हज़रते सय्यदना इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 2)

सय्यदे सज्जाद के सदके में साजिद रख मुझे  

इल्मे   हक  दे  बाकिरे  इल्मे  हुदा  के  वास्ते   

मुल्के दमिश्क की जमा मस्जिद  

मुतालबात की मंज़ूरी के बाद हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु मुल्के दमिश्क की जामा मस्जिद में खुत्बा पढ़ने की गरज़ से तशरीफ़ ले गए, जिस वक़्त यज़ीद जामा मस्जिद पंहुचा है तो देखता क्या है की मुल्के शाम के तमाम रूऊसा (रईस व सरदार लोग) जमा हैं वो सोचने लगा के कहीं ऐसा न हो की हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु के खुत्बा पढ़ने से मेरा बना बनाया काम बिगड़ जाए फ़ौरन एक मुल्के शमी खतीब को इशारा किया वो मिम्बर पे चढ़ गया और खुत्बा शुरू कर दिया, खुत्बा क्या था, झूठा का जीता जागता शाहकार था जिस में आले अबू सुफियान की बे जा तारीफ़ और आले अबी तालिब की तहक़ीर व तज़लील और सिब्ते पैगम्बर की बुराइयां थीं, हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की गैरते ईमानी इस गलत बयानी को बर्दाश्त न कर सकी, आप खड़े हो गए और आगे बढ़ कर फ़रमाया: ऐ शामी तू इंतिहाई झूठा और फितना परवर खतीब है, एक फासिक व फ़ाजिर सियाह कार आदमी की खुश नूदी के लिए अल्लाह पाक की न फ़रमानी कर रहा है और अपने आप को अज़ाबे इलाही में गिरफ्तार कर रहा है और ऐ यज़ीद ! तू ने मुझ से वादा किया था की आज मुझे खुत्बा पढ़ने का मौका दिया जाएगा फिर ये वादा खिलाफी कैसी? यज़ीद इस याद दहानी के बावजूद भी हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु को खुत्बा पढ़ने का मौका नहीं देना चाहता था मगर हाज़रीने मस्जिद खड़े हो गए और इसरार करने लगे की अहले बैते अत हार की शाने खिताबत बे मिस्ल है आज हम उन्हीं का खुत्बा सुन्ना चाहते हैं । 

यज़ीद अपने साथियों से मश्वरा करने लगा के हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु उस खानदान से तअल्लुक़ रखते हैं जिस की फ़साहतो बलाग़त का अरबो अजम में डंका बज रहा है कहीं ऐसा न हो की हाशमी शेर अपनी शानदार फ़साहतो बलाग़त से पांसा ही पलट दे? यज़ीद के चाहिने वालों ने जवाब दिया की अभी बच्चें हैं, इतना सलीका कहाँ? उम्मीद के वाइज़ो नसीहत कर के खुत्बा खत्म कर देंगें? मजबूर  हो कर यज़ीद ने आप को खुत्बा पढ़ने की इजाज़त दे दी, हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु मिम्बर पे तशरीफ़ लाए और खुत्बा शुरू फ़रमाया, हम्द व नात के बाद आप ने जो कलमात इरशाद फरमाएं हैं उस को हज़रते अल्लामा इसहाक असफराईनि रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब “नूरुल ऐन” में बहुत तफ्सील से नकल फ़रमाया है इन कलमात के मफ़हूम हस्बे ज़ेल हैं:

ऐ लोगों में तुम्हें नसीहत करता हूँ की दुनिया और इसकी फरेब कार्यों से बचो, क्यूंकि ये वो जगह है जो ज़वाल पज़ीर है इस के लिए बका नहीं है, इस ने गुज़िश्ता कोमो को हलाक कर दिया है, हालांकि तुम से ज़ियादा उनके पास मालो असबाब थे उन की उमरें तुम से ज़ियादा लम्बी थीं, उन के जिस्मो को मिटटी ने खा लिया और उन के हालात पहले की तरह नहीं रहे तो अब इस के बाद तुम दुनिया मां फ़ीहा से किस अच्छे की उम्मीद रखते हो? 

