हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-26)

वफ्दे कंदा

ये लोग यमन के अतराफ़ में रहते थे | इस कबीले के सत्तर या अस्सी सवार बड़े ठाठ बाट के साथ मदीना आए | खूब बालों में कंगी किए हुए रेशमी गोट के जुब्बे पहने हुए, हथियारों से सजे हुए मदीने की आबादी में दाखिल हुए | जब ये लोग दरबारे रिसालत में पहुंचे तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन लोगों से मालूम किया की तुम लोगों ने इस्लाम कबूल कर लिया है? सब ने अर्ज़ किया की “जी हाँ” आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की फिर तुम लोगों ने ये रेशमी लिबास क्यूँ पहना रखा है? ये सुनते ही इन लोगों ने अपने जुब्बों को बदन से उतार दिया और रेशमी गोटों को फाड़ फाड़ कर जुब्बों से अलग कर दिया | 

वफ्दे बनी अशअर

ये लोग यमन के बाशिंदें और “कबीलए अशअर” के मुअज़्ज़ और नामवर हज़रात थे | जब ये लोग मदीने में दाखिल होने लगे तो जोशे मुहब्बत और फरते अक़ीदत से रज्ज़ का ये शेर आवाज़ मिला कर पढ़ते हुए शहर में दाखिल हुए की: कल हम लोग अपने महबूबों से यानि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आप के सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम से मुलाकात करेंगे| 

हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की में ने रसूले खुदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ये इरशाद फरमाते हुए सुना की यमन वाले आ गए | ये लोग बहुत ही नरम दिल हैं ईमान तो यमनियो का ईमान है और हिकमत भी यमनियों में है | बकरी पलने वालों में सुकून व वकार है और ऊँट पलने वालों में फख्र और घमंड है | चुनांचे इस इरशादे नबी की बरकत से अहले यमन इल्म व सफाईये क्लब और हिम्मत व मारिफ़ते इलाही की दौलतों से हमेशा मालामाल रहे | ख़ास कर हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु की ये निहायत ही खुश आवाज़ थे और कुरआन शरीफ ऐसी खुश इल्हानी के साथ पढ़ते थे की सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम में इन का कोई हम मिस्ल न था | 

“इल्मे अक़ाइद में अहले सुन्नत वल जमात के इमाम शैख़ अबुल हसन अशअरी रहमतुल्लाह अलैह इन्ही, हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु की औलाद में से हैं” | 

वफ्दे बनी असद

इस कबीले के चंद अश्ख़ास बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और निहायत ही खुश दिली के साथ मुस्लमान हुए | लेकिन फिर एहसान जताने के तौर पर कहने लगे की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इतने सख्त कहत के ज़माने में हम लोग बहुत ही दूर दराज से मुसाफत तै कर के यहाँ आऐ हैं | रास्ते में हम लोगों को कहीं शिकम सेर हो कर खाना भी नसीब नहीं हुआ और बगैर इस के की आप का लश्कर हम पर हमला आवर हो हम लोगों ने बा रज़ा व रगबत इस्लाम कबूल कर लिया है | इन लोगों के इस एहसान जताने पर अल्लाह पाक ने कुरआन शरीफ पारा 26, सूरह हुजरात आयत 17, नाज़िल फ़रमाई की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- ऐ ! महबूब ये तुम पर एहसान जताते हैं की हम मुसलमान हो गए | आप फरमा दीजिये की अपने इस्लाम का एहसान मुझ पर न रखो बल्कि अल्लाह तुम पर एहसान रखता है की उस ने तुम्हे इस्लाम की हिदायत की अगर तुम सच्चे हो |  

