हज़रते सय्यदना इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 1)

सिद्क़ सादिक का तसद्दुक सादिकुल इस्लाम कर 

बे  गज़ब  राज़ी  हो  काज़िम  और  रज़ा के वास्ते

आप की विलादत बा सआदत

आप की पैदाइश 17, रबीउल अव्वल बरोज़ पीर 80, या 83, हिजरी को मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में हुई, और मदीना शरीफ मुल्के सऊदी अरब में है । 

आप का इस्म मुबरक कुन्नियत व लक़ब

आप का नाम: जाफर बिन मुहम्मद” कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह” अबू इस्माईल” और लक़ब सादिक, फ़ाज़िल, और ताहिर, है । 

हमे “अबू बक्र सिद्दीक” ने दो बार पैदा किया

वालिदा मुहतरमा आप की वालिदा मुहतरमा का नाम “उम्मे फरवाह” है, जो बेटी हैं हज़रते कासिम की, और हज़रते कासिम पोते हैं हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के, और हज़रते कासिम रदियल्लाहु अन्हु की वालिदा “अस्मा” हैं, आप बेटी हैं हज़रते अब्दुर रहमान बिन अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की, इसी वजह से हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु फखरिया फ़रमाया करते थे की “हमे अबू बक्र ने दो बार पैदा किया” । 

आप का हुलिया शरीफ

आप बड़े हसीनो जमील और निहायत शकील खूब सूरत थे, क़द मुबारक मोज़ों रंग गेहूं जैसा था, बाकी सूरतो सीरत में अपने आबाओ अजदाद के मिस्ल थे । 

आप के फ़ज़ाइलो कमालात व खिलाफत

“आप सिलसिलए आलिया क़ादिरिया रज़विया के छटे 6, इमाम व शैख़े तरीकत हैं” और आप हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु के बड़े साब ज़ादे हैं, आप के फ़ज़ाइल व मनाक़िब बे शुमार हैं, आप को अगर मिल्लते नबवी का सुल्तान, और दीने मुस्तफा का बुरहान, कहें तो बिलकुल ठीक है, आप वक़्त के इमाम, अहले ज़ोक के पेशरू साहिबाने इश्को मुहब्बत के पेशवा थे, आबिदों के मुकद्दम और ज़ाहिदों के मुकर्रम, थे, आप ने तरीकत की बे शुमार बातें बयान की हैं, और अक्सर रिवायात आप से मरवी हैं, आप को हर इल्मो इशारत में बे हद कमाल का दर्जा हासिल था और आप बुर्ग ज़ीदाह जुमला मशाइखे किराम थे सब का आप के ऊपर एतिमाद था और आप को पेशवाए मुतलक़ जानते थे,

हाफ़िज़ अबू नुऐम अस्फहानी ख़लीफ़तुल अबरार, में  उमर बिन मिक़्दाम से रिवायत करते हैं के वो फ़रमाया करते थे, के जब में हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु को देखता था तो मुझे ये ख्याल होता था की ये अम्बियाए किराम की नस्ल से हैं, 

“तब्कातुल अबरार” में है के आप ने अपने वालिद माजिद और ज़ुहरी और नाफ़े से और इब्ने मुकन्दिर वगैरा से हदीसें ली हैं, और सुफियान सोरी, इब्ने उईना, शोआबा, याहया अल कत्तान, हज़रत इमाम मालिक और आप के साहब ज़ादे हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु ने हदीस रिवायत की है और “सवाइके मुहर्रिका” में हज़रते अल्लामा हजर हैतमि शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं के अकाबिर सरदाराने अइम्मा में से याहया बिन सईद, इब्ने जरीह, व इमाम मालिक, इब्ने अनस, व इमाम सुफियान सोरी, व सुफियान बिन उईना, व इमामे आज़म अबू हनीफा, व अबू अय्यूब सजिस्तानी, ने आप से हदीसों को लिया है और अबू कासिम कहते हैं के हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु ऐसे “सिका” हैं (सिका उस आदमी को कहते हैं जिस के कौल व फेल पर एतिमाद किया जाए, सच्चा) के आप जैसे की निस्बत को हरगिज़ पूछा नहीं जाता ।

आप की आदात व सिफ़ात

आप इंतिहाई बुलंद मकाम और नेक खसलत थे और सिफ़ात ज़ाहिरी से आरास्ता और रोशनीए बातिन से पैरास्ता थे गरीबो फ़क़ीरों मसाकीन के साथ बड़ी दिल जोई से पेश आते थे, 

