हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 2)

मुश्किलें हल कर शहे मुश्किल कुशा के वास्ते 

कर   बलाएं   रद   शहीदे   कर्बला  के  वास्ते 

यज़ीद पलीद की साज़िश

जब कूफ़ियों ने बैअत व इताअत हज़रते इमाम मुस्लिम की इख़्तियार कर ली और हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के आने के जानो दिल से मुश्ताक हुए और चारों तरफ हज़रत के आने की खबर मशहूर हो गई तो इस खबर को सुन कर यज़ीद पलीद ने अपने साथियों को जमा कर के मश्वरा किया के अगर हुसैन कूफ़ा शहर आ गए तो मुल्के ईराक हमारे हाथ से निकल जाएगा और इस के साथ ही सारी सल्तनत में खलल पड़ जाएगा । इन मरदूदों ने मश्वरा दिया के नोमान बिन बशीर को कूफ़े शहर की हुकूमत से माज़ूल कर के वहां उस शख्स को हाकिम बनाया जाए जो मुस्लिम जमात को खत्म कर के फितना फसाद का सद्दे बाब कर सके । आखिर कार अब्दुल्लाह बिन ज़ियाद को इस काम पे मुकर्रर किया और इस को लिखा, जल्द अज़ जल्द बसरा शहर से कूफ़ा शहर में पहुंच कर मुस्लिम और उन के जुमला मुतअल्लिक़ीन व अहबाब को क़त्ल कर दो और हुसैन बैअत करें तो बेहतर वरना उन को भी क़त्ल कर दो । 

जब ये खत इब्ने ज़ियाद के पास पंहुचा तो ये अपने भाई को अपना कायम मक़ाम बना कर कूफ़े की तरफ चल दिया अपनी फौज को क़ादिस्य में छोड़ कर हिजाज़ियों का लिबास पहन कर अपने मुतअद्दिद रफीकों के साथ रात को मग़रिबों ईशा के दरमियान कूफ़े पंहुचा, लोगों ने समझा के हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाए हैं इस लिए अनजाने में खूब इस का सुआगत इस्तकबाल किया, मरहबा और सलाम से इस का खेर मकदम हुआ मगर ये अय्यार (धोके बाज़) खामोशी से अपने गोरमेंट हॉउस में चला गया, जब सुबह हुई तो इब्ने ज़ियाद ने लोगों को जमा किया और यज़ीद की मुखालिफत से लोगों को खूब डराया धमकाया यहाँ तक के गिरफ्तारी का हुक्म जारी किया । हज़रते इमाम मुस्लिम उस वक़्त हानि के घर पनाह लिए हुए थे आप को वहां से गिरफ्तार किया और जुमला रूसाए कूफ़ा भी गिरफ्तार करने का हुक्म जारी  किया उस वक़्त इमाम मुस्लिम ने अपने गिरोह के लोगों को पुकारा तो चालीस हज़ार का मजमा इकठ्ठा हो कर इस के महल को घेर लिया । इब्ने ज़ियाद उस वक़्त चालाकी से रूओसाए कूफ़ा को सामने लाया और उन के ज़रिए कहिल वाया के वो इमाम मुस्लिम के साथ से बाज़ आ जाएं, जिस का नतीजा ये हुआ के लोग मुन्तशिर हो गए और शाम तक सिर्फ आप के साथ पांच सौ आदमी रह गए थे और अँधेरा होने पर वो भी चले गए यहाँ तक के उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद शकियुल क़ल्ब ने तीसरी ज़िल हिज्जा को आप को क़त्ल यानि शहीद कर दिया । 

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु कूफ़ा शहर की तरफ रवाना

हज़रते इमाम मुस्लिम बिन अकील रदियल्लाहु अन्हु का खत पाते ही हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु कूफ़े की तरफ रवाना हो गए और इधर इमाम मुस्लिम जामे शहादत से सरफ़राज़ हो चुके थे, हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु का बियासी हज़रात पर मुश्तमिल नूरानी काफिला मक्का शरीफ से जब कूच कर रहा था तो मक्का शरीफ का बच्चा बच्चा अहले बैत के इस काफिले को हरम शरीफ से रुखसत होता देख कर आब दीदह और मगमूम हो रहा था । 

