हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 1)

मुश्किलें हल कर शहे मुश्किल कुशा के वास्ते 

कर   बलाएं   रद   शहीदे   कर्बला  के  वास्ते 

आप की विलादत बा सदाअत

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की पैदाइश पांच 5, शाआबनुल मुअज़्ज़म चार 4, हिजरी बरोज़ हफ्ता को मदीना शरीफ में हुई, पैदाइश के बाद हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब रदियल्लाहु अन्हु की ज़ौजा मुहतरमा उम्मुल फ़ज़ल बिन्ते हारिस ने दूध पिलाया । 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दहन मुबारक से इन की तहनीक की और सीधे कान में अज़ान और बाएं में तकबीर पढ़ी और मुँह में लुआबे दहन मुबारक डाला, दुआएं दीं और सातवें दिन “हुसैन” नाम रखा और एक बकरी से अक़ीक़ा किया और हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा से इरशाद फ़रमाया : इस का सर मुंडा कर बाल के बराबर चांदी सदक़ा कर दो जिस तरह अक़ीक़ा “हसन” में किया था । (तशरीफुल बशर)

इस्म (नाम) व कुन्नियत

आप का नामे पाक “हुसैन” और कुन्नियत “अबू अब्दुल्लाह” है और अलकाब सय्यदुश शोहदाह, सिब्ते रसूल, सिब्ते असगर, रशीद, ज़की, मुबारक, और रिहानतुर रसूल है । 

नाम रखने के लिए हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम का तशरीफ़ लाना

आप की विलादत की खबर जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पहुंची तो आप अपनी शहज़ादी सय्यदह फातिमा ख़ातूने जन्नत रदियल्लाहु अन्हा के घर तश्री लाए और हज़रते अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु अन्हु से पूछा, क्या नाम रखा है? आप ने अर्ज़ किया,  या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरी क्या मजाल के हुज़ूर से पहिल करूं,

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया ऐ अली ! में भी इस का नाम रखने के लिए वहीये इलाही का मुन्तज़िर हूँ इतने में हुज़ूर जिब्रीले अमीन हाज़िरे खिदमत हुए और अर्ज़ किया रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हज़रत हारुन अलैहिस्सलाम के तीनो बेटों का नाम इब्रानी ज़बान में “शब्बीर, शब्बर और मुशब्बिर” था जिस का अरबी तर्जुमा “हसन, हुसैन, मुहसिन” है । बड़े शहज़ादे का नाम हसन, है और उन का नाम हुसैन रखना। चुनांचे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप का नाम “हुसैन” रखा ।  

आप का हुलिया शरीफ

आप सीने से क़द मुबारक तक बिलकुल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुशाबेह थे और ऐसे हसीनो जमील खूब सूरत और शकील थे के जो आप को देखता वो आप का शैदा हो जाता था और चेहराए मुबारक की चमक दमक ऐसी थी के तारीक शब् और अँधेरे घर में मिस्ले सितारह रोशन के चमकता और लोग इस की चमक रौशनी में राह चलते । 

आप की तआलिमो तरबियत

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने आग़ोशे रिसालत में तरबियत पाई हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तमाम बच्चों से ज़ियादा आप से मुहब्बत करते थे क्यूंकि आप हद दर्जा नेक दिल, खुदा परस्त, रहम व मुरव्वत, के पैकर और बहादुर और शोजाआ थे इस के अलावा रसूले खुदा भी जानते थे के एक ज़माना ऐसा आएगा के यही नौनिहाल मेरी उम्मत को तबाही से बचाएगा, मेरे दीन का परचम बुलंद करेगा, बातिल को क़दमों से पामाल करेगा और इस्लाम का सफीना साहिले निजात पर लगाएगा । 

