बहरे शिब्ली शेरे हक़ दुनिया के कुत्तों से बचा
एक का रख अब्दे वाहिद बे रिया के वास्ते
विलादत बा सआदत
आप की पैदाइश मुबारक 22, रजाबुल मुरज्जब 342, हिजरी मुताबिक 2, दिसंबर 953, ईसवी को बरोज़ जुमा को “मुल्के यमन” में हुई अस्र के वक़्त ।
इस्म शरीफ व कुन्नियत
आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “अब्दुल वाहिद तमीमी” और कुन्नियत “अबुल फ़ज़्ल” है ।
वालिद माजिद
आप बेटे हैं हज़रत शैख़ “अब्दुल अज़ीज़ तमीमी” बिन हारिस बिन “असद” रदियल्लाहु अन्हु के ।
आप को “तमीमी” क्यों कहा जाता है?
आप को “तमीमी” कहने की वजह ये है के मुल्के अरब में बनी तमीम एक कबीला है और आप इसी कबीले से तअल्लुक़ रखते हैं इसी सबब से आप को तमीमी कहा जाता है ।
आप के शैख़े तरीकत मुर्शिदे करीम
आप के शैख़े तरीकत मुर्शिदे करीम हज़रत शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु हैं, जिन की फैजाने सुहबत में आप ने राहे सुलूक की मंज़िलें तैय फ़रमाई, और आप को खिलाफत से सरफ़राज़ फ़रमाया, और “कलाईदुल जवाहिर व फत्हुल मुबीन वगैरा” किताबों में यही है के आप ने हज़रत शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु से खिरकाए “खिलाफत” ज़ेबे तन फ़रमाया,
मगर एक कौल ये है के आप ने “बैअतो खिलाफत” अपने वालिद माजिद से ही हासिल फ़रमाई, चुनांचे हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ़्फ़ा 1176,हिरजी) फरमाते हैं के “हज़रते अबुल फ़ज़्ल अब्दुल वाहिद तमीमी रदियल्लाहु अन्हु” ने खिरकाए खिलाफत पहना अपने वालिद मुहतरम से हज़रत शैख़ अब्दुल अज़ीज़ बिन हरिस तमीमी रहमतुल्लाह अलैह से उन्हों ने खिरका पहना हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु से और यही तरतीब अक्सर शजरों में है आलिया क़दीरिया में पाई जाती है,
के आप मुरीद व खलीफा अपने वालिद मुहतरम के थे और वफ़ात के बाद अपने वालिद मुहतरम के हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु की तरफ (जो आप के वालिद मुहतरम के शैख़े तरीकत थे) रुजू फ़रमाया और इन की मसनदे खिलाफत पर रौनक बख्शी और आप के वालिद मुहतरम का विसाल 332, हिजरी में अपने शैख़े तरीकत की हयात ही में हो गया था ।
आप के फ़ज़ाइल
ख़ादिमें शरीअत, सालिके तरीकत, वाक़िफ़े हकीकत, इमामे अहले सुन्नत, “हज़रते शैख़ अबुल फ़ज़्ल अब्दुल वाहिद तमीमी रदियल्लाहु अन्हु” आप “सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़विया के तेहरवें 13, इमाम व शैख़े तरीकत हैं” आप अपने ज़माने के मुमताज़ तिरीन मशाइख़ीन सूफ़ियाए किराम में से थे, आप को बैअतो खिलाफत हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु से हासिल थी और आप के वालिद माजिद हज़रत शैख़ अब्दुल अज़ीज़ रदियल्लाहु अन्हु को भी इन्ही से हासिल है, और आप के मुर्शिदे तरीकत आकाए नेमत हज़रत अबुल कासिम नसीर आबादी रदियल्लाहु अन्हु को भी बैअत तरीकत हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु से ही हासिल थी, आप आईम्माए अरबा (इमामे आज़म अबू हनीफा, इमामे शाफ़ई, इमामे मालिक, इमाम अहमद बिन हंबल को आईम्माए अरबा कहा जाता है) में से हज़रते सय्यदना इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के मुकल्लिद हनफ़ीयुल मज़हब थे, आप से बेशुमार ख़लकत ने राहे हिदायत पाई हैरमैन शरीफ़ैन के कई दौरे किए और बिलादे अरबो अजम की अक्सर सियाहत फ़रमाई ।
आदात व सिफ़ात
आप के आदत व सिफ़ात हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु के आदत व सिफ़ात के मुताबिक थे, इबादत व रियाज़त व ज़ुहदो तक्वा व तहारत में यगाना रोज़गार थे, शरीअते मुतह्हरा की खूब तब्लीग फ़रमाई और सुन्नते नबवी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिफाज़त हर आन हर लम्हा फरमाते थे ।
नव्वे 90, साल तक रुश्दो हिदायत फरमाते रहे
आप अपने मुर्शिदे कामिल व पीरे तरीकत के विसाल के बाद तकरीबन नव्वे 90, साल तक मसनदे रुश्दो हिदायत पर फ़ाइज़ रहे और इस दरमियान में अपने पीरे तरीकत के सिलसिले को काफी फरोग बख्शा और खल्के कसीर को हिदायत ज़ाहिरी वा बातनी से मुरस्सा (नगीने लगा हुआ, सजा हुआ) फरमा कर इल्मे इलाही का मुस्तहिक़ बनाया और मुजाहिदीने इस्लाम की एक अज़ीम फौज तय्यार की और उन को रुश्दो हिदायत का मुबल्लिग व मुहाफ़िज़ बनाया, आप ने शरीअत व तरीकत की तरवीज में नुमाया किरदा पेश किया ।
तारीखे विसाल और आप का उर्स
आप का विसाल 26, जमादिउल आखिर बरोज़ जुमा 425, हिजरी, मुताबिक 16, मई 1034, ईसवी में हुआ, उस वक़्त अल काइम बी अमरिल्लाह खलीफा अब्बासी का दौरे खिलाफत था, और आप का उर्स 26, जमादिउल आखिर को मनाया जाता है ।
मज़ार शरीफ
आप का मज़ार शरीफ मुल्के ईराक की राजधानी बग़दाद शरीफ में हज़रत इमाम अहमद बिन हंबल रदियल्लाहु अन्हु के मकबराह शरीफ में है,
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,