हज़रते सय्यदना इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 1)

सिद्क़ सादिक का तसद्दुक सादिकुल इस्लाम कर 

बे  गज़ब  राज़ी  हो  काज़िम  और  रज़ा के वास्ते 

विलादत शरीफ

आप की पैदाइश मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में बा तारीख 11, रबीउल अव्वल बरोज़ जुमेरात 153, हिजरी को अबू जाफर मंसूर अब्बासी के दौरे हुकूमत में हुई । 

इस्म शरीफ व कुन्नियत

आप का नाम “अली” कुन्नियत सामी” अबुल हसन, और अबू मुहम्मद है । 

अल्काबात

लक़ब आप के मुख्तलिफ हैं साबिर, वली, ज़की, ज़ामिन, मुर्तज़ा, और मशहूर लक़ब “अली रज़ा” है ।  

आप के वालिदैन

आप के वालिद माजिद हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु हैं और वालिदा माजिदा हज़रते उम्मे वलद “तखमीना या शमाना, बाज़ ने उम्मुल बनीन, और इस्तकरा भी बताएं हैं, और किताब “मिरातुल असरार” में हज़रते शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह ने “बिन्ते तक्तुम” लिखा है । 

आप का हुलिया मुबारक :- आप निहायत ही शकील व हसीनो जमील थे, रंग मुबारक आप का सांवला था । 

विलादत की बशारत

आप की दादी मुहतरमा बीबी हमीदह ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा सरकार ने बशारत दी के तुम अपनी कनीज़ तखमीना को अपने बेटे “मूसा काज़िम” के हवाले कर दो इससे एक लड़का पैदा होगा जो बेहतरीन अहले ज़मीन से होगा । चुनांचे ऐसा ही हुआ और हज़रते इमाम रज़ा अली रदियल्लाहु अन्हु की विलादत हुई, जो अपने वक़्त के बेहतरीन माया नाज़ हस्ती बन कर पूरी दुनियाए इस्लाम में चमके । 

शिकमे मादर यानि माँ के पेट में आप की करामत

आप की वालिदा माजिदा फरमाती हैं: जब में हामिला हुईं (पिरेग्नेंट) तो कभी अपने शिकम में गिरानी तकलीफ महसूस नहीं की और जब में सो जाती तो अपने शिकम से तस्बीह व तहलील की आवाज़ सुनती थीं जिससे मेरे दिल पर खौफ तारी हो जाता था लेकिन जब में बेदार हो जाती तो फिर कोई आवाज़ सुनने में नहीं आती थी और जब आप की विलादत हुई तो अपने दस्ते मुबारक को ज़मीन पर रखा और रूए यानि चेहरा मुबारक को आसमान की तरफ कर लिया और लब हाए मुबारक हिल रहे थे जैसे कोई मुनाताज (दुआ, इल्तिमास, दरख्वास्त) करता हो, । 

आप के फ़ज़ाइलो कमालात

आप निहायत ज़हीन व फित्तीन (अक्ल मंद, दाना, चतुर) और आला दरजे के आलिम व फ़ाज़िल थे, खलीफा मामून रशीद 218, हिजरी आप की बड़ी तअज़ीमों तकरीम करता था आप “सिलसिलए आलिया क़ादरिया रज़विया के आठवे 8, वे इमाम व शैख़े तरीकत हैं”, हज़रते इब्राहीम बिन अब्बास कहते हैं के में ने आप से ज़ियादा उलूम व मुआरिफ का जान कार नहीं देखा और खलीफा मामून अक्सर आप से इम्तिहानन सवालात करता और आप उस के जवाब शाफी देते और एक खूबी आप के अंदर ये भी थी के जब भी कोई सवाल आप से करता तो आप अक्सर उस के जवाबात कुरआन शरीफ की आयात से दिया करते और ऐसा कभी नहीं देखने को मिला के किसी ने आप से सवाल किए हों और उस को जवाब बिस्सवाब न मिला हो ।       