मन्क़ूल है की : एक दिन आप अपने गुलाम के साथ बैठे हुए थे और उन से कह रहे थे के आओ इस चीज़ का अहिद करें और एक दूसरे के हाथ में हाथ दे कर वादा करें के क़यामत के रोज़ हम में से जो कोई निजात पाए वो बाकी सब की शफ़ाअत करे, उन लोगों ने कहा: ऐ इब्ने रसूल ! आप को हमारी शफ़ाअत की क्या हाजत इस लिए के आप के नाना जान तो खुद तमाम मखलूक की शफ़ाअत करने वाले हैं, तो आप ने फ़रमाया मुझे शर्म आती है के अपने अमाल के साथ क़यामत के दिन अपने नाना जान के सामने जा कर उन से आँखें चार कर सकूं,

हज़रते दाऊद ताई रहमतुल्लाह अलैह एक बार आप की खिदमत में आए और कहा: ऐ फ़रज़न्दाने रसूल ! मुझे कोई नसीहत फरमाओ क्यूंकि मेरा दिल सियाह हो गया है? तो आप ने इरशाद फ़रमाया: ऐ अबू सुलेमान ! तू खुद अपने ज़माने का “बुर्ग ज़ीदाह, ज़ाहिद” है तुझे मेरी नसीहत की क्या हाजत है? हज़रते दाऊद ताई रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया, ऐ फ़रज़न्दे रसूल ! आप को तमाम मखलूक पर बरतरी हासिल है और किसी को नसीहत करना आप पर वाजिब है, आप ने इरशाद फ़रमाया, ऐ अबू सुलेमान ! में इस बात से डरता हूँ के कयामत के दिन मेरे जद्दे मुहतरम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरा गिरिबान पकड़ कर ये पूछने लगे के तूने हक्के मुताबिअत अदा करने में कोताही क्यों की? तो में क्या जवाब दूंगा? इस लिए ये काम रिश्ता सही या आली खानदान पर मुन्हसिर नहीं बल्कि इस का तअल्लुक़ अच्छे आमाल से है जो अल्लाह की राह में किए जाएं, हज़रते दाऊद ताई रहमतुल्लाह अलैह को इस बात पे रोना आ गया और कहने लगे के या खुदा ! वो शख्स जिस की तीनत आबे नुबुव्वत से मुरक़्क़ब है वो जिस की तबीअत का खमीर बुरहान व हुज्जत से उठाया गया है जिस के जद्दे अमजद पैग़म्बरे खुदा हैं जिन की वालिदा माजिदा हज़रते बुतूल जैसी खातून हैं इस बात पर इतने फ़िक्र मंद हैं तो दाऊद की क्या मजाल जो अपने मुआमलात पर नाज़ करे । 

आप की इबादतों रियाज़त

हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु आप ज़ुहदो तक़वा शिआरी नीज़ रियाज़त व मुजाहिदात और इबादत गुज़ारी में मशहूर थे, हज़रते इमाम मालिक रहमतुल्लाह अलैह का बयान है के एक ज़माने तक में आप की खिदमत मुबारक में आता रहा, मगर में ने हमेशा आप को तीन इबादतों में से एक में मसरूफ बिज़ी पाया, या तो आप नमाज़ पढ़ते हुए मिलते, या तिलावत में मशगूल होते, या रोज़दार होते, आप बिला वुज़ू कभी हदीस शरीफ की रिवायत नहीं फरमाते थे । 

आप मुस्तजाबुद दवात थे

हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु इस दर्जा मुस्तजाबुद दवात व कसीरुल करामात थे के जब आप को किसी चीज़ की ज़रूरत महसूस होती तो आप हाथ उठा कर दुआ करते के ऐ मेरे रब ! मुझे फुलां चीज़ की हाजत है आप की दुआ खत्म होने से पहले ही वो चीज़ आप के पहलु में मौजूद हो जाती,

