हज़रत सय्यद शाह याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत सय्यद शाह याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह

विलादत बसआदत

आप की पैदाइश 10/ रबिउस सानी 1344/ हिजरी मुताबिक 7/ नवम्बर 1925/ ईसवी को ईसवी को मारहरा मुक़द्दसा ज़िला एटा में हुई।

वालिद माजिद

आप के वालिद माजिद का नाम मुबारक “हज़रत सय्यद शाह मसऊद हसन रहमतुल्लाह अलैह! है, और हज़रत “सय्यद शाह औलादे रसूल के परपोते हैं।

नाम व लक़ब

आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “सय्यद शाह याहया हसन मियां कादरी रहमतुल्लाह अलैह है, और लक़ब “वारिसे पंजतन” है।

तालीमों तरबियत

हज़रत सय्यद याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह ने इब्तिदाई शुरू की तालीम अपने खानदाने बरकत के बुज़ुर्गों से हासिल की, और खास तौर से ताजुल उलमा हज़रत सय्यद शाह औलादे रसूल मुहम्मद मियां रहमतुल्लाह अलैह से हासिल की फिर आला तालीम के लिए आप अली गढ़ मुस्लिम यूनि वर्सिटी तशरीफ़ ले गए और वहां से एम, ऐ, की डिग्री हासिल की, एक ज़माने तक वो मारहरा शरीफ में रहे और अपने चचा जान हज़रत सय्यद शाह औलादे नबी छम्मा मियां रहमतुल्लाह अलैह के साथ उर्से नूरी की ज़िम्मेदारियाँ निभाते रहे।

हुज़ूर फरीके मिल्लत को जानशीन बनाया

हज़रत सय्यद याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह एक अरसे तक गोशा नशीन रहे फिर सन 1987/ ईसवी में अपने चचा जान के विसाल के बाद मारहरा शरीफ अपने घर वापस लोट कर सज्जादा नाशिनी के मनसब पर फ़ाइज़ हुए, और उर्से नूरी को बाक़ाइदा उसी शानो शौकत से शुरू फ़रमाया, मारहरा शरीफ तशरीफ़ ला कर एक दिन हज़रत सय्यद याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह ने हुज़ूर अहसनुल उलमा मुस्तफा हैदर हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह से अर्ज़ किया के मुझे अपना छोटा बेटा नजीब हैदर! दे दो, हज़रत ने फ़रमाया: चरों बेटे आप के हैं अगर नजीब मियां को ले जाना चाहते हैं तो ले जाइए, विसाल से कुछ साल पहले हज़रत सय्यद याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह ने रफ़ीके मिल्लत हज़रत नजीब हैदर नूरी! को अपना वारिस व जानशीन मुकर्रर कर के इन की सज्जादा नाशिनी का ऐलान फ़रमाया: वली अहदी की दस्तार बाँधी, खिरका पोषी के दिन अपने हमराह दरगाहे मुअल्ला गद्दी के जुलूस में रफ़ीके मिल्लत को ले कर गए।

सीरतो ख़ासाइल

हज़रत सय्यद याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह बड़े अकल मंद और सखावत के पैकर थे, गुफ्तुगू के फन में माहिर जिस महफ़िल में मौजूद हुए बस वो वही नज़र आते थे, आला दर्जे की खातिर दारी करने, वाले, छोटा हो या बड़ा सब के साथ एक सा सुलूक, आप का दस्तरख्वान आप के दिल की तरह बड़ा था, एक मर्तबा अली गढ़ मुस्लिम यूनि वर्सिटी में एक जल्से! में तशरीफ़ लाए और बड़ी ही मालूमाती और शानदार तकरीर फ़रमाई,, कोमी, सियासी, समाजी, मुआमलात में भी आप गहरी निगाह रखते थे, वर्ल्ड इस्लामिक मिशन के चेयरमैन रहते हुए मिल्लते इस्लामिया के लिए अपनी कीमती और मुख्लिस खिदमात अंजाम दीं, बाबरी मस्जिद के मुआमले पर खुद पेश कदमी करते हुए वहां का डोरा किया और हुकूमत को बहुत बे बाकी से अपनी राय के बारे में बताया के बाबरी मस्जिद इस वक़्त महफूज़ नहीं है जिससे मिल्लते इस्लामिया को राहत व हौसला मिला और अपनी रूहानी क़ियादत पर भरोसा भी हुआ, हज़रत सय्यद याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह खानकाहे बरकातिया की तमाम रिवायतों के अमीन और बुज़ुर्गों के वाक़िआत के हाफ़िज़ थे, फकीराना मिजाज़ की वजह से अवाम में आप की मकबूलियत का आलम ही निराला था जिस का अंदाज़ा इन के जनाज़े के मजमे को देख कर हुआ,
हज़रत सय्यद याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह खूबसूरत, हसीन, पुरनूर, चेहरे के मालिक थे,

