हज़रते सय्यदना इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 2)

सिद्क़ सादिक का तसद्दुक सादिकुल इस्लाम कर 

बे  गज़ब  राज़ी  हो  काज़िम  और  रज़ा के वास्ते 

आप का गोशा नशीनी इख़्तियार करना

नकल है के एक मर्तबा आप गोशा नशीन हो गए और कुछ दिनों तक बाहर तशरीफ़ न लाए तो हज़रते सुफियान सौरी रहमतुल्लाह अलैह आप की बारगाह में पहुंचे और अर्ज़ की ऐ इब्ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! लोग आप के इरशादाते क़ुदसिया से महरूम हो गए हैं आप ने गोशा नशीनी इख़्तियार कर ली है, तो आप ने जवाब दिया के अब मेरा सीना ऐसा नहीं है और दो शेर अपने हाल पर पढ़े,

वफ़ा मिस्ल जाने वाले के जाती रही, और लोग अपने ख्यालात व हाजात में महो हैं, एक दूसरे के साथ तो मुहब्बत का इज़हार करता है, और उनके क़ुलूब बुराईयों से भरे हुए हैं, 

मज़्कूरहा बाला अशआर से हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु की अदबीयत व शेरीयत का भर पूर पता चलता है और आप के कमालात व आप की इल्मी खिदमात की मुकम्मल निशानदही आप की तसानीफ़ से भी मिलती है लाखों इंसान आप के दस्ते हक परस्त पर ताइब हो कर दीने मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर चलने लगे और बेशुमार अफ़राद आप से इक्तिसाबे फैज़ पा कर आलम में फ़ैल गए और जिस को जिस फन में नवाज़ दिया उस मैदान के इमाम व शैख़े तरीकत बन कर नूर का मीनार साबित हुए । 

आप के मलफ़ूज़ात मुबारक

हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु से मलफ़ूज़ात चंद बातौरे तबर्रुक पेश करते हैं जो मुख्तलिफ किताबों में बिखरे हुए हैं । 

आप अक्सर ये दुआ फ़रमाया करते थे: ऐ अल्लाह ! मुझे इज़्ज़त अता फरमा अपनी फरमा बरदारी के साथ और मुझे रुस्वा न कर मुसीबत के साथ ऐ अल्लाह ! जिस पर तूने रिज़्क़ तंग फरमा दिया है मुझे इस की गमख्वारी की तौफीक अता फरमा अपने उस फैले ख़ास से जिस को तूने मुझ पे वसी फ़रमाया है,

आप ने फ़रमाया: कोई गोशा परहेज़गारी से अफ़ज़ल नहीं और ख़ामोशी से अहसन कोई चीज़ नहीं और जिहालत से ज़ियादा मुज़िर कोई दुश्मन नहीं और झूट से ज़ियादा बुरी कोई चीज़ नहीं,

आप फरमाते हैं: जिसे अल्लाह पाक की मारफअत हासिल हो गई वो मासिवा अल्लाह से किनारा कश हो गया,

आप फरमाते हैं: बगैर तौबा के इबादत सही नहीं इस लिए के अल्लाह पाक ने इबादत पर तौबा को मुकद्दम रखा है चुनांचे अल्लाह पाक फरमाता है तौबा करने वाले इबादत बजा लाने वाले, 

आप फरमाते हैं: जो शख्स हर कसो नाकस के साथ उठता बैठता है वो सलामत नहीं रहता,

जो बुरे रास्ते पर जाता है उसे तुहमत मिलती है,

जो अपनी ज़बान को काबू में नहीं रखता वो पशेमान होता है,

पांच आदमियों की सुहबत से दूर रहना चाहिए, (1) झूठे से जो हमेशा तुम्हे धोके में रखेगा, (2) अहमक से जो तुम्हे फायदा पहुंचाने की कोशिश करेगा मगर नुकसान पहुंचाएगा (3) बख़ील कंजूस जो अपने थोड़े नफा की खातिर तुम्हारा बहुत बड़ा नुकसान कर देगा (4) बुज़दिल जो आड़े वक़्त पर तुम्हे हलाकत में छोड़ जाएगा (5) बद अमल जो तुम्हे एक निवाले पर बेच डालेगा और इससे कम की उम्मीद रखेगा । 

