हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 11)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 11)

हज़रते अबू सुफियान का नारा और उस का जवाब

अबू सुफियान जंग के मैदान से वापस जाने लेगा तो एक पहाड़ी पर चढ़ गया और ज़ोर से पुकारा की क्या यहां मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं? हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्ल ने फ़रमाया कि तुम लोग इस का जवाब न दो फिर उसने पुकारा क्या तुम में अबू बक्र है? हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि कोई कुछ जवाब न दे, फिर उसने पुकारा कि क्या तुम में उमर है? जब इस का भी कोई जवाब नहीं मिला तो अबू सुफ़यान घमंड से कहने लगा कि यह सब मारे गए कियोंकि अगर जिन्दा होते तो जवाब देते ये सुन कर हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु से ज़ब्त न हो सका और आप रदियल्लाहु तआला अन्हु ने चिल्ला कर कहा ऐ दुश्मने खुदा | तू झूठा है हम सब जिन्दा है अबू सुफ़यान ने अपनी फ़त्ह का घमंड में यह नारा मारा कि ऊलु हुबलु ऊलु हुबलु यानी ए हुब्ल तू सर बुलंद हो जा | ऐ हुब्ल तू सर बुलंद हो जा | हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सहाबा से फ़रमाया तुम लोग भी इस के जवाब में नारा लगाओ | लोगो ने पूछा हम क्या कहे? इरशाद फ़रमाया कि तुम लोग यह नारा मारो कि अल्लाह सब से बढ़ कर बुलंद मर्तबा और बड़ा है| अबू सुफियान ने कहा की हमारे लिए उज़्ज़ा (बुत) है और तुम्हारे लिए कोई उज़्ज़ा (बुत) नहीं है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की तुम लोग इस के जवाब में ये कहो की अल्लाह हमारा मदद गार है और तुम्हारा कोई मदद गार नहीं | अबू सुफियान ने बा आवाज़े बुलंद बड़े फख्र के साथ ये ऐलान किया की आज का दिन बद्र के दिन का बदला और जवाब है लड़ाई में कभी फतह कभी शिकस्त होती है | ऐ मुसलमानो ! हमारी फौज ने तुम्हारे मक़तूलों के कान, नाक काट कर उन की सूरतें बिगड़ दीं हैं मगर मेने न तो इस का हुक्म दिया, न मुझे इस पे कोई रंज व अफ़सोस हुआ है ये कह कर अबू सुफियान मैदान से हट गया और चल दिया | (बुख़ारीफ शरीफ जिल्द 2,)

हिन्द जिगर ख्वार

कुफ्फारे कुरेश की औरतों ने जंगे बद्र का बदला लेने के लिए जोश में शोहदाए किराम रदियल्लाहु अन्हुम की लाशों पे जा कर उन के कान, नाक वगैरा काट कर सूरतें बिगड़ दीं और “अबू सुफियान की बीवी हिन्द” ने तो इस बे दर्दी का मुज़ाहिरा किया इन आज़ा (हाथ, पैर नाक, कान) का हार बना कर अपने लगे में डाला | हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु की मुक़द्दस लाश जो तलश करती फिर रही थी क्यूं की हज़रते हम्ज़ा ही ने जंगे बद्र में “हिन्द के बाप उतबा” को क़त्ल किया था| जब इस बे दर्द ने हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु की लाश को पा लिया तो खंजर से इन का पेट फाड़ कर कलेजा निकाला और उस को चबा गई लेकिन हलक से नहीं उतरा इस लिए उगल दिया तारीखों में हिन्द का लक़ब जो “जिगर ख्वार” है वो इसी वाकिए की बिना पर है | “हिन्द और इस के शोहर अबू सुफियान ने रमज़ान सं. 8, हिजरी में फ़तेह मक्का के दिन इस्लाम कबूल किया “|

साद बिन अरबिआ की वसीयत

हज़रते ज़ैद बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म से हज़रते साद बिन अरबिआ रदियल्लाहु अन्हु की लाश की तलश में निकला तो में उन को सुकरात के आलम में पाया | उन होने मुझ से कहा की तुम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मेरा सलाम अर्ज़ कर देना और अपनी कोम को बादे सलाम मेरा ये पैगाम सुना देना की जब तक तुम में से एक आदमी भी ज़िनदा है अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक कुफ्फार पहुंच गए तो खुदा के दरबार में तुम्हारा कोई उज़्र भी कबूल न होगा ये कहा और उन की रूह परवाज़ हो गई |

