हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 3)

“यज़ीदियों का इबरतनाक अंजाम”

आतिशे ताबूत

हज़रते इमाम अली मूसा रज़ा अली रदियल्लाहु अन्हु ने अपनी तस्नीफें लतीफ़ “सहीफ़ए रज़विया” में तहरीर फ़रमाया है की कातीलीने हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु एक आतिशे ताबूत में होंगें और उन के हाथ लोहे और आग की ज़ंजीरों में बंधें हुए होंगें और इस ताबूत से इस क़द्र बदबू आती होगी की दोज़ख के फ़रिश्ते भी अल्लाह पाक से पनाह मांगेगें। 

शिमर और इब्ने सअद

मुख्तार बिन उबैद सक़फ़ी जब बर सरे इक्तिदार हुआ तो उस ने इस बात का क़तई अहिद किया की कर्बला में ज़ुल्मो सितम करने वाले यज़ीदियों को एक एक कर के क़त्ल करूंगा और खून हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु का पूरा पूरा बदला लूँगा । 

लिहाज़ा जल्लाद को हुक्म दिया और अम्र बिन सअद और शिमर दोनों को क़त्ल कर दिया गया और इस के बाद हुक्म दिया के मैदाने कर्बला में जितने लोग इब्ने सअद के साथ नवासाए रसूल के मुकाकबले में गए थे उन्हें जहाँ पाओ क़त्ल कर दो । 

यज़ीद की मोत कैसे हुई?

यज़ीद की मोत के सिलसिले में तीन रिवायते मिलती हैं, पहली रिवायत ये है की अपने साथियों व राज़दार मंसूर के साथ शिकार के लिए जा रहा था रस्ते में एक रूमी नस्ल पादरी लड़की पर यज़ीद की निगाह पड़ गई बदकार तो था ही बे चैन हो गया, यहाँ तक के रोज़ाना का मामूल बना लिया की इस गिरजा घर तक आता और वापस चला जाता, सिर्फ इस ख्याल से कोई सबील निकल आए ताके अपना मक़सूद पा लूँ, एक दिन लड़की ग़ुस्ल कर के अपने माकन की छत पर बाल सुखा रही थी की यज़ीद की निगाह पढ़ी तो ताब ज़ब्त न रही और दीवानो की तरह पुकारने लगा लड़की ने सोचा के इस खबीस की मिसाल तो ऐसी ही है जैसे चाँद को देख कर कुत्ता भोंकने लगता है ये हवस परस्त मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ गया है, अपने वक़्त का बादशाह है कहीं ऐसा न हो के किसी वक़्त मेरी इज़्ज़तो नामूस को अपनी ताक़त व क़ुव्वत के ज़रिए तबाहो बर्बाद करे जब उस ने अपने “आले नबी” पर ज़ुल्मो सितम करने में कोई कसर न छोड़ी तो में तो गैर हूँ इस का ज़ुल्म कहाँ बाज़ रह सकता है इससे महफूज़ रहने का तरीका है की इस को क़त्ल कर दिया जाए । 

मुश्किलें हल कर शहे मुश्किल कुशा के वास्ते 

कर   बलाएं   रद   शहीदे   कर्बला  के  वास्ते

चुनांचे बाप से मश्वरा कर के एक दिन उस को तनहा बुलाया जब वो दुसरे दिन बड़े ही इश्तियाक़ से आया तो लड़की अपने घोड़े पर ज़ीन पहले से ही डाल कर तय्यार खड़ी थी, इस के आते ही घोड़े पे सवार हो कर दोनों हम्स के करीब दश्ते हवारीन में पहुंचे यज़ीद मलऊन तो शराब में मस्त था यहाँ की ठंडी हवा ने नशे को बड़ा दिया लड़की ने मौका पा कर अपने घोड़े को थोड़ा पीछे किया और इबा में छुपाई हुई तलवार निकाल कर इस ज़ोर का वार किया के यज़ीद घोड़े से नीचे गिर गया, लड़की अपने घोड़े से नीचे कूदि और यज़ीद के सीने पे सवार हो कर कहने लगी ओ बद तीनत (बद खसलत बद ज़ात) जब तूने अपने नबी के नवासे पर रहम न खाया और जिस बारगाह से तुझे ईमान व इस्लाम की भीक मिली थी वफादार न रह सका तो तुझ से वफ़ा की उम्मीद कोन कर सकता है, बस अब तेरा ये आखरी वक़्त है ये कह कर अपनी तलवार से यज़ीद के जिस्म के टुकड़े टुकड़े कर दिए दो तीन रोज़ तक चील और कव्वे इस के जिस्म के टुकड़ों को नोचते खाते रहे इस के बाद इस के बही ख़्वाह तलाश करते हुए पहुंचे और वहीँ दफन कर दिया । 