आप के अख़लाक़े हसना

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु निहायत रहम दिल, सखी, आबिद, तक़वा शिआर और खुदा तरस थे, गरीबों की निगेहबानी, गरीब मुहताजों की मदद करना, बे सहारों को सहारा देना, और यतीमो के साथ हमदर्दी का सुलूक करना अपना फर्ज़े मन्सबी समझते थे, काशानए अक़दस पे कोई साइल व फ़क़ीर हाज़िर होता तो खुद फ़ाक़ा कर लेते मगर घर में जो कुछ होता फ़क़ीर के हवाले कर देते, गोया आप अपने नाना जान, वालिदे गिरामी अली मुर्तज़ा और वालिदा मुकर्रमा ख़ातूने जन्नत के अख़लाक़ व रूहानी मुहासिनो कमालात के मज़हर व जामे थे । आप की बे पनाह रहम दिली का एक मशहूर वाक़िआ है,

एक दिन आप चंद महमानो के साथ खाना खा रहे थे, गुलाम गर्म गर्म शोरबे का पियाला दस्तर ख्वान पे लाते हुए खौफ से कांपा जिस की वजह से शोरबे का पियाला गिर कर टूट गया और शोरबा आप के रुखसार मुबारक पर पड़ गया, आप ने उस की तरफ निगाह उठाई तो उस ने निहायत आजिज़ी अदब से अर्ज़ किया में ने अपना गुस्सा पी लिया फिर गुलाम ने कहा, आप ने फ़रमाया में ने तुम को माफ़ कर दिया, गुलाम ने फिर कहा आप ने फ़रमाया में ने तुझे अल्लाह पाक की रज़ा व ख़ुशनूदी के लिए आज़ाद कर दिया। 

हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम फैसला ले कर नाज़िल हुए

एक बार इमामे हसन व हुसैन रदियल्लाहु अनहुमा ने बचपन में तख्ती पर कुछ लिखा और बाहम एक दूसरे से कहने लगे के मेरा खत अच्छा है चुनांचे दोनों इस बात का फैसला लेने वालिदे गिरामी हज़रते अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु अन्हु के पास पहुंचे, हज़रते अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने इस मुक़दमे का फैसला हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा को सौंप दिया और हज़रते फातिमा ने फ़रमाया मेरे नूर चश्मों इस बात का फैसला तुम अपने नाना जान हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कराओ यहाँ तक के वो दोनों भाई हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की लहिदमत में हाज़िर हुए । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया तुम्हारा फैसला जिब्रीले अमीन करेंगे । जिब्रीले अमीन हाज़िर हुए और कहने लगे या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अल्लाह पाक ये फैसला खुद फरमाएगा चुनांचे अल्लाह पाक का हुक्म हुआ के जिब्रील जन्नत से एक सेब ले जाओ और उस को इन दोनों की तख्तियों पे डाल्दो जिस की तख्ती पे सेब ठहर जाए वही खत अच्छा है । 

चुनांचे हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम ने जन्नत का एक सेब ला कर इन तख्तियों पे गिरा दिया तो हुक्मे इलाही के मुताबिक इस सेब के दो टुकड़े हो गए और एक टुकड़ा हज़रते इमामे हसन की तख्ती पर और दूसरा हज़रते इमामे हुसैन की तख्ती पे जा के गिरा और फैसला ये हुआ के दोनों ही खत अच्छे हैं । 

हिफाज़त के लिए फ़रिश्ते

एक मर्तबा बचपन में हज़रते इमामे हसन और इमामे हुसैन रदियल्लाहु अनहुमा घर से कहीं बाहर तशरीफ़ ले गए, हज़रते फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा कुछ परेशान सी हुईं इस फर्क में के न मालूम दोनों शहज़ादे कहाँ चले गए इतने में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए तो हज़रते खतूने जन्नत ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हसन व हुसैन आज न मालूम कहाँ चले गए कहीं इन दोनों का पता नहीं? इतने में हज़रते जिब्रीले अमीन हाज़िरे खितमत हो कर अर्ज़ करते हैं या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप के दोनों शहज़ादे फुलां जगह हैं आप परेशां न हों अल्लाह पाक ने उन दोनों की हिफाज़त के लिए फरिश्ता मुकर्रर कर दिया है। ये सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस जगह तशरीफ़ ले गए तो देखते क्या हैं के दोनों शहज़ादे आराम फरमा रहे हैं और फरिश्ता एक बाज़ू उन के नीचे बिछाए हुए है और दूसरे बाज़ू से साया किए हुए है, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दोनों शहज़ादोंका मुँह चूम लिया और अपने दोशे मुबारक पे बिठा कर घर ले आए । 