अफ़सोस अफ़सोस खबरदार होशियार हो जाओ की इस दुनिया से लिपटे रहना इस में मशगूल हो जाना बे फायदे है, लिहाज़ा अपनी गुज़िश्ता और आइंदा की ज़िन्दगी पर गौर करो व नफ़्सानी चाह हतों से फारिग और मुद्दते उमर खत्म होने से पहले इस दुनिया में नेक काम कर लो जिस का अच्छा बदला तुम्हें आइंदा मिलगे क्यूंकि उन ऊँचें ऊँचें महलों से बहुत जल्द क़ब्रों की तरफ बुलाए जाओगे और अच्छे बुरे कामो के बारे में तुम से हिसाब लिया जाएगा, खुदा की कसम बताओ कितने ताजिरों की हसरतें पूरी हुईं और कितने जाबिर हैं जो हलाकत के घड़ों में गिरे जहाँ उन की निदामत ने उन्हें कोई फायदा नहीं दिया और ना ज़ालिम को उस की फ़रया दरसी ने और इसी का सिला उन्हों ने पाया जो कुछ उन्हों ने दुनिया में किया था और ऐ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप का रब किसी पर ज़ुल्म नहीं करता । 

ऐ लोगों !   

जो मुझे पहचानता है वो पहचानता है और जो नहीं पहचानता वो पहचान ले की मेरा नाम अली है, में हुसैन इब्ने अली का बेटा हूँ, में फातिमा ज़हरा का लख्ते जिगर हूँ, में ख़दीजतुल कुबरा का फ़रज़न्दे अरज मदं हूँ, में मक्का ज़ादा सफ़ा मरवा व मिना का बेटा हूँ (बचा) में उस ज़ाते क़ुदसी का बेटा हूँ जिस पर फ़रिश्ते सलातो सलाम पढ़ते हैं, में उस का बेटा हूँ, जिस के बारे में अल्लाह पाक का इरशाद है : “फता दल्ला काबा कौ सैनी औ अदना” में उस का बेटा हूँ जो शफ़ाअते कुबरा का मालिक है, में उस का बेटा हूँ, जो कयामत में साक़िए हौज़े कौसर हैं, और जो कयामत के दिन साहिबे इल्म होगा में साहिबे दलाइल व मोजिज़ात का बेटा हूँ, में उस का बेटा हूँ, जो कयामत के दिन मक़ामे महमूद पर फ़ाइज़ होगा, में साहिबे सखा व अता का बेटा हूँ में उस शहंशाहे ज़ी वकार का बेटा हूँ जिसे दरख़शन्दा चमकता हुआ ताज पहनाया जाएगा में बेटा हूँ साहिबे बुराक का, में बेटा हूँ सिफ़ते हुक्में इस्माइली रखने वाले का, में बेटा हूँ खुदाए मालिके मअबूद के रसूले बरहक़ का, में बेटा हूँ अबरार के सरदारों का में उस का बेटा हूँ जिस पे सूरह बकरा नाज़िल की गई, में उस का बेटा हूँ, जिस के लिए जन्नत के दरवाज़े खोले जाएंगें, में उस का बेटा हूँ, जिस की जन्नते रिज़वान मख़सूस है, में उस का बेटा हूँ, जो ज़ुल्म से क़त्ल किया गया, में उस का बेटा हूँ, जिस का सर नैज़ों पर घुमाया गया, में उस का बेटा हूँ, जिस ने प्यासे जान दी, में बनिए कर्बला का बेटा हूँ में उस का बेटा हूँ, जिस का इमामा और चादर छीन लिए गए, में उस का बेटा हूँ, जिस पर आसमान के फ़रिश्ते रोए, । 

ऐ लोगों ! खुदा ने अच्छी आज़माइश के साथ हमारा इम्तिहान लिया, हमे इल्मे हिदायत अता फ़रमाई और हमारे मुख़ालिफ़ों को गुमराही का झंडा पकड़ाया और हमें जुमला आलम पर बुज़ुरगी अता फ़रमाई और हमे वो दिया जो अहले आलम में से किसी को न दिया, और हमें पांच चीज़ों के साथ मख़सूस फ़रमाया जो मखलूक में से किसी में नहीं पाई जातीं हैं, यानि इल्म, सखावत, मुहब्बते खुदा व रसूल और हमे वो अता फ़रमाया जो मखलूक में से किसी को अता नहीं फ़रमाया, 

हज़रते इमाम जाफर सादिक रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं की इस ख़ुत्बे का ये असर हुआ की लोग चीख चीख कर रोने लगे और इस कदर रोए की यज़ीद ने घबरा कर मुअज़्ज़िन को अज़ान का हुक्म दे दिया । 