जब आप इमामा शरीफ बाँध कर निकलते थे तो बुज़ुर्गों की यादगार लगते थे,
तमाम बीमारी और कमज़ोरी के बाद भी दुनिया भर के तब्लीगी दौरे फरमाते, अपने मुरीदों और चाहने वालों की हर ख़ुशी और गम में शरीक होते, सज्जादा नशीनी के बाद अरब, अमरीका, और यूरप के दौरे भी किए और खानकाहे बरकातिया के पैगाम को आम किया, बहुत कम ग़िज़ा खाते लेकिन महमानो के सामने खड़े हो कर खूब तरह तरह के खाने खिलाते थे, अगर आधी रात को भी मेहमान आ गया तो खादिमो को हिदायत होती के खाना पहले दो, आप के दोस्त हबीब अनवर ज़ुबैरी साहब से दिली लगाओ था और हबीब अनवर ज़ुबैरी साहब भी वारिसे पंजतन हज़रत सय्यद याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह की मुहब्बत में हर साल इंग्लैंड से मारहरा तशरीफ़ लाते और इन्ही के पास ठरते।

आप के खुलफाए किराम

(1) हज़रत शरफ़े मिल्लत सय्यद मुहम्मद अशरफ कादरी
(2) रफ़ीके मिल्लत हज़रत नजीब हैदर
(3) हज़रत मौलाना सय्यद अब्दुर रब
(4) जनाब ख्वाजा एहतिशामुद्दीन कादरी
(5) हज़रत मौलाना उसैदुल हक बदायूनी
(6) हज़रत डॉक्टर सय्यद शाहिद अली नोशाही साहब।

वफ़ात

हज़रत सय्यद याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह का विसाल 18/ शाबानुल मुअज़्ज़म 1433/ हिजरी मुताबिक 21/ जुलाई 2012/ ईसवी जुमेरात के दिन दिल्ली में इलाज के दौरान हुआ, जनाज़ा मारहरा शरीफ लाया गया, एक बड़े मजमे ने हज़रत अमीने मिल्लत की इक़्तिदा में नमाज़े जनाज़ा अदा की और फिर दरगाहे बरकातिया में हज़रत छम्मा मियां के रोज़े में को सुपुर्द किया गया, आप की ख्वाइश थी के आप का जनाज़ा सब से पहले आप के चारों भतीजे उठाएं लिहाज़ा हज़रत अमीने मिल्लत, शरफ़े मिल्लत, रफ़ीके मिल्लत, और अफ़ज़ल मियां, इन को अपने काँधे पर घर से खानकाह शरीफ तक लाए फिर मजमे के हवाले किया,
हज़रत सय्यद याहया हसन मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह के चेहल्लम के दिन उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम की मौजूदगी में रफ़ीके मिल्लत हज़रत नजीब हैदर! को इन की जगह मसनदे सज्जादगी पर रौनक अफ़रोज़ किया गया, अब इस मसनदे नूरी पर
रफ़ीके मिल्लत हज़रत नजीब हैदर सरकार नूर के फैज़ान को आम कर रहे हैं।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुकद्द्स मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी हिन्द में ज़ियारत गाहे खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

Share Zaroor Karen Jazakallah

रेफरेन्स हवाला

(1) बरकाती कोइज़
(2) तारीखे खानदाने बरकात
(3) तज़किरा मशाइखे मारहरा

Share this post