हज़रते सय्यदना इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 1)

सय्यदे सज्जाद के सदके में साजिद रख मुझे  

इल्मे   हक  दे  बाकिरे  इल्मे  हुदा  के  वास्ते

विलादत बा सआदत

आप मदीना शरीफ में वाकिअए कर्बला के तीन साल पहले बरोज़ जुमा बा तारीख तीन 3, सफारुल मुज़फ्फर सत्तावन 57, हिजरी में पैदा हुए । 

आप का इस्मे मुबारक व कुन्नियत

आप का नाम मुबारक “मुहम्मद” कुन्नियत “अबू जाफर व मुबारक” और लक़ब सामी, “बाकर” शाकिर” और हादी है । 

आप के असातिज़ाए किराम

आप इल्मे हदीस, में अपने वालिद माजिद सय्यदना अली बिन हुसैन, व इब्ने अब्बास, व जाबिर बिन अब्दुल्लाह, व अबू सईद खुदरी व हज़रते बीबी आइशा, व बीबी उम्मे सलमाह वगैरहा सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के महबूब तलामिज़ाह शागिर्दों में से हैं । 

आप की वालिदा माजिदा

आप की वालिदा माजिदा हज़रते बीबी फातिमा जिन को उम्मे अब्दुल्लाह भी कहते हैं दुख्तरे नेक अख्तर हज़रते इमामे हसन रदियल्लाहु अन्हु की थीं । 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बशारत

हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं की एक दिन में हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह सहाबीए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत को गया, उस वक़्त वो कपड़ा ओढ़े हुए थे, में ने सलाम किया उन्हों ने जवाब दिया फिर पूछा की तू कौन है? में ने कहा: मुहम्मद बिन अली बिन हुसैन बिन अली हूँ, तो उन्ह ने मेरे हाथ चूमे और कहा, ऐ फ़रज़न्दे रसूल ! मुबारक हो तुम को सलाम हो पैगम्बर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का में ने कहा: अस्सलाम: अली रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बाद में में ने किस्सा पूछा तो उन्ह ने बयान किया की मुझे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: तो मुलाकात करेगा मेरे एक फ़रज़न्द (बेटे) से की उस का नाम “मुहम्मद” होगा उन से मेरा सलाम कहना । 

आप को “बाकर” क्यूँ कहा जाता है?

“अस्सवा इकुल मुहर्रिका” में हज़रते अल्लामा हजर हैतमि शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं की बाकर बाक़िरूल अर्द से मुशतक है और बाक़िरूल अर्द के माना हैं: ज़मीन को फाड़कर उस की मख़्फ़ियात यानि पोशीदा छुपी हुई चीज़ों को निकाल कर ज़ाहिर करने वाला बताने वाला, तो आप ने मख़्फ़ियात कंज ख़ज़ाने मआरिफ़ व हक़ाइक़ व अश्काल व लता इफ ज़ाहिर फ़रमाया इसी वजह से आप को बाकर कहा गया । 

आप के फ़ज़ाइलो कमाल

हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु “आप सिलसिलए आलिया क़दीरिया के पांचवें इमाम” हैं, आप तरीकत में दलीले अरबाबे मुशाहिदा के बुरहान, इमाम औलादे नबी, बुर्ग ज़िदाह नस्ले अली, किताबे इलाही के बयान करते वक़्त उलूम की बारीकियां और लतीफ़ इशारात को वाज़ेह करने में मख़सूस थे, आप की करामातें मशहूर और रौशन निशानिया ता बिन्दह दलाइल से मारूफ हैं, साहिबे इरशाद का कोल है की जिस क़द्र इल्मे दीन और सुनन, इल्मे कुरआन व सेर और फुनून अदब वगैरह आप से ज़ाहिर हुए वो किसी से ज़ाहिर नहीं हुए । 