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु और हज्जे बैतुल्लाह

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु हज्जे बैतुल्लाह के इरादे से एक साल मक्का शरीफ तशरीफ़ ले गए थे और इसी साल हिशाम इब्ने अब्दुल मलिक बिन मरवान भी हज को गया था और तवाफ़े काबा से फारिग हो कर उस ने चाहा की हज्रे अस्वद को बोसा दे मगर हुजूम भीड़ इस कदर था की हिशाम बोसा न दे सका फिर वो मिम्बर पर चढ़ कर खुत्बा देने लगा, ऐन ख़ुत्बे के वक़्त हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु मस्जिदे हराम में दाखिल हुए, चाँद सा चेहरा नूरानी रुखसार और मुअत्तर लिबास में मलबूस तवाफ़ करना शुरू किया और हज्रे अस्वद के करीब जब आप पहुंचे तो लोग अज़ राहे तअज़ीम हज्रे अस्वद के इर्द गिर्द से हट गए ताके आप आसानी से उसे बोसा दे सकें, अहले शाम में से एक शख्स ने ये कैफियत देखि तो हिशाम से पूछा: ऐ अमीरुल मोमिनीन आप को तो लोगों ने हज्रे अस्वद तक जाने का रास्ता न दिया हालांकि आप उन के खलीफा हैं और वो नौजवान ख़ूबरू कौन हैं? के उन के आते ही तमाम लोग हज्रे अस्वद से हट गए और उन के लिए जगह खाली कर दी, हिशाम ने कहा में नहीं जनता (हालाँकि वो आप को खूब जनता था) इस इंकार से उस की मुराद ये थी की अहले शाम आप को न पहचान सकें और वो पहचानने पर कहीं ऐसा न हो की लोग आप से मुहब्बत करने लगें और आप को अमीरुल मोमिनीन बनने पर तय्यार हो जाएं “फ़र्ज़दक शायर” वहां मौजूद था में नहीं जनता हूँ: लोगों ने कहा : ऐ अबू फरास “फ़र्ज़दक” की कुन्नियत है तो आप हमे जल्द बताएं की वो कौन हैं जो इतने बा रोब और पुर जमाल हैं?

फ़र्ज़दक ने कहा सुनिए इस का हाल, सिफत और नामो नसब में बयान करता हूँ चुनांचे उस के बाद एक तवील क़सीदाह पढ़ा जो फ़ज़ाइल व मनाक़िब के साथ अरबी अदब का शाहकार है पूरा कसीदा “कशफ़ुल महजूब” और दूसरी सवानेह हयात की किताबों में मौजूद है यहाँ सिर्फ उस के दो शेर मुलाहिज़ा फरमाएं:

ये वो हैं जिन के निशाने कदम बतहा वाले जानते हैं और खानए काबा व हिल्लो हराम उन्हें पहचानते हैं, 

ये अल्लाह के सारे बन्दों में सब से बेहतर बन्दे का फर ज़न्द है, परहेज़गार, पाकीज़ह नेकी में मशहूर शख्स हैं,

इसी तरह के बहुत से अशआर फ़र्ज़दक ने हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु और अहले बैते अत हार की तारीफ में पढ़े जिस पर हिशाम को बहुत गुस्सा आया और हुक्म दिया के इसे अस्फान के कैद खाने में बंद कर दिया जाए, जो मक्का शरीफ और मदीना मुनव्वरा के दरमियान है, उस के बाद ये खबर पूरी तफ्सील से लोगों ने हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में पंहुचा दी, ये खबर सुन कर आप ने इरशाद फ़रमाया बारह हज़ार दिरहम उस को पंहुचा दिए जाएं और उस से कह दिया जाए की ऐ अबू फरास हमे माफ़ करना क्यूंकि हम अभी हालते इम्तिहान में हैं इस लिए इससे ज़ियादा कुछ हमारे पास मौजूद नहीं है जो तुम्हें भेज सकें । 