चुनांचे हज़रते अबुल कासिम तबरी इब्ने वहब से नकल करते हैं के में ने हज़रते लैस बिन सअद रहमतुल्लाह अलैह को फरमाते सुना के में 113, हिजरी में हज के लिए पैदल चलता हुआ मक्का शरीफ पंहुचा असर की नमाज़ के वक़्त कोहे कबीस पर पंहुचा तो वहां एक बुज़रुग को देखा के बैठे हुए दुआएं मांग रहे हैं और या रब या रब इतनी बार कहा, दम घुटने लगा फिर इसी तरह “या हइ या हइ” कहा फिर इसी तरह लगा तार “या रब्बा हू या रब्बा हू” कहा फिर इसी तरह एक सांस में “या अल्लाह या अल्लाह” कहा फिर इसी तरह “या रहमान या रहमान” फिर “या रहीम या रहीम” फिर “या अर हमर राहीमीन” “या अर हमर रहमान” कहते रहे, इस के बाद कहा, या अल्लाह मेरा अंगूर खाने को दिल चाहता है वो अता फरमा और मेरी चादिरें पुरानी हो गईं हैं मुझे नई चादिरें अता फरमा, हज़रते लैस रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के खुदा की कसम ! अभी आप की दुआ ख़त्म भी न होने पाई थी के में ने अंगूर की एक भरी टोकरी रखी देखि हालांकि वो मोसम अंगूर का न था और न ही कहीं उस का नामो निशान था और साथ में दो चादरें भी रखी हुई थीं के आज तक में ने ऐसी चादरें कहीं नहीं देखीं, इस के बाद आप अंगूर खाने के लिए बैठ गए, में ने कहा, हुज़ूर ! में भी आप का शरीक हू? फ़रमाया कैसे? में ने कहा, जब आप दुआ में मशगूल थे तो में अमीन अमीन कह रहा था, आप ने इरशाद फ़रमाया, अच्छा आगे बढ़ कर खाओ में भी आगे बढ़ कर खाने लगा वो अंगूर ऐसे उम्दा लज़ीज़ थे के में ने वैसे अंगूर कहीं नहीं खाए यहाँ तक के में सेर हो गया और टोकरी वैसी की वैसी ही भरी रही, इस के बाद मुझ से फ़रमाया, इससे ज़खीराह मत रखना और न ही इससे कुछ छुपाना फिर एक चादर भी मुझे अता फरमाने लगे, में ने कहा, मुझे इस की ज़रूरत नहीं है इस के बाद आप ने एक चादर का तहबन्द बांधा और दूसरी चादर को ओढ़ लिया और दोनों पुरानी चादरें हाथ में लिए हुए नीचे उतरे में भी आप के पीछे चलने लगा जब आप सफा व मरवाह के करीब पहुंचे तो एक साइल ने कहा: ऐ इब्ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये कपड़ा मुझे पहना दीजिए अल्लाह पाक आप को जन्नत का हुल्लाह पहनाएगा तो उन्हों ने वो दोनों चादरें उस को दे दीं में ने इस साइल के पास जा कर उससे पूछा ये कौन हैं? उस ने कहा, ये हज़रते इमाम जाफर सादिक बिन मुहम्मद रदियल्लाहु अन्हु हैं, में फिर उन को ढूंढता ताके उन से कुछ सुनू और नफ़ा हासिल करूँ मगर में उन को न पा सका । 

क़ीमती लिबास

इसी तरह एक बार का वाकिअ  है के आप को लोगों ने बहुत ही उम्दा और बेश क़ीमत लिबास ज़ेबे तन किए हुए देखा एक शख्स ने आप से मालूम किया, ऐ इब्ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इतना क़ीमती लिबास अहले बैते किराम को ज़ेब नहीं? ये सवाल सुन कर आप ने इस का हाथ पकड़ कर आस्तीन के अंदर खींच कर दिखाया के देखो ये क्या है? उस ने आप को अंदर टाट जैसा खुर दरा लिबास पहने हुए देख तो आप ने इरशाद फ़रमाया, ये अंदर वाला खालिक के लिए है और ऊपर वाला उम्दा लिबास मखलूक के वास्ते । 

आप का ईसार व क़ुरबानी       

हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु खानंदाने नुबुव्वत के चश्मों चिराग थे, आप के अख़लाके करीमाना व ईसार व कुर्बानी के बे शुमार वाक़िआत सेर व तारीख में भरे पड़े हैं सिर्फ एक वाकिअ से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं के रब्बे काइनात ने आप को कैसा ईसार व कुर्बानी का पैकर बनाया था, 