खवातीने इस्लाम के कारनामे

जंगे उहद में मर्दों की तरह औरतों ने भी बहुत ही मुजाहिदाना ज़ज़्बात के साथ लड़ाई में हिस्सा लिया | हज़रते बीवी आएशा रदियल्लाहु अन्हा और हज़रते बीवी उम्मे सुलैम के बारे में हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की ये दोनों पईंचे चढ़ाए हुए मश्क में पानी भर भर कर लाती थीं और मुजाहिदीन ख़ुसूसन ज़ख़्मियों को पानी पिलाती थीं | इसी तरह हज़रते अबू सईद खुदरी रदियल्लाहु अन्हु की वालिदा हज़रते बीवी उम्मे सलीत रदियल्लाहु अन्हा भी बराबर पानी की मश्क भर कर लती थीं और मुजाहिदीन को पानी पिलाती थीं |

हज़रते उम्मे अम्मारा की जाँ निसारी

हज़रते बीवी उम्मे अम्मारा जिनका नाम “नसीबा” है जंगे उहद में अपने शोहर हज़रते ज़ैद बिन आसिम और दो बेटे हज़रते अम्मारा और हज़रते अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हुम को साथ ले कर आई थीं | पहले तो ये मुजाहिदीन को पानी पिलाती रहीं लेकिन जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कुफ्फार की यलगार का होशरुबा मंज़र देखा तो मश्क को फेंक दिया और एक खंजर लेकर कुफ्फार के मुकाबले में सीना सिपर हो कर कड़ी हो गईं और कुफ्फार के तीर व तलवार के हर एक वार को रोकती रहीं | चुनांचे उन के सर और गर्दन पे तेरह ज़ख्म लगे | इब्ने कमिअ मलऊन ने जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर तलवार चलादी तो बीवी उम्मे अम्मारा रदियल्लाहु अन्हा ने आगे बढ़ कर अपने बदन पे रोका | चुनांचे इन के कंधे पे इतना गहरा ज़ख्म आया के सूराख हो गया फिर खुद बढ़ कर इब्ने कमीआ के कंधे पे ज़ोर से तलवार मारी लेकिन वो मलऊन डावल ज़िरह पहने हुए था इस लिए बच गया |

हज़रते बीवी उम्मे अम्मारा रदियल्लाहु अन्हा के बेटे हज़रते अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की मुझे एक काफिर ने ज़ख़्मी कर दिया और मेरे ज़ख्म से खून बंद नहीं होता था | मेरी वालिदा हज़रते उम्मे अम्मारा रदियल्लाहु अन्हा ने फ़ौरन अपना कपड़ा फाड़ कर ज़ख्म को बाँध दिया और कहा की बेटा उठो | खड़े हो जाओ और फिर जिहाद में मशगूल हो जाओ | इत्तिफ़ाक़ से वही काफिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने आ गया तो आपने फ़रमाया की ऐ उम्मे अम्मारा ! देख तेरे बेटे को ज़ख़्मी करने वाला यही है ये सुनते ही | हज़रते उम्मे अम्मारा रदियल्लाहु अन्हा ने झपट कर उस काफिर की तांग पे तलवार का ऐसा भर पूर हाथ मारा की वो काफिर गिर पड़ा और फिर चलना सका बल्कि सुरीन की बल घसीटता हुआ भागा | ये मंज़र देख कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ह्नस पड़े और फ़रमाया की ऐ उम्मे अम्मारा ! रदियल्लाहु अन्हा तू खुदा का शुक्र अदा कर की उस ने तुझ को इतनी ताक़त और हिम्मत अता फ़रमाई की तूने खुदा की राह में जिहाद किया, हज़रते बीवी उम्मे अम्मारा ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दुआ फरमाइए की हम लोगों को जन्नत में आप की खिदमत गुज़ारी का शरफ़ हासिल हो जाए उस वक़्त आप ने इन के लिए इस तरह दुआ फ़रमाई की या अल्लाह पाक इन सब को जन्नत में मेरा रफ़ीक़ बना दे |हज़रते बीवी उम्मे अम्मारा रदियल्लाहु अन्हा ज़िन्दगी भर ऐलानिया ये कहती रहीं की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इस दुआ के बाद दुनिया में बड़ी से बड़ी मुसीबत भी मुझ पर आ जाए तो मुझे उस की कोई परवा नहीं |

