सय्यदे सज्जाद के सदके में साजिद रख मुझे
इल्मे हक दे बाकिरे इल्मे हुदा के वास्ते
आप की पेशन गोई तीन दिन तक क़त्ल होता रहेगा
हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं की मेरे वालिद गिरामी एक साल मजलिसे आम में बैठे थे की अपने सर मुबारक़ को ज़मीन की तरफ झुकाया और फिर उठाने के बाद इरशाद फ़रमाया, ऐ कोम ! तुम्हारा क्या हाल होगा? जब एक शख्स तुम्हारे इस शहर में चार हज़ार लोगों के साथ आ कर तीन रोज़ तक क़त्ल व खूंरेज़ी करेगा और तुम ऐसी बला देखेंगे जिस के दूर करने की तुम में ताक़त न होगी और ये वाक़िआ आने वाले साल में होगा इस लिए तुम अपने बचाओ की हर मुमकिन तदबीर कर लो और इस बात को होश के कान से सुन लो जो कुछ में ने तुम से कहा है वो ज़रूर होगा, मदीना शरीफ के लोगों ने आप की बात की कोई तवज्जुह नहीं दी, और कहा ऐसा वाकिअ हरगिज़ नहीं हो सकता, चुनांचे जब वो साल आया तो हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु अपने जुमला खानदान और जमात बनी हाशिम को साथ ले कर मदीना शरीफ से कूच कर गए, आप के चले जाने के बाद नाफ़े बिन अर्ज़क चार हज़ार फौज ले कर मदीना शरीफ में दाखिल हुआ और तीन रोज़ तक उस ने मदीना शरीफ को मुबाह कर दिया और बे हिसाब मखलूके खुदा को मारा जैसा के हज़रत ने फ़रमाया था वैसा ही हुआ,
हमीरा ने किताबुल मसाइल में तहरीर फ़रमाया है के ज़ैद बिन हाज़िम ने कहा, हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु के साथ था इतने में उन के भाई ज़ैद बिन अली का गुज़र हुआ आप ने इरशाद फ़रमाया, देखो ये कूफ़ा शहर में ख़ुरूज करेगा पर लड़ेगा और इस का सर घुमाया जाएगा, चुनांचे ऐसा ही हुआ जैसा की आप ने खबर दी थी ।
आप को क़त्ल करने की साज़िश
रिवायत है की एक मर्तबा बादशाहे वक़्त ने आप को शहीद करने के इरादे से एक शख्स से बुल वाया, आप उस आदमी के साथ बादशाह के पास तशरीफ़ ले गए जब बादशाहे वक़्त के करीब तशरीफ़ ले गए तो वो आप से माफ़ी मांगने लगा और इज़हारे माज़रत करते हुए तोहफे पेश किए और बड़ी ही इज़्ज़तो एहतिराम के साथ आप को वापस किया, लोगों ने बादशाहे वक़्त से पूछा, ऐ बादशाहे वक़्त ! तूने उन्हें क़त्ल की गरज़ से बुल वाया था लेकिन हम ने उस के अलावा सुलूक तुम को उन के साथ करते हुए देखा आखिर इस की क्या वजह है?
बादशाह ने जवाब दिया की जब हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु मेरे करीब तशरीफ़ लाए तो में ने दो बड़े ही खौफनाक शेरों को देखा जो उन के दाएं बाएं खड़े हुए थे और मुझ से कहे रहे थे की अगर तू ने हज़रत के साथ कोई भी गुस्ताखी की तो हम तुम्हें मार डालेगें ।
इमारत गिर जाएगी
रिवायत है की एक बार आप दारुल इमारत हिशाम बिन अब्दुल मलिक में तशरीफ़ फरमा थे वो इमारत बड़ी ही शानो शौकत से बनी हुई थी इस इमारत को देख कर आप ने इरशाद फ़रमाया, ये इमारत तोड़ी जाएगी और इस की ख़ाक भी यहाँ से उठाली जाएगी, ये सुन कर ताअज्जुब का लोगों ने इज़हार किया मगर जब हिशाम का इन्तिकाल हुआ तो उस के बेटे वलीद ने इस इमारत को मिस्मार कर दिया (तोड़ना खत्म करना गिरा देना) और जैसा की हज़रत ने पेशन गई फ़रमाई थी ।
आप की औलादे किराम
हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु के औलादे अमजद के असमाए गिरामी हस्बे ज़ैल हैं:
- हज़रते अबू अब्दुल्लाह,
- हज़रते इमाम जाफर सादिक,
- हज़रते अब्दुल्लाह,
- हज़रते इब्राहीम,
- हज़रते अब्दुल्लाह,
- हज़रते अली,
- हज़रते ज़ैनब रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम आजमाईं ।
आप के मलफ़ूज़ात शरीफ
हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु अपने साहब ज़ादे इमाम जाफ़र सादिक रदियल्लाहु अन्हु को खिलाफत से सरफ़राज़ फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया ऐ बेटे ! जब अल्लाह पाक तुझे कोई नेमत दे, तो इस पे अल हम्द कहो, और जब कोई सदमा पहुंचे तो उस वक़्त लाहोल शरीफ पढ़ो, और जब रिज़्क़ में तंग्गी हो तो अस्तगफार पढ़ो ।
विसाल के वक़्त आप की वसीयत
हज़रते इमाम जाफ़र सादिक रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के में अपने वालिद माजिद के पास था विसाल के वक़्त आप ने ग़ुस्ल व तकफीन व दफ़न और दुखूले कबर के मुतअल्लिक़ चंद वसीयतें फरमाई, में ने कहा, ऐ वालिद मुहतरम वल्लाह जब से आप बीमार हुए हैं में ने आज से बेहतर हालत में किसी दिन नहीं देखा और में फिल वक़्त मोत का कोई असर आप पर नहीं देखता हूँ, आप ने फ़रमाया, ऐ मेरे बेटे ! तू ने हज़रते अली बिन हुसैन को नहीं सुना के वो इस दिवार के पीछे से मुझे पुकारते हैं के ऐ मुहम्मद ! जल्दी कर,
कफ़न
आप ने हज़रते इमाम जाफ़र सादिक रदियल्लाहु अन्हु से वसीयत की थी के में जिस कपड़े में नमाज़ पढ़ता हूँ इसी का मुझे कफ़न दिया जाए, चुनांचे हज़रते इमाम जाफ़र सादिक रदियल्लाहु अन्हु ने ग़ुस्ल दिया और हस्बे वसीयत इस कपड़े का आप को कफ़न दिया गया ।
आप का विसाल मुबारक
हज़रते इमाम मुहम्मद बाकर रदियल्लाहु अन्हु की तारीखे विसाल में इख्तिलाफ है, मशहूर कौल के मुताबिक आप का विसाल मुबारक माहे ज़िल हिज्जा की 7, तारीख 114, हिजरी बरोज़ पीर 57, साल की उमर में सल्तनत हिशाम बिन अब्दुल मलिक उमवि के दौर में हुआ,
आप का मज़ार मुकद्द्स
आप का मज़ार मुकद्द्स मदीना शरीफ के आम कब्रिस्तान जन्नतुल बकी शरीफ में है ।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(6) अस हुत तवारीख,