कसरते शराब नोशी ने यज़ीद के फेफड़ों को बिलकुल बिकार कर दिया था, हर वक़्त नशे में गर्क रहता था, कुत्ते इस के दाएं बाएं रहा करते थे, ज़ानी हद दरजे का था, चंद रोज़ अमराज़े जिगर में मुब्तला रह कर मर गया और शहर दमिश्क के बाहर इस को दफ़न किया गया । 

हज़रत अल्लामा अबू इसहाक अस्फारा इनी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब (नुरुल ऐन फि मशहदे हुसैन) में तहरीर फ़रमाया एक दिन यज़ीद अपने एक हज़ार लश्कर के साथ शिकार के लिए निकला, दमिश्क शहर से दो दिन का रास्ता तै कर के एक मैदान में पंहुचा अचानक इस की निगाह एक हिरन पर पड़ी उस के पीछे अपना घोड़ा डाल दिया, हिरन एक सुनसान व खौफनाक मैदान में पहुंच कर गाइब हो गया, यज़ीद का पूरा लश्कर इससे दूर न जाने कहाँ रह गया, अल बत्ता इस के दस लश्करी इस के साथ यहाँ तक पहुंच गए थे, प्यास ने इतना तड़ पाया के यज़ीद और उस के साथी एड़ियां रगड़ते हुए जहन्नम में पहुंच गए उस दिन से उस वादी का नाम ही पड़ गया, “वादिए जहन्नम” ।

हुरमला बिन कामिल

ये वो शकी अज़ली है: जिस ने हज़रते अली असगर के तश्ना हुलकूम पाक पे ऐसा तीर मारा था की हुलकूमे पाक को छेदता हुआ बाज़ूए इमाम में पेवस्त हो गया था इस पर अल्लाह की जानिब से ये अज़ाब नाज़िल हुआ की इस के पेट में हर वक़्त शदीद तरीन जलन रहती थी और पीठ की जानिब सख्त किस्म की सर्दी का एहसास रहता था और इसे चैन नहीं मिलता था, पेट की गर्मी से निजात पाने के लिए हर वक़्त पंखा झलता था और पीठ की सर्दी ख़त्म कर ने के लिए पीछे आग जला था कुछ दिनों के बाद प्यास की इतनी शिद्द्त बढ़ गई के हर वक़्त पानी पीता रहता मगर प्यास न जाती थी आखिर कार इसी हालत में जहन्नम में चला गया । 

जानवरों की लीद खाने वाला

“जाबिर बिन यज़ीदी आज़दी” ये वो शख्स है जिस ने हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के जामे शहादत नोश फरमाने के बाद सरे मुबारक से इमाम शरीफ उतारा था, ये बद नसीब पागल हो गया, गन्दी नालियों को पानी पीता था, और जानवरों की लीद खाता था और इसी हालत में जहन्नम में पहुंच गया ।      

आग का शोला

सदी कहते हैं: के कर्बला में एक शख्स ने मेरी दावत की और इस दावत में और भी लोग शरीक थे आपस में गुफ्तुगू कर ने लगे की जो भी आले रसूल का खून बहाने में शरीक था, ज़िल्लत की मोत मारा, मेज़बान ने कहा : ये बात गलत है एक तो में ही ज़िंदा सलामत मौजूद हूँ हांलां के में भी यज़ीदी लश्कर में था और मेने भी अहले बैते अत हार ओर उनके साथियों का मुकाबला किया था, उस वक़्त रात का पिछला पहर था, ये शख्स चिराग की बत्ती दुरुस्त करने लगा अभी चिराग तक हाथ भी नहीं गया था की चिराग से आग का एक शोला भड़का और उस के पूरे जिस्म को कोयला बना दिया । 