तसानीफ़

हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु साहिबे तसानीफ़ बुज़रुग हैं आप हदीस व तफ़्सीर तंज़ील में फाइक और बे नज़ीर थे जैसा के हज़रते इमाम अल्लामा कमालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह “हयातुल हैवान” में लिखते हैं के इब्ने कतीबा ने किताब “आदाबुल कातिब” में फ़रमाया है के हज़रत ने एक किताब जिस का नाम “जफ़र” अहले नबैत के लिए तहरीर फ़रमाई इस की ख़ुसूसीयत ये है की कयामत तक के जुमला हाजात जो पेश होंगे तमाम को आप ने तहरीर फ़रमाया । 

  “आप की चंद करामात”

तेरी शकल कुत्ते की हो जाएगी

बयान किया जाता है की एक मर्तबा आप ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन को तशरीफ़ ले जा रहे थे रास्ते में एक खजूर के खुश्क पेड़ के पास आराम फ़रमाया और चाशत के वक़्त इस दरख़्त से आप ने खजूरें तलब फ़रमाई, फ़ौरन पेड़ सर सब्ज़ व शादाब हो गया और साथ ही ताज़ा खजूर भी पैदा हो गईं, एक आराबी ने जब इस अज़ीम करामत को देखा तो वो दंग हो गया और कहने लगा के ये जादू है आप ने फ़रमाया ये जादू नहीं, इस लिए के अल्लाह पाक ने मुझे वो कुव्वत अता फ़रमाई है अगर में दुआ करूँ तो ठीक अभी तेरी शक्ल कुत्ते की शकल जैसी हो जाएगी सिर्फ इतनाही कहा वो कुत्ते की शकल में तब्दील हो गया, आराबी ने ये कैफियत देखि तो बहुत परेशान हुआ और निदामत व शर्मिंदगी से माफ़ी का तलब गार हुआ तो आप ने आराबी पे रहम फ़रमाया और फिर दुआ फरमा दी तो वो अपनी असली हालत पर आ गया । 

परिंदों को ज़िंदा करना

इसी तरह एक शख्स ने आप की बारगाह में मशहूर वाक़िआ हज़रते इब्राहिम खलीलुल्लाह अलैहिस्सलाम का बयान किया के हज़रते इब्राहिम  अलैहिस्सलाम ने चार परिंदों को ज़िबाह किया और उस का गोश्त रेज़ा रेज़ा कर के आपस में मिला दिया और फिर ज़िंदा फ़रमाया तो वो तमाम ज़िंदा हो कर अपने अपने सरों से लग गए, इस सवाल पर आप ने इरशाद फ़रमाया: क्या तुम देखना चाहते हो? उसने जवाब दिया हाँ: ऐ इब्ने रसूल, एक तोता, कव्वा, मोर, बाज़, और एक कबूतर को हाज़िर करो आप ने ज़िबह फ़रमाया और रेज़ा रेज़ा कर के सब गोश्त को आपस में मिला दिया, फिर आप ने यके बाद दीगरे परिंदों को आवाज़ दी सब के सब ज़िंदा हो गए । 