फ़र्ज़दक ने दोबारा नुकराई सिक्के ये कह कर वापस कर दिए की ऐ फ़रज़न्दे रसूल, सोने चांदी के लिए तो में ने बेशुमार अशआर कहें हैं जिन में झूट और मुबालगा आराई की कसरत होती थी लेकिन ये अशआर तो में ने उन झूटी तारीफ़ के कफ़्फ़ारे के तौर पर खुदा और रसूले खुदा  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! की खातिर अर्ज़ किए हैं: जब वो दिरहम और उन की कुल बातें हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु तक पहुंची तो आप ने फिर वो रकम वापस करते हुए फ़रमाया: ये रकम बहरे हाल इसे दे दो और कह दो के अगर हमारी मुहब्बत का दम भरते  हो तो वो चीज़ हमे न लौटाओ जो हम तुम्हें दे चुके हैं और अपने मुल्क से उसे बाहर निकाल चुके हैं । 

खुलफाए राशिदीन का एहतिराम

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में चंद लोग जो ईराक के रहने वाले थे हाज़िर हुए और खुलफाए सलासा यानि अमीरुल मोमिनीन हज़रते सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक, व अमीरुल मोमिनीन सय्यदना हज़रते उमर व अमीरुल मोमिनीन हज़रते सय्यदना उस्माने गनी रदियल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन की शाने आली वकार में कुछ ना मुनासिब अलफ़ाज़ बोलने लगे, जब वो लोग बोल चुके तो आप ने उन लोगों से पूछा की मुझ को तुम लोग बताओ के क्या तुम मुहाजिरीन अव्वलीन में से हो जिन के हक में अल्लाह पाक ने इरशाद फ़रमाया:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान : जो अपने घरों और मालों से निकाले गए अल्लाह का फ़ज़ल और उस की रज़ा चाहते हैं और अल्लाह व रसूल की मदद करते वही सच्चे हैं”

इस बात को सुनकर उन लोगों ने कहा, उन में से नहीं हैं, फिर आप ने इरशाद फ़रमाया, क्या उन लोगों मरे से हो जिन की शान में अल्लाह ने इरशाद फ़रमाया है:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान : और जिन्हों ने पहले से इस शहर और ईमान में घर बना लिया दोस्त रखते हैं उन्हें जो उन की तरफ हिजरत कर गए और अपने दिलों में कोई हाजत नहीं पाते इस चीज़ की जो रह गई और अपनी जानो पर उन को तरजीह देते हैं, अगरचे उन्हें शदीद मोहताजी हो,

इस आयत से नसारा मुराद हैं? अहले ईराक ने इस को भी सुनकर पहले की तरह इंकार किया, फिर आप ने इरशाद फ़रमाया में गवाही देता हूँ इस बात की के तुम लोग इस कोले खुदा के भी मिस्दाक़ नहीं हो की, 

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- और जो उन के बाद आए अर्ज़ करते हैं के ऐ हमरे रब हमें बख्श दे और हमारे भाइयों को जो हम से पहले ईमान लाए और हमारे दिलो में ईमान वालों की तरफ से कीना न रख, ऐ हमारे रब बेशक तू ही निहायत मरहबान और रहम वाला है । 

उस के बाद फ़रमाया तुम लोग मेरे पास से निकल जाओ । आप की तकरीर का माहसल ये हुआ की ऐ ईराक ! ऐ बुरा कहने वालों खुलफाए सलासा (यानि हुज़ूर के तीनो खलीफा) की ये वो लोग हैं जिन की शान में अल्लाह पाक ने ये आयात नाज़िल फ़रमाई है, और तुम लोग मुहाजिरीन में से हो न अंसार और न ही इस आखरी कोल के मिस्दाक़ हो जिस का क़ाइल तमाम अहले ईमान को होना चाहिए, लिहाज़ा तुम लोग बहुत बुरे हो इस लिए यहाँ से दूर हो और मेरे पास से चले जाओ । 

आप की चंद करामात

दस्ते मुबारक की बरकत

रिवायत है की एक बार काबा शरीफ के तवाफ़ में एक मर्द और एक औरत का हाथ संगे अस्वद से चिमट गया, उस ने छुड़ाने की हज़ार कोशिश की मगर अपने हाथ को न छुड़ा सका, लोगों ने कहा: उस का हाथ काट दिया जाए, इतने में हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाए, आप ने जब उस की ये कैफियत देखि तो “बिस्मिल्लाह शरीफ” पढ़ कर अपना हाथ लगाया, आप के दस्ते मुबारक लगते ही उस का हाथ फ़ौरन छूट गया । 