आप का ये काफिला जब मक़ामे शकूक पंहुचा तो कूफ़े से आने वाले एक आदमी ने हज़रते इमाम आली मक़ाम को बताया के कूफ़ियों ने बे वफाई की और हज़रते इमाम मुस्लिम शहीद कर दिए गए, आप ने ये खबर सुन कर “इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि रजिऊन” पढ़ा और घर के अफ़राद को तसल्ली दी, जब आप मक़ामे सालबा में उतरे तो हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु अपनी बहन हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा के ज़ानों पर सर रख कर सो गए, थोड़ी देर के बाद रोते हुए उठे और फ़रमाया, बहन ! में ने नाना जान को ख्वाब में देखा है आप रो रो कर फरमा रहे हैं के ऐ हुसैन ! तुम जल्द हम से मिलोगे । 

“एक सवार कह रहा था के लोग चल रहे हैं और इन की क़ज़ाएँ इन की तरफ चल रहीं हैं”

हज़रते अली अकबर दियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ की अब्बा जान क्या हम हक पर नहीं हैं? हज़रत ने फ़रमाया, बेशक हम हक पर हैं और हक हमारे साथ है तो हज़रते अली अकबर दियल्लाहु अन्हुने अर्ज़ की, तो फिर मोत का खौफ कैसा? के एक न एक दिन मरना ही है अब्बा जान ! हम गुलज़ार शहादत को फूला फुला कर देख रहे हैं दुनिया से बेहतर घर और उम्दा नेमतें हमारे सामने हैं । 

सब्र की तलकीन

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने दश्ते कर्बला में दूसरी मुहर्रम इक्सठठ 61, हिजरी को क़याम फ़रमाया और नहरे फुरात पर खेमा नसब फ़रमाया और अपने अहले बैत में वाइज़ो नसीहत फ़रमाई, मेरी मुसीबत व जुदाई पे सब्र करना, जब में मारा जाऊं तो हर गिज़ मुँह न पीटना और न नोचना और न ही गिरिबान चाक करना, ऐ मेरी बहन ज़ैनब ! तुम फातिमा ज़हरा की बेटी हो जैसा उन्हों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जुदाई पे सब्र किया था इसी तरह मेरी मुसीबत पर सब्र करना । 

अहले बैत पर पानी बंद

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु मैदाने कर्बला में नहरे फुरात के किनारे अपने खेमे घाड़ चुके थे, मगर मुहर्रम की सातवीं तारीख को इब्ने साद की फौज ने जो बियासी हज़ार की तादाद में थी नहरे फुरात को घेर लिया और हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु को पानी पीने से रोक दिया इस फौज में अक्सर वही लोग थे जो मुहिब्बाने अली और मुहिब्बाने हुसैन होने का दवा करते थे, इब्ने साद ने हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया के वो अपने खेमे नहर के किनारे से उखाड़ लें? हज़रते अब्बास ने उस मोके पे फ़रमाया, ऐसा नहीं हो सकता मगर हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया भाई अब्बास जाने दो सब्र करो तुम बहरे करम हो ये कतराए नाचीज़ हैं इन से झगड़ना फ़ुज़ूल है अपना खेमा यहाँ नहीं तो नहर से दूर ही सही, चुनांचे आप ने अपना खेमा वहां से उखाड़ ने का हुक्म दिया ।      

