हज़रते सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 3)

क़ादरी कर कादरी रख क़दरियों में उठा
क़द्र अब्दुल क़ादिरे कुदरत नुमा के वास्ते

अल्लामा हाफ़िज़ ज़हबी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी का बयान

हाफ़िज़ ज़हबी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अपनी तारिख में बयान करते हैं के अबू बक्र बिन तरखान ने बयान किया है के शैख़ मोफीकुद्दीन, से इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु का हाल दरयाफ्त किया गया तो उन्होंने कहा: के हम आप से सिर्फ आप की आखिर उम्र में मुस्तफ़ीद हुए हैं, जब हम आप की खिदमते बा बरकत में गए तो आप ने हमे मदरसे में ठहराया और आप भी अक्सर हमारे पास तशरीफ़ रखा करते थे, अक्सर आप अपने साहब ज़ादे को हमारे पास भेज देते वो आ कर हमारा चिराग रोशन कर जाया करते और अक्सर औकात आप अपने दौलत खाने से हमारे लिए खाना भी भेजा करते हम लोग आप ही के पीछे नमाज़ पढ़ा करते में खुद “किताबुल खरकी” पढ़ा करता और हाफ़िज़ अब्दुल गनी आप से “किताबुल हिदाया” पढ़ा करते और उस वक़्त हमारे सिवा आप के पास और कोई नहीं पढता था, हम आप के ज़ेरे साया सिर्फ एक महीना और नो दिन से ज़ियादा क़याम न कर सके क्युंके फिर आप का इन्तिकाल हो गया और रात को हमने आप ही के मदरसे में आप की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी, “आप की करामात से ज़ियादा में ने किसी की करामात नहीं सुनी” दीनी बुज़ुर्गी की वजह से हर कोई आप की निहायत इज़्ज़तो तअज़ीम करता था ।

तारीखे इस्लाम में आप का ज़िक्र

साहिबे तारीखे इस्लाम: ने बयान किया है के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर बिन अबी सालेह अब्दुल्लाह जिन का दोस्त अल जीली अज़्ज़ाहिद साहिबे करामात व मक़ामात थे, फुकहा, व फुकरा, के शेखो इमाम व क़ुत्बे वक़्त और शैखुल मशाइख थे, फिर आखिर में उन्होंने बयान किया है के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु इल्मों अमल में कामिल थे, “आप की करामात बा कसरत मुतावातिर तरीके से साबित हैं” ज़माने ने आप जैसा पैदा नहीं किया ।

सीरतुन नुब्ला, में आप का ज़िक्र

सीरतुन नुब्ला, में मज़कूर है के शैखुल इमाम अल आलम, अज़्ज़ाहिद, आरिफ, शैखुल इस्लाम, इमामुल औलिया, ताजुल असफिया, मुहीयुद्दीन शैख़ अब्दुल क़ादिर बिन सालेह अल जीली हम्बली रदियल्लाहु अन्हु शैख़े बगदाद थे, बिदअत को मिटाते और सुन्नत को जारी करते आप हसब व नसब में नजीबुत तरफ़ैन थे, अपने जद्दे अमजद सय्यदुल मुर्सलीन ख़ातीमुन नबीईन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस के हाफ़िज़ थे ।

तारिख इब्ने खल्दून में आप का ज़िक्र :- शैख़ अब्दुल क़ादिर बिन अबी सालेह जंगी दोस्त जीली शैख़े बगदाद अज़्ज़ाहिद शैख़े वक़्त कुदवतुल आरफीन, साहिबे मक़ामात, व करामात थे और हम्बली मज़हब के एक बहुत बड़े मुदर्रिस थे, वाइज़ गोई माफिज़ ज़मीर बयान करना आप ही का हिस्सा था । हाफिज़ अबू सईद अब्दुल करीम बिन मुहम्मद बिन मंसूर समआनी ने अपनी तारीख़ में बयान किया है के अबू मुहम्मद शैख़ अब्दुल क़ादिर रदियल्लाहु अन्हु जिलान के रहने वाले थे और हम्बली मज़हब के इमाम और उन के शैख़े वक़्त व फकीह सालेह और निहायत ही राकीकुल क्लब थे, हमेशा ज़िक्रो फ़िक्र में रहा करते थे ।

इब्ने नज्जार का बयान

मुहिब्बुद्दीन मुहम्मद बिन नज्जार ने अपनी तारीख़ में बयान किया है के शैख़ अब्दुल क़ादिर बिन अबी सालेह जंगी दोस्त अज़्ज़ाहिद अहले जिलान से थे, इमामे वक़्त और साहिबे करामाते ज़ाहिरा थे, इस के बाद उन्होंने बयान किया है के बा उमर 18, साल में बगदाद तशरीफ़ ले गए और वहां जा कर आप ने इल्मे फ़िक़्ह और इस के जुमला उसूल व फुरू, और अख़लाक़ीयात पर उबूर कर के इल्मे हदीस हासिल किया, इस के बाद आप वाइज़ो नसीहत में मशगूल हुए, और आप ने इस में नुमाया तरक्की हासिल की, फिर आप ने तन्हाई ख़ल्वत, सियाहत, मुजाहिदा, मेहनत व मशक्कत, मुख़ालफते नफ्स, कम खोरी, कम ख्वाबी, जंगल व बियाबान में रहना वगेरा सख्त उमूर इख़्तियार किए ।