वफ्दे बनी फ़ज़ारा  

ये लोग उइना बिन हसन फ़ज़ारी के कोम के लोग थे | बीस आदमी दरबारे अक़दस में हाज़िर हुए और अपने इस्लाम का ऐलान किया और बताया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमारे दयार में इतना सख्त कहत और काल पड़ गया है की अब फ़क्ऱो फाका की मुसीबत हमारे लिए न काबिले बर्दाश्त हो चुकी है लिहाज़ा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बारिश के लिए दुआ फरमाइए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जुमा के दिन मिम्बर पर दुआ फ़रमाई और फ़ौरन ही बारिश होने लगी और लगातार एक हफ्ते तक मूसलाधार बारिश का सिलसिला जारी रहा | फिर दूसरे जुमे को जब आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मिम्बर पर खुत्बा पढ़ रहे थे एक आराबी ने अर्ज़ किया की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  ! चौपाए हलाक होने लगे और बाल बच्चे भूक से बिकलने लगे और तमाम रास्ते ख़त्म हो गए लिहाज़ा दुआ फरमा दीजिए की ये बारिश पहाड़ों पर बरसे और खेतों बस्तियों पर न बरसे | चुनांचे आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुआ फ़रमा दी तो बादल शहरे मदीना और इस के अतराफ़ से कट गया और आठ दिन के बाद मदीने में सूरज नज़र आया |  

वफ्दे बनी मुर्राह

इस वफ्द में बनी मुर्राह के तेरह आदमी मदीने आए थे | इन का सरदार हारिस बिन ओफ़ भी इस वफ्द में शामिल था | इन सब लोगों ने बारगाहे अक़दस में इस्लाम कबूल किया और कहत की शिकायत और बाराने रहमत की दुआ के लिए दरख्वास्त पेश की | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन लफज़ों के साथ दुआ मांगी की (ऐ ! अल्लाह इन लोगों को बारिश से सेराब फरमा दे) फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया की इन में से हर शख्स को दस दस ऊकिया चांदी और चार चार सौ दिरहम इनआम और तोहफे के तौर पर अता करें | और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के सरदार हज़रते हारिस बिन ओफ़ रदियल्लाहु अन्हु को बारह ऊकिया चांदी का शाहाना अतिय्या अता फ़रमाया |  जब ये लोग मदीने से अपने वतन पहुंचे तो पता चला की ठीक उसी वक़्त इन के शहरों में बारिश हुई थी जिस वक़्त सरकार दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन लोगों की दरख्वास्त पर मदीने में बारिश के लिए दुआ मांगी थी | 

वफ्दे बनी अल बुका

इस वफ्द के साथ हज़रते मुआविया बिन सौर बिन उबाद रदियल्लाहु अन्हु भी आए थे जो एक सौ साल की उमर के बूढ़े थे | इन सब हज़रात ने बारगाहे अक़दस में हाज़िर हो कर अपने इस्लाम का ऐलान किया फिर हज़रते मुआविया बिन सौर बिन उबाद रदियल्लाहु अन्हु ने अपने बेटे हज़रते बशीर रदियल्लाहु अन्हु को पेश किया और ये गुज़ारिश की, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरे इस बच्चे के सर पर अपना दस्ते मुबारक फेर दें | इन की दरख्वास्त पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन के बेटे के सर पर अपना मुक़द्दस हाथ फिर दिया | और इन को चंद बकरिया भी अता फरमाई | और वफ्द वालों के लिए खेरो बरकत की दुआ फरमा दी | इस दुआए नबी का ये असर हुआ की उन लोगों के दयार में जब भी कहत और फ़क्ऱो फाका की बला आई तो इस कोम के घर हमेशा कहत और भुक मरी की मार से महफूज़ रहे | 

वफ्दे बनी किनाना

इस वफ्द के अमीरे कारवां हज़रते वासला बिन अस्का रदियल्लाहु अन्हु थे | ये सब लोग दरबारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में निहायत ही अकीदत मंदी के साथ हाज़िर हो कर मुसलमान हो गए और हज़रते वासला बिन अस्का रदियल्लाहु अन्हु बैअते इस्लाम कर के जब अपने वतन में पहुंचे तो इन के बाप ने इन से नाराज़ व बेज़ार हो कर कह दिया की में खुदा की कसम ! तुझ से कभी कोई बात नहीं करूंगा | लेकिन इन की बहन ने सच्चे दिल से इस्लाम कबूल कर लिया | ये अपने बाप की हरकत से रंजीदा और दिल शिकिस्ता हो कर फिर मदीना शरीफ चले आए और जंगे तबूक में शरीक हुए और फिर अस्हाबे सुफ़्फ़ा रदियल्लाहु अन्हुम की जमात में शामिल हो कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत करने लगे |  हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद ये बसरा चले गए और आखिर उमर में मुल्के शाम गए और सं, 85, हिजरी में दमिश्क के अंदर वफ़ात पाई |

