हज़रते शैख़ इब्राहीम अबुल हसन अली हाशमी हक्कारी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते शैख़ इब्राहीम अबुल हसन अली हाशमी हक्कारी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

बुल फराह का सदक़ा कर गम को फराह दे हुस्नो सअद
बुल हसन और बू सईदे सअद ज़ा के वास्ते

विलादत बा सआदत

आप की पैदाइश मुबारक 409, हिजरी मुताबिक 1017, ईस्वी में बा मकाम “हक्कार” नाम के गाऊं में हुई जो मूसल के करीब है, इसी गाऊं में हुई, उस वक़्त बग़दाद शरीफ में अब्बासी खानदान का पच्चीसवेँ खलीफा क़ादिर बिल्लाह की खिलाफत थी जो 380, हिजरी से 422, हिजरी तक जलवागर रहे, और ये खलीफा बड़े आबिदो ज़ाहिद और फकीह भी थे, साहिबे तसानीफ़, भी थे फ़ज़ाइले सहाबा व हज़रते शैख़ इब्राहीम अबुल हसन अली हाशमी हक्कारी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 1)

विलादत बा सआदत

आप की पैदाइश मुबारक 409, हिजरी मुताबिक 1017, ईस्वी में बा मकाम “हक्कार” नाम के गाऊं में हुई जो मूसल के करीब है, इसी गाऊं में हुई, उस वक़्त बग़दाद शरीफ में अब्बासी खानदान का पच्चीसवेँ खलीफा क़ादिर बिल्लाह की खिलाफत थी जो 380, हिजरी से 422, हिजरी तक जलवागर रहे, और ये खलीफा बड़े आबिदो ज़ाहिद और फकीह भी थे, साहिबे तसानीफ़, भी थे फ़ज़ाइले सहाबा व तकफ़ीर मुआतज़ला में आप की किताब मौजूद है । (वाफियासुल आलाम कलमी, अज़ शाह खुबुल्लाह इलाह आबादी रहीमहुल्लाह)

इस्म शरीफ “नाम”

आप के इसमें मुबारक के बारे में इख्तिलाफ है जो अस्मा “नाम” सामने आते हैं वो ये हैं: मुहम्मद बिन महमूद, अली बिन महमूद, अली बिन युसूफ, अली बिन अहमद, जैसा के गुलाम दस्तगीर साहब क़िबला अपनी किताब “ज़िक्रे हसन” में लिखते हैं: हमारी खानदानी क़ुतुब में मुन्दरिज (लिखा हुआ दर्ज किया हुआ) है हो सकता है आप का नाम “इब्राहीम” हो लक़ब या कुन्नियत हो “अबुल हसन” और बाप का नाम अली, हो मगर चूंकि इस बात पर सब का इत्तिफाक है के आप का नाम “अली इब्ने मुहम्मद” है ।

लक़ब व कुन्नियत

आप का लक़ब “शैखुल इस्लाम” और कुन्नियत “अबुल हसन” है ।

आप का नसब नामा

आप का सिलसिलए नसब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चाचा ज़ाद भाई और रज़ाई भाई हज़रते ज़ैद मुलकक्ब बिहि अबू सुफियान से मिलता है, “तज़किराए हमीदिया, तज़किराए कुतबिया, अज़्कारे कालंदारी” वगैरा में इस तरह शजराए नसब बताया गया है, आरिफ़े कामिल, महबूबे बारी शैख़ुश, शीयूख इब्राहीम अबुल हसन अली हाश्मी अल हक्कारी रदियल्लाहु अन्हु, बिन हज़रत शैख़ मुहम्मद जाफर बिन हज़रत शैख़ युसूफ बिन शैख़ मुहम्मद बिन शरीफ उमर बिन शैख़ शरीफ अब्दुल वहाब बिन हज़रत अबू सुफियान ज़ैद रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।

