हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन नक्शबंदी कंदोज़ी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन नक्शबंदी कंदोज़ी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

विलादत शरीफ

हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश मुल्के अफगानिस्तान के शहर बदख्शां, के क़स्बा कन्दोज़, में 977/ हिजरी में हुई, आप के वालिद क़ाज़ी निज़ामुद्दीन कंदोज़ी थे, वो 981/ में हिंदुस्तान आ कर बादशाह अकबर के उमरा सरदारों में शामिल हुए,

हज़रातुल क़ुद्स में हज़रत अल्लामा बदरुद्दीन सरहिंदी रकम तराज़ हैं

हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! 977/ हिजरी में शहर बदख्शां के क़स्बा कन्दोज़, में पैदाइश हुई, आप का नसब शरीफ हज़रत ख्वाजा हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह! तक पहुँचता है, और दूसरी तरफ से हज़रत इमाम ज़ाहिद मुसन्निफ़ तफ़्सीर ज़ाहिदी से मिलता है, वालिद क़ाज़ी निज़ामुद्दीन बदख्शानि अकाबिर उल्माए किराम में से थे, वो हज़रत मौलाना सईद तुर्किस्तानी, और हज़रत मौलाना अहमद जुन्दी रहमतुल्लाह अलैह के खुलफाए उज़्ज़ाम में से थे, वो 981/ में हिंदुस्तान आ कर बादशाह अकबर के उमरा सरदारों में शामिल हुए।

कई फतूहात और मारकों में नुमाया कारकिर्दिगी के बाद अकबर ने गाज़ी खान के लक़ब से नवाज़ा, तालीम हासिल करने के बाद अबुल फ़ज़ल फ़ैज़ी की बहन से शादी हुई, गाज़ी खान अपने वक़्त का मारूफ आलिमे दीन और शैख़ हसन ख्वारज़मी का मुरीद था, अकबर ने गाज़ी खान की अहलियत देख कर उसे परवाना नवेस बनाया और गाज़ी खान का कलब दिया, बाद में बिहार की बगावत दबाने के लिए मान सिंग की फौज का कमांडर बनाया गया,
कई किताबों का मुसन्निफ़ और सजदा तअज़ीमी गाज़ी खान की तरग़ीब से ही जारी हुआ था, बाप की मौत के बाद हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! अकबर की फौज में एक हज़ारी मनसब पर फ़ाइज़ हुए, खनखनान के ज़ेरे कमांडर मुख्तलिफ मारकों में दाद शुजाअत दिए मगर अचानक तलाबे हक की आग उठी, फौज से अस्तीफा दे दिया, फकीरी लिबास ज़ेबेतन किया और दिल्ली में औलियाए किराम के मज़ार मुबारक पर घूमने लगे, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से बैअत होने आए, लेकिन पहली मर्तबा हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने माज़रत ज़ाहिर की और आप को वापस किया।

बैअतो खिलाफत

ज़ुब्दतुल मक़ामात में हज़रत ख्वाजा हाशिम कश्मी तहरीर करते हैं: बादशाह अकबर आप से बहुत ख़ुलूस व मुहब्बत करता था, बादशाह अबुल फ़ज़ल फ़ैज़ी और दीगर उमरा चाहते थे के आप फ़क्ऱो फाका की हालत छोड़ कर दरबारी उमूर की तरफ आजाएं, इस सिलसिले में आप को बहुत तकलीफें पहुंचाई गईं लेकिन आप राहे रास्त से नहीं हटे, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! जब मावरा उन्नहर! से दुबारा हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए तो आप इनकी खिदमत में हाज़िर हुए और खाजगाने सिलसिलए आलिया नक्शबंदिया में ज़िक्रो औराद व मुराकिबा की तालीम हासिल की और मुरीद बैअत हुए, अबुल फ़ज़ल ने बहुत तकलीफ पहुंचाई तो आप हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से इस परेशानी और मुश्किलात का इज़हार किया, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया के इत्मीनान रखो जल्द ही अबुल फ़ज़ल का काम दरम बरम होगा, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया वैसा ही हुआ,

अबुल फ़ज़ल उसी ज़माने में कतल हुआ, हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! ने हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत इंकिसारी और बहुत ख़ुलूस से की,
हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के नज़ा के वक़्त बड़े असहाब में से सिवाए आप के और कोई मौजूद ना था, उस वक़्त आप ने जाग जाग कर खूब तीमारदारी की और बहुत ज़ियादा फैज़ हासिल किया, तज्हीज़ो तकफीन की खिदमात भी आप ही ने अंजाम दीं, और आप के विसाल के बाद आप अपने पीर भाइयों और मुर्शीद ज़ादों की खिदमत में भी बहुत मसरूफ रहा करते थे, इक्तिसाबे फैज़ से आप के दरजात बुलंद होते गए, आप ने हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के साहबज़ादों की तालीम व तरबियत और निगेहदाश्त की ज़िम्मेदारी बाखूबी निभाई, आप की कोशिशों से दोनों मखदूम ज़ादे फ़ज़ीलत और सलाहियत के कमाल को पहुंचे,

