हज़रते सय्यदना इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

सिद्क़ सादिक का तसद्दुक सादिकुल इस्लाम कर 

बे  गज़ब  राज़ी  हो  काज़िम  और  रज़ा के वास्ते 

विलादत बा सआदत

आप की पैदाइश मक़ामे अबवा (जो मक्का शरीफ व मदीना मुनव्वरा के दरमियान है) में बा तारीख 7, या 10, सफरुल मुज़फ्फर बरोज़ इतवार 128, हिजरी को मरवान अल हिमार बिन मुहम्मद बिन मरवान बिन हकम आखरी खलीफा बनी उमय्या के अहिद में पैदा हुए । 

नाम व कुन्नियत लक़ब

आप का नामे पाक: “मूसा” और कुन्नियत “सामी, अबुल हसन, अबू इब्राहिम” है । और आप का लक़ब साबिर, सालेह, अमीन, और मशहूर लक़ब  “मूसा काज़िम” है ।

आप के वालिदैन करी मैन

आप के वालिद माजिद हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु हैं और वालिदा माजिदा हज़रते उम्मे वल्द बीबी हमीदह बरबरिया हैं । 

आप का हुलिया मुबारक

आप का सर व कद लागर अन्दाम और निहायत हसीनो जमील थे रंग मुबरक गंदुम जैसा था मगर बाज़ो ने सियाह फाम लिखा है । 

आप के फ़ज़ाइल मुबारक

“हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु आप सिलसिलए आलिया क़ादरिया के 7, सातवे इमाम व शैख़े तरीकत हैं” और शहज़ादे हैं हज़रते इमाम जफ़र सादिक रदियल्लाहु अन्हु के, आप आलिमे मुता बहह्हिर, वलीए कामिल, और साहिबे मनाक़िब फ़ाखराह थे, “मुस्तजाब” ऐसे थे के जो लोग आप को अपना वसीला गरदांते या आप से दुआ कराते वो अपने मक़सूद को पहुंचते और उन के जुमला हाजतें पूरी हो जाती थीं, यही वजह है के अहले इराक आप को “बाबुल हवाइज” यानि हाजतों को पूरा होने का दरवाज़ा कहते थे चुनांचे बादे विसाल भी आप का “मज़ार मुकद्द्स बाबुल हवाइज” है, हज़रते इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु की “क़ब्र मुबारक इजाबत दुआ के लिए तिरयाके आज़म का हुक्म रखती है” और आप के वालिद माजिद हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के मेरे तमाम फ़रज़न्दों में “मूसा काज़िम” बेहतरीन फ़रज़न्द हैं, “वो एक मोती है अल्लाह पाक के मोतियों में से” और हज़रत अल्लामा हजर हैतमि शाफ़ई मक्की रहमतुल्लाह अलैह “अस्सवा इकुल मुहर्रिका” वगैरा में है के खलीफा हारुन रशीद ने आप से कहा: आप अपने को ज़ुर्रियत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से क्यों कहते हैं हालांके आप हज़रत अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु की औलाद हैं? और आदमी का नसब दादा से होता है न के नाना से? तो आप ने ये आयते करीमा पढ़ी: 

” وَ مِنْ ذُرِّیَّتِهٖ دَاوٗدَ وَ سُلَیْمٰنَ وَ اَیُّوْبَ وَ یُوْسُفَ وَ مُوْسٰى وَ هٰرُوْنَؕ-وَ كَذٰلِكَ نَجْزِی الْمُحْسِنِیْنَۙ(۸۴)وَ زَكَرِیَّا وَ یَحْیٰى وَ عِیْسٰى ”  देखो हज़रते इसा अलैहिस्सला का कोई बाप न था इस आयते करीमा में अल्लाह पाक ने उन को मुल्हिक बज़ुर्रियत होने की ये है के इसी तरह से हम भी वालिदा माजिदा की तरफ से मुल्हिक बज़ुर्रियत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं और दूसरी दलील हमारी ज़ुर्रियत होने की ये है के मुबाहिला नसारा के वक़्त अल्लाह पाक ने फ़रमाया: “قل تعالو ا ندع ابناءنا”

तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अली, हज़रते फातिमा, और हसन व हुसैन रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन को अपने साथ लिया तो इस आयते करीमा से हज़राते हसनैन रदियल्लाहु अन्हुमा औलादे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हुई और हम औलादे इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की हैं, ये मुदल्लल व मुबरहन दलील सुन कर खलीफा हारुन रशीद को इत्मीनान हुआ ।  

आप की आदात व सिफ़ात

आप बड़े आबिदो ज़ाहिद, रातो में क़याम फरमाते दिन को रोज़ा रहते थे, बसबब कसरते इबादतों रियाज़त और शब् बेदारी के “अब्दुस सालेह” कहे जाते थे और हिल्म व बुर्दबारी का ये आलम था के आप का लक़ब “काज़िम” हुआ जिस के माना ही गुस्सा पी जाने वाले के हैं, और जूदू करम का ये रुतबा था के मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा के फ़क़ीरों को तलाश कर के हर एक को रुपया व अशरफी वग़ैरा हस्बे ज़रूरत रातों को पहुंचाया करते थे और वो लोग नहीं जानते के ये कहाँ से आया है जब कोई साइल सामने आ जाता क़ब्ल इस के वो लब खोले आप उस के सवाल को पूरा कर देते थे, मुन्कसिरुल मिजाज़ी इस दर्जा थी के जब कोई शख्स सामने आता तो आप ही सलाम में पहल करते और अगर मालूम होता के कोई शख्स आप को इज़ा तकलीफ पहुंचने में लगा हुआ है तो आप उस की मदद भी करते और अशरफी व दीनार से उसे भी नवाज़ते । 

हज़रते शैख़ शफ़ीक़ बल्खी रहिमहुल्लाह का बयान

हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु के इबादतों रियाज़त व तक्वा व तहारत, पर आप के दौर के अज़ीम  “बुज़रुग” ऐनी शहादत मुलाहिज़ा फरमाएं वो रिवायत “हज़रते शैख़ शफ़ीक़ बल्खी रहिमहुल्लाह” इस तरह बयान करते हैं के में ने 149, हिजरी में ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन को जाते हुए रास्ते में मुल्के इराक के “शहर क़ादिसियह” में क़याम किया और वहां के लोगों के आदात व अतवार को देख रहा था के मेरी नज़र एक खूबसूरत नौजवान पर पड़ी जो अपने कपड़ों के ऊपर एक सौफ (सौफ ऊनी, मोटा, कंबल जैसा लिबास) का कपडा ज़ेबे तन किए हुए थे और पाऊं में जूता था और वो लोगों से अलग बैठा हुआ था में ने दिल में कहा: ये नौजवान सूफी किस्म के लोगों में से मालूम होता है और शायद चाहता है के रास्ता में लोगों पर बोझ बने वल्लाह ! में उस को ज़रूर समझाऊंगा, इसी ख्याल से में उस के करीब गया जब उस ने मुझ को अपने करीब आते हुए देखा तो कहा: 

ऐ शफ़ीक़ “جْتَ ”  اجْتَنِبُوْا كَثِیْرًا مِّنَ الظَّنِّ-اِنَّ بَعْضَ الظَّنِّا” 

तर्जुमा: बहुत ज़ियादा गुमान कर ने से बचो बे शक कोई गुमान गुनाह हो जाता है, और मुझे छोड़ कर रवाना हो गया, में ने अपने दिल में कहा: ये तो बहुत बड़ी बात है के इस ने मेरा नाम ले कर मेरे दिल की बात बता दी (हालानके वो मुझ को बिलकुल नहीं जनता) ये यकीनन कोई बुज़रुग आदमी है, में उस के पीछे जाऊं और उस से मिल कर अपने गुमान की माफ़ी कराऊँ में जल्दी जल्दी उस के पीछे चला मगर वो मेरी नज़रों से ग़ाइब हो गया और काफी तलाश के बाद भी वहां उस को न पा सका, उस के बाद जब हम लोग वादिए फ़िज़ा में उतरे तो उसी मर्द को वहां नमाज़ पढ़ते हुए पाया और देख के उस का बदन काँप रहा है और आंसूं बह रहे हैं में फिर उस की तरफ बढ़ा के अपने गुमान की माफ़ी मांगू इतने में उस ने सलाम फेर कर मेरी तरफ देखा और फ़रमाया ऐ शफ़ीक़ ! पढ़ो “وَ اِنِّیْ لَغَفَّارٌ لِّمَنْ تَابَ وَ اٰمَنَ وَ عَمِلَ صَالِحًا ثُمَّ اهْتَدٰى”  