वफ्दे बनी हिलाल

इस वफ्द के लोगों ने भी दरबारे नुबुव्वत में हाज़िर हो कर इस्लाम कबूल कर लिया | इस वफ्द में हज़रते ज़ियाद बिन अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु भी थे ये मुसलमान हो कर दन दनाते हुए हज़रते उम्मुल मोमिनीन बीबी मैमूना रदियल्लाहु अन्हा के घर में दाखिल हो गए क्यूंकि की वो इन की खाला थीं| ये इत्मीनान के साथ अपनी खाला के पास बैठे हुए गुफ्तुगू में मसरूफ थे | जब रसूले खुदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मकान में तशरीफ़ लाए और ये पता चला की हज़रते ज़ियाद बिन अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु उम्मुल मोमिनीन के भांजे हैं तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अज़ राहे शफ़क़त इन के सर और चेहरे पर अपना नूरानी हाथ फेर दिया | इस दस्ते मुबारक की नूरानीयत से हज़रते ज़ियाद बिन अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु का चेहरा इस क़द्र पुरनूर हो गया की कबीलए बनी हिलाल के लोगों का बयान है की इस के बाद हम लोग हज़रते ज़ियाद बिन अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु के चेहरे पर हमेशा एक नूर और बरकत का असर देखते रहे | 

वफ्दे ज़माम बिन सालबा

ये कबीलए साद बिन बक्र के नुमाइंदे बन कर बारगाहे रिसालत में आए | ये बहुत ही खूबसूरत सुर्ख व सफ़ेद रंग के गेसू दराज़ आदमी थे | मस्जिदे नबवी में पहुंच कर अपने ऊँट को बिठा कर बांध दिया, फिर लोगों से पूछा की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कौन हैं? लोगों ने दूर से इशारा कर के बताया की वो गोरे रंग के खूब सूरत आदमी जो तकिया लगा कर बैठे हुए हैं वोही हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं | हज़रते ज़माम बिन सालबा रदियल्लाहु अन्हु सामने आए और कहा की ऐ अब्दुल मुत्तलिब के बेटे ! में आप से चंद चीज़ों के बारे में सवाल करूंगा और में अपने सवाल में बहुत ज़ियादा मुबालगा और सख्ती बरतूंगा, आप इस से मुझ पर खफा न हो | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमने इरशाद फ़रमाया की तुम जो पूछ लो फिर हस्बे ज़ैल मुकालमा हुआ |

ज़माम बिन सालबा    में आप को उस खुदा की कसम दे कर जो आप का और तमाम इंसानो का परवर दिगार है ये  पूछता हूँ की क्या अल्लाह पाक ने आप को हमारी तरफ रसूल बना कर भेजा है? 
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम“हाँ”   
ज़माम बिन सालबा  में आप को खुदा की कसम दे कर ये सवाल करता हूँ की क्या नमाज़ व रोज़ा और हज व ज़कात को अल्लाह पाक ने हम लोगों पर फ़र्ज़ किया है?  
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम “हाँ”
ज़माम बिन सालबा    आप ने जो कुछ फ़रमाया में उस पर ईमान लाया और में ज़माम बिन सालबा हूँ | मेरी कोम ने मुझे इस लिए आप के पास भेजा है की में आप के दीन को अच्छी तरह समझ कर अपनी कोम बनी साद बिन बक्र तक इस्लाम का गैगाम पंहुचा दूँ | 