तअलीम व तरबियत

आप की तअलीम व तरबियत के मुतअल्लिक़ “इब्ने ख़लकान” तहरीर फरमाते हैं के आप ने अपने वक़्त के मुमताज़ आला तिरीन उलमा, व मशाइख, की बारगाह में ज़ानूए अदब तैह कर के इल्मे ज़ाहिरी व बातिनी हासिल किया, इल्मे हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, के जुमला तमाम उलूम पर महारते ताम्मा हासिल की, और हज़रत शैख़ अबुल उला मिसरी रहमतुल्लाह अलैह से भी आप मिले हैं और इन से हदीस भी समाअत की है, और आप को हज़रते ईसा बिन तैफ़ूर बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह की रूहे पुर फतूह से भी फैज़ पंहुचा है, और आप अपने ज़माने के एक अज़ीम “शैखुल इस्लाम” के लक़ब से मशहूर हुए, आप अपने वक़्त के फ़ाज़िले अजल, शानदार आलिमे बे बद्ल, थे ।

आप के फ़ज़ाइलो कमालात

मुक़्तदाए तरीकत, पेशवाए शरीअत, वाक़िफ़े असरारे हकीकत, दानाए असरारे इलाही, पाबन्दे शरीअते इलाही, “हज़रत शैखुल इस्लाम इब्राहीम अबुल हसन अली हाश्मी हक्कारी रदियल्लाहु अन्हु” आप “सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़वीया के पंदरवे 15, इमाम व शैख़े तरीकत” हैं, आप महबू बुल्लाहुल बारी, जलवाहाए जमाल के मज़हर तजल्लियाते जलाल के मसदर, इल्मे अदब के आलिम, और बाज़ार ज़ोको शोक के रौनक थे, इब्तिदा शुरू में आप अपने पिदरे बुज़ुर्ग वार हज़रत शैख़ मुहम्मद रदियल्लाहु अन्हु की सुहबत में रहे, आप बड़े “ऊलुल अज़्म शैख़” थे आप के फ़ैज़ाने करम से बेशुमार तालिबाने हक अपने मंज़िले मक़सूद तक पहुंचे, चुनांचे आशनाए बहरे तौहीद “हज़रत सय्यदना शैख़ अबू सईद मख़्ज़ूमी रदियल्लाहु अन्हु” जो सुल्तानुल औलिया महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी गोसे समदानी हज़रते सय्यदना शैख़ मुहीउद्दीन अब्दुल कदीर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के पीरो मुर्शिद हैं” आप ही की खिदमत में अठ्ठारह 18, साल खिदमत गुज़ारी फरमा कर और आप की इत्तिबाओ पैरवी कर के मसनदे इरशाद व तलकीन पर जलवा अफ़रोज़ हुए ।

बैअतो खिलाफत

आप को खिलाफत गौसे ज़मां “हज़रत अबुल फराह मुहम्मद तरतूसी रदियल्लाहु अन्हु” से शरफ़े बैअत की, सआदत हासिल है, और इन्हीं की नज़रे कीमिया के असर से आप के क्लबों जिगर इरफ़ान व इकान से रोशनी से ताबनाक हुए आप हज़रते तरतूसी रदियल्लाहु अन्हु के अजिल्ला बड़े खुलफ़ा में से हैं, और आप का सिलसिलए बैअत हज़रते शैख़ मारूफ करख़ी रदियल्लाहु अन्हु के बाद दो शाखों में हो गया है, क्यूंकि हज़रते शैख़ मारूफ करख़ी रदियल्लाहु अन्हु को दो बुज़ुरगों से फैज़ पंहुचा है एक हज़रते सय्यदना शैख़ इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु से, और दूसरे हज़रते शैख़ दाऊद ताई रदियल्लाहु अन्हु से “अव्वलुल ज़िक्र सिलसिले को “सिल्सिलातुज़ ज़हब” कहते हैं, और इस वक़्त सिलसिलए क़दीरिया रज़वीया में इसी सिलसिले से बैअत की जाती है ।