किताब “तबकात” में आप का ज़िक्र

हाफिज़ ज़ैनुद्दीन बिन रजब ने अपनी किताब “तबकात” में बयान किया है के हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर बिन अबी सालेह अब्दुल्लाह बिन जंगी दोस्त बिन अबी अब्दुल्लाह अल जीली सुम्मा बगदादी अज़्ज़ाहिद शैख़े वक़्त, व अल्लामाए ज़माना, कुदवतुल आरफीन, सुल्तानुल मशाइख, और सरदारे अहले तरीकत थे, आप को अल्लाह की मखलूक में कुबूले आम हासिल हुआ, अहले सुन्नत ने आप की ज़ाते बा बरकात से क़ुव्वत पाई और अहले बिदअत व खव्वाइश ने ज़िल्लत उठाई, आप के मुकाशिफ़ात और आप की करामात की लोगों में शोहरत हो गई, और क़ुरबो जवार के बिलाद व अमसार शहरों से आप के पास फतावे, आने लगे, खुलफ़ा व वुज़रा, उमरा, गुरबा, गरज़ सब के दिल में आप की अज़मत व हैबत बैठ गई ।

आप की तसानीफ़ मुबारिका

आप की तसानीफ़ मुबारक जो के आप की यादगार है मुतालआ से अजीब सुरूर लज़्ज़ते इत्मिनाने कलबी हासिल होता है, नीज़ अजीब किस्म के दकाइक, हक़ाइक़ और मआरिफ़ का इंकिशाफ़ होता है, हर मुस्लमान को आप की तसानीफ़ पढ़ना चाहिए, “जिलाउल खातिर फिल बातिन वज़्ज़ाहिर” दीवाने गौसे आज़म” फुतूहुल ग़ैब” गुनिया तुत तालिबीन” काज़ियुल कुज़्ज़ात मुहिब्बुद्दीन अलीमी ने अपनी तारीख में बयान किया है के सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर रदियल्लाहु अन्हु हमबली थे, किताब गुनिया तुत तालिबीन, किताब फुतू हुल ग़ैब, आप ही की तस्नीफ़ात हैं जो तालिबान हक के लिए बे हद मुफीद हैं, इमाम हाफिज़ अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन युसूफ बिन मुहम्मद अल इशबीली रदियल्लाहु अन्हु अपनी किताब “अल मशीखतुल बगदादिया” में बयान किया है के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु बगदाद में हम्बली मज़हब वालों के शैख़ थे, आप को फुकहा व फ़क़ीर व खासो आम गरज़ सब के नज़दीक कुबूलियते आम्मा हासिल थी, खासो आम आप से मुस्तफ़ीद हुआ करते थे ।

आप के अख़लाके हसना

हज़रत शैख़ मुअम्मर जरादा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के मेरी आँखों ने इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु जैसा खालीक, वसी हौसला, रहम दिल, पाबन्दे कोलो इकरार, बा मुरव्वत, बा वफ़ा किसी को नहीं देखा, अपनी अज़मतो शान व शौकत और फ़ज़ीलत इल्म के बावजूद आप छोंटो के साथ खड़े हो जाते, बड़ों की तअज़ीम करते और उन्हें सलाम करने में पहल करते, गुरबा और फ़क़ीर को अपने पास बिठाते इज्ज़ो इंकिसारी से पेश आते, उमरा और रुऊसा, की तअज़ीम के लिए आप कभी भी खड़े न होते और न ही कभी वुज़रा, बादशाहों और उमरा के दरवाज़े पर गए,

आप के अख़लाके करीमाना

हाफिज़ अबू सईद अब्दुल करीम सुमआनी, मुफ़्तीए इराक अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बगदादी, शैख़ मुअम्मर जरादह और शैख़ अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन युसूफ अल इशबीली अलैहिमुर रह्मा फरमाते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु रकीकुल क्लब, खलीक, वसी हौसला, शीरीं ज़बान, रहम दिल, हद दर्जा खुदा तर्स, सखी, मेहमान नवाज़, गरीब नवाज़, बा मुरव्वत और पाबंदे कोलो इकरार थे, आप की ज़ात मजमउल बरकात सिफ़ाते जमीला और ख़ासाइल हमीदा की जामे थी, शैख़ अब्दुल्लाह जुब्बाई कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी: फरमाते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने मुझ से इरशाद फ़रमाया के मेरे नज़दीक खाना खिलाना और हुस्ने अख़लाक़, अफ़ज़ल व अकमल हैं, आप ने इरशाद फ़रमाया: मेरे हाथ में पैसा नहीं रुकता, अगर सुबह को मेरे पास हज़ार दीनार आएं तो शाम तक इन में से एक पैसा भी न बचे गरीबों और महताजों में तकसीम कर दूँ, और लोगों को खाना खिलाऊँ, मुफ़्तीए इराक फरमाते हैं के आप की बारगाहे बेकस पनाह और जूदो सखावत से कोई साइल कभी खाली नहीं जाता था,