खलीफा मंसूर पर आप की हैबत

हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु पर भी इम्तिहान व आज़माइश की बे शुमार घड़ियाँ आईं मगर तमाम दुश्मन व मुखालिफ आप की खुदा दाद ताकत के आगे मबहूत (बदहवास, परेशान) हो कर रह जाते उन्ही में से एक खलीफा मंसूर भी था जिस की ख़बासत का वाक़िआ इस तरह है खलीफा मंसूर ने एक रोज़ अपने वज़ीर से कहा: हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु को मेरे दरबार में हाज़िर करो ताके में उनका क़त्ल करूँ? इस पर वज़ीर ने कहा: एक सय्यद गोशा नशीन को क़त्ल करना मुनासिब नहीं, खलीफा वज़ीर की बात सुनकर बहुत गुस्सा हुआ और कहा: जो में हुक्म देता हूँ उस पे अमल करो नाचार वज़ीर हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु को बुलाने के लिए रवाना हो गया, इधर खलीफा ने हुक्म दिया के जब हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाएं तो में उस वक़्त अपने सर से ताज उतार दूंगा और ये अमल देखते ही उसी दम उन को क़त्ल कर देना, चुनांचे हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाए, और दरबार में दाखिल हुए, खलीफा मंसूर की नज़र जब आप पर पड़ी तो फ़ौरन ही अपनी जगह से उठा और आप का इस्तकबाल किया और सदर मकाम पर आप को बिठाया और खुद अदब के साथ आप के सामने दो ज़ानों बैठ गया, ये कैफियत देख कर उस के मुकर्रर किए हुए गुलामो को बड़ा तअज्जुब हुआ के प्रोग्राम तो कुछ और ही था और अमल कुछ और है? मंसूर ने हज़रते इमाम से फ़रमाया: आप को अगर कोई हाजत हो तो बयान फरमाएं गुलाम आप की हर हाजत को पूरी करने को तय्यार है, आप ने फ़रमाया मेरी हाजत तुम से यही है के आइंदा फिर कभी मुझे अपने हुज़ूर में तलब न करना ताके में खुदा की याद में मशगूल रहूँ, मंसूर ने जब हज़रते इमाम का जब ये जुमला सुना तो फ़ौरन आप को बड़ी इज़्ज़त एहतिराम से रुखसत किया और आप के रोबो दबदबे से उस के पूरे बदन में कपकपी तारी थी और इख़्तिलाजी कैफियत पाई जा रही थी हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु के वापस जाने के बाद वज़ीर ने इस तब्दीलिए हाल की वजह पूछी तो मंसूर ने कहा: जब हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु दरवाज़े से दरबार में दाखिल हुए तो में ने आप के साथ एक बड़ा अज़्दहा देखा जिस का एक लब मेरे तख्त के ऊपर और एक नीचे था और वो ज़बाने हाल से मुझ से कह रहा था के अगर तुम ने इमाम को सताया तो तुम्हे तख़्त समीत निगल जाऊँगा चुनांचे में ने इस अज़्दहा सांप के खौफ ही से जो कुछ किया वो तुम ने देखा ।     (तज़किरातुल औलिया)   

हालते जिनाबत (नापाकी) में नहीं आना चाहिए

आरिफ़े बिल्लाह हज़रते अल्लामा नूरुद्दीन उर्फ़ “अब्दुर रहमान जामी” रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं, जनाब अबू बसीर का बयान है के में मदीना शरीफ गया, मेरे साथ एक लोंडी भी थी, मेने उस से हमबिस्तरी भी की, उस के बाद हम्माम में जाने के लिए बाहर आया में ने देखा के बहुत से लोग हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु की ज़ियारत के लिए उन के मकान पे जा रहे हैं, में भी उन के साथ हो लिया, जब हम हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु के दौलत खाने पर हाज़िर हुए तो आप की नज़र मुझ पर पड़ी, आप ने फ़रमाया ऐ अबू बसीर ! तुम्हे शायद मालूम नहीं के पैगम्बर और उन की आल व औलाद की क़याम गाहों पर हालते जिनाबत (नापाकी) में नहीं आना चाहिए, में ने कहा: ऐ इब्ने रसूल में ने लोगों को आप की तरफ आते देखा तो मुझे अंदेशा हुआ की शायद आप की ज़ियारत की दौलत नसीब न हो इस लिए में आ गया, फिर और कहा मेने कहा आइंदा ऐसा न करूंगा, उस के बाद बाहर आ गया । 

तुम्हारे दोस्त को छोड़ दिया गया

एक और साहब बयान करते हैं के मेरा एक दोस्त था जिस को खलीफा मंसूर ने कैद कर दिया था, मेरी मुलाकात हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु से हज के मोसम में मैदाने अरफ़ात में हुई, आप ने मेरे इसी दोस्त के मुतअल्लिक़ मुझ से पूछा, में ने कहा हुज़ूर ! वो वैसे ही कैद में है, आप ने दुआ की, फिर एक घंटे बाद फ़रमाया खुदा की कसम तुम्हारे दोस्त को छोड़ दिया गया है, रावी का बयान है के जब में हज से फारिग हो कर वापस आया तो अपने इस दोस्त से पूछा के तुम्हारी रिहाई किस दिन हुई? उस ने बताया के अरफ़ा के दिन असर की नमाज़ के बाद मुझे छोड़ दिया गया था । 

