हज़रते सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 5)

क़ादरी कर कादरी रख क़दरियों में उठा
क़द्र अब्दुल क़ादिरे कुदरत नुमा के वास्ते

इस तस्का के मरीज़ को शिफा देना

हज़रत शैख़ खिज़र अल हुसैनी मूसली रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के में तेराह 13, साल इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में रहा और बहुत सी करामात देखता रहा, आप की करामातों में से एक अज़ीम करामत ये थी के जब तबीब किसी मरीज़ से आजिज़ आ जाते और जवाब देते, तो उस मरीज़ को आप की खिदमते अक़दस में लाया जाता, आप उस के जिस्म पर हाथ फेर कर दुआ फरमाते तो वो मरीज़ फ़ौरन शिफा याब हो जाता, चुनांचे एक बार खलीफा मुस्तनजिद बिल्लाह का एक करीबी अज़ीज़ मरज़े इस तस्का में मुब्तला हुआ उस को आप के पास लाया गया, उस का पेट पानी पीते पीते फूल गया था, जब उस के पेट पर इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने हाथ फेरा इस तरह दब गया के जैसे उस को ये मर्ज़ था ही नहीं, एक दफा अबुल मुआली बगदादी ने आप से अर्ज़ किया के मेरा बच्चा मुहम्मद पंद्रह 15, महीनो से बुखार में मुब्तला है और किसी वक़्त भी बुखार कम नहीं होता, आप ने फ़रमाया इस के कान में कहदो के “ऐ उम्मे मुलदम! इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने हुक्म दिया है के मेरे बच्चे पर से हल्ला की तरफ चला जा अबुल मुआली ने इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के कहने पर अमल किया और बच्चे का पुराना बुखार जाता रहा ।

तंदरुस्ती का लिबास अता करना

हज़रत शैख़ अली बिन इदरीस याकूबी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेरे शैख़े तरीकत हज़रत शैख़ अली बिन हीती रहमतुल्लाह अलैह एक दिन मुझे अपने साथ ले कर इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए और मेरे मुतअल्लिक़ आप से अर्ज़ किया के हुज़ूर ये आप का मुरीद है, आप के जिसमे अक़दस पर एक जुब्बा था आप ने उसे उतार कर मुझे पहना दिया और इरशाद फ़रमाया के ऐ अली! तूने तंदुरुस्ती व आफ़ियत का लिबास पहना लिया है इस जुब्बे को पहिनने के बाद 65, साल गुज़र गए हैं, अब तक मुझे किसी किस्म की बिमारी नहीं हुई ।

बे औलाद शख्स को बेटा अता किया यानि मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी रहिमहुल्लाह

शैख़ अली बिन मुहम्मद अरबी बड़े मालदार थे मगर आप के कोई औलाद न थी इस लिए हमेशा ग़मगीन रहते थे, जिस मजज़ूब, सालिक, या वली के पास जाते हर जगह यही सुनते के ये दर्द ला इलाज है, तेरी किस्मत में कोई औलाद नहीं है, जब उन्हों ने इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु का शोहरा चर्चा सुना तो हाज़िरे खिदमत हुए और मिन्नत समाजत की, पस इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने अपनी बीठ इन की पीठ से रगड़ी और फ़रमाया के में ने एक लड़का अपने सुल्ब से तुझे दिया, ये लड़का खुदा की बारगाह में मकबूल होगा और अपने वक़्त का “क़ुत्बे ज़माना” होगा इस का नाम “मुहीयुद्दीन” रखना, पस हज़रत मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी पैदा हुए, वो इन को ले कर हाज़िरे खिदमत हुए, आप ने फ़रमाया सुब्हान अल्लाह कैसा फ़रज़न्द हुआ है के कुल असरारे जिन को औलियाए नामदार पोशीदह कर के रखते थे इन्हें आशकार करेगा, और ज़माने ने देखा के आप अपने वक़्त के जलीलुल क़द्र औलियाए किराम में शुमार हुए और “हज़रत शैख़े अकबर मुहीयुद्दीन इब्ने अरबी रदियल्लाहु अन्हु” के नाम से मशहूर हुए ।