हज़रते सफिय्या का हौसला

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फूफी हज़रते बीबी सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा अपने भाई हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु की लाश पर आई तो आप ने उन के बेटे हज़रते ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया की मेरी फूफी अपने भाई की लाश न देखने पाएं | हज़रते बीबी सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा ने कहा की मुझे अपने भाई के बारे में सब कुछ मालूम हो चुका है लेकिन में इस को खुदा की राह में कोई बड़ी क़ुरबानी नहीं समझती, फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमकी इजाज़त से लाश के पास गईं और ये मंज़र देखा की प्यारे भाई के कान, आँख सब कटे पिटे शिकम चाक, जिगर चबाया हुआ पड़ा है ये देख कर शेर दिल खातून ने इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलही व राजिऊन के सिवा कुछ भी नहीं कहा फिर उन की मगफिरत की दुआ मांगती हुई चली गईं |

एक अंसारी औरत का सब्र :- एक अंसारी औरत जिस का शोहर, बाप, भाई, सभी इस जंग में शहीद हो गए थे तीनो की शहादत की खबर बारी बारी से लोगों ने उसे दी मगर वो हर बार ये पूछती रही ये बताओ की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कैसे हैं? जब लोगों ने उस को बताया अल हम्दुलिल्लाह वो ज़िंदा और सलामत हैं तो वो बेइख्तियार उस की ज़बान से ये शेर का मज़मून निकल पड़ा की:

तसल्ली है पनाहे बे कसां ज़िंदा सलामत हैं

कोई परवाह नहीं सारा जहाँ ज़िंदा सलामत हैं

अल्लाहु अकबर ! इस शेर दिल का सब्र व ईसार का क्या कहना? शोहर, बाप, भाई, तीनो के क़त्ल से दिल पर सदमात के तीन तीन पहाड़ गिर पड़े हैं मगर फिर भी ज़बाने हाल से उस का यही नारा है की

में भी और बाप भी, शोहर भी, बिरादर भी फ़िदा
ऐ शाहे दीं ! तेरे होते हुए क्या चीज़ हैं हम


शोहदाए किराम

इस जंग में सत्तर सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने जामे शहादत नोश फ़रमाया जिन में चार मुहाजिर और छियासठ 66, अंसार थे | तीस की तादाद में कुफ्फार भी निहायत ज़िल्लत के साथ क़त्ल हुए |मगर मुसलमानो की मुफलिसी का ये आलम था की इन शोहदाए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के कफ़न के लिए कपड़ा भी नहीं था | हज़रते मुसअब बिन उमैर रदियल्लाहु अन्हु का ये हाल था की शहादत के वक़्त उन के बदन पे सिर्फ एक इतनी बड़ी कमली थी की उन की लाश को कब्र में लिटाने के बाद अगर उन का सर ढांपा जाता था तो पाऊं खुल जाते थे और अगर पाऊं को छुपाया जाता तो सर खुल जाता था बिला आखिर सर छुपा दिया गया और पाऊं पर इज़ खर घास डाल दी गई | शोहदाए किराम खून में लिथड़े हुए दो दो शहीद एक एक कब्र में दफन किए गए जिस को कुरआन ज़्यादा याद होता उस को आगे रखते |