“तज़किरातुल ख्व्वास” में हज़रते क़ाज़ी अबू युसूफ रहमतुल्लाह अलैह से मन्क़ूल है की: में ने हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह से पूछा की आप ने हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु से मुलाकात की है? तो आप ने फ़रमाया, हाँ में ने मुलाकात की है, और उन से एक मसला पूछा जिस का जवाब इतना शानदार अता फ़रमाया, इससे शानदार में ने किसी से नहीं सुना न देखा । 

उल्माए अस्र ने बाज़ आयाते बय्येनात के माने व मतालिब आप से इम्तिहान्न पूछे तो आप ने ऐसे शाफी जवाब दिए की सिवाए तस्लीम के चारा न रहा, एक बार मक़ामे अरफ़ात में तीस हज़ार सवालात मुख्तलिफ मसाइल के आप से किए गए, आप ने तमाम मुश्किल मसाइल के ऐसे शाफी जवाबात इनायत फरमाए के तमाम आप के फ़ज़ाइलो कमालात के मोतरिफ हो गए, अता कहते हैं की में ने उल्माए किराम को अज़ रूए इल्म किसी के पास इस क़द्र अपने को छोटा समझते हुए नहीं देखा जैसा के रूबरू हज़रते इमाम इब्ने शहाब ज़ुहरी रहमतुल्लाह अलैह जिन्हो ने सब से पहले हदीस की तदवीन की है, आप को हदीस में “सिका” लिखते हैं, इमाम नसाई ने अहले मदीना के फुकहा व ताबईन में आप का ज़िक्र किया है, और लिखा है, “हज़रत इब्ने सअद तबकात में लिखते हैं की आप ताबईन अहले मदीना के तीसरे तबके में से हैं” और आप के वास्ते इससे बढ़ कर और क्या फ़ज़ीलत हो सकती है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस वक़्त आप की विलादत की पेंशन गोई फ़रमाई जब की आप की विलादत भी नहीं हुई थी और हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु से आप को सलाम का हुक्म फ़रमाया ।    

आप की आदात व सिफ़ात

आप बड़े आबिदो ज़ाहिद, खाशे, ख़ाज़े (आजिज़ी करने वाला फर्माबरदार) पाक तीनत और बुज़रुग नफ़्स थे अपने तमाम औकात को इबादत व इताअत इलाही से मामूर रखते थे और आप को आरिफों की सेर व मक़ामात में इस कदर रुसूख़ था की ज़बान इस की सिफ़त से क़ासिर है, आप के साहब ज़ादे हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के मेरे वालिद माजिद अक्सर आधी रात गुज़र जाने के बाद रोया करते थे और अल्लाह पाक की बारगाह में निहायत आजिज़ी से फरमाते “ऐ मेरे परवरदिगार तू ने मुझे नेक कामो का हुक्म दिया मगर में ने उस पर अमल नहीं किया और तू ने मुझे बुरे कामो से दूर रहने को फ़रमाया मगर में बाज़ न आया, पस में तेरा आजिज़ बन्दा तेरे हुज़ूर में अपने गुनाहो का इकरार करने वाला खड़ा है और कोई उज़्र नहीं रखता । 

खशीयते इलाही

आप बड़े आबिदो ज़ाहिद और इंतिहाई मुस्तजाबुद दअवात थे, अफ़लाह आप के मौला कहते हैं के हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर बिन ज़ैनुल अबिदीन रदियल्लाहु अन्हुमा एक मर्तबा हज के लिए मक्का शरीफ तशरीफ़ ले गए और में भी आप के साथ था, आप जब मस्जिदे हराम में दाखिल हुए तो बैतुल्लाह शरीफ को देखते ही इतने ज़ोर से रूए के चीखें निकलने लगीं, में ने कहा: हुज़ूर इस क़द्र ज़ोर से न चीखें क्यों की तमाम लोगों की नज़रें आप की तरफ मर्कूज़ हो गई तो आप ने फ़रमाया: तो फ़रमाया में क्यों न रोऊँ? शायद अल्लाह पाक मेरे रोने की वजह से मुझ पर रहमत की नज़र फरमाए और में कल कयामत के दिन उस के नज़दीक कामयाब हो जाऊं फिर आप ने तवाफ़ किया और मक़ामे इब्राहिम पर नमाज़ पढ़ी और जब सजदह कर के सर उठाया तो सजदे की जगह आंसुओं से भीगी हुई थी । (रोज़ुर रियाहीन, राहे अक़ीदत) 

