हज़रत क़ाज़ी सआदुद्दीन उस्मानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत क़ाज़ी सआदुद्दीन उस्मानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

सदा बेगवाह का मतलब

सदा बेगवाह हज़रत क़ाज़ी सआदुद्दीन उस्मानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! आप के जद्दे अमजद हज़रत शैख़ मौलाना क़ाज़ी दानियाल शहर क़तर से तशरीफ़ लाए थे, आप का नामे नामी इस्मे गिरामी “सआदुद्दीन” था, आप बहुत बड़े बुज़रुग और साहिबे बातिन औलियाए किराम में शुमार होते हैं, आप बगैर गवाहों के मुकदमो (लड़ाई झगड़ों) के फैसले कर दिया करते थे, और आप के सामने जब मुताखामिसीन (झगड़ा करने वाले) आते तो सच सच तमाम हालात बयान करते थे और आप को कश्फे बातनी से भी मालूम हो जाता के मुद्दई और मुद्दा अलैह दोनों में कौन सच्चा है,
हज़रत क़ाज़ी सआदुद्दीन उस्मानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह!
हज़रत क़ाज़ीउल कुज़्ज़ात मौलाना शमशुल हक शमशुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह! के खलीफा और तिलमीज़े रशीद शागिर्द थे, आप सुल्तान गियासुद्दीन बलबन के अहदे हुकूमत में साहिबे ज़ुहदो तक्वा और मुहरों फतवा के काम में मशहूर थे, आप का ज़मीर रोशन और बातिन आईनादार साफ़ था, मुकद्दिमात फैसलों का तसफ़िया समझौता हमेशा बिला गवाह के फरमाते थे, फ़रीक़ैन जिस वक़्त आप की अदालत में हाज़िर होते आप इल्मे कश्फ़ से असल मुआमलात की तह तक पहुंच जाते, गवाहों की ज़रूरत नहीं पढ़ती थी, आप की रोशन ज़मीरी मखलूक में मशहूर हो गई, और इसी वजह से आप “क़ाज़ी सदा बे गवाह” के नाम से मशहूर थे, आप के दरबारे क़ज़ा का रोअब व जलाल ये था के अहले मुआमला को दरोग झूट बयानी की ज़रा भी जुरअत ना हो सकती थी, मुजरिम खुद बखुद हक का इकरार कर देते, मुक़दमे का तसफ़िया हो जाता, आप के ज़माने में कई इन्किलाब हुए।

मलिक ताजुद्दीन तुर्क

मलिक ताजुद्दीन तुर्क! मुतवफ़्फ़ा 1242/ ईसवी में सुल्तान अलाउद्दीन मसऊद की जानिब से आमिल इलाका बदायूं मुकर्रर हो कर आया और अरसे तक हाकिम रहा, 1253/ हिजरी में मलिक आज़ुद्दीन बलबन बदायूं का हाकिम मुकर्रर हुआ, हुकूमत की जानिब से “रज़ियुल मलिक” का खिताब पाया, थोड़े ही अरसे के बाद ज़मीन्दाराने कैथल और कठेर! के हाथ से हालते मस्ती में क़त्ल कर दिया गया, सुल्तान नासिरुद्दीन बा गरज़े इंतिकाम अशरार को सज़ा देता हुआ और हुदूद पर इंतिज़ाम करता हुआ दिल्ली से बदायूं आया, मुशीराने दौलत और अराकीने हुकूमत से क़ाज़ी साहब के कमालात सुन कर आप की अज़मत अपने दिल में ले गया।

अख़लाक़ो आदात

हज़रत क़ाज़ी सआदुद्दीन उस्मानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! जहाँ हिल्मो हया और जूदो सखा, की ज़िंदा तस्वीर थे, आप की मेहमान नवाज़ी भी ला जवाब थी, ख़ुसूसन तलबा के आराम व आसाइश का हर वक़्त ख़याल दामन ग़ीर था, आप का दीवान खाना अदालत जामा मस्जिद शम्शी के पीछे था, जहाँ दरबारे क़ज़ा के अलावा सिलसिलए दरसो तदरीस भी जारी रहता था, जब आप की उमर आखरी हुई, तो आप ने अपने साहबज़ादे को बुला कर नसीहत की के बेटा में हमेशा मुकदमो का फैसला हुक्मे इलाही से हकीकत के मुताबिक फैसला किया करता था, अगर तुम में इतना माद्दा हो तो उहदाए क़ज़ा को कबूल करना वरना याद रखो के अल्लाह पाक की बारगाह में हुक़ूक़ुल इबाद की गिफरत होगी, बुज़रुग वालिद यानि हज़रत क़ाज़ी सआदुद्दीन उस्मानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! की इस वसीयत को सआदत मंद बेटे ने बागोर सुना और इस उहदे से दस्त कश रहने का दिल में अहिद कर लिया।

अक़्द मस्नून

आप के एक साहबज़ादे पहली बीवी से पैदा हुए, थे, और एक साहबज़ादी दूसरी अहलिया मुहतरमा से पैदा हुईं, इन सहबज़ादी का निकाह क़ाज़ी सदरुद्दीन सिद्दीकी साहब! गिन्नौरी सब्ज़वारी के साथ हुआ था, आप इल्मे दीन हासिल करने के लिए महिज़ अपने वतन असली से चल कर बदायूं शरीफ आए थे, ताके क़ाज़ी साहब के हल्काए दर्स में दाखिल हों, मगर आप के पहुंचते ही क़ाज़ी साहब का इन्तिकाल हो गया, बदायूं के तमाम सिद्दीकी इन काज़ी सदरुद्दीन साहब की औलाद से हैं ।

वफ़ात

सदा बे गवाह हज़रत क़ाज़ी सआदुद्दीन उस्मानी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! का इन्तिकाल 677/ हिजरी मुताबिक 1278/ ईसवी को हुआ।

मज़ार मुक़द्दस

आप का मज़ार शरीफ मस्जिद गिला चीन मोहल्ला मौलवी टोला! ज़िला बदायूं शरीफ में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन
(3) अकमतुल तारीख

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