दीदारे नबी

मुहर्रम की दसवीं तारीख की रात सुबह तक हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने इबादते इलाही में गुज़ारी रात के पिछले पहर आप पर इस्ताग्राक  की कैफ़ियत तारी हुई अल्लाह पाक की याद में इस कदर खो गए के दुनिया व माफीहा से बे खबर थे । इसी आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरिश्तों की जमाअत के साथ मैदाने कर्बला में तशरीफ़ लाए और हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु को बच्चों की तरह गोद में ले कर खूब प्यार फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया, ऐ जानो दिल के चैन नुरुल ऐन मेरे हुसैन में खूब जनता हूँ के दुश्मन तेरे दर पे आज़ार हैं और तुझे क़त्ल करना चाहते हैं बेटा ! सब्रो शुक्र से इस साअत को गुज़ारना तेरे जितने क़ातिल हैं क़यामत के दिन सब मेरी शफ़ाअत से महरूम रहेंगें और तुझे शहादत का बड़ा दर्जा मिल ने वाला है और थोड़ी ही देर में तुम इस करबो बला से छूट जाओगे, बेटा तेरे लिए जन्नत सवारी गई माँ बाप बहिश्त के दरवाज़े पर तेरी राह तक रहे हैं ये बातें फरमा कर फिर हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के सर व सीने पर हाथ फेर कर दुआ फ़रमाई के “ऐ अल्लाह मेरे हुसैन को सब्रो अज्र अता फरमा” । 

इत्मामे हुज्जत

यज़ीद जब किसी तरह हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु से लड़ाई करने से बाज़ नहीं आए और लड़ने ही पर क़ाइम रहे तो  हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने भी इमामए रसूल बांधा, ज़ुल्फ़िकार हैदरी हाथ में ली और नाका (ऊंटनी) पे सवार हो कर मैदान में तशरीफ़ लाए और लश्करे इब्ने सअद के करीब हो कर फ़रमाया: ऐ इराक वालों ! तुम खूब जानते हो के में नवासाए रसूल हूँ, फ़रज़न्दे बुतूल, दिल बंदे अली मुर्तज़ा, और बिरादिरे हसन मुज्तबा, हूँ देखो ये इमामा किस का है, ये ज़रह किस की है, ये तलवार ये ऊँट किस का है, गौर करो के ईसाई अब तक निशाने सुम हुर ईसा की ताज़ीम करते हैं, यहूदी आज तक निशाने पाए मूसा को बोसा देते हैं गरज़ हर दीनो मिल्लत के लोग अपने पेशवाओं की यादगार को दोस्त रखते हैं, में तुम्हारे रसूल का नवासा हूँ, अली शेरे खुदा का फ़रज़न्द हूँ अगर तुम मेरे साथ कोई सुलूक नहीं कर सकते तो कम अज़ कम मुझे क़त्ल ही न करो, बताओ तुम ने किस वजह से मेरा और मेरे अहलो अयाल का पानी बंद कर रखा है, क्या मेने तुम में से किसी का खून किया है या किसी की जागीर ज़ब्त की है जिस का बदला तुम मुझ से ले रहे हो तुम ने खुद मुझ को यहाँ बुलाया और अब ये अच्छी मेरी मेहमान नवाज़ी कर रहे हो, ज़रा सोचो के तुम क्या कर रहे हो, ऐ कूफ़ियों ! तुम्हे मेरा हसबो नस्ब मालूम है जिस का मिस्ल आज रूए ज़मीन पर नहीं है, फिर सोच लो के तुम ने खुद ही मुझे खुतूत लिख कर बुलाया है, फिर अब मेरे खून के प्यासे क्यों हो गए हो, देखो ये तुम्हारे खुतूत हैं, आप ने खुतूत दिखाए तो इन बेवफाओ ने इंकार कर दिया और कहा : ये हमारे खुतूत नहीं हैं, हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने उन के इस झूठे उज़्र से मुतहय्यर हो कर फ़रमाया,

“अल हम्दुलिल्लाह ! हुज्जत तमाम हुई मुझ पर कोई हुज्जत न रही” ।  (सच्ची हिकायत)