इमामे रब्बानी मुजद्दिदे अल्फिसानी शैख़ अहमद सरहिंदी फारूकी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मुआरीफ़े आगाह हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! को अल्लाह पाक हम सब की तरफ जज़ाए खेर दे के इन्होने हम कासिरों की खिदमत अपने ज़िम्मे ले ली और खिदमते आलिया के लिए हर वक़्त कमरबस्ता रहे, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से हज़रत ख्वाजा हुसामुद्दीन! का इश्को मुहब्बत बहुत कुछ देखा गया,

आप के मामूलात

हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! का मामूल था के फ़िरोज़ाबाद दिल्ली गेट के नज़दीक किला फ़िरोज़शाह कोटला जहाँ हज़रत ख्वाजा का क़याम व खानकाह वाके था वहां की मस्जिद में फजर की नमाज़ अदा करते, कुछ देर मुराकिबा ज़िक्रो अज़कार करते और अशराक की नमाज़ पढ़कर अपने मुर्शिद के आस्ताने कुतब रोड की तरफ रवाना होते, दरगाह में दिन भर इबादतों रियाज़त और मुराकिबा करते और रोज़ाना पंदिरा पारे पढ़ते थे, असर की नमाज़ अदा कर के अपने अयाल व अत्फाल और दीगर ज़रूरियात के लिए शहर में अपने घर वापस होते, इनकी गोशा नाशिनी के बावजूद अगर आप के यहाँ कोई मेहमान आ जाता तो आप मामूलात कम कर के मेहमान की दिलजोई करते, मख़लूक़ुल्लाह पर आप की शफकत ऐसी थी के फुकरा की हाजत रवाई के लिए बादशाहों और उमराए वक़्त को सिफारिशः लिखते रहते,

कई साल आपने फैज़ पाया

ज़ुब्दतुल मक़ामात में हज़रत ख्वाजा हाशिम कश्मी तहरीर करते हैं:
के हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! ने बरसों हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खुलूसो मुहब्बत आजिज़ी के साथ रहे, और ख़ास तवज्जुह फैज़ पाया, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से तालीम भी हासिल की लेकिन तफ़रीदो आज़ादगी के ग़लबे की वजह से इस अम्र पर कायम ना रहे, तामील हुक्म के लिए एक शख्स को ज़रूर तालीम ज़िक्र करदी है और फिर हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से माज़रत भी कर्ली के इस मामले में मुझे माज़ूर समझें, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को इस माज़रत में सादिक जान कर आप का उज़्र कबूल फ़रमा लिया और ठंडी आह भर कर कहा तुमने अच्छा किया और खुद को खुलासी दे दी, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मर्ज़े मोत के वक़्त बड़े असहाब में से सिवाए आप के और कोई मौजूद ना था उस वक़्त आप ने जाग जाग कर खूब तीमारदारी की और इस तरह आप ने बहुत ज़ियादा फैज़ हासिल किया और तज्हीज़ो तकफीन भी आप ने अंजाम दीं, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह!

के विसाल के बाद आप अपने पीरज़ादों और पीर भाइयों की खिदमत में भी बहुत मसरूफ रहा करते थे, आप की बरकत से दोनों मखदूम ज़ादे फ़ज़ीलत व सलाहियत के कमाल को पहुंचे, हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! का इश्को मुहब्बत बहुत कुछ मुशाहिदे में आया है, उन्होंने फ़रमाया के: हमारे हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! वही हज़रत ख्वाजा उबैदुल्लाह अहरार नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! ही थे जो इन के लिबास में ज़ाहिर हुए,
हज़रत ख्वाजा हुस्सामुद्दीन नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह! उमरा रुऊसा से इख़्तिलाल पसंद नहीं करते थे लेकिन मुहताजों की हाजत रवाई में पेश पेश रहते और उमरा से इन की सिफारिश करते, आप ने पीरो मुर्शिद हज़रत ख़्वाजा बाक़ी बिल्लाह नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार मुबारक के गिर्द एक खुशनुमा बाग़ लगवाया था।

वफ़ात

आप की वफ़ात एक सफर 1043/ हिजरी यानी 7/ अगस्त 1633/ ईसवी को आगरा में हुई, आप का जस्दे खाकी को आगरा से दिल्ली शरीफ लाया गया और मुर्शिद के मज़ार शरीफ के नज़दीक दफ़न किया गया।

मज़ार मुकद्द्स

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
  • ज़ुुब्दतुल मक़ामात
  • सीरते ख्वाजा बाकी बिल्लाह

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