आदात व सिफ़ात

आप बहुत ही कम सोते और अक्सर रोज़ा रखते और हर महीने में तीन रोज़े आप से कभी नहीं छूटे आप अक्सर अँधेरी रात में खैरात करते थे और जब खल्वत में होते तो फ़क़ीरों वाला लिबास ज़ेबे तन फरमाते और जब दरबार वगैरा में तशरीफ़ ले जाते तो लिबासे फ़ाख़िराह (बेश कीमत) ज़ेबे तन फरमाते, खाकसारी और मुन्कसिरुल मिजाज़ी इस दर्जा थी के मोसमे गरमा में चटाई पर और मोसमे सरमा यानि सरदी में टाट या कंबल पर बैठा करते थे और गुलामो के साथ बैठ कर एक ही दस्तर ख्वान पर खाना खाते थे । 

आप की खाकसारी का वाक़िआ

हज़रते इमाम रज़ा अली रदियल्लाहु अन्हु इल्म का कोहे गिरां और उलूमो मुआरिफ का समंदर और मखलूक नवाज़ी और रहमो करम का मुजस्समा थे, एक मर्तबा आप हम्माम (ग़ुस्ल खाना) मे ग़ुस्ल फरमा रहे थे के उसी वक़्त एक फौजी आदमी आया और आप को वहां से उठा कर खुद ग़ुस्ल करने लगा और साथ ही ये भी कहा: ऐ अस्वद (सियाह) मेरे सर पर पानी डाल कर मुझ को नहला यहाँ तक के आप बखुशी इस लश्करी को नहलाने लगे इसी दरमियान में एक तीसरा शख्स भी वहां हाज़िर हुआ जो आप को बा खूबी जानता था उस ने जब आप को नहलाते हुए देखा तो उस ने चीख मारी और कहा: ऐ लश्करी ! तू हलाक हो, तो इब्ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से खिदमत लेता है, जब लश्करी को मालूम हुआ तो फ़ौरन आप के कदमो पर गिर पड़ा और माज़िरत करने लगा के हुज़ूर ! जिस वक़्त में ने आप को पानी डालने के लिए कहा था उसी वक़्त आप ने इंकार क्यों नहीं कर दिया? तो आप ने फ़रमाया: जिस काम में मुझ को सवाब मिले वो क्यों न करूँ ।    

आप का अक़्द (निकाह) शरीफ

“अस्सवा इकुल मुहर्रिका” में हज़रत अल्लामा हजर हैतमि शाफ़ई मक्की रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के आप सादाते किराम में इल्मो फ़ज़ल और क़द्रो मन्ज़िलत में सब से बरतर आगे थे, यही वजह है के मामून ने अपने सीने में आप को जगह दी और अपनी साहबज़ादी “उम्मे हबीब” का आप के साथ निकाह कर दिया और अपनी सारी ममलिकत (हुकूमत, खिलाफत, राज) का आप को शरीक व मालिक बना दिया । 

आप का इल्मो फ़ज़ल

हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु का इल्मो फ़ज़्ल देख कर खलीफा ने अपनी बेटी आप से निकाह करने का इरादा किया तो बनी अब्बास को ये बात नागवार गुज़री के कहीं इन के वालिद की तरह इन्हें भी अपना वली अहिद न बना दे, मामून ने अब्बासियों से कहा: में ने इस छोटी उमर के आलम में इन को इल्मो फ़ज़्ल और इल्म में मुमताज़ होने की वजह से इंतिख्वाब किया है चुनांचे बनी अब्बास आप के ओसाफ के बारे में बहस करने लगे, आखिर अब्बासियों ने मुनाज़रे की ठानली और एक जय्यद आलिम और बे नज़ीर मुनाज़िर याह्या बिन अक़्सम को हज़रते इमाम से गुफ्तुगू करने के लिए मुकर्रर किया, मुख़ालिफ़ीन ने समझा था के इमाम साहब अभी बच्चे हैं और एक जय्यद आलिम के साथ वो बात करने में टिक नहीं सकते और इस तरह मामून के दिल से आप की शानो अज़मत खत्म हो जाएगी, तारीखे मुकर्राह पर बेहतरीन इंतज़ामात हुए, मसनदें बिछाई गईं और अराकीन दौलते अहले इल्मो फ़ज़्ल सभी जमा हो गए, हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु भी तशरीफ़ लाए, याह्या बिन अक़्सम ने आप से चंद सवालात किए तो आप ने हर सवालात के अहसन अच्छे और मुदल्लल जवाबात दिए, जिस पर याह्या खामोश हो गया, फिर मामून ने आप से कहा: के आप ने याह्या के हर सवाल का जवाब दिया, अब ज़रा आप भी इन से कोई सवाल करें? 

हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने याह्या से सवाल किया, आप इस मसले में क्या फरमाते हैं के सुबह के वक़्त एक मर्द ने एक औरत की तरफ देखा, उस वक़्त वो उस पर हराम थी सूरज निकलने के वक़्त वो उस पर हलाल हो गई ईशा के वक़्त फिर हलाल, आधी रात को फिर हराम और फजर के वक़्त फिर हलाल हो गई? याह्या ये सवाल सुन कर बिलकुल हैरान हो गए और कहा के इस मसले को में नहीं जनता,

हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने मज़्कूरह सवाल को इस तरह हल फरमा कर पूरे मजमे में अपनी धाक बिठा दी के सुबह के वक़्त एक अजनबी ने एक कनीज़ की तरफ देखा, उस वक़्त वो उस पर हराम थी, सूरज निकलने के वक़्त उस ने उस को खरीद लिया वो उस पर हलाल हो गई, मगरिब के वक़्त उसने ज़िहार किया फिर हराम हो गई, ईशा के वक़्त कफ़्फ़ारा दिया, फिर हलाल हो गई, आधी रात को तलाक बाइन दी फिर हराम हो गई और फजर को उससे निकाह कर लिया फिर हलाल हो गई,

ये जवाब सुन कर सब लोग हैरान रह गए और मामून ने बानी अब्बास की तरफ देख कर कहा देख लिया तुम लोगों ने? फिर इस के बाद उस ने अपने मकसद को पूरा किया और अपनी शहज़ादी से आप का निकाह कर दिया, । 

निशापुर मुल्के ईरान के बीस हज़ार मुहद्दिसीने किराम

“अस्सवा इकुल मुहर्रिका” में हज़रत अल्लामा हजर हैतमि शाफ़ई मक्की रहमतुल्लाह अलैह ताऱीखे निशापुर से नाकिल हैं के जब निशापुर तशरीफ़ ले गए तो ज़ायरीन के हजूमो कसरत की वजह से लोगों का चलना दुश्वार हो गया था और आप एक खच्चर पे सवार थे, और लोग आप के सरों पर छाता लागा हुआ था जिस की वजह से लोगों को ज़ियारत नहीं हो पा रही थी, उस वक़्त अबू ज़रआ राज़ी मुतवफ़्फ़ा 264, हिजरी, और मुहम्मद बिन असलम तूसी मुतवफ़्फ़ा 242, हिजरी, उस ज़माने के मशहूर हाफिज़ाने हदीस थे, आगे बढ़ कर खच्चर की लगाम थाम ली, उस वक़्त उन के साथ तलबा व मुहद्दिसीन इस कसरत से थे के शुमार में नहीं आ सकते थे इन दोनों ने निहायत आजिज़ी इंकिसारी के साथ अर्ज़ किया: के हुज़ूर अपने जमाले बा कमाल से लोगों को मुशर्रफ फरमाएं और अपने आबाओ अजदाद किराम की कोई हदीस सुनाएं, तो आप ने खच्चर को रोक दिया और छतरी को हटा दिया, खलकत की आँखें आप की तलअत हुमायूं को देख कर ठंडी हुईं, यहाँ तक के लोग ज़मीन पर गिरते और बे खुद हो रहे थे और खच्चर के पाऊं चूमते थे, उलमा व मुहद्दिसीन ने पुकारा और लोगों को खामोश किया और हाफिज़ाने हदीस के इल्तिमास पर फ़रमाया के, “मुझ से मेरे वालिद हज़रत मूसा काज़िम ने, उन से उन के वालिद माजिद हज़रत इमाम जाफर सादिक ने, उन से उन के वालिद बुज़ुर्ग वार हज़रत इमाम मुहम्मद बाकर ने, उन से उन के वालिद बुज़ुर्ग वार हज़रत इमाम अली ज़ैनुल आबिदीन ने, उन से उन के वालिदे शफीक हज़रते इमामे हुसैन ने उन से उन के वालिद माजिद हज़रते अली मुर्तज़ा कर्रा मल्लाहु तआला वजहहुल करीम ने उन्हों ने फ़रमाया के मुझ से हदीस बयान की मेरे हबीब और मेरी आँखों की ठंडक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे आगाह किया हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम ने के फरमाता है अल्लाह पाक के “लाइलाहा इलल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह” मेरा किला है पस जिस ने इस को पढ़ा वो मेरे किले में दाखिल हुआ और जो मेरे किले में दाखिल हुआ वो मेरे अज़ाब से बे खौफ हो”