एक गरीब मोहताज की मदद करना

एक दफा एक शख्स को आप ने कुछ मगमूम और अफ़सुर्दाह देख कर पूछा, तुम्हारा क्या हाल है? उस ने अर्ज़ की हुज़ूर! दरियाए दजला के पार जाना चाहता था मगर मल्लाह ने बगैर किराया के कश्ती में नहीं बिठाया, और मेरे पास कुछ भी नहीं, इसी दौरान एक अकीदत मंद आप की खिदमत में हाज़िर हुआ, और तीस दीनार नज़राना आप को पेश किया, आप ने वो तीस दीनार उस शख्स को दिए और फ़रमाया जाओ! ये तीस दीनार उस मल्लाह को दे देना और कह देना के आइंदा वो किसी गरीब को दरिया पार कराने पर इंकार न करे, नीज़ आप ने अपनी कमीस मुबारक जो आप पहने हुए थे उस को उतार कर अता फरमा कर बीस दीनार दे कर फिर उस कमीस को खरीद लिया । आप रोज़ाना रोटियां पक्वा कर गरीबों और फ़क़ीरों जो हाज़िरे खिदमत होते उन में तकसीम फरमाते, और जो कुछ बच जाता, मगरिब के बाद आप का खादिम मुज़फ्फर नामी रोटियां ले कर खड़ा हो जाता और बा आवाज़े बुलंद ऐलान करता के जिस किसी को रोटी की ज़रूरत हो तो ले जाए, अगर कोई मुसाफिर खाना खा कर रात भी बसर करना चाहता है तो वो यहाँ रात भी बसर कर सकता है ।

हज़रत की खिदमत में हदीय्या तोहफे, नज़राने और तहाईफ़ इस कसरत से आते थे जिस का शुमार नहीं हो सकता था, मगर आप नज़राने को हाथ में न लेते थे बल्के नज़राने पेश करने वाले आप के मुसल्ले के नीचे नज़राने रख देते, तो आप उन में से कुछ हज़रीन में तकसीम फरमाते और कुछ पेश करने वालों को इनायत फरमाते, रकम वगैरा के मुतअल्लिक़ अपने खादिम को इरशाद फरमाते के महमानो की महमान नवाज़ी के लिए नानबाई और सब्ज़ी फरोश के हवाले कर दो । रोज़ाना रात को आप का दस्तर ख्वान बिछाया जाता था, जिस पर आप अपने महमानो के साथ खाना तनावुल फरमाते, गुरबा व मसाकीन के साथ आप ज़ियादा बैठा करते थे, उन के साथ बैठ कर खाना भी तनावुल फरमाते, तलबा भी कसरते तादाद में आप के दस्तर ख्वान से ही खाना खाते ।

मुसलसल बीस दिन तक फाका

हज़रत शैख़ अबू मुहम्मद तल्हा बिन मुज़फ्फर कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से मरवी है के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने अपने अय्यामे मुजाहिदा के एक दिन का तज़किराह फ़रमाया के इब्तिदा में एक दफा मुझ को बीस दिन तक कुछ खाने को नहीं मिला, और में ऐवाने कसर के खँडरात में गया ताके कोई फल या और कोई मुबाह चीज़ खाने के लिए मिल जाए, वहां देखा के मुझ जैसे सत्तर दुरवेश और तलाशे रिज़्क़ में मसरूफ हैं, ये देख कर में बगदाद की तरफ वापस लोटा, रास्ते में मुझे एक शख्स मिला और उस ने कुछ रकम दी और कहा के ये आप की वालिदा मुहतरमा ने भेजी है, में वो रकम ले कर सीधा इन सत्तर फ़क़ीरों के पास पंहुचा और उस रकम में से थोड़ी सी रकम अपने लिए रख कर बाकि उन में तकसीम कर दी, जो रकम में ने अपने लिए रखी थी उस का खाना खरीदा और बहुत से मसाकीन को बुला कर खाया ।
इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के फ़रज़न्दे अर्जमन्द सय्यदना अब्दुर रज़्ज़ाक कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के एक मर्तबा आप सफरे हज पर तशरीफ़ ले गए, खुद्दाम काफी तादाद में आप के साथ थे, रास्ते में मोज़ा हल्ला के करीब बगदाद में जब पहुंचे तो आप ने खादिमो को हुक दिया के इस बस्ती में जा कर सब से ज़ियादा मुफ़लिस बे कस और नादार घर तलाश करो तहक़ीक़ से मालूम हुआ के एक घर बहुत मफ्लू कुल हाल है जिस में दो बूढ़े मोहताज मर्दो औरत हैं और एक बच्ची रहते मिले, हज़रत खुद इस मकान में तशरीफ़ ले गए और इन दोनों से पूछा के हम तुम्हारे मकान पर ठहरन चाहते हैं, उन्होंने अर्ज़ किया ब सरो चश्म मकान हाज़िर है, आप ने खुद्दाम समीत वहां क़याम फ़रमाया, तो इस बस्ती के मशाइख और अकीदत मंदों ने हाज़िरे खिदमत हो कर अपने हाँ क़याम फरमाने के लिए अर्ज़ किया, मगर आप ने इसी मकान को पसंद फ़रमाया, इन लोगों ने आप की खिदमत में बेश बहा कीमत के तहाईफ़ का अम्बार लगा दिया, दूसरे रोज़ रवानगी के वक़्त आप ने वो सब तहाईफ़ नज़राने उस बूढ़े को अता फरमा दिए, इस तरह अल्लाह पाक ने आप के कुदूमे मेमनत लुज़ूम की बरकत से इस बेकस, नादार, और मुफ़लिस घर को दौलत मंद और मालदार बना दिया ।
कारिईने किराम: ये सब औसाफ़ आप की ज़ाते वाला सिफ़ात में इस लिए थे के आप के दिल में दुनिया की मुहब्बत क़तअन न थी, इसी वास्ते आप बादशाह और उमरा वगैरह की बिलकुल परवाह नहीं करते थे, क्युंके दुनिया की मुहब्बत इंसान को लालची और हरीस बनाकर यदि इलाही से गाफिल कर देती है ।

