की भी अहलियत नहीं रखतीं के हमारी कनीजें बन सकें वो तो पर्दें में बैठीं और हम जो के नामूसे रसूल हैं जिन के घर में फ़रिश्ते भी इजाज़त ले कर दाखिल हों इन्हें तो इस तरह बे परदह बे हिजाब भरे दरबार में बुला कर रुस्वा कर रहा है, ज़ुल्मो सितम के एक एक तीर अहले बैत अत हार के सीना सब्रो इस्तक़लाल पर आज़मा लिया गया अब भी तेरी ज़ालिमाना प्यास नहीं नहीं बुझी? क्या अब भी तेरा दिल नहीं भरा ज़ालिम कहीं ऐसा न हो के गैरत हक को जलाल आ जाए और क़हरे इलाही की बिजली इस वक़्त तुझे जला कर खाकिस्तर कर दे । 

इस तकरीर से यज़ीद पलीद के बदन पर लरज़ा तारी हो गया फ़ौरन तमाम मस्तूरात इस्मत को (इज़्ज़त वाली औरतें) ko परदे में भिजवा दिया और हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु को अपने पास बुला कर कहने लगा की तुम्हारे वालिद ने चाहा मिम्बरों पर उन का ही नाम लिया जाए उन के नाम का खुत्बा पढ़ा जाए मगर क़ुदरत ने ये क़द्रो मन्ज़िलत तो मेरी किस्मत में लिखी थी, उन की आरज़ू कैसे पूरी होती अल्लाह ने मुझे कामयाब किया और उन्हें इस नेमत से महरूम किया,

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की गैरते हाशमी को जोश आया और फ़रमाया, ओ झूठे इन्साफ से कह की मिम्बरों को मेरे बाप दादा ने बनाया या तेरे बाप दादा ने, क़ुरआन तेरे बाप दादा पे नाज़िल हुआ या मेरे जद्दे अमजद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर, हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की इस हकीकत बयान तकरीर ने यज़ीद की आतिशे ग़ैज़ो गज़ब को और भड़का दिया और वो इतना मुश्तइल हुआ की हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु के क़त्ल का हुक्म दे दिया, हज़रते उम्मे कुलसूम रदियल्लाहु अन्हा ने यज़ीद को डांटते हुए कहा, ओ हिंदाह के बेटे खबर दार क़त्ले इमाम ज़ैनुल आबिदीन का इरादा भी न करना और अभी तक तो हम सब्रो ज़ब्त से काम लेते आए हैं अगर अब तूने नस्ले पैगम्बरी की निशानी को भी मिटाना चाहा तो इस का अंजाम बहुत खराब होगा, इस का असर ये हुआ की वो खौफ की वजह से क़त्ल से बाज़ आ गया,               

इतने में यज़ीद का बेटा आ गया यज़ीद कहने लगा की मेरा ये बेटा और आप उमर में बराबर हैं में चाहता हूँ के आप दोनों में कुश्ती हो जाए देखता हूँ कौन जीतता है? आप ने फ़रमाया अगर तुझे यही शोक है की मेरी रगों में हाश्मी खून जो दौड़ रहा है उस की ताक़त व क़ुव्वत देखो तो एक तलवार मुझे दे दो और एक अपने बेटे को फिर देखो किस का वार ताक़त वर है । 

इतने में यज़ीद के महल सरा से नौबत बजने की आवाज़ आने लगी, यज़ीद के बेटे ने कहा, बताओ ये नौबत किस की बज रही है तुम्हारे बाप दादा की या मेरे बाप दादा की? अभी उस की ये बे हूदा बकवास ख़त्म भी न हुई थी की मस्जिद से अज़ान की आवाज़ आई, हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया, ओ इब्ने यज़ीद ! तेरे बाप की नौबत तेरे ही कसरे नहूसत में बजेगी और सिर्फ इस वक़्त तक जब तक नक्कारा सलामत है लेकिन मस्जिद से मेरे जद्दे अमजद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नौबत की जो आवाज़ आ रही है जिस की जूंग फर्श से अर्श तक है वो सुबह कयामत तक बाकी रहेगी बता तो सही “अशहदु अन्ना मुहम्मदर रसूलुल्लाह” मेरे जद्दे अमजद के लिए है या तेरे लिए? हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की इस गुफ्तुगू से यज़ीद कुछ मुतअस्सिर हुआ नीज़ इस इस पर कुछ खौफ का भी ग़लबा हुआ, कहने लगा आप मुझ से कुछ फरमाइश करें में उसे पूरा करूंगा, मुझे ये तवक्को नहीं है के में जो कुछ भी कहूंगा तू उसे पूरा करे और अगर तू वाकई अपने कोल में सच्चा है तो मेरे चार मुतालबात हैं उन्हें पूरा करदे, 

(1) अव्वल तो ये की मेरे वालिद मुहतरम के क़ातिल को मेरे हवाले कर ताके में उस को क़त्ल करूँ,

(2) दोम ये के शोहदा के सरों को मुझे दे ताके में उन्हें ले जा कर जिस्म हाए मुकद्द्स के साथ दफ़न करूँ,

(3) आज जुमे का दिन है मुझे इजाज़त दे की में मिम्बर पर चढ़ कर खुत्बा पढूं,

(4) चौथी ये की हमारे लुटे हुए काफ्ले को मदीना शरीफ पंहुचा दे यज़ीद ने इन चरों सवालों को सुन कर सब से पहले क़ातिल हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के मुतअल्लिक़ पूछा लोगों ने कहा, खूली बिन यज़ीद है, खूली बिन यज़ीद साफ़ इंकार कर गया और कहा, में ने क़त्ल नहीं किया बल्कि सनान इब्ने अनस है, सनान इब्ने अनस अपना नाम सुन कर फ़ौरन बोल उठा की क़ातिल इमाम पर में लअनत भेजता हूँ, क़ातिल हुसैन तो शिमर ज़िल जोशन, है, तमाम दरबारी भी तस्दीक करने लगे वाक़ई क़ातिल हुसैन शिमर ही है, मगर शिमर भी इंकार कर गया और कहने लगा, में क्यों क़त्ल करने लगा, क्या हुसैन ने मेरी सल्तनत दबा रखी थी? बल्कि असल में क़ातिल हुसैन वो है जिस को ख़तरह था की अगर हुसैन ज़िंदा रहे तो मेरी सल्तनत बाकी न रहेगी, क़ातिल हुसैन वो है जिस ने कबाइल को जमा किया उन्हें हथियार दिए, जागीरें दीं ज़र व जवाहर दिए, और क़त्ले हुसैन पे उभारा खुद इशरत कधे में बैठा रहा और दूसरों के ज़रिए अपना मकसद हासिल किया चूँकि साऱी ज़द यज़ीद पर पढ़ रही थी इस लिए वो कहने लगा तुम सब पर खुदा की लअनत हो सब के सब यहाँ से चले जाओ, इस के बाद हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु से कहने लगा की क़ातिले इमाम का मुतालबा तो दरगुज़र कीजिए बाकी आप के तमाम मुतालबात मंज़ूर हैं                                          

रेफरेन्स हवाला                         

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(6) अस हुत तवारीख,
(7) हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की सीरत और तअलीमात,  

Share this post