इबादतों रियाज़त

आप अपने वक़्त के इल्मे शरीअत व तरीकत के इमाम थे, इल्म के साथ अमल में भी आप यकताए रोज़गार थे, चुनांचे तमाम तारिख निगारों ने इस बात का बरमला ऐतिराफ़ किया है, के आप हमेशा साईमुद दहर, और काइमुल लेल, (हमेशा रोज़ा रखने वाला, रात को इबादत करने वाला) रहते और तीसरे दिन पर ही आप खाना तनावुल फ़रमाया करते थे और कयामे लेल का ये आलम था के ईशा के बाद आप अपने महबूबे हकीकी के कलाम को शुरू करते और नमाज़े तहज्जुद के पहले ही दो कुरआन शरीफ पढ़ लिया करते थे मगर साहिबे किताब “अनवारे सूफ़िया” की रिवायत है के आप रात को जब तहज्जुद की नमाज़ पढ़ते उस वक़्त तक कुरआन शरीफ के दस ख़त्म कर लेते यानि बाद नमाज़े ईशा से तहज्जुद तक आप कुरआन शरीफ में ही मसरूफ रहते थे, और कलामे इलाही की बे पनाह लज़्ज़तों से सुरूरो कैफ का सामान मुहय्या फरमाते गोया आप साऱी रात इबादतों रियाज़त राज़ो नियाज़ में मशगूल रहते ।

दुनिया की सियाहत

आप ने “سیر وافی الارض” को मलहूज़ रखते हुए दुनिया की सय्याही बहुत फ़रमाई और इसी सिलसिले में वक़्त के मुमताज़ तिरीन उलमा, व मशाइख़ीन, की बारगाह में जा कर उन से मिले और एक दिन “हज़रत अबुल फराह तरतूसी रदियल्लाहु अन्हु” की बारगाहे मुक़द्दसा में हाज़िर हो कर शरफ़े बैअत हासिल किया, और पीरे कामिल के फ़ैज़ाने करम से ज़ाहिरी सेर को छोड़ कर सेरे बातिन फरमाने लगे और आप इन ही के जानशीन और अव्वल खलीफा मुकर्रर हुए ।

आप की पेशन गोई और उस की तस्दीक़

“सलासिल अनवार” में है के एक बुज़रुग ने आप से सवाल किया “اَنتَ شَیخ الاسلام” क्या आप शैखुल इस्लाम हैं? आप ने जवाब इरशाद फ़रमाया: “اَنا شیخ فی الاسلام وخرج من واحفدہ جماعتہ تقد موا عند الملک و تعلت مراتبھم منھم فقرء ومنھم امرء” और इल्लत फेले माज़ी हैं और “تقد مو” फेले मोज़ारा, इस लिए ये इबारत कुछ बे जोड़ मालूम होती है गालिबन ठीक इबारत यूं होगी: “انا شیخ فی الاسلام و یخرج من اولادی وحفدی جماعتہ تقد موا عند الملک و تعلت مراتبھم منھم فقرء ومنھم امرء خرج” यानि में बूढ़ा हूँ इस्लाम में और मेरी औलाद व अहफ़ाद, (अहफ़ाद, हफ्द, की जमा है, इस का माना होता है बेटे, या बेटी, की औलाद, या नवासे या नवासी की औलाद) से एक जमात निकलेगी जो बादशाहों के नज़दीक पेश की जाएगी उन का मर्तबा बुलंद होगा बाज़ उन में से फुकरा होंगें और बाज़ उमरा (रईस, सरदार) ।