आप का पानी पर चलना

हज़रत शैख़ सहल बिन अब्दुल्लाह तुस्तरी इराकी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं, के एक बार अहले बग़दाद की नज़र से इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु काफी अरसा ग़ाइब रहे, हम लोगों ने आप को तलाश किया तो मालूम हुआ के आप को दरियाए दजला की जानिब जाते देखा, जब आप को तलाश करते हुए दरयाए दजला पर पहुंचे तो हमने देखा के आप पानी पर चलते हुए हमारी तरफ आ रहे हैं, कसरत के साथ मछलियां आप की खिदमत में हाज़िर हो कर सलाम अर्ज़ करती हैं और हमने मछलियों को आप का दस्ते मुबारक चूमते देखा, उस वक़्त नमाज़े ज़ोहर का वक़्त हो गया, इसी दौरान में हमे एक सब्ज़ रंग का सोने और चाँदी सी मुरस्सा मुसल्ला दिखाई दिया जो तख्ते सुलेमानी की तरह हवा में दरियाए दजला के ऊपर लटका हुआ था, उस मुसल्ले के ऊपर दो सतरें थीं एक सत्र में “أَلَا إِنَّ أَوْلِيَاءَ اللَّهِ لَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ (62” और दूसरी सत्र पर “سَلَام عَلیکم اَھل البیت اِنه حمیدٌ مجید” लिखा हुआ था, जब वो मुसल्ला बिछ गया तो बहुत से लोग आए मुसल्ले के बराबर खड़े हो गए, इन लोगों के चेहरों से बहादुरी शुजाअत ज़ाहिर थी, सब लोग खामोश और बा अदब थे, जैसा के उन को कुदरत गोयाई ही नहीं, उन की आँखों सी आंसू भी जारी थे इन हज़रात के आगे एक पुर वकार अज़ीमुल मरतबत शख्सीयत थी, तकबीर कही गई और इन सब हज़रात की इमामत “इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु” ने कराइ ।

पांच हज़ार यहूद और नसारा का इस्लाम कबूल करना

शैख़ अब्दुल क़ादिर जुब्बाई कहते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने मुझ से बयान फ़रमाया: बेशक मेरे हाथ पर पांच हज़ार से ज़ियादा यहूदी और नसरानीयों ने इस्लाम कबूल किया, और एक लाख से ज़ियादा डाकूओं, कज़्ज़ाकों, फुस्साक़ों, फुज्जार, मुफ़सिद, और बिदअती लोगों ने तौबा की ।

कोहे काफ के “औलिया” का आप की खिदमत में आना

हज़रत शैख़ अबुल गनाइम बताही कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के आप के आस्ताना आलिया पर एक मर्तबा हाज़िर हुआ तो में ने आप के पास चार अश्ख़ास को बैठे हुए देखा जिन को में ने आज से पहले कभी नहीं देखा था जब ये हज़रात उठ कर चले गए तो आप ने मुझ से इरशाद फ़रमाया जाओ! इन से अपने लिए दुआए खेर कराओ, में मदरसे के सहन में उन से जा मिला, और अपने लिए दुआ के लिए कहा तो उन में से एक बुज़रुग ने इरशाद फ़रमाया: तुम बड़े खुश किस्मत हो के ऐसे (गौसे आज़म कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी) की खिदमत में हो जिस की बरकत से अल्लाह पाक ज़मीन को क़ाइम रखेगा और जिस की दुआ की बरकत से तमाम मखलूक पर फ़ज़्लो करम फरमाएगा, दीगर औलियाए इज़ाम की तरह हम लोग भी इन के सायाए आतिफ़त में रह कर इन के ताबे फरमान हैं, ये कह कर वो चारों बुज़रुग चले गए और नज़रों से ग़ाइब हो गए, में आप की खिदमत में मुतअज्जिब हो कर वापस आया आप ने क़ब्ल इस के में कुछ अर्ज़ करूँ मुझे इरशाद फ़रमाया के मेरी हयात में तुम इस की किसी को खबर ना करना, में ने पूछा हुज़ूर! ये कौन लोग थे? तो आप ने इरशाद फ़रमाया के ये लोग “कोहे काफ” के रुऊसा थे, और अब वो अपनी जगह पर पहुंच भी गए ।