आप की जूदो सखावत

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत मुबारक में दिहाती आया और अर्ज़ किया, में ने आप के नाना जान से सुना है के जब तुम किसी हाजत के ख़्वास्तगार हो तो चार शख्सों में से एक से दर्ख्वस्त करो या तो किसी शरीफ अरबी से, या किसी शरीफ अक से या किसी हाफ़िज़ क़ुरआन से या किसी मालीह सगकहस से और ये चरों सिफ़तें आप में बदर्जा अतम पाई जाती हैं इस लिए के सरे अर्ब को अगर शराफत मिली है तो आप ही के घरे से मिली है और सख्वात का जबली वस्फ़ है रहा क़ुरआन तो वो है रहा कुरान तो वो आप ही के घर उतरा है और मलाहत के मुतअल्लिक़ में ने आप के नाना जान  से सुना है के जब तुम मुझे देखना चाहो तो हसन व हुसैन को देख लो दिहाती की ये गफ्तुगू सुन कर हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया में ने अपने नाना जान हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना के नेकी बक़द्रे मारिफ़त हुआ करती है में तुझ से तीन मसले पूछता हूँ अगर तूने इन में से एक का जवाब दिया तो इस थैली का तीसरा हिस्सा तेरी नज़र है और अगर दो जवाब दिया तो दो हिस्से तेरे होंगे और अगर तीनो का जवाब दे दिया तो सारी थैली तेरी नज़्र कर दूंगा । 

देहाती ने कहा इरशाद फरमाएं : आप ने इरशाद फ़रमाया : तमाम अम्लों में कोन सा अमल अफ़ज़ल है? उस ने कहा खुदा पर ईमान लाना, दूसरा सवाल के बन्दे की हलाकत से निजात किस चीज़ से है? उस ने जवाब दिया खुदा पर तवक्कुल करने में तीसरा सवाल बन्दे को ज़ीनत किस चीज़ से हासिल होती है? उस ने जवाब दिया, इल्म से जिस के साथ अमल व बुर्द बारी भी हो और अगर किसी शख्स में ये न हो? उस ने जवाब दिया के फक्र जिस में सब्र होना चाहिए अगर किसी में अगर किसी में ऐसा फक्र न हो? उन्हों ने जवाब दिया के फिर इस के लिए जिलानी वाली बिजली चाहिए, इन जवाबात से हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु हंस पड़े और उस को पूरी थैली नज़्र कर दी । 

एक बार हज़रते इमामे हसन व हुसैन और हज़रते अब्दुल्लाह बिन जाफर रदियल्लाहु अन्हुम हज को तशरीफ़ ले जा रहे थे और जिस ऊँट पर खाने पीने के सामानो असबाब थे वो ऊँट कहीं पीछे ही रह गया था । एक जगह भूके प्यासे एक बुढ़िया की झोंपड़ी में तशरीफ़ ले गए और फ़रमाया, कुछ पीने को है? बुढ़िया ने अर्ज़ की हाँ और अपनी बकरी का दूध दूह कर हाज़िर कर दिया, आप लोगों ने उस को नोश फ़रमाया, फिर पूछा खाने को भी कुछ है? बुढ़िया ने जवाब दिया के तैयार नहीं है अगर आप चाहें तो इस बकरी को ज़िबाह कर के तनावुल फरमाएं चुनांचे वो बकरी ज़िबाह की गई और खाना तय्यार होने के बाद तमाम हज़रात ने खाना खाया, जाते वक़्त इरशाद फ़रमाया बड़ी बी हम लोग कुरेश खानदान से हैं जब इस सफर से वापस होंगें तो तुम हमारे पास आना हम तेरे अहसान का बदला देंगे ये फरमा कर रवाना हो गए । 