खूली बिन यज़ीद को जला दिया गया

ये वो ज़ालिम इंसान है: जिस ने हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के सर मुबारक को जिसमे पाक से जुदा किया था और नेज़े पे लटकाया था जब ये गिरफ्तार हो कर सामने लाया गया तो इसे देखते ही मुख्तार गुस्से से कांपने लगा और हुक्म दिया के इसे फ़ौरन इस के हाथ पैर काट दो दुनिया इस दुश्मने अहले बैत का इबरतनाक तमाशा जी भरके देखले चुनांचे खूली को उसी वक़्त ज़िल्लत व रुस्वाई के साथ क़त्ल कर के उस की लाश को जला कर ख़ाक कर दिया गया । 

इब्ने ज़ियाद को सज़ा

ये वो बद बख्त बद किरदार शख्स है जिस के तरतीब करदा पिरोगराम के मुताबिक़ मैदाने कर्बला में ज़ुल्मो सितम का बाजार गरम किया गया था, कूफ़ा शहर से अपनी जान बचा कर मूसल की तरफ जा रहा था, इस के साथ बीस हज़ार का लश्कर भी था इब्राहिम इब्ने मालिक ने इसे मूसल पहुंचने से पहले ही रास्ते में रोक लिया चूँकि शाम हो चुकी थी इस लिए रात में जंग मुल्तवी कर दी गई सुबह को जंग शुरू हुई अल्लाह पाक की रज़ा हासिल करने के लिए इब्राहिम के सिपाही इस कदर बे बाक और निडर हो कर लड़ रहे थे के शामियों की एक भी न चली सुबह से शाम हो चुकी थी के इब्राहिम के फौज के एक सिपाही ने आगे बढ़ कर इब्ने ज़ियाद के सीने पर बरछी का ऐसा वार किया के इब्ने ज़ियाद घोड़े की पुश्त पे उल्टा झुक गया इससे पहले के शमी इस को बचाते फ़ौरन अपनी तलवार से ऐसा वार किया की कंधे से ले कर कमर तक जिस्म के दो टुकड़े हो गए, इब्ने ज़ियाद का क़त्ल होना था की शमी फौज भाग खड़ी हुई, इब्राहिम ने इब्ने ज़ियाद का सर काट के मुख़्तार के पास कूफ़ा भेज दिया, 

तिर्मिज़ी शरीफ में है की जिस वक़्त इब्ने ज़ियाद और उस के साथियों के सरों को कूफ़ा के दारुल इमारा में मुख्तार के सामने रखा गया तो काले रंग का एक सांप बहुत बड़ा नमूदार हुआ, जो तमाम सरों पर से घूमता हुआ इब्ने ज़ियाद के सर के करीब आया और उस की नाक् के एक सुराख से अंदर घुसा और दुसरे सुराख़ से थोड़ी देर बाद बाहर निकल आया इसी तरह सात बार वो सांप गया और फिर गाइब हो गया । 

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु का सरे अनवर कहाँ मदफ़ून है?

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के मद्फ़न यानि दफ़न होने की जगह के बारे में इख्तिलाफ है, “तबक़ात इब्ने साअद” में हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के “सरे अनवर” को जन्नतुल बाकि शरीफ में हज़रते सय्यदह फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा के पहलू बराबर में दफ़न किया गया, 

बाज़ का कहना है कर्बला में “सरे अनवर” को जिसमे मुबारक से मिला कर दफ़न किया गया, “तज़किरातुल ख्वास” । 