तर्जुमा: बेशक में बख्शने वाला हूँ उस शख्स के लिए जिस ने तौबा की और ईमान लाया और अमल सालेह किया फिर अच्छी राह चला, 

ये आयत पढ़ी और मुझे छोड़ कर चल दिया में ने कहा: ये नौजवान तो अब्दाल में से मालूम होता है दो बार मेरे दिल की बात मुझ पर ज़ाहिर फरमा दी, जब हम मिना में पहुंचे तो फिर में ने उस को देखा के वो कुँए पर एक बड़ा सा प्याला हाथ में लिए खड़ा है और कुँए से पानी लेने का इरादा कर रहा है के अचनक वो प्याला उस के हाथ से कुँए में गिर गया और उस ने आसमान की तरफ देखा और ये शेर पढ़ा: 

तू ही मेरा पालने वाला है जबकि में पानी से प्यासा हो जाऊं और तू ही मेरी कुव्वत है जब के में खाने का इरादा करूँ, फिर उस ने कहा ऐ अल्लाह ऐ अल्लाह मेरे मअबूद ! ऐ मेरे आका तू जानता है के इस प्याले के सिवा मेरे पास कुछ नहीं है तू मुझे इस प्याले से महरूम न कर, खुदा की कसम! में ने देखा के कुँए का पानी ऊपर आ गया और उस ने अपना हाथ बढ़ाया और प्याला पानी से भर कर निकाल लिया और वुज़ू कर के चार रकअत नमाज़ पढ़ी उस के बाद रेत की मिटटी इकठ्ठी कर के प्याला में डालता जा रहा था और हिला कर पीये जा रहा था, में ने उस के करीब जा कर उस को सलाम किया तो उस ने सलाम का जवाब दिया, में ने कहा: अल्लाह के दिए हुए इस इनआम से कुछ बचा खुचा मुझ को भी अता फरमाएं? इरशाद फ़रमाया: ऐ शफीक ! हम पर हमेशा अल्लाह पाक की ज़ाहिरी और बातनी नेमतें रही हैं इस लिए तू अपने रब के साथ नेक गुमान रखो वो प्याला मुझे अता कर दिया और खुद चल दिया, जब में ने उस को पिया तो खुदा की कसम ! वो निहायत लज़ीज़ उम्दा, खुशबूदार और मीठे “सत्तू” थे  (भुने हुए अनाज गेहूँ का आटा, गर्मी के मोसम में शर्बत बना कर पीते हैं मुल्के हिंदुस्तान में) और ऐसे सत्तू में ने उमर में कभी नहीं खाया था, में ने खूब सेर हो कर सत्तू को पिया चुनांचे इस की बरकत से कई दिन तक मुझे भूक और प्यास मालूम ही नहीं हुई, उस के बाद मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा पहुंचे तो एक मर्तबा आधी रात के वक़्त फिर कुबा ज़मज़म शरीफ के पास उस को बड़े ख़ुशू व ख़ुज़ू से नमाज़ पढ़ते और खूब रोते हुए देखा सुबह सादिक तक इसी तरह नमाज़ पढता रहा फिर वहीँ पढता रहा बैठ कर तस्बीह पढ़ता रहा और फजर की नमाज़ पढ़कर बैतुल्लाह शरीफ का तवाफ़ किया, तवाफ़ के बाद जब बाहर जाने लगा तो में भी पीछे चल पड़ा और बाहर जा कर देखा तो रास्ता में जिस हालत से देखता आया था इस के बिलकुल खिलाफ पाया, देखा के उस के साथ उस के दोस्त, खुद्दाम और गुलाम मौजूद थे जिन्हो ने उस के आते ही चारों तरफ से घेर लिया और उस की खिदमत में सलाम पेश कर रहे थे में ने उन से पूछा के ये नौजवान कौन हैं? तो उस ने कहा: ये मूसा बिन जाफर बिन मुहम्मद बिन अली बिन हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब हैं । 