हिरन की फ़रमा बरदारी

रिवायत: है की एक बार अपने चंद असहाब के साथ बा गरज़ तफरीह जंलग में तशरीफ़ ले गए जब दस्तर ख्वान बिछा और सब लोग खाने के लिए बैठे तो एक हिरन जाता हुआ नज़र पड़ा आप ने हिरन को बुलाया की इधर आ और मेरे साथ खाना खा हिरन फ़ौरन चला आया और कुछ खाना खा कर चला गया । 

हिरन की फरयाद

रिवायत: है की एक मर्तबा आप एक जंगल में रौनक अरफ़ोज़ थे, एक हिरनी आई और ज़मीन पर लोट कर फरयाद करने लगी लोगों ने पूछा के ये क्या चाहती है? आप ने इरशाद फ़रमाया, एक कुरैशी इस का बच्चा पकड़ कर ले गया है इस की ये फरयाद कर रही है, इस के बाद आप ने इस कुरैशी को उस के बच्चे के साथ बुल वाया और उससे फ़रमाया, ऐ शख्स अगर तू चाहता है के तेरे बच्चे ज़ुल्म और कैद से महफूज़ रहें तो तू उस के बच्चे को छोड़ दे, चुनांचे उस ने बच्चे को छोड़ दिया, हिरनी बच्चा पा कर कुछ बोली और चली गई लोगों ने पूछा या इब्ने रसूल ये क्या कहती है? आप ने फ़रमाया, ये कहती है: ज़जा कल्लाह फिददा रेन खैरा ।  

आप की दुआ का असर

मिन्हाल इब्ने उमर से मन्क़ूल है: की एक बार में हज्जे बैतुल्लाह की गरज़ से मक्का शरीफ गया हुआ था, हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु भी हज्जे बैतुल्लाह को तशरीफ़ ले गए थे में आप की मुलाकात को गया और कदम बोसी से मुशर्रफ हुआ, मुझ से हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु ने पूछा: खुज़ैमा बिन काहिल अल असफरी का क्या हाल है? (शख्स क़त्ले इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु में शरीक था) में ने अर्ज़ किया, उस को कूफ़ा में ज़िंदा छोड़ आया हूँ, ये सुनकर आप ने दुआ के लिए हाथ उठाया और फ़रमाया, ऐ अल्लाह इस को आतिशे सोज़ा के हवाले कर,

रावी का बयान है की जब में कूफ़ा वापस आया तो तो मुख़्तार बिन उबैद ख़ुरूज कर चूका था, मेरी मुख्तार से दोस्ती थी इस लिए में उस की मुलाकात को गया तो क्या देखता हूँ के वो भी सवार हो चुका है, इस के साथ चला यहाँ तक के एक मक़ाम पर पहुंच कर वो ठहर गया और खुज़ैमा को गिरफ्तार कर के लोग लाए, मुख़्तार ने हुक्म दिया के फ़ौरन उस के हाथ काट डालो ! जल्लाद ने उस का हाथ काट डाला और लकड़ियों के ढेर में डाल कर उस को जला दिया । 

में ये देख कर सुब्हान अल्लाह पढ़ने लगा, मुख़्तार ने मुझ से इस का सबब पूछा में ने सारा किस्सा आप की मुलाकात और खुज़ैमा के हक में बद दुआ करने का कहा ये सुनते ही मुख़्तार घोड़े से उतर पड़ा और दोगाना शुक्रिया अदा किया, रास्ते में मेरा मकान पढता था वो मेरे मकान पर आया और में ने खाने की दावत दी तो उस ने खाना नहीं खाया और कहा, ऐ दोस्त अल्लाह पाक ने हज़रते अली बिन हुसैन की दुआ कबूल फ़रमा कर आज खुज़ैमा को मेरे हाथ से सज़ाए आमाल को पहुंचाया और में ने हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के क़ातिल से उन के क़त्ल का इंतिकाम लिया, उस के शुकरीए में आज में रोज़े से हूँ । 

संगे अस्वद की गवाही

मन्क़ूल : है के हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की शहादत के बाद हज़रते मुहम्मद हनीफ मंसबे इमामत के दावे दार हुए और हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु के पास तशरीफ़ ला कर फरमाने लगे के में आप का चचा और उमर में भी आप से बड़ा हूँ, आप तबर्रुकात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु को मेरे हवाले कर दें, आखिर दोनों हज़रात ने इस दावे के इनफिसाल के वास्ते संगे अस्वद को मुंसिफ करार दिया और दोनों हज़रात संगे अस्वद के पास तहरीफ़ ले गए आप ने संगे अस्वद से कहा: ऐ असंगे अस्वद इस बात का तसफ़िया तेरे ज़िम्मे है की हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के बाद हम दोनों में से कौन बरहक़ और मुस्तहक़े इमामत है? तो हज्रे अस्वद बा ज़बाने फसीह गोया के अल्लाह पाक ने हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के बाद मंसबे इमामत व विलायत बातनी हज़रते अली बिन हुसैन रदियल्लाहु अन्हुमा को अता फ़रमाया है ये सुन कर हज़रत मुहम्मद हनीफ अपने दावेदारी से बाज़ आए । 