बाज़ कहते हैं की यज़ीद ने हुक्म दिया था के हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के “सरे अनवर” को शहरों में घुमाओ, घुमाने वाले जब अस्क़लान पर फरंगियों यानि योरपीन का ग़लबा हुआ तो तलाए बिन ज़ुर्रैक जिस को सालेह कहते हैं, ने तीस हज़ार दीनार दे कर फिरंगियों से “सरे अनवर” लेने की इजाज़त हासिल की और मआ फौज व खुद्दाम नग्गे पाऊँ वहां से 8, जमादिउल आखिर 548, हिजरी बरोज़ इतवार मिस्र में लाया । उस वक़्त भी “सरे अनवर” का खून ताज़ा था और उससे मुश्क की खुश बू आती थी, फिर उस ने सब्ज़ यानि हरे रंग के रेशम की थैली में कुर्सी पे रख कर इस के हम वज़न मुश्क व अम्बर खुशबू इस के नीचे इर्द गिर्द रखवा कर इस पे मशहदे हुसैनी, जो काहिरा मिस्र में खान खलीली के करीब मशहूर है । अल बत्ता ये जो कहा गया है की “सरे मुबारक” अस्क़लान, या काहिरा मिस्र, में दफ़न है, हज़रत अल्लामा कुरतबी रहमतुल्लाह अलैह वग़ैरान ने इस का इंकार किया है । 

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के सरे मुबारक की ज़ियारत

हज़रते सय्यदना शैख़ अबुल फतह बिन अबू बक्र बिन अहमद शफाई खल्वती रहमतुल्लाह अलैह अपने रिसाले “नुरुल ऐन” में नकल फरमाते हैं : शैखुल इस्लाम शमशुद्दीन लकानी रहमतुल्लाह अलैह जो के अपने वक़्त के शैख़ुश शीयूख मालकी थे, हमेशा काहिरा मिस्र में खलीली के करीब मशहद मुबारक में “सरे मुबारक” की ज़ियारत को हाज़िर होते और फरमाते की हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु का “सरे मुबारक” इसी मक़ाम पर है । 

हज़रते सय्यदना अब्दुल वहाब शारानी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, की एक बार में और हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन बिन जलबि हनफ़ी रहमतुल्लाह अलैह ने मशहद्दे हुसैनी, की ज़ियारत की, उन्हें शुबा हो रहा था के “सरे अनवर” इस मकाम पर है या नहीं? अचानक मुझ को नींद आ गई, में ने ख्वाब में देखा की एक शख्स बा सूरते नकीब “सरे अनवर” के पास से निकला और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुजरे मुबारक में हाज़िर हुआ और अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अहमद बिन जलबि और अब्दुल वहाब ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! के शहज़ादे हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के “सरे अनवर के मद्फ़न” की ज़ियारत की है । आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ने फ़रमाया : ऐ अल्लाह इन दोनों की ज़ियारत को क़बूल फरमा और दोनों को बख्श दे, उस दिन से हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन बिन जलबि हनफ़ी रहमतुल्लाह अलैह ने मरते दम तक “सरे अनवर” के मद्फ़न यानि दफ़न होने वाली जगह की ज़ियारत नहीं छोड़ी, और ये फ़रमाया करते थे : मुझे यकीन हो गया हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु का “सरे अनवर” यहीं काहिरा मिस्र में खान खलीली के करीब में ही तशरीफ़ फरमा है ।    (लता इफुल मिनन)

सरे अनवर से सलाम का जवाब

हज़रते सय्यदना शैख़ अबुल हसन तिमार रहमतुल्लाह अलैह “सरे अनवर” की ज़ियारत के लिए जब मशहद मुबारक के पास हाज़िर होते तो अर्ज़ करते : अस्सलामु अलैकुम और उस का जवाब सुनते व अलैकु मुस्सलाम या अबल हसन । एक दिन सलाम का जवाब न मिला, हैरान हुए और ज़ियारत कर के वापस आ गए दुसरे रोज़ फिर हाज़िर हो कर सलाम किया तो जवाब आया, अर्ज़ की, या सय्यदी ! कल जवाब से मुशर्रफ न हुआ, क्या वजह थी? फ़रमाया ऐ अबुल हसन ! कल इस वक़्त में अपने नाना जान रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! से बातों में मशगूल था ,

हज़रत शैख़ करीमुद्दीन खल्वती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं की में ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इजाज़त से इस मकाम की ज़ियारत की है। 