हज़रते इमाम ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु को नसीहत

मुहर्रम की दसवीं तारीख को मैदाने कर्बला में हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के जुमला अहबाब व आकारिब शहीद हो गए तो हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने खुद पोशाक बदली, कुबाए मिश्री पहनी, अमामए रसूल बांधा, और ज़ुल्फ़िकार हैदर कर्रार ले कर ज़ुल जिनाह पर सवार हो कर इरादा मैदान किया, इतने में आप के साहब ज़ादे, हज़रते इमाम ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु जो उस वक़्त बीमार थे और बिस्तर से न तवानी की वजह से उठ नहीं सकते थे बड़ी मुश्किल से असा थामे हुए कमज़ोरी की वजह से लड़ खड़ाते हुए हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के पास आ कर अर्ज़ करने लगे के अब्बा जान ! मेरे होते हुए आप क्यों तशरीफ़ ले जा रहे हैं, मुझे भी हुक्म दीजिए के में भी लड़कर शहादत का दर्जा हासिल करूँ और अपने भाइयों से जा मिलूं । 

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ये गुफ्तुगू सुन कर आब दीदा हो गए और इरशाद फ़रमाया ऐ राहते जाने हुसैन, तुम खेमा अहले बैत में जा कर बैठो और शहादत का क़स्द न कर, बेटा रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! की नस्ल तुम्हारे जीने से ही बाकी रहेगी और कयामत तक खत्म न होगी । हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु का ये इरशाद सुन कर हज़रते इमाम ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु खामोश हो गए फिर हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने उन को नसीहत व वसीयत कर के तमाम उलूमे ज़ाहिरी व बातिनी और इमामत से खबर दार फ़रमाया जो तरीका तअलीम सीना बा सीना रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! से चला आ रहा था सब इसी वक़्त इन पर मुन्कशिफ़ फरमा दिया और फिर आप खेमे के अंदर तशरीफ़ लाए और अहले बैत की तरफ मुखातिब हो कर अल वदाई कलाम फ़रमाया । 

शेर का हमला

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु मैदान में तशरीफ़ लाए और अहले बैते इज़ाम की अज़मत व बहादुरी और जुरअतो शुजाअत के वो जोहर दिखाए के मलाइका भी अश अश कर उठे, अल्लाह अल्लाह ये हमला क्या था जो आप के मुकाबले में आया बेशक क़ज़ा ने सीधा उस को जहन्नम में पंहुचा दिया, सैंकड़ों जफ़ा कारों से लड़े और सैंकड़ों को फिन्नार कर दिया जिस तरफ निगाह उठी सफ की सफ उल्ट दी । 

आखरी दीदार

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु मैदाने कर्बला से फिर खेमे में तशरीफ़ लाए और अहले बैत से फ़रमाया: चादरें ओढ़लो, जज़ा व फ़ज़ा न करो, मुसीबत पे कमर बस्ता रहो, मेरे यतीमो को आराम से रखना, फिर हज़रते इमाम ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु को सीने से लगा कर पेशानी चूमि और फ़रमाया बेटा ! जब मदीना पहुचों तो मेरे दोस्तों से मेरा सलाम कहना और मेरी तरफ से मेरा पैगाम देना के जब तुम में कोई रंजो बला में मुब्तला हो तो मेरी रंजो बला को याद करे और जब कोई पानी पीये तो मेरी प्यास याद करे, हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु अपना ये आखरी दीदार करा कर फिर मैदान में तशरीफ़ लाए । 

आप की शहादते उज़्मा

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु जब खेमे में अपना आखरी दीदार करा कर मैदान में फिर तशरीफ़ लाए तो यज़ीदियों ने यक बारगी आप पे हमला कर दिया, आप ने भी डट कर मुकाबला किया मगर ज़ालिमों ने इस क़द्र बराबर हमले किए की हज़रत का तने अनवर ज़ख्मो से चूर हो गया और आप के घोड़े में भी चलने की ताकत न रही, आप एक जगह खड़े थे के एक शख्स ज़ू अद नामी ने बढ़ कर आप को तलवार मारी आप ने उस का हाथ पकड़ कर ऐसा झटका दिया की उस का हाथ कंधे से जुदा हो गया, आखिर कार इन ज़ालिमों ने दूर ही से तीर मारने शुरू किए के एक ज़ालिम सनान शकी का तीर आप की नूरानी पेशानी पर आ कर लगा खून का फव्वारा जारी हो गया आप ने वो खून चुल्लो में ले कर मुँह पर मला और फ़रमाया कल कयामत के दिन इसी हईयत से अपने नाना जान के पास जाऊँगा और अपने मारने वालों की शिकायत करूंगा इस वक़्त हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के तने अनवर पर बहत्तर ज़ख्म नेज़े और तलवार के आ चुके थे और अपने रब की बारगाह में मुनाजात पढ़ रहे थे इतने में एक ज़ालिम का तीर आप के हलक में आ कर लगा और ज़रा इब्ने शरीक ने आप के दस्ते मुबारक पर और शिमर पलीद ने आप के सरे अनवर पर तलवार मारी और सनान इब्ने अनस ने पुश्त मुबारक पे नेज़ा मारा। 