मेहदी बिन मंसूर का कैद करना

मेहदी बिन मंसूर ने आप को मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा से इराक बुलवा कर कैद कर लिया तो रात को हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु मेहदी के ख्वाब में तशरीफ़ लाए और फ़रमाया: ऐ मेहदी ! “فَهَلْ عَسَیْتُمْ اِنْ تَوَلَّیْتُمْ اَنْ تُفْسِدُوْا فِی الْاَرْضِ وَ تُقَطِّعُوْۤا اَرْحَامَكُمْ(۲۲)” 

रबी का बयान है के इसी वक़्त मेहदी ने मुझे तलब किया और जब में गया तो मेहदी ये आयत मज़कूरा बड़ी ही खुश इल्हानी के साथ बा आवाज़े बुलंद पढ़ रहा था और मेहदी ने मुझे हुक्म दिया के जाओ मूसा बिन जाफर को जेल खाने से ले आओ, जब हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ ले आए तो आप से मेहदी ने मुआनका किया और बड़ी इज़्ज़त से बिठाया और ख्वाब का हाल आप से बयान किया और कहा: मुझे इत्मीनान दिला दीजिए के आप मुझ से बागी तो न होगें? आप ने फ़रमाया में ने न तुम से अब तक मुकाबला किया और न अब मुकाबला करूंगा उस के बाद रबी को हुक्म दिया के हज़रत को दस हज़ार दीनार दे कर रुखसत करो और मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा तक पंहुचा दो, रबी कहते हैं के में ने रात ही रात सफर का सामान तय्यार किया और दस हज़ार दीनार देकर आप को रुखसत किया के कहीं फिर वो आप को इज़ा न पहुंचाए और आप आराम के साथ मदीना शरीफ पहुंच जाएं । 

आप का बग़दाद शरीफ में क़याम और हारुन रशीद के मज़ालिम

मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा से आप को बग़दाद शरीफ जाने का ये सबब हुआ के एक रोज़ आप काबा शरीफ के पास बैठे हुए थे के हारुन रशीद आया और कहने लगा के मुझे मालूम हुआ है के आप ख़ुफ़िया बैअत लेते हैं? इस पर आप ने फ़रमाया: में दिलों का इमाम हूँ और तू जिस्मो का इमाम है और जिस रोज़ दिलों का इमाम और जिस्मो का इमाम दोनों मिलकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रूबरू खड़े होंगे और रशीद अर्ज़ करगा: अस्सलामु अलईका या बिन अम्मुन, और काज़िम अर्ज़ करेगा: अस्सलामु अलईका या अबाती इस बात पर हारुन रशीद ने आप को गिरफ्तार कर लिया और बग़दाद में ला कर कैद कर दिया, मुसलसल एक साल तक आप को बग़दाद में ईसा बिन जाफर बिन मंसूर ने कैद रखा एक साल के बाद हारुन रशीद ने हुक्म नामा लिखा के उन को क़त्ल कर दो ताके बे फ़िक्री हासिल हो ईसा ने बाज़ ख़ास लोगों को बुला कर मश्वरा किया और रशीद का खत दिखाया उन्हों ने कहा: मेरा ये मश्वरा है के तुम इस काम से अस्तीफा दे दो और इस काम में मत पड़ो उस के बाद ईसा ने हारुन रशीद को खत लिखा जो इस तरह है:

“ऐ अमीरुल मोमिनीन ! आप ने हज़रते काज़िम के बारे में जो तहरीर किया है तो ये मुद्दत से मेरी कैद में हैं और इस तवील मुद्द्त में, में ने उन का इम्तिहान लिया तो उन से कोई बुराई ज़ाहिर न हुई और वो कभी हुज़ूर का ज़िक्र बजुज़ खेर के नही करते और कोई मकरूह और खराब नज़र इस की तुम्हारी हुकूमत व विलायत पर नहीं और न ही वो आप पर ख़ुरूज करना चाहते हैं और न उन के पास असबाब दुनिया से कोई चीज़ है और न कभी उन्हों ने हुज़ूर पर बल्के किसी शख्स पर बद्द्दुआ की और ये दुआ नहीं करते मगर रहमत और मगफिरत की और इस दुआए रहमत में आप और जुमला मुसलमानो को शामिल करते हैं और वो रोज़ह, नमाज़ और इबादत के सख्त पाबन्द हैं अगर अमीरुल मोमिनीन मुझ को इस अम्र से मुआफ करें और मेरे बजाए किसी दूसरे को ये काम सुपुर्द करें तो ठीक हैं वरना में इस को छोड़ दूंगा क्यूंकि में इस काम से निहायत ही तकलीफ में हूँ”,