हज़रते ज़माम बिन सालबा रदियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो कर अपने वतन में पहुंचे और सारी कोम को जमा कर के सब से पहले अपनी कोम के तमाम बुतों यानि “लातो उज़्ज़ा” और “मनात हुबल” को बुरा भला कहने लगे और खूब खूब इन बुतों की तौहीन करने लगे | इन की कोम ने जो अपने बुतों की तौहीन सुनी तो एक दम सब चौक पड़े और कहने लगे की ऐ सालबा के बेटे ! तू क्या कर रहा है? खमोश हो जा वरना हम को ये डर है की हमारे ये देवता तुझ को बरस और कोढ़ और जूनून में मुब्तला कर देंगें | आप ने ये सुन कर तैश में आ गए और तड़प कर फ़रमाया की ऐ बे अक्ल इंसानो ! ये पथ्थर के बुत भला हम को क्या नफा व नुकसान पंहुचा सकते हैं? सुनो ! अल्लाह पाक जो हर नफा व नुकसान का मालिक है उस ने अपना एक रसूल भेजा है और एक किताब नाज़िल फ़रमाई है ताकि तुम इंसानो को इस गुमराही और जिहालत से निजात अता फरमाए | में गवाही देता हूँ की अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह पाक के रसूल हैं | अल्लाह के रसूल की बारगाह में हाज़िर हो कर इस्लाम का पैगाम तुम लोगों के पास लाया हूँ, फिर उन्हों ने आमाले इस्लाम यानि नमाज़ व रोज़ा और हज व ज़कात को उन लोगों को सामने पेश किया और इस्लाम की हक्कानियत पर ऐसी पुरजोश और मुआस्सिर तकरीर फ़रमाई की रात भर में कबीले के तमाम मर्द व औरत मुसलमान हो गए और उन लोगों ने अपने बुतों को तोड़ फोड़ कर पाश पाश कर डाला और अपने कबीले में एक मस्जिद बना ली और नमाज़ व रोज़ा और हज व ज़कात के पाबंद हो कर सादिकुल ईमान मुसलमान बन गए |

वफ्दे बल्ली

ये लोग मदीना शरीफ पहुंचे तो हज़रते अबू रुवैफा रदियल्लाहु अन्हु जो पहले ही से मुसलमान हो कर खिदमते अक़दस में मौजूद थे, इन होने इस वफ्द का तआरुफ़ कराते हुए अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये लोग मेरी कोम के अफ़राद हैं | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की में तुम को और तुम्हारी कोम को “खुश आमदीद” कहता हूँ | हज़रते अबू रुवैफा रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये सब लोग इस्लाम का इकरार करते हैं और अपनी पूरी कोम के मुसलमान हो ने की ज़िम्मेदारी लेते हैं आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की अल्लाह पाक जिस के साथ भलाई का इरादा फरमाता है उस को इस्लाम की हिदायत देता है | 

इस वफ्द में एक बहुत ही बूढ़ा आदमी भी था | जिस का नाम “अबुज़ जैफ़” था उस ने एक सवाल किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में एक ऐसा आदमी हूँ की मुझे महमानो की मेहमान नवाज़ी का बहुत ज़ियादा शोक है तो क्या इस मेहमान नवाज़ी का मुझे कुछ सवाब भी मिलेगा? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की मुसलमान होने के बाद जिस मेहमान की भी मेहमान नवाज़ी करोगे चाहे वो अमीर वो या गरीब तुम सवाब के हक दार रहोगे | फिर अबुज़ जैफ़ रदियल्लाहु अन्हु ने ये पूछा की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेहमान कितने दिनों तक मेहमान नवाज़ी का हकदार है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के तीन दिन तक इस के बाद जो वो खाएगा वो सदका होगा | 

वफ्दे तुजीब

ये तेरह आदमियों का एक वफ्द था जो अपने मालो और मवेशियों की ज़कात ले कर बारगाहे अक़दस में हाज़िर हुआ था | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मरहबा और खुश आमदीद कह कर इन लोगों का इस्तकबाल फ़रमाया | और ये इरशाद फ़रमाया की तुम लोग अपने इस माले ज़कात को अपने वतन में ले जाओ और वहां के फ़क़ीरों मसाकीन को ये सारा माल दे दो | इन लोगों ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम अपने वतन के फ़क़ीरों मसाकीन को इस कदर माल दे चुके हैं की ये माल उन की हाजत से ज़ियादा हमारे पास बचा हुआ है | ये सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन लोगों की इस ज़कात को कबूल फरमा लिया और इन लोगों पर बहुत ज़ियादा करम फरमाते हुए इन खुश नसीबों की खूब खूब मेहमान नवाज़ी फ़रमाई और वक़्ते रुखसत इन लोगों को इकरामो इनआम से भी नवाज़ा | फिर मालूम किया की क्या तुम्हारी कोम में कोई ऐसा शख्स बाकी रह गया है जिस ने मेरा दीदार नहीं किया है | उन लोगों ने कहा की जी हाँ |