वाक़िआ ये है की एक शख्स की दीनारों की थैली गुम हो गई इस नादान ने आप को पकड़ कर कहा, मेरी थैली आप ने ली है? इस बेखबर को आप ने पहचाना नहीं और बिला वजह इलज़ाम लगा दिया, आप ने फ़रमाया : बताओ तुम्हारी थैली में कितनी रकम थी? इस ने कहा, थैली में एक हज़ार दीनार थे, आप इस को अपने दौलत कदे पर ले गए और एक हज़ार दीनार इस को अता फरमाए, दूसरे दिन इस की गुमशुदाह थैली मिल गई तो दौड़ा हुआ आप की बारगाह में आया और माज़िरत करते हुए वो हज़ार दीनार वापस करने लगा आप ने इरशाद फ़रमाया: ये माल तुम्हारा हो गया इस लिए के हम लोग जिस चीज़ को देते हैं उस को फिर वापस नहीं लेते, इस के बाद इस ने लोगों से मालूम किया के आप कौन हैं? लोगों ने बताया के ये “हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु” हैं आप की ज़ात से जब वो शख्स वाकिफ हुआ तो बड़ा ही नादिम शर्मिंदाह हुआ ।     (तज़किरातुल औलिया,

हिकायत

अहमद बिन उमर बिन मिक़्दाम राज़ी कहते हैं के एक मख्खी मंसूर के चेहरे पर बैठी मंसूर ने मख्खी को उड़ाया मगर फिर वो दोबारा आ कर बैठ गई यहाँ तक के वो तंग आ गया उस वक़्त हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु मंसूर के पास मौजूद थे, मंसूर ने आप से दरयाफ्त किया: ऐ अब्बा अब्दुल्लाह ! अल्लाह पाक ने मख्खी को क्यों पैदा फ़रमाया? आप ने इरशाद फ़रमाया: इस लिए के जाबिर व ज़ालिम को ज़लील करे इस जवाब को सुन कर मंसूर चुप हो गया । 

दहरीयों से आप का मुनाज़िराह

हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु फलसफा इलहाद व दहरीयत के तहफ़्फ़ुज़ की खातिर ज़बान से जिहाद में मसरूफ रहते थे और अपने जद्दे अकरम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीन की तब्लीग व इशाअत में अपने इल्मुल कलाम से जो कारनामे अंजाम दिए हैं उन में से ज़ैल में कुछ मुकालमे पेश हैं,

आप की खिदमत में मिस्र का रहने वाला एक दहरीया हाज़िर हुआ, आप उन दिनों मक्का शरीफ में तशरीफ़ फरमा थे आप ने उससे नाम और कुन्नियत दरयाफ्त फ़रमाई तो उस ने जवाब दिया: मेरा नाम अब्दुल मलिक और कुन्नियत अब्दुल्लाह है, ये सुनकर आप ने फ़रमाया ये “मलिक” जिस का तू अब्द और बंदा है मुलूके आसमान से है या मुलूके ज़मीन से और वो खुदा जिस का बंदा तेरा बेटा है खुदाए आसमान से है या खुदाए ज़मीन से, दहरीये को कुछ जवान न आया, तो आप ने फ़रमाया: क्या तू कभी ज़मीन के नीचे गया? उस ने जवाब दिया नहीं, फ़रमाया जनता है इस के नीचे क्या है? जवाब दिया नहीं, मगर गुमान में है के कुछ न होगा, फ़रमाया के गुमान का काम नहीं यहाँ यकीन दरकार है, अच्छा क्या तू कभी आसामन पे चढ़ा? जवाब दिया नहीं, जनता है वहां क्या है? जवाब दिया नहीं, कभी मशरिको मगरिब की भी सेर की और इन की मदद से आगे का कुछ हाल भी तुझे मालूम है जवाब दिया नहीं? हर बात का सिर्फ यही जवाब था, 

तअज्जुब है! तुझे ज़ेरे ज़मीन व बालाए आसान का हाल तो मालूम नहीं और बावजूद इस जिहालत के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के वुजूद से इंकार करता है, ऐ मर्दे जाहिल नादान को दाना पर कोई हुज्जत नहीं तू देखता है की चाँद, सूरज, रात, दिन, एक तरीके पर जारी हैं वो यकीनन किसी ज़ात के ताबे फरमान हैं, इस लिए तू सर मुताजा वुज़ नहीं कर सकते, अगर इन के बस में होता तो एक बार भी जा कर वापस न आते और अगर वो पाबंद और मजबूर न होते तो क्यों न रात की जगह दिन और दिन की जगह रात हो जाती तो इस बुलंद आसामन और पस्त ज़मीन पर गौर नहीं करता के क्यों आसमान ज़मीन पर आ नहीं जाता और क्यों ज़मीन इस के नीचे दब नहीं जाती? आखिर किस ने इसे थाम रखा है और जिस ने इसे थाम रखा है वही हमारा क़ादिरे मुतलक़ है, वही हमारा और उन का खुदा है,