क़ुबूरे शुहदा की ज़ियारत

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शोहदाए उहद की क़ब्रों की ज़ियारत के लिए तशरीफ़ ले जाते थे और आप के बाद हज़रते अबू बक्र सिद्दीक व हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हुमा का भी यही अमल रहा | एक बार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शोहदाए उहद की क़ब्रों पर तशरीफ़ ले गए तो इरशाद फ़रमाया की या अल्लाह ! तेरा रसूल गवाह हैं की इस जमात ने तेरी रिज़ा की तलब में जान दी हैं, फिर ये भी इरशद फ़रमाया की कयामत तक जो मुस्लमान भी इन शहीदों की क़ब्रों पर ज़ियारत के लिए आएगा और इन को सलाम करेगा तो ये शोहदाए किराम रदियल्लाहु अन्हुम उस के सलाम का जवाब देंगें |चुनांचे हज़रते फातिमा खुज़ाईया रदियल्लाहु अन्हा का बयान हैं की में एक दिन उहद के मैदान से गुज़र रही थीं हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु की कब्र के पास पहुंच कर इस तरह सलाम किया: की ऐ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चचा ! आप पे सलाम हो तो मेरे कान में सलाम का जवाब आया |

हयाते शुहदा

46, छियालीस साल के बाद शोहदाए उहद की कुछ कब्रें खुल गईं तो उन के कफ़न सलामत और बदन तरो ताज़ा थे और तमाम अहले मदीना और दुसरे लोगों ने देखा की शोहदाए किराम अपने ज़ख्मो पे हाथ रखे हुए हैं और जब ज़ख्म से हाथ उठाया तो ताज़ा खून निकल कर बहने लगा |

कअब बिन अशरफ का क़त्ल

यहूदियों में कअब बिन अशरफ बहुत ही दौलत मंद था | यहूदी उलमा और यहूद के मज़हबी पेशवाओं को अपने ख़ज़ाने से तनख्वाह देता था | दौलत के साथ शायरी में भी बहुत ब कमाल था जिस की वजह से न सिर्फ यहूदियों बल्कि तमाम कबाईले अरब पर इस का एक खास असर था | इस को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सख्त दुश्मनी थी | जंगे बद्र में मुसलमानो की फतह और सरदारने कुरेश के क़त्ल हो जाने से इस को इंतिहाई रंज व सदमा हुआ | चुनांचे ये कुरेश की ताज़ियत के लिए मक्के गया और कुफ्फारे कुरेश का जो बद्र में क़त्ल हुए थे ऐसा पुर दर्द मरसिया लिखा की जिस को सुन कर मातम होने लगता था | इस मर्सिए को ये शख्स कुरेश को सुना सुना कर खुद भी बहुत रोता था और सब को भी रुलाता था | मक्के में अबू सुफियान से मिला और उस को मुसलमानो से जंगे बद्र का बदला लेने पे उभारा बल्कि अबू सुफियान को लेकर हरम में आया और कुफ्फारे मक्का के साथ खुद भी काबे का गिलाफ पकड़ कर वादा किया की मुसलमानो से बद्र का ज़रूर बदला लेंगें फिर मक्के से मदीना लोट कर आया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बुराई लिख कर आप की शान में तरह तरह की गुस्ताखियां और बे अदबी करने लगा, इसी पर बस नहीं क्या बल्कि आप को चुपके से क़त्ल करा देने का इरादा किया|

कअब बिन अशरफ यहूदी की ये हरकतें सरासर उस वादे की खिलाफ वर्ज़ी थी जो यहूद और अंसार के बीच हो चुका था की मुसलमानो और कुफ्फारे कुरेश की लड़ाई में यहूदी गैर जानिब दार रहेंगें | बहुत दिनों तक मुस्लमान बर्दाश्त करते रहे मगर जब बानिए इस्लाम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स जान को खतरा हो गया तो हज़रत मुहम्मद बिन मुस्लिम ने हज़रते अबू नाइला व हज़रते अब्बाद बिन बिशर व हज़रते हारिस बिन ओस व हज़रते अबू अबस रदियल्लाहु अन्हुम को साथ लिया और रात में कअब बिन अशरफ के मकान पे गए और रबीउल अव्वल सं. तीन 3, हिजरी को इस के किले के फाटक पर उस को क़त्ल कर दिया और सुबह को बारगाहे रिसालत में हाज़िर हो कर इस का सर ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमके कदमो में डाल दिया | इस क़त्ल के सिलसिले में हज़रते हारिस बिन ओस रदियल्लाहु अन्हु तलवार की नोक से ज़ख़्मी हो गए थे | मुहम्मद बिन मुस्लिम वगैरा इन को कन्धों पर उठा कर बारगाहे रिसालत में लाए और आप ने अपना लुआब दहन उन के ज़ख्म पे लगा दिया तो उसी वक़्त शिफाये कामिल हासिल हो गई | (बुखारी, व मुस्लिम शरीफ जिल्द 2)