सरे अनवर की अजीब करामत

मन्क़ूल है : मिस्र के सुल्तान “मलिक नासिर” को एक शख्स के मुतअल्लिक़ इत्तिला दी गई के ये शख्स जानता है की इस महल में खज़ाना कहाँ दफन है मगर बताता नहीं, मुतवल्ली ने उस को पकड़ा और उस के सर पर खनाफिस यानि गुबरीले लगाए और इस पर किर मिज़ यानि एक तरह के रेशम के कीड़े डाल कर बाँध दिया, ये वो खौफनाक तकलीफ है के इस को एक मिंट भी इंसान बर्दाश्त नहीं कर सकता, इस का दिगाम फटने लगता है और वो फ़ौरन राज़ उगल देता है, अगर न बताए तो कुछ ही देर के बाद तड़प तड़प कर मर जाता है, ये सज़ा इस शख्स को कई बार दी गई मगर इस को कुछ भी असर नहीं हुआ बल्कि हर बार खनाफिस मर जाते थे, लोगों ने इस का सबब पूछा तो इस शख्स ने बताया की “जब हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु का “सरे मुबरक” यहाँ मिस्र में तशरीफ़ लाया था, अल हम्दुलिल्लाह में ने उस को अकीदत से अपने सर पे उठाया था, ये उसी की बरकत और करामत है ।  उस्ताज़े ज़मन अल्लामा हसन रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,

फूल ज़ख्मो  के  खिलाए  हैं हवाए  दोस्त ने

खून से सींचा गया है गुलिस्ताने अहले बैत  

सरे मुबारक की चमक दमक

एक रिवायत ये भी है के “सरे अनवर” यज़ीद पलीद के खज़ाना ही में रहा, जब बनू उम्मया के बादशाह सुलेमान बिन अब्दुल मलिक का दौरे हुकूमत (96, हिजरी ता 99,) आया और इन को मालूम हुआ तो उन्हों ने “सरे अनवर” की ज़ियारत सआदत हासिल की, इस वक़्त “सरे अनवर” की मुबारक हड्डियां सफ़ेद चांदी की तरह चमक रही थीं उन्हों ने खुशबू लगाई और कफ़न दे कर मुसलमानो के कब्रिस्तान में दफ़न करवा दिया । 

आले रसूल के साथ भलाई करने का बदला

हज़रते अल्लामा हजर हैतमी शाफ़ई मक्की रहमतुल्लाह अलैह रिवायत फरमाते हैं की सुलेमान बिन अब्दुल मलिक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत से ख्वाब में मुशर्रफ हुए, देखा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन के साथ लुत्फ़ो करम फरमा रहे हैं, सुबह इन्हों ने हज़रते सय्यदना शैख़ हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह से इस ख्वाब की ताबीर पूछी, उन्हों ने फ़रमाया: शायद आप ने आले रसूल के साथ कोई भलाई की है, अरज़ की: जी हाँ! में ने हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के “मुबारक सर”  को, यज़ीद के ख़ज़ाने में पाया, तो उसे कफ़न दे कर अपने रुफ्क़ा (साथियों) के साथ नमाज़ पढ़ कर उस को दफन किया है, हज़रते सय्यदना शैख़ हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: आप का यही अमल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़ुशी का सबब हुआ है ।  (अस्सवा इकुल मुहर्रिका)

मुख्तलिफ मशाहिद की वज़ाहत

खतीबे पाकिस्तान, वाइज़े शीरी बयान, हज़रत अल्लामा अल हाज हाफ़िज़ मुहम्मद शफी उकाड़वी रहमतुल्लाह अलैह अपनी तालीफ़ “शामे कर्बला” में तहरीर फरमाते हैं: “सरे अनवर” के मुतअल्लिक़ मुख्तलिफ रिवायात हैं और मुख्तलिफ मक़ामात पर मशाहिद बने हुए हैं तो ये भी हो सकता है के इन रिवायात और मशाहिद का तअल्लुक़ चंद सरों से हो क्यूंकि यज़ीद के पास तमाम शोहदाए अहले बैत अलैहिमुर रिज़वान के सर भेजे गए थे तो कोई सर कहीं और कोई कहीं दफन हुआ हो, और निस्बते हुस्ने अकीदत की बिना पर या किसी और वजह से सिर्फ हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की तरफ करदी गई हो, वल्लाहु आलम ।                   