जब ये खत हारुन रशीद के पास पंहुचा तो उस ने संदी बिन शाहिक को लिखा के तू मूसा काज़िम को इसा बिन जाफर से ले कर जो हुक्म में ने दिया है  उस की तामील की संदी ने खजूर में ज़हर मिला कर दिया इससे आप शहीद हुए । 

  “आप की चंद करामात”

शेर की तस्वीर को ज़िंदा फरमा दिया

हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु कशफो करामात के मैदान में भी यकताए रोज़गार थे और हक्कानियत के अलम्बरदार थे हक बात ज़ालिम बादशाह के सामने कहने में ज़र्रा बराबर भी नहीं डरते, और किसी भी तख़्त ताज वाले आप की शानो बुलंदी के आगे रोबो दबदबा न चलता,

एक मर्तबा आप खलीफा हारुन रशीद की मजलिस में तशरीफ़ फरमा थे इतने में मोजिज़ा असाए मूसा अलैहिस्सलाम का ज़िक्र चल गया तो आप ने फ़रमाया अगर में इस शेर की तस्वीर जो कालीन पर बनी है इस को कहूँ के अभी शेर असली हो जा ये जुमला आप की ज़बान मुबारक से निकलना था के फ़ौरन वो तस्वीर शेर असली हो गई, आप ने उस शेर को हुक्म दिया के ठहर जा में ने अभी तुझ को हुक्म नहीं दिया है ये कहने के साथ ही वो बदस्तूर तस्वीर शेर फिर पहले की तरह कालीन हो गई । 

वो आज की रात मर जाएगा

इसहाक बिन अम्मार कहते हैं के जब हारुन रशीद ने हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु को कैद किया तो एक दिन हज़रते अबू युसूफ और मुहम्मद बिन हसन साहिबीन इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु आप की खिदमत में जेल के अंदर तशरीफ़ ले गए और सलाम अर्ज़ कर के आप के पास बैठ गए और चाहा के आप से कुछ सवालात करें ताके आप की खुदा दाद सलाहीयत दीनी का अंदाज़ा हो इतने में एक जेल खाने का मुहाफ़िज़ सिपाही आया और अर्ज़ किया: मेरी डियूटी ख़त्म हो गई है अब में जाता हूँ इंशा अल्लाह कल आऊंगा अगर तुम्हारा कोई काम हो तो बयान करो ताके में कल इस को अंजाम दे कर आऊं आप ने इरशाद फ़रमाया: तुम जाओ मेरा कोई काम नहीं है फिर आप ने हज़रते इमाम अबू युसूफ और हज़रते इमाम मुहम्मद रदियल्लाहु अन्हुमा से फ़रमाया: मुझे इस शख्स पर तअज्जुब आता है के ये मुझ से कहता है के कोई हाजत हो तो में कल के दिन कर के आऊंगा हालांके वो आज की रात ही मर जाएगा, इस जुमले को सुनने के बाद दोनों साहिबान सवाल करने से रुक गए और कुछ दरयाफ्त न किया और कहा: हमारा इरादा ये था के हम फ़र्ज़ो सुन्नत के बारे में  सवालात करते मगर ये तो हमारे साथ इल्मे ग़ैब में बात चीत करने लगे वल्लाह ! हम एक शख्स को उस के साथ भेजेगें ताके वो उस के साथ रात बसर करे और देखे के ये क्या होता है उस के बाद उस सिपाही के पीछे इन दोनों साहिबान ने एक शख्स को रवाना क्या वो शख्स इस सिपाही के दरवाज़े पर बैठ कर इन्तिज़ार करता रहा जब रात गुज़री तो उस के कान में रोने और चिल्लाने की आवाज़ आई इस शख्स ने घर वालों से पूछा खेर तो है? क्या हुआ? जवाब मिला के घर वाला इन्तिकाल कर गया है, क़ासिद ने आ कर जब ये खबर सुनाई तो इन दोनों को सख्त तअज्जुब हुआ ।    