ग़ज़वए गतफान

रबीउल अव्वल सं. 3,तीन हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ये खबर मिली की नज्द के एक मशहूर बहादुर “दासूर बिन अल हारिस मुहारिबी” ने एक लश्कर तय्यार कर लिया हैं ताकि मदीने में हमला करे | इस खबर के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चार सौ सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम की फौज ले कर मुकाबले के लिए रवाना हो गए | जब दासूर को खबर मिली की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारे दयार में आ गए तो वो भाग निकला और अपने लश्कर को लेकर पहाड़ों पर चढ़ गया मगर उस की फौज का एक आदमी जिस का नाम “हब्बान” था गिरफ्तार हो गया और फौरन ही कलमा पढ़ कर उस ने इस्लाम कबूल कर लिया |इत्तिफ़ाक़ से उस रोज़ ज़ोरदार बारिश हो गई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक पेड़ के नीचे लेट कर अपने कपड़े सुखाने लगे पहाड़ की बुलंदी से काफिरों ने देख लिया की आप बिलकुल अकेले और अपने असहाब से दूर भी हैं, एक दम दासूर बिजली की तरह पहाड़ से उतर कर नग्गी शमशीर हाथ में लिए हुए आया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सरे मुबारक पर तलवार बुलंद कर के बोला की बताओ अब कौन है जो आप को मुझ से बचा ले? आप ने जवाब दिया की “मेरा अल्लाह मुझ को बचा लेगा” चुनांचे जिब्राइल अलैहिस्सलाम फ़ौरन एक दम ज़मीन पर उतर पड़े और दासूर के सीने में एक ऐसा घूँसा मारा की तलवार उस के हाथ से गिर पड़ी और दासूर ऐन गेन हो कर रह गया | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़ौरन तलवार उठाली और फ़रमाया की बोल अब तुझ को मेरी तलवार से कौन बचाएगा? दासूर ने कांपते हुए भर्राई हुई आवाज़ में कहा की “कोई नहीं” हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उस की बे कसी पर रहम आ गया और आप ने उस का कुसूर मुआफ फरमा दिया | दासूर इस अख़लाक़े नुबूवत से बेहद से मुतअस्सिर हुआ और कलमा पढ़ कर मुस्लमान हो गया और अपनी कौम में आ कर इस्लाम की तब्लीग करने लगे | इस ग़ज़वे में कोई लड़ाई नहीं हुई और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम गियारह 11, या पंदिरा 15, दिन मदीने से बाहर रह कर फिर मदीने में आ गए |

बाज़ मुअर्रिख़ीन ने इस तलवार खींचने वाले वाकिए को “ग़ज़वए ज़ातुररिका” के मोके पर बताया है मगर हक़ ये है की तारीखे नबवी में इस किस्म के दो वाक़िआत हुए हैं | “ग़ज़वए गतफान” के मोके पर सरे अनवर के ऊपर तलवार उठाने वाला “दासूर बिन हारिस नुहारिबी” था जो मुस्लमान हो कर अपनी कौम के इस्लाम का बाइस बना और ग़ज़वए ग़ज़वए ज़ातुररिका में जिस शख्स ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर तलवार उठाई थी उस का नाम “गौरस” था उस ने इस्लाम कबूल नहीं किया बल्कि मरते वक़्त तक अपने कुफ्र पर अड़ा रहा | हाँ अल बत्ता उस ने ये वादा कर लिया था की वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कभी जंग नहीं करेगा |