मुनाजाते इमामे बाक़र                                    

आप के ख़ास अक़ीदत मनदो में से एक रिवायत करते हैं की जब रात का एक हिस्सा गुज़र जाता और आप अपने वज़ाइफ़ व औराद से फारिग हो जाते तो ऊंची आवाज़ में मुनाजात शुरू कर देते और कहते :

ऐ मेरे अल्लाह ! ऐ मेरे मौला ! रात आ गई और दुनिया के तमाम हुक्मरानो का तसर्रुफ़ खत्म हो गया, आसमान पर सितारे निकल आए, दुनिया महबे ख्वाब हो कर गोया न पैद हो गई, लोगों का शोरो गुल सुकूत में बदल गया, आँखें नींद से बंद होने लगीं तो लोग बनी उम्मय्या के दरवाज़ों से भागने लगे और अपनी ख्वाईशात को साथ लिए वापस हुए, लेकिन ऐ मेरे अल्लाह ! तू ज़िंदा पाइंदा है तुझे सब कुछ मालूम है, तू सब कुछ देखता है गुनूदगी और नींद तुझ पर नहीं आती और जो शख्स इन सिफ़ात के बावजूद तुझे पहचानने से क़ासिर हैं वो किसी नेमत के काबिल नहीं, ऐ वो ज़ात यकता के कोई चीज़ तुझे किसी भी काम से रोक नहीं सकती और दिन रात को तेरी बका में खलल अंदाज़ होने की मजाल नहीं, तेरी रहमत के दरवाज़े उस शख्स पर खुले हैं जो तेरे हुज़ूर में दुआ करता है और तेरी रहमत के ख़ज़ाने इस पर निछावर हैं जो तेरी हम्दो सना करे तू वो मालिकों मौला है की किसी सवाली को रद्द नहीं करता तेरी शायाने शान नहीं जो मोमिन तेरी बारगाह में दुआ के लिए हाथ उठाए दुनिया में उसे बाज़ रखने वाला कौन है? इंसान तो क्या ज़मीनो आसमान भी उसे रोकने की ताकत नहीं रखते ऐ मेरे खुदा ! जब मोत, क़ब्र और यौमे हिसाब को याद करता हूँ तो फिर ये कैसे हो सकता है की इस दुनियाए फानी को दिल की शादमानी का ज़रिया तसव्वुर करूँ अमाल नामे का तसव्वुर दुनिया की किसी भी दिलचस्पी में क्यूँकर लगने की मुहलत दे सकता है, फरिश्ता मोत को याद रखूँ तो दिल को दुनिया से किस तरह लगा सकता हूँ? पस मुझे जो कुछ मांगना है तुझी से मांगता हूँ क्यूंकि तुझे जनता हूँ और मेरा हर मतलब तुझ से वाबस्ता है क्यूंकि तेरे सिवा किसी को पुकारता नहीं हूँ और तुझ से मेरी यही इल्तिजा है की मुझे वो मोत अता कर जिस में अज़ाब न हो और हिसाब के वक़्त वो ऐश अता कर जिस में उक़ूबत व सज़ा न हो । 

आप ये सब कुछ कहते और रोते जाते थे यहाँ तक के एक रत में ने उन से कहा, ऐ सय्यद और मेरे माँ बाप के आक़ा कहाँ तक रोयेंगें और कब तक फर्याद व नाला में मसरूफ रहेंगें? जवाब में कहने लगे, ऐ दोस्त ! हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम एक बेटे के फिराक में इस क़द्र रूए के आँखों की बिनाई खो बैठे और आँखें सफ़ेद हो गईं और में तो अठ्ठारा अज़ीज़ों को खो कर के बैठा हूँ जिन में मेरे पिदरे बुज़ुर्ग वार यानि हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु और दीगर शोहदाए कर्बला शामिल हैं फिर क्यूँ कर आहो ज़ारी में तख़फ़ीफ़ करूँ । 