ये इरशाद पेशन गोई है जो पूरी हुई, आप के फ़रज़न्दे अर्जमन्द हज़रत शैख़ ज़ाहिर रदियल्लाहु अन्हु जो खुलासाए जोहर और जुबदाए ज़ुमराए अहले वफ़ा थे, वो राहे शरीअतो तरीकत को क़दमे हिम्मत से तैह किए हुए थे जबले “हककार” में आप के नाइब मुनासिब रहे मगर आप के पोते हज़रत शैख़ मूसा रदियल्लाहु अन्हु जबले हक्कार से कूच फरमा कर “सीस्तान” में इक़ामत पज़ीर हो गए जहां अक्सर मखलूके खुदा को फ़ैज़याब फ़रमाया, और इन के फ़रज़न्दे रशीद शैख़ अबू अली रदियल्लाहु अन्हु जो बड़े बा हिम्मत शैख़ थे सीस्तान को छोड़ कर कीच मकरान में जा कर बस गए और वहां के बाशिन्दे जो सुल्तान की काहिली और बे ऐति दालि से जां बलब थे, आप की ज़ात बा बरकात का इंतिखाब कर के हाकिमे वक़्त को माज़ूल कर के आप को अपना हाकिम मुन्तख़ब कर लिया, सुल्तान अबू अली रदियल्लाहु अन्हु ने जब अपने फ़रज़न्द अर्जमन्द रशीदुद्दीन रदियल्लाहु अन्हु को होनहार देखा तो उमूरे जहाँदारी की सर अंजाम दही की बाग डोर इन के हवाले कर के खुद गोशा नाशिनी में जा बैठे और बाकी उमर यादे इलाही में गुज़ारी, तो आप ही के अहिद में हज़रत सय्यद अहमद तावाखता तिर्मिज़ी रदियल्लाहु अन्हु अपने अहलो अयाल के साथ कीच मकरान में रौनक अफ़रोज़ हुए और आप के फ़रज़न्दे अर्जमन्द शहज़ादाह बहाउद्दीन रदियल्लाहु अन्हु के साथ अपनी साहबज़ादी बीबी हाज का निकाह कर दिया जिससे तीन फ़रज़न्द पैदा हुए (1) शहज़ादा जमालुद्दीन (2) शहज़ादा ज़ियाउद्दीन (3) सुल्तानुत तारिकीन शैख़ हमीदुद्दीन हाकिम रदियल्लाहु अन्हु,

जब सुलतान कुतबुद्दीन हस्बे दस्तूर बुज़ुर्गाने हुकूमत से फारिग हुए तो औरंग नाशिनी का कुरा शैख़ बहाउद्दीन रदियल्लाहु अन्हु के नाम पड़ा जिन्हों ने दस साल बड़े अदलो इन्साफ के साथ से महिम्मात मुल्की को सर अंजाम दिया और इस के बाद तख्तो ताज को अपने सागे भाई शैख़ शहाबुद्दीन अबुल बका से हवाले कर के और अपने दो छोटे शहज़ादों हज़रत शैख़ हाकिम रदियल्लाहु अन्हु व शैख़ रुकनुद्दीन हातिम रदियल्लाहु अन्हु (नवासा क़ाज़ी रफीउद्दीन अब्बासी) को उन की सरपरस्ती में छोड़ कर अपने हमराह दोनों बड़े शहज़ादों को ले कर हज कर ने रवाना हुए, मगर जब ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन से फारिग हो कर यमन सालिहा में पहुंचे तो जां बा हक तस्लीम हो गए और आप के फ़रज़न्दान मौसूफ़ (यानि शहज़ादा जमालुद्दीन व ज़ियाउद्दीन रहिमहुमुल्लाहु तआला) ने मरकदे पिदरे बुज़ुर्गवार की जुदाई गवारा ना की वही इक़ामत इख्तियार करली चुनांचे इन की औलाद यमन सालिहा ही में बयान की गई है, सुलतान शहाबुद्दीन रदियल्लाहु अन्हु ने दो साल तक हुक्मरानी के बाद अपने आखरी दिनों में खल्क की खिदमत अपने भतीजे सुलतान हमीदुद्दीन हाकिम रदियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द की और विसाल फरमा गए, इस के बाद के वाक़िआत तफ्सील से तज़किराए हमीदह, में है, हज़रते अबुल हसन अली हक्कारी रदियल्लाहु अन्हु की पेशन गोई के “मेरी औलाद में बाज़ फुकरा हैं और बाज़ उमरा” ये हज़रत हाकिम रदियल्लाहु अन्हु तक पूरी हुई ।