सं. 3, हिजरी के वाक़िआत मुतफ़र्रिका

हिजरत के तीसरे साल में मुन्दर्जा ज़ैल वाक़िआत भी ज़हूर पज़ीर हुए |

  • 15, रमज़ान सं. 3, हिजरी को हज़रते इमामे हसन रदियल्लाहु अन्हु की विलादत हुई |
  • इसी साल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते बीवी हफ्सा रदियल्लाहु अन्हा से निकाह फ़रमाया | हज़रते बीवी हफ्सा रदियल्लाहु अन्हा हज़रते उमर फ़ारूक़ रदियल्लाहु अन्हु की साहिब ज़ादी हैं जो ग़ज़वए बद्र के ज़माने में बेवा हो गईं थीं |
  • इसी साल हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहब ज़ादी हज़रते उम्मे कुलसूम रदियल्लाहु अन्हा से निकाह किया|
  • मीरास के अहकाम व क़वानीन भी इसी साल नाज़िल हुए | अब तक मीरास में ज़विल अरहाम का कोई हिस्सा न था | इन के हुकूक का मुफ़स्सल बयान नाज़िल हो गया |
  • अब तक मुशरिक औरतों का निकाह मुसलमानो से जाइज़ था मगर सं. तीन हिजरी में इस की हुरमत नाज़िल हो गई और हमेशा के लिए मुशरिक औरतों का निकाह मुसलमानो से हराम कर दिया गया |
                                            "हिजरत का चौथा साल"  
सरिय्यए अबू सलमह

एक मुहर्रम सं. 4, हिजरी को अचानक एक शख्स ने मदीने में ये खबर पहुंचाई की तुलैहा बिन ख़ुवैलिद और सलमाह बिन ख़ुवैलिद दोनों भाई कुफ्फार का लश्कर जमा कर के मदीने पर चढ़ाई कर ने के लिए निकल पड़े हैं | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस लश्कर के मुकाबले में हज़रते अबू सलमाह रदियल्लाहु अन्हु को डेढ़ सौ मुजाहिदीन के साथ रवाना फ़रमाया जिस में हज़रते अबू सबरह और हज़रते अबू उबैदा रदियल्लाहु अन्हुमा जैसे मुअज़्ज़ज़ मुहाजिरीन व अंसार भी थे, लेकिन कुफ्फार को जब पता चला की मुसलमानो का लश्कर आ रहा है तो वो लोग बहुत से ऊँट बकरियां छोड़ कर भाग गए जिन को मुसलमान मुजाहिदीन ने माले गनीमत बना लिया और लड़ाई की नौबत ही नहीं आई |

सरिय्यए अब्दुल्लाह बिन अनीस

मुहर्रम सं. 4, हिजरी को इत्तिला मिली की “खालिद बिन सुफियान हज़ली” मदीने पर हलमा करने के लिए फौज जमा कर रहा है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस के मुकाबले के लिए हज़रते अब्दुल्लाह बिन अनीस रदियल्लाहु अन्हु को भेज दिया | आप ने मौका पा कर खालिद बिन सुफियान हज़ली को क़त्ल कर दिया और उस का सर काट कर मदीने लाए और ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कदमो में डाल दिया | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन अनीस रदियल्लाहु अन्हु की बहादुरी और जांबाज़ी से खुश हो कर उन को अपना असा (छड़ी) अता फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया की तुम इसी असा को हाथ में ले कर जन्नत में चेहल कदमी करोगे | उन होने अर्ज़ किया की हुज़ूर ! क्या क़ियामत के दिन ये मुबारक असा मेरे पास निशानी के तौर पे रहेगा | चुनांचे इन्तिकाल के वक़्त उन्होंने ये वसीयत फ़रमाई की इस असा को मेरे कफ़न में रख दिया जाए |

हादिसए रजी

अस्फान व मक्के के दरमियान एक मक़ाम का नाम “रजी” है | यहाँ की ज़मीन सात मुकद्द्स सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के खून से रंगीन हुई इस लिए ये वाकिअ “सरिय्यए रजी” के नाम से मशहूर है | ये दर्द नाक सानिहा भी सं. 4, हिजरी में पेश आया | इस का वाकिअ ये है की कबीलए अज़ल व कराह के चंद आदमी बारगाहे रिसालत में आए और अर्ज़ किया की हमारे कबीले वालों ने इस्लाम कबूल कर लिया है | अब आप चंद सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को वहां भेज दें ताकि वो हमारी कौम को अक़ाइदों आ माले इस्लाम सीखा दे | उन लोगों की दरख्वस्त पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दस मुन्तख़ब सहाबा को हज़रते आसिम बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु की माँ तहति में भेज दिया | जब ये मुकद्द्स काफिला मक़ामे रजी पर पहंचा तो गद्दार कुफ्फार ने बद अहदी की और कबीलए बनू लह्यान के काफिरों ने दो सौ की तादाद में जमा हो कर इन दस मुसलमानो पर हमला कर दिया मुसलमान अपने बचाओ के लिए एक ऊंचे टीले पर गए |