इल्मे कलाम को इल्मे लदुन्नी से बदल देना

हज़रत शैख़ अबू मुहम्मद सालिम रहमतुल्लाह अलैह से मन्क़ूल है के हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने कहा इस हालत में के में जवान था, इल्मे कलाम में मशगूल हुआ और इस की में ने बहुत सी किताबें हिफ़्ज़ कर के इस इल्म में कमाल हासिल किया, मेरे चचा इस इल्म से मुझ को मना करते और झिकड़ते रहते थे लेकिन में बाज़ न आता था, वो एक रोज़ मुझे साथ लेकर इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की ज़ियारत को गए और अप की बारगाह में बैठे, तब मेरे चचा ने हज़रत शैख़ से अर्ज़ किया के ऐ मेरे सरदार! ये उमर मेरा भतीजा है, “इल्मे कलाम” में मशगूल हैं, में इस को मना करता हूँ लेकिन ये नहीं मानता आप ने फ़रमाया ऐ उमर! तुमने कौन कौन सी किताब इल्मे कलाम की हिफ़्ज़ की हैं, में ने कहा फुलां फुलां किताब, तब आप ने अपना दस्ते मुबारक मेरे सीने पर रखा और फेरा तो ख़ुदाए बुज़रुग की कसम इस इल्म को मेरे सीने से ऐसा निकाला के मुझ को एक लफ्ज़ भी उस का याद न रहा और अल्लाह पाक ने मेरे सीने में उसी वक़्त इल्मे लुद्दीन, भर दिया, फिर में आप के पास से उठा तो हिकमत की बातें करता था, फिर आप ने फ़रमाया ऐ उमर! तुम ईराक में सब से आखिर मशहूर होगे, हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने कहा सय्यदी इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु सुल्ताने तरीकत और हकीकत और वुजूद में तसर्रुफ़ करने वाले हैं ।

शराब को सिरका बनाना

हज़रत अबी सालेह नस्र रहमतुल्लाह अलैह से मन्क़ूल है के आप ने कहा के में ने अपने वालिद मुहतरम हज़रत अब्दुर रज़्ज़ाक रहमतुल्लाह अलैह से सुना वो फरमाते थे के मेरे वालिद सय्यदना अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह एक रोज़ नमाज़े जुमा के लिए निकले, में और मेरे दो भाई हज़रत अब्दुल वहाब रहमतुल्लाह अलैह और हज़रते ईसा रहमतुल्लाह अलैह आप के साथ थे, रास्ते में हम को हाकिमे वक़्त के तीन शराब के मटके मिले जिन की “बू” यानि महक बहुत तेज़ थी, इन के साथ कोतवाल और हुकूमत के लोग थे, इन से इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने कहा ठहर जाओ लेकिन जानवरों को दौड़ाने में उन्होंने जल्दी की, फिर आप ने जानवरों से कहा ठहर जाओ, वो वहीँ अपनी जगह ऐसे ठहर गए गोया के वो पथ्थर हैं, वो लोग इन्हें बहुत मरते थे मगर जानवर अपनी जगह से न हिलते थे, इन सब लोगों को दर्द शुरू हो गया और ज़मीन पर लोटने लगे, फिर एलनिया तौबा व इस्तगफार करने लगे, फिर इन से दर्द जाता रहा और शराब की बू सिरके में बदल गई, उन्होंने ने बर्तनो को खोला तो वो सिरका था, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु तो जमा मस्जिद चले गए और ये खबर हाकिमे वक़्त तक पहुंच गई, तब वो खौफ से रोने लगा और उज़्र ख़्वाहि के लिए इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुआ और माफ़ी मांगी ।