आप के दौर के उलमा, मुहद्दिसीन, सूफ़िया

चूंके आप का ज़माना इल्मों अदब का ज़माना था शऊरो फ़िक्र का दौर था और आप के दौर में जलीलुल क़द्र उलमा, मुहद्दिसीन, सूफ़िया, फुज़्ला, से आलम फ़ैज़याब हो ही रहा था और दुनिया का एक गोशा इन उलमा के नूरे हिदायत से ताबनाक रोशन हो रहा था, इस लिए मुनासिब है, के आप के मुआसिरीन उलमा की उल्माए किराम की फहरिस्त बयान करते हैं ताके कारीईंन के दिलो दिमाग में उस पुर अज़मत दौर की बरतरी मालूम हो जाए और आप की इल्मी शख्सियत इल्मी मैदान, भी वाज़ेह हो जाए जिन के अस्मा इस तरह हैं:

  1. आरिफ़े बिल्लाह हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ाली शाफ़ई तूसी (मुतवफ़्फ़ा 505, हिजरी ईस्वी 1111)
  2. हज़रत हाफ़िज़ दार क़ुतनी,
  3. हज़रत सरताज नह्वीयाँ इब्ने जनि,
  4. सरताजे बुल्गार बदी,
  5. कुदूरि शैखुल हनफ़िया,
  6. इब्ने सीना शैख़ फ़लासिफ़ा (मुतवफ़्फ़ा 427, हिजरी),अब्दुल काहिर जुरजानि (मुतवफ़्फ़ा 471, हिजरी),
  7. हज़रत शैख़ अबुल हसन खिरकानी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, (ज़िक्रे हसन)
सुन्नते मुस्तफा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुहब्बत

आप ने पूरी ज़िन्दगी इस्लाम की नशरो इशारत तब्लीगे दीन में सर्फ़ फ़रमाई और अपने फियूज़ो बरकात से मखलूके आलम को फ़ैज़याब करते रहे, शरीअते ज़ाहिरी का हर आन, हर क़दम, पर ख़याल फरमाते और सुन्नते नबी करीम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर इस तरह मज़बूती से क़ाइम रहे के एक कदम भी आप का शरीअत से बाहर न था ।

आप की औलादे अमजाद

आप की औलादे किराम की कोई फहरिस्त दस्तियाब न हो सकी, अल बत्ता एक साहब ज़ादे का नाम पता चलता है जिन को आप से खिलाफत भी हासिल थी और जिन का इस्मे गिरामी “हज़रत शैख़ ज़ाहिर रदियल्लाहु अन्हु” हैं और इस के बाद से आप की औलादे किराम की निशान दही मुल्के पाकिस्तान में रियासते बहावल पुर, ज़िला झंग, गूंजरावाला, सीयालकोट, लाइल पुर, और लाहौर शरीफ वगैरा गैर में बा कसरत मिलती हैं और वो बीसों गाऊं के मालिक हैं ।

आप के खुलफाए किराम

आप के खुलफ़ा की फहरिस्त मुकम्मल नहीं हैं: हज़रत शैख़ अबू सईद मुबारक मख़्ज़ूमी, दूसरे खलीफा आप के ही फ़रज़न्द हज़रत शैख़ ज़ाहिर रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन,

तरीखे विसाल और आप का उर्स

आप का विसाल बरोज़ पीर सुबह सादिक के वक़्त 1, एक मुहर्रमुल हराम, 446, हिजरी में हुआ, “इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलईही राजिऊन” अहदे खिलाफत अल मुस्तनज़िर बिल्लाह अब्बासी का था, मगर बाज़ ने आप के विसाल की तारिख 25, मुहर्रमुल हराम, 485, हिजरी 484, हिजरी भी लिखी हैं, मगर शजराए रज़वीया में अव्व्वल को माना गया हैं।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुबारक बगदाद शरीफ के “हक्कार गाऊं” में मरजए खलाइक हैं ।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो” तकफ़ीर मुआतज़ला में आप की किताब मौजूद है । (वाफियासुल आलाम कलमी, अज़ शाह खुबुल्लाह इलाह आबादी रहीमहुल्लाह)

रेफरेन्स हवाला
  • तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
  • मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
  • तज़किरातुल औलिया,
  • ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल, 

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