“आप की करामात” 

पागल व मजनूँ का इलाज

उल्माए शरीअत व इरफाने तरीक़त दोनों गिरोह का इस बात पर इत्तिफ़ाक़ है की आप औलिआए मुहद्दिसीन व आरिफीन में निहायत बा बरकत और सरापा करामत बुज़रुग हैं, चुनांचे हदीस की जिस सनद में आप का, और आप के बेटे, और आप के वालिद माजिद, का ज़िक्र है, मुहद्दिसीन का इस सनद के बारे में ये कोल है की अगर ये सनद किसी मजनू, पागल पर पढ़ कर दम की जाए तो वो शिफा पा कर साहिबे अक्लो फ़हम हो जाएगा । 

अंधे की आँखें रोशन हो गईं 

अबू बसीर का बयान है: के में ने एक रोज़ हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु से अर्ज़ किया: की आप वारिसे रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं? आप ने फ़रमाया हाँ ! में ने अर्ज़ किया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तमाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम के वारिस थे? फ़रमाया हाँ, में ने अर्ज़ क्या, आप भी वारिस तमाम उलूमे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं, फ़रमाया तहक़ीक़ हां में ऐसा हूँ, फिर में ने अर्ज़ किया, क्या आप मुर्दे को ज़िंदा बर्स वाले को अच्छा और अंधे को बीना कर सकते हैं के लोग अपने घरों में क्या खाते जमा करते हैं? फ़रमाया, हाँ अल्लाह पाक के हुक्म से हम भी कर सकते हैं, फिर फ़रमाया मेरे नज़दीक आओ (और अबू बसीर उस वक़्त नबीना थे यानि आँखों में रौशनी नहीं थी) में जब आप के करीब गया तो आप ने अपना दस्ते मुबारक मेरे चेहरे पर फेरा तो फ़ौरन में आसमान, व ज़मीन, और पहाड़, को देखने लगा यहाँ तक के मेरी आँखों में रौशनी आ गई, उस के बाद आप ने इरशाद फ़रमाया क्या तू चाहता है के इसी तरह देखता रहे और तेरा हिसाबो किताब अल्ला पाक पर रहे या तू पहले की तरह हो जाए और उस अंधे होने के बदले तुझे जन्नत मिले? में ने अर्ज़ किया में जन्नत चाहता हूँ, तो आप ने दोबारा हाथ को फेरा तो में जैसा था वैसा ही हो गया ।   

(शवाहि दुन नुबुव्वत)  

ये मकान गिरा दिया जाएगा

एक मोतबर रावी का बयान है: की हम हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु के साथ हिशाम बिन अब्दुल मलिक के घर के पास से उस वक़्त गुज़रे जब के वो उस की बुनियाद रख रहा था, आप ने फ़रमाया खुदा की कसम ये घर खराब व खस्ता हो जाएगा और लोग उस की मिटटी तक खोद कर ले जाएंगें, ये पथ्थर जिन से इस की बुनियाद रखी गई है खँडरात में तब्दील हो जाएंगें, रावी का बयान है की मुझे आप की इस बात से तअज्जुब हुआ के हिशाम के घर को कौन तबाहो बर्बाद कर सकता है, मगर जब हिशाम का इन्तिकाल हो गया तो वलीद बिन हिशाम के हुक्म पर इस मकान को गिरा दिया गया और मिटटी को इस हद तक खोदा गया की उस की बुनियाद के पथ्थर नज़र आने लगे में ने खुद अपनी आँखों से देखा यानि जैसा जैसा आप ने फ़रमाया था वैसा हुआ । 