शैतान के मकर से महफूज़ रहना

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के साहब ज़ादे हज़रत शैख़ मूसा रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के में ने अपने वालिद मजीद से सुना, उन्होंने फ़रमाया के में एक रोज़ किसी ऐसे जंगल की तरफ निकल गया जहाँ कहीं आबो दाना का नामो निशान तक न था, में कई रोज़ वहां क़याम पज़ीर रहा, हत्ता के मुझे सख्त प्यास लगी, में ने देखा के मेरे सर पर बदली का एक टुकड़ा आया उससे कुछ पानी टपका, जिससे में ने प्यास बुझाई, इस के बाद मुझे एक नूर की सूरत दिखाई दी जिससे आसमान के किनारे मुनव्वर हो गए, इस सूरत से मुझे ये आवाज़ सुनाई दी ऐ अब्दुल क़ादिर! में तुम्हारा रब हूँ, में ने तमाम हराम चीज़ें तुम पर हलाल कर दीं, तो में ने “ता अव्वुज़, अऊज़ू बिल्लाह शरीफ” पढ़ कर इस को रद्द कर दिया, और इस की रौशनी ख़त्म हो गई और वो सूरत धूंएं की तरह दिखाई देने लगी, फिर उस सूरत से में ने ये आवाज़ सुनी “ऐ अब्दुल क़ादिर! तुम ने अपने इल्में खुदावन्दी, अपनी फ़िक़्ह और समझ से मक्र और फरेब से निजात हासिल की है, वरना में इसी मकर से साहिबे तरीकत हज़रात को गुमराह कर चुका हूँ, तो जवाबन में ने उस को कहा के मेरे रब्बे करीम का फ़ज़्लो करम मेरे शामिले हाल है, इस के बाद मुझ से ये पूछा गया के तुम ने किस तरह पहचाना के वो शैतान था, तो में ने कहा के उस के कौल से “के में ने तुम पर तमाम हराम चीज़ें हलाल कर दीं” मुझे मालूम था के अल्लाह पाक फाहिश बातों का किसी को भी हुक्म नहीं फरमाता ।

आप का तरीका

हज़रत शैख़ अली बिन इदरीस याकूबी बयान करते हैं के हज़रत शैख़ अली बिन हीती कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से आप का तरीका दरयाफ्त किया गया में उस वक़्त आप के पास मौजूद था उन्होंने बयान किया के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु का कदम तफ़वीज़ मवाफ़िक़त और अपनी कुव्वत व ताकत पर भरोसा न करते, तजरीद व तौहीद तफ़रीद बा हुज़ूर बा वक़्ते उबूदीयत या सर क़ाइम मक़ाम अब्दियत न शै व न बराए शै आप का तरीका था आप की उबूदियत महिज़ कमाल रुबूबियत से मुअय्यद थी मसहिबे तफरका से निकल कर मआ एहकामे शरीअत मुताला जामे में पहुंच गए थे, खलील बिन अहमद: बयान करते हैं के में ने हज़रत शैख़ बका बिन बतू कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से सुना वो फरमाते थे के कौल व फेल का और नफ़्स व वक़्त का मुत्तहिद रहना इखलास व तस्लीमा रज़ा इख्तियार करना किताबुल्लाह व सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हर वक़्त हर लहज़ा व हर हाल में पैरवी करना और तक़र्रूब इलल्लाह में ज़ियादा होना आप का तरीका था, हज़रत शैख़ अबू सईद किल्वी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बयान करते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु का मकाम मआ अल्लाह, वा फिल्लाह, बिल्लाह, जिस के सामने बड़ी बड़ी ताकतें बेकार थीं आप बहुत से मुताक़द्दिमीन में से सबक़त ले कर ऐसे मकाम पर पहुंचे थे के जहाँ तनज़्ज़ुल मुमकिन नहीं अल्लाह पाक ने आप की तहक़ीक़ व तद कीक की वजह से आप को एक बहुत बड़े ज़बर दस्त मकाम पर पहुंचाया था ।

शैख़ अब्दुल क़ादिर कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी जैसी क़ुव्वत किसी को नसीब नहीं

हज़रत शैख़ अब्दुर रहमान बिन अबुल हसन अली बताही रिफाई कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बयान करते हैं के जब में बग़दाद गया, तो इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु, की खिदमते अक़दस में भी हाज़िर हुआ और जब आप के हाल और आप के हाल और आप की फरागत कलबी, वगैरा के आप के दीगर हालात को में ने देखा तो में हैरान रह गया जब वापस आया और अपने मामू मुहतरम को इस की इत्तिला दी तो वो फरमाने लगे के ऐ मेरे फ़रज़न्द! इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु, जैसी कुव्वत किसी को नसीब है? और जिस हाल पर वो हैं कौन रह सकता है और जहाँ तक वो पहुंचे हैं कौन पहुंच सकता है? ।

आप के मुजाहिदात और रियाज़त

हज़रत शैख़ अबू बक्र तमीमी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बयान करते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के जब बग़दाद शरीफ में कहित साली हुई तू मुझे सख्त तंग दस्ती हुई, कई रोज़ में ने खाना न खाया, बल्के इस दौरान में गिरी पड़ी फेंकी हुईं जो चीज़ मिल जाती उस को खा लेता । एक रोज़ भूक ने खूब सताया, इस लिए दरियाए दजला की तरफ चला गया के शायद कोई सब्ज़ी तरकारी, घास वगेरा के पत्ते मिल जाएं उस को खा कर गुज़ारा कर लूँ, जब उस तरफ गया, तो जिधर देखता हूँ वहां मुझ से पहले आदमी मौजूद होते और उन से मुज़ाहिमत और पेश कदमी करने को में ने अच्छा नहीं समझा, शहर में लोट आया, और यहाँ भी मुझे कोई चीज़ नहीं मिली, आखिर भूक से तंग आ कर बग़दाद शरीफ की मंडी “सौकुर रिहानीन” की मस्जिद के गोशे में जा कर बैठ गया ।