काफिरों ने तीर चलाना शुरू किया और मुसलमानो ने टीले की बुलंदी से संगबारी की कुफ्फार ने समझ लिया की हम हथियारों से इन को खत्म नहीं कर सकते तो उन लोगों ने धोका दिया और कहा की ऐ मुसलमानो ! हम तुम लोगों को अमान देते हैं और अपनी पनाह में लेते हैं इस लिए तुम लोग टीले से उतर कर आओ हज़रते आसिम बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की में किसी काफिर की पनाह में आना गवारा नहीं कर सकता | ये कह कर खुदा से दुआ मांगी की “या अल्लाह ! तू अपने रसूल को हमारे हाल से मुत्तला फ़रमादे |” फिर वो जोशे जिहाद में भरे हुए टीले से उतरे और कुफ्फार से दस्त बदस्त लड़ते हुए अपने छेह 6, साथियों के साथ शहीद हो गए |

चूँकि हज़रते आसिम रदियल्लाहु अन्हु ने जंगे बद्र के दिन बड़े बड़े कुफ्फारे कुरेश को क़त्ल किया था इस लिए जब कुफ्फारे मक्का को हज़रते आसिम रदियल्लाहु अन्हु की शहादत का पता चला तो कुफ्फारे मक्का ने चंद आदमियों को मक़ामे रजी में भेजा ताकि उन के बदन का कोई ऐसा हिस्सा काट कर लाएं जिस से शनाख्त हो जाए की वाकई हज़रते आसिम रदियल्लाहु अन्हु क़त्ल हो गए हैं लेकिन जब कुफ्फार आप की लाश की तलाश में इस मक़ाम पर पहुचें तो इस शहीद की ये करामात देखि की लाखों की तादाद में शहद की मख्खी यो ने इन की लाश के पास इस तरह घेरा डाल रखा है जिससे वहां तक पहुंचना ही न मुमकिन हो गया है इस लिए कुफ्फारे मक्का नाकाम वापस चले गए |

बाकि तीन शख्स हज़रते खूबेब व हज़रते ज़ैद बिन दसिना व हज़रते अब्दुल्लाज बिन तारिक रदियल्लाहु अन्हुम कुफ्फार की पनाह पर एतिमाद कर के नीचे उतरे तो कुफ्फार ने बद अहदी की और अपनी कमान की तांतों से इन लोगों को बांधना शुरू कर दिया | ये मंज़र देख कर हज़रते अब्दुल्ला बिन तारिक रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की ये तुम लोगों की पहली बद अहदी है और मेरे लिए अपने साथियों की तरह शहीद हो जाना बेहतर है चुनांचे वो इन काफिरों से लड़ते हुए शहीद हो गए | लेकिन हज़रते खूबेब रदियल्लाहु अन्हु व हज़रते दसिना रदियल्लाहु अन्हु को काफिरों ने बांध दिया था इस लिए ये दोनों मजबूर हो गए थे इन दोनों को कुफ्फार ने मक्का में ले जा कर बेच डाला हज़रते खूबेब रदियल्लाहु अन्हु ने जंगे उहद में हारिस बिन आमिर को क़त्ल किया था इस लिए उस के लड़के ने इन को खरीद लिया ताकि इन को कत्ल कर के बाप के खून का बदला लिया जाए और हज़रते दसिना रदियल्लाहु अन्हु को उमय्या के बेटे सफ़वान ने क़त्ल करने के इरादे से ख़रीदा | हज़रते खूबेब रदियल्लाहु अन्हु को काफिरों ने चंद दिन कैद में रख दिया फिर हुदूदे हरम के बाहर ले जा कर सूली पे चढ़ा कर क़त्ल कर दिया | हज़रते खूबेब रदियल्लाहु अन्हु ने कातिलों से दो रकत नमाज़ पढ़ने की इजाज़त मांगी | कातिलों ने इजाज़त दे दी | आप ने बहुत मुख़्तसर तौर पे दो रकअत नमाज़ अदा फ़रमाई | और फ़रमाया की ऐ कुफ्फार के गिरोह ! मेरा दिल तो यही चाहता था है की देर तक नमाज़ पढता रहूँ क्यूं की ये मेरी ज़िन्दगी की आखरी नमाज़ थी मगर मुझ को ये ख्याल आ गया की कहीं तुम लोग ये न समझ लो की में मोत से डर रहा हूँ | कुफ्फार ने आप को सूली पे चढ़ा दिया उस वक़्त आप ने ये अशआर पढ़े |जब में मुस्लमान हो कर क़त्ल किया जा रहा हूँ, परवा नहीं है की में किस पहलू पर क़त्ल किया जाऊँगा, ये सब कुछ खुदा के लिए है अगर वो चाहेगा तो वो मेरे कटे पिटे जिस्म के टुकड़ों पर बरकत नाज़िल फरमाएगा |हरिस बिन आमिर के लड़के “अबू सरूआ” ने आप को क़त्ल किया मगर खुदा की शान की ये अबू सरूआ और इन के दोनों भाई “उक़्बा” और “हुज़ैर” फिर बाद में मुशर्रफ बा इस्लाम हो कर सहबियत के ऐजाज़ से सरफ़राज़ हो गए |

