हज़रते सय्यदना अब्दुर रज़्ज़ाक रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना अब्दुर रज़्ज़ाक रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

अहसनल्लाहु लहू रिज़कन से दे रिज़्के हसन
बन्दए रज़्ज़ाक ताजुल असफिया के वास्ते

आप की विलादत

आप की पैदाइश मुबारक अठ्ठारह 18, ज़ी काइदा रात के वक़्त 528, हिजरी को बग़दाद शरीफ में हुई, और एक रिवायत है के 14, रजाबुल मुरज्जब 553, हिजरी असर के वक़्त हुई।

इस्मे गिरामी व कुन्नियत

आप का नाम मुबारक “अब्दुर रज़्ज़ाक” और कुन्नियत “अबू बक्र, अबुल फराह, अब्दुर रहमान” है, और लक़ब “ताजुद्दीन” है ।

आप की तअलीमो तरबीयत

आप की तअलीमो तरबीयत हज़रत सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की आगोश में हुई और वालिद माजिद से ही आप को “बैअतो खिलाफत” का अज़ीम शरफ़ भी हासिल था, यहाँ तक के अपने वालिद मुहतरतम से तमाम उलूम मुकम्मल हासिल किए, और दीगर उल्माए अस्र से भी पूरा इस्तिफ़ादा फ़रमाया जिन के असमाए गिरामी ये हैं:

(1) हज़रत अबुल हसन मुहम्मद बिन अल साइग, (2) हज़रत क़ाज़ी अबुल फ़ज़्ल मुहम्मद अल अर्मी, (3) हज़रत अबुल कासिम सईद बिन अल बिना, (4) हज़रत हाफ़िज़ अबुल फ़ज़्ल मुहम्मद बिन नासिर, (5) हज़रत अबू बक्र मुहम्मद बिन अज़्ज़ाग वानी, (6) हज़रत अबुल मुज़फ्फर मुहम्मद हाश्मी, (7) हज़रत शैख़ अबिल आली अहमद बिन अली, हाफ़िज़ ज़हबी ने तारीखे इस्लाम: में तहरीर फ़रमाया है के आप ने वालिद मुहतरम के हुक्म से एक जमाअते कसीराह से और बतौर खुद भी बहुत से मशाइख़ीने इज़ाम से हदीसे सुनी, और जगह जगह से हदीसे जमा फ़रमाई, हाफ़िज़ ज़हबी, इब्ने नज्जार अब्दुल लतीफ़ वगैरा बहुत से मशाहीर ने आप से रिवायत की है आप ने शैख़ शमशुद्दीन, अब्दुर रहमान, और शैख़ कमाल, अब्दुर रहीम, अहमद बिन शैबानी, खदीजा बिन्ते शहाब बिन राहिज और इस्माईल अस्क़लानी वगैरा को हदीस शरीफ की इजाज़त अता फ़रमाई, और हदीसों की सनादें भी अता फ़रमाई ।

आप के फ़ज़ाइलो कमालात

कुद वतुल औलिया, ज़ुब्दतुल असफिया, फकीहे अस्र, रहनुमाए अहले नज़र, सिराजुस्सा लीकीन, ताजे मिल्लत वद दीन, हज़रत सय्यदना शैख़ ताजुद्दीन अब्दुर रज़्ज़ाक रदियल्लाहु अन्हु आप सिलसिलए आलिया क़ादीरिया रज़विया के अठ्ठारवे 18, इमाम व शैख़े तरीकत हैं, आप हज़रत सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के पांचवें शहज़ादे हैं, आप हाफिज़े क़ुरआनो व हदीस थे और अपनी जलालते इल्मी की बुनियाद पर ईराक के मुफ़्ती थे, और आप मारफते हदीस में यदे तूला रखते थे, आप में इंतिहाई दर्जे ,की फ़ुक़ाहत, तवाज़ो इंकिसारी थी, आप सब्रो शुक्र और अख़लाके हसना और इफ़्फ़त शिआरी में मशहूर थे, ज़ुहद व ख़ामोशी आप का तुर्राए इम्तियाज़ था, आप उमूमन लोगों से किनाराकश रहते और सिवाए नमाज़े जुमा या दीगर ज़रूरियाते दीनी के घर से बाहर नहीं निकलते थे, बावजूद उसरत व तंगदस्ती के आप बड़े सखी और नरम दिल थे, उलूमो फनून के दरस व तदरीस के अलावा अपने वक़्त के अज़ीम मुन्तज़िर भी थे, तलबा से निहायत उन्स व मुहब्बत रखते थे, गरज़ के आप की ज़ाते बा बरकात जामे कमालात थी, आप की ज़ात से बहुत से लोगों को फैज़ पंहुचा और कसीर तादाद में लोग आलिम फ़ाज़िल दुरवेशे कामिल आप की सुह्बते बा बरकत से हुए, आप हज़रते सय्यदना इमाम अहमद बिन हंबल रदियल्लाहु अन्हु के मुकल्लिद थे, और आप ने अपना जाए मस्कन हलब रखा, जिस की वजह से लोग आप को हल्बी भी कहते हैं, जो बग़दाद शरीफ से पूरब की तरफ है ।