औलादे किराम

हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की जुमला औलादे किराम की तादाद पन्दरह 15, थी जिन के असमाए गिरामी हस्बे ज़ैल हैं:

  1. हज़रते मुहम्मद कुन्नियत अबी जाफर और लक़ब आप का बाकर,
  2. हज़रते ज़ैद,
  3. हज़रते इमरान,
  4. हज़रते अब्दुल्लाह,
  5. हज़रते हसन,
  6. हज़रते हुसैन,
  7. हज़रते हुसैन असगर,
  8. हज़रते अब्दुर रहमान,
  9. हज़रते सुलेमान,
  10. हज़रते अली,
  11. एक रिवायत में दस लड़कों का ज़िर्क है और साहब ज़ादियाँ ये थीं :
  12. हज़रते खदीजा,
  13. हज़रते फातिमा,
  14. हज़रते उम्मे कुलसूम रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, 

नसल आप की हज़रते मुहम्मद बाकर” हज़रते ज़ैद” हज़रते अब्दुल्लाह” हज़रते हुसैन असगर” हज़रते इमरान व अली रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन से चली जिन से कसीर औलादे किराम पैदाई हुईं ।  

हर मुसीबत की दफा व दुआ

मन्क़ूल है: की एक बार हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु को एक शख्स ने हज्रे अस्वद के करीब नमाज़ पढ़ते हुए देखा जब उस ने देर तक आप को सजदे में पाया तो उस ने अपने दिल में कहा: एक मर्द सालेह अहले बैते नुबुव्वत से हैं सुन्ना चाहिए की सजदे में क्या पढ़ रहे हैं, जब उस ने सुना तो आप कह रहे थे, “ऐ खुदा ! ये बंदा कमज़ोर तेरी पनाह चाहता है, ये तेरा मिस्कीन पनाह ढूँढ़ता है अमान तलब करता है, ये तेरा फ़क़ीर पनाह चाहता है” । 

नाकिल कहता है की खुदा की कसम ! जब में ने इस दुआ को किसी मुसीबत में पढ़ा तो उससे निजात पाई,

एक शख्स ने आप से पूछा की दुनिया और आख़िरत में सब से ज़ियादा नेक और सईद कौन है? आप ने इरशाद फ़रमाया: “वो शख्स राज़ी हो तो उस की रज़ा उस को बातिल पर अमादाह न करे और जब नाराज़ हो तो उस की नाराज़गी उसे हक से न निकाले” ये वस्फ़ रास्त लोगों के औसाफ़े कमाल में से हैं, इस लिए के बातिल से राज़ी होना भी बातिल है और गुस्से की हालत में हक को हाथ से छोड़ना भी बातिल है, मोमिन की शान नहीं की वो बुतलान यानि झूट में मुब्तला हो । 

आप का विसाल

आप को वलीद बिन अब्दुल मलिक ने ज़हर दिया, इससे आप की शहादत अठ्ठारह 18, मुहर्रमुल हराम और बाज़ का कोल है की 12, या 22, मुहर्रमुल हराम बरोज़ पीर 57, या 58, साल की उमर में 94, हिजरी को मदीना शरीफ ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में विसाल फ़रमाया, और इन्ही तारीखों में आप का उर्स हर साल मनाया जाता है ।  

आप का मज़ार मुबारक

आप का मज़ार शरीफ जन्नतुल बकी में है, और जन्नतुल बकी मदीना शरीफ का मशहूर कब्रिस्तान है । 

    “अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”                                         

रेफरेन्स हवाला                      

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) मिरातुल असरार,
(4) शवाहिदुंन नुबुव्वत,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
(6) अस हुत तवारीख,
(7) हज़रते इमामे ज़ैनुल आबिदीन रदियल्लाहु अन्हु की सीरत और तअलीमात,  

  

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