ये फरमा कर आप ने फ़र्दा छोड़ दिया और तशरीफ़ ले गए मजमे में जो मुहद्दिसीन जलवा अफ़रोज़ थे इस हदीस को नकल फरमा रहे थे और जब उनका शुमार किया गया तो उन की तादाद गिनती “बीस हज़ार 20000,” थी हज़रते इमाम अहमद बिन हंबल रदियल्लाहु अन्हु बयान फरमाते हैं के “لو قرئ هذا الإسناد على مجنون لأفاق” यानि मज़कूरा बाला हदीस को अगर इसी इस्नाद के साथ पढ़ कर मजनून दीवाने पगल पर फूंक दी जाए तो उस की दीवानगी जाती रहेगी और तंदुरुस्त ठीक हो जाएगा, जैसा के हज़रते अल्लामा अब्दुल करीम अबुल कासिम कुशैरी रहमतुल्लाह अलैह  फरमाते हैं के ये हदीस इसी सनद से उमरा (अहले दौलत, अहले सरवत, अहले हुकूमत)  सासानिया को पहुंचीं तो उस को उन्हों ने आबे ज़र से लिख वाया और वसीयत की के इस को मेरे साथ क़ब्र में दफ़न कर देना, मज़कूरा अमीर के विसाल के बाद किसी ने ख्वाब में देखा तो मालूम किया के अल्लाह पाक ने तेरे साथ क्या मुआमला किया? तो उन्हों ने बताया के मुझे बख्श दिया । 