ग़ैब की बातें

ईसा मदाईनि कहते हैं के में एक साल मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा गया और वहां साल भर तक खिदमत गुज़ारी करता रहा फिर में ने ख़याल किया के एक साल मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा भी क़याम करूँ इस लिए के इस अमल में सवाबे अज़ीम होगा तो में मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में आया मुसल्ला की तरफ दार अबू ज़र के पहलू में उतरा और हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु के पास गया तो आप ने फ़रमाया ऐ ईसा उठो और जा कर देखो के तेरा घर तेरे सामानो पर गिर गया है में वहां से उठ कर घर गया तो देखा के वाकई घर सामान पर गिरा हुआ है, फ़ौरन में ने एक शख्स को किराया दे कर अपना तमाम सामान बाहर निकल वाया बलके तमाम को अंदर से निकलवा लिया और लोटे का पता न चला, जब दूसरे दिन में हज़रत के पास गया तो फ़रमाया: क्या तुम्हारे सामानो में से कोई चीज़ ग़ाइब भी हुई है? अगर गुम हुई हो तो बताओ में अल्लाह पाक से दुआ करूंगा के वो तुझ को इस का बदला अता  करे में ने कहा: सिवाए लोटे के कोई चीज़ गुम नहीं हुई है आप ने थोड़ी देर सर नीचे कर के उठाया और कहा: घर गिरने से पहले ही तुमने उस को किसी दूसरी जगह रख दिया था और उस को भूल गए घर वाले की कनीज़ से कहो के में पखाने में अपना लोटा भूल गया हूँ वो मुझे दे दो जब में ने इस कनीज़ से कहा तो फ़ौरन उस ने लोटे को मुझे वापस कर दिया |

आप की औलादे किराम

अल्लाह पाक ने आप को कसीरुल औलाद बनाया था चुनांचे इब्नुल अख़ज़र का बयान है के आप के बीस साहब ज़ादे  20, और अठ्ठारह 18, साहब ज़ादियाँ थीं जिन के अस्मए गिरामी हस्बे ज़ैल हैं: 

शहज़ादे : (1) हज़रते अली रज़ा (2) ज़ैद (3) अकील (4) हारुन (5) हसन (6) हुसैन (7) अब्दुल्लाह (8) अब्दुर रहमान (9) इस्माईल (10) इसहाक (11) याह्या (12) अहमद (13) अबू बक्र (14) मुहम्मद (15) अकबर (16) जाफर अकबर (17) जाफर असगर (18) हमज़ाह (19) अब्बास (20) क़ासिम रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन । 

साहब ज़ादियाँ:  (1) हज़रते बीबी खदीजा (2) असमाउल कुबरा (3) असमाउल सुगरा (4) फ़ातिमातुल कुबरा (5) फ़तिमातुस सुगरा (6) ज़ैनब कुबरा (7) ज़ैनब सुगरा (8) उम्मे कुलसूम कुबरा (9) उम्मे फरवाह (10) उम्मे अब्दुल्लाह (11) उम्मुल कासिम (12) आमिना (13) हकीमा (14) उमामा (15) मैमूना रिद्वानुल्लाही तआला अन हुन्ना । साहिबे “तशरीफुल बशर” ने कुल औलादों की तादाद सत्ताईस 27, लिखी है, और “जामिउल मनाक़िब” में भी औलादों की तादाद सत्ताईस 27, ही का ज़िक्र है ।  (जामिउल मनाक़िब, तशरीफुल बशर)   

आप के खुलफाए किराम

आप के खुलफ़ा की सही तादाद मालूम न हो सकी हम चंद के अस्मए गिरामी ज़िक्र करते हैं जिन्हो ने आप के मिशन को ज़िंदा फ़रमाया और दीने मतीन की ला ज़वाल खिदमत अंजाम दीं । हज़रते सय्यदना शैख़ इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु, और दूसरे हज़रते शैख़ मुतलबी रदियल्लाहु अन्हु, 