हज़रत शैख़ अबू सईद अल हरिमी रदियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया है के में ने रियाज़त और मुजाहिदा, का कोई ऐसा तरीका नहीं छोड़ा जिस को अपने नफ़्स के लिए न अपनाया हो, और इस पर क़ाइम न रहा हूँ । मुददते मदीद तक में शहर के वीरान और बगैर आबादी के मक़ामात पर ज़िन्दगी बसर करता रहा, नफ़्स को तरह तरह की रियाज़त और मशक्कत में डाला पच्चीस 25, साल तक ईराक के बयाबान जंगलों में तन्हा फिरता रहा, चुनांचे एक साल तक में साग, घास वगेरा और गिरी पड़ी हुई चीज़ों से गुज़ारा करता रहा, और पानी मुतलक़न नहीं पिया, फिर एक साल तक पानी भी पीता रहा, फिर तीसरे साल में सिर्फ पानी पर ही गुज़ारा था, खाता कुछ भी नहीं था, फिर एक साल तक न ही कुछ खाया न ही पिया और न ही सोया । (तब्कातुल कुबरा जिल्द 1, बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार, कलाईदुल जवाहिर, जामे करामाते औलिया जिल्द 1,)

चालीस साल तक ईशा के वुज़ू से फजर की नमाज़ पढ़ना

हज़रत शैख़ अबुल फतह हरवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बयान करते हैं के में इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमते अक़दस में चालीस साल तक रहा और इस मुद्दत में, में ने देखा के आप हमेशा ईशा के वुज़ू से सुबह की नमाज़ पढ़ते रहे आप का दस्तूर था के जब वुज़ू टूट जाता तो आप फ़ौरन वुज़ू कर लिया करते और वुज़ू कर के आप दो रकअत निफल “तहय्यतुल वुज़ू” पढ़ा करते थे और शब को आप का क़ाइदा था के ईशा की नमाज़ पढ़ कर आप ख़ल्वत खाना में दाखिल हो जाते थे और फिर सुबह की नमाज़ के वक़्त आप वहां से निकला करते थे उस वक़्त आप के पास कोई नहीं जा सकता था यहाँ तक के ख़लीफ़ए बग़दाद रात को आप से मिलने की गरज़ से कई दफा हाज़िर हुआ मगर तुलू फजर से पहले कभी ख़लीफ़ए बग़दाद की आप से मुलाकात न हुई,

एक रात में क़ुरआने पाक खत्म फरमाना

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु पंद्रह 15, साल रात भर में एक कुरआन शरीफ ख़त्म करते रहे । हज़रत शैख़ अबू अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह: फरमाते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के में ने बड़ी सख्तियां और मशक्क़तें बर्दाश्त कीं अगर वो किसी पहाड़ पर गुज़रतीं तो वो पहाड़ भी फट जाता । हज़रत शैख़ अली करशी रहमतुल्लाह अलैह एक शख्स से बयान करते हैं के अगर तुम इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु को देखते तो गोया ऐसे शख्स की ज़ियारत करते जिस ने अपने रब्बे करीम की रज़ा की खातिर उस की राह में अपनी सारी कुव्वत को मिटा दिया, और अहले तरीकत को कवि और मज़बूत कर दिया । आप हर रोज़ एक हज़ार निफ़्ल अदा फरमाते थे ।