वाकिअए विलायत और दौरे मामून

हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की मकबूलियत व बरतरी अज़हर मिनश शमश है, आप ने दीने मतीन की बेश बहा खिदमात अंजाम दीं और बेशुमार अफ़राद आप के हल्काए दरस में रह कर आप के इल्मी व रूहानी फैज़ान से मालामाल हुए, जिस की तफ्सील बा खूबी तवालत नहीं दी जा सकती, और आप की हमा गीर मकबूलियत का ही ये आलम था के मामून (मुतफ़व्वा 218, हिजरी) ने आप को सनादे विलायत सौंपने का फैसला कर लिया और चाहा के आप को वली अहिद बनाऊं तो सब ने फ़ज़ल बिन सहल को बुला कर अपने इरादे से बा खबर किया और इस को कहा के तुम अपने भाई हसन से भी इस के मुतअल्लिक़ मश्वरा कर लेना, मश्वरा के बाद दोनों मामून के दरबार में हाज़िर हुए तो हसन ने अपना मश्वरा ये सुनाया के ये एक बड़ा अक़्दाम है और अगर ऐसा तुम करोगे तो विलायत व ईमारत तुम्हारे खानंदान से रुखसत हो जाएगी, इस के बाद मामून के कहा में ने अल्लाह पाक से अहिद किया है के अगर में धोका बाज़ों पर काबू पा गया तो खिलाफत को बनी तालिब के अफ़ज़ल तरीन फर्द को सौंप दूंगा और “अली रज़ा” इन सब में अफ़ज़ल तरीन हैं, और में ऐसा ज़रूर करूंगा, इन दोनों ने जब मामून का अज़्म बिल ज्ज़्म देखा तो इंकार व एतिराज़ करने से खामोश हो गए, फिर मामून ने हुमक दिया के तुम दोनों अभी इमाम अली रज़ा की खिदमत में जाओ और मेरे इरादे से बा खबर कर के विलायत को सौंप दो, वो दोनों हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए और मामून के इरादे से आगाह कर के खिलाफत को इख़्तियार करने को कहा, हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने इस काम से माज़रत की मगर वो दोनों बा ज़िद रहे, आखिर में हज़रते ने चार व न चार हो कर खिलाफत को कबूल फरमा लिया, और ये शर्त रखी के में कोई अम्र व नहीं अज़्ल व नस्ब व कलाम किसी दूसरे अश्ख़ास की हुकूमत व दबदबा की बुनियाद पर नहीं करूंगा और साथ ही जो चीज़ अपनी असल पर फिल वक़्त मौजूद व काइम उस को तब्दील नहीं करूंगा, जब ये बातें मामून ने सुनीं तो उसने आप के जुमला शराइत को कबूल कर लिया और एक तारीखी मजलिस 5, रमज़ानुल मुबारक बरोज़ जुमेरात 201, हिजरी को मुनअकिद की, जिस में इस की ममलिकत (सल्तनत, रियासत, खिलाफत, हुकूमत) के जुमला हल्लो अक़्द व अरकाने दौलत जमा हुए, उस वक़्त मामून ने फ़ज़ल बिन सहल को हुक्म दिया के जुमला हाज़िरीन जलसा को हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु के “अमीरुल मोमिनीन” होने की खबर कर दो के आज की तारीख से में ने इन को अपना “वली अहिद” (हाकिमे वक्त, बादशाह बनाना) करार दिया है, इस के बाद हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाए और अपने मख़सूस मकाम पर जलवा गर हुए, उस वक़्त आप सब्ज़ रंग के लिबास को पहने हुए थे, और सर पे अमामा और तलवार हमाइल थी, मामून ने अपने बेटे अब्बास को हुक्म दिया के तुम खड़े हो कर सब से पहले इन से बैअत करो बैअत के बाद खुत्बा और शुआरा ने खड़े हो कर हज़रत की बुलन्दिये शान और वली अहिद होने का बयान वाज़ेह तोर पर किया, इस के बाद मामून ने बेशुमार ज़र व जवाहिरात हाज़रीन पर निछावर किए, इस के बाद फिर मामून ने आप को कहा के हज़रत आप खड़े हो कर लोगों में खुत्बा पढ़ें?

हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु खड़े हुए और पहले अल्लाह पाक की हम्दो सना की और हज़रते रसूले खुदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दुरूद पढ़ा फिर इरशाद फ़रमाया: “ऐ लोगों ! हमारा तुम पर हक़ है, रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हम पर हक है और तुम ने हमे वो हक दिया, फैसला करना तुम पर फ़र्ज़ है और हम पर सलामती हो” । 