वाक़िआत विसाल शरीफ

हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु के विसाल का जब वक़्त आया तो आप ने संदी से कहा: मेरे मदनी गुलाम को जो दारे अब्बास बिन मुहम्मद के पास है बुला लाओ क्यों के उस को ग़ुस्ल व कफ़न की ज़रूरी बातें बताना हैं और उसी को मत्तवल्ली भी बनाना है, संदी ने कहा: में खुद ही ये काम बहुत अच्छी तरह कर लूँगा, आप ने इरशाद फ़रमाया, हम अहले बैत से हैं हमारी औरतों के महर और हमारे मबरूर हज और हमारे मोला के कफ़न और हमारा जिहाद खालिस हमारे माल से होता है, में चाहता हूँ के मेरा मोला इस का मत्तवल्ली हो, इस के बाद संदी ने इस बात को कबूल कर लिया और उस को हाज़िर कर दिया, आप ने इस मदनी गुलाम से तमाम चीज़ों की वसीयत की और जब वफ़ात हुई तो गुलाम ने तमाम काम आप की वसीयत के मुताबिक इंजाम दिए । 

राफ्ज़ीयों का ख्याल

आप के मुतअल्लिक़ रफ़्ज़ियों का ये ख़याल था के काइम मुन्तज़िर यही हैं और आप की कैद को ग़ीबत के काइम मकाम ठहराया था, इस लिए हारुन रशीद ने हुक्म दिया के याह्या बिन खालिद उन की लाश को बाग्दाद् के पुल पर रख दो और निदा कर दो के ये वही मूसा काज़िम हैं जिन के बारे में राफ्ज़ी लोग ये अक़ीदह रखते हैं के वो नहीं मारेंगें, अब तुम लोग इस को देख लो ज़ियारत करो, फिर आप के जनाज़े को उठाया गया,

अपने विसाल की पहले ही खबर देना

आप को खजूर में ज़हर दिया गया था और खजूर खाने के बाद आप ने इरशाद फ़रमाया: दुश्मनो  ने मुझे ज़हर दिया है चुनांचे फ़रमाया: कल मेरा बदन ज़र्द पीला होगा परसों निस्फ़ सुर्ख और निस्फ़ सियाह हो जाएगा और मेरी वफ़ात इस के बाद होगी पस ऐसा ही हुआ जैसा आप ने फ़रमाया था के उस के बाद जाना होगा तो वापसी नसीब न होगी, और ऐसा ही हुआ । 

आप का विसाले पुर मलाल

आप ने बा तारीख 5, या 25, माहे रजाबुल मुरज्जब  183, हिजरी बरोज़ जुमा उमर 55, साल, खलीफा हारुन रशीद की अहिदे खिलाफत में विसाल फ़रमाया । 

मुद्दते इमामत 

आप 25, साल तक मसनदे इमामत व खिलाफत पर फ़ाइज़ रहे । 

आप का मज़ार मुकद्द्स

आप का मज़ार मुकद्द्स मुल्के इराक की राजधानी के शहर बाग्दाद् शरीफ में बा मकाम काज़मैन शरीफ में है, और मरजए खलाइक है, चुनांचे आप के मज़ारे मुकद्द्स के बारे में हज़रते सय्यद इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह का कोल है के हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु की “कब्र मुबरक दुआ” कबूल होने के लिए “अक्सीर व मुजर्रब” आज़माया हुआ अमल है, 

इसी तरह का कोल: हज़रते अबू अली फलाल रहमतुल्लाह अलैह जो मशहूर मुहद्दिस गुज़रे हैं वो फरमाते हैं: जब भी मुझ को कोई मुश्किल पेश आई और में हज़रते इमाम मूसा काज़िम रदियल्लाहु अन्हु की कब्र पर हाज़िर हो कर उन के वसीले से दुआ करता तो अल्लाह पाक मेरी मुराद पूरी करता है । 

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”                                                    

रेफरेन्स हवाला                

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(6) बुज़ुरगों के अक़ीदे,   

   

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