आप का “कदम” हर वली की गर्दन पर है

हज़रत शैख़ हाफिज़ अबुल इज़्ज़ा अब्दुल मुगीस बिन हरब अल बगदादी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से मरवी है के हम लोग इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की उस मुबारक मजलिस में हाज़िर थे जिस में आप ने “قَدْ مِیْ ھَذہ عَلٰي رَقَبَةٍ كُلِّ وَلِی اللّهَ ” फ़रमाया था (मेरा ये कदम हर वली की गर्दन पर है) ये मजलिस “मोहल्ला हल्बा” में जहाँ आप का मेहमान खाना था मुनअकिद थी, इस मुकद्द्स मजलिस में हमारे सिवा इराक के उमूमन मशाइखे इज़ाम मौजूद थे, जिन में से बाज़ मशाइख़ीन के अस्माये गिरामी दर्ज ज़ैल हैं: शैख़ अली बिन हीती, शैख़ बका बिन बतू, शैख़ अबू सईद अल कील्वी, शैख़ मूसा माहीन, या बकौल माहान, शैख़ अबू नजीब सोहर वरदी शैख़ अबुल करम, शैख़ अबू अमर उस्मान अल करशी, शैख़ मकारीमुल अकबर, शैख़ मतर व जागीर, शैख़ खलीफा बिन मूसा अल अकबर, शैख़ सिद्दीक बिन अल बगदादी, शैख़ याहया अल मुरतइश, शैख़ ज़ियाउद्दीन इब्राहीम अल हूफी, शैख़ अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद अल क़ज़वीनी, शैख़ अबू उमर अल बताही, शैख़ क़ज़ीबुल बान, शैख़ अबुल अब्बास अल यमानी, शैख़ अबुल अब्बास अहमद अल क़ज़वीनी, इन के शागिर्द शैख़ दाऊद ये पांचों वक़्त की नमाज़ मक्का शरीफ में पढ़ते थे, शैख़ अबू अब्दुल्लाह अल खास, शैख़ अबू उमर उस्मान इराकी अल शोकि, शैख़ सुल्तान मुज़य्यन, शैख़ अबू बक्र अल शियानी, शैख़ अबुल अब्बास अहमद बिन अल उस्ताज़, शैख़ मुबारक अल हमीरी, शैख़ अबुल बरकात, शैख़ अब्दुल क़ादिर अल बगदादी, शैख़ अबू सऊद अत्तार, शैख़ शहाब उमर सोहर वरदी, शैख़ अबू हफ्स अल ग़ज़ाली, शैख़ अबू मुहम्मद अल फ़ारसी, शैख़ अबू मुहम्मद अल याकूबी, शैख़ अबू हफ्स अल किमानी, शैख़ अबुल हसन अल जूसी, शैख़ क़ाज़ी अबू याला अल फरा रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, और इन के अलावा दीगर मशाइख किराम मौजूद थे, और आप इन सब हज़रात के सामने वाइज़ (तकरीर) फरमा रहे थे के उसी वक़्त आप ने قَدْ مِیْ ھَذہ عَلٰي رَقَبَةٍ كُلِّ وَلِی اللّهَ ” कहा यानि मेरा ये कदम हर एक वली की गर्दन पर है ये फरमान सुन कर हज़रत शैख़ अली बिन हीती कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी उठे और मिम्बर शरीफ के पास जाकर आप का कदम मुबारक अपनी गर्दन पर रख लिया, इस के बाद तमाम हाज़रीन ने आगे बढ़ कर अपनी गर्दने झुका दिं ।

हज़रत शैख़ माजिद अल करवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

हज़रत शैख़ माजिद अल करवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने बयान किया है के जब इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने “मेरा ये कदम हर वली की गर्दन पर है” इरशाद फ़रमाया था, तो उस वक़्त कोई अल्लाह का वली ज़मीन पर बाक़ी न रहा के जिस ने तवाज़ोह और आप के आला मर्तबे को तस्लीम न किया हो और गर्दन न झुकाई हो, और न ही उस वक़्त सालेह जिन्नात, में से कोई ऐसी मजलिस थी के जिस में इस अम्र का ज़िक्र न हुआ हो, तमाम दुनिया आलम के सालेह जिन्नात, के वफ्द आप के दरवाज़े पर हाज़िर थे, उन सब ने आप को सलाम का तोहफा पेश किया, और सब के सब आप के दस्ते मुबारक पर ताइब हो कर वापस पलटे ।

हज़रत शैख़ अदी बिन मुसाफिर कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी

हज़रत शैख़ अबू मुहम्मद युसूफ अल आकूली कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के एक दफा में हज़रत शैख़ अदी बिन मुसाफिर कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की खिदमत में हाज़िर हुआ । तो हज़रत शैख़ अदी बिन मुसाफिर कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने मुझ से पूछा के आप कहाँ के रहने वाले हैं तो में ने अर्ज़ किया के बाग्दाद् शरीफ का रहने वाला हूँ, और इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के मुरीदीन में से हूँ, आप ने इरशाद फ़रमाया खूब खूब, यानि वो तो “क़ुत्बे वक़्त” हैं, जब के उन्हों ने “मेरा ये कदम हर वाली की गर्दन पर है” फ़रमाया तो उस वक़्त तीन सो 300, औलिया अल्लाह, और सात सो 700, रिजाल ग़ैब ने जिन में से बाज़ ज़मीन पर बैठने वाले, और बाज़ हवा में उड़ने वाले थे, उन्होंने अपनी गर्दन झुका दीं, पस ये मेरे नज़दीक उन की अज़मतो बुज़ुर्गी के लिए काफी दलील है ।

क़ुतबीयत का झंडा

हज़रत शैख़ मतर रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं के में ने इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के साहब ज़ादे हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह से मालूम किया के जिस मजलिस में आप के वालिद मुहतरम ने “मेरा ये कदम हर वली की गर्दन पर है” फ़रमाया था, आप उस मजलिस में मौजूद थे आप ने फ़रमाया: हाँ! में उस मजलिस में मौजूद था और बड़े बड़े पचास 50, अयान अकाबिर, मशाइख इज़ाम मौजूद थे, इस के बाद हज़रत शैख़ मतर रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के साहब ज़ादे हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह अंदर मकान में तशरीफ़ ले गए और हम दो तीन आदमी शैख़ मकारिम, शैख़ मुहम्मद अल खास, व शैख़ अहमद अल अरीनी बाते करते हुए बैठे रहे तो उस वक़्त शैख़ मकारिम ने फ़रमाया: के में अल्लाह पाक को हाज़िर व नाज़िर जान कर कहता हूँ के जिस रोज़ आप ने “मेरा ये कदम हर वली की गर्दन पर है” फ़रमाया था, उस रोज़ रूये ज़मीन के तमाम औलिया ने मुआइना किया के “कुतबीयत का झंडा” आप के सामने गाड़ा गया है, और गॉसियत का ताज आप के सर पर रखा गया है और आप तसर्रूफ़े ताम का खिलअत जो के शरीअत व हकीकत के नक्शो निगार से मुज़य्यन था ज़ेबे तन किए हुए “मेरा ये कदम हर वली की गर्दन पर है” फरमा रहे थे, इन सब ने ये सुन कर एक ही आन में अपने सर झुका कर आप के मर्तबे को कुबूल किया हत्ता के दसों “अब्दालों” ने भी जो के सलातीने वक़्त थे अपने सर झुकाए,

