हज़रत शुजाअत जंग मुहम्मद सईदुल्लाह खान कंधारी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रत शुजाअत जंग मुहम्मद सईदुल्लाह खान कंधारी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

मूरिसे आनाम व नसब

आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “सईदुल्लाह खान” लक़ब “शुजाअत जंग” सिलसिलए नसब जनाब मुहम्मद सईदुल्लाह खान बिन, अब्दुर रहमान बिन, युसूफ खान कंधारी बिन, दौलत खान बिन, दाऊद खान।

आदातो अख़लाक़

मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के अजदाद में हज़रत शुजाअत जंग मुहम्मद सईदुल्लाह खान रहमतुल्लाह अलैह! आप कबीला “बढ़हेच” के मुअज़्ज़ सरदार व पेशवा थे, आप सुलतान मुहम्मद नादिर शाह! के हमराह दिल्ली आए और “मंसबे शश हज़ारी” पर फ़ाइज़ हुए, नादिर शाह तो वापस चला गया, लेकिन हज़रत शुजाअत जंग मुहम्मद सईदुल्लाह खान रहमतुल्लाह अलैह! ने हिंदुस्तान में ही सुकूनत इख़्तियार करली, बादशाह ने आप को लाहौर का “शीश महल” बतौरे जागीर अता किया था, इस के अलावा आप को सुल्ताने वाला शान की तरफ से बहुत से मवाज़ीआत (गाऊं, दिहात) जागीर के तौर पर दिए रोहल खंड में एक बड़ी मुहिम सरकरने के बदले आप को बरैली का सूबेदार बनाए जाने के लिए शाही फरमान जारी हुआ मगर बिस्तर अलालत पर होने की वजह से इस फरमान पर अमल ना हो सका।

आपके अजदाद

अपने आबाओ अजदाद के हालात का ज़िक्र करते हुए खानंदाने आला हज़रत के एक मारूफ आलिमे दीन हज़रत अल्लामा हसनैन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! (मुतावफ़्फ़ा 1401/ हिजरी मुताबिक 1981/ ईसवी) बिन उस्ताज़े ज़मन हज़रत अल्लामा हसन रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह! (मुतावफ़्फ़ा 1326/ हिजरी मुताबिक़ 1908/ ईसवी) बिन हज़रत अल्लामा मुफ़्ती नकी अली खान रहमतुल्लाह अलैह! (मुतावफ़्फ़ा 1297/ हिजरी मुताबिक 1880/ ईसवी) बिन हज़रत अल्लामा रज़ा अली खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह! (मुतावफ़्फ़ा 1286/ हिजरी मुताबिक 1869/ ईसवी) तहरीर फरमाते हैं:
इस ज़िले में हज़रत शुजाअत जंग मुहम्मद सईदुल्लाह खान कंधारी रहमतुल्लाह अलैह! को एक जागीर अता हुई जो 1857/ ईसवी में ज़ब्त हो कर तहसील मिलक ज़िला रामपुर में शामिल कर दी गई, इस जागीर का मशहूर और बड़ा गाऊं धनीली! था जो अब भी मौजूद है, बरैली की सुकूनत इस लिए मुस्तकिल हो गई के उसी दौर में कोहिस्तान के कुछ पठान यहाँ आ कर आबाद हो गए थे, उन के लिए उनका जवार बड़ा खुशगवार था इस वास्ते के उन से बूए वतन आती थी।

विसाल

हज़रत शुजाअत जंग मुहम्मद सईदुल्लाह खान कंधारी रहमतुल्लाह अलैह! पिराना साली यानि जब आप उमर दराज़ हो गए तो अपनी आखरी उमर यादे इलाही में मुता वक्किलाना गुज़ारी, और जिस मैदान में इनका क़याम था वहीँ आप दफन हुए, मुसलमानो ने उसी मैदान को कब्रिस्तान में मुन्तक़िल कर दिया, ये मैदान अब मोहल्ला मेमाराने बरैली के मुत्तसिल मौजूद है, और इस मुनासिबत से अब तक शहज़ादे का तकिया कहलाता है, अफ़सोस के आप की तारीखे वफ़ात ना मिल सकी।

शहज़ादा सआदत यार खान की बरैली में रिहाइश

इलाका कठेर! जो बाद को रोहेलखण्ड! के नाम से मशहूर हुआ, जब सल्तनत दिल्ली की गिरफ्त इस पर ढीली पड़ गई, और बागियों ने सर उभारना शुरू कर दिया तो सल्तनत दिल्ली ने रोहेलखण्ड के बागियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए फौज कशी करने का इरादा किया, इस मुहिम को सर करने के लिए सआदत यार खां को तय्यार किया गया, इस मुहिम को सर करने के लिए सआदत यार खां ने अपनी फ़ितरी शुजाअत और जंगी महारत के खूब खूब जोहर दिखाए, अंजाम कार 2, जून 1745/ ईसवी में रोहिलों ने हथियार डाल दिए, और नवाब मुहम्मद अली खां बादशाह के रूबरू हाथ बांध कर हाज़िर हुए, इस तरह बरैली की फ़तेह का सेहरा इन्हीं के सर रहा, शाह ने मसरूर हो कर बरैली का सूबेदार (गवर्नर) बनाने के लिए आप के नाम फरमान जारी किया, लेकिन फरमाने शाही ऐसे वक़्त में जारी हुआ, जब आप साहिबे फराश हो कर बिस्तरे मर्ग पर थे, उस वक़्त मोत ने मुहलत ना दी ना बरैली! सूबा बन पाया और ना आप बरैली के सूबेदार हुए,

आप की औलादे अमजाद

आप ने कयामे दिल्ली के दौरान अपनी वज़ारत की दो निशानियां छोड़ीं,(1) बाज़ार सआदत गंज (2) सादात खां की नहर लेकिन हदिसात रोज़गार के दस्ते सितम से उन में से कोई ना बच सकी, आप के तीन साहबज़ादे थे: (1) मुहम्मद आज़म खां! (2) मुहम्मद मुअज़्ज़म खां! (3) मुहम्मद मुकर्रम खां! और तीनो शाही दरबार में बड़े बड़े मनसब पर फ़ाइज़ थे, जिन की तन्खवाएं उस वक़्त एक हज़ार माहवार से कम ना थी।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुकद्द्स मुहल्लाह शहज़ादे का तकिया बरैली शरीफ यूपी इंडिया में ज़ियारत गाहे ख़ल्क़ है, ।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला
  • तजल्लियाते ताजुश्शरिया
  • (फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • सीरते आला हज़रत
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत

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