एक नौजवान को हमने अपने वतन में छोड़ आए हैं जो हमारे घरों की हिफाज़त कर रहा है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की तुम लोग उस नौजवान को मेरे पास भेज दो | चुनांचे इन लोगों ने अपने वतन पहुंच कर उस नौजवान को मदीना शरीफ रवाना कर दिया | जब वो नौजवान बारगाहे हज़रते अली में पंहुचा तो उस ने ये गुज़ारिश की, के या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप ने मेरी कोम ही की हाजतों को तो पूरी फरमा कर उन्हें वतन में भेज दिया अब में भी एक हाजत ले कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हो गया हूँ और उम्मीद वार हूँ की आप मेरी हाजत भी पूरी फरमा देंगें | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दरयाफ्त फ़रमाया की तुम्हारी क्या हाजत है? उस ने कहा की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में अपने घर से ये मकसद ले कर नहीं हाज़िर हुआ हूँ की आप मुझे कुछ माल अता फरमाएं बल्कि मेरी फ़क़त इतनी हाजत और दिली तमन्ना है जिस को दिल में ले कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुआ हूँ की अल्लाह पाक मुझे बख्श दे और मुझ पर अपना रहम फरमाए और मेरे दिल में बेनियाज़ी इस्तगना की दौलत पैदा फ़रमा दे | नौजवान की इस दिली मुराद और तमन्ना को सुन कर महबूबे खुदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बहुत खुश हुए और उस के हक में इन अल्फ़ाज़ों के साथ दुआ फ़रमाई की ऐ अल्लाह पाक ! इस को बख्श दे और इस पर रहम फरमा और इस के दिल में बे नियाज़ी डाल दे |

फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस नौजवान को उस की कोम का अमीर मुकर्रर फरमा दिया और ये नौजवान अपने कबीले की मस्जिद का इमाम हो गया | 

वफ्दे मुज़ेना

इस वफ्द के सरबराह हज़रते नोमान बिन मुक़र्रीन रदियल्लाहु अन्हु कहते है की हमारे कबीले के चार सौ आदमी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमते अक़दस में हाज़िर हुए और जब हम लोग अपने घरों को वापस होने लगे तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की ऐ उमर ! तुम इन लोगों को कुछ तोहफा इनायत करो | हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरे घर में बहुत ही थोड़ी सी खजूरें हैं | ये लोग इतने क़लील तोहफे से शायद खुश न होंगे | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर यही इरशाद फ़रमाया की ऐ उमर ! जाओ इन लोगों को ज़रूर कुछ तोहफा अता करो | इरशादे नबी सुन कर हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने इन चार सौ आदमियों को साथ ले कर मकान पर पहुंचे तो ये देख कर हैरान रह गए की मकान में खजूरों का एक बहुत ही बड़ा तूदा पड़ा हुआ है आप ने वफ्द के लोगों से फ़रमाया की तुम लोग जितनी और जिस कदर चाहो इन खजूरों में से ले लो | इन लोगों ने अपनी हाजत और मर्ज़ी के मुताबिक खजूरें लेलीं | हज़रते नोमान बिन मुक़र्रीन रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की सब से आखिर में जब खजूरें लेने के लिए मकान में दाखिल हुआ तो मुझे ऐसा नज़र आया की गोया इस ढेर में से एक खजूर भी कम नहीं हुई | 

ये वोही हज़रते नोमान बिन मुक़र्रीन रदियल्लाहु अन्हु हैं, जो फ़तेह मक्का दिन कबीलए मुज़ेना के अलम बरदार थे ये अपने सात भाइयों के साथ हिजरत कर के मदीने आए थे | हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु फ़रमाया करते थे की कुछ घर तो ईमान के हैं और कुछ घर निफ़ाक़ के हैं और आले मुक़र्रीन का घर ईमान का घर है | 