गुमशुदाह चादर मिल गई

और एक शख्स का बयान है के में ने मक्का शरीफ में एक चादर खरीदी और पक्का इरादा किया के वो किसी को न दूंगा ताके मोत के बाद मेरे कफ़न का काम दे, में अरफ़ात से मुज़दलफा वापस आया तो चादर गुम हो गई, मुझे बहुत दुःख हुआ जब में सुबह मुज़दलफा से मिना वापस आया तो  मस्जिदे खैफ में बैठ गया, अचानक एक शख्स हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु के पास से आ कर कहने लगा के तुझे हज़रत बुला रहे हैं, में फ़ौरन आप के पास गया और सलाम कर के आप के सामने बैठ गया, आप ने मेरी तरफ मुतवज्जेह हो कर फ़रमाया क्या तुम चाहते हो के तुम्हारी चादर मिल जाए? में ने अर्ज़ किया हाँ हुज़ूर, आप ने अपने गुलाम को आवाज़ दी जो एक चादर ले कर आ गया में ने पहचान लिया वही चादर थी, आप ने फ़रमाया इसे ले लो और अल्लाह पाक का शुक्र अदा करो । 

सबक

अबू बसीर की हालते जिनाबत यानि नापाकी को जान लेना, अरफ़ा के दिन कैदी के छोड़ दिए जाने को इसी रोज़ मैदाने अरफ़ात में बता देना, चादर किस की है? किस काम के लिए है? और चादर वाला कहाँ बैठा है? ये सब ग़ैब की बातें हैं जिन से हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु ने लोगों को आगाह खबर दार फरमा कर अपना ये अक़ीदह साबित कर दिया के अल्लाह पाक ने मुझे ग़ैब का इल्म अता फ़रमाया है । 

आप की औलादे किराम

आप की औलादे अमजाद में कुल छेह 6, शहज़ादे और एक शहज़ादी थीं जिन के अस्मा ये हैं, (1) हज़रते इस्माईल (2) मुहम्मद (3) अली (4) अब्दुल्लाह (5) इसहाक (6) मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन, साहब ज़ादी हज़रते उम्मे फरवाह जिन को इब्नुल अज़हर ने फातिमा लिखा है, और हज़रत अल्लम्ह अब्दुल करीम शहरिस्तानी ने “अल मिलल वन निहल” में सिर्फ पांच औलादें बताई हैं । 

आप के खुलफाए किराम

आप के खुलफाए किराम की दीनी खिदमात  की तारिख पढेंगें तो आप को बखूबी अंदाज़ा होगा के आप के फैज़े करम से मुनव्वर होने वाले कैसे कैसे अफ़राद हैं और हर फर्द एक आलम गीर जमात की हैसियत रखता है जिन के अस्मए गिरामी ये हैं: (1) हज़रते इमाम मूसा काज़िम (2) हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा नुमान इब्ने साबित (3) हज़रते सुल्तान तैफ़ूर ईसा बिन बायज़ीद बस्तामी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन । 

आप का विसाल

सल्तनते अब्बासिया के दूसरे खलीफा अबू जाफर मंसूर बिन अबुल अब्बास अल सफ्फाह के अहिद में बरोज़ जुमा 15, रजाबुल मुरज्जब या 24, शव्वालुल मुकर्रम 765, ईस्वी 148, हिजरी 68, साल की उमर में ज़हर से मदीना शरीफ में हुआ । 

आप का मज़ार मुबारक

आप का मज़ार शरीफ मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा के क़ब्रिस्तान जन्नतुल बाकी में आप के वालिद माजिद हज़रते इमाम बाकर रदियल्लाहु अन्हु के पहलू में है ।  

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो” 

रेफरेन्स हवाला                        

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(6) बुज़ुरगों के अक़ीदे, 
(7) तज़किरातुल औलिया,  

    

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