हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान सुब्हानी मियां कादरी बरकाती बरेलवी की ज़िन्दगी

हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान सुब्हानी मियां कादरी बरकाती बरेलवी की ज़िन्दगी

विलादत शरीफ

नबीरए आला हज़रत, हज़रत मौलाना अल हाज अश्शाह मुहम्मद सुब्हान रज़ा खान सुबहानी मियां साहब क़िबला! हज़रत अल्लामा रेहाने मिल्लत रहमतुल्लाह अलैह! के शहज़ादए अकबर यानि बड़े साहबज़ादे हैं, आप की विलादत बसआदत 2/ जून 1953/ ईसवी मुहल्लाह ख्वाजा क़ुतुब बरैली शरीफ यूपी में हुई।

तालीमों तरबियत

जब आप की उमर हद्दे बूलूग तक पहुंची, तो खानदानी रिवायत के मुताबिक़ रस्मे बिस्मिल्लाह ख्वानी अदा की गई, फिर आप बाक़ाईदा तालीम हासिल करने के लिए “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” में असातिज़ाए किराम की दरसगाहों में जाने लगे, अभी आप की तालीम मुकम्मल नहीं हुई थी के आप के वालिद माजिद हज़रत अल्लामा व मौलाना रेहान रज़ा खान रहमानी मियां रहमतुल्लाह अलैह! ने आबाओ अजदाद यानि हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम मुफ़्ती हामिद रज़ा रहमतुल्लाह अलैह! और हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! को वरासत में मिली जाएदाद की देख भाल के लिए करतोली! भेज दिया, काफी अरसा तक आप गाऊं में रहे, हज़रत अल्लामा व मौलाना रेहान रज़ा खान रहमानी मियां रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने विसाल से चंद साल पेश्तर आप को गाऊं से वापस बुला लिया, फिर आप की तालीम मुकम्मल करने के लिए बा हैसियत अतालीक (मुअल्लिम, उस्ताद) हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुनाज़िर हुसैन सम्भली उस्ताज़ “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” को मुन्तख़ब फ़रमाया, आप ने आला दरजात की किताबें सबकन सबकन पढ़ीं, और बाक़ायदा तालीम हासिल की, जब आप की तालीम मुकम्मल हो गई तो 1985/ ईसवी में आप ने “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” से सनादे फरागत हासिल की।

खानकाहे रज़विया के चौथे सज्जादा

जब 1985/ में हज़रत अल्लामा व मौलाना रेहान रज़ा खान रहमानी मियां रहमतुल्लाह अलैह! का विसाल हो गया, तो खानकाहे आलिया कादिरिया रज़विया दरगाहे आला हज़रत का सज्जादा नशीन, “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” का मोहतमिम! माह नामा आला हज़रत का मुदीरे आला! रज़ा मस्जिद! और दीगर औकाफ का मुतवल्ली हज़रत अल्लामा व मौलाना रेहान रज़ा खान रहमानी मियां रहमतुल्लाह अलैह! के शहज़ादए अकबर हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान सुब्हानी मियां कादरी मद्दा ज़िल्लू हुल आली को मुन्तख़ब फ़रमाया गया, खानकाहे रज़विया और दीगर खानकाहों के दस्तूर के मुताबिक चूंके आप सरकार रेहाने मिल्लत के बड़े शहज़ादे थे, इस वजह से आप को ये तमाम मनसब तफ़वीज़ किए गए, मगर इस दस्तूर के अलावा हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान सुब्हानी मियां कादरी मद्दा ज़िल्लू हुल आली की एक रजिस्टर्ड वसीयत भी थी, जिस की रू से आप ही को सज्जादा नशीन और तमाम औकाफ का मत्त्वली बनना था, यही वजह है के उस वक़्त के तमाम उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम, खानकाही सज्जादगान खुलफाए सिलसिलाये कादिरिया रज़विया और दीगर अवामो खवास जो हज़रत अल्लामा व मौलाना रेहान रज़ा खान रहमानी मियां रहमतुल्लाह अलैह! के उर्से चेहल्लम 17/ जुलाई 1985/ ईसवी को तशरीफ़ लाए थे, उनकी मौजूदगी में सरकार आला हज़रत के पीर खाने खानकाहे आलिया कादिरिया बरकातिया मारहरा मुक़द्दसा के सज्जादा नशीन हुज़ूर अहसनुल उलमा सय्यद मुस्तफा हैदर हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह! की तरफ से भेजी हुई दस्तार मुबारक जानशीने मुफ्तिए आज़म हुज़ूर ताजुश्शरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान कादरी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने दस्ते मुबारक से शहज़ादए रेहाने मिल्लत नबीरए आला हज़रत हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान सुब्हानी मियां कादरी मद्दा ज़िल्लू हुल आली के सर मुबारक पर सजाई, जिस की ताईदो तस्दीक नारों की गूँज में तमाम हाज़रीन ने निहायत ही जोशोखरोश के साथ फ़रमाई।

औलादे अमजाद

अल्लाह पाक ने आप को एक साहबज़ादी और दो साहबज़ादों से नवाज़ा है, जिन के नाम ये हैं:

  1. हज़रत अल्लामा अहसन मियां
  2. हज़रत मुस्तहसन रज़ा

दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” का एहतिमाम

हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान सुब्हानी मियां कादरी मद्दा ज़िल्लू हुल आली “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” की तरक्की और तलबा का तालीमी मेआर बुलंद से बुलंद तर करने के लिए हमेशा कोशां रहते हैं, इस का वाज़ेह सुबूत मौजूदा निज़ामे तालीम और तलबा की कसरत से मिलता है, 2004/ ईसवी में आप ने “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” का जश्ने सद साला बड़े तुज़को एहतिशाम के साथ मनाया, जिस में ईसवी और हिजरी सन के फर्क का लिहाज़ करते हुए मुसलसल चार साल तक माह नामा आला हज़रत का सद साला मन्ज़रे इस्लाम नंबर भी आप ने निकाला और हर साल जामिया के कदीम मश्हूरो मारूफ फारगीन को ऐवार्ड से भी नवाज़ा।

तामीरी खिदमात

हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान सुब्हानी मियां कादरी मद्दा ज़िल्लू हुल आली के दौरे सज्जादगी और एहतिमाम में खानकाह और मदरसा का तामीरी काम बहुत हुआ है, जो इस वक़्त सब की नज़रों के सामने है, लोगों को याद होगा के पहले खानकाह शरीफ की छत बहुत नीची थी, उर्स के अय्याम में बहुत घुटन महसूस हो रही थी, हुज़ूर साहिबे सज्जादा ने खानकाह की जदीद तामीर कर के इस कमी को दूर किया, और खानकाह की खूबसूरती में इज़ाफ़ा किया, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इनका ज़िल्ले आतिफ़ात वबस्तिगाने बरैली पर तादेर सलामत रखे अमीन ।

रेफरेन्स हवाला

  • (1) तज़किराए खानदाने आला हज़रत

Share this post