जब इस बुढ़िया का शोहर घर पूछा और बकरी पक जाने की खबर मिली तो नाराज़ हो कर कहने लगा तू ने बकरी उन लोगों को खिला दी जिन को तू जानती भी नहीं की वो कौन हैं? थोड़े दिन गुज़रे थे के वो मियां बीवी मुफलिसी की वजह से मदीना शरीफ में आ कर ऊँट की लीड नियाँ चुन चुन कर बेचने लगे । एक दिन बुढ़िया कहीं जा रही थी के हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु अपने दौलत खाने पे तशरीफ़ फरमा थे । इस बुढ़िया पे नज़र पड़ी तो देखते ही पहचान गए और उसे बुला कर फ़रमाया बड़ी बी मुझे जानती हो? उस ने अर्ज़ किया नहीं, आप ने फ़रमाया में वो शख्स हूँ जो फुलां दिन तुम्हारा मेहमान हुआ था, बुढ़िया ने बा गौर देखा और पहचान गई हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने हुक्म दिया, एक हज़ार बकरियां खरीद कर इस बुड़ियाँ को दी जाएं और साथ ही एक हज़ार दीनार नकद भी दिए जाएं । चुनांचे हुक्म की तामील की गई और एक हज़ार बकरिया व नकद दे दिया गया । फिर हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने अपने गुलाम को साथ ले कर इस बुढ़िया को  हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के पास भेज दिया । हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने इसे से पूछा भाई जान ने तुम्हे किया दिया? बुढ़िया ने कहा, एक हज़ार बकरियां और एक हज़ार नकद दीनार,  हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने भी एक हज़ार बकरियां और एक हज़ार दीनार दे कर रुखसत किया और गुलाम के साथ इस बुढ़िया को हज़रते अब्दुल्लाह बिन जाफर  रदियल्लाहु अन्हु के पास भेज दिया उन्हों ने पूछा के दोनों भाइयों ने तुम्हे क्या दिया? बुढ़िया बोली दो हज़ार बकरियां और दो हज़ार दीनार हज़रते अब्दुल्लाह बिन जाफर रदियल्लाहु अन्हु ने भी इस को दो हज़ार बकरियां और दो हज़ार दीनार अता फरमाए, वो बुढ़िया चार हज़ार बकरियां और चार हज़ार दीनार ले कर अपने शोहर के पास आई और कहने लगी, ये इनआम उन सखी घराने वालों ने अता फरमाएं हैं जिन को में ने बकरी खिलाई थी ।  (कीमियाए सआदत)

आप का सब्रो तहम्मुल

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु को अपनी दर्द नाक शहादत की खबर बचपन ही में हो गई थी, यहाँ तक के हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आप के मक्तल कर्बला की मिटटी भी बारगाहे रिसालत में पेश की थी, इस अज़ीम हादिसे पर मुत्तला होने के बावजूद आप ने निहायत खन्दा पेशानी से इस वक़्त का इन्तिज़ार फ़रमाया और इम्तिहान शहादत में मर्दाना वार सब्र व तहम्मुल का सुबूत दिया, इस आलम में भी जहाँ बड़े बड़े बहादुरों और अज़्मों हिम्मत की आहिनि चट्टानों के क़दम डगमगाते हैं और हिम्मत साथ छोड़ देती है, हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के पाए इस तकलाल में एक हलकी सी लग़्ज़िश भी पैदा न हुई और ज़िन्दगी की आखरी घड़ियों तक आप जादाए तस्लीमा रज़ा से पीछे नहीं हटे । 