वफ्दे दौस

इस वफ्द के क़ाइद हज़रते तुफेल बिन अम्र दौसी रदियल्लाहु अन्हु थे ये हिजरत से पहले ही इस्लाम कबूल कर चुके थे | इन के इस्लाम लाने का वाक़िआ भी बड़ा ही अजीब है ये एक बड़े होश मंद शोला बयाल शायर थे | ये किसी ज़रूरत से मक्का आए तो कुफ्फारे कुरेश ने इन से कह दिया की खबरदार तुम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से न मिलना और हरगिज़ हरगिज़ उन की बात न सुन्ना | उन के कलाम में ऐसा जादू है की जो सुन लेता है वो अपना दीनो मज़हब छोड़ देता है और अज़ीज़ो अक़ारिब से उस का रिश्ता कट जाता है | ये कुफ्फारे मक्का के फरेब में आ गए और अपने कानो में इन होने रूई भर ली कहीं कुरआन की आवाज़ कानो में न पड़ जाए | लेकिन एक दिन सुबह को ये हरमे काबा में गए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फजर की नमाज़ में किरात फरमा रहे थे एक दम कुरआन की आवाज़ जो इन के कान में पड़ी ये कुरआन की फ़साहतो बलाग़त पर हैरान रह गए और किताबे इलाही की अज़मत और इस की तासीरे रब्बानी ने इन को दिल को छू लिया | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काशानए नुबुव्वत को चले तो ये बेताब हो कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पीछे पीछे चल पड़े और मकान में आ कर आप के सामने अदब से बैठ गए और अपना और कुरेश की बद गुइयों का सारा हाल सुना कर अर्ज़ किया की खुदा की कसम ! में ने कुरआन से बढ़ कर फसीहो बलीग़ आज तक कोई कलाम नहीं सुना | लिल्लाह ! मुझे बताईये की इस्लाम क्या है? हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस्लाम के कुछ अहकाम उन के सामने बयान फरमाकर उन को इस्लाम की दावत दी तो वो फ़ौरन ही कलमा पढ़ कर मुस्लमान हो गए | 

फिर इन होने दरख्वास्त पेश की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मुझे कोई ऐसी अलामत व करामत अता फरमाईये की जिस को देख कर लोग मेरी बात की तस्दीक करें ताकि में अपनी कौम में यहाँ से जा कर इस्लाम की तब्लीग करूँ ! हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये दुआ फरमा दी इलाही ! तू इन को एक ख़ास किस्म का नूर अता फरमा दे | चुनांचे इस दुआए नबी की बदौलत इन को ये करामत अता हुई की इन की दोनों आँखों के बीच चिराग की तरह एक नूर चमकने लगा | मगर इन होने ये ख्वाइश ज़ाहिर की, के ये नूर मेरे सर में चला जाए | चुनांचे इन का सर कैंडिल की तरह चमक ने लगा | जब ये अपने कबीले में पहुंचे और इस्लाम की दावत देने लगे तो इन के माँ बाप और बीवी ने तो इस्लाम कबूल कर लिया मगर इन की कौम मुस्लमान नहीं हुई बल्कि इस्लाम की मुखालफत पर तुल गई | ये अपनी कौम के इस्लाम से मायूस हो कर फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में चले गए और अपनी कौम की सरकशी और सरताबी का सारा हाल बयान किया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की तुम फिर अपनी कौम में चले जाओ और नरमी के साथ उन को खुदा की तरफ बुलाते रहो | चुनांचे फिर ये अपनी कौम में आ गए और लगातार इस्लाम की दावत देते रहे यहाँ तक की सत्तर या अस्सी घरानो में इस्लाम की रौशनी फेल गई और ये सब इन लोगों को साथ ले कर खैबर में ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुश हो कर खैबर के माले गनीमत में से इन सब लोगों को हिस्सा अता फ़रमाया | 

वाफदे बनी अबस

कबीलए बनी अबस के वफ्द ने दरबारे अक़दस में जब हाज़री दी तो ये अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमारे मुबल्लिग़ीन ने हम को खबर दी है की जो हिजरत न करे उस का इस्लाम मकबूल ही नहीं है तो या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर आप हुक्म दें तो हम अपनी सारी मालो दौलत और मवेशियों को बेच कर हिजरत कर के मदीने चले आएं | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की तुम लोगों के लिए हिजरत ज़रूरी नहीं | हाँ ! ये ज़रूरी है की तुम जहाँ भी रहो खुदा से डरते रहो खुदा से डरते रहो और ज़ोहदो तक्वा के साथ ज़िन्दगी बसर करते रो   

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया, 

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