हज़रत शैख़ मतर रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं के में ने शैख़ मकारिम, से पूछा वो दस अब्दाल कौन हैं? तो आप ने फ़रमाया वो दस अब्दाल ये हैं,
(1) हज़रत शैख़ बका बिन बतू, (2) हज़रत शैख़ अबू सईद कील्वी, (3) हज़रत शैख़ अली बिन हीती, (4) हज़रत शैख़ अदि बिन मुसाफिर, (5) हज़रत शैख़ मूसा अल ज़ूली, (6) हज़रत शैख़ अहमद बिन रिफाई, (7) हज़रत शैख़ अब्दुर रहमान तफूंजी, (8) हज़रत शैख़ अबू मुहम्मद बसरी, (9) हज़रत शैख़ हयात बिन क़ैस अल हरानि, (10) हज़रत शैख़ अबू मदयन मगरिबी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, तो ये सुन कर शैख़ मुहम्मद अल खास अहमद अल अरीनी ने कहा: बेशक आप सच फरमाते हैं मेरे बिरादिरे मुकर्रम शैख़ अब्दुल जब्बार, शैख़ अब्दुल अज़ीज़ ने भी आप की ताईद की रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।

हाज़रीने मजलिस औलिया अल्लाह का हदियाए अकीदत

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हुने जब “मेरा ये कदम हर वली की गर्दन पर है” इस का ऐलान फ़रमाया तो उस वक़्त बहुत बड़ी जमाअत हवा में उड़ती हुई नज़र आयी, वो जमाअत आप की खिदमत में हाज़िर होने के लिए आई, और हज़रते सय्यदना ख़िज़र अलैहिस्सलाम ने उन को आप की खिदमते अक़दस में हाज़िर होने का हुक्म दिया था, जब आप ने ऐलान फ़रमाया तो तमाम औलिया अल्लाह ने आप को मुबारक बाद दी और इस तरह हदियाए तबरीक पेश किया, ऐ बादशाहे इमामे वक़्त, ऐ काइमे अमरे इलाही, ऐ वारिसे किताबुल्लाह व सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऐ वो आली मरतबत ज़मीनो आसमान जिस का दस्तर ख्वान है और तमाम अहले ज़माना जिस के अहलो अयाल हैं, ऐ वो ज़ीवकार जिस की दुआ से बारिश बरसती है जिस की बरकत से जानवरों के थानों में दूध उतरता है जिस के रूबरू औलियाए इज़ाम सर झुकाए हुए हैं, जिस के पास रिजालुल गैब की चालीस सफें नियाज़ मंदना तरीक से खड़ी होती हैं, उन की हर सफ में सत्तर सत्तर मर्द हैं ऐ वो आली मक़ाम जिस के हथेली पर लिखा हुआ है के अल्लाह पाक इस के किए हुए वादा को पूरा करेगा और जिस की दस साला उमर शरीफ में फ़रिश्ते इस के इर्द गिर्द फिरते थे और इस की विलायत की खबर देते थे,

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तसदीक़

शैख़ ख़लीफ़तुल अकबर ने सरवरे काइनात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा और अर्ज़ किया के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने “मेरा ये कदम हर वली की गर्दन पर है” इस का ऐलान फ़रमाया है, तो सरकारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “शैख़ अब्दुल क़ादिर” ने सच कहा है, और वो ये क्यों न कहते जब के वो “क़ुत्बे ज़माना” और मेरी ज़ेरे निगरनि हैं ।

मलाइका का तसदीक़ फरमाना

हज़रत शैख़ बक़ा बिन बतू कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं जब इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने “मेरा ये कदम हर वली की गर्दन पर है” फ़रमाया तो उस वक़्त मलाइका यानि फरिश्तों ने भी ज़बाने हल से कहा: ऐ अल्लाह के बन्दे! आप ने सच फ़रमाया है ।

रेफरेन्स हवाला
  • बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार,
  • तबक़ातुल कुबरा जिल्द 1, शआरानी,
  • कलाईदुल जवाहिर,
  • हयाते गौसुलवरा,
  • सीरते गौसे आज़म,
  • ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
  • अख़बारूल अखियार फ़ारसी व उर्दू,
  • मसालिकुस्सलिकीन जिल्द अव्वल,
  • अवारिफुल मआरिफ़,
  • तज़किराए मशाइखे इज़ाम जिल्द अव्वल,
  • सैरुल अखियार महफिले औलिया,
  • हक़ीकते गुलज़ारे साबरी,
  • जामे करामाते औलिया जिल्द 1,
  • अल्लाह के मशहूर वली,
  • तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
  • सीरते गौसुस सक़लैन,
  • सफीनतुल औलिया,
  • नफ़्हातुल उन्स,
  • गौसे पाक के हालात,

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