हज़रते खूबेब रदियल्लाहु अन्हु की क़ब्र

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह पाक ने वही के ज़रिए हज़रते खूबेब रदियल्लाहु अन्हु की शहादत के बारे में बताया | आप ने सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम से फ़रमाया की जो शख्स खूबेब की लाश को सूली से उतार कर लाए उस के लिए जन्नत है | ये बशर्त सुन कर हज़रते ज़ुबैर बिन अल अव्वाम व हज़रते मिक़दाद बिन अल अस्वद रदियल्लाहु अन्हुमा रातों में सफर करते और दिन को छुपे हुए मक़ामे “तनईम” में हज़रते खूबेब रदियल्लाहु अन्हु की सूले के पास पहुंचे | चालीस कुफ्फार सूली के पास पहरा बना कर सो रहे थे इन दोनों हज़रात ने सूली से लाश को उतरा और घोड़े पर रख कर चल दिए | चालीस दिन गुज़र जाने के बावजूद लाश ताज़ा थी और ज़ख्मो से ताज़ा खून टपक रहा था | सुबह को कुरेश के सत्तर सवार तेज़ रफ़्तार घोड़ों से पीछा करने लगे और इन दोनों हज़रात के पास पहुंच गए | इन हज़रात ने जब देखा की कुरेश के सवार हम लोगों को गिरफ्तार कर लेंगें तो इन होने हज़रते खूबेब रदियल्लाहु अन्हु की लाश मुबारक को घोड़े से उतार कर ज़मीन पर रख दिया | खुदा की शान की फौरन एक दम ज़मीन फट गई और लाश मुबारक को निगल गई और फिर ज़मीन इसी तरह बराबर हो गई की फटने का निशान भी बकी नहीं रहा | यही वजह है की हज़रते खूबेब रदियल्लाहु अन्हु का लक़ब “बलीउल अर्द” (जिन को ज़मीन निगल गई) इस के बाद इन हज़रात ने कुफ्फार से कहा की हम दो शेर हैं जो अपने जंग में जा रहे हैं अगर तुम लोगों से हो सके तो हमारा रास्ता रोक कर देखो वरना अपना रास्ता लो | कुफ्फार ने इन हज़रात के पास लाश नहीं देखि इस लिए मक्का वापस चले गए | जब दोनों ये सहाबए किराम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में पहुचें और पूरा वाकिअ अर्ज़ कर दिए तो हज़रते जिब्राइल अलैहिस्सलाम भी हाज़िर थे | उन होने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह ! आप के इन दोनों यारों के कारनामो पर हम फरिश्तों की जमात को भी फख्र है |

रेफरेन्स ( हवाला )

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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