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु बराबर हमलों से चक्रा कर घोड़े से गिरे उस वक़्त दोपहर ढल चुकी थी और नमाज़े ज़ोहर का वक़्त था, हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने उस वक़्त भी इस सूरत में नमाज़ अदा की के गिरते हुए मुँह क़िबला की तरफ कर लिया, घोड़े पे क़याम था और जब गश खा कर झुके तो रुकू और जब ज़मीन पे गिरे तो सर के बल वो सजदे का मक़ाम था । इतने में शिमर आया और आप के सीने मुबारक पे बैठ गया और इमाम ने आँखे खोल कर पूछा तू कौन है उस ने बताया के में शिमर हूँ आप ने फ़रमाया ज़रा सीना खोल कर दिखा उस ने सीना खोला तो सफ़ेद दाग नज़र आया आप ने फ़रमाया, नाना जान ने मुझ से रात को ख्वाब में बयान किया के तेरे क़ातिल का ये निशान है वही निशान तुझ में मौजूद है । 

उस के बाद शिमर मालून ने आप से फ़रमाया, ऐ शिमर तू जानता है आज कौन सा दिन है? कहा जुमा है फ़रमाया वक़्त कौन सा है जवाब दिया खुत्बा और नमाज़े जुमा पढ़ने का, फ़रमाया, इस वक़्त खतीब मिम्बरों पे खुत्बा पढ़ते होंगें, मेरे नाना जान की तारीफें करते होंगें उन पे दुरूदो सलाम पढ़ते होंगें और तू उन के नवासे के साथ ये सुलूक कर रहा है जहाँ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बोसा दिया करते थे वहां तू खंजर फेरना चाहता है, देख इस वक़्त में अपनी सीधी तरफ हज़रते ज़करिया अलैहिस्सलाम और बाएं तरफ हज़रते याह्या अलैहिस्सलाम मासूम को देख रहा हूँ ऐ शिमर ! ज़रा मेरे सीने से हट के नमाज़ का वक़्त है में क़िबला रुख हो कर नमाज़ पढूं तू नमाज़ पढ़ते में जो चाहे करना के नमाज़ में ज़ख़्मी होना मेरे बाप की मीरास है । 

इस के बाद शिमर आप के सीने से उतरा और हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु क़िबला रू हो कर नमाज़ में अल्लाह पाक से राज़ो नियाज़ में मशगूल हुए और शिमर ने हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु का सजदे की हालत ही में दस 10, मुहर्रमुल हराम इकसठ 61, हिजरी बरोज़ जुमा 54, साल  5, महीने की उम्र शरीफ में सर जिसम से जुदा कर दिया ।  “इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन”   

कर्बला के बाद के वाक़िआत

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के वाक़िआत शहादत से दुनिया में एक अज़ीम इन्किलाब नमूदार हुआ जिस के मुतअल्लिक़ बेशुमार वाक़िआत व शवाहिद उल्माए किराम ने नकल फरमाएं है जिन में से चंद ज़िक्र करते हैं । 