आप के इस कलामे हक नुमा में न जाने कैसी गज़ब की तासीर थी के वो “दहरीया” क़ाइल हो कर अल्लाह पाक पर ईमान ले आया, जअद इब्ने दिरहम (जो उस वक़्त दहरीयों का इमाम समझा जाता था) ने कुछ मिटटी और पानी को एक शीशी में रख कर छोड़ दिया कुछ अरसे के बाद इस शीशी में कीड़े पैदा हो गए जिस को देख कर उस ने दावा ये किया के में ने इस को पैदा किया है और में इस का खालिक हूँ, जब इस दहरीये की जिहालत की खबर हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु को लगी तो आप ने इस दहरीये को बुलाया और इरशाद फ़रमाया, अगर तू इन का खालिक है तो बता तेरे पैदा किए हुए ये कीड़े कितने हैं, और फिर इन में नर कितने, और मादा कितने हैं, और जो इन में से एक सिम्त को जा रहे हैं उन्हें हुक्म दे की वो दूसरी जानिब पलट जाएं, आप का ये कलाम सुन कर वो दंग रह गया, और कुछ जवाब न दे सका और नादिम हो कर वापस चला गया ।

दस हज़ार दिरहम

एक शख्स आप को दस हज़ार दिरहम दे कर हज को गया और कहा, मेरे वास्ते एक हवेली खरीद कर रखना, आप ने वो तमाम दिरहम अल्लाह के रस्ते में सर्फ़ (खर्च करना) कर दिए, जब वो हज से वापस आया और हाल मालूम किया तो आप ने फ़रमाया, मकान में ने तेरे वास्ते खरीद रखा है और उस का ये किबाला है इस किबाला में लिखा था के एक दिवार इस की मुल्हिक है हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मकान से और दूसरी दीवार मुल्हिक है मौलाए काइनात शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु के मकान से और तीसरी दिवार इस की हज़रते इमामे हसन रदियल्लाहु अन्हु के मकान से मिली है और चौथी दिवार इस की हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के मकान से मिली है, इस शख्स ने किबाला (दस्तावेज़, बैनामा) को लिया और अपने वारीसीन से वसीयत ,की ये किबाला मेरी कब्र में रख देना, इस के इन्तिकाल के बाद लोगों ने देखा की हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु का ये किबाला क़ब्र पे रखा है और इस की पुश्त पे लिखा है की वफ़ा की हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु ने । 

हज़रते तैफ़ूर ईसा बिन बायज़ीद बस्तामी रहीमहुल्लाह

हज़रते सय्यदना शैख़ बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में सक़्क़ाई (पानी का काम) करते थे एक दिन आप ने नज़रे शफ़क़त से तवज्जुह फ़रमाई और आप के फैज़े सुहबत से रोशन ज़मीर सुफिए बा कमाल औलिआए किराम से हो गए । 

हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा नुमान इब्ने साबित रदियल्लाहु अन्हु आप की खिदमत में

हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु से इक्तिसाबे फैज़ फ़रमाया है, चुनांचे रिवायत है के एक मर्तबा आप ने हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु से पूछा अक्ल मंद कौन है? हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: जो ख़ैर व शर में तामीज़ कर सके, हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: ये तामीज़ चौपायो (जानवर, मवेशी) में भी है की जो इस को मारता या प्यार करता है उस को खूब पहचानता हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: फिर हज़रते आप इरशाद फरमाएं के आप के नज़दीक आकिल कौन है? जो दो खेरों और दो शररों में तामीज़ करे ताके दो ख़ैर में से बेहतरीन ख़ैर को इख़्तियार करे और दो शररों में से बद्द्तरीन शर को दूर करे,

और दूसरा वाकिअ “सदरुल असदाफ” में है के आप ने हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया: मुझ को ये बात मालूम हुई है के तुम दीन में कयास करते हो और सब से पहले जिस ने क़यास किया वो इब्लीस था, हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: में उस में कयास नहीं करता जिस में कोई नस नहीं पाता ।                                       

रेफरेन्स हवाला                       

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(6) बुज़ुरगों के अक़ीदे, 
(7) तज़किरातुल औलिया,  

  

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