कुरआन शरीफ से जवाब देना

हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु अक्सर सवालात के जवाबात कुरआन शरीफ से दिया करते थे, आप को रब्बे काइनात ने फ़हमें कुरआन का इतना अज़ीम इल्म दिया था और आप की फुकाहत व दीनी नज़र इतनी बुलंद थी की एक मर्तबा आप की खिदमत में मामून हाज़िर हुआ तो आप को बेश कीमत लिबास पहने हुए देखा तो आप से सवाल किया: के या इब्ने रसूल ! ऐसा लिबास दुरुस्त है? आप ने इरशाद फ़रमाया: हज़रते सुलेमान व युसूफ अलैहिस्सलाम अल्लाह पाक के पैगम्बर थे क़ुबाए दीबा मंसूज मज़हब यानि सोने के तारों से बने हुए कुबा ज़ेबे तन फरमाते और तख्ते मुरस्सा पर जलवा अफ़रोज़ हो कर मुखलूके खुदा पर हुक्मरानी फरमाते और अमरो नहीं की तलकीन करते, लिहाज़ा मकसदे असली इमाम का यही है के अद्ल व इंसाफ करे सच बोले जब भी हुक्म दे तो इंसाफ का दे और जब वादा करे तो इफ़ा यानि पूरा करे और ये वाक़िआ है के अल्लाह पाक ने अच्छे लिबास और अच्छे खाने को हराम नहीं फ़रमाया: इस के बाद ये आयते करीमा तिलावत फ़रमाई:  “قُلْ مَنْ حَرَّمَ زِينَةَ اللَّهِ الَّتِي أَخْرَجَ لِعِبَادِهِ وَالطَّيِّبَاتِ مِنَ الرِّزْقِ”  तर्जुमा कंज़ुल ईमान: तुम फरमाओ किस ने हराम की अल्लाह की वो ज़ीनत जो उस ने अपने बंदों के लिए निकाली” । 

तिरासी दीनार खैरात कर दो

दूसरा वाक़िआ इस तरह है के एक मर्तबा मामून बीमार हुआ और नज़र मानी के सेहत होने पर ज़रे कसीर खैरात करूंगा, जब सेहत याबी हुई तो उस ने उल्माए असर से ज़रे कसीर की तादाद पूछी, सभी उलमा ने अपनी समझ और रसाई के मुताबिक जवाब दिया मगर इन जवाबों से मामून को तशफ्फी न हुई, आखिर में उस ने आप की खिदमत में सवाल पेश कर के जवाब माँगा तो आप ने इरशाद फ़रमाया के तिरासी दीनार खैरात कर दो ये ज़रे कसीर की तादाद है, तो उलमा ने पूछा के इस की तादाद पर ज़रे कसीर का इतलाक़ किस तरह हुआ? आप ने फ़रमाया के अल्लाह पाक का कोल है, “لَقد نصر کم الله فی مواطن کثیرہ” तर्जुमा कंज़ुल ईमान: बेशक अल्लाह ने बहुत जगह तुम्हारी मदद की” और कुल गज़्वात व सराय तिरासी 83, थे और इस अदद को अददे कसीर फसारमय गया है, चुनांचे मामून को ये जवाब बहुत ही पसंद आया और इसी के मुताबिक अमल किया । 

हज़रते सय्यदना शैख़ मअरूफ़ करख़ी का इस्लाम लाना

आप ही की तब्लीग व कोशिश ने बेशुमार अफ़राद को इस्लाम का शैदाई बनाया: आप ही की अज़ीम कोशिशों की बदौलत “हज़रते सय्यदना शैख़ मअरूफ़ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह अपने पुराने “नसरानी मज़हब” छोड़ कर आप के दस्ते हक परस्त पर ईमान लाए और आप की फैज़ बख्श सोहबत ने अकाबिर औलियाए किराम की सफ में खड़ा कर दिया और आप ही की नियाबत से “सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़वीया के एक अज़ीम इमाम वलीये कामिल शैख़े तरीकत बन गए । 

  “आप की कश्फ़े करामत”

तेरे सवालों के जवाब इस में लिखे है

आरिफ़े बिल्लाह अल्लामा नूरुद्दीन उर्फ़ अब्दुर रहमान जामी रहमतुल्लाह अलैह अपनी मशहूर किताब “शवाहिदुन नुबुव्वत” में तहरीर फरमाते हैं:

अहले कूफ़ा शहर में से एक शख्स का बयान है के जब में खुरासान जाने के लिए कूफ़ा शहर से रवाना होने लगा तो मेरी लड़की ने मुझे एक बहुत अच्छा कपड़ा दिया और कहा के इसे बेच कर मेरे लिए फ़िरोज़ह खरीद लाना, जब में मरू शहर पंहुचा तो हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु के गुलाम ने आ कर मुझ से कहा के हमारा एक साथी इन्तिकाल कर गया है उस के कफ़न के लिए कपड़ा हमारे हाथ बेच दो, में ने कहा मेरे पास कोई कपड़ा नहीं ये सुन कर वो सब चले गए मगर थोड़ी देर के बाद फिर आए और कहने लगे हमारे आका ने तुझे सलाम कहा है और फ़रमाया है के तुम्हारे पास एक कपड़ा है जो तुम्हारी लड़की ने दिया था के उसे बेच कर उस के लिए फ़िरोज़ह खरीद लो, हम उस की कीमत लाए हैं,

में ने कपड़ा उन्हें दे दिया इस के बाद दिल में कहा कुछ मसले आप से पूछूं, देखें क्या जवाब देते हैं, चुनांचे चंद मसले में ने एक कागज़ पे लिख लिए और सुबह के वक़्त आप के दौलत खाने पे हाज़िर हो गया, वहां पर लोगों का बहुत हुजूम भीड़ थी किसी को मजाल न थी के वो इस भीड़ में आप से आसानी के साथ मिल सके, में हैरत के आलम में खड़ा था के आप का एक गुलाम बाहर आया और मेरा नाम ले कर एक तहरीर शुदाह कागज़ मुझे दिया और कहा ऐ फुलां ! ये तेरे सवालों के जवाबात हैं, में ने देखा तो वाकई मेरे सवालों के जवाबात इस में दर्ज थे । 

आप ने दो कपड़े अता फरमाए

आरिफ़े बिल्लाह अल्लामा नूरुद्दीन उर्फ़ अब्दुर रहमान जामी रहमतुल्लाह अलैह अपनी मशहूर किताब “शवाहिदुन नुबुव्वत” में तहरीर फरमाते हैं: इसी तरह और एक रावी का बयान है के रियान बिन सलत ने मुझ से कहा मेरी ख्वाइश है के तुम मेरे लिए हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु से इजाज़त लो ताके में आप की खिदमत में इस उम्मीद से हाज़री दूँ के आप मुझे अपने कपड़ों में से कोई कपडा पहनाएं और अपने नाम के चंद दिरहम भी अता फरमाएं, रावी का बयान है के जब में हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु के यहाँ हाज़िर हुआ और अभी में ने कुछ नहीं कहा था के आप फरमाने लगे रियान बिन सलत चाहता है के यहाँ इस उम्मीद से हाज़िर हो के में उसे कपड़े पहनाऊं और वो दिरहम जो मेरे नाम से जारी हुए हैं उन में से कुछ उसे भी दूँ, रियान बिन सलत को यहाँ ले आओ, रियान बिन सलत अंदर गए तो आप ने उन्हें दो कपड़े अता फरमाए और तीस दिरहम दिए । 

नॉट सबक

लड़की का फ़िरोज़ह खरीदने के लिए कपड़ा देने का वाक़िआ जो कूफ़ा शहर में हुआ था शहर मरू में वाकिफ हो जाना फिर सवालात पेश किए गए बगैर उन के जान लेना और रियान बिन सलत की तमन्ना से वाकिफ होना के वो कपड़े और दिरहम चाहता है, ये सब गैब की बातें हैं जिन को आप ने ज़ाहिर फ़रमाया, इससे साबित हुआ के हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु का भी ये अक़ीदा था के मुझे इल्मे गैब हासिल है वरना वो इन बातों को ज़बान पर हरगिज़ नहीं लाते और न सवालों के जवाब देते ।               

रेफरेन्स हवाला             

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(6) बुज़ुरगों के अक़ीदे,   

  

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