खशीयते इलाही

आप ज़ुहदो तक्वा में कामिल थे और अपने वालिद मुहतरम के मज़हर थे, साथ ही शर्मों हया आप की ज़ाते मुकद्द्स में बदर्जाए अतम मौजूद थी, आप के शर्मों हया का ये आलम था के मुसलसल तीन साल तक क़तई तौर पर आसमान की जानिब निगाह नहीं की और ये आप ने अल्लाह पाक से शर्मों हया व खशीयते इलाही की बुनियाद पर किया था ।

जानवरों की फरमा बरदारी

हज़रते सय्यदना अब्दुर रज़्ज़ाक रदियल्लाहु अन्हु इरशाद फरमाते हैं के एक दिन में और मेरे वालिद मुहतरम सय्यदना गौसे पाक रदियल्लाहु अन्हु जुमा की नमाज़ पढ़ने के लिए बाहर निकले, रस्ते में देखा के ख़लीफ़ए वक़्त के लिए एक सिपाही जानवरों पर शराब लादे हुए जा रहा है, वालिद मुहतरम ने अपनी निगाहें बसीरत से देख लिया के इस में शराब है, इस लिए सिपाही को आवाज़ दी गई सिपाहियों ने मारे खौफ व निदामत के रुकना मुनासिब नहीं समझा तो सय्यदना गौसे पाक रदियल्लाहु अन्हु ने जानवरों से मुख़ातब हो कर फ़रमाया: खुदाए पाक के हुक्म से रुक जाओ? जानवर फ़ौरन रुक गए, सिपाहियों ने लाख कोशिश की लेकिन जानवर अपनी जगह से न हिले, और सिपाहियों को दर्द होने लगा, जिस की वजह से तड़पने लगे और फर्याद करने लगे, के फिर हम कभी ऐसी हरकत नहीं करेंगें, आप ने दुआ फ़रमाई, जिससे उन का दर्द ख़त्म हो गया और शराब सिरका में तब्दील हो गई, जब ये खबर ख़लीफ़ए वक़्त को पहुंची तो वो भी शराब नोशी से ताइब हो गया ।

आप की तसानीफ़

आप अपने वक़्त के कादिरूल कलाम अदीब व इंशा परवाज़ थे आप की जुमला तसानीफ़ का तज़किरा अक्सर तज़किरों में नहीं मिलता है सिर्फ एक किताब का सुबूत तारिख से मिलता है जिस के अंदर आप के वालिद मुहतरम सय्यदना गौसे पाक रदियल्लाहु अन्हु के मामूलात व मलफ़ूज़ात मौजूद हैं जो अपने अंदर बेशुमार खूबियां लिए हुए हैं वो आप ही की तरतीब शुदा है जिस को आज पूरी दुनियाए तारीख “जिलाउल खवातिर” के नाम से जानती है ।

आप की औलादे अमजाद

आप को अल्लाह पाक ने पांच साहब ज़ादे और दो साहब ज़ादियाँ अता फरमाए जिन के असमाए गिरामी ये हैं,

  1. हज़रत काज़ियुल कुज़्ज़ात शैख़ अबू सालेह नस्र
  2. हज़रत शैख़ अबुल कासिम अब्दुर रहीम
  3. हज़रत शैख़ अबू मुहम्मद इस्माईल
  4. हज़रत शैख़ अबुल मुहासिन फ़ज़्लुल्लाह
  5. हज़रत शैख़ जमालुल्लाह

शहज़ादियाँ

  1. हज़रत बीबी सआदत
  2. हज़रत उम्मे मुहम्मद आइशा रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।
आप के खुलफाए किराम

आप के खुलफाए किराम की फहरिस्त तलाश के बाद न मिल सकी अक्सर क़ुतुब में जो अस्मा मिलते हैं वो ये हैं: (1) हज़रत सय्यदना अबू सालेह रदियल्लाहु अन्हु, () हज़रत सय्यदना शैख़ जमाल रदियल्लाहु अन्हु ।