काफिले को डाकूओ से बचाना

हज़रत शैख़ उस्मान सरीफैनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी और हज़रत शैख़ अब्दुल हक हरीमी रहमतुल्लाह अलैह से मन्क़ूल है फरमाते हैं के हम अपने शैख़ इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के पास मदरसे में थे आप खड़े हुए खड़ाऊँ (लकड़ी की चप्पल) पहने हुए थे, वुज़ू कर के दो रकअत नमाज़ पढ़ी, जब सलाम फेरा तो ललकारा और एक खड़ाऊँ पकड़ कर हवा में फेंकी जो हमारी नज़रों से ग़ाइब हो गई, फिर दोबारा ललकारा और दूसरी खड़ाऊँ फेंकी, वो भी हमारी निगाहों से ग़ाइब हो गई, फिर आप आप बैठ गए, किसी में ये जुरअत न हुई के आप से कुछ पूछे, फिर तेईस 23, रोज़ के बाद बिलादे अजम से एक काफिला आया इस ने कहा के हमारे शैख़ की नज़र है, आप ने लेने की इजाज़त दी, तब उन्हों ने हम को दरियाई और रेशमी कपड़े और सोना और इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की वो खड़ाऊँ भी पेश कर दीं जो आप ने उस रोज़ फेंकी थीं, हम ने उन से पूछा के तुम ने ये खड़ावें कहाँ से लीं, उन्हों ने कहा के हम सफर कर रहे थे के इत्तिफाकन हमारे सामने डाकूओ का गिरोह आ गया, इन के दो सरदार थे, इन्होने हमारा माल लूटना शुरू कर दिया, फिर वो जंगल में उतर कर माल तकसीम करने लगे, पस उसी वक़्त हम ने इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु को याद किया और हमने कुछ माल की नज़र मानी के अगर बच गए तो हम इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु को “नज़र” पेश करेंगें, अभी हम आप को याद ही कर रहे थे के हम ने दो ऐसी बुलंद आवाज़ें सुनी जिससे तमाम जंगल गूँज उठा, फिर वो लोग हमारे पास आए और कहा अपना माल वापस ले जाओ, ना जाने हम पर क्या आफत आपड़ी है, फिर वो हम को अपने सरदारों के पास ले गए जो के मरे पड़े थे और हर एक के पास एक एक खड़ाऊँ पड़ी थी जो पानी से तर गीली थीं, तब हम ने अपना माल लिया और वो खड़ाऊँ भी साथ ले आए ।

डूबते हुए जहाज़ को बचाना

एक रोज़ इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु अपने मदरसे में दरसो तदरीस में मशगूल थे के अचानक आप का चेहरा अक़दस सुर्ख हो गया और आप ने अपना हाथ चादर के अंदर कर लिया, कुछ देर के बाद बाहर निकाला तो आस्तीन से पानी टपक रहा था, तलबा आप के जलाल से मरऊब हो गए और कुछ न पूछ सके, इस वाकिए के दो महीने के बाद कुछ सौदागर बहरी सफर कर के बग्दाद शरीफ आए और बहुत से तहाईफ़ ले कर इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में हाज़िर हुए, आप ने तलबा के सामने इन का हाल पूछा सौदागरों ने बयान किया के दो महीने गुज़रे चुके हैं के हम सुकून के साथ समंदर में सफर कर रहे थे के अचानक तेज़ व तुन्द हवा चलने लगी और समंदर में एक खौफनाक तूफ़ान बरपा हो गया, हमारा जहाज़ भवर में फंस गया और डूबने लगे,उस वक़्त हमने फ़ौरन इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु को पुकारा या सय्यदी, हमने देखा के एक हाथ ग़ैब से नमूदार हुआ और उस ने जहाज़ को खींच कर किनारे लगा दिया , तलबा ने इस वाकिए की तारिख पूछी तो वही थी जिस दिन के आप ने भीगी हुई आस्तीन अपनी चादर से निकाली थी ।

शैख़ हम्माद रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार पे हाज़री और आप की दस्तगीरी करना