आप की शुजाअत

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु शुजातो बहादुरी में अपनी मिसाल नहीं रखते थे आप की शुजाअत के मुतअल्लिक़ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये फरमान मौजूद है के एक रोज़ सय्यदह ख़ातूने जन्नत रदियल्लाहु अन्हा अपने दोनों  शहज़ादों को ले कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुईं और अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इन दोनों शहज़ादों को कुछ अता फरमाएं तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया हसन को तो में ने अपना इल्म और अपनी हैबत अता की और हुसैन को अपनी शुजाअत और अपना करम बख्शा । 

बारगाहे रिसालत में आप का मक़ाम

अमीरुल मोमिनीन हज़रते सय्यदना उमर फ़ारूके आज़म रदियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं के एक दिन में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ तो देखा के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते इमामे हुसैन, को अपनी पुश्त मुबारक पर बिठाए हुए घुटने के बल चल रहे हैं में ने ये कैफियत देखि तो कहा ऐ हुसैन तुम्हारी सवारी बहुत ही अच्छी है इस पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया ऐ उमर ! सवार भी तो बहुत अच्छा है । 

आप के फ़ज़ाइलो कमालात

सय्यदुश शोहदाह इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के फ़ज़ाइलो मनाक़िब बेशुमार हैं और तारीख व सेर में आप के तफ्सीली हालात हैं यहाँ पे चंद अहादीस ज़िक्र करते हैं । 

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु आप सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़विया के तीसरे इमाम व शैख़े तरीकत हैं,

याला बिन मुर्राह से मरवी है के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हुसैन, मुझ से हैं और में हुसैन से हूँ जिस ने हुसैन को दोस्त रखा उस ने खुदा को दोस्त रखा हुसैन एक सिब्त हैं इसबात में से, 

बरा बिन आज़िब से रिवायत है के में ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा के हज़रते इमामे हुसैन को अपने कन्धों पर उठाए हुए थे और फरमाते थे, अल्लाह पक में इसे दोस्त रखता हूँ पस तू भी इसे दोस्त रख । 

अबू याला व इब्ने असा कर हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह से रिवायत करते हैं के में ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा के लुआब दहने मुबारक हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु का इस तरह चूसते थे जिस तरह आदमी खजूर को चूसता है । 

एक बार अमीरुल मोनीन हज़रते उमर फ़ारूके आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु को मिम्बर पर गोद में ले करल  इरशाद फ़रमाया हमारे सारों पर बाल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उगाए हुए हैं । 

अहादीस की रौशनी में आप की शहादत

बहकी, दलाईलुल नुबुव्वत, में हज़रते उम्मुल फ़ज़्ल बिन्ते हारिस (ज़ौजा हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब) से रिवायत करते हैं के वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास जा कर कहने लगीं, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में ने आज की रात एक अजीब ख्वाब देखा है फ़रमाया वो क्या है? उन्हों ने कहा उन्ह ने कहा वो ख्वाब बहुत सख्त है, फिर फ़रमाया हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वो क्या है? तो उनहों ने कहा में ने देखा के एक टुकड़ा आप के बदन मुबारक से काटा गया है और मेरी गोद में रख दिया गया है, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ये ख्वाब तो, तूने अच्छा देखा है इंशा अल्लाह फातिमा के यहाँ बेटा पैदा होगा और उस को तेरी गोद में देंगें चुनांचे फातिमा के यहाँ इमामे हुसैन पैदा हुए और मेरी गोद में दिए गए, जैसा के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया था, इस के बाद में एक दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास हाज़िर हुईं और हुसैन को अपनी गोद से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गोद में रख दिया फिर में दूसरी तरफ देखने लगी तो अचानक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दोनों आँखिन में आंसूं बह रहे थे में ने कहा, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरे माँ बाप आप पे कुर्बान आप को क्या हुआ? फ़रमाया मुझे हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आ कर खबर दी है के मेरी उम्मत इस लड़के को क़त्ल करेगी में ने अर्ज़ किया, क्या इस को? फ़रमाया हाँ और इन के क़त्ल की सुर्ख मिटटी भी मुझे ला कर दी है, 