मेरी उमर पांच साल रह गई

हज़रते सय्यदना इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की उन्होंने फ़रमाया की मेरी उमर सिर्फ पांच साल और रह गई है जब उन्हों ने वफ़ात पाई तो हमने महीना व साल गिने तो वही मुद्दत निकली जितनी के आप ने बताई थी की “मेरी उमर पांच साल रह गई” है । 

उसे सरदी लग गई है

और बुज़ुर्गों में से एक शख्स का बयान है की में मक्का शरीफ में था की मुझे हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु की ज़ियारत का शोक हुआ, में सिर्फ इसी मकसद से मदीना तय्यबा गया, जिस रात में वहां पहुंचा सख्त बारिश हुई जिस की वजह से सरदी बहुत हो गई, आधी रात गुज़र गई तब में आप के घर पंहुचा में अभी इसी फ़िक्र में था की आप का दरवाज़ह इसी वक़्त खटखटाऊ या सब्र से काम लूँ यहाँ तक के सुबह के वक़्त वो खुद ही बाहर तशरीफ़ ले आए, अचानक आप की आवाज़ सुनाई दी, आप ने फ़रमाया ऐ लोंडी फलां शख्स के लिए दरवाज़ा खोल दे, इस लिए के आज उसे सख्त सरदी लग गई है, लोंडी ने आ कर दरवाज़ह खोला और में अंदर चला गया । 

आप ने दिल की बात जान ली

एक और बुज़रुग रिवायत करते हैं के में हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु के घर गया और दरवाज़ा खटखटाया, एक लोंडी बाहर आई वो जवानी में क़दम रख रही थी यानि जवान थी, मुझे बहुत अच्छी लगी में ने उस के पिस्तानो यानि सीना को छूते हुए कहा, अपने आका से कहो फलां शख्स दरवाज़े पर हाज़िर है, अंदर से आवाज़ आई के घर में आ जाओ हम तुम्हारे इन्तिज़ार में हैं, में अंदर गया तो अर्ज़ किया हुज़ूर ! मेरा इरादा बुरा नहीं था आप ने फ़रमाया तुम सच कहते हो लेकिन कभी ये ख्याल न करना की ये दरो दिवार हमारी आँखों के सामने वैसे ही बा हैसियत हिजाब होते हैं जैसे तुम्हारी आँखों के सामने अगर ऐसा हो तो हमारे और तुम्हारे दरमियान फर्क क्या रहा आइंदा कभी ऐसी हरकत नहीं करना । 

तुझे लम्बी हुकूमत मिलेगी

हज़रते अल्लामा युसूफ बिन इस्माईल नबहानि रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं की अबू बसीर से रिवायत है वो कहते है की में हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु के साथ मस्जिदे नबवी में मौजूद था के मंसूर और दाऊद बिन सुलेमान मस्जिद शरीफ में आए अभी तक अब्बासी खानदान को हुकूमत नहीं मिली थी (जिस के खलीफा मंसूर बनने वाले थे) दाऊद हज़रते इमाम बाकर की खिदमत में हाज़िर हुआ, हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया मंसूर को शरफ़े हुज़ूर से कौन सी चीज़ माने हुई? दाऊद ने जवाब दिया वो सख्त मिजाज़ है हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु फ़रमाया लाज़िमन ये शख्स एक दिन तख्ते खिलाफत पर बैठेगा, लोगों की गर्दनो को रोंद डालेगा और मशरिको मगरिब पर छा जाएगा, इस की लम्बी हुकूमत होगी और इतना माल इकठ्ठा करेगा की इस की मिसाल न होगी । 