आप के पोते आज भी हयात ज़िंदा हैं

आप के पांचवे साहब ज़ादे हज़रत शैख़ जमालुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह जो सूरते हुस्ने जमाल में सरकार गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु का अक्स थे आप रदियल्लाहु अन्हु अपने पोते हज़रत शैख़ जमालुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह से बे पनाह उल्फत व मुहब्बत का इज़हार फरमाते और कलबी मुहब्बत आप को उन से थी, चुनांचे दराज़िए उमर की दुआ फ़रमाई और दुआए गौसियत मआब से दराज़ी उमर नसीब हुई वो आज तक ज़िंदह हयात हैं और “हयातुल मीर” के नाम से मशहूर हैं अक्सर इन का क़याम दयारे समर कंद में रहता हैं, सय्यद मुहम्मद मुकीम साहब हुजरा वगैरा के अलावा बेशुमार औलियाए किराम आप से मुरीद हुए, आज तक वो अकलीम की हफ़ाज़त करते हैं और शहर बस्ताम में रहते हैं हज़रत शैख़ जमालुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु मुझ को देख कर अकसर फ़रमाया करते थे के, “जमालुल्लाह तेरी उमर बड़ी हैं” जब तू ज़माना हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम पाए तो मेरा सलाम उस रुहुल क़ुद्स की खिदमत में पहुँचाना” यहाँ तक के हज़रत शैख़ जमालुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह की जिस ने शरफ़े सुहबत पाई वो बयान करते हैं के में ने एक मर्तबा आप से अर्ज़ किया: इस में शक नहीं हैं के अल्लाह पाक ने इंसाने कामिल को हयात व ममात में इख़्तियार दिया हैं मगर मालूम नहीं के आप की उमर शरीफ कितनी होगी? तो इरशाद फ़रमाया: यकीनी तो मुझे भी नहीं मालूम हैं मगर जिस वक़्त मेरे दादा गौसे पाक रदियल्लाहु अन्हु मुझ को गोद में लेते थे तो फरमाते थे के ऐ जमाल मेरी तरफ से हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम को सलाम पहुँचाना, इससे मालूम होता हैं के में हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम की ज़ियारत व खिदमत से मुशर्रफ हूँगा और वो अमानत उन को पहुँचा ऊँगा, और भी चंद हिकायात उन से मुलाकात की तारीखे औलिया के मुसन्निफ़ ने अपनी किताब में इन के हालात में नकल की हैं, चुनांचे कोहिस्तान ईराक में आज भी मौजूद हैं, और गियारवी सदी में बाज़ औलिया से मुलाकात भी हुई हैं, हज़रत शाह अबुल मुआली रहमतुल्लाह अलैह “अपनी किताब तुहफाए कादिरिया” में लिखते हैं के में ने बाज़ बुज़ुर्गों से सुना के एक साहब ज़ादे फ़रज़न्दाने हज़रते सय्यदना अब्दुर रज़्ज़ाक रदियल्लाहु अन्हु से इस ज़माने में मौजूद हैं उन का नाम “शैख़ जमालुल्लाह हैं” और अपने जद्दे अमजद के मुशाबेह हैं जो अक्सर औकात बस्ताम के जंगलों में रहते हैं और कभी बस्ताम में भी आजाते हैं, और जनाब मुहम्मद दीन लाहोरी का बयान हैं के आप लाहौर में तशरीफ़ लाए बेशुमार लोग आप से फ़ैज़याब व बैअत हुए ।

आप का विसाल व उर्स

आप की तारीखे विसाल में काफी इख्तिलाफ हैं 603, हिजरी माहे शव्वाल बताया हैं, और एक कौल 604, हिजरी, 571, हिजरी 654, माहे रबीउल अव्वल 17, या 11, या 26, रबिउस सानी हैं, मगर शजराए आलिया क़ादिरिया रज़विया में तारीखे विसाल 6, शव्वालुल मुकर्रम 623, दर्ज हैं और यही तारिख सही हैं ।

नमाज़े जनाज़ा

हज़रते सय्यदना अब्दुर रज़्ज़ाक रदियल्लाहु अन्हु की नमाज़े जनाज़ा का जब ऐलान हुआ तो मखलूके अज़ीम का अज़्दहाम हो गया और शहर में नमाज़े जनाज़ा पढ़ने के लिए कोई जगह न थी इस लिए पहली नमाज़ बैरूनी शहर हुई, दूसरी बार जामा रसफा, तीसरी बार तुरबतुल खुलफ़ा में, चौथी बार दरियाए दजला के किनारे खिज़र मैन के पास पांचवी बार बाबे तहरीम में, छटी मर्तबा जबरिया में, सातवीं बार हज़रत इमाम अहमद बिन हंबल रहमतुल्लाह अलैह के मकबरे के पास इस के बाद दफ़न किया गया और ये दिन जुमे का था ।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुबारक हज़रत इमाम अहमद बिन हंबल रहमतुल्लाह अलैह के मकबरा बग़दाद शरीफ में मरजए खलाइक हैं |

रेफरेन्स हवाला
  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल
  • मसालिकुस सालिकीन जिल्द अव्वल
  • शजरतुल कामिलीन

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