अबू नईम वगैरह अस्बाह बिन नबात से रिवायत करते हैं के में हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अनहु के साथ एक सफर में कर्बला से गुज़रा जब उस मैदान में पंहुचा तो हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अनहु ने इरशाद फ़रमाया ये उन के ऊंटों के बैठने की जगह है ये उनके असबाब रखने की जगह है, ये उन के खून बहने की जगह है वो आले मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से होंगें और इसी मैदान में शहीद होंगे उन पर आसमान व ज़मीन रोयेंगें,

देलमी ने हज़रते हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अनहु से रिवायत करते हैं के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के कयामत के दिन मेरी बेटी फातिमा आएगी और उस के पास खून से लिथड़ा हुआ कपड़ा होगा और अर्श के पाए को पकड़ कर कहेगी, ऐ आदिल मेरे और मेरे बेटे के क़ातिल के दरमियान इंसाफ कर रब्बे काअबा की कसम मेरी साहब ज़ादी की चाहत के मुताबिक हुक्म दिया जाएगा । 

आप की शहादत का सबब

शहादत के वाक़िआ ये है की माहे रजब 6, हिजरी बा मक़ाम मुल्के दमिश्क जब यज़ीद पलीद मालिक और बादशाह बना तो उस ने तमाम मुल्कों को अपनी बैअत के लिए खत लिखा और आमिले मदीना वलीद बिन उतबा को लिखा वो इमामे हुसैन से बैअत ले तो हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने उस की बैअत से इंकार कर दिया, इस की वजह ये थी की यज़ीद फासिक, शराबी, और ज़ालिम था इस लिए हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने वहां से शअबान की चार तारिख को मक्के शरीफ की तरफ कुछ फ़रमाया और मक्के में क़याम किया, ये खबर जब कूफ़े वालों को पहुंचीं तो उन होने बहुत ही बे चैनी के साथ आप की खिदमत में डेढ़ सौ 150, खत बढ़ी मुहब्बत वफादारी के लिखे और कहा हम लोग जान व माल से आप की खिदमत के लिए हाज़िर हैं, इस के बाद हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु ने अपने चचा ज़ाद भाई हज़रते मुस्लिम बिन अकील को कूफ़े के हालात की मालूमात के लिए रवाना फ़रमाया और उन लोगों को ताकीद भी किया की इमाम मुस्लिम की मदद व हिमायत में पीछे न हटना यहाँ तक के हज़रते इमाम मुस्लिम कूफ़ा शहर को तशरीफ़ ले गए और मुख्तार बिन उबैद के मकान पर उतर कर वहां क़याम फ़रमाया, आप की तशरीफ़ आवरी की खबर सुन कर जोक दर जोक लोग आप की ज़ियारत को आए और बाराह हज़ार से ज़ियादा लोगों ने दस्ते मुबारक पर हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की बैअत की । 

हज़रते इमाम मुस्लिम बिन अकील, अहले मुल्के ईराक की गरवीदगी और अकीदत को देख कर बहुत खुश हुए और हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में अरीज़ा लिखा जिस में यहाँ के हालात की खबर दी और कहा आप जल्द तशरीफ़ ले आएं ।    

रेफरेन्स हवाला                      

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) शजराए तय्यबा नुरुल अबसार,
(5) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(6) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(7) आइनए क़यामत,
(8) सीरते इमामे हुसैन,
(9) हज़रते इमामे हुसैन के सो 100, किस्से,
(10) हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन के सो 100, वाक़िआत,
(11) शहादते हुसैन इमामे हुसैन, सिर्रुस शहादातैन,  

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