दाऊद ने मंसूर को हज़रत की ये पेंशन गोई जा कर बता दी, 

अब वो शरफ़े हुज़ूरी से मुशर्रफ हो कर माज़िरत करने लगा के सिर्फ आप के दबदबा और शिकवा की वजह से पहले हाज़िर नहीं हो सका, फिर दाऊद ने जो कुछ बताया था उस के मुतअल्लिक़ हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु से पूछा, आप ने फ़रमाया ये तो हो कर ही रहेगा , मंसूर ने पूछा क्या हमारी हुकूमत आप सादात की हुकूमत से पहले होगी? आप ने फ़रमाया जी हाँ ऐसा ही होगा, उस ने पूछा क्या मेरे बाद मेरा कोई लड़का भी हुक्मरां होगा? फ़रमाया जी हाँ पूछने लगा की उमवि खानदान की हुकूमत का ज़माना ज़ियादा होगा या हमारी हुकूमत का? फ़रमाया तुम्हारी हुकूमत का ज़माना ज़ियादा होगा, इस मुल्क के साथ तुम्हारे नो उम्र लड़के इस तरह खेलेंगें जैसे बच्चे गेंद से खेलते हैं, मेरे वालिद मुहतरम (हज़रते इमाम ज़ैनुल अबिदीन रदियल्लाहु अन्हु) ने मुझ से इसी तरह इरशाद फ़रमाया था । 

सबक

बहुत पहले इस बात की खबर देना के हिशाम का घर खोद कर गिरा दिया जाएगा, ये बताना के मेरी उमर सिर्फ पांच साल रह गई है, मक्का शरीफ से आने वाले को घर के अंदर से जान लेना फिर उस के बारे में ज़ियादा सरदी लगने की खबर देना और लोंडी के साथ गलत हरकत पर मकान के अंदर से जान लेना ये सब ग़ैब की बातें हैं ।

मालूम हुआ के हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु का ये अक़ीदा था मुझे ग़ैब का इल्म है जैसा के उन्हों ने खुद फ़रमाया की ये ख्याल न करना की दरो दिवार हमारी आँखों के सामने हिजाब होते हैं और खलीफा मंसूर के वाकिए से ज़ाहिर हुआ के हज़रते इमाम ज़ैनुल अबिदीन रदियल्लाहु अन्हु के बारे में भी उन का अक़ीदा था के वो भी ग़ैब जानते थे ।   (जामे करामात) 

तू फुलां बिमारी में मरेगा

रिवायत है की एक शख्स का बयान है की हम लोग तकरीबन पचास आदमी थे जो हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु के हुज़ूर में हाज़िर थे, अचानक एक शख्स कूफ़ा शहर से आया, जो खुरमे की तिजारत करता है और उस ने हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु की तरफ रुख कर के कहा, फुलां शख्स कूफ़े में ऐसा गुमान करता है की आप के साथ एक रब्बानी फरिश्ता है जो काफिर को मोमिन से और आप के दोस्तों को आप के दुश्मनो से जुदा कर देता है और आप को इस के बारे में बता देता है/ इस की बात को सुन कर हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु ने उससे पूछा के तेरा पेशा क्या है? उस ने कहा में गेहूं बेचता हूँ, आप ने फ़रमाया तू झूठा है उस ने कहा कभी कभी बेच लेता हूँ, आप ने फ़रमाया ऐसा भी नहीं है जिस का तुम इकरार कर रहे हो बल्कि तेरा पेशा छुआरे बेचने का है, उस शख्स ने कहा आप को ये खबर किस ने दी? आप ने फ़रमाया एक रब्बानी फरिश्ता है जो मुझे मेरे दोस्त और दुश्मन की खबर देता है और सुन की तू फुलां बिमारी से मरेगा, रावी का बयान है की जब में कूफ़ा शहर पंहुचा तो उस शख्स का हाल पूछा, लोगों ने बताया उस को इन्तिकाल किए हुए आज तीन दिन हो गए, फिर बिमारी के मुतअल्लिक़ पूछा तो मालूम हुआ की हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु ने जिस बीमारी में इस की मोत की खबर दी थी इसी मर्ज़ में इस की मोत हुई ।              

  “अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”   

रेफरेन्स हवाला                      

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(6) अस हुत तवारीख, 

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