(1) हज़रते इब्ने अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा से मरवी है के आप फरमाते हैं के एक रोज़ मेरा नसीबा जागा और ख्वाब में ज़ियारत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुशर्रफ हुआ उस वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा के आप के गेसूए मुबारक बिखरे हुए और गर्द आलूद हैं दो पहर का वक़्त था, आप के दस्ते मुबारक में एक शीशी है और इस में खून भरा हुआ है में ने कहा या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये क्या चीज़ है तो आप ने इरशाद फ़रमाया, ये हुसैन और उन के साथियों के खून हैं और इस को में आज सुबह से उठा रहा हूँ हज़रते इब्ने अब्बास कहते हैं के में ने इस तारीख को याद रखा यहाँ तक के खबर पहुंची मुझ को की इमामे हुसैन, इसी दिन शहीद हुए,

(2) हज़रते उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं में ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की उस वक़्त आप की दाढ़ी और सर के बाल ख़ाक आलूद थे, में ने कहा या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये क्या हाल है? आप ने इरशाद फ़रमाया में अभी मक्तल हुसैन पर गया हुआ था, रिवायत किया इस को बहकी और अबू नुऐम ने । 

(3) बसरा ज़ाविया ने कहा: हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु जब शहीद हुए तो आसमान से खून बरसा और जब सुबह को बेदार हुए तो हम लोगों के तमाम मटके और घड़े बल्कि तमाम बर्तन खून से भरे हुए थे, रिवायत किया इस को बहकी और अबू नुऐम ने ।

(4) ज़ोहरी से रिवायत है की उन्हों ने कहा मुझ को खबर पहुंची है के जिस दिन हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु शहीद हुए उस दिन बैतुल मुकद्द्स से जो पथ्थर उठाया जाता उस के नीचे ताज़ा खून निकलता, रिवायत की बहकी ने । 

(5) इब्ने जौज़ी ने कहा है के आसमान की सुर्खी का भेद ये है के जब कोई ग़ज़बनाक होता है तो खून जोश में आता है और उस का चेहरा सुर्ख हो जाता है और अल्लाह पाक जिस्म और अवारिज़ जिस्मानी से मुनज़्ज़ह पाक है तो उस ने अपने गज़ब के इज़हार के वास्ते तमाम आसमान को सुर्ख कर दिया और ये भी रिवायतों में आया है के इमामे हुसैन के क़त्ल के दिन सूरज गिरहण इस तरह हुआ के दोपहर को तारे नज़र आने लगे और लोगों को गुमान हो गया के शायद कयामत आज ही कायम होगी । 

(6) जमील बिन मुर्राह से उन्हों ने कहा, यज़ीद के लश्कर वालों ने हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के लश्कर से किसी ऊँट को शहादत के दिन पकड़ कर ज़िबाह किया और उस का गोश्त पकाया तो इतना कड़वा हो गया जैसे इंदिराइन का फल और कोई भी लश्करी उस को न खा सका । 

एक राहिब का मुस्लमान होना

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के सर मुबारक को यज़ीदियों ने वहां से ले कर कूच किया और एक गिरजा घर के पास क़याम किया तो इस गिरजा घर के राहिब ने हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के सर मुबारक को रात भर के बदले मुबल्लिग दस हज़ार में खरीद लिया और उस को ग़ुस्ल दिया और अपने ज़ानों पे रख कर तमाम रात रोता रहा और अनवारे इलाही के तजल्लियात जो सर मुबारक पे नाज़िल होते थे उस को देखता रहा और फ़ौरन पुकार उठा ऐ इब्ने रसूल, आप मरे नहीं बल्कि ज़िंदा हैं और इस बात पे गवा रहना में पढता हूँ, कलमा शरीफ पढ़ कर मुस्लमान हो गया । 

रेफरेन्स हवाला

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) शजराए तय्यबा नुरुल अबसार,
(5) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(6)ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(7) आइनए क़यामत,
(8) सीरते इमामे हुसैन,
(9) हज़रते इमामे हुसैन के सो 100, किस्से,
(10) हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन के सो 100, वाक़िआत,
(11) शहादते हुसैन इमामे हुसैन, सिर्रुस शहादातैन,  

           

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