किमीयाई व बज़ाज़ और हज़रत शैख़ अबुल हसन अली बिन मुहम्मद बगदादी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से मन्क़ूल है वो फरमाते हैं के हमारे शैख़ इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु “शौनी ज़िया” के कब्रिस्तान की ज़ियारत के लिए तशरीफ़ ले गए, आप के साथ बहुत से फुकहा, व उल्माए किराम थे, तब आप शैख़ हम्माद दब्बास रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार पर तशरीफ़ लाए और आप बहुत देर तक खड़े रहे यहाँ तक के सख्त गर्मी शुरू हो गई, जब आप यहाँ से वापस हुए तो आप के चेहरे पर निहायत ख़ुशी व मसर्रत थी, लोगों ने आप से इस की और शैख़ हम्माद दब्बास रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार पर आप के ज़ियादा देर तक ठहर ने की वजह पूछी तो आप ने फ़रमाया: के 499, हिजरी का वाकिअ है, के हम लोग एक वक़्त पंदरवि 15, शअबान को जुमा के रोज़ शैख़ हम्माद दब्बास रहमतुल्लाह अलैह, के साथ जामा मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की गरज़ से बग़दाद से निकले, जब हम नहर के पुल पर पहुंचे तो शैख़ हम्माद दब्बास रहमतुल्लाह अलैह ने मुझे धक्का दे दिया, उस वक़्त शदीद सर्दी का ज़माना था, में ने बिस्मिल्लाह कहा और जुमे के ग़ुस्ल की नियत कर ली, में सोफ का जुब्बा पहने हुए था और मेरी आस्तीन में किताब के अज्ज़ा थे, तब में ने अपना हाथ ऊपर कर लिया के वो भीग न जाए, वो मुझे छोड़ कर आगे चले गए, में पानी से निकला जुब्बा निचोड़ा, मुझे सर्दी से सख्त तकलीफ महसूस हुई, आप के मुरीदीन मुझे तंग करने लगे तो आप ने इन्हें डांटा और फ़रमाया के में ने तो इन का इम्तिहान लेने की गरज़ से धकेला था मुझे मालूम है के वो एक मज़बूत पहाड़ की तरह है, जो अपनी जगह से नहीं हिलता, फिर इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया पस आज जब इन की कब्र में इन को देखा तो इनको एक नूरानी लिबास पहने देखा, इन के सर पर याकूत का ताज है, इन के हाथ में सोने के कंगन हैं, इन के पाऊं में सोने की जूतियां हैं, लेकिन इन का दायां हाथ शिल है, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने पूछा तो फ़रमाया ये वही हाथ है जिस से में ने आप को धक्का दिया था और नहर में फेंका था, फिर इन्होने माज़रत माफ़ी चाही, और मेने अल्लाह पाक से इन के कुसूर की माफ़ी लतब की, में इन के लिए दुआ करता रहा और पांच हज़ार औलियाए किराम मेरी दुआ पर अमीन कहते थे, फिर अल्लाह पाक ने इन के हाथ को दुरुस्त कर दिया जिससे आप को और मुझे ख़ुशी हासिल हुई, ।

गुम शुदाह ऊँट का मिल जाना

एक सौदागर शरीफ मक़रूज़ी चौदह ऊंटों पर शकर लाद कर तिजारत के लिए जा रहा था, रास्ते में एक लक दक सहरा जंगल में काफिले को क़याम करना पड़ा, आखरी शब में काफिला चलने के लिए तय्यार हुआ तो चार लदे हुए ऊँट कहीं गाइब हो गए, सौदागर बहुत परेशान हुआ और बहुत तलाश किया लेकिन ऊँट न मिले, वो इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु का अकीदत मंद था, परेशानी के आलम में आप को पुकारा, क्या देखता है के एक सफ़ेद पोश नूरानी बुज़रुग एक टीले पर खड़े हैं और हाथ के इशारे से अपनी तरफ बुला रहे हैं, जब वो इस टीले के पास पंहुचा तो वो बुज़रुग गाइब हो गए, उसने टीले पर चढ़ कर देखा तो दूसरी जानिब चरों ऊँट सामान के साथ बैठे थे

चोर को अबदाल बनाना

हज़रत शैख़ अबू मुहम्मद मुफर्रेह रहमतुल्लाह अलैह से मन्क़ूल है के एक रात एक चोर चोरी के इरादे से इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के घर पे आया और अंदर कदम रखते ही अँधा हो गया, नाचार एक कोने में छुप कर बैठ गया, इसी दौरान में हज़रते खिज़र अलैहिस्सलाम एक अबदाल के इन्तिकाल की खबर लाए और इस की जगह किसी को मुकर्रर फरमाने को कहा, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने इस चोर को अपने सामने बुलाया और वो आप की एक नज़रे करामत से “अबदाल” हो गया, आप रहमतुल्लाह अलैह ने उस को फौत होने वाले अबदाल की जगह मुकर्रर किया और फ़रमाया के ये बात मुरव्वत से बईद थी के ये हमारे घर से महरूम जाता ।

डाकू को कुतब बनाना

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु जब मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा हाज़री के बाद वापस नग्गे पाऊं बग़दाद की तरफ लोटे तो रास्ते में एक डाकू को खड़ा हुआ किसी मुसाफिर का इन्तिज़ार कर रहा था ताके उससे सामान छीने, आप इस के पास पहुंचे तो आप को इल्मे कश्फ़ के ज़रिए इस का हाल मालूम हो चुका था, इस के दिल में भी गुज़रा के अजब नहीं के ये बा हैबत “शैख़ अब्दुल कादिर” ही हो, आप ने फ़रमाया में ही अब्दुल कादिर हूँ, चोर फ़ौरन आप के कदमो में गिर पड़ा और उस की ज़बान से “या सय्यदी अब्दुल कादिर शई अन लिल्लाह” जारी हो गया, आप को इस की हालत पर रहम आ गया और आप ने एक निगाहें खुसूसी इस पर डाली और इस को मक़ामे “कुतबीयत” पर फ़ाइज़ कर दिया ।