आप के मलफ़ूज़ात शरीफ

कमाल और बुज़ुरगी को गनीमत जानो और उस के हासिल करने में जल्दी करो । 

हाजत मंदों का तुम्हारे पास आना ये इनआमाते खुदा से है, इस को गनीमत जानो और हाजत मंदों की हाजत रवाई करते रहो । 

जो सखावत करेगा वो सरदार होगा जो कंजूसी करेगा वो ज़लीलो ख्वार होगा । 

जो अपने भाई की भलाई करेगा वो कल इस का अजर पाएगा । 

दीन तुम्हारा शफीक तरीन भाई है जिस तरह शफीक भाई फायदा पहुंचने की गरज़ से पन दो नसीहत करता है उस की मुताबीअत में फायदा और मुखालिफत में नुक्सान होता है बे ऐनी ही दीन की मुताबीअत में निजात और इस की मुखालिफत में हलाकत है तो अक्ल मंद वो है की अपने शफीक भाई की शफकत को समझे और इस की पूरी पैरवी करे और मुखालिफत से दूर रहे । 

किसी ने बंदगी के बारे में सवाल किया तो आप ने इरशाद फ़रमाया: बंदगी ये है की बनदा आपे से बाहर हो जाए यानि ज़ाते खुदा में ऐसा गर्क व फना हो जाए की अपने वुजूद को दरमियान में हाइल न करे । 

आप की अज़्वाजे मुतह्हिरात (बीवियां)

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के बीवियों के नाम ये हैं :

  1. हज़रते शहर बानो लक़ब शाहे ज़मान बिन्ते यज़ दजिरद शाहे ईरान,
  2. हज़रते लैला बिन्ते मुर्राह बिन उरवाह बिन मसऊद सक़फ़ी,
  3. हज़रते किज़ामा,
  4. हज़रते रुबाब दुख्तर अमरूल केस बिन अदि कुल्लिया,
  5. हज़रते उम्मे इसहाक बिन्ते तल्हा बिन अब्दुल्लाह तस्मिया,     

आप की औलादे किराम

हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के छेह 6, शहज़ादे और साहब ज़ादियाँ थीं जिन के अस्मए गिरामी ये हैं । 

  1. हज़रते अली अकबर, 
  2. हज़रते अली औसत ,
  3. हज़रते अब्दुल्लाह,
  4. हज़रते अली असगर,
  5. हज़रते हज़रते मुहम्मद, 
  6. हज़रते जाफर,
  7. हज़रते ज़ैनब, 
  8. हज़रते सकीना,
  9. हज़रते फातिमा रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन । 

हज़रते इमाम ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु से आप की नस्ल चली बाकी जितने शहज़ादे थे वो तमाम के तमाम शहादत और तबई मोत से हयाते पिदरी ही में विसाल फरमा गए थे ।  

तज्हीज़ो तकफीन

सादाते किराम का लुटा हुआ काफिला दमिश्क से रवाना हो कर जब 20, सफारुल मुज़फ्फर को मैदाने कर्बला में पंहुचा तो देखा के लाशाहाए शुहदा किराम भी वैसे ही बे गोर व कफ़न पड़ी हैं ज़ख्मो से इसी तरह ताज़ा खून जारी है अगरचे गर्मी की शिद्दत थी लेकिन ज़रा भी फर्क न आया था, हज़रते इमाम ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु ने यहाँ आ कर क़याम फ़रमाया और शोहदाए किराम के सरों को उन के अजसामे मुक़द्दसा के साथ दफ़न किया ।       

            “अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो” 

रेफरेन्स हवाला                      

तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल, मिरातुल असरार, शजराए तय्यबा नुरुल अबसार, शवाहिदुंन नुबुव्वत, ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल, आइनए क़यामत, सीरते इमामे हुसैन, हज़रते इमामे हुसैन के सो 100, किस्से, हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन के सो 100, वाक़िआत, शहादते हुसैन इमामे हुसैन, सिर्रुस शहादातैन,             

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