कमज़ोर ऊंटनी को ताकत अता करना

इमामुल मुहद्दिसीन हज़रत अल्लामा मुल्ला अली कारी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने अपनी तस्नीफें लतीफ़ “नुज़हतुल खतिरतुल फ़ातिर” में तहरी फरमाते हैं के हज़रत अबू हफ्स उमर बिन सालेह बगदादी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अपनी ऊंटनी हांकते हुए इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ करने लगे के में हज्जे बैतुल्लाह शरीफ को जाना चाहता हूँ मगर मेरी ऊंटनी सफर के काबिल नहीं है, इस के सिवा मेरे पास कोई दूसरी सवारी भी नहीं है, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने ऊंटनी की पेशानी पर हाथ रखा और एक एड़ी लगाई तो वो ऊंटनी मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा तक किसी से पीछे न रही ।

कबूतरी और कुमरी

हज़रत अबुल हसन अल अज्ज़ी रहमतुल्लाह अलैह बीमार हुए और इन की इयादत के लिए इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ ले गए आप ने इन के घर एक कबूतरी और एक कुमरी को बैठे हुए देखा, अबुल हसन ने अर्ज़ किया हुज़ूर! ये कबूतरी छेह महीने से अंडे नहीं दे रही है, और ये कुमरी तो महीने से बोलती ही नहीं, तो इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने कबूतरी के पास खड़े हो कर उस को फ़रमाया के अपने मालिक को फाइदा पहुचाओ, और कुमरी को फ़रमाया के अपने खालिक की तस्बीह बयान करो, तो कुमरी ने उसी दिन से बोलना शुरू कर दिया जिस को सुन कर अहले बग़दाद महज़ूज़ होते और कबूतरी उमर भर अंडे देती रही ।

गेहूं पांच साल तक खाते रहे

अबुल अब्बास अहमद बिन मुहम्मद अल करशी बगदादी रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है के एक दफा इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने कहित साली में दस बारह सेर गेहूं अता फरमाए, और इरशाद फ़रमाया के इसे ऐसे बर्तन में बंद रखना जिस के दो मुँह हों जब ज़रूरत पड़े तो खोल कर निकल लिया करना, और तोलना बिलकुल नहीं, चुनांचे हम इन गेहूं को पांच साल तक खाते रहे, एक दफा मेरी बीवी ने इस का मुँह खोल कर देखा के इस में कितने गेहूं हैं, तो मालूम हुआ के के जितने गेहूं पहले रखे थे इतनी ही मिक़्दार में मौजूद हैं, फिर ये गेहूं सात दिनों में खत्म हो गए, में ने इस वाकिए को इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में अर्ज़ किया तो आप ने इरशाद फ़रमाया: अगर तुम इस को इसी तरह रहने देते न देखते तोलते तो इस में से मरते दम तक गेहूं खत्म नहीं होते ।

अपाहिज बच्चा राफ़ज़ियों की तौबा

हज़रत शैख़ अबुल हसन अल करशी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के 559, हिजरी का वाक़िआ है के रफ़्ज़ियों की एक बहुत बड़ी जमाअत दो टोकरे जिनका मुँह बंद किया हुआ था आप की खिदमत में ले कर आए और आप से पूछा के आप बताएं के इन में क्या चीज़ है आप ने एक टोकरे पर दस्ते मुबारक रख कर फ़रमाया एक बच्चा है जो अपाहिज है आप ने अपने साहब ज़ादे हज़रत अब्दुर रज़्ज़ाक रहमतुल्लाह अलैह को हुक्म फ़रमाया के इस टोकरे का मुँह खोलो तो उस में अपाहिज बच्चा था, तो आप ने अपने दस्ते मुबारक से उठा कर फ़रमाया, अल्लाह पाक के हुक्म से खड़ा हो जा, तो वो फ़ौरन खड़ा हो गया फिर आप ने दूसरे टोकरे पर हाथ मुबारक रख कर फ़रमाया इस में सेहत मंद बिलकुल सही बच्चा है, उस टोकरे का मुँह खोल कर बच्चे को हुक्म फ़रमाया के बाहर निकल कर बैठ जाओ, तो वो बाहर निकल कर बैठ गया, इस पर वो तमाम राफ्ज़ी शीआ ताइब हो गए ।

पानी पर हुकूमत

एक बार दरियाए दजला में ज़ोरदार सैलाब आ गया, दरिया की तुगियानी बहुत तेज़ हो गई शिद्दत के साथ, लोग हिरांसा और परेशान हो गए, और इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में हाज़िर हुए और आप से मदद तलब करने लगे, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने अपना असा मुबारक पकड़ा और दरिया की तरफ चल पड़े और दरिया के किनारे पर पहुंच कर आप ने असा मुबारक को दरिया की असली हद पर नसब कर दिया, और दरिया को फ़रमाया के बस यहीं तक आप का ये फरमाना ही था के उसी वक़्त पानी कम होना शुरू हो गया और आप के असा मुबारक तक आ गया ।

“माफ़िल अरहाम” बेटे की पैदाइश की खबर देना

हज़रत खिज़र हुसैनी रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने मुझ से इरशाद फ़रमाया के तुम मूसल जाओगे, तुम्हारे यहाँ औलाद होगी पहली दफा लड़का होगा जिस नाम “मुहम्मद” है, जब वो सात साल का होगा तो बाग्दाद का एक “अली” नाम का ना बीना शख्स छेह महीने में क़ुरआन शरीफ हिफ़्ज़ करा देगा, और तुम चौरानवे साल और सात दिन की उमर में अरबल शहर में इन्तिकाल करोगे, और तुम्हारी समाअत बसारत और आज़ा की कुव्वत उस वक़्त बिलकुल दुरुस्त ठीक होगी, चुनांचे हज़रत खिज़र हुसैनी रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्दे अर्ज मंद अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद ने बयान किया है के मेरे वालिद माजिद हज़रत खिज़र हुसैनी रहमतुल्लाह अलैह मूसल शहर में आ कर क़याम पज़ीर हुए, और वहीँ माहे सफर 561, हिजरी में मेरी विलादत हुई, जब में सात साल का हुआ तो वालिद मुहतरम ने मेरी तालीम के लिए एक जय्यद हाफिज़े कुरआन की तक़र्रुरी फ़रमाई, वालिद मुहतरम ने जब उनका नाम और वतन पूछा तो हाफिज़ साहब ने अपना नाम अली और अपना वतन बग़दाद शरीफ बताया, इस के बाद मेरे वालिद ने फ़रमाया के इन वाक़िआत से इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने मुझे पहले ही खबर दे दी थी, फिर 9, सफारुल मुज़फ्फर 625, हिजरी को मेरे वालिद माजिद का चौरानवे साल छेह माह और सात दिन की उमर में इन्तिकाल हुआ और आप के तमाम होश हवास और आज़ा बिलकुल सही थे ।

अभी मेरा इन्तिकाल नहीं होगा

इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के साहब ज़ादे हज़रत सय्यदना अब्दुल वहाब रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के एक दफा हमारे वालिद माजिद इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु सख्त अलील बीमार हो गए, और हम इन के इर्द गिर्द आबदीदा हो कर बैठ गए हम लोग बैठे हुए थे तो आप ने फ़रमाया: अभी मुझे मोत नहीं आएगी मेरी पुश्त में “याहया” नामी लड़का है, जिस की ज़रूर पैदाइश होगी, सो आप के फरमान के मुताबिक साहब ज़ादे की पैदाइश हुई तो आप ने उस का नाम याहया रखा, फिर आप अरसए दराज़ तक ज़िंदा रहे ।

असा (लाठी, डंडा, छड़ी) का रोशन होना

हज़रत अब्दुल्लाह ज़ियाल रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के मदरसे में खड़ा था के हज़रत अपने दौलत खाने से अपना असा मुबारक लिए हुए बाहर तशरीफ़ लाए, तो मेरे दिल में उस वक़्त ख़याल आया के आप इस असा मुबारक से कोई करामत दिखाएं, तो आप ने तबस्सुम फरमाते हुए मेरी तरफ देखा, और असा मुबारक ज़मीन में गाड़ दिया तो वो रोशन हो कर चमकने लगा, और घंटे भर इसी तरह चमकता रहा, उस की रौशनी आसमान की तरफ चढ़ती जाती थी, यहाँ तक की उस की रौशनी से वो मुनव्वर रोशन हो गई, फिर आप ने एक घंटे के बाद असा मुबारक को निकाल लिया तो फिर वो अपनी पहली हालत पर आ गया, इस के बाद आप ने इरशाद फ़रमाया: ऐ ज़ियाल तुम इसी चीज़ की चाहत रखते थे ।

दिलो पर क़ब्ज़ा

आरिफ़े बिल्लाह अल्लामा नूरुद्दीन उर्फ़ अब्दुर रहमान जामी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु का एक मुरीद बयान करता है के में जुमा के दिन हज़रत के साथ जामा मस्जिद को जा रहा था, उस दिन किसी शख्स ने आप की तरफ तवज्जुह नहीं की और न सलाम किया, में ने दिल में सोचा के ये अजीब बात है इस से पहले हर जुमे मुबारक को हम बड़ी मुश्किल से मिलने वाले लोगों के हुजूम की वजह से मस्जिद तक पंहुचा करते थे, दिल में ये ख्याल गुजरने न पाया था के आप ने हंस कर मेरी तरफ देखा और लोगों ने आप को सलाम करना शुरू कर दिया और इस कदर हुजूम हो गया के मेरे और इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के दरमियान लोग हाइल हो गए, फिर में ने अपने दिल में ही कहा के वो हाल इससे बेहतर था, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु ने मेरी तरफ मुतवज्जेह हो कर फ़रमाया के ये बात तुम ने खुद ही चाहि थी, तुम को मालूम नहीं के लोगों के दिल मेरे हाथ में हैं, अगर चाहूँ तो इन को फेर दूँ और अगर चाहूँ तो अपनी तरफ मुतवज्जेह कर लूँ ।

हज़रत शैख़ अहमद रिफाई रहमतुल्लाह अलैह की ज़ियारत का ख्याल

शैख़ मुहम्मद अल खिज़र रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, के में ने अपने वालिद माजिद से सुना के उन्होंने बयान किया के एक मर्तबा इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमते अक़दस में था के फ़ौरन हज़रत शैख़ अहमद रिफाई रहमतुल्लाह अलैह की ज़ियारत का दिल में ख्याल आया तो आप ने फ़रमाया, ऐ खिज़र! लो शैख़ अहमद की ज़ियारत कर लो, में ने आप की आस्तीन की तरफ नज़र उठा कर देखा तो मुझे एक ज़ी वक़ार बुज़रुग नज़र आए, में ने उठ कर उनको सलाम किया और उन से मुसाफा किया, तो हज़रत शैख़ अहमद रिफाई रहमतुल्लाह अलैह ने मुझ से फ़रमाया, ऐ खिज़र! जो शहंशाहे औलिया इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की ज़ियारत से मुशर्रफ हो उस को मेरी ज़ियारत करने की क्या आरज़ू, और में भी शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु, के फैज़ो रईयत में से हूँ, ये फरमा कर वो मेरी नज़रों से ग़ाइब हो गए, इमामुल औलिया शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु के बाद जब हज़रत शैख़ अहमद रिफाई रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुआ तो बिलकुल व्ही शक्लो सूरत थी जिस को में ने बग़दाद शरीफ आप की आस्तीन में देखा था, हाज़िर होने पर हज़रत शैख़ अहमद रिफाई रहमतुल्लाह अलैह ने मुझे इरशाद फ़रमाया, क्या तुम को मेरी पहली मुलाकात काफी नहीं हुई ।

रेफरेन्स हवाला
  • बहजतुल असरार उर्दू मआदिनुल अनवार,
  • तबक़ातुल कुबरा जिल्द 1, शआरानी,
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  • हयाते गौसुलवरा,
  • सीरते गौसे आज़म,
  • ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
  • अख़बारूल अखियार फ़ारसी व उर्दू,
  • मसालिकुस्सलिकीन जिल्द अव्वल,
  • अवारिफुल मआरिफ़,
  • तज़किराए मशाइखे इज़ाम जिल्द अव्वल,
  • सैरुल अखियार महफिले औलिया,
  • हक़ीकते गुलज़ारे साबरी,
  • जामे करामाते औलिया जिल्द 1,
  • अल्लाह के मशहूर वली,
  • तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
  